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डेली न्यूज़

  • 04 Aug, 2023
  • 47 min read
इन्फोग्राफिक्स

अर्द्धचालक


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में औपचारिक रोज़गार की स्थिति

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में औपचारिक रोज़गार की स्थिति, कर्मचारी भविष्य निधि (EPF), श्रमिक अधिकार, महामारी , श्रमिक बल सर्वेक्षण रिपोर्ट, श्रम संहिता

मेन्स के लिये:

भारत में औपचारिक रोज़गार की स्थिति

चर्चा में क्यों?

कर्मचारी भविष्य निधि (Employees Provident Fund- EPF) डेटा के अनुसार, EPF में योगदानकर्त्ताओं की संख्या में शुद्ध वृद्धि देखने को मिलती है, परंतु यह भारत में बेरोज़गारी की ज़मीनी हकीकत के ठीक विपरीत है।

  • भारत सरकार वर्ष 2017 से औपचारिक रोज़गार सृजन को मापने के लिये EPF के डेटा का उपयोग कर रही है।

औपचारिक रोज़गार:

  • परिचय:
    • औपचारिक रोज़गार से आशय ऐसे रोज़गार से है जहाँ काम के नियम और शर्तें श्रम कानूनों तथा रोज़गार अनुबंधों द्वारा विनियमित व संरक्षित होते हैं।
    • इसकी कुछ विशेषताएँ हैं जो इसे अनौपचारिक रोज़गार से अलग बनाती हैं।
  • मुख्य विशेषताएँ:
    • लिखित अनुबंध: औपचारिक रोज़गार में आमतौर पर कार्य की शर्तों को रेखांकित करने वाला एक लिखित रोज़गार अनुबंध शामिल होता है, जिसमें काम से संबंधित ज़िम्मेदारियाँ, काम के घंटे, मुआवज़ा, लाभ तथा अन्य नियम और शर्तें शामिल होती हैं।
    • सामाजिक सुरक्षा: औपचारिक रोज़गार में शामिल कर्मचारी अक्सर स्वास्थ्य बीमा, सेवानिवृत्ति निधि, भविष्य निधि, बेरोज़गारी लाभ और वित्तीय सुरक्षा के अन्य रूपों जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभ के हकदार होते हैं।
    • श्रमिक अधिकार: औपचारिक रोज़गार वाले कर्मचारियों के पास कानून द्वारा संरक्षित विशिष्ट श्रम संबंधी अधिकार हैं, जैसे- ट्रेड यूनियनों में शामिल होने का अधिकार, सामूहिक सौदेबाज़ी, अनुचित बर्खास्तगी के खिलाफ सुरक्षा और विवादों के मामले में कानूनी सहायता तक पहुँच आदि।
    • नियमित भुगतान: औपचारिक रोज़गार में कर्मचारियों को आमतौर पर एक निश्चित समय पर नियमित रूप से वेतन मिलता है, जो उन्हें एक स्थिर आय स्रोत प्रदान करता है।
  • अनौपचारिक रोज़गार:
    • अनौपचारिक रोज़गार से तात्पर्य उन कार्यों से है जो श्रम कानूनों द्वारा विनियमित अथवा संरक्षित नहीं हैं, जिनमें व्यवस्था का अभाव होता है और जो अक्सर सरकारी निरीक्षण के दायरे से बाहर संचालित होते हैं ।
    • अनौपचारिक रोज़गार के कारण उत्पन्न असुरक्षित कार्य परिस्थितियाँ आय असमानता में वृद्धि और उत्पादकता में कमी के चलते आर्थिक विकास को बाधित कर सकती हैं।

औपचारिक रोज़गार के बारे में EPF डेटा:

  • EPFO की वार्षिक रिपोर्ट में हाल के वर्षों में लगातार PF योगदान वाले नियमित योगदानकर्त्ताओं की संख्या में स्थिरता या गिरावट देखी गई है।
    • वर्ष 2012 से 2022 के बीच EPF में नियमित योगदानकर्त्ताओं की संख्या 30.9 मिलियन से बढ़कर 46.3 मिलियन हो गई।
    • वर्ष 2017 और 2022 के बीच नियमित योगदानकर्त्ताओं की संख्या 45.11 मिलियन से बढ़कर केवल 46.33 मिलियन हुई, जो इस अवधि के दौरान विकास में मंदी को दर्शाता है।
  • कुल EPF नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, लेकिन नियमित योगदानकर्त्ताओं में तदनुरूप वृद्धि न्यूनतम थी।
    • वर्ष 2017-2022 के बीच कुल EPF नामांकन 210.8 मिलियन से बढ़कर 277.4 मिलियन हो गया।
    • यह EPF नामांकन की कुल संख्या (277.4 मिलियन) और नियमित योगदानकर्त्ताओं की संख्या (46.33 मिलियन) के बीच  अंतर को इंगित करता है कि नामांकन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा नियमित योगदान के परिणामस्वरूप नहीं है।
  • अधिकांश EPF नामांकन अनियमित PF योगदान के साथ अस्थायी या आकस्मिक नौकरियों से संबंधित  हैं।

  • योगदानकर्त्ताओं में गिरावट के लिये अग्रणी कारक:
    • EPFO में  अपने ही डेटा पर विवाद है और उसने नियमित योगदानकर्त्ताओं पर मासिक रिपोर्ट प्रकाशित करना बंद कर दिया।
    • महामारी ने स्थिति को और खराब कर दिया, जिससे EPF योगदानकर्त्ताओं में गिरावट आई।
    • भारत सरकार ने औपचारिक रोज़गार डेटा के अन्य स्रोतों, जैसे रोज़गार एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय (Directorate General of Employment and Training- DGET) की उपेक्षा की, जो वर्ष 2013 से प्रकाशित नहीं किया गया है।

भारत में रोज़गार संकट का परिदृश्य:

  • बेरोज़गारी दर:
  • श्रम बल भागीदारी दर (LFPR):
    • सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी(Centre for Monitoring Indian Economy- CMIE) के अनुसार, वित्तीय वर्ष (2022-23) में भारत का LFPR घटकर 39.5% हो गया।
      • यह वर्ष 2016-17 के बाद से सबसे कम LFPR है।
    • पुरुषों की अनुमानित श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 66% है, जो विगत सात वर्षों के निचले पायदान पर है, जबकि महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) मात्र 8.8% है।
      • श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) कामकाज़ी उम्र की आबादी (15 वर्ष और उससे अधिक आयु) का एक भाग है जो ऐसे नियोजित या बेरोज़गार लोगों को संदर्भित करती है, जो रोज़गार के इच्छुक हैं या उसकी तलाश में हैं ।

भारत में रोज़गार की कमी के कारण:

  • औपचारिक एवं गुणवत्तापूर्ण रोज़गार  का अभाव:
    • चीन के आर्थिक मॉडल के विपरीत औपचारिक और नियमित रोज़गार, उचित वेतन का अभाव भारत के मध्यम वर्ग के विकास में बाधा उत्पन्न करता  है।
    • गुणवत्तापूर्ण नौकरियों की कमी के कारण अधिक योग्य युवा सीमित नौकरियों के लिये प्रतिस्पर्द्धा करते हैं, जिससे मज़बूत आर्थिक विकास के दावों के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
  • सामाजिक कारक:
    • भारत में जाति व्यवस्था अभी भी प्रचलित है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्रों में विशिष्ट जातियों के लिये कार्य करना वर्जित माना जाता है।
    • दीर्घ व्यवसाय वाले संयुक्त परिवारों में ऐसे कई व्यक्ति मिल जाएंगे जो बेरोज़गार हैं और परिवार की संयुक्त आय पर निर्भर रहते हैं।
  • कृषि का प्रभुत्व:
    • भारत में लगभग आधा कार्यबल कृषि पर निर्भर है, जबकि भारत में कृषि अविकसित है तथा केवल मौसमी रोज़गार प्रदान करती है।
  • लघु उद्योगों का पतन:
    • औद्योगिक विकास का कुटीर एवं लघु उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
    • कुटीर उद्योगों का उत्पादन घटने के कारण काफी कारीगर बेरोज़गार हो गए।
  • सीमित शिक्षा प्रणाली:
    • वर्तमान के पूंजीवादी विश्व में नौकरियों में अत्यधिक विशिष्टता आ गई है लेकिन भारत की शिक्षा प्रणाली इन नौकरियों के लिये आवश्यक उचित प्रशिक्षण और विशेषज्ञता प्रदान नहीं करती है।
    • इस प्रकार कई लोग जो रोज़गार की तलाश में हैं, वे कौशल की कमी के कारण बेरोज़गार हो जाते हैं।

भारत में सुरक्षित श्रम का अधिकार: 

बेरोज़गारी रोकने हेतु सरकार की पहलें:

आगे की राह

  • EPF जैसे एकल डेटा स्रोत पर भरोसा करना, भारत के श्रम बाज़ार की जटिलता को नज़रअंदाज कर सकता है। PLFS जैसे व्यापक श्रम आँकड़े स्पष्ट तस्वीर प्रदान करते हैं और देश में नौकरियों के संकट को दूर करने के लिये तत्काल नीतिगत हस्तक्षेप की मांग करते हैं।
  • भारत में औपचारिक रोज़गार संकट के लिये अंतर्निहित मुद्दों का समाधान करने और औपचारिक रोज़गार सृजन हेतु अनुकूल वातावरण बनाने के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • अधिक औपचारिक रोज़गार के अवसर पैदा करने और अनौपचारिक क्षेत्रों पर निर्भरता को कम करने के लिये विनिर्माण तथा कुछ सेवाओं जैसे उच्च श्रम तीव्रता वाले उद्योगों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
  • ऐसे कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश करने की आवश्यकता है जो उद्योग की मांगों के अनुरूप हों, ताकि कार्यबल की रोज़गार क्षमता बढ़ सके और बेहतर गुणवत्ता वाले औपचारिक रोज़गार मिल सकें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था में वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार कैसे कम हुए? क्या बढ़ती हुई अनौपचारिकता देश के विकास के लिये हानिकारक है? (2016)

स्रोत द हिंदू


शासन व्यवस्था

तंबाकू नियंत्रण पर WHO की रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन, ई-सिगरेट, राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम, इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट निषेध अध्यादेश, 2019 का प्रख्यापन, नेशनल टोबैको क्विटलाइन सर्विसेज़ (NTQLS)

मेन्स के लिये:

भारत में तंबाकू की खपत की स्थिति

चर्चा में क्यों? 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) ने हाल ही में तंबाकू नियंत्रण उपायों पर एक व्यापक रिपोर्ट जारी की। यह रिपोर्ट एमपॉवर उपायों (तंबाकू के उपयोग तथा स्वास्थ्य पर इसके हानिकारक प्रभावों से निपटान हेतु WHO द्वारा विकसित रणनीतियों का एक समूह) की शुरूआत के बाद से विश्व स्तर पर हुई प्रगति का मूल्यांकन करती है।

एमपॉवर उपाय (MPOWER Measures): 

  • वर्ष 2008 में WHO ने एमपॉवर (MPOWER)- एक ऐसी योजना जिसमें छह सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावी तंबाकू नियंत्रण विधियाँ शामिल थीं, की स्थापना की। छह एमपॉवर रणनीतियों में शामिल हैं:
    • M: तंबाकू के उपयोग और रोकथाम नीतियों की निगरानी करना (Monitor)
    • P: लोगों को तंबाकू के धुएँ से बचाना (Protect)
    • O: धूम्रपान छोड़ने के लिये सहायता प्रदान करना (Offer)
    • W: तंबाकू के खतरों के बारे में चेतावनी देना (Warn)
    • E: तंबाकू के विज्ञापन, प्रचार और प्रायोजन पर प्रतिबंध लगाना (Enforce)
    • R: तंबाकू पर कर बढ़ाना (Raise)

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • वैश्विक तंबाकू नियंत्रण प्रगति:
    • पूरे विश्व में धूम्रपान का प्रचलन वर्ष 2007 में 22.8% से घटकर वर्ष 2021 में 17% रह  गया है, जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान में धूम्रपान करने वाले लोगों की संख्या में 300 मिलियन की कमी आई है।
    • WHO के MPOWER/एमपॉवर उपायों ने विगत 15 वर्षों में तंबाकू नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, अर्थात् WHO ने इस उपाय से कम से कम 5.6 बिलियन लोगों (वैश्विक आबादी का 71%) की रक्षा की है।
    • कम से कम एक एमपॉवर उपाय लागू करने वाले देशों की संख्या वर्ष 2008 में 44 से बढ़कर वर्ष 2022 में 151 हो गई है, जबकि चार देशों - ब्राज़ील, तुर्किये, नीदरलैंड और मॉरीशस ने सभी उपायों को सफलतापूर्वक लागू किया है।
  • चुनौतियों का समाधान:
    • यह रिपोर्ट उन चुनौतियों पर भी प्रकाश डालती है जिन्हें अधिक प्रभावी तंबाकू नियंत्रण के लिये संबोधित करने की आवश्यकता है।
    • विश्व में 44 देश अभी भी कोई एमपॉवर उपाय लागू नहीं करते हैं, जबकि 53 देशों की स्वास्थ्य सुविधाओं में धूम्रपान पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है।
      • इसके अतिरिक्त, केवल कुछ देश ही धूम्रपान-मुक्त कार्यस्थलों और रेस्टोरेंट्स पर इन उपायों को लागू करते हैं।
    • WHO, ई-सिगरेट के खतरों पर भी प्रकाश डालता है, क्योंकि तंबाकू उद्योग द्वारा हानिकारक विकल्प के रूप में ई-सिगरेट का सक्रिय प्रचार प्रगति को कमज़ोर करता है।
      • ई-सिगरेट, उपयोगकर्त्ता और उसके आस-पास के लोग दोनों के लिये जोखिम उत्पन्न करती है, मूलतः आतंरिक वातावरण (indoor environments) में।
  • सेकेंड-हैंड स्मोकिंग: 
    • प्रतिवर्ष अनुमानित 8.7 मिलियन मौतें तंबाकू से संबंधित हैं, जबकि इसमें से 1.3 मिलियन मौतें  गैर-धूम्रपान करने वालों से संबंधित हैं, जो कि सेकेंड-हैंड/अप्रत्यक्ष स्मोकिंग के संपर्क में आने से प्रभावित हुए हैं।
    • हृदय रोग के कारण होने वाली लगभग 400,000 मौतों का कारण सेकेंड-हैंड स्मोकिंग है। इसके अलावा निष्क्रिय धूम्रपान बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिससे गंभीर अस्थमा, श्वसन पथ में संक्रमण और अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम (Sudden infant death syndrome- SIDS) की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
      • 20 वर्ष से कम उम्र के लगभग 51,000 बच्चों और किशोरों की मौत सेकेंड हैंड स्मोकिंग के संपर्क में आने से होती है।
  • तंबाकू नियंत्रण को लेकर भारत की प्रगति:
    • भारत तंबाकू उत्पादों पर स्वास्थ्य चेतावनी लेबल लागू करने और तंबाकू की लत को रोकने हेतु उपचार प्रदान करने में उत्कृष्ट है।
    • भारत में लगभग 85% सिगरेट पैकों पर आगे और पीछे दोनों तरफ स्वास्थ्य चेतावनियाँ लिखी होती हैं, जो चेतावनी लेबल आकार के मामले में देश को शीर्ष 10 में रखता है।
    • भारत ने ई-सिगरेट की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगाने के साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं तथा शैक्षणिक संस्थानों में धूम्रपान पर प्रतिबंध लगा दिया है।
    • बंगलूरू में सैकड़ों प्रवर्तन अभियानों, 'नो स्मोकिंग' साइन डिस्प्ले, धूम्रपान और सेकेंड-हैंड स्मोकिंग के धुएँ से उत्पन्न खतरों के बारे में व्यापक जागरूकता अभियानों के परिणामस्वरूप तंबाकू नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण प्रगति देखी गई है।
      • शहर द्वारा किये गए प्रयासों से सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान में 27% की सराहनीय कमी देखी गई है।

भारत में तंबाकू उपभोग/खपत की स्थिति: 

  • परिचय: 
    • ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे इंडिया, 2016-17 के अनुसार, भारत में लगभग 267 मिलियन वयस्क (15 वर्ष और उससे अधिक- सभी वयस्कों का 29%) तंबाकू का उपभोग करते हैं।
    • धुआँ रहित तंबाकू भारत में तंबाकू के उपयोग का सबसे प्रचलित रूप है।
    • यह भारत में कई बीमारियों और मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है और प्रत्येक वर्ष इससे लगभग 1.35 मिलियन लोगों की मौत होती है। भारत, तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और उत्पादक भी है।
  • सरकारी पहलें: 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

शहरी बाढ़

प्रिलिम्स के लिये:

शहरी बाढ़, वर्षा, ग्रामीण बाढ़, जल निकास प्रणाली, आर्द्रभूमि, जलवायु परिवर्तन, सीवेज और ठोस अपशिष्ट, अवैध खनन, नदी तट अपरदन

मेन्स के लिये:

शहरी बाढ़, कारण और नियंत्रण

चर्चा में क्यों?

कम अवधि में उच्च तीव्रता वाली वर्षा की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है, जो प्रमुखतः शहरी बाढ़ का कारण बनती हैं, अनियोजित विकास, प्राकृतिक जल निकायों पर दबाव और खराब जल निकासी प्रणाली के कारण स्थिति और भी जटिल हो गई है।

शहरी बाढ़:

  • परिचय: 
    • शहरी बाढ़ से तात्पर्य जलभराव के कारण एक निर्मित स्थान पर भूमि या संपत्ति के डूबने से है, यह विशेष रूप से अधिक घनी आबादी वाले शहरों में जल निकासी प्रणालियों की क्षमता से अधिक वर्षा का परिणाम है।
    • ग्रामीण बाढ़ (समतल या निचले इलाकों में भारी वर्षा) के विपरीत शहरी बाढ़ की स्थिति न केवल अधिक वर्षा के कारण उत्पन्न होती है, बल्कि इसका कारण अनियोजित शहरीकरण भी है, इसमें: 
      • बाढ़ की चरमता (Flood Peaks) को 1.8 से बढ़ाकर 8 गुना कर देता है।
      • बाढ़ की मात्रा को 6 गुना तक बढ़ा देता है।
  • कारण: 
    • जल निकासी प्रणालियों पर दबाव: भूमि की बढ़ती कीमतों और कम उपलब्धता के कारण निचले शहरी इलाकों में झीलों, आर्द्रभूमि और नदी तलों के दबाव के परिणामस्वरूप इस समस्या में वृद्धि हुई है।
      • इसके लिये सामान्यतः प्राकृतिक अपवाह तंत्र को चौड़ा करना आवश्यक है ताकि तूफानी जल के उच्च प्रवाह को समायोजित किया जा सके।
      • लेकिन वस्तुस्थिति इसके विपरीत है, इन प्राकृतिक अपवाह तंत्रों को चौड़ा करने के बजाय बड़े पैमाने पर इन पर अतिक्रमण कर लिया गया है। परिणामस्वरूप उनकी अपवाह क्षमता कम हो गई है, जिससे बाढ़ की स्थिति बनती है।
    • जलवायु परिवर्तन: इसके कारण निम्न अवधि में भारी वर्षा की आवृत्ति में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च जल अपवाह की स्थिति बनती है।
      • जब भी वर्षा-युक्त बादल अर्बन हीट आइलैंड के ऊपर से गुज़रते हैं तो वहाँ की गर्म हवा उन्हें ऊपर धकेल देती है, जिसके परिणामस्वरूप अत्यधिक स्थानीयकृत वर्षा होती है जो कभी-कभी उच्च तीव्रता के साथ भी हो सकती है।
    • अनियोजित पर्यटन गतिविधियाँ: पर्यटन विकास के लिये आकर्षण के रूप में जल निकायों का उपयोग लंबे समय से किया जाता रहा है। धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के दौरान नदियों तथा झीलों में गैर-जैव अपघटनीय पदार्थ फेंके जाने से जल की गुणवत्ता कम हो जाती है। 
      • बाढ़ की स्थिति में ये निलंबित कण और प्रदूषक शहरों में स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं।
      • उदाहरण के लिये केरल के कोल्लम में अष्टमुडी झील नावों से होने वाले तेल रिसाव से प्रदूषित हो गई है।
    • बिना पूर्व चेतावनी बाँधों से जल छोड़ना: बाँधों और झीलों से अनियोजित तरीके से और अचानक जल छोड़े जाने से भी शहरी क्षेत्र में बाढ़ आती है, जहाँ लोगों को बचाव उपाय के लिये पर्याप्त समय भी नहीं मिल पाता है।
      • उदाहरण के लिये चेंबरमबक्कम झील से जल छोड़े जाने के कारण वर्ष 2015 में चेन्नई में बाढ़ आई थी।
      • हथनीकुंड बैराज से यमुना नदी में छोड़े गए 2 लाख क्यूसेक जल के कारण जुलाई 2023 में दिल्ली में बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई थी।
    • अवैध खनन: भवन निर्माण में उपयोग के लिये नदी की रेत और क्वार्टजाइट के अवैध खनन के कारण नदियों एवं झीलों का प्राकृतिक तल नष्ट हो जाता है।
      • इस कारण मृदा अपरदन होता है और यह जल प्रवाह की गति एवं पैमाने में वृद्धि करते हुए जलाशय की जलधारण क्षमता को कम करता है।
      • उदाहरणत: जयसमंद झील- जोधपुर, कावेरी नदी- तमिलनाडु। 

शहरी बाढ़ के प्रभाव:

  • जीवन और संपत्ति की क्षति: 
    • शहरी बाढ़ प्रायः जीवन की क्षति और शारीरिक आघात का कारण बनती है। यह बाढ़ के प्रत्यक्ष प्रभाव अथवा बाढ़ की अवधि के दौरान फैलने वाले जलजनित रोगों के संक्रमण से होता है।
  • पारिस्थितिक प्रभाव:
    • बाढ़ की चरम घटनाओं के दौरान तेज़ गति से प्रवाहित बाढ़ के जल के कारण पेड़-पौधे बह जाते हैं और तटवर्ती इलाकों का कटाव होता है।
  • पशु और मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: 
    • स्थानीय इलाकों में जलजमाव और पेयजल के दूषित होने से विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जिससे महामारी की स्थिति उत्पन्न होने की संभावना बनी रहती है।
  • घरों में और उसके आसपास सीवेज एवं ठोस अपशिष्ट के जमा होने से भी कई तरह की बीमारियाँ फैलती हैं।
  • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: 
    • घर-बार का नुकसान और सगे-संबंधियों से बिछड़ने के कारण बाढ़ में फँसे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसी घटनाओं से उबरने की प्रक्रिया बोझिल और समय लेने वाली होती है जो प्रायः लंबे समय तक बने रहने वाले मनोवैज्ञानिक आघात की ओर ले जाती है।

नगरीय बाढ़ को कम करने हेतु सरकारी पहल: 

आगे की राह 

  • टिकाऊ नगरीय नियोजन प्रथाओं को लागू किया जाना चाहिये जो झंझाजल (Stormwater) को अवशोषित करने और प्रबंधित करने के लिये हरे-भरे स्थानों, तालाबों और पारगम्य सतहों को प्राथमिकता दें। बाढ़ संभावित क्षेत्रों में निर्माण से बचें और प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों को संरक्षित करें।
  • प्राकृतिक नालियों, झंझाजल चैनल्स (Stormwater Channels) और बाढ़-नियंत्रण प्रणालियों सहित जल निकासी बुनियादी ढाँचे के उन्नयन तथा विस्तार में निवेश करना चाहिये। प्रभावी जल प्रवाह सुनिश्चित करने के लिये नालियों का नियमित रखरखाव तथा सफाई आवश्यक है।
  • बाढ़-प्रवण क्षेत्रों की पहचान कर उनके मानचित्रण के साथ ही उचित बाढ़ प्रबंधन रणनीतियाँ विकसित करनी चाहिये। बाढ़ के खतरे को कम करने के लिये इन संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण एवं विकास को प्रतिबंधित करना चाहिये।
  • आसन्न बाढ़ के बारे में निवासियों को सचेत करने के लिये पूर्व चेतावनी प्रणाली की स्थापना और उसमें सुधार करना चाहिये। लोगों को स्थान खाली करने और आवश्यक सावधानी बरतने के लिये समय पर चेतावनियाँ जारी की जानी चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

असंगठित श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा बढ़ाना

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, ई-श्रम पोर्टल, असंगठित क्षेत्र

मेन्स के लिये:

भारत में असंगठित श्रमिक और संबंधित पहल

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय श्रम और रोज़गार राज्य मंत्री ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में असंगठित श्रमिकों हेतु सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में हुई महत्त्वपूर्ण प्रगति पर प्रकाश डाला।

  • असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के अनुरूप सरकार ने जीवन और विकलांगता कवरेज, स्वास्थ्य लाभ, मातृत्व सहायता तथा वृद्धावस्था सुरक्षा को कवर करते हुए कई कल्याणकारी कार्यक्रम तैयार किये हैं।
  • भारत में असंगठित श्रमिक कुल कार्यबल का लगभग 93% या लगभग 43.7 करोड़ हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 का उद्देश्य संगठित/असंगठित (या किसी अन्य) क्षेत्रों को विनियमित करना और विभिन्न संगठनों के सभी कर्मचारियों तथा श्रमिकों को बीमारी, मातृत्व, विकलांगता आदि के दौरान सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना है।

असंगठित श्रमिकों हेतु सामाजिक सुरक्षा से संबंधित विभिन्न पहल:

  • जीवन एवं दिव्यांगता कवर:
    • प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY): यह मात्र 436/ रुपए/प्रतिवर्ष के मामूली प्रीमियम भुगतान के साथ बीमित व्यक्तियों के लिये 2 लाख रुपए का लाइफ कवर (चाहे मृत्यु का कोई भी कारण हो) प्रदान करती है।
    • प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY): यह 18 से 70 वर्ष की आयु के लोगों (जिनका किसी बैंक/डाकघर में अकाउंट है) के लिये उपलब्ध है। मात्र 20 रुपए/प्रतिवर्ष के मामूली प्रीमियम भगतान के साथ यह आकस्मिक मृत्यु अथवा विकलांगता की स्थिति में 1 से 2 लाख रुपए तक का कवर प्रदान करती है।
      • देश भर में PMJJBY और PMSBY के तहत नामांकित लाभार्थियों की संख्या क्रमशः 16.92 करोड़ और 36.17 करोड़ से अधिक है। 
  • स्वास्थ्य एवं मातृत्व लाभ:
    • आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY): यह माध्यमिक और तृतीयक देखभाल हेतु भर्ती के लिये प्रति परिवार 5.00 लाख रुपए तक का स्वास्थ्य बीमा कवरेज सुनिश्चित करती है।
      • जुलाई 2023 तक देश भर में लगभग 24.19 करोड़ लाभार्थियों के आयुष्मान कार्ड बनाए जाने की पुष्टि की गई है।
  • वृद्ध जनों की सुरक्षा:
    • प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन (PM-SMY): इसकी शुरुआत वर्ष 2019 में की गई थी, इसके तहत 60 वर्ष अथवा उससे अधिक आयु के श्रमिकों (जिनकी मासिक आय 15000 रुपए या इससे कम हो) के लिये 3000/- रुपए प्रतिमाह की पेंशन राशि प्रदान की जाती है।
      • इसमें लाभार्थी और केंद्र सरकार दोनों का 50% मासिक योगदान होता है।
      • इसके तहत देश भर में लगभग 49.47 लाख लाभार्थियों को नामांकित किया गया है।
  • ई-श्रम पोर्टल:
    • यह श्रम और रोज़गार मंत्रालय द्वारा वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया था।
    • इसका उद्देश्य असंगठित श्रमिकों का एक व्यापक डेटाबेस तैयार करना है।
    • ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत (नाम, व्यवसाय, पता, शिक्षा, कौशल और पारिवारिक जानकारी का विवरण) श्रमिकों की संख्या लगभग 28.97 करोड़ है। 
  • असंगठित श्रमिकों के लिये अतिरिक्त योजनाएँ:

असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008:

  • यह अधिनियम असंगठित श्रमिकों को उन लोगों के रूप में परिभाषित करता है जो बिना किसी नियमित रोज़गार या सामाजिक सुरक्षा लाभ के अनौपचारिक क्षेत्र या घरों में काम करते हैं।
  • यह अधिनियम केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों को असंगठित श्रमिकों को विभिन्न सामाजिक सुरक्षा लाभ, जैसे- जीवन एवं विकलांगता सुविधा, स्वास्थ्य तथा मातृत्व लाभ, वृद्धावस्था सुरक्षा, शिक्षा, आवास आदि प्रदान करने के लिये योजनाएँ बनाने का अधिकार देता है।
  • यह अधिनियम असंगठित श्रमिकों के लिये एक राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड और राज्य सामाजिक सुरक्षा बोर्ड के गठन का भी प्रावधान करता है, जो योजनाओं के कार्यान्वयन हेतु सलाह देने के साथ उनकी निगरानी करेगा।
  • इस अधिनियम में ज़िला प्रशासन द्वारा असंगठित श्रमिकों का पंजीकरण और उन्हें पहचान पत्र जारी करने का प्रावधान है।
  • इस अधिनियम में सूचना प्रदान करने और योजनाओं तक पहुँच को सुविधाजनक बनाने हेतु श्रमिक सुविधा केंद्रों की स्थापना का भी प्रावधान है।

सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020:

  • इस संहिता का उद्देश्य संगठित/असंगठित (या किसी अन्य) क्षेत्रों को विनियमित करना और विभिन्न संगठनों के सभी कर्मचारियों एवं श्रमिकों को बीमारी, मातृत्व, विकलांगता आदि के दौरान सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना है।
  • इस संहिता को केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना के माध्यम से आकार-सीमा (size-threshold) के अधीन प्रतिष्ठानों पर लागू किया जा सकता है।
  • इसके तहत असंगठित श्रमिकों, गिग श्रमिकों और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिये जाएंगे।
  • इसमें असंगठित श्रमिकों, गिग श्रमिकों और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिये पंजीकरण का प्रावधान किया गया है।
  • इन श्रेणियों के श्रमिकों के लिये योजनाओं एवं उनकी निगरानी के लिये एक राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड की स्थापना की जाएगी।
  • गिग श्रमिकों और प्लेटफॉर्म श्रमिकों से संबंधित योजनाओं में प्रयोग होने वाली पूंजी/धन में केंद्र और राज्य सरकारों के अतिरिक्त एग्रीगेटर्स भी योगदान दे सकते हैं।
  • हालाँकि कुछ अपराधों के लिये इसमें न्यूनतम दंड का प्रावधान है, जिसमें निरीक्षकों के कार्य में बाधा डालना और गैर-कानूनी तरीके से भुगतान में कटौती करना शामिल है।
  • महामारी के दौरान केंद्र सरकार, नियोक्ता और कर्मचारियों के भुगतान [कर्मचारी राज्य बीमा (ESI) तथा भविष्य निधि (PF) के तहत] को तीन महीने के लिये स्थगित या कम कर सकती है।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

खान और खनिज (विकास तथा विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023

प्रिलिम्स के लिये:

खान और खनिज (विकास तथा विनियमन) अधिनियम, 1957, खनिज क्षेत्र, वर्ष 2070 तक का शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य

मेन्स के लिये:

खान और खनिज (विकास तथा विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023

चर्चा में क्यों?

राज्यसभा ने खान और खनिज (विकास तथा विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन करने के लिये खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023 पारित कर दिया है।

पृष्ठभूमि:

  • खान और खनिज (विकास तथा विनियमन) अधिनियम, 1957 में वर्ष 2015 संशोधन किया गया था, इसका उद्देश्य पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिये नीलामी-आधारित खनिज रियायत आवंटन शुरू करना, प्रभावित समुदायों के कल्याण के लिये ज़िला खनिज फाउंडेशन की स्थापना करना, अन्वेषण को बढ़ावा देने हेतु राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट (NMET) की स्थापना करना और अवैध खनन कर्त्ताओं हेतु सख्त दंड का प्रावधान करना था।
  • विशिष्ट आकस्मिक मुद्दों का निवारण करने के लिये इस अधिनियम में वर्ष 2016 और 2020 में संशोधन किये गए थे तथा इस क्षेत्र में सुधार लाने हेतु आखिरी बार इसमें वर्ष 2021 में संशोधन किया गया था।
  • हालाँकि खनिज क्षेत्र को विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण खनिजों (Critical Minerals) की खोज एवं खनन को बढ़ाने के लिये कुछ और सुधारों की आवश्यकता है जो देश के आर्थिक विकास तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं। 
  • महत्त्वपूर्ण खनिजों की उपलब्धता की कमी या कुछ भौगोलिक स्थानों में उनके निष्कर्षण या प्रसंस्करण की एकाग्रता के चलते आपूर्ति शृंखला कमज़ोर होने और यहाँ तक कि आपूर्ति में भी व्यवधान उत्पन्न हो सकता है। 
    • ऊर्जा परिवर्तन और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को देखते हुए महत्त्वपूर्ण खनिजों का महत्त्व बढ़ गया है।

विधेयक के अंतर्गत निम्नलिखित प्रावधान:

प्रमुख प्रावधान

MMDR अधिनियम 1957

MMDR संशोधन विधेयक

परमाणु खनिजों के खनन के लिये निजी क्षेत्र

अधिनियम केवल राज्य एजेंसियों को लिथियम, बेरिलियम, नाइओबियम, टाइटेनियम, टैंटलम और ज़िरकोनियम जैसे परमाणु खनिजों की खोज की अनुमति देता है।

विधेयक निजी क्षेत्र को 12 परमाणु खनिजों में से छह जैसे- लिथियम, बेरिलियम, नाइओबियम, टाइटेनियम, टैंटलम और ज़िरकोनियम के खनन की अनुमति देता है।

जब यह एक अधिनियम बन जाएगा तो केंद्र के पास सोना, चाँदी, ताँबा, जस्ता, सीसा, निकल आदि जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये खनन पट्टे और मिश्रित लाइसेंस की नीलामी करने की शक्ति होगी।

अन्वेषण लाइसेंस की नीलामी

अन्वेषण लाइसेंस राज्य सरकार द्वारा प्रतिस्पर्द्धी आदेश के माध्यम से प्रदान किया जाएगा

केंद्र सरकार इस प्रावधान के माध्यम से अन्वेषण लाइसेंस की नीलामी के तरीके, नियम और शर्तें निर्धारित करेगी।

अधिकतम क्षेत्र जिसमें गतिविधियों की अनुमति है

अधिनियम के तहत एक संभावित लाइसेंस (Prospecting Licence) 25 वर्ग किलोमीटर तक के क्षेत्र में गतिविधियों की अनुमति देता है जबकि एक एकल सर्वेक्षण परमिट (Single Reconnaissance Permit) 5,000 वर्ग किलोमीटर तक के क्षेत्र में गतिविधियों की अनुमति देता है। 

यह अधिनियम 1,000 वर्ग किलोमीटर तक के क्षेत्र में एकल अन्वेषण लाइसेंस के तहत गतिविधियों की अनुमति प्रदान करता है। हालाँकि प्रथम तीन वर्ष के पश्चात् लाइसेंसधारी को मूल रूप से आवंटित क्षेत्र का 25% अपने पास बनाए रखने की अनुमति होगी। 

अन्वेषण लाइसेंस हेतु प्रोत्साहन

यदि अन्वेषण के पश्चात् संसाधन पाए जाते हैं, तो राज्य सरकार को अन्वेषण लाइसेंसधारी द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत करने के छह माह के भीतर खनन पट्टे की नीलामी आयोजित करनी होगी। लाइसेंसधारक को सरकार द्वारा संभावित खनिज की नीलामी मूल्य में से एक हिस्सा दिया जाएगा।

भारत में खनन क्षेत्र परिदृश्य:

  • विनिर्माण की रीढ़:
    • खनन उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो विनिर्माण और बुनियादी ढाँचा क्षेत्र के लिये रीढ़ की हड्डी के रूप में कार्य करता है।
    • खान मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2021-22 के दौरान खनिज उत्पादन (परमाणु और ईंधन खनिजों को छोड़कर) का कुल मूल्य 2,11,857 करोड़ रुपए था।
  • संभावनाएँ:
    • भारत लौह अयस्क उत्पादन के मामले में विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है और वर्ष 2021 तक विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक रहा।
      • भारत में संयुक्त एल्युमीनियम उत्पादन (प्राथमिक और द्वितीयक) वित्त वर्ष 2011 में 4.1 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष रहा, यह विश्व में दूसरा सबसे बड़ा संयुक्त एल्युमीनियम उत्पादक बन गया।
    • वर्ष 2023 में भारत में विस्तारित विद्युतीकरण और समग्र आर्थिक विकास के कारण खनिज की मांग 3% बढ़ने की संभावना है।
      • भारत इस्पात और एल्युमीनियम में उत्पादन और रूपांतरण लागत में उचित लाभ रखता है। इसका रणनीतिक स्थान निर्यात के अवसरों को विकसित करने के साथ-साथ तेज़ी से विकसित होने वाले एशियाई बाज़ारों को भी सक्षम बनाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देते हैं। विवेचना कीजिये। (2021)

प्रश्न. "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद, कोयला खनन विकास के लिये अभी भी अपरिहार्य है।" विवेचना कीजिये। (2017)

स्रोत: पी.आई.बी.


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