अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-बांग्लादेश वाणिज्यिक रेलवे लिंक की बहाली
प्रिलिम्स के लियेबांग्लादेश मुक्ति युद्ध, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन मेन्स के लियेभारत-बांग्लादेश वाणिज्यिक रेलवे लिंक का महत्त्व, भारत-बांग्लादेश संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और बांग्लादेश के बीच 50 वर्षों से अधिक समय से बंद पड़े हल्दीबाड़ी - चिलाहाटी रेलवे मार्ग की बहाली के माध्यम से मालगाड़ियों का नियमित संचालन शुरू किया गया, जो दोनों देशों के बीच रेलवे संपर्क और द्विपक्षीय व्यापार को मज़बूत करेगा।
- हल्दीबाड़ी-चिलाहाटी रेल लिंक एक ऐसा मार्ग है जो वर्ष 1965 तक संचालन में था।
- वर्ष 2021 के समाप्ति तक अगरतला-अखौरा के बीच एक और रेल लिंक का संचालन किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- 1947 में विभाजन के बाद 1965 तक भारत और बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) के मध्य सात रेलवे लिंक संचालित थे।
- वर्तमान में बांग्लादेश और भारत के बीच पाँच रेलवे लिंक संचालित हैं।
- ये हैं- पेट्रापोल (भारत) – बेनापोल (बांग्लादेश), गेदे (भारत) – दर्शन (बांग्लादेश), सिंहाबाद (भारत) -रोहनपुर (बांग्लादेश), राधिकापुर (भारत) – बिरोल (बांग्लादेश), हल्दीबाड़ी (भारत) -चिलाहाटी (बांग्लादेश)।
महत्त्व :
- हल्दीबाड़ी-चिलाहाटी मार्ग से बांग्लादेश से असम और पश्चिम बंगाल की कनेक्टिविटी को बढ़ावा मिलने की अपेक्षा है।
- यह क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिये क्षेत्रीय व्यापार में वृद्धि का समर्थन करने हेतु मुख्य बंदरगाहों एवं शुष्क बंदरगाहों तक रेल नेटवर्क पहुँच को बढ़ाएगा।
- इस रूट पर पैसेंजर ट्रेनों की योजना बनने से दोनों देशों के आम लोग और कारोबारी वस्तु और यात्री यातायात दोनों का लाभ उठा सकेंगे।
- इस नए रेल लिंक से इन दक्षिण एशियाई देशों की आर्थिक गतिविधियों (पर्यटक गतिविधियों सहित) को भी लाभ होगा।
- 75 किलोमीटर लंबा ट्रैक देश के बाकी हिस्सों को सिलीगुड़ी कॉरिडोर के साथ बेहतर ढंग से एकीकृत करने में मदद करेगा, जिसे 'चिकन नेक'(Chicken's Neck) भी कहा जाता है।
- यह कोरिडोर भारत को उत्तर-पूर्वी राज्यों से जोड़ता है, जहाँ हाल ही में चीन के एक अन्य पड़ोसी देश के साथ संघर्ष देखा गया।
भारत-बांग्लादेश संबंध
ऐतिहासिक संबंध:
- 50 साल पूर्व वर्ष 1971 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध ने भारत की जीत का समर्थन किया था क्योंकि एक नए राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश के गठन का भारत द्वारा नेतृत्व किया गया था।
रक्षा सहयोग:
- संयुक्त अभ्यास:
- सीमा प्रबंधन: भारत और बांग्लादेश कुल 4096.7 किमी. लंबी सीमा साझा करते हैं, यह सबसे लंबी भूमि सीमा है जिसे भारत अपने किसी पड़ोसी के साथ साझा करता है।
आर्थिक संबंध:
- बांग्लादेश उपमहाद्वीप में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश है। वर्ष 2019-20 में दोनों देशों के मध्य कुल द्विपक्षीय व्यापार 9.5 बिलियन डॉलर का रहा है, जो वित्त वर्ष 2018-19 की तुलना में 10 बिलियन डॉलर से अधिक रहा।
- भारत द्वारा बांग्लादेश को होने वाला कुल निर्यात द्विपक्षीय व्यापार का 85% से अधिक है।
- दिसंबर 2020 में द्विपक्षीय व्यापार सहयोग को और बढ़ावा देने के लिये भारत-बांग्लादेश सीईओ फोरम (India-Bangladesh CEO’s Forum) को शुरू किया गया।
- बांग्लादेश ने वर्ष 2011 से दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) के तहत भारत द्वारा बांग्लादेशी निर्यात को दिये गए शुल्क-मुक्त और कोटा मुक्त पहुंँच की सराहना की है।
कनेक्टिविटी में सहयोग:
- मार्च 2021 में मैत्री सेतु का उद्घाटन किया गया, 1.9 किलोमीटर लंबा यह पुल सबरूम (त्रिपुरा में) को रामगढ़ (बांग्लादेश में) के साथ जोड़ता है।
- अंतर्देशीय जल पारगमन एवं व्यापार प्रोटोकॉल (PIWTT)।
- बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) मोटर वाहन समझौते को अमल में लाया जाना है।
बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग:
- दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC)
- बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC)
- हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA)
अन्य विकास:
- लाइन ऑफ क्रेडिट:
- भारत ने सड़क, रेलवे, शिपिंग और बंदरगाहों सहित विभिन्न क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु पिछले 8 वर्षों में बांग्लादेश को 3 लाइन ऑफ क्रेडिट्स (LOCs) प्रदान किये हैं, जिसकी राशि 8 बिलियन डॉलर है।
