भारतीय अर्थव्यवस्था
शहरी सहकारी बैंकों में प्रशासन
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), शहरी सहकारी बैंक, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ मेन्स के लिये:सहकारी बैंकों की विशेषताएँ और चुनौतियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) के गवर्नर ने शहरी सहकारी बैंकों (Urban Cooperative Banks- UCB) की चिंताओं को संबोधित किया तथा उनके प्रशासन को मज़बूत करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
- UCB क्षेत्र में समग्र वित्तीय सुधार के बावजूद इस क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये व्यक्तिगत संस्थाओं के कमज़ोर पक्षों को सुदृढ़ बनाने की दिशा में प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
शहरी सहकारी बैंकों (UCB) के संबंध में चिंताएँ:
- वित्त की कमी:
- कुछ शहरी सहकारी बैंक (UCB) वित्त की कमी का सामना करते हैं, जैसे- कम पूंजीकरण, उच्च स्तर की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (Non-Performing Assets- NPA) या अपर्याप्त भंडार, जो संभावित अस्थिरता का संकेत देते हैं।
- शासन संबंधी मुद्दे:
- मज़बूत प्रशासनिक व्यवस्था का अभाव UCB के प्रदर्शन और समग्रता में बाधा बन सकता है।
- कमज़ोर प्रशासन की वजह से बैंक के कुप्रबंधन, गैर-अनुपालन या नैतिक चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- अनुपालन चुनौतियाँ:
- अनुपालन संबंधी मुद्दों के कारण कुछ UCB को नियामक और कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
- गैर-अनुपालन के परिणामस्वरूप ज़ुर्माना, कानूनी मुद्दों के साथ ही प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँच सकता है।
- जोखिम प्रबंधन:
- विभिन्न जोखिमों को प्रभावी ढंग से पहचानने, आकलन करने तथा प्रबंधित करने की कुछ UCB की क्षमता को लेकर चिंताएँ मौजूद हैं।
- जोखिम प्रबंधन की कमियों के कारण अप्रत्याशित वित्तीय हानि या परिचालन संबंधी व्यवधान उत्पन्न हो सकते हैं।
- ऋण जोखिम:
- UCB के क्रेडिट जोखिम प्रबंधन प्रथाओं में सुधार करने की आवश्यकता है। इसमें ऋण हामीदारी मानकों (Loan Underwriting Standards), उधारकर्ता के प्रदर्शन की निगरानी और गैर-निष्पादित ऋणों के निपटान संबंधी मुद्दे शामिल हैं।
- तरलता जोखिम:
- अपर्याप्त तरलता प्रबंधन से वित्तीय दायित्वों को पूरा करने में कठिनाई हो सकती है।
- विभिन्न जोखिमों को प्रभावी ढंग से पहचानने, आकलन करने तथा प्रबंधित करने की कुछ UCB की क्षमता को लेकर चिंताएँ मौजूद हैं।
- IT अवसंरचना और साइबर सुरक्षा:
- UCB को संवेदनशील डेटा और सिस्टम की सुरक्षा के लिये मज़बूत IT अवसंरचना और साइबर सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करना चाहिये।
UCB के लिये RBI की सिफारिशें:
- RBI ने UCB के निदेशकों को शासन प्रथाओं, विशेष रूप से अनुपालन, जोखिम प्रबंधन तथा आंतरिक लेखापरीक्षा जैसे तीन सहायक स्तंभों को मज़बूत करने का निर्देश दिया।
- RBI ने बोर्डों से अधिक सक्रियता के साथ परिसंपत्ति देयता प्रबंधन और तरलता जोखिम को व्यवस्थित तरीके से प्रबंधित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
- बोर्डों की कार्य पद्धति हेतु RBI ने पाँच पहलुओं पर ज़ोर दिया- निदेशकों के पर्याप्त कौशल और विशेषज्ञता, एक पेशेवर प्रबंधन बोर्ड का गठन, बोर्ड के सदस्यों की विविधता और कार्यकाल, बोर्ड चर्चाओं की पारदर्शी और भागीदारी प्रकृति, एवं बोर्ड-स्तरीय समितियों की प्रभावी कार्यप्रणाली।
- RBI ने उन्हें नवीन लेखांकन प्रथाओं का उपयोग कर अपनी वास्तविक वित्तीय स्थिति को छिपाने के प्रति आगाह/सावधान किया।
- RBI ने उन्हें अपने व्यवसाय को बनाए रखने, बढ़ाने तथा ग्राहकों की सेवा करने के लिये उचित व्यावसायिक रणनीतियों को अपनाने एवं उपयुक्त प्रौद्योगिकी समाधान तलाशने के लिये प्रोत्साहित किया।
शहरी सहकारी बैंक (UCBs):
- सहकारी बैंक, वाणिज्यिक बैंकों से भिन्न होते हैं और इनकी शुरुआत सहकारी ऋण समितियों की अवधारणा से हुई थी, जहाँ एक ऋण समिति के सदस्य एक-दूसरे को अनुकूल शर्तों पर ऋण देते थे।
- सहकारी बैंकों को उनके परिचालन क्षेत्र के आधार पर मोटे तौर पर शहरी और ग्रामीण सहकारी बैंकों में वर्गीकृत किया जाता है।
- UCBs को एकल-राज्य सहकारी बैंकों के मामले में सहकारी समितियों के राज्य रजिस्ट्रार (RCS) और बहु-राज्य सहकारी बैंकों के मामले में सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार (CRCS) तथा RBI द्वारा विनियमित एवं पर्यवेक्षित किया जाता है।
- परंतु वर्ष 2020 में सभी UCBs और बहु-राज्य सहकारी समितियों को RBI के पर्यवेक्षण के अंतर्गत लाया गया।
- वर्ष 2021 में RBI ने एक समिति नियुक्त की जिसने UCBs के लिये 4-स्तरीय संरचना का सुझाव दिया।
