डेली न्यूज़ (05 Jun, 2023)



भारत-नेपाल सहयोग को मज़बूत करना

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-नेपाल संबंध, अभ्यास सूर्य किरण, भूकंप 2015, 1950 की शांति और मित्रता की भारत-नेपाल संधि, फुकोट कर्णाली जलविद्युत परियोजना, लोअर अरुण जलविद्युत परियोजना, गोरखपुर-भुटवाल ट्रांसमिशन लाइन

मेन्स के लिये:

भारत और नेपाल के बीच सहयोग के क्षेत्र, भारत-नेपाल संबंधों से संबंधित हालिया प्रमुख मुद्दे

चर्चा में क्यों?  

भारत और नेपाल ने हाल ही में नेपाल के प्रधानमंत्री की 4 दिवसीय भारत यात्रा के दौरान ऊर्जा और परिवहन विकास के क्षेत्र में अपने द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिये कई पहलों तथा समझौतों का अनावरण किया है जिसका उद्देश्य संबंधों को मज़बूत करना तथा क्षेत्रीय संपर्क को सुविधाजनक बनाना है।

हाल ही में हुए समझौते की प्रमुख विशेषताएँ: 

  • विद्युत क्षेत्र में सहयोग:
    • दीर्घकालिक विद्युत व्यापार समझौता: भारत और नेपाल ने आने वाले वर्षों में नेपाल से 10,000 मेगावाट बिजली के आयात को लक्षित करते हुए एक दीर्घकालिक विद्युत व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये।
  • हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स: फुकोट कर्णाली जलविद्युत परियोजना और लोअर अरुण जलविद्युत परियोजना के विकास के लिये नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (NHPC), भारत तथा विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड, नेपाल के बीच समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये गए।

नोट: फुकोट कर्णाली जलविद्युत परियोजना का लक्ष्य लगभग 2448 GWh के औसत वार्षिक उत्पादन के साथ कर्णाली नदी के प्रवाह का उपयोग करके 480 मेगावाट बिजली उत्पन्न करना है। इसमें एक उच्च प्रबलित सीमेंट कंक्रीट (Reinforced Concrete Cement- RCC) बाँध और एक भूमिगत पावर हाउस शामिल है।

  • परिवहन विकास:
    • ट्रांसमिशन लाइन और रेल लिंक: गोरखपुर-भुटवाल ट्रांसमिशन लाइन के लिये ग्राउंडब्रेकिंग सेरेमनी और बथनाहा से नेपाल सीमा शुल्क विभाग तक भारतीय रेलवे कार्गो ट्रेन के उद्घाटन ने दोनों देशों के बीच संपर्क बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया।
    • एकीकृत चेकपोस्ट (ICP): ICPs का उद्घाटन नेपालगंज (नेपाल) और रूपईडीहा (भारत) में किया गया, जिससे सीमा पार व्यापार को बढ़ावा मिला और माल और लोगों की आवाजाही सुविधाजनक हुई।
  •  अन्य पहलें:
    • दक्षिण एशिया की पहली क्रॉस-बॉर्डर पेट्रोलियम पाइपलाइन जो भारत में मोतिहारी से नेपाल के अमलेखगंज तक और 69 किमी. लंबी है, नेपाल में चितवन तक विस्तारित करने की योजना है।
      • साथ ही भारत में सिलीगुड़ी से पूर्वी नेपाल में झापा तक एक दूसरी सीमा पार पेट्रोलियम पाइपलाइन।
    • 1 जून, 2023 को संशोधित पारगमन संधि पर हस्ताक्षर किये गए, जो नेपाल को भारत के अंतर्देशीय जलमार्गों तक पहुँच प्रदान करेगी।
      • इससे नेपाल तीसरे देशों के साथ अपने व्यापार के लिये हल्दिया, कोलकाता, पारादीप और विशाखापत्तनम जैसे भारतीय बंदरगाहों का उपयोग करने में सक्षम होगा।
      • यह नेपाली निर्यातकों और आयातकों के लिये परिवहन लागत एवं समय को भी कम करेगा। 
    • भारत कृषि क्षेत्र में सहयोग के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए एक उर्वरक संयंत्र स्थापित करने के लिये नेपाल के साथ भी सहयोग कर रहा है।

भारत और नेपाल के बीच सहयोग के अन्य क्षेत्र:

  • परिचय:  
    • करीबी पड़ोसियों के रूप में भारत और नेपाल मित्रता एवं सहयोग के अनूठे संबंधों को साझा करते हैं, जिसकी विशेषता एक खुली सीमा, दोनों देशों के लोगों के बीच रिश्तेदारी और मज़बूत सांस्कृतिक संबंध है।
    • नेपाल पाँच भारतीय राज्यों- सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के साथ 1850 किमी. से अधिक की सीमा साझा करता है।
      • सीमा पार लोगों की मुक्त आवाजाही की लंबी परंपरा रही है।

  • रक्षा सहयोग:
    • द्विपक्षीय रक्षा सहयोग में उपकरण और प्रशिक्षण के प्रावधान के माध्यम से नेपाली सेना को उसके आधुनिकीकरण में सहायता देना शामिल है।
    • 'भारत-नेपाल बटालियन-स्तरीय संयुक्त सैन्य अभ्यास सूर्य किरण' भारत और नेपाल में वैकल्पिक रूप से आयोजित किया जाता है।
      • साथ ही वर्तमान में नेपाल के लगभग 32,000 गोरखा सैनिक भारतीय सेना में सेवा दे रहे हैं।
  • आर्थिक सहयोग:
    • भारत, नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। नेपाल, भारत का 11वाँ सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य भी है।
      • वर्ष 2022-23 में भारत ने नेपाल को 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वस्तुओं का  निर्यात किया, जबकि भारत का आयात 840 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था।
    • भारतीय कंपनियाँ नेपाल में सबसे बड़े निवेशकों में से हैं, जो कुल स्वीकृत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के 30% से अधिक की हिस्सेदारी रखती हैं।
  • सांस्कृतिक सहयोग:  
    • हिंदू और बौद्ध धर्म के संदर्भ में भारत एवं नेपाल समान संबंध साझा करते हैं। साथ ही बुद्ध का जन्मस्थान लुंबिनी आधुनिक नेपाल में है।
    • भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हेतु अगस्त 2007 में काठमांडू में स्वामी विवेकानंद केंद्र की स्थापना की गई थी।
    • नेपाल-भारत पुस्तकालय की स्थापना वर्ष 1951 में काठमांडू में हुई थी। इसे नेपाल का पहला विदेशी पुस्तकालय माना जाता है।
  • मानवीय सहायता:  
    • भारत ने वर्ष 2015 के भूकंप के बाद सहायता और पुनर्वास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के तहत नेपाल को 1.54 बिलियन नेपाली रुपए (लगभग 96 करोड़ रुपए) की सहायता प्रदान की।

भारत-नेपाल संबंधों से संबंधित हाल के प्रमुख मुद्दे:  