- कोविड-19:
- बांग्लादेश भारत में निर्मित कोविड-19 वैक्सीन खुराक का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता (कुल आपूर्ति का 16%) है।
- भारत द्वारा चिकित्सा विज्ञान तथा वैक्सीन उत्पादन के क्षेत्र में भी सहयोग की पेशकश की गई है।
उभरते मुद्दे:
- बांग्लादेश द्वारा पहले ही असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC), असम में रहने वाले वास्तविक भारतीय नागरिकों की पहचान करने और अवैध बांग्लादेशियों को बाहर निकालने के लिये एक अभ्यास, को लागू करने पर चिंता व्यक्त की गई है।
- वर्तमान में बांग्लादेश बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक सक्रिय भागीदार है, जिस पर दिल्ली ने हस्ताक्षर नहीं किये हैं।
- सुरक्षा क्षेत्र में बांग्लादेश पनडुब्बियों सहित चीनी सैन्य हथियारों का एक प्रमुख प्राप्तकर्त्ता है।
आगे की राह:
- पानी के बँटवारे से संबंधित लंबित मुद्दों को सुलझाने के प्रयास होने चाहिये, साथ ही बंगाल की खाड़ी में महाद्वीपीय शेल्फ मुद्दों को हल करने, सीमा पर होने वाली घटनाओं को शून्य स्तर पर लाने और मीडिया का प्रबंधन करने पर दोनों देशों को ध्यान देना चाहिये।
- संस्कृति, संगीत, खेल, फिल्म जैसे क्षेत्रों के आधार पर युवा उद्यमियों और नागरिक समाज के बीच नियमित आदान-प्रदान एवं सतत् विकास, मानव पूंजी विकास, लैंगिक समानता तथा अन्य क्षेत्रों में सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने की आवश्यकता है।
- दोनों ओर से चुनिंदा सीमावर्ती स्थानों पर पर्यटकों के आवागमन को बढ़ाना और सीमा पर एक साझा मनोरंजन क्षेत्र के निर्माण के माध्यम से आदान-प्रदान की व्यवस्था को सुविधाजनक बनाने से सौहार्द को मज़बूत करने में मदद मिल सकती है।
- साझा सीमाओं पर सुरक्षा के नए प्रतिमान की दिशा में संयुक्त रूप से काम करने की आवश्यकता है। एक ऐसा प्रतिमान जो सीमाओं को न केवल मात्र रेखा के रूप में राष्ट्रीय सीमाओं का सीमांकन करता है बल्कि समावेशी विकास और समृद्धि के लिये "कनेक्टर ज़ोंन" के तौर पर कार्य करता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
सीमा पर तनाव कम करने हेतु सहमत हुए भारत-चीन
प्रिलिम्स के लिये:पेट्रोलिंग प्वाइंट 15 और 17A, हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा पोस्ट, पैंगोंग त्सो झील, गलवान घाटी, चांग चेनमो नदी, कोंगका पास मेन्स के लिये:भारत-चीन विवाद |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पूर्वी लद्दाख में गतिरोध को हल करने के लिये भारत और चीन के वरिष्ठ सैन्य कमांडरों के बीच 12वें दौर की चर्चा हुई जिसमें दोनों ने सीमा पर तनाव कम करने हेतु सैद्धांतिक रूप से पूर्वी लद्दाख में एक प्रमुख गश्ती बिंदु पर अलगाव की सहमति व्यक्त की है।
- 11वीं कोर कमांडर स्तर की वार्ता अप्रैल 2021 में हुई थी जब दोनों पक्ष एक संयुक्त बयान पर भी सहमत नहीं हो पाए थे।
प्रमुख बिंदु
वर्तमान अलगाव:
- भारत और चीन की सेना के मध्य पेट्रोलिंग प्वाइंट (PP) 17A (गोगरा पोस्ट) पर समझौता हो गया था लेकिन चीन PP15 (हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र) से पीछे हटने को इच्छुक नहीं है; वह इस बात पर ज़ोर देता है कि यह क्षेत्र उसकी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के अधीन है।
- PP17A में अलगाव की उस प्रक्रिया का पालन करने की संभावना है जिसे PP14 के लिये गलवान घाटी और पैंगोंग त्सो में अपनाया गया था, जहाँ वापसी के लिये एक समय-सीमा निर्धारित की गई थी।
- दोनों पक्ष मौजूदा समझौतों और प्रोटोकॉल के अनुसार इन शेष मुद्दों को शीघ्रता से हल करने तथा बातचीत एवं वार्ता की गति को बनाए रखने पर सहमत हुए।
- वे इस बात पर भी सहमत हुए कि अंतरिम तौर पर वे पश्चिमी क्षेत्र में एलएसी के साथ स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये अपने प्रभावी प्रयास जारी रखेंगे और संयुक्त रूप से शांति बनाए रखेंगे।
पेट्रोलिंग प्वाइंट 15 और 17A:
- भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के साथ भारतीय सेना को कुछ ऐसे स्थान दिये गए हैं, जहाँ इसके सैनिकों की पहुँच अपने नियंत्रण वाले क्षेत्र में गश्त करने तक है।
- इन पॉइंट्स को पेट्रोलिंग प्वाइंट या PP के रूप में जाना जाता है और इनका निर्धारण चीन स्टडी ग्रुप (CAG) द्वारा तय किया जाता है।
- CSG की स्थापना वर्ष 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काल के दौरान हुई थी और यह चीन के संदर्भ में निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था हैं।
