जैव विविधता और पर्यावरण
भूजल संरक्षण: बेशकीमती संसाधन
- 15 Nov 2022
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यह एडिटोरियल 14/11/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Preserving the precious: On ground water use” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में घटते भूजल संसाधन और संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
भारत वैश्विक आबादी के 17% भाग का घर है, लेकिन उसके पास विश्व के ताज़े जल संसाधनों का मात्र 4% ही उपलब्ध है। भारत में न केवल जल की कमी है, बल्कि दशकों से भूजल का दोहन बढ़ता ही जा रहा है।
- 1960 के दशक से ही जब खाद्य सुरक्षा के लिये सरकार ने ‘हरित क्रांति’ (Green revolution) को समर्थन देना शुरू किया, कृषि गतिविधियों के लिये भूजल की मांग में वृद्धि आती गई।
- भूजल प्रदूषण (Groundwater pollution) और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों (शुष्क क्षेत्रों में अनियमित वर्षा सहित) भूजल संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव का निर्माण किया है। भूजल के अतिदोहन दर (Overexploitation rates) ने आजीविका, खाद्य सुरक्षा, जलवायु-प्रेरित प्रवासन और मानव विकास के लिये खतरा उत्पन्न किया है।
- इस परिदृश्य में यह आवश्यक है कि जलभृतों को फिर से भरने और भूजल के सतत उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये एक तंत्र का निर्माण किया जाए।
भारत में भूजल निष्कर्षण की वर्तमान स्थिति
- भारत भूजल का विश्व का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है, जहाँ भूजल देश के सिंचाई संसाधनों में 60% से अधिक का योगदान देता है।
- भूजल का यह अति-निष्कर्षण गैर-नवीकरणीय है क्योंकि पुनर्भरण दर निष्कर्षण दर से कम है और इस संसाधन के पुनर्भरण में हज़ारों वर्ष लग सकते हैं।
- जल संसाधन मंत्रालय के वर्ष 2022 के एक आकलन से पता चलता है कि भूजल निकासी का स्तर वर्तमान में वर्ष 2004 के बाद सबसे कम है।
- भूजल निकासी में कमी बेहतर जल प्रबंधन का संकेत हो सकती है, हालाँकि ‘भारत के गतिशील भूजल संसाधनों पर राष्ट्रीय संकलन’ (National Compilation on Dynamic Ground Water Resources of India) शीर्षक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह सुधार मामूली या ‘सीमांत’ (marginal) है।
भूजल प्रबंधन से संबंधित वर्तमान सरकारी पहलें
- राष्ट्रीय जल नीति, 2012
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
- जल शक्ति अभियान - कैच द रेन कैंपेन
- अटल भूजल योजना
भूजल में कमी से संबंधित प्रमुख मुद्दे
- अनियमित निकासी: भूजल की कमी से प्रभावित कई राज्य सिंचित कृषि के लिये भूजल निकासी हेतु मुफ़्त या भारी सब्सिडी-युक्त बिजली सुविधा (सौर पंप सहित) प्रदान करते हैं। यह दुर्लभ भूजल संसाधनों के अतिदोहन और उनके स्तर में कमी को प्रेरित करता है।
- जल-गहन फसलों की खेती: गेहूँ और चावल के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ने गेहूँ और धान जैसी जल-गहन फसलों (जो अपने विकास के लिये भूजल पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं) के पक्ष में अत्यधिक विषम प्रोत्साहन संरचनाओं का निर्माण किया है। यह भूजल को इन फसलों की खेती के लिये एक अत्यंत आवश्यक संसाधन बनाता है।
- भूजल संबंधी विनियमन का अभाव: भारत सरकार उच्च अतिदोहित ब्लॉकों की ‘अधिसूचना’ के माध्यम से जल संकट वाले राज्यों में भूजल दोहन को नियंत्रित करती है।
- हालाँकि, वर्तमान में देश में लगभग 14% अतिदोहित ब्लॉकों को ही अधिसूचित किया गया है।
- बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण: बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण ने घरेलू एवं औद्योगिक आवश्यकताओं के लिये जल की मांग में वृद्धि की है। यहाँ फिर सीमित सतही जल संसाधनों के कारण भूजल संसाधनों के अतिदोहन की स्थिति बनी है।
- जलवायु परिवर्तन - जल तालिका का गिरता स्तर: सूखा, फ्लैश फ्लड और अनियमित मानसून जलवायु परिवर्तन घटनाओं के हाल के उदाहरण हैं जो भारत के भूजल संसाधनों पर दबाव डाल रहे हैं।
- भूजल संसाधनों पर अत्यधिक निर्भरता और निरंतर खपत के कारण उन पर दबाव में वृद्धि हो रही और कुएँ, तालाब, जलाशय आदि सूखते जा रहे हैं। इससे जल संकट और गहरा होता जा रहा है।
आगे की राह
- नदी जलग्रहण प्रबंधन: हरित गलियारों (green corridors) का निर्माण, बाढ़ जल के संग्रहण के लिये सक्षम पुनर्भरण क्षेत्रों (recharge zones) हेतु चैनलों का मानचित्रण और शहरी क्षेत्रों (जहाँ भूजल सतह से पाँच-छह मीटर नीचे है) में कृत्रिम भूजल पुनर्भरण संरचनाओं का सृजन भूजल की कमी को कम करने में योगदान कर सकेंगे।
- स्वच्छ वर्षा जल के साथ भूजल पुनर्भरण के लिये निष्क्रिय पड़े बोरवेलों का उपयोग भी एक अच्छा विकल्प होगा।
- भूतल जल निकाय प्रबंधन: तालाबों, झीलों और अन्य पारंपरिक जल संसाधन संरचनाओं का जीर्णोद्धार शहरी एवं ग्रामीण विकास परियोजनाओं का एक अभिन्न अंग होना चाहिये, जिससे भूजल क्षमता का पर्याप्त विकास होगा।
- अपशिष्ट जल प्रबंधन: गंदले जल (grey water and black water) के लिये दोहरी सीवेज प्रणाली और कृषि एवं बागवानी में पुनर्नवीनीकृत जल के पुन: उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- उद्योगों को भी जल उपयोग दक्षता, अपशिष्ट उपचार और शून्य तरल निर्वहन की वृद्धि के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- जल कुशल कृषि (Water Efficient Agriculture): गंगा बेसिन में अकेले कृषि ही 80% से अधिक भूजल की खपत करती है।
- जल कुशल सिंचाई प्रणाली (जैसे ड्रिप एंड स्प्रिंकलर इरिगेशन) को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये। इसके साथ ही, जल-गहन फसलों की संतुलित खेती और उपचारित अपशिष्ट जल का सिंचाई के लिये उपयोग जैसे अभ्यास अपनाये जाने चाहिये।
- भूजल सुरक्षा योजना: विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा सतत भूजल प्रबंधन किया जाना चाहिये जिसमें वर्षा जल संचयन के लिये उपयुक्त कार्रवाई शुरू करना भी शामिल है।
- इसके अलावा, केंद्र सरकार द्वारा समुदायों/हितधारकों की भागीदारी के माध्यम से वैज्ञानिक तरीके से तैयार की गई ग्राम/ग्राम पंचायत स्तर की भूजल सुरक्षा योजना के आधार पर सतह जल एवं भूजल के संयुक्त उपयोग की अवधारणा को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- भूजल का सामाजिक विनियमन: एक परिभाषित जलभृत क्षेत्र में समुदायों को सशक्त बनाने के लिये एक सहभागी भूजल प्रबंधन दृष्टिकोण का पालन किया जाना चाहिये। इसके लिये शासनिक अधिकार, सामुदायिक जागरूकता, क्षमता विकास के साथ ही भूजल के सामाजिक विनियमन हेतु ज्ञान एवं प्रेरणा प्रदान करने तथा समन्वित कार्रवाइयों को प्रवर्तित करने की आवश्यकता है।
अभ्यास प्रश्न: भारत में भूजल तालिका के स्तर में गिरावट के प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिये। इसके साथ ही, इस समस्या से निपटने के उपाय भी सुझाएँ।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक परीक्षाQ.1 निम्नलिखित में से कौन सा प्राचीन शहर बांधों की एक शृंखला बनाकर और उनसे जुड़े जलाशयों में पानी को प्रवाहित करके जल संचयन और प्रबंधन की विस्तृत प्रणाली के लिये जाना जाता है? (वर्ष 2021) (A) धोलावीरा उत्तर: (A) Q.2 'वाटर क्रेडिट' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (A) केवल 1 और 2 उत्तर: (C) मुख्य परीक्षाQ 1. जल संरक्षण और जल सुरक्षा के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए जल शक्ति अभियान की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? (वर्ष 2020) Q 2. समाप्त होते जल संसाधन को ध्यान में रखते हुए जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपाय सुझाएँ ताकि इसका विवेकपूर्ण उपयोग किया जा सके। (वर्ष 2020) |