- टियर 1: सभी यूनिट UCB और वेतन पाने वाले UCB (अनिर्धारित जमा राशि) तथा अन्य सभी UCB जिनके पास 100 करोड़ रुपए तक जमा हैं।
- टियर 2: 100 करोड़ रुपए से 1,000 करोड़ रुपए के बीच जमा राशि वाले UCB।
- टियर 3: 1,000 करोड़ रुपए से 10,000 करोड़ रुपए के बीच जमा राशि वाले UCB।
- टियर 4: 10,000 करोड़ रुपए से अधिक की जमा राशि वाले UCB।
- मार्च 2021 तक भारत में लगभग 1,539 UCB हैं। मार्च 2020 तक UCB का जमा आधार 5 लाख करोड़ रुपए और अग्रिम 3 लाख करोड़ रुपए से अधिक था।
- उनकी बड़ी संख्या के बावजूद बैंकिंग क्षेत्र में UCB की बाज़ार हिस्सेदारी कम थी और लगभग 3% की गिरावट से घट रही थी। उनके पास जमा का 3.24% तथा अग्रिम का 2.69% हिस्सा था।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में ‘शहरी सहकारी बैंकों’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर:(b) व्याख्या:
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शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद को डीम्ड-टू-बी-यूनिवर्सिटी का दर्जा
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद, डीम्ड-टू-बी-यूनिवर्सिटी, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, डि नोवो श्रेणी मेन्स के लिये:डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा और इसके लाभ, भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नई दिल्ली में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (National Council of Educational Research and Training - NCERT) का 63वाँ स्थापना दिवस मनाया गया, जिसमें NCERT की उल्लेखनीय उपलब्धि को देखते हुए उसे सम्मानित डीम्ड-टू-बी-यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया।
आयोजन के प्रमुख बिंदु:
- 'जादुई पिटारा' के माध्यम से प्रारंभिक शिक्षा में क्रांति:
- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद द्वारा विकसित 3 से 8 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों के लिये खेल पर आधारित शिक्षण-प्रशिक्षण सामग्री जादुई पिटारा को बदलाव के एक साधन के रूप में देखा जा रहा है, जिससे देश के 10 करोड़ बच्चों को लाभ होगा।
- मातृभाषा को बढ़ावा और उन्नत प्रौद्योगिकियों का एकीकरण:
- इसमें क्षेत्रीय भाषाओं को संरक्षित करने तथा उन्हें बढ़ावा देने के लिये मातृभाषाओं में शैक्षिक सामग्री विकसित करने के महत्त्व पर बल दिया गया।
- इसके अतिरिक्त इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि NCERT अणुवादिनी जैसे सॉफ्टवेयर की मदद से सभी 22 भाषाओं में शैक्षिक सामग्री विकसित करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के सभी 7 क्षेत्रीय केंद्रों में ऑगमेंटेड रियलिटी, वर्चुअल रियलिटी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस लैब स्थापित करने का सुझाव दिया गया।
- इसका उद्देश्य भारत को अनुसंधान और नवाचार का वैश्विक केंद्र बनाने के लिये इन केंद्रों को भविष्य के लिये तैयार बुनियादी ढाँचे के साथ विश्व भर की नवीनतम प्रौद्योगिकियों से सुसज्जित करना है।
- इसमें क्षेत्रीय भाषाओं को संरक्षित करने तथा उन्हें बढ़ावा देने के लिये मातृभाषाओं में शैक्षिक सामग्री विकसित करने के महत्त्व पर बल दिया गया।
- उद्योग 4.0 के लिये तैयारी और शिक्षक प्रशिक्षण का मानकीकरण:
- इस कार्यक्रम में शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम को मानकीकृत करने, इसे प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा (Early Childhood Care and Education- ECCE) ढाँचे के सिद्धांतों के साथ संरेखित करने का आह्वान किया गया।
- उद्योग 4.0 द्वारा उत्पन्न चुनौतियों के समाधान के लिये भारत के युवाओं को तैयार करने पर ध्यान देने के साथ भारत के कोविड-19 महामारी प्रबंधन और चंद्रयान 3 जैसे समसामयिक विषयों को कवर करने वाली संक्षिप्त पुस्तिकाएँ बनाने का प्रस्ताव रखा गया था।
- इसका उद्देश्य भारतीय मूल्यों और लोकाचार को स्थापित करते हुए युवा पीढ़ी को नवीनतम विकास के बारे में जानकारी प्रदान कर जागरूक करना है।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद:
- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद एक स्वायत्त संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1961 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत की गई थी।
- यह स्कूली शिक्षा से संबंधित मामलों पर केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह देने वाली शीर्ष संस्था है।
- यह निम्नलिखित से संबंधित विभिन्न गतिविधियों और कार्यक्रमों का संचालन करती है:
- शैक्षिक अनुसंधान और नवाचार
- पाठ्यचर्या विकास एवं पुनरीक्षण
- पाठ्यपुस्तकों और अन्य शिक्षण-अधिगम सामग्री का विकास
- शिक्षक शिक्षा और व्यावसायिक विकास
- शैक्षिक मूल्यांकन एवं आकलन