- डेपसांग मैदानों जैसे कुछ क्षेत्रों को छोड़कर, ये पेट्रोलिंग प्वाइंट LAC पर ही स्थित हैं और सैनिक इन बिंदुओं तक पहुँच कर क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित करते हैं।
- यह एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है क्योंकि भारत और चीन के बीच की सीमा अभी तक आधिकारिक रूप से सीमांकित नहीं हुई है।
- LAC वह सीमांकन है जो भारत-नियंत्रित क्षेत्र को चीन-नियंत्रित क्षेत्र से अलग करता है।
- PP15 और PP17A, वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ लद्दाख में स्थित 65 पेट्रोलिंग पॉइंट्स में से दो हैं।
- ये दोनों पॉइंट्स ऐसे क्षेत्र में हैं जहाँ भारत और चीन LAC के संरेखण पर काफी हद तक सहमत हैं।
- PP15 हॉट स्प्रिंग्स के रूप में पहचाने जाने वाले क्षेत्र में स्थित है, जबकि PP17A गोगरा पोस्ट नामक क्षेत्र के पास है।
हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा पोस्ट की अवस्थिति:
- हॉट स्प्रिंग्स चांग चेनमो (Chang Chenmo) नदी के उत्तर में है और गोगरा पोस्ट इस नदी के गलवान घाटी से दक्षिण-पूर्व दिशा से दक्षिण-पश्चिम की ओर मुड़ने पर बने हेयरपिन मोड़ (Hairpin Bend) के पूर्व में है।
- यह क्षेत्र काराकोरम श्रेणी (Karakoram Range) के उत्तर में है जो पैंगोंग त्सो (Pangong Tso) झील के उत्तर में और गलवान घाटी के दक्षिण में स्थित है।
हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा पोस्ट का महत्त्व:
- यह क्षेत्र कोंग्का दर्रे (Kongka Pass) के पास है जो चीन के अनुसार भारत और चीन के बीच की सीमा को चिह्नित करता है।
- भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा का दावा पूर्व की ओर अधिक है, क्योंकि इसमें पूरा अक्साई चिन (Aksai Chin) का क्षेत्र भी शामिल है।
- हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा पोस्ट, चीन के दो सबसे अशांत प्रांतों (शिनजियांग और तिब्बत) की सीमा के करीब हैं।
प्रमुख घर्षण बिंदु:
- PP15 व PP17A के अलावा गलवान घाटी (Galwan Valley) में PP14 और पैंगोंग त्सो (Pangong Tso) के उत्तरी तट पर फिंगर 4 तथा चांग चेनमो नदी (Chang Chenmo River) के दक्षिणी तट पर रेजांग ला एवं रेचिन ला (Rezang La and Rechin La) को घर्षण बिंदुओं के रूप में पहचाना गया है।
पैंगोंग त्सो झील (Pangong Tso lake):
- पैंगोंग झील केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में स्थित है।
- यह लगभग 4,350 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और विश्व की सबसे ऊँची खारे पानी की झील है।
- लगभग 160 किमी. तक फैली पैंगोंग झील का एक-तिहाई हिस्सा भारत में और अन्य दो-तिहाई चीन में स्थित है।
गलवान घाटी (Galwan Valley):
- गलवान घाटी सामान्यतः उस भूमि को संदर्भित करती है, जो गलवान नदी (Galwan River) के पास मौजूद पहाड़ियों के बीच स्थित है।
- गलवान नदी का स्रोत चीन की ओर अक्साई चिन में मौजूद है और आगे चलकर यह भारत की श्योक नदी (Shyok River) से मिलती है।
- घाटी रणनीतिक रूप से पश्चिम में लद्दाख और पूर्व में अक्साई चिन के बीच स्थित है, जो वर्तमान में चीन द्वारा अपने झिंजियांग उइघुर स्वायत्त क्षेत्र के हिस्से के रूप में नियंत्रित है।
चांग चेनमो नदी (Chang Chenmo River):
- चांग चेनमो नदी या चांगचेनमो नदी श्योक नदी की एक सहायक नदी है, जो सिंधु नदी प्रणाली का हिस्सा है।
- यह विवादित अक्साई चिन क्षेत्र के दक्षिणी किनारे और पैंगोंग झील बेसिन के उत्तर में है।
- चांग चेन्मो का स्रोत लनक दर्रे के पास है।
कोंगका पास (Kongka Pass):
- कोंगका दर्रा या कोंगका ला एक पहाड़ी के ऊपर एक निचला पहाड़ी दर्रा है जो चांग चेन्मो घाटी में प्रवेश करता है। यह लद्दाख में विवादित भारत-चीन सीमा क्षेत्र में है।
काराकोरम रेंज (Karakoram Range):
- इसे कृष्णागिरी के नाम से भी जाना जाता है जो ट्रांस-हिमालयी पर्वतमाला की सबसे उत्तरी सीमा में स्थित है। यह अफगानिस्तान और चीन के साथ भारत की सीमाएँ बनाता है।
- यह पामीर से पूर्व की ओर लगभग 800 किमी. तक फैला हुआ है। यह ऊँची चोटियों [ऊँचाई 5,500 मीटर और उससे अधिक] वाली एक श्रेणी है ।
- कुछ चोटियाँ समुद्र तल से 8,000 मीटर से अधिक ऊँची हैं। K2 (8,611 मीटर) [गॉडविन ऑस्टेन या क्यूगीर] विश्व की दूसरी सबसे ऊँची चोटी है और भारतीय संघ की सबसे ऊँची चोटी है।
- लद्दाख का पठार काराकोरम रेंज के उत्तर-पूर्व में स्थित है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
स्काईग्लो: प्रकाश प्रदूषण
प्रिलिम्स के लिये:प्रकाश प्रदूषण, स्काईग्लो मेन्स के लिये:प्रकाश प्रदूषण के घटक, प्रभाव कारण |
चर्चा में क्यों?
हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि बीटल जैसे कीट जो अपने कम्पास के रूप में आकाशगंगा की प्राकृतिक चमक पर निर्भर थे, स्काईग्लो (प्रकाश प्रदूषण के परिणामस्वरूप किसी क्षेत्र में रात के दौरान आकाश में चमक) के कारण पृथ्वी की कृत्रिम रोशनी पर निर्भर हैं।
प्रमुख बिंदु
स्काईग्लो के बारे में:
- स्काईग्लो शहरों में और उनके आस-पास रात के समय आकाश में प्रकाश की एक सर्वव्यापी चादर है जो सबसे चमकीले सितारों को छोड़कर सभी को अवरुद्ध कर सकती है।
- रात के समय रिहायशी इलाकों में आसमान का चमकना स्ट्रीट लाइट, सुरक्षित फ्लडलाइट और बाहरी सजावटी रोशनी स्काईग्लो का कारण बनता है।
- यह प्रकाश सीधे रात्रिचर (रात में सक्रिय जीव) की आँखों में जाता है तथा उन्हें मार्ग से भटकाने का कार्य करता है।
- स्काईग्लो' प्रकाश प्रदूषण के घटकों में से एक है।
प्रकाश प्रदूषण:
- प्रकाश प्रदूषण के बारे में:
- कृत्रिम प्रकाश का अनुचित या अत्यधिक उपयोग- जिसे प्रकाश प्रदूषण (Light Pollution- LP) के रूप में जाना जाता है, के मानव, वन्य जीवन और जलवायु के लिये गंभीर पर्यावरणीय परिणाम हो सकते हैं।
- प्रकाश प्रदूषण के घटकों में शामिल हैं:
- चकाचौंध (Glare): अत्यधिक चमक जो दृश्यता में अवरोध का कारण बनती है।
- स्काईग्लो (Skyglow): रिहायशी इलाकों में रात में आसमान का चमकना।
- प्रकाश अतिचार (Light Trespass): प्रकाश का उस स्थान पर गिरना जहांँ इसकी आवश्यकता नहीं हो।
- अव्यवस्थित (Clutter): प्रकाश स्रोतों का चमकीला, भ्रमित और अत्यधिक समूह।
- कारण:
- LP औद्योगीकरण का एक साइड इफेक्ट है।
- इसके स्रोतों में इमारतों की बाहरी और आंतरिक प्रकाश व्यवस्था, विज्ञापन, वाणिज्यिक संपत्तियों, कार्यालयों, कारखानों, स्ट्रीटलाइट्स तथा खेल स्थलों का निर्माण शामिल है।
- प्रभाव:
- ऊर्जा और धन की बर्बादी:
- जब प्रकाश बहुत अधिक मात्रा में उत्सर्जित होता है या जब और जहांँ इसकी आवश्यकता नहीं होती है, उन स्थानों पर इसकी चमक बेकार है। ऊर्जा की बर्बादी में के भारी आर्थिक व पर्यावरणीय परिणाम होते हैं।
- पारिस्थितिकी तंत्र और वन्य जीवन को बाधित करना:
- प्रजनन, पोषण, नींद और शिकारियों से सुरक्षा जैसे जीवन-निर्वाह व्यवहारों को नियंत्रित करने हेतु पौधे व जानवर पृथ्वी पर दिन एवं रात के प्रकाश दैनिक चक्र पर निर्भर करते हैं।
- वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि रात में कृत्रिम प्रकाश उभयचरों, पक्षियों, स्तनधारियों, कीड़ों और पौधों सहित कई जीवों पर नकारात्मक एवं घातक प्रभाव डालता है।
- उदाहरण: एक अध्ययन से पता चला है कि कैसे रात्रिचर गोबर भृंग (Dung Beetles) रात्रिकालीन प्राकृतिक प्रकाश से मार्गनिर्देश न प्राप्त कर पाने की स्थिति में अपने आस-पास के वातावरण में संकेतों की खोज करने के लिये मजबूर होते हैं।
- मानव स्वास्थ्य को नुकसान:
- पृथ्वी पर अधिकांश जीवों की तरह मनुष्य एक सर्कैडियन विधि का पालन करते हैं जिसे हम जैविक घड़ी या दिन-रात चक्र द्वारा शासित नींद-जागने के एक पैटर्न के रूप में उपयोग करते हैं। रात में कृत्रिम प्रकाश उस चक्र को बाधित कर सकता है।
- ऊर्जा और धन की बर्बादी:
समाधान:
- जानवरों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रकाश प्रदूषण के अनुभव को कम करने के लिये एक उल्लेखनीय सरल उपाय है: रात में अनावश्यक प्रकाश बंद कर दें।
- जहाँ रोशनी को बंद नहीं किया जा सकता है, उन्हें संरक्षित किया जा सकता है ताकि वे आसपास के वातावरण और आकाश में प्रकाश का उत्सर्जन न करें।
- इंटरनेशनल डार्क-स्काईज़ एसोसिएशन ने 130 से अधिक 'इंटरनेशनल डार्क स्काई प्लेसेस' को प्रमाणित किया है, जहाँ कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था को स्काईग्लो और प्रकाश अतिचार को कम करने के लिये समायोजित किया गया है। हालाँकि लगभग सभी उत्तरी गोलार्ध में स्थित विकसित देशों में पाए जाते हैं।
- कम विकसित क्षेत्र अक्सर दोनों प्रजातियों के लिये समृद्ध होते हैं और वर्तमान में जहाँ के प्रकाश कम प्रदूषणकारी होते हैं, जिससे जानवरों को गंभीर रूप से प्रभावित होने से पूर्व प्रकाश जैसी समस्याओं के समाधान में निवेश करने का अवसर मिलता है।
स्रोत : डाउन टू अर्थ
भारतीय समाज
हलाम उप-जनजाति संघर्ष
प्रिलिम्स के लियेहलाम उप-जनजाति, ब्रू शरणार्थी, विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह मेन्स के लियेहलाम उप-जनजाति संघर्ष एवं संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
उत्तरी त्रिपुरा में ब्रू शरणार्थियों के साथ संघर्ष के बाद असम में शरण लेने वाले हलाम (Halam) उप-जनजातियों के लोग त्रिपुरा के उत्तरी ज़िले में अपने गाँव दामचेरा वापस लौट रहे हैं।
- मिज़ोरम में जातीय संघर्ष से बचने के लिये ब्रू शरणार्थी 1997 में त्रिपुरा आए और उत्तरी त्रिपुरा ज़िले के छह राहत शिविरों में रहने लगे।
प्रमुख बिंदु
हलाम (Halam) उप-जनजाति:
- जातीय रूप से हलाम समुदाय (त्रिपुरा में अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत) तिब्बती-बर्मी जातीय समूह की कुकी-चिन जनजातियों से संबंधित हैं।
- उनकी भाषा भी कमोबेश तिब्बती-बर्मन समुदाय से मिलती-जुलती है।
- हलाम को मिला कुकी (Mila Kuki) के रूप में भी जाना जाता है, हालाँकि वे भाषा, संस्कृति और जीवनशैली के संदर्भ में कुकी से काफी अलग हैं अर्थात् इनकी संस्कृति कुकी से मेल नहीं खाती है।
- हलाम कई उप-कुलों में विभाजित हैं जिन्हें "बरकी-हलाम" (Barki-Halam) कहा जाता है।
- हलाम के प्रमुख उप-कुलों में कोलोई, कोरबोंग, काइपेंग, बोंग, साकचेप, थांगचेप, मोलसोम, रूपिनी, रंगखोल, चोराई, लंकाई, कैरेंग (डारलोंग), रंगलोंग, मार्चफांग और सैहमर हैं।
- 2011 की जनगणना के अनुसार, उनकी कुल जनसंख्या 57,210 है तथा यह संपूर्ण राज्य में पाए जाते है।
- हलाम विशिष्ट प्रकार के "टोंग घर" (Tong Ghar) में रहते हैं जो विशेष रूप से बाँस और चान घास से बने होते हैं। मैदानी क्षेत्रों में खेती के अतिरिक्त वे अभी भी झूम खेती करते हैं तथा अन्य वैकल्पिक कार्यों के अलावा दोनों गतिविधियों पर निर्भर हैं।
ब्रू शरणार्थी:
- ब्रू या रियांग पूर्वोत्तर भारत का एक क्षेत्रीय/स्वदेशी समुदाय है, जो अधिकतर त्रिपुरा, मिज़ोरम और असम में रहते हैं। त्रिपुरा में उन्हें विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- मिज़ोरम में उन्हें उन समूहों द्वारा निशाना बनाया गया है जो उन्हें राज्य के लिये स्वदेशी नहीं मानते हैं।
- 1997 में जातीय संघर्षों के बाद लगभग 37,000 ब्रू मिज़ोरम के ममित, कोलासिब और लुंगलेई ज़िलों से भाग गए तथा उन्हें त्रिपुरा में राहत शिविरों में ठहराया गया।
- मिज़ोरम के साथ अंतर्राज्यीय सीमा से पहले दमचेरा त्रिपुरा का आखिरी गाँव है।
- तब से लेकर आज तक प्रत्यावर्तन के आठ चरणों में 5,000 लोग मिज़ोरम लौट आए हैं, जबकि 32,000 अभी भी उत्तरी त्रिपुरा में छह राहत शिविरों में रहते हैं।
- जून 2018 में, ब्रू शिविरों के सामुदायिक नेताओं ने मिज़ोरम में प्रत्यावर्तन के लिये केंद्र और दो राज्य सरकारों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये लेकिन शिविर में रहने वाले अधिकांश लोगों ने समझौते की शर्तों को खारिज कर दिया।
- जनवरी 2020 में केंद्र, मिज़ोरम और त्रिपुरा की सरकारों तथा ब्रू संगठनों के नेताओं ने एक चतुर्पक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- समझौते के तहत गृह मंत्रालय ने त्रिपुरा में इनके बंदोबस्त का पूरा खर्च वहन करने की प्रतिबद्धता जताई है।
- इस समझौते के तहत प्रत्येक विस्थापित ब्रू परिवार के लिये निम्नलिखित व्यवस्था की गई है-
- समझौते के तहत विस्थापित परिवारों को आवासीय प्लाॅट दिया जाएगा, इसके साथ ही हर परिवार को 4 लाख रुपए फिक्स्ड डिपाॅजिट के रूप दिये जाएंगे।
- पुनर्वास सहायता के रूप में परिवारों को दो वर्षों तक प्रतिमाह 5 हज़ार रुपए और निःशुल्क राशन प्रदान किया जाएगा।
- साथ ही प्रत्येक विस्थापित परिवार को घर बनाने के लिये 1.5 लाख रुपए की नकद सहायता भी दी जाएगी।
संबंधित मुद्ददे:
- पूर्वोत्तर में न केवल "स्वदेशी" एवं “अधिवासी (Settlers)" के बीच बल्कि अंतर-जनजातियों के बीच जातीय संघर्षों का इतिहास रहा है और एक ही जनजाति में छोटे उप-समूहों के भीतर भी मुद्दे उठ सकते हैं।
- त्रिपुरा में ब्रू जनजाति के लोगों को बसाने का निर्णय से उनकी नागरिकता का सवाल भी उठ सकता है, विशेष रूप से असम में जहाँ यह परिभाषित करने की प्रक्रिया चल रही है कि कौन स्वदेशी है और कौन नहीं।
- ब्रू शरणार्थियों को लेकर यह कदम नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के तहत विदेशियों के निपटान को भी वैध बनाता है, जिससे स्वदेशी लोगों सहित पहले से बसे समुदायों के साथ संघर्ष उत्पन्न हो सकता है।
- इससे त्रिपुरा में बसे अन्य समुदायों के लिये जगह और राजस्व की हानि भी हो सकती है।
- इसके अलावा असम-मिज़ोरम सीमा पर हालिया हिंसक झड़प के बाद अंतर-राज्यीय सीमा विवाद नए सिरे से सामने आए हैं।
आगे की राह:
- ब्रू की वर्तमान स्थितियों को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि चतुर्पक्षीय समझौते को अक्षरशः लागू किया जाए।
- हालाँकि वह समझौता जो त्रिपुरा में ब्रू शरणार्थियों के पुनर्वास का प्रावधान करता है, उसे गैर-ब्रू लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए लागू किया जाना चाहिये ताकि ब्रू और गैर-ब्रू समुदायों के बीच कोई संघर्ष न हो।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
‘फूड फोर्टिफिकेशन’ के प्रतिकूल प्रभाव
प्रिलिम्स के लिये:आकांक्षी ज़िले, फूड फोर्टिफिकेशन, समेकित बाल विकास सेवा, मध्याह्न भोजन योजना मेन्स के लिये:फूड फोर्टिफिकेशन’ के प्रतिकूल प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैज्ञानिकों एवं कार्यकर्त्ताओं के एक समूह ने भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) को स्वास्थ्य तथा आजीविका पर ‘फूड फोर्टिफिकेशन’ के प्रतिकूल प्रभावों के संबंध में चेतावनी दी है।
- यह विटामिन और खनिजों के साथ चावल एवं खाद्य तेलों को अनिवार्य रूप से फोर्टिफाइड करने की केंद्र की योजना के खिलाफ है।
- एनीमिया और कुपोषण से लड़ने के लिये सरकार वर्ष 2021 से देश भर में समेकित बाल विकास सेवाओं एवं मध्याह्न भोजन योजना के माध्यम से फोर्टिफाइड चावल वितरित करने की योजना बना रही है, जिसमें आकांक्षी ज़िलों पर विशेष ध्यान दिया गया है।
प्रमुख बिंदु
अनिर्णायक साक्ष्य:
- फोर्टिफिकेशन का समर्थन करने वाले साक्ष्य अनिर्णायक हैं और निश्चित रूप से प्रमुख राष्ट्रीय नीतियों को लागू करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
- फोर्टिफिकेशन को बढ़ावा देने के लिये FSSAI जिन अध्ययनों पर निर्भर है। वे खाद्य कंपनियों द्वारा प्रायोजित हैं, जो इससे लाभान्वित होंगीं तथा हितों का टकराव होगा।
हाइपरविटामिनोसिस:
- मेडिकल जर्नल ‘लैंसेट’ और ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन’ में प्रकाशित हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि एनीमिया तथा विटामिन ए की कमी दोनों का निदान अधिक होता है, जिसका अर्थ है कि अनिवार्य फोर्टिफिकेशन से ‘हाइपरविटामिनोसिस’ हो सकता है।
- हाइपरविटामिनोसिस विटामिन के असामान्य रूप से उच्च भंडारण स्तर की स्थिति है, जो विभिन्न लक्षणों जैसे कि अत्यधिक उत्तेजना, चिड़चिड़ापन या यहाँ तक कि विषाक्तता को जन्म दे सकती है।
विषाक्तता:
- खाद्य पदार्थों के रासायनिक फोर्टिफिकेशन के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि पोषक तत्त्व अलगाव में काम नहीं करते हैं, लेकिन अधिकतम अवशोषण के लिये एक-दूसरे की आवश्यकता होती है। भारत में अल्पपोषण सब्जियों और पशु प्रोटीन की कम खपत वाले अनाज आधारित आहार के कारण होता है।
- एक या दो सिंथेटिक रासायनिक विटामिन और खनिजों को जोड़ने से बड़ी समस्या का समाधान नहीं होगा तथा अल्पपोषित आबादी में विषाक्तता हो सकती है।
- वर्ष 2010 के एक अध्ययन में बताया गया है कि कुपोषित बच्चों में आयरन फोर्टिफिकेशन के कारण आँत में सूजन और रोगजनक आँत माइक्रोबायोटा प्रोफाइल की स्थिति उत्पन्न होती है।
कार्टेलाइज़ेशन:
- गुटबाज़ी (Fortification) के चलते भारतीय किसानों, स्थानीय तेल और चावल मिलों सहित खाद्य प्रसंस्करणकर्त्ताओं की विशाल अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा तथा बहुराष्ट्रीय निगमों के एक छोटे समूह को लाभ मिलेगा, जिसके चलते 3,000 करोड़ रुपए का बाज़ार प्रभावित होगा।
- सिर्फ पांँच निगमों/व्यापार संघ ने वैश्विक गुटबाज़ी प्रवृत्तियों के अधिकांश लाभ प्राप्त किये हैं और ये कंपनियांँ/निगम ऐतिहासिक रूप से कार्टेलिज़िंग व्यवहार में लगी हुई हैं जिससे कीमतों में बढ़ोतरी हुई है।
- यूरोपीय संघ को इस तरह के व्यवहार हेतु इन कंपनियों पर ज़ुर्माना लगाने के लिये मजबूर किया गया है।
नेचुरल फूड की कीमत में कमी:
- कुपोषण से लड़ने के लिये आहार विविधता को एक स्वस्थ और अधिक लागत प्रभावी तरीका माना गया है। जब से एनीमिया के उपचार हेतु आयरन युक्त फोर्टिफाइड चावल बाज़ार में बेचा जाने लगा, तब से इसने प्राकृतिक रूप से उपलब्ध कुछ लौह युक्त खाद्य पदार्थों, जैसे- बाजरा, हरी पत्तीदार सब्जियों की किस्में, मांस व अन्य खाद्य पदार्थों के बाज़ार को नितिगत्त रुप से सीमित कर दिया है।
फूड फोर्टिफिकेशन
फूड फोर्टिफिकेशन के बारे में:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, फूड फोर्टिफिकेशन से आशय खाद्य पदार्थों में एक या अधिक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की जान-बूझकर की जाने वाली वृद्धि से है ताकि इन पोषक तत्त्वों की न्यूनता में सुधार या निवारण किया जा सके तथा स्वास्थ्य लाभ प्रदान किया जा सके।
- यह ध्यान देने की बात है कि बायोफोर्टिफिकेशन (Biofortification) पारंपरिक फूड फोर्टिफिकेशन से भिन्न है। बायोफोर्टिफिकेशन का उद्देश्य फसलों के प्रसंस्करण के दौरान मैनुअल साधनों के बजाय पौधों की वृद्धि के दौरान ही फसलों में पोषक तत्त्वों के स्तर को बढ़ाना है। अर्थात् बायोफोर्टिफिकेशन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कृषि संबंधी प्रथाओं, पारंपरिक पौधों के प्रजनन या आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से खाद्य फसलों की पोषण गुणवत्ता में सुधार किया जाता है।
प्रकार:
- लक्षित:
- सामान्य आबादी (मास फोर्टिफिकेशन) द्वारा व्यापक रूप से उपभोग किये जाने वाले खाद्य पदार्थों हेतु फूड फोर्टिफिकेशन किया जा सकता है, विशिष्ट जनसंख्या उपसमूहों के लिये डिज़ाइन किये गए खाद्य पदार्थों के पोषण स्तर में वृद्धि की जा सकती है जैसे- छोटे बच्चों के पूरक खाद्य पदार्थ या विस्थापित आबादी के लिये राशन।
- प्रचलित बाज़ार :
- खाद्य निर्माताओं को बाज़ार में उपलब्ध खाद्य पदार्थों को स्वेच्छा से मज़बूत करने की अनुमति देना (बाज़ार संचालित फोर्टिफिकेशन)।
प्रक्रिया:
- जिस व्यापक स्तर तक राष्ट्रीय या क्षेत्रीय खाद्य आपूर्ति मज़बूत होती है, वह काफी भिन्न होती है। एक ही खाद्य पदार्थ (जैसे नमक का आयोडीनीकरण) में सिर्फ एक सूक्ष्म पोषक तत्त्व की सांद्रता बढ़ाई जा सकती है या यह पैमाने के दूसरे छोर पर खाद्य-सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के संयोजन की एक पूरी शृंखला हो सकती है।
सरकारी हस्तक्षेप:
- FSSAI विनियमन:
- अक्तूबर 2016 में FSSAI ने खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य पदार्थों का फोर्टिफिकेशन) विनियम, 2016 को मज़बूत करने वाली सूची जारी की जैसे- गेहूँ का आटा और चावल (आयरन, विटामिन बी 12 एवं फोलिक एसिड के साथ), दूध तथा खाद्य तेल (विटामिन ए और डी के साथ) व भारत में सूक्ष्म पोषक तत्वों के कुपोषण के उच्च बोझ को कम करने के लिये डबल फोर्टिफाइड नमक (आयोडीन और आयरन के साथ)।
- पोषण संबंधी रणनीति:
- भारत की राष्ट्रीय पोषण रणनीति, 2017 ने पूरक आहार और आहार विविधीकरण के अलावा एनीमिया, विटामिन ए तथा आयोडीन की कमी को दूर करने के लिये फूड फोर्टिफिकेशन को एक हस्तक्षेप के रूप में सूचीबद्ध किया था।
- मिल्क फोर्टिफिकेशन प्रोजेक्ट :
- वर्ष 2017 में मिल्क फोर्टिफिकेशन प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) द्वारा विश्व बैंक तथा टाटा ट्रस्ट के सहयोग से एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लॉन्च किया गया था।
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI)
परिचय:
- भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India-FSSAI) खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 (FSS अधिनियम) के तहत स्थापित एक स्वायत्त वैधानिक निकाय है।
- इसका मुख्यालय दिल्ली में है।
- इसका संचालन भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत किया जाता है।
कार्य:
- खाद्य सुरक्षा के मानकों और दिशा-निर्देशों को निर्धारित करने के लिये विनियम बनाना।
- खाद्य व्यवसायों के लिये FSSAI खाद्य सुरक्षा लाइसेंस और प्रमाणन प्रदान करना।
- खाद्य व्यवसायों में प्रयोगशालाओं के लिये प्रक्रिया और दिशा-निर्देश निर्धारित करना।
- नीतियाँ बनाने में सरकार को सुझाव देना।
- खाद्य उत्पादों में संदूषकों के संबंध में डेटा एकत्र करना, उभरते जोखिमों की पहचान करना और एक त्वरित चेतावनी प्रणाली की शुरुआत करना।
- खाद्य सुरक्षा के संबंध में देश भर में एक सूचना नेटवर्क बनाना।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
हंगर हॉटस्पॉट्स रिपोर्ट: FAO-WFP
प्रिलिम्स के लिये:खाद्य और कृषि संगठन, विश्व खाद्य कार्यक्रम, हॉर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्र, रेगिस्तानी टिड्डी मेन्स के लिये:खाद्य असुरक्षा की स्थिति उत्पन्न करने वाले कारक |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) तथा विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने ‘हंगर हॉटस्पॉट्स - अगस्त से नवंबर 2021’ (Hunger Hotspots - August to November 2021) नाम से एक रिपोर्ट जारी की।
- मई 2021 में जारी वर्ष 2021 की ग्लोबल फूड क्राइसिस (Global Food Crises Report) रिपोर्ट में पहले ही तीव्र खाद्य असुरक्षा की चेतावनी दी गई थी, इसके अनुसार खाद्य असुरक्षा अपने पांँच वर्ष के उच्च स्तर पर पहुंँच गई थी, जिसके कारण वर्ष 2020 में कम-से-कम 155 मिलियन लोग तीव्र खाद्य असुरक्षा के चक्र में फँस चुके थे।
प्रमुख बिंदु
प्रमुख हंगर हॉटस्पॉट्स:
- इथियोपिया, मेडागास्कर, दक्षिण सूडान, उत्तरी नाइजीरिया और यमन उन 23 देशों में शामिल हैं जहांँ अगस्त से नवंबर, 2021 तक खाद्य असुरक्षा की स्थिति तीव्रता से और अधिक खराब जाएगी।
- इथियोपिया और मेडागास्कर विश्व के सबसे नए "उच्चतम अलर्ट" भूख वाले हॉटस्पॉट हैं।
- इथियोपिया एक विनाशकारी खाद्य आपातकाल का सामना कर रहा है जिसका कारण टाइग्रे क्षेत्र में चल रहा संघर्ष है।
- इस बीच दक्षिणी मेडागास्कर में 40 वर्षों में सबसे भीषण सूखे के कारण वर्ष 2021 के अंत तक 28,000 लोगों के अकाल जैसी स्थिति का सामना करने की आशंका है।
खाद्य असुरक्षा की स्थिति उत्पन्न करने वाले कारक:
- हिंसा:
- जनसंख्या का विस्थापन, कृषि भूमि का परित्याग, जन धन और संपत्ति का नुकसान, व्यापार एवं व्यवधान तथा संघर्षों के कारण बाज़ारों तक पहुंँच की हानि खाद्य असुरक्षा की स्थिति को और अधिक बढ़ा सकती है।
- अफगानिस्तान, मध्य साहेल क्षेत्र, मध्य अफ्रीकी गणराज्य आदि में हिंसक गतिविधियों के तीव्र होने की भविष्यवाणी की गई है।
- हिंसा से मानवीय सहायता तक पहुंँच बाधित होने की भी संभावना है।
- जनसंख्या का विस्थापन, कृषि भूमि का परित्याग, जन धन और संपत्ति का नुकसान, व्यापार एवं व्यवधान तथा संघर्षों के कारण बाज़ारों तक पहुंँच की हानि खाद्य असुरक्षा की स्थिति को और अधिक बढ़ा सकती है।
- महामारी के झटके:
- वर्ष 2020 में लगभग सभी निम्न और मध्यम आय वाले देश महामारी से ग्रसित आर्थिक मंदी से प्रभावित थे।
- प्राकृतिक खतरे:
- मौसम की चरम स्थिति और जलवायु परिवर्तनशीलता की अवधि के दौरान विश्व के कई हिस्सों के प्रभावित होने की संभावना है।
- उदाहरण के लिये हैती में मई के मौसम में कम वर्षा से उपज प्रभावित होने की संभावना है। दूसरी ओर औसत से कम बारिश से मुख्य चावल उगाने वाले मौसम के दौरान उपज में कमी आने की संभावना है।
- जुलाई 2021 की शुरुआत में हॉर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्र में रेगिस्तानी टिड्डी का संक्रमण एक बड़ी चिंता थी, जबकि अन्य क्षेत्र इससे अप्रभावित थे।
- खराब’ मानवीय पहुँच:
- मानवीय पहुँच विभिन्न तरीकों से सीमित है, जिसमें प्रशासनिक/नौकरशाही, आंदोलन प्रतिबंध, सुरक्षा प्रतिबंध और पर्यावरण से संबंधित भौतिक बाधाएँ शामिल हैं।
- वर्तमान में सबसे महत्त्वपूर्ण बाधाओं का सामना करने वाले देश, सहायता को उन लोगों तक पहुँचने से रोक रहे हैं, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है, जिनमें शामिल हैं अफगानिस्तान, इथियोपिया, मध्य अफ्रीकी गणराज्य आदि।
सुझाव:
- अल्पकालिक हस्तक्षेप:
- नई मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने से पूर्व' अल्पकालिक सुरक्षात्मक हस्तक्षेपों को लागू किया जाना चाहिये तथा मौजूदा मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिये।
- नीतियों का एकीकरण:
- संघर्षरत क्षेत्रों में मानवीय, विकास और शांति निर्माण नीतियों को एकीकृत करना- उदाहरण के लिये सामाजिक सुरक्षा उपायों के माध्यम से परिवारों को भोजन के लिये अल्प संपत्ति को बेचने से रोकना।
- जलवायु स्थिति को लचीला बनाना:
- लघु हितधारक किसानों को जलवायु जोखिम बीमा तथा पूर्वानुमान आधारित वित्तपोषण तक व्यापक पहुँच प्रदान करके खाद्य प्रणालियों में जलवायुविक लचीलेपन को बढ़ाना।
- लचीलेपन को सुदृढ़ करना:
- महामारी जैसे आपदा के प्रभाव' या खाद्य मूल्य अस्थिरता के प्रभाव को कम करने के लिये इन-काइंड या नकद सहायता कार्यक्रमों के माध्यम से आर्थिक स्थिति के प्रतिकूल प्रभाव हेतु सबसे कमज़ोर लोगों में लचीलेपन को मज़बूत करना।
खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु भारत द्वारा उठाए गए कदम
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन:
- इसका उद्देश्य क्षेत्र विस्तार और उत्पादकता में वृद्धि के माध्यम से चावल, गेहूँ, दालें, मोटे अनाज तथा वाणिज्यिक फसलों का उत्पादन बढ़ाना है।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKAY):
- इसका उद्देश्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से पहले से उपलब्ध कराए जा रहे 5 किलोग्राम सब्सिडी वाले खाद्यान्न के अलावा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को अतिरिक्त 5 किलोग्राम अनाज (गेहूँ या चावल) निशुल्क प्रदान करना है।
वन नेशन वन राशन कार्ड:
- यह भारत में भुखमरी की समस्या को संबोधित करेगा। उल्लेखनीय है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत को 117 देशों में से 102वें स्थान पर रखा गया है।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि:
- यह प्रत्येक फसल चक्र के अंत में प्रत्याशित कृषि आय के अनुरूप उचित फसल स्वास्थ्य और उचित पैदावार सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न आदानों की खरीद में छोटे और सीमांत किसानों (Small and Marginal Farmers- SMF) की वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करने का इरादा रखता है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013:
- इसके अंतर्गत सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के तहत रियायती दर पर खाद्यान्न प्राप्त करने के लिये ग्रामीण आबादी का 75 प्रतिशत और शहरी आबादी का 50 प्रतिशत के कवरेज का लक्ष्य रखा गया है।
- अधिनियम के तहत राशन कार्ड जारी करने के उद्देश्य से घर की 18 वर्ष या उससे अधिक आयु की सबसे बड़ी महिला का घर का मुखिया होना अनिवार्य है।
खाद्य और कृषि संगठन
- खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक विशेष एजेंसी है जो भूख को समाप्त करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का नेतृत्त्व करती है।
- प्रत्येक वर्ष विश्व में 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है।
- खाद्य और कृषि संगठन की स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ के तहत की गई थी।
- यह संयुक्त राष्ट्र के खाद्य सहायता संगठनों में से एक है जो रोम (इटली) में स्थित है। इसके अलावा विश्व खाद्य कार्यक्रम और कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष (IFAD) भी इसमें शामिल हैं।
विश्व खाद्य कार्यक्रम
- विश्व खाद्य कार्यक्रम’ (World Food Programme-WFP) एक अग्रणी मानवीय संगठन है जो आपात स्थिति में लोगों के जीवन को बचाने और परिवर्तन हेतु खाद्य सहायता प्रदान करता है, यह पोषण स्तर में सुधार करने एवं लचीलापन लाने हेतु समुदायों के साथ मिलकर कार्य करता है।
- इसे भुखमरी को समाप्त करने के प्रयासों के लिये वर्ष 2020 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था।
- इसकी स्थापना वर्ष 1961 में ‘खाद्य एवं कृषि संगठन’ (Food and Agriculture Organization- FAO) तथा ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ (United Nations General Assembly-UNGA) द्वारा अपने मुख्यालय रोम, इटली में की गई थी।
- WFP आपातकालीन सहायता के साथ-साथ पुनर्वास एवं विकास सहायता पर भी केंद्रित है।
- इसका दो-तिहाई काम संघर्ष प्रभावित देशों में होता है, जहाँ अन्य जगहों की तुलना में लोगों के तीन गुना कुपोषित होने की संभावना है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
कृषि
आनुवंशिक रूप से संशोधित सोया बीजों के आयात की मांग
प्रिलिम्स के लिये:जीएम फसलें, बीटी कपास, बीटी बैंगन मेन्स के लिये:जीएम फसलों से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
पोल्ट्री उद्योग (Poultry Industry), केंद्र सरकार से किसानों की कैप्टिव खपत के लिये क्रश्ड जेनेटिकली मॉडिफाइड (Genetically Modified- GM) सोया बीजों के आयात के लिये परमिट की मांग कर रहा है।
- गैर-राजकोषीय और राजकोषीय राहत उपायों जिसमें सावधि ऋणों का पुनर्गठन और अतिरिक्त कार्यशील पूंजी शामिल है, की भी केंद्र और राज्य सरकारों से