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राजद्रोह कानून

  • 05 Sep 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राजद्रोह कानून, धारा 124ए, भारतीय दंड संहिता।

मेन्स के लिये:

राजद्रोह कानून का महत्त्व और संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) की एक रिपोर्ट के अनुसार, असम राज्य में  पिछले आठ वर्षों के दौरान देश में सबसे अधिक राजद्रोह (Sedition) के मामले दर्ज किये गए हैं।

प्रमुख बिंदु

 NCRB रिपोर्ट के महत्त्वपूर्ण बिंदु:

  • वर्ष 2014-2021 के मध्य देश में राजद्रोह के 475 मामलों में से असम में ही 69 मामले (14.52%) दर्ज हुए।
  • असम के बाद, इस तरह के सबसे अधिक मामले क्रमशः हरियाणा (42), झारखंड (40), कर्नाटक (38), आंध्र प्रदेश (32) तथा जम्मू और कश्मीर (29) में देखे गए हैं।
    • इन छह राज्यों में राजद्रोह के 250 मामले दर्ज किये गए तथा देश में दर्ज कुल राजद्रोह के मामलों की संख्या के आधे से अधिक पिछले आठ वर्षों की अवधि में दर्ज किये गए हैं।
  • वर्ष 2021 में देश भर में 76 राजद्रोह के मामले दर्ज किये गए, जो वर्ष 2020 में दर्ज 73 मामलों में मामूली वृद्धि को दर्शाते हैं।
  • मेघालय, मिज़ोरम, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव तथा पुडुचेरी में उस अवधि में एक भी राजद्रोह का मामला दर्ज नहीं करने वाले राज्य और केंद्रशासित प्रदेश हैं।

Sedition-cases

राजद्रोह कानून:

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
    • राजद्रोह कानून को 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड में अधिनियमित किया गया था, उस समय विधि निर्माताओं का मानना था कि सरकार के प्रति अच्छी राय रखने वाले विचारों को ही केवल अस्तित्व में या सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होना चाहिये, क्योंकि गलत राय सरकार तथा राजशाही दोनों के लिये नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर सकती थी।
    • इस कानून का मसौदा मूल रूप से वर्ष 1837 में ब्रिटिश इतिहासकार और राजनीतिज्ञ थॉमस मैकाले द्वारा तैयार किया गया था, लेकिन वर्ष 1860 में भारतीय दंड सहिता (IPC) लागू करने के दौरान इस कानून को IPC में शामिल नहीं किया गया।
    • धारा 124A को 1870 में जेम्स स्टीफन द्वारा पेश किये गए एक संशोधन द्वारा जोड़ा गया था जब इसने अपराध से निपटने के लिये एक विशिष्ट खंड की आवश्यकता महसूस की।
    • वर्तमान में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के तहत राजद्रोह एक अपराध है।
  • वर्तमान में राजद्रोह कानून:
    • IPC की धारा 124A :
      • यह कानून राजद्रोह को एक ऐसे अपराध के रूप में परिभाषित करता है जिसमें ‘किसी व्यक्ति द्वारा भारत में कानूनी तौर पर स्थापित सरकार के प्रति मौखिक, लिखित (शब्दों द्वारा), संकेतों या दृश्य रूप में घृणा या अवमानना या उत्तेजना पैदा करने का प्रयत्न किया जाता है।
      • विद्रोह में वैमनस्य और शत्रुता की भावनाएँ शामिल होती हैं। हालाँकि इस धारा के तहत घृणा या अवमानना फैलाने की कोशिश किये बगैर की गई टिप्पणियों को अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता है।
    • राजद्रोह के अपराध हेतु दंड:
      • राजद्रोह गैर-जमानती अपराध है। राजद्रोह के अपराध में तीन वर्ष से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा हो सकती है और इसके साथ ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है।
      • इस कानून के तहत आरोपित व्यक्ति को सरकारी नौकरी प्राप्त करने से रोका जा सकता है।
      • आरोपित व्यक्ति के पासपोर्ट को जब्त कर लिया जाता है, साथ ही आवश्यकता पड़ने पर उसे न्यायालय में पेश होना अनिवार्य होता है।

राजद्रोह कानून का महत्त्व और चुनौतियाँ:

  • महत्त्व:
    • उचित प्रतिबंध:
      • भारत का संविधान अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध निर्धारित करता है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित करता है, साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि यह सभी नागरिकों के लिये यह समान रूप से उपलब्ध हो।
    • एकता और अखंडता:
      • राजद्रोह कानून सरकार को राष्ट्र-विरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों का सामना करने में सहायता करता है।
    • राज्य की स्थिरता को बनाए रखना:
      • यह निर्वाचित सरकार को हिंसा और अवैध तरीकों से सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयासों से बचाने में सहायता करता है। कानून द्वारा स्थापित सरकार का निरंतर अस्तित्त्व राज्य की स्थिरता के लिये एक अनिवार्य शर्त है।
  • चुनौतियाँ:
    • औपनिवेशिक युग का अवशेष:
      • औपनिवेशिक शासकों ने ब्रिटिश नीतियों की आलोचना करने वाले लोगों को रोकने हेतु राजद्रोह कानून का दुरूपयोग किया।
      • लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, भगत सिंह आदि स्वतंत्रता आंदोलन के दिग्गजों को ब्रिटिश शासन के तहत उनके "राजद्रोही" भाषणों, लेखन और गतिविधियों के लिये दोषी ठहराया गया था।
      • इस प्रकार राजद्रोह कानून का व्यापक उपयोग औपनिवेशिक युग की याद दिलाता है।
    • संविधान सभा का पक्ष:
      • संविधान सभा, संविधान में राजद्रोह को शामिल करने के लिये सहमत नहीं थी। सदस्यों का तर्क था कि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करेगा।
      • उन्होंने तर्क दिया कि लोगों के विरोध के वैध और संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकारों का दमन करने के लिये राजद्रोह कानून का एक हथियार के रूप में दुरूपयोग किया जा सकता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की अवहेलना:
      • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1962 में केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले में धारा 124A की संवैधानिकता पर अपना निर्णय दिया। इसने देशद्रोह की संवैधानिकता को बरकरार रखा लेकिन इसे अव्यवस्था पैदा करने का इरादा, कानून एवं व्यवस्था की गड़बड़ी तथा हिंसा के लिये उकसाने की गतिविधियों तक सीमित कर दिया।
      • इस प्रकार शिक्षाविदों, वकीलों, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं और छात्रों के खिलाफ देशद्रोह का आरोप लगाना सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना है।
    • लोकतांत्रिक मूल्यों का दमन:
      • भारत मुख्य रूप से राजद्रोह कानून के कठोर और निरंतर उपयोग के कारण को तेज़ी से उभरते एक निर्वाचित निरंकुश राज्य के रूप में वर्णित किया जा रहा है।

आगे की राह:

  • IPC की धारा 124A की उपयोगिता राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों से निपटने में है। हालांँकि सरकार के निर्णयों से असहमति और आलोचना एक जीवंत लोकतंत्र में मज़बूत सार्वजनिक बहस के आवश्यक तत्त्व हैं। इन्हें देशद्रोह के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये।
  • उच्च न्यायपालिका को अपनी पर्यवेक्षी शक्तियों का उपयोग मजिस्ट्रेट और पुलिस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने वाले संवैधानिक प्रावधानों के प्रति संवेदनशील बनाने हेतु करना चाहिये
  • राजद्रोह की परिभाषा को केवल भारत की क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ देश की संप्रभुता से संबंधित मुद्दों को शामिल करने के संदर्भ में संकुचित किया जाना चाहिये।
  • देशद्रोह कानून के मनमाने इस्तेमाल के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये नागरिक समाज को पहल करनी चाहिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:

प्र. रौलट सत्याग्रह के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2015)

  1. रौलट अधिनियम, 'सेडिशन समिति ' की सिफारिश पर आधारित था।
  2. रौलट सत्याग्रह में, गांधीजी ने होमरूल लीग का उपयोग करने का प्रयास किया।
  3. साइमन कमीशन के आगमन के विरूद्ध हुए प्रदर्शन रौलट सत्याग्रह के साथ-साथ हुए।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • रॉलेट समिति, जिसे सेडिशन/राजद्रोह समिति के रूप में भी जाना जाता है, को वर्ष 1917 में ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा नियुक्त किया गया था, जिसके अध्यक्ष एक अंग्रेजी न्यायाधीश सिडनी रॉलेट थे।
  • वर्ष 1919 का अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम (रॉलेट एक्ट/ब्लैक एक्ट/काला कानून के रूप में जाना जाता है) राजद्रोह समिति की सिफारिशों पर आधारित था। अत: कथन 1 सही है
  • इस अधिनियम ने सरकार को आतंकवाद के संदेह वाले किसी भी व्यक्ति पर बिना किसी मुकदमे के अधिकतम दो साल की कैद की अनुमति दी।
  • इस अन्यायपूर्ण कानून के जवाब में गांधी ने रॉलेट एक्ट के खिलाफ देशव्यापी विरोध का आह्वान किया। 6 अप्रैल, 1919 को एक हड़ताल (या हड़ताल) शुरू की गई थी।
  • उन्होंने होमरूल लीग के सदस्यों से हड़ताल में भाग लेने का आह्वान किया। अत: कथन 2 सही है।रॉलेट सत्याग्रह वर्ष 1919 में हुआ था जबकि साइमन कमीशन 1927 में भारत आया था। अतः कथन 3 सही नहीं है।
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