- शिक्षा क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुसार, प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा (ECCE), स्कूली शिक्षा और वयस्क शिक्षा के लिये NCERT राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF) विकसित करने वाली प्रमुख एजेंसी है।
डीम्ड यूनिवर्सिटी:
- परिचय:
- डीम्ड यूनिवर्सिटी उच्च शिक्षा हेतु एक संस्थान है जिसे UGC अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा मान्यता प्रदान की जाती है।
- यह संसद या राज्य विधानमंडल के किसी अधिनियम द्वारा स्थापित या निगमित नहीं है, बल्कि UGC की सिफारिश पर केंद्र सरकार द्वारा इसे विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया गया है।
- एक डीम्ड यूनिवर्सिटी को शैक्षणिक स्वायत्तता प्राप्त है तथा वह अपने स्वयं के पाठ्यक्रम, प्रवेश मानदंड, शुल्क संरचना, संकाय भर्ती तथा परीक्षा प्रणाली डिज़ाइन कर सकती है।
- डीम्ड यूनिवर्सिटी उच्च शिक्षा हेतु एक संस्थान है जिसे UGC अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा मान्यता प्रदान की जाती है।
- डे-नोवो श्रेणी (De-Novo Category):
- NCERT को 'डे-नोवो' श्रेणी के तहत डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया है, जिसका अर्थ है कि इसे ज्ञान के नए या उभरते क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिये मान्यता दी गई है।
- डे-नोवो इंस्टीट्यूशन अद्वितीय और "ज्ञान के उभरते क्षेत्रों" (Emerging Areas of Knowledge) जैसे- जैव प्रौद्योगिकी, नैनो टेक्नोलॉजी, अंतरिक्ष विज्ञान इत्यादि में शिक्षण एवं अनुसंधान में नवाचारों के लिये समर्पित एक संस्थान है।
- NCERT को 'डे-नोवो' श्रेणी के तहत डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया है, जिसका अर्थ है कि इसे ज्ञान के नए या उभरते क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिये मान्यता दी गई है।
- डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा प्राप्त करने के लाभ:
- वे किसी अन्य प्राधिकरण से अनुमोदन प्राप्त किये बिना शिक्षा क्षेत्र की बदलती ज़रूरतों तथा मांगों के लिये प्रासंगिक, नए पाठ्यक्रम और कार्यक्रम भी शुरू कर सकते हैं।
- वे अकादमिक आदान-प्रदान, अनुसंधान परियोजनाओं, संकाय विकास और छात्र गतिशीलता के लिये राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों तथा संस्थानों के साथ सहयोग कर सकते हैं।
- वे विविध पृष्ठभूमि और क्षेत्रों से जुड़े अधिक छात्रों तथा शिक्षकों को आकर्षित कर सकते हैं, साथ ही विभिन्न स्रोतों से आर्थिक सहायता भी प्राप्त कर सकते हैं।
- वे NEP 2020 को लागू करने में अधिक सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं, जो भारत में स्कूली शिक्षा प्रणाली में बदलाव की परिकल्पना करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. वुड डिस्पैच के बारे में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) |
शासन व्यवस्था
एक राष्ट्र एक चुनाव
प्रिलिम्स के लिये:एक राष्ट्र एक चुनाव, लोकसभा, राज्यसभा, भारत का निर्वाचन आयोग, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 मेन्स के लिये:एक राष्ट्र एक चुनाव, महत्त्व और चुनौतियाँ |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने 'एक राष्ट्र एक चुनाव' (One nation One election- ONOE) योजना की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिये पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया है।
- तार्किक एवं अन्य चुनौतियों के बावजूद भारत में लोकसभा (संसद) और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का विचार लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है।
एक साथ चुनाव:
- परिचय:
- एक साथ चुनाव कराने का विचार, भारतीय चुनावी चक्र को इस तरह से संरचित करने को लेकर है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ एवं निश्चित समय के भीतर हों।
- हालाँकि वर्ष 1967 तक इस अवधारणा के तहत चुनाव आयोजित किये गए, लेकिन कार्यकाल समाप्त होने से पहले विधानसभाओं और लोकसभाओं के बार-बार भंग होने के कारण यह अभ्यास धीरे-धीरे प्रचलन से बाहर हो गया।
- वर्तमान में केवल कुछ राज्यों (आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम) की विधानसभाओं के चुनाव ही लोकसभा चुनावों के साथ होते हैं।
- लाभ:
- अगस्त 2018 में भारत के विधि आयोग द्वारा एक साथ चुनावों पर जारी मसौदा रिपोर्ट के अनुसार, एक राष्ट्र एक चुनाव के अभ्यास से सार्वजनिक धन की बचत की जा सकती है, प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर पड़ने वाले तनाव को कम किया जा सकेगा, सरकारी नीतियों का समय पर कार्यान्वयन होगा तथा चुनाव प्रचार के बजाय विकास गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए विभिन्न प्रशासनिक सुधार किये जा सकेंगे।
एक साथ चुनाव कराने में चुनौतियाँ:
- व्यवहार्यता:
- संविधान के अनुच्छेद 83(2) और अनुच्छेद 172 में कहा गया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पाँच वर्ष का होगा, यदि इन्हें पहले भंग न किया जाए तथा अनुच्छेद 356 के तहत ऐसी परिस्थितियाँ भी उत्पन्न हो सकती हैं जिसमें विधानसभाएँ पहले भी भंग की जा सकती हैं। इसलिये केंद्र अथवा राज्य सरकार का कार्यकाल पूरा होने से पहले सरकार गिरने की स्थिति में ONOE योजना की व्यवहार्यता सबसे अहम प्रश्न है।
- इस तरह के बड़े बदलाव के लिये संविधान में संशोधन करने से न केवल विभिन्न स्थितियों और प्रावधानों पर व्यापक तौर पर विचार करने की आवश्यकता होगी, बल्कि ऐसे बदलाव भविष्य में किसी प्रकार के संवैधानिक संशोधनों के लिये एक चिंताजनक मिसाल भी साबित हो सकते हैं।
- संघवाद के अनुरूप न होना:
- ONOE का विचार 'संघवाद' की अवधारणा से सुमेलित नहीं है क्योंकि यह इस धारणा पर आधारित है कि संपूर्ण राष्ट्र "एक (One)" है जो कि अनुच्छेद 1 द्वारा भारत को "राज्यों के संघ" के रूप में वर्णित विचार का खंडन करता है।
- वर्तमान स्वरूप का अधिक लाभकारी होना:
- बार-बार होने वाले चुनावों के कारण चुनाव के वर्तमान स्वरूप को लोकतंत्र में अधिक लाभकारी के तौर पर देखा जा सकता है क्योंकि यह मतदाताओं की आवाज़ सुनने की अधिक बार अनुमति देता है।
- चूँकि राष्ट्रीय और राज्य चुनावों के अंतर्निहित मुद्दे अलग-अलग होते हैं, इसलिये वर्तमान ढाँचा इन मुद्दों को पृथक रूप से हल करने में मदद करता है, जिससे अधिक जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
- EVM और VVPAT की आवश्यकता:
- एक साथ चुनाव के लिये लगभग 30 लाख इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर-वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीनों की आवश्यकता होगी।
- भारतीय चुनाव आयोग (Election Commission of India- ECI) ने वर्ष 2015 में सरकार को एक व्यवहार्यता रिपोर्ट सौंपी, जिसमें संविधान तथा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन का सुझाव दिया गया।
- एक साथ चुनाव के लिये लगभग 30 लाख इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर-वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीनों की आवश्यकता होगी।
- लागत संबंधी विचार:
- ECI ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि एक साथ चुनाव कराने के लिये पर्याप्त बजट की आवश्यकता होगी।
- प्रत्येक 15 वर्ष की अवधि के बाद मशीनों को बदलने की अतिरिक्त लागत के साथ EVM और VVPAT की खरीद के लिये कुल लगभग 9,284.15 करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी।
- एक साथ चुनाव होने से चुनावों के लिये मशीनों को एकत्र करने हेतु भंडारण लागत में वृद्धि होगी।
- मतदाता व्यवहार पर प्रभाव:
- कुछ राजनीतिक दलों का तर्क है कि यह मतदाताओं के व्यवहार को इस तरह से प्रभावित कर सकता है कि मतदाता राज्य चुनावों के लिये भी राष्ट्रीय मुद्दों को केंद्र में रखकर मतदान करेंगे जिससे बड़े राष्ट्रीय दल, राज्य विधानसभा तथा लोकसभा दोनों चुनावों में जीत हासिल कर सकते हैं और इस तरह क्षेत्रीय दल हाशिये पर चले जाएंगे।
- चुनावी मुद्दे:
- राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव कभी-कभी अलग-अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं, और जब वे एक साथ आयोजित किये जाएंगे तो मतदाता मुद्दों के एक सेट को दूसरे की तुलना में अधिक महत्त्व दे सकते हैं।
- जवाबदेही में कमी:
- प्रत्येक 5 वर्ष में एक से अधिक बार मतदाताओं का सामना करने से राजनेताओं की जवाबदेही बढ़ती है और वे सतर्क रहते हैं। अंततः चुनावों के दौरान बहुत सारी नौकरियाँ भी सृजित होती हैं, जिससे ज़मीनी स्तर पर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
भारत में एक साथ चुनाव की व्यवस्था बहाल करना:
- लॉ कमीशन वर्किंग पेपर (2018) की सिफारिशों के अनुसार,
- संविधान, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम,1951 तथा लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं की प्रक्रिया के नियमों में संशोधन के माध्यम से एक साथ चुनाव बहाल किये जा सकते हैं। वर्ष 1951 के अधिनियम की धारा 2 में एक परिभाषा जोड़ी जा सकती है।
- लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कामकाज़ के नियमों में संशोधन के माध्यम से अविश्वास प्रस्ताव को रचनात्मक अविश्वास मत से बदला जा सकता है।
- त्रिशंकु विधानसभा अथवा संसद में गतिरोध को रोकने के लिये दल-बदल विरोधी कानून की शक्ति को कम किया जा सकता है।
- लचीलापन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से आम चुनावों की घोषणा के लिये छह महीने की वैधानिक समय-सीमा को एक बार बढ़ाया जा सकता है।
वे देश जहाँ एक साथ चुनाव होते हैं:
- दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव पाँच साल के लिये एक साथ होते हैं और नगरपालिका चुनाव दो साल बाद होते हैं।
- स्वीडन में राष्ट्रीय विधायिका (Riksdag) और प्रांतीय विधायिका/काउंटी परिषद (Landsting) तथा स्थानीय निकायों/नगरपालिका विधानसभाओं (Kommunfullmaktige) के चुनाव चार साल के लिये एक निश्चित तिथि यानी सितंबर के दूसरे रविवार को होते हैं लेकिन अधिकांश अन्य बड़े लोकतंत्रों में एक साथ चुनाव की ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
- ब्रिटेन में ब्रिटिश संसद और उसके कार्यकाल को स्थिरता एवं पूर्वानुमेयता की भावना प्रदान करने के लिये निश्चित अवधि संसद अधिनियम, 2011 पारित किया गया था। इसमें प्रावधान था कि पहला चुनाव 7 मई, 2015 को और उसके बाद हर पाँचवें वर्ष मई के पहले गुरुवार को होगा।
- जर्मनी के संघीय गणराज्य के लिये बुनियादी कानून का अनुच्छेद 67 अविश्वास के रचनात्मक वोट का प्रस्ताव करता है (पदाधिकारी को बर्खास्त करते हुए उत्तराधिकारी का चुनाव करना)।
आगे की राह
- हर कुछ महीनों में अलग-अलग स्थानों पर चुनाव होते हैं और इससे विकास कार्य बाधित होते हैं। इसलिये हर कुछ महीनों में विकास कार्यों पर आदर्श आचार संहिता के प्रभाव को रोकने के लिये इस विचार पर गहन अध्ययन और विमर्श ज़रूरी है।
- इस बात पर आम सहमति होनी चाहिये कि देश को एक राष्ट्र, एक चुनाव की ज़रूरत है या नहीं। सभी राजनीतिक दलों को कम-से-कम इस मुद्दे पर विचार-विमर्श में सहयोग करना चाहिये, एक बार विवाद शुरू होने पर जनता की राय को ध्यान में रखा जा सकता है। एक परिपक्व लोकतंत्र होने के नाते भारत इस विचार-विमर्श के नतीजे का अनुसरण कर सकता है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
आदित्य-एल1 मिशन
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, आदित्य-एल1, इसरो के प्रक्षेपण यान, सूर्य-पृथ्वी प्रणाली में स्थित लैग्रेंज पॉइंट, सौर प्रज्वाल, कोरोनल मास इजेक्शन मेन्स के लिये:सूर्य की खोज का महत्त्व, अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) ने अपने पहले सौर मिशन, आदित्य-एल1 का प्रक्षेपण किया।
- इसका प्रक्षेपण PSLV-C57 रॉकेट का उपयोग करके किया गया था। इसरो के इतिहास में यह पहली बार था जब PSLV के चौथे चरण को दो बार प्रक्षेपित किया गया, ताकि अंतरिक्ष यान को उसकी अंडाकार कक्षा में सटीक रूप से स्थापित किया जा सके।
आदित्य-एल1 मिशन:
- परिचय:
- आदित्य-एल1, 1.5 मिलियन किलोमीटर की दूरी से सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन है। L1 बिंदु तक पहुँचने में इसे लगभग 125 दिन लगेंगे।
- एस्ट्रोसैट (AstroSat- वर्ष 2015) के बाद आदित्य-एल1 भी इसरो का दूसरा खगोल विज्ञान वेधशाला-श्रेणी मिशन है।
- इस मिशन की यात्रा भारत के पिछले मार्स ऑर्बिटर मिशन, मंगलयान की तुलना में काफी छोटी है।
- अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंजियन बिंदु 1 (L1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने की योजना है।
- आदित्य-एल1, 1.5 मिलियन किलोमीटर की दूरी से सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन है। L1 बिंदु तक पहुँचने में इसे लगभग 125 दिन लगेंगे।
पेलोड:
- उद्देश्य:
- इस मिशन का उद्देश्य सौर कोरोना (Solar Corona), प्रकाशमंडल (Photosphere), क्रोमोस्फीयर (Chromosphere) और सौर पवन (Solar Wind) के बारे में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करना है।
- आदित्य-एल1 का प्राथमिक उद्देश्य सूर्य के विकिरण, ऊष्मा, कण प्रवाह तथा चुंबकीय क्षेत्र सहित सूर्य के व्यवहार और वे पृथ्वी को कैसे प्रभावित करते हैं, के संबंध में गहरी समझ हासिल करना है।
लैग्रेंज पॉइंट:
- परिचय:
- लैग्रेंज पॉइंट्स अंतरिक्ष में वे विशेष स्थान हैं जहाँ सूर्य और पृथ्वी जैसे दो बड़े परिक्रमा करने वाले पिंडों की गुरुत्वाकर्षण शक्तियाँ एक-दूसरे को संतुलित करती हैं।
- कुल पाँच लैग्रेंज पॉइंट होते हैं, जिनमें से प्रत्येक की अलग-अलग विशेषताएँ हैं। ये बिंदु एक छोटे द्रव्यमान को दो बड़े द्रव्यमानों के मध्य स्थिर पैटर्न में परिक्रमा करने में सक्षम बनाते हैं।
- सूर्य-पृथ्वी प्रणाली में लैग्रेंज पॉइंट:
- L1: L1 को सौर अवलोकन के लिये लैग्रेंज बिंदुओं में सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है। L1 के आस पास प्रभामंडल कक्षा में रखा गया उपग्रह, सूर्य का बिना किसी प्रच्छादन/ग्रहण के लगातार अवलोकन करने में मदद करता है।
- सौर एवं सौरचक्रीय वेधशाला (SOHO) इस समय वहाँ मौजूद है।
- L2: यह सूर्य से देखने पर पृथ्वी के ठीक 'पीछे' स्थित है, L2 पृथ्वी की छाया के हस्तक्षेप के बिना बड़े ब्रह्मांड का अवलोकन करने के लिये उत्कृष्ट है।
- जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप, L2 के पास सूर्य की परिक्रमा करता है।
- L3: सूर्य के पीछे, पृथ्वी के विपरीत और पृथ्वी की कक्षा से ठीक परे स्थित यह सूर्य के सुदूर भाग का संभावित अवलोकन प्रदान करता है।
- L4 एवं L5: L4 और L5 पर वस्तुएँ स्थिर स्थिति बनाए रखती हैं, जिससे दो बड़े पिंडों के साथ एक समबाहु त्रिभुज बनता है।
- इनका उपयोग अक्सर अंतरिक्ष वेधशालाओं के लिये किया जाता है,जैसे कि क्षुद्रग्रहों की जाँच करने के लिये उपयोग किया जाता है।
- L1: L1 को सौर अवलोकन के लिये लैग्रेंज बिंदुओं में सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है। L1 के आस पास प्रभामंडल कक्षा में रखा गया उपग्रह, सूर्य का बिना किसी प्रच्छादन/ग्रहण के लगातार अवलोकन करने में मदद करता है।
नोट: L1, L2 और L3 बिंदु अस्थिर हैं, जिसका अर्थ है कि एक छोटी सी गड़बड़ी के कारण कोई वस्तु उनसे दूर जा सकती है। इसलिये इन बिंदुओं की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों को अपनी स्थिति बनाए रखने के लिये नियमित दिशा सुधार की आवश्यकता होती है।
सौर अन्वेषण का महत्त्व:
- हमारे सौर मंडल को समझना: सूर्य हमारे सौर मंडल का केंद्र है और इसकी विशेषताएँ अन्य सभी खगोलीय पिंडों के व्यवहार को काफी प्रभावित करती हैं। सूर्य का अध्ययन करने से हमें सौर मंडल के आस-पास की गतिशीलता को समझने में सहायता मिल सकती है।
- अंतरिक्ष मौसम/वातावरण की भविष्यवाणी: सौर गतिविधियाँ, जैसे सौर प्रज्वाल और कोरोनल मास इजेक्शन पृथ्वी के अंतरिक्ष पर्यावरण को प्रभावित कर सकती हैं।
- संचार प्रणालियों, नौसंचालन और पावर ग्रिड में संभावित व्यवधानों की भविष्यवाणी करने तथा उन्हें कम करने के लिये इन घटनाओं को समझना आवश्यक है।
- सौर भौतिकी को आगे बढ़ाना: इसके चुंबकीय क्षेत्र, हीटिंग मेकेनिज़्म एवं प्लाज़्मा गतिशीलता सहित सूर्य के जटिल व्यवहार की खोज, मौलिक भौतिकी और खगोल भौतिकी की प्रगति में योगदान देते हैं।
- ऊर्जा अनुसंधान को बढ़ावा: सूर्य एक प्राकृतिक संलयन रिएक्टर है। इसके मूल और परमाणु प्रतिक्रियाओं के अध्ययन से प्राप्त अंतर्दृष्टि पृथ्वी पर स्वच्छ और टिकाऊ संलयन ऊर्जा की हमारी खोज में सहायक हो सकती है।
- उपग्रह संचालन में सुधार: सौर विकिरण और सौर वायु उपग्रहों और अंतरिक्ष यान के कामकाज़ को प्रभावित करते हैं। इन सौर अंतःक्रियाओं को समझने से अंतरिक्ष यान को बेहतर ढंग से डिज़ाइन और संचालन करने में सहायता मिलती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016) |
सामाजिक न्याय
ग्लोबल फंड द्वारा HIV उपचार की कीमत कम करने हेतु समझौता
प्रिलिम्स के लिये:ग्लोबल फंड, टेनोफोविर डिसप्रॉक्सिल, लैमिवुडिन, डोलटेग्रेविर (TLD), ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV ) मेन्स के लिये:AIDS, HIV और संबंधित पहलें |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
ग्लोबल फंड द्वारा जेनेरिक दवा निर्माताओं के साथ समझौते की घोषणा के बाद ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV) दवा, टेनोफोविर डिसप्रॉक्सिल, लैमिवुडिन और डोलटेग्रेविर (TLD) की कीमतों में कमी की जाएगी।
समझौते के मुख्य बिंदु:
- लागत में कमी:
- TLD के नाम से जानी जाने वाली उन्नत गोली की कीमत में 25% कमी के बाद उसे प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 45 अमेरिकी डॉलर से कम में उपलब्ध कराना संभव होगा।
- प्रभाव:
- TLD के लिये कम मूल्य निर्धारण का अर्थ है कि सरकारें और ग्लोबल फंड अनुदान के अन्य कार्यान्वयनकर्ता संसाधन-बाधित परिस्थितियों में HIV से पीड़ित लगभग 19 मिलियन से अधिक लोगों तक पहुँचने के लिये उपचार कार्यक्रमों का विस्तार कर सकते हैं।
ग्लोबल फंड:
- परिचय:
- ग्लोबल फंड HIV, तपेदिक और मलेरिया के संक्रमण को कम करने और सभी के लिये स्वस्थ, सुरक्षित, अधिक न्यायसंगत भविष्य सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 2002 में स्थापित एक विश्वव्यापी आंदोलन है।
- ग्लोबल फंड प्रति तीन वर्ष के अंतराल पर धन जुटाता है, जिसका उपयोग एड्स, टीबी और मलेरिया के खिलाफ लड़ाई में दीर्घकालिक निश्चितता प्राप्त करने में किया जाता है।
- विभिन्न सरकारें, निजी क्षेत्र और गैर-सरकारी संगठन इस मिशन के समर्थन के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध हैं।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य अत्यधिक घातक संक्रामक बीमारियों से लड़ना, उन्हें बढ़ावा देने वाले कारकों की चुनौती से निपटना और 100 से अधिक देशों में स्वास्थ्य प्रणालियों को सशक्त बनाने हेतु प्रतिवर्ष 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि एकत्र करना एवं उसे निवेश करना है।
- ग्लोबल फंड रणनीति (2023-2028):
- महामारी से लड़ना और एक स्वस्थ एवं अधिक न्यायसंगत विश्व का निर्माण करना:
- रणनीति का प्राथमिक लक्ष्य एड्स, तपेदिक और मलेरिया को समाप्त करना है, जिसमें उत्प्रेरक निवेश करने तथा नए संक्रमणों को कम करने में तेज़ी से प्रगति के लिये नवाचारों का लाभ उठाने पर विशेष ध्यान दिया गया है।
- महामारी से लड़ना और एक स्वस्थ एवं अधिक न्यायसंगत विश्व का निर्माण करना:
टीएलडी (TLD):
- HIV के 85% से अधिक उपचार का मुख्य आधार टीएलडी टैबलेट (तीन एंटीरेट्रोवाइरल दवाओं का एक निश्चित खुराक संयोजन, अर्थात् टेनोफोविर + लैमिवुडिन + डोलटेग्रेविर) है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वयस्कों तथा किशोरों के लिये मुख्य प्रथम-पंक्ति HIV उपचार के रूप में अनुशंसित किया है क्योंकि यह एड्स का कारण बनने वाले वायरस को तेज़ी से रोकता है और साथ ही इसके दुष्प्रभाव कम होते हैं एवं इसे लेना आसान होता है।
एचआईवी (HIV):
- परिचय:
- HIV का आशय ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस से है, जो एक वायरस है, यह मानव शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला करता है।
- यह मुख्य रूप से CD4 प्रतिरक्षा कोशिकाओं को लक्षित करता है और उन्हें क्षति पहुँचाता है, जो संक्रमण तथा बीमारियों से लड़ने की शरीर की क्षमता के लिये आवश्यक हैं।
- समय के साथ HIV प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर कर देता है, जिससे शरीर संक्रमणों और कैंसर के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
- फैलाव:
- HIV मुख्य रूप से रक्त, वीर्य, योनि द्रव तथा स्तन के दूध जैसे कुछ शारीरिक तरल पदार्थों के आदान-प्रदान से फैलता है।
- तीव्रता:
- यदि समय रहते इसका उपचार नहीं किया जाता है, तो यह वायरस किसी व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली को नष्ट कर देता है तथा यह कहा जाता है कि वे एक्वायर्ड इम्यूनोडिफिशिएंसी सिंड्रोम स्टेज (Acquired Immunodeficiency Syndrome stage- AIDS) में हैं जहाँ उन्हें कई संक्रमण हो सकते हैं जिसके कारण व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है।
- उपचार:
- हालाँकि वर्तमान में इस संक्रमण का कोई उपचार नहीं है लेकिन एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (Antiretroviral Therapy) का उपयोग कर इस बीमारी को प्रबंधित किया जा सकता है।
- ये दवाएँ शरीर के भीतर वायरस की प्रतिकृति को दबा देती हैं, जिससे CD4 प्रतिरक्षा कोशिकाओं की संख्या बढ़ने लगती है।
- हालाँकि वर्तमान में इस संक्रमण का कोई उपचार नहीं है लेकिन एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (Antiretroviral Therapy) का उपयोग कर इस बीमारी को प्रबंधित किया जा सकता है।
AIDS रोग की रोकथाम के लिये भारत की पहल:
- HIV और AIDS (रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 2017: इस अधिनियम के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकारें HIV या AIDS के प्रसार को रोकने के लिये उपाय करेंगी।
- ART तक पहुँच: भारत ने विश्व में HIV से पीड़ित 90% से अधिक लोगों के लिये एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (Antiretroviral Therapy- ART) को वहनीय और सुलभ बना दिया है।
- प्रोजेक्ट सनराइज़: भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में विशेषकर मादक दवाओं का इंजेक्शन लेने वाले लोगों में HIV के बढ़ते प्रसार से निपटने हेतु स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016 में प्रोजेक्ट सनराइज़ शुरू किया गया था।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित बीमारियों में से कौन-सी टैटू बनवाने के द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचरित हो सकती है/हैं? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b) |
शासन व्यवस्था
विदेश नीति को आकार देने में UPI की भूमिका
प्रिलिम्स के लिये:इंडिया स्टैक, डेटा एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर (DEPA), डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, यूनाइटेड पेमेंट्स इंटरफेस मेन्स के लिये:विदेशी निवेश आकर्षित करने में UPI की सफलता का महत्त्व, डिजिटल कूटनीति भारत के वैश्विक प्रभाव में किस प्रकार योगदान दे सकती है |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
यूनाइटेड पेमेंट्स इंटरफेस (United Payments Interface- UPI) के 10 अरब लेन-देन को पार करने के साथ ही भारत की डिजिटल ताकत नई ऊँचाइयों पर पहुँच गई है, जो न केवल घरेलू सफलता बल्कि विदेश नीति में इसकी प्रमुख भूमिका को भी दर्शाता है।
- UPI पर लेन-देन वर्ष-दर-वर्ष 50% से अधिक बढ़ा है। अक्तूबर 2019 में पहली बार UPI ने 1 बिलियन मासिक लेन-देन की सीमा को पार किया।
UPI का भारत की विदेश नीति में योगदान:
- डिजिटल कूटनीति:
- भारत का लक्ष्य डिजिटल प्रशासन को आगे बढ़ाकर ग्लोबल साउथ (Global South) में नेतृत्वकारी भूमिका निभाना है।
- भारत का डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (Digital Public Infrastructure- DPI) पर ज़ोर विकासशील देशों में भौतिक बुनियादी ढाँचे के विकास पर चीन के फोकस से अलग है।
- अंतर्राष्ट्रीय विस्तार:
- जून 2023 से भारत ने इंडिया स्टैक साझा करने के लिये आर्मेनिया, सिएरा लियोन, सूरीनाम, एंटीगुआ और बारबुडा तथा पापुआ न्यू गिनी जैसे देशों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- इसी तरह UPI की पहुँच फ्राँस, UAE, सिंगापुर और श्रीलंका जैसे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों हुई है, जापान, मॉरीशस और सऊदी अरब जैसे देशों ने भुगतान प्रणाली को अपनाने में रुचि दिखाई है।
- ग्लोबल डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर रिपोज़िटरी (GDPIR):
- भारत वैश्विक स्तर पर DPI पद्धत्ति को साझा करने के लिये GDPIR स्थापित करने की योजना बना रहा है।
- GDPIR का लक्ष्य G20 सदस्यों और अन्य देशों के बीच DPI से संबंधित उपकरणों तथा संसाधनों के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाना है।
- आर्थिक कूटनीति:
- UPI की सफलता विदेशी निवेश और साझेदारी को आकर्षित करती है, जो भारत के आर्थिक कूटनीतिक प्रयासों तथा द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने में योगदान देती है।
इंडिया स्टैक:
- इंडिया स्टैक API (एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस) का एक सेट है जो सरकारों, व्यवसायों, स्टार्टअप और डेवलपर्स को उपस्थिति-रहित, कागज़ रहित और कैशलेस सेवा वितरण की दिशा में भारत की कठिन समस्याओं को हल करने के लिये एक अद्वितीय डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर का उपयोग करने की अनुमति देता है।
- इंडिया स्टैक सरकार के नेतृत्व वाली एक पहल है जो विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न डिजिटल सेवाओं को सक्षम करने के लिये एक मज़बूत डिजिटल बुनियादी ढाँचे के निर्माण पर केंद्रित है।
- इस संग्रह के घटकों का स्वामित्व और रखरखाव विभिन्न एजेंसियों द्वारा किया जाता है।
- इंडिया स्टैक का लक्ष्य पहचान सत्यापन, डेटा विनिमय और डिजिटल भुगतान प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना एवं बढ़ाना है ताकि उन्हें नागरिकों के लिये अधिक सुलभ और कुशल बनाया जा सके।
- इसमें डिजिटल सार्वजनिक उत्पाद शामिल हैं, ये डिजिटल संसाधन तथा उपकरण विभिन्न डिजिटल सेवाओं और पहलों का समर्थन करने के लिये जनता को उपलब्ध कराए जाते हैं।
- इंडिया स्टैक में तीन प्रमुख लेयर शामिल हैं: पहचान, भुगतान और डेटा प्रबंधन।
- आइडेंटिटी लेयर (आधार):
- आधार डिजिटल पहचान वाले उत्पादों की पेशकश करते हुए इंडिया स्टैक की आधारशिला के रूप में कार्य करता है।
- यह इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) द्वारा जारी किया जाता है।
- आधार को निवास का प्रमाण माना जाता है, न कि नागरिकता का प्रमाण और यह भारत में निवास का कोई अधिकार नहीं देता है।
- पेमेंट्स लेयर (UPI):
- UPI की दूसरी लेयर धन संरक्षकों, पेमेंट रेल और फ्रंट-एंड पेमेंट अनुप्रयोगों के मध्य अंतर-संचालनीयता सुनिश्चित करती है।
- नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) द्वारा प्रबंधित PhonePe, Google Pay और Paytm जैसी तृतीय-पक्ष की निजी संस्थाओं को UPI का लाइसेंस दिया गया है।
- डेटा गवर्नेंस लेयर:
- डिजिटल लॉकर, डेटा एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर (DEPA) पर बनाया गया है, इसमें एक सहमति प्रबंधन प्रणाली शामिल है, जो बेहतर वित्तीय, स्वास्थ्य और दूरसंचार से संबंधित उत्पादों तथा सेवाओं की जानकारी को सुरक्षित रूप से साझा करने में सक्षम बनाती है।
- इसमें आधार केंद्रित डिजिटल पहचान वाले उत्पादों का सेट शामिल है। इसका उपयोग टू-फैक्टर या बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण के माध्यम से दूरस्थ रूप से प्रमाणित करने, ड्राइविंग लाइसेंस, शैक्षिक डिप्लोमा और बीमा पॉलिसियों जैसे डिजिटल हस्ताक्षरित रिकॉर्ड प्राप्त करने तथा सरकार द्वारा समर्थित डिजिटल हस्ताक्षर सेवा का उपयोग करके दस्तावेज़ों या संदेशों पर हस्ताक्षर करने के लिये किया जा सकता है।
- आइडेंटिटी लेयर (आधार):
- UPI के अतिरिक्त भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में डिजिटलीकरण के क्षेत्र में कई कार्य किये हैं, जिनमें CoWin, डिजिलॉकर, आरोग्य सेतु और सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM) शामिल हैं, ये सभी भारतीय स्टैक की तीन मूलभूत लेयर्स का उपयोग करते हैं।
- इंडिया स्टैक का विज़न एक देश (भारत) तक सीमित नहीं है; इसे किसी भी राष्ट्र पर लागू किया जा सकता है, चाहे वह विकसित हो या विकासशील।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल1 उत्तर: (d) |