  • सीमा विवाद: सीमा विवाद उन विवादास्पद मुद्दों में से एक है जिसने हाल के वर्षों में भारत-नेपाल संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है। विवाद में मुख्य रूप से दो खंड शामिल हैं:
    • पश्चिमी नेपाल में कालापानी-लिंपियाधुरा-लिपुलेख ट्राइजंक्शन क्षेत्र और दक्षिणी नेपाल में सुस्ता क्षेत्र।
      • दोनों देश अलग-अलग ऐतिहासिक नक्शों और संधियों के आधार पर इन क्षेत्रों पर अपना दावा करते हैं।
    • विवाद वर्ष 2020 में तब शुरू हुआ जब भारत ने उत्तराखंड में धारचूला को चीन सीमा के पास स्थित लिपुलेख दर्रे से जोड़ने वाली एक सड़क का उद्घाटन किया, जिस पर नेपाल ने अपनी संप्रभुता के उल्लंघन के रूप में आपत्ति जताई।
    • नेपाल ने तभी एक नया राजनीतिक मानचित्र जारी किया जिसमें कालापानी-लिंपियाधुरा- लिपुलेख को अपने क्षेत्र के हिस्से के रूप में प्रदर्शित किया। भारत ने इस मानचित्र को नेपाली दावों का "कृत्रिम विस्तार" बताकर खारिज कर दिया।
  • चीन का बढ़ता प्रभाव: 
    • नेपाल में चीन के प्रभाव में वृद्धि ने क्षेत्र में अपने सामरिक हितों के संदर्भ में भारत की चिंता बढ़ा दी है। चीन ने अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत रेलवे, राजमार्ग, जलविद्युत संयंत्र आदि जैसी परियोजनाओं के माध्यम से नेपाल के साथ अपने आर्थिक संबंध को बढ़ाया है।
      • नेपाल और चीन के बीच बढ़ता सहयोग, भारत तथा चीन के मध्य बफर राज्य के रूप में नेपाल के महत्त्व को कम कर सकता है। 

आगे की राह

  • डिजिटल कनेक्टिविटी को सुदृढ़ करना: डिजिटल कनेक्टिविटी पहल पर बल देने से नेपाल के साथ जुड़ने का एक नया तरीका मिल सकता है।
    • भारत, नेपाल के डिजिटल बुनियादी ढाँचे के विकास का समर्थन कर ई-गवर्नेंस पहल और सीमा पार डिजिटल सहयोग को बढ़ावा दे सकता है। इससे कनेक्टिविटी बढ़ सकती है जिससे आर्थिक अवसर सृजित होंगे और द्विपक्षीय संबंध सुदृढ़ हो सकते हैं।
  • सामरिक भागीदारी: भारत को सक्रिय रूप से क्षेत्रीय और वैश्विक मंचों पर नेपाल के साथ रणनीतिक साझेदारी की तलाश करनी चाहिये। अपने हितों को संरेखित करके और संयुक्त रूप से जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबंधन तथा क्षेत्रीय सुरक्षा जैसी चुनौतियों का समाधान कर दोनों देश साझा मूल्यों एवं हितों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित कर सकते हैं।
    • यह न केवल चीन के प्रभाव का प्रतिकार करेगा बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता को भी सुदृढ़ करेगा। साथ ही भारत की समृद्ध विरासत को प्रदर्शित करने हेतु संयुक्त सांस्कृतिक कार्यक्रमों, फिल्म समारोहों तथा वेलनेस रिट्रीट का आयोजन जनमत को प्रभावित कर सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2016) 

 कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित समुदाय                     किसके मामले में 

  1. कुर्द                                                                  बांग्लादेश 
  2. मधेसी                                                                नेपाल 
  3. रोहिंग्या                                                               म्याँमार

उपर्युक्त में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं? 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3 

उत्तर: (c) 

स्रोत: द हिंदू


मेकेदातु परियोजना

प्रिलिम्स के लिये:

मेकेदातु परियोजना, कावेरी और उसकी सहायक नदी अर्कावती, कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण, राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL), केंद्रीय जल आयोग (CWC)

मेन्स के लिये:

अंतर-राज्यीय जल विवाद, अंतर-राज्यीय जल विवादों को सुलझाने में कूटनीति, जल प्रशासन

चर्चा में क्यों?  

कर्नाटक विधानसभा ने मेकेदातु पेयजल और संतुलन जलाशय परियोजना (Mekedatu Drinking Water and Balancing Reservoir Project) के लिये मंज़ूरी का अनुरोध करते हुए सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव अपनाया है।

  • यह संकल्प परियोजना के लिये तमिलनाडु के विरोध के जवाब में था। 

मेकेदातु पेयजल: 

  • परिचय: 
    • मेकेदातु परियोजना एक बहुउद्देशीय परियोजना है जिसमें कर्नाटक के रामनगर ज़िले में कनकपुरा के पास एक संतुलन जलाशय का निर्माण शामिल है।
    • मेकेदातु (जिसका अर्थ है बकरी की छलांग) कावेरी और उसकी सहायक अर्कावती नदियों के संगम पर स्थित एक गहरी खाई है।
    • इसका प्राथमिक उद्देश्य बंगलूरू और पड़ोसी क्षेत्रों में कुल 4.75 TMC पेयजल उपलब्ध कराना और 400 मेगावाट बिजली पैदा करना है।
  • परियोजना के लाभ:
    • पानी की कमी और भूजल पर निर्भरता का सामना कर रहे बंगलूरू तथा इसके आसपास के क्षेत्रों में पीने के पानी की बढ़ती मांग को पूरा करना।
    • 400 मेगावाट जलविद्युत शक्ति उत्पन्न करके नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करना।
    • बाढ़ और सूखे को रोकने के लिये पानी के प्रवाह को विनियमित करना, किसानों तथा समुदायों को लाभ पहुँचाना।
  • वर्तमान स्थिति: 
    • कर्नाटक ने तमिलनाडु की सहमति प्राप्त नहीं की है, जो कि अनिवार्य है।
    • यह परियोजना अभी भी अपने प्रारंभिक चरण में है एवं इसने केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission- CWC), पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) तथा राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board for Wildlife (NBWL- NBWL) के अधिकारियों से आवश्यक मंज़ूरी एवं अनुमोदन प्राप्त नहीं किया है।
  • तमिलनाडु द्वारा विरोध: 
    • तमिलनाडु राज्य का तर्क है कि मेकेदातु बाँध नीचे की ओर जल प्रवाह को काफी कम कर देगा, जिससे राज्य की कृषि गतिविधियों और जल आपूर्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
    • कावेरी नदी तमिलनाडु राज्य हेतु महत्त्वपूर्ण जल स्रोत है, जो इसके कृषक समुदायों की सहायता करती है और इसके निवासियों की पेयजल आवश्यकताओं को पूरा करती है।
    • राज्य का दावा है कि यह परियोजना कावेरी जल विवाद अधिकरण (Cauvery Water Disputes Tribunal- CWDT) के अंतिम फैसले का उल्लंघन करती है, जिसमें तमिलनाडु राज्य सहित प्रत्येक संबंधित राज्य को जल का एक विशिष्ट हिस्सा आवंटित किया गया था। 

कावेरी नदी विवाद:

  • कावेरी नदी (कावेरी):
    • तमिल भाषा में इसे 'पोन्नी' के नाम से भी जाना जाता है और यह दक्षिण भारत की चौथी सबसे बड़ी नदी है।
    • यह दक्षिण भारत की एक पवित्र नदी है। इसका उद्गम दक्षिण-पश्चिमी कर्नाटक राज्य के पश्चिमी घाटों में स्थित ब्रह्मगिरि पहाड़ी से होता है तथा यह कर्नाटक एवं तमिलनाडु राज्यों से होती हुई दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती है और एक शृंखला बनाती हुई पूर्वी घाटों में उतरती है, इसके बाद पुद्दुचेरी होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
    • बाएँ किनारे की सहायक नदियाँ: अर्कवती, हेमवती, शिमसा और हरंगी।
    • दाहिने किनारे की सहायक नदियाँ: लक्ष्मणतीर्थ, सुवर्णवती, नोयिल, भवानी, काबिनी और अमरावती।

  • विवाद: 
    • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 
      • चूँकि इस नदी का उद्गम कर्नाटक से होता है और केरल से आने वाली प्रमुख सहायक नदियों के साथ यह तमिलनाडु से होकर बहती है तथा पुद्दुचेरी से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है, इसलिये इस विवाद में 3 राज्य और एक केंद्रशासित प्रदेश शामिल हैं।
      • विवाद की उत्पत्ति 150 वर्ष पुरानी है तथा वर्ष 1892 और 1924 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी एवं मैसूर के बीच मध्यस्थता के दो समझौहे हुए
      • इसने इस सिद्धांत को लागू किया कि ऊपरी तटवर्ती राज्य को किसी भी निर्माण गतिविधि के लिये निचले तटवर्ती राज्य की सहमति प्राप्त करनी होगी जैसे कावेरी नदी पर जलाशय।
      • कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी जल विवाद वर्ष 1974 में शुरू हुआ जब कर्नाटक ने तमिलनाडु की सहमति के बिना जलधारा को मोड़ना शुरू कर दिया।
        • कई वर्षों के बाद इस मुद्दे को हल करने के लिये वर्ष 1990 में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (CWDT) की स्थापना की गई। CWDT को वर्ष 2007 में अंतिम आदेश तक पहुँचने में 17 वर्ष लग गए, जिसमें चार तटीय राज्यों के बीच कावेरी जल के बँटवारे को रेखांकित किया गया था। संकट के वर्षों के दौरान जल को आनुपातिक आधार पर साझा किया जाएगा।
        • वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने कावेरी को एक राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया और CWDT द्वारा निर्धारित जल-बँटवारे की व्यवस्था को बड़े पैमाने पर बरकरार रखा।
      • इसने केंद्र को कावेरी प्रबंधन योजना को अधिसूचित करने का भी निर्देश दिया। केंद्र सरकार ने जून 2018 में 'कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण' और 'कावेरी जल नियमन समिति' का गठन करते हुए 'कावेरी जल प्रबंधन योजना' अधिसूचित की। 

 आगे की राह 

  • संयुक्त नदी कायाकल्प:  
    • प्रदूषण और आवास क्षरण को ध्यान में रखते हुए पूरी कावेरी नदी को बहाल करने हेतु एक सहयोगी पहल की शुरुआत की जानी चाहिये
  • पर्यावरण के अनुकूल डिज़ाइन:  
    • मेकेदातु परियोजना को पर्यावरण के अनुकूल सुविधाओं और न्यूनतम पर्यावरणीय प्रभाव के साथ फिर से डिज़ाइन करना चाहिये।
      • नदी के प्राकृतिक प्रवाह और आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र में न्यूनतम व्यवधान सुनिश्चित करने हेतु नवीन इंजीनियरिंग समाधानों का अन्वेषण करना।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान:  
    • कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों की साझा सांस्कृतिक विरासत तथा परंपराओं का जश्न मनाने हेतु सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जो एकता एवं आपसी सम्मान की भावना को बढ़ावा देते हैं, राज्यों के बीच बंधन को मज़बूत करने और विवाद को सुलझाने के लिये अनुकूल वातावरण बनाने में मदद करते हैं।
  • रीयल-टाइम मॉनीटरिंग और डेटा शेयरिंग:
    • यह जल स्तर, वर्षा प्रणाली और नदी के प्रवाह की वास्तविक समय की निगरानी के लिये एक मज़बूत प्रणाली लागू करता है। इस डेटा को सूचित निर्णय लेने और विश्वास को बढ़ावा देने के लिये राज्यों के बीच पारदर्शी रूप से साझा किया जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा ‘संरक्षित क्षेत्र’ कावेरी बेसिन में स्थित है? (2020)  

  1. नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान
  2. पापिकोंडा राष्ट्रीय उद्यान
  3. सत्यमंगलम बाघ आरक्षित क्षेत्र
  4. वायनाड वन्यजीव अभयारण्य

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: c 


मेन्स:

प्रश्न. अंतर-राज्यीय जल विवादों का समाधान करने में सांविधानिक प्रक्रियाएँ समस्याओं को संबोधित करने व हल करने में असफल रहीं हैं। क्या यह असफलता संरचनात्मक अथवा प्रक्रियात्मक अपर्याप्तता अथवा दोनों के कारण हुई है? विवेचना कीजिये। (2013) 

स्रोत:द हिंदू


नमक गुफा आधारित तेल भंडार: SPR

प्रिलिम्स के लिये:

नमक गुफा आधारित तेल भंडार, चट्टान आधारित गुफा, सामरिक पेट्रोलियम भंडार कार्यक्रम, IEA, PPP

मेन्स के लिये:

चट्टान आधारित गुफा और इसकी क्षमता, नमक गुफा आधारित तेल भंडार का लाभ

चर्चा में क्यों?

सरकारी स्वामित्व वाली इंजीनियरिंग कंसल्टेंसी फर्म इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड (EIL) राजस्थान में नमक गुफा आधारित सामरिक तेल भंडार विकसित करने की संभावनाओं और व्यवहार्यता का अध्ययन कर रही है।

  • यह अध्ययन देश की सामरिक तेल भंडारण क्षमता बढ़ाने के सरकार के उद्देश्य के अनुरूप है।

नमक आधारित गुफा: 

  • परिचय: 
    • नमक की गुफाएँ भूमिगत स्थान हैं जो नमक को जल में घोलकर (प्रक्रिया के माध्यम से) बनाई जाती है जिसे विलियन खनन (Solution Mining) कहा जाता है।
    • इस पद्धति में नमक को घोलने एवं गुफाओं के निर्माण हेतु नमक भंडारित बड़े क्षेत्रों में जल को पंप किया जाता है। एक बार ब्राइन (जल में घुला हुआ नमक) निकाल देने के बाद इन गुफाओं का उपयोग कच्चे तेल को भंडारित करने के लिये किया जा सकता है।

  • चट्टान आधारित गुफा: 
    • तेल भंडार हेतु उत्खनित चट्टान आधारित गुफाएँ (Rock Based Caverns) भूमिगत भंडारण कक्ष हैं जो चट्टानी सामग्री को भौतिक रूप से खोदकर और हटाकर बनाई जाती हैं।
    • वांछित भंडारण स्थान बनाने हेतु ड्रिलिंग, ब्लास्टिंग और चट्टान की परतों को हटाकर उत्खनित चट्टानी गुफाओं का निर्माण किया जाता है। इन गुफाओं की चट्टानी दीवारें एवं छत भंडारित तेल को रखने के लिये प्राकृतिक बाधाओं में सुविधा रूप में काम करती हैं।
  • चट्टान आधारित गुफा की तुलना में नमक आधारित गुफा का महत्त्व: 
    • नमक गुफा का विकास सहज़, तेज़ और कम खर्चीला है। नमक गुफा आधारित तेल भंडारण सुविधाएँ स्वाभाविक रूप से अच्छी तरह से बंद या सुरक्षित हैं तथा कुशल तेल इंजेक्शन एवं निष्कर्षण हेतु डिज़ाइन की गई हैं। 
    • MIT के पर्यावरण समाधान पहल की एक रिपोर्ट बताती है कि नमक की गुफा में तेल का भंडारण अन्य भूगर्भीय संरचनाओं की तुलना में अधिक अनुकूल है।
    • नमक की गुफा की सतह में बहुत कम तेल अवशोषण होता है, जो तरल और गैसीय हाइड्रोकार्बन के खिलाफ प्राकृतिक अभेद्य अवरोध उत्पन्न करता है। यह विशेषता नमक गुफा को तेल भंडारण के लिये उपयुक्त बनाती है।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका का सामरिक पेट्रोलियम रिज़र्व (SPR) विशेष रूप से नमक आधारित गुफा की सुविधाओं पर निर्भर करता है जो विश्व स्तर पर सबसे बड़ा आपातकालीन तेल भंडारण है।
  • नमक आधारित गुफा की क्षमता: 
    • नमक आधारित गुफा भंडारण जिसे सस्ता एवं कम श्रम तथा चट्टानी गुफा की तुलना में लागत-गहन माना जाता है यह भारत की SPR नीति में एक नया, बहुत ज़रूरी अध्याय जोड़ सकता है।
    • प्रचुर मात्रा में नमक निर्माण के कारण, राजस्थान को नमक आधारित गुफा भंडारण सामरिक सुविधाओं के विकास में भारत के लिये सबसे उपयुक्त स्थान माना जाता है।
    • बाड़मेर में रिफाइनरी और राजस्थान में कच्चे तेल की पाइपलाइनों की मौजूदगी रणनीतिक तेल भंडार के निर्माण के लिये बुनियादी ढाँचे को अनुकूल बनाती हैं।

तेल भंडार के लिये नमक आधारित गुफा बनाने की चुनौतियाँ:

  • भारतीय कंपनियों के पास नमक आधारित गुफा बनाने हेतु सामरिक भंडारण सुविधाओं के निर्माण के लिये आवश्यक तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव है। 
    • हालाँकि EIL ने हाल ही में इस अंतर को पाटने के लिये जर्मनी के साथ भागीदारी की है जो गुफा स्टोरेज और सॉल्यूशन माइनिंग टेक्नोलॉजी में विशेषज्ञता वाली कंपनी है।
  • नमक आधारित गुफा भंडारण सुविधाओं के लिये उपयुक्त स्थलों की पहचान करना महत्त्वपूर्ण है। जबकि राजस्थान में भारी मात्रा में नमक निर्माण और बाड़मेर में कच्ची पाइपलाइनों एवं एक नई रिफाइनरी जैसे अनुकूल बुनियादी ढाँचे हैं लेकिन क्षेत्र के अंदर विशिष्ट स्थलों की उनकी भूगर्भीय और तकनीकी उपयुक्तता हेतु मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
  • परियोजना की लागत का अनुमान लगाना तब तक एक चुनौती है जब तक कि नमक आधारित गुफा भंडारण सुविधाओं के निर्माण हेतु आवश्यक तकनीक और जानकारी प्राप्त नहीं हो जाती है। अन्य संबद्ध लागतों के साथ-साथ स्थल की तैयारी, निर्माण तथा परिचालन संबंधी विचारों जैसे कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिये।

भारत का सामरिक पेट्रोलियम भंडार कार्यक्रम: 

  • परिचय: 
    • भारत में सामरिक कच्चे तेल भंडारण सुविधाओं का निर्माण भारतीय सामरिक पेट्रोलियम रिज़र्व लिमिटेड (Indian Strategic Petroleum Reserves Limited - ISPRL) द्वारा प्रबंधित किया जा रहा है।
      • ISPRL पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत तेल उद्योग विकास बोर्ड (Oil Industry Development Board- OIDB) की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
    • प्रथम चरण के अनुसार, सामरिक कच्चे तेल के भंडारण मैंगलोर (कर्नाटक), विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश) और पादुर (कर्नाटक) में हैं। उनके पास कुल 5.33 MMT (मिलियन मीट्रिक टन) का ईंधन भंडारण है।
  • PPP के तहत अतिरिक्त रिज़र्व: 
    • भारत सरकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership- PPP) के माध्यम से द्वितीय चरण के अनुसार, चांदीखोल (ओडिशा) तथा उडुपी (कर्नाटक) में ऐसी दो और गुफाएँ स्थापित करने की योजना बना रही है। इससे अतिरिक्त 6.5 मिलियन टन तेल भंडार मिलेगा।
    • नई सुविधाओं के शुरू होने के बाद कुल 22 दिन (10+12) तेल की खपत उपलब्ध कराई जाएगी।
  • क्षमता/औद्योगिक स्टॉक:
    • भारतीय रिफाइनर रणनीतिक सुविधाओं के साथ 65 दिनों के कच्चे तेल के भंडारण (औद्योगिक स्टॉक) को भी बनाए रखते हैं।
    • इस प्रकार SPR कार्यक्रम के दूसरे चरण के पूरा होने के बाद लगभग कुल 87 दिन (रणनीतिक भंडार द्वारा 22 + भारतीय रिफाइनर द्वारा 65) तेल की खपत भारत में उपलब्ध कराई जाएगी।
      • यह IEA द्वारा 90 दिनों के शासनादेश के बहुत करीब होगा।
    • भारत वर्ष 2017 में IEA का सहयोगी सदस्य बना और हाल ही में IEA ने भारत को पूर्णकालिक सदस्य बनने के लिये आमंत्रित किया है।

  • SPR की क्षमता विस्तार की आवश्यकता:: 
    • दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता भारत अपनी आवश्यकता के 85% से अधिक के लिये आयात पर निर्भर करता है और SPR वैश्विक आपूर्ति संकट और अन्य आपात स्थितियों के दौरान ऊर्जा सुरक्षा और उपलब्धता सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है।
    • भारत दो स्थानों- ओडिशा में चांदीखोल (4 मिलियन टन) और पादुर (2.5 मिलियन टन) में अपनी SPR क्षमता को संचयी 6.5 मिलियन टन तक बढ़ाने की प्रक्रिया में है।
      • भारत में वर्तमान में 5.33 मिलियन टन या लगभग 39 मिलियन बैरल क्रूड की SPR क्षमता है, जो लगभग 9.5 दिनों की मांग को पूरा कर सकता है। 

आगे की राह 

  • राजस्थान में संभावित स्थलों का व्यापक भूवैज्ञानिक और तकनीकी आकलन करना महत्त्वपूर्ण है।
  • एक व्यापक व्यवहार्यता अध्ययन करने से परियोजना की आर्थिक व्यवहार्यता और तकनीकी व्यवहार्यता का मूल्यांकन करने में मदद मिलेगी। इस मूल्यांकन में संभावित जोखिमों, परियोजना की समयसीमा, परिचालन आवश्यकताओं और नमक गुफा-आधारित भंडारण सुविधाओं की व्यवहार्यता निर्धारित करने के लिये दीर्घकालिक स्थिरता का विश्लेषण करना चाहिये।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी से सरकारी खर्च को कम करने और रणनीतिक भंडार के विकास में निजी निवेश को आकर्षित करने में मदद मिल सकती है। साझेदारी के माध्यम से भंडार की व्यावसायिक क्षमता का लाभ उठाने से परियोजना की व्यवहार्यता में वृद्धि हो सकती है और आर्थिक विकास में योगदान हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


IPC की धारा 124A पर 22वाँ विधि आयोग

प्रिलिम्स के लिये:

राजद्रोह कानून, धारा 124A, विधि आयोग, गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA), राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम  

मेन्स के लिये: 

22वें विधि आयोग की सिफारिशें, राजद्रोह कानून का महत्त्व और संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

विधि आयोग की 22वीं रिपोर्ट राजद्रोह से संबंधित IPC की धारा 124A को बनाए रखने की सिफारिश करती है, लेकिन दुरुपयोग को रोकने के लिये संशोधन और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का प्रस्ताव रखती है।

विधि आयोग की सिफारिशें:

  • पृष्ठभूमि: 
  • सिफारिशें: 
    • धारा 124A को बनाए रखना:
      • आयोग का तर्क है कि धारा 124A को पूरी तरह से अन्य देशों के कार्यों के आधार पर निरस्त करना भारत की अनूठी वास्तविकताओं की अनदेखी करेगा।
      • यह इस बात पर बल देता है कि किसी कानून की औपनिवेशिक उत्पत्ति स्वत: ही उसके निरसन की गारंटी नहीं देती है।
      • रिपोर्ट बताती है कि भारतीय कानून व्यवस्था पूरी तरह से औपनिवेशिक प्रभाव रखती है।
    • संशोधन और सुरक्षा: 
      • आयोग धारा 124A में एक प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय शामिल करता है, जिसमें राजद्रोह के लिये प्राथमिकी दर्ज करने से पहले इंस्पेक्टर रैंक के एक पुलिस अधिकारी द्वारा प्रारंभिक जाँच की आवश्यकता होती है।
      • अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र या राज्य सरकार की अनुमति ज़रूरी होगी।
      • यह दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 196 (3) के समान प्रावधान को धारा 124A के उपयोग के खिलाफ प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के लिये समान संहिता की धारा 154 के परंतुक के रूप में शामिल करने का प्रस्ताव करती है।
      • आयोग यह निर्दिष्ट करने के लिये धारा 124A में संशोधन करने का सुझाव देता है कि यह व्यक्तियों को "हिंसा भड़काने या सार्वजनिक अव्यवस्था उत्पन्न करने की प्रवृत्ति के साथ" दंडित करता है।
    • सज़ा को बढ़ाना: 
      • रिपोर्ट में राजद्रोह के लिये जेल की सज़ा को अधिकतम 7 वर्ष या आजीवन कारावास तक बढ़ाने का प्रस्ताव है। 
      • वर्तमान में अपराध में तीन वर्ष तक की सज़ा या आजीवन कारावास है।

राजद्रोह कानून को बनाए रखने का औचित्य:

  • रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि दुरुपयोग के आरोप स्वतः ही धारा 124A के निरसन को उचित नहीं ठहराते हैं।
  • यह उन उदाहरणों पर प्रकाश डालता है जहाँ व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता और निहित स्वार्थों के लिये विभिन्न कानूनों का दुरुपयोग किया गया है।
  • राजद्रोह कानून को पूरी तरह से निरस्त करने से देश की सुरक्षा और अखंडता के लिये गंभीर प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं जिससे विध्वंसक शक्तियाँ स्थिति का फायदा उठा सकती हैं।

राजद्रोह कानून: 

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 
    • 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड में राजद्रोह कानून लागू किये गए थे जब सांसदों का मानना था कि सरकार के केवल अच्छे विचारों को बनाए रखना चाहिये क्योंकि बुरे विचार सरकार और राजशाही के लिये हानिकारक थे।
    • यह कानून मूल रूप से वर्ष 1837 में ब्रिटिश इतिहासकार-राजनीतिज्ञ थॉमस मैकाले द्वारा तैयार किया गया था लेकिन वर्ष 1860 में भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) के लागू होने पर इसे अस्पष्ट रूप से छोड़ दिया गया था।
    • धारा 124A को वर्ष 1870 में सर जेम्स स्टीफन द्वारा पेश किये गए एक संशोधन द्वारा तब जोड़ा गया था जब अपराध से निपटान के लिये एक विशिष्ट धारा की आवश्यकता महसूस हुई।
    • वर्तमान में राजद्रोह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के तहत एक अपराध है।
  • IPC की धारा 124A
    • धारा 124A देशद्रोह को ऐसे कृत्य रूप में परिभाषित करती है जो "बोले या लिखे गए शब्दों या संकेतों द्वारा या दृश्य प्रस्तुति द्वारा, भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा या पैदा करने का प्रयत्न करेगा, असंतोष (Disaffection) उत्पन्न करेगा या करने का प्रयत्न करेगा।”
    • प्रावधान के अनुसार, असंतोष (Disaffection) शब्द में निष्ठाहीनता और शत्रुता की सभी भावनाएँ शामिल हैं। हालाँकि घृणा, अवमानना या असंतोष उत्पन्न करने का प्रयास किये बिना की गई टिप्पणी इस धारा के तहत अपराध नहीं होगी।
  • राजद्रोह के अपराध के लिये सज़ा: 
    • राजद्रोह गैर-जमानती अपराध है। राजद्रोह के अपराध में तीन वर्ष से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा हो सकती है और इसके साथ ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है।
    • इस कानून के तहत आरोपित व्यक्ति को सरकारी नौकरी प्राप्त करने से रोका जा सकता है।
    • आरोपित व्यक्ति के पासपोर्ट को जब्त कर लिया जाता है, साथ ही आवश्यकता पड़ने पर उसे न्यायालय में पेश होना अनिवार्य होता है।

राजद्रोह कानून से संबंधित विभिन्न तर्क: 

पक्ष में तर्क:

  • उचित प्रतिबंध:
    • भारत का संविधान उचित प्रतिबंधों (अनुच्छेद 19 (2) के तहत) को निर्धारित करता है जो कि इस अधिकार (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) पर हमेशा लगाया जा सकता है ताकि इसके ज़िम्मेदार अभ्यास को सुनिश्चित किया जा सके और यह आश्वस्त किया जा सके कि यह सभी नागरिकों के लिये समान रूप से उपलब्ध है।
  • एकता और अखंडता बनाए रखना:
    • राजद्रोह कानून सरकार को राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों से निपटने में मदद करता है।
  • राज्य की स्थिरता बनाए रखना:
    • यह निर्वाचित सरकार को हिंसा और अवैध तरीकों से उखाड़ फेंकने के प्रयासों से बचाने में मदद करता है।
    • कानून द्वारा स्थापित सरकार का निरंतर अस्तित्व राज्य की स्थिरता की एक अनिवार्य शर्त है।

राजद्रोह कानून को बनाए रखने के खिलाफ तर्क:

  • औपनिवेशिक काल के अवशेष:
    • औपनिवेशिक प्रशासकों ने ब्रिटिश नीतियों की आलोचना करने वाले लोगों को बंद करने के लिये देशद्रोह का इस्तेमाल किया।
    • स्वतंत्रता आंदोलन के दिग्गजों जैसे- लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, भगत सिंह आदि को ब्रिटिश शासन के तहत उनके "देशद्रोही" भाषणों, लेखन और गतिविधियों के लिये दोषी ठहराया गया था।
    • इस प्रकार राजद्रोह कानून का धड़ल्ले से इस्तेमाल औपनिवेशिक युग की याद दिलाता है।
  • देशद्रोह के मामलों पर NCRB की रिपोर्ट: 
    • NCRB की भारत में अपराध रिपोर्ट के नवीनतम संस्करण से पता चला है कि वर्ष 2021 में देश भर में 76 राजद्रोह के मामले दर्ज किये गए थे, जो कि वर्ष 2020 में पंजीकृत 73 में मामूली वृद्धि थी।
    • देशद्रोह कानून (IPC की धारा 124A) के तहत दायर मामलों में सज़ा की दर अब सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे मामले का विषय है, पिछले कुछ वर्षों में 3% और 33% के बीच उतार-चढ़ाव आया है और अदालत में ऐसे मामलों की लंबितता वर्ष 2020 में 95% के उच्च स्तर पर पहुँच गई है।
  • संविधान सभा का स्टैंड:
    • संविधान सभा देशद्रोह को संविधान में शामिल करने पर सहमत नहीं हुई। सदस्यों ने महसूस किया कि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम करेगा।
    • उन्होंने तर्क दिया कि राजद्रोह कानून को विरोध करने के लोगों के वैध और संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकार को दबाने के लिये एक साधन (Weapon) में बदल दिया जा सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की अवहेलना:
    • केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले 1962 में सर्वोच्च न्यायालय ने राजद्रोह के आवेदन को "अव्यवस्था पैदा करने के इरादे या प्रवृत्ति या कानून और व्यवस्था की गड़बड़ी या हिंसा के लिये उकसाने" तक सीमित कर दिया।
    • इस प्रकार शिक्षाविदों, वकीलों, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं और छात्रों के खिलाफ देशद्रोह का आरोप लगाना सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना है।
  • लोकतांत्रिक मूल्यों का दमन: 
    • मुख्य रूप से राजद्रोह कानून के कठोर और गणनात्मक उपयोग के कारण भारत को निर्वाचित निरंकुशता के रूप में वर्णित किया जा रहा है

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. रॉलेट सत्याग्रह के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2015)

  1. रॉलेट अधिनियम, 'सेडिशन समिति ' की सिफारिश पर आधारित था।
  2. रॉलेट सत्याग्रह में गांधीजी ने होमरूल लीग का उपयोग करने का प्रयास किया।
  3. साइमन कमीशन के आगमन के विरुद्ध हुए प्रदर्शन रॉलेट सत्याग्रह के साथ-साथ हुए।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • रॉलेट समिति, जिसे सेडिशन/राजद्रोह समिति के रूप में भी जाना जाता है, को वर्ष 1917 में ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा नियुक्त किया गया था, जिसके अध्यक्ष एक अंग्रेज़ी न्यायाधीश सिडनी रॉलेट थे।
  • वर्ष 1919 का अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम (रॉलेट एक्ट/ब्लैक एक्ट/काला कानून के रूप में जाना जाता है) राजद्रोह समिति की सिफारिशों पर आधारित था। अत: कथन 1 सही है।
  • इस अधिनियम ने सरकार को आतंकवाद के संदेह वाले किसी भी व्यक्ति पर बिना किसी मुकदमे के अधिकतम दो वर्ष की कैद की अनुमति दी।
  • इस अन्यायपूर्ण कानून के जवाब में गांधी ने रॉलेट एक्ट के खिलाफ देशव्यापी विरोध का आह्वान किया। 6 अप्रैल, 1919 को हड़ताल (या हड़ताल) शुरू की गई थी।
  • उन्होंने होमरूल लीग के सदस्यों से हड़ताल में भाग लेने का आह्वान किया। अत: कथन 2 सही है।
  • रॉलेट सत्याग्रह वर्ष 1919 में हुआ था, जबकि साइमन कमीशन 1927 में भारत आया था। अतः कथन 3 सही नहीं है।

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: द हिंदू


विश्व पर्यावरण दिवस पर भारत का ई-कुकिंग परिवर्तन

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व पर्यावरण दिवस, ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE), ई-कुकिंग, सौभाग्य कार्यक्रम, पर्यावरण के लिये मिशन जीवनशैली (LiFE), नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत, सतत् विकास लक्ष्य 7.1

मेन्स के लिये:

पारंपरिक खाना पकाने के तरीकों हेतु ई-कुकिंग विकल्प, टिकाऊ जीवनशैली को बढ़ावा देने में LiFE पहल की भूमिका, सतत् विकास लक्ष्य 7.1

चर्चा में क्यों?

विश्व पर्यावरण दिवस प्रतिवर्ष 5 जून को मनाया जाता है, यह पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता के संदर्भ में जागरूकता बढ़ाने हेतु एक मंच के रूप में कार्य करता है।

  • इस महत्त्वपूर्ण दिवस की 50वीं वर्षगाँठ पर अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन, ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency- BEE) एवं सहयोगी लेबलिंग और उपकरण मानक कार्यक्रम (Collaborative Labeling and Appliance Standards Program- CLASP) ने नई दिल्ली में "ई-कुकिंग परिवर्तन हेतु उपभोक्ता-केंद्रित दृष्टिकोण पर सम्मेलन" का आयोजन किया।
    • इस सम्मेलन का उद्देश्य भारत में ऊर्जा-कुशल, स्वच्छ और किफायती ई-कुकिंग समाधानों की सुविधा में तेज़ी लाना है।

विश्व पर्यावरण दिवस 2023:

  • परिचय: 
    • संयुक्त राष्ट्र सभा ने 5 जून, 1972 को विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना की, जो मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम सम्मेलन का पहला दिन था।
    • यह प्रत्येक वर्ष एक अलग देश द्वारा आयोजित किया जाता है।
      • भारत ने वर्ष 2018 में 'बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन' थीम के तहत विश्व पर्यावरण दिवस के 45वें संस्करण की मेज़बानी की थी।
    • वर्ष 2023 में विश्व पर्यावरण दिवस नीदरलैंड के साथ साझेदारी में कोटे डी आइवर द्वारा आयोजित किया गया है।
    • इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस की 50वीं वर्षगाँठ है।
  • वर्ष 2023 के लिये थीम: 
    • विषय #BeatPlasticPollution अभियान के तहत प्लास्टिक प्रदूषण के समाधान पर केंद्रित होगा।
  • उद्देश्य: 
    • जागरूकता बढ़ाएँ, समुदायों को संगठित करें और प्लास्टिक प्रदूषण को दूर करने तथा स्वस्थ एवं अधिक टिकाऊ पर्यावरण को बढ़ावा देने हेतु सहयोगी प्रयासों को प्रोत्साहित करना।

ई-कुकिंग: 

  • परिचय: 
    • ई-कुकिंग में पारंपरिक खाना पकाने के तरीकों के स्वच्छ और ऊर्जा-कुशल विकल्प के रूप में खाना पकाने के लिये विद्युत उपकरणों का उपयोग शामिल है।
    • इसमें घरों में इलेक्ट्रिक स्टोव, इंडक्शन कुकटॉप्स और अन्य इलेक्ट्रिक कुकिंग डिवाइस को अपनाना शामिल है।
  • ई -कुकिंग को अपनाना: 
    • भारत की 24/7 विद्युत पहुँच की उपलब्धि ई-कुकिंग को अपनाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण चालक रही है। 
    • ‘सौभाग्य’ योजना ने लाखों घरों को विद्युत सुविधा प्रदान करने, विद्युत कटौती को समाप्त करने तथा विद्युत से खाना पकाने के लिये अनुकूल वातावरण बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • LiFE की भूमिका:
  • भारतीय रसोई के भविष्य के रूप में ई-कुकिंग:
    • विश्वसनीय विद्युत पहुँच के साथ ई-कुकिंग भारतीय रसोई का भविष्य बनने की ओर अग्रसर है।
    • खाना पकाने की इलेक्ट्रिक तकनीक की मापनीयता और सामर्थ्य इसे शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के लिये एक व्यवहार्य विकल्प बनाती है।
  • किफायती ई-कुकिंग बिज़नेस मॉडल: 
    • ई-कुकिंग समाधानों को व्यापक रूप से अपनाने के लिये किफायती व्यवसाय मॉडल विकसित करना महत्त्वपूर्ण है।
    • सौर एवं तापीय ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग लागत कम करने और ई-कुकिंग को अधिक सुलभ बनाने में मदद कर सकता है।
    • एकत्रीकरण मॉडल एवं कीमतों में कमी की रणनीतियों को लागू करने से किफायती दरों में और वृद्धि हो सकती है जिससे ई-कुकिंग को बड़ी संख्या में लोगों तक पहुँचाया जा सकता है।
  • न्यूनतम प्रौद्योगिकी बाधाएँ: 
    • ई-कुकिंग न्यूनतम प्रौद्योगिकी बाधाओं का सामना करती है क्योंकि उपकरण में दोषों और विभिन्न व्यंजनों के साथ अनुकूलता के संबंध में चिंताओं को दूर कर दिया गया है।
    • बड़े पैमाने पर सफल ई-कुकिंग मॉडल के प्रतिरूपण तथा धीरे-धीरे पारंपरिक कुकर को इलेक्ट्रिक कुकर से बदलना उपभोक्ता में विश्वास उत्पन्न कर सकता है और एक सहज संक्रमण की सुविधा प्रदान कर सकता है।
  • विद्युत क्षेत्र और उपभोक्ताओं को लाभ: 
    • ई-कुकिंग विद्युत क्षेत्र और उपभोक्ताओं दोनों के लिये एक लाभदायक समाधान प्रस्तुत करता है।
    • यह सतत् विकास लक्ष्य 7.1 के साथ संरेखित करता है जिससे खाना पकाने की साफ-सुथरी पहुँच और इनडोर वायु गुणवत्ता में सुधार सुनिश्चित होता है।
    • ई-कुकिंग रीहीटिंग में ऊर्जा की खपत को कम कर सकता है तथा एक स्वच्छ एवं पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली में योगदान कर सकता है।

भारत के ऊर्जा संक्रमण को आकार देनी वाली अन्य पहलें 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. सतत् विकास लक्ष्यों को पहली बार 1972 में 'क्लब ऑफ रोम' नामक एक वैश्विक थिंक टैंक द्वारा प्रस्तावित किया गया था। 
  2. सतत् विकास लक्ष्यों को 2030 तक हासिल करना है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच अनिवार्य है।" इस संबंध में भारत में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018)।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय रेलवे में रेल का पटरी से उतरना

प्रिलिम्स के लिये:

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG), भारत में रेल का पटरी से उतरना, राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष (RRSK), कवच  

मेन्स के लिये:

कवच की कार्यक्षमता, रेलों का पटरी से उतरने के ज़िम्मेदार कारक

चर्चा में क्यों?  

ओडिशा के बालासोर ज़िले के बहनगा बाज़ार रेलवे स्टेशन पर 2 जून, 2023 को हुई दुखद ट्रेन दुर्घटना ने ऐसी विनाशकारी घटनाओं को रोकने के लिये प्रभावी सुरक्षा उपायों की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया।

  • हाल की घटना ने कवच पहल की ओर ध्यान आकर्षित किया है, जिसका उद्देश्य भारत में रेलवे सुरक्षा को बढ़ाना है। हालाँकि कवच प्रणाली को ओडिशा मार्ग पर लागू नहीं किया गया है।
  • भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की वर्ष 2022 की रिपोर्ट 'भारतीय रेलवे का पटरी से उतरना' में देश में ट्रेन दुर्घटनाओं के कारणों पर अनेक कमियों को चिह्नित किया गया है। 

रिपोर्ट की प्रमुख विशेषताएँ:  

  • परिचय:  
    • CAG की रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2017-18 और वर्ष 2020-21 के बीच लगभग 75% परिणामी रेल दुर्घटनाएँ पटरी से उतरने के कारण हुई हैं।
  • रेल का अवपथन/पटरी से उतरना: ट्रेन दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण
    • 217 परिणामी ट्रेन दुर्घटनाओं में से 163 (लगभग 75%) रेल के पटरी से उतरने के कारण हुई है।
    • रेल दुर्घटनाओं के अन्य कारणों में रेलगाड़ियों में आग लगना (20 दुर्घटनाएँ), मानव रहित समपारों पर दुर्घटनाएँ (13 दुर्घटनाएँ), टक्कर (11 दुर्घटनाएँ), मानवयुक्त समपारों पर दुर्घटनाएँ (8 दुर्घटनाएँ) और विविध घटनाएँ (2 दुर्घटनाएँ) शामिल हैं।

रेल दुर्घटनाओं का वर्गीकरण:  

  • रेलवे बोर्ड रेल दुर्घटनाओं को दो श्रेणियों में वर्गीकृत करता है: परिणामी रेल दुर्घटनाएँ और अन्य रेल दुर्घटनाएँ।
  • परिणामी ट्रेन दुर्घटनाओं में जीवन की हानि, मानव चोट, संपत्ति की क्षति और रेलवे यातायात में रुकावट जैसे महत्त्वपूर्ण प्रभाव वाली दुर्घटनाएँ शामिल हैं।
  • अन्य रेल दुर्घटनाओं में वे सभी दुर्घटनाएँ शामिल हैं जो परिणामी श्रेणी में नहीं आती हैं।
  • अवपथन/पटरी से उतरने के लिये ज़िम्मेदार कारक:  
    • जाँच रिपोर्टों के विश्लेषण से पता चला कि 16 क्षेत्रीय रेलवे और 32 मंडलों में रेलगाड़ियों के पटरी से उतरने में योगदान देने वाले 23 कारक थे।
    • पटरी से उतरने के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारक ट्रैक के रखरखाव (167 मामले), अनुमत सीमाओं से परे ट्रैक मापदंडों के विचलन (149 मामले) और खराब ड्राइविंग/ओवरस्पीडिंग (144 मामले) से संबंधित थे।
  • राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष (RRSK):  
    • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने वर्ष 2017-18 में स्थापित RRSK के प्रदर्शन का भी विश्लेषण किया जिसका उद्देश्य 1 लाख करोड़ रुपए के कोष के साथ दुर्घटनाओं को रोकने के लिये रेल नेटवर्क पर सुरक्षा उपायों को मज़बूत करना था।
      • लेखापरीक्षा में पाया गया कि 15,000 करोड़ रुपए के सकल बजटीय समर्थन का योगदान दिया गया था, जबकि रेलवे के आंतरिक संसाधन हेतु शेष 5,000 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष RRSK को वित्तपोषित करने के लक्ष्य से कम थे।
    • आंतरिक संसाधनों हेतु वित्त की इस कमी ने रेलवे में सुरक्षा बढ़ाने के लिये RRSK बनाने के प्राथमिक उद्देश्य को कमज़ोर कर दिया।
  • ट्रैक नवीनीकरण के लिये वित्तीय आवंटन घटाना:
    • रिपोर्ट में ट्रैक नवीनीकरण कार्यों के लिये वित्तीय आवंटन में वर्ष 2018-19 के 9,607 करोड़ रुपए से वर्ष 2019-20 में 7,417 करोड़ रुपए की गिरावट दर्शायी गई है।
      • इसके अलावा ट्रैक नवीनीकरण कार्यों के लिये आवंटित वित्त का पूर्णतया उपयोग नहीं किया गया था।
      • वर्ष 2017-21 के दौरान 1,127 अवपथन में से 289 अवपथन (26%) ट्रैक नवीनीकरण से संबंधित थे।
  • सिफारिशें और लंबित परियोजनाएँ: 
    • CAG की रिपोर्ट ने दुर्घटना की जाँच करने और उसे अंतिम रूप देने के लिये निर्धारित समय-सीमा का सख्ती से पालन करने की सिफारिश की थी।
      • भारतीय रेलवे (IR) ट्रैक रखरखाव और बेहतर प्रौद्योगिकियों के पूरी तरह से यंत्रीकृत तरीकों को अपनाकर रखरखाव गतिविधियों के समय पर कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये एक मज़बूत निगरानी तंत्र विकसित कर सकता है। 
    • भारतीय रेलवे (IR) सांकेतिक परिणामों के अनुसार सुरक्षा कार्य के प्रत्येक वस्तु के लिये 'विस्तृत परिणाम रूपरेखा' तैयार कर सकता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि RRSK फंड से प्राप्त लाभ फंड के निर्माण के उद्देश्यों के अनुरूप है या नहीं

नोट: पटरी से उतरना उस स्थिति को संदर्भित करता है जब कोई ट्रेन या कोई अन्य रेल वाहन पटरी से उतर जाता है, जिसके परिणामस्वरूप स्थायी का नुकसान होता है और रेल अपने इच्छित पथ पर आगे बढ़ने में असमर्थ होती है। यह एक गंभीर सुरक्षा घटना है जिससे क्षति, चोटें और यहाँ तक कि मृत्यु भी हो सकती है।

कवच

  • परिचय:  
  • कवच एक स्वदेशी रूप से विकसित स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (ATP) प्रणाली है जिसका उद्देश्य भारतीय रेलवे के विशाल नेटवर्क में ट्रेन संचालन में सुरक्षा को बढ़ाना है।
  • तीन भारतीय विक्रेताओं के सहयोग से अनुसंधान डिज़ाइन और मानक संगठन (RDSO) द्वारा विकसित इसे हमारी राष्ट्रीय स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (ATP) प्रणाली के रूप में अपनाया गया है।
  • सिकंदराबाद, तेलंगाना में इंडियन रेलवे इंस्टीट्यूट ऑफ सिग्नल इंजीनियरिंग एंड टेलीकम्युनिकेशंस (IRISET) कवच के लिये 'उत्कृष्टता केंद्र' की मेज़बानी करता है।
  • IRISET अपनी समर्पित कवच प्रयोगशाला के माध्यम से कवच पर सेवाकालीन रेलवे कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के लिये ज़िम्मेदार है। 
  • कार्यक्षमता:  
    • सिस्टम सुरक्षा अखंडता स्तर-4 (SIL-4) मानकों को पूरा करता है, जो इसकी उच्च विश्वसनीयता को दर्शाता है।
    • यह ट्रेनों को रेड सिग्नल से गुज़रने से रोकता है और गति प्रतिबंध लागू करता है।
    • यदि ड्राइवर ट्रेन को नियंत्रित करने में विफल रहता है तो ब्रेकिंग सिस्टम स्वचालित रूप से सक्रिय हो जाता है।
    • कवच सिस्टम दो लोकोमोटिव के बीच टकराव को रोकता है।
    • आपातकालीन स्थितियों के दौरान SoS संदेशों को रिले करता है।
    • नेटवर्क मॉनीटर सिस्टम के माध्यम से ट्रेन की आवाजाही की केंद्रीकृत लाइव निगरानी प्रदान करता है।
    • स्टेशन मास्टर और लोको-पायलट के बीच दो-तरफा संचार हेतु ट्रैफिक टक्कर बचाव प्रणाली (Traffic Collision Avoidance System- TCAS) का उपयोग करता है। 

  • कवच का कार्यान्वयन और तैनाती:  
    • हालाँकि 1.03 लाख किलोमीटर की कुल रूट लंबाई में से अभी तक केवल 1,455 किलोमीटर को कवच के तहत लाया गया है।
    • दक्षिण मध्य रेलवे (South Central Railway- SCR) ज़ोन कवच कार्यान्वयन में सबसे आगे रहा है।

आगे की राह 

  • आँकड़ा विश्लेषण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग: ट्रेनों, ट्रैक्स और अवसंरचना से बड़ी मात्रा में एकत्र किये गए आँकड़ों का विश्लेषण करने हेतु बिग डेटा एनालिटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करना चाहिये। यह सक्रिय हस्तक्षेप को सक्षम करने, स्वरूप की पहचान करने, विसंगतियों का पता लगाने एवं संभावित सुरक्षा जोखिमों की भविष्यवाणी करने में मदद कर सकता है।
  • कवच परियोजना को लागू करना: कम-से-कम चार रेलवे ज़ोन से गुज़रने वाली हावड़ा-चेन्नई लाइन पर कवच परियोजना के कार्यान्वयन में तेज़ी लाना महत्त्वपूर्ण है।
    • अन्य रेलवे ज़ोन को पूरे मार्ग में सुरक्षा उपायों को बढ़ाने हेतु कवच प्रणाली की स्थापना को प्राथमिकता देनी चाहिये

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस