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भारतीय अर्थव्यवस्था

सामरिक पेट्रोलियम भंडार के अंतर्गत नई सुविधाएँ

  • 27 Jul 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये

सामरिक पेट्रोलियम भंडार, सार्वजनिक-निजी भागीदारी

मेन्स के लिये 

सामरिक पेट्रोलियम भंडार : महत्त्व व चुनौतियाँ, भारत के लिये सामरिक पेट्रोलियम भंडार की आवश्यकता 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सामरिक पेट्रोलियम भंडार (SPR) कार्यक्रम के तहत सरकार ने दो अतिरिक्त सुविधाएँ स्थापित करने की मंज़ूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु

नई सुविधाएँ:

  • नई सुविधाओं में भूमिगत भंडारण की कुल 6.5 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) भंडारण क्षमता के साथ वाणिज्यिक-सह-सामरिक सुविधाएँ होंगी:
    • चंदीखोल (ओडिशा)  (4 MMT)
    • पाडुर (कर्नाटक) (2.5 MMT)
  • इन्हें SPR कार्यक्रम के दूसरे चरण के तहत सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल में बनाया जाएगा।

मौजूदा सुविधाएँ:

  • कार्यक्रम के पहले चरण के तहत भारत सरकार ने 3 स्थानों पर 5.33 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) की कुल क्षमता के साथ सामरिक पेट्रोलियम भंडारण (SPR) सुविधाएँ स्थापित की हैं:
    • विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश) (1.33 MMT).
    • मंगलौर (कर्नाटक) (1.5 MMT).
    • पाडुर (कर्नाटक)  (2.5 MMT).
  • पहले चरण के तहत स्थापित पेट्रोलियम भंडार की प्रकृति सामरिक महत्त्व के लिये है। इन भंडारों में संग्रहीत कच्चे तेल का उपयोग तेल की कमी की स्थिति में किया जाएगा और ऐसा तब होगा जब भारत सरकार की ओर से इसकी घोषणा की जाएगी।

सामरिक पेट्रोलियम भंडार

परिचय:

  • सामरिक पेट्रोलियम भंडार कच्चे तेल से संबंधित किसी भी संकट जैसे- प्राकृतिक आपदाओं, युद्ध या अन्य आपदाओं के दौरान आपूर्ति में व्यवधान से निपटने के लिये कच्चे तेल के विशाल भंडार होते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा कार्यक्रम (International Energy Programme- IEP) पर समझौते के अनुसार, कम-से-कम 90 दिनों के लिये शुद्ध तेल आयात के बराबर आपातकालीन तेल का स्टॉक रखना अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency- IEA) के प्रत्येक सदस्य देश का दायित्व है।
    • गंभीर तेल आपूर्ति व्यवधान के मामले में IEA सदस्य सामूहिक कार्रवाई के हिस्से के रूप में इन शेयरों को बाज़ार में जारी करने का निर्णय ले सकते हैं।
    • भारत वर्ष 2017 में IEA का सहयोगी सदस्य बना।
  • ओपेक (पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन) द्वारा पहली बार तेल के संकट के बाद सामरिक भंडार की इस अवधारणा को वर्ष 1973 में संयुक्त राज्य अमेरिका में लाया गया था।
  • भूमिगत भंडारण, पेट्रोलियम उत्पादों के भंडारण की अब तक की सबसे किफायती विधि है, क्योंकि भूमिगत भूमिगत भंडारण व्यवस्था भूमि के बड़े हिस्से की आवश्यकता को समाप्त करती है, निम्न वाष्पीकरण सुनिश्चित करती है और चूँकि गुहा रूप संरचनाएँ  समुद्र तल से काफी नीचे बनाई जाती हैं, इसलिये जहाज़ों द्वारा इनमें कच्चे तेल का निर्वहन करना आसान होता है।
  • भारत में सामरिक कच्चे तेल की भंडारण सुविधाओं के निर्माण कार्य का प्रबंधन भारतीय सामरिक पेट्रोलियम भंडार लिमिटेड (Indian Strategic Petroleum Reserves Limited- ISPRL) द्वारा किया जा रहा है।
    • ISPRL पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत तेल उद्योग विकास बोर्ड (OIDB) की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
  • नई सुविधाओं के चालू होने के बाद कुल 22 दिनों (10+12) में खपत किये जा सकने योग्य तेल की मात्रा उपलब्ध कराई जाएगी।
  • सामरिक सुविधाओं के साथ भारतीय रिफाइनरीज़ 65 दिनों के कच्चे तेल के भंडारण (औद्योगिक स्टॉक) की सुविधा बनाए रखती हैं।
  • इस प्रकार SPR कार्यक्रम के दूसरे चरण के पूरा होने के बाद भारत में कुल 87 दिनों तक (रणनीतिक भंडार द्वारा 22 + भारतीय रिफाइनर द्वारा 65) तक खपत के लिये तेल उपलब्ध कराया जाएगा। यह मात्रा IEA द्वारा 90 दिनों के लिये तेल उपलब्ध कराने के शासनादेश के काफी निकट होगा।

भारत में SPRs की आवश्यकता:

  • पर्याप्त क्षमता का निर्माण:
    • अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के बाज़ार में होने वाली किसी भी अप्रत्याशित घटना से निपटने के लिये इसकी वर्तमान क्षमता पर्याप्त नहीं है।
    • एक दिन में लगभग 5 मिलियन बैरल तेल की खपत के साथ देश का 86% हिस्सा तेल पर निर्भर है।
  • ऊर्जा सुरक्षा:
    • अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत में उतार-चढ़ाव से भारत को देश की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और मौद्रिक नुकसान से बचने के लिये पेट्रोलियम भंडार बनाने की सख्त ज़रूरत है।

आगे की राह:

  • वर्तमान मांग विदेशों में मौजूद ऊर्जा स्रोतों से संबंधित संपत्ति की तलाश करने की है। भारत को मेज़बान देशों में भारतीय संपत्ति के रूप में तेल की खरीद और उसे स्टोर करना चाहिये तथा आवश्यकता पड़ने पर चीन की तरह प्रयोग करना चाहिये।
  • भारत को कई देशों के साथ तेल अनुबंध करना चाहिये ताकि किसी एक क्षेत्र के एकाधिकार से बचा जा सके। 
    • उदाहरण के लिये वर्तमान में भारत खाड़ी क्षेत्र से अधिकांश तेल आयात कर रहा है।
  • तेल ऊर्जा का केंद्रीय स्रोत है लेकिन यह सीमित है, इसलिये वैकल्पिक स्रोतों की ओर ध्यान देने की ज़रूरत है।
  • विदेशी जहाज़ों में 90% भारतीय तेल का आयात भी एक गंभीर मुद्दा है। भारत को तेल परिवहन के लिये अपने स्वयं के जहाज़ों का अधिग्रहण करने की आवश्यकता है।

स्रोत-पी.आई.बी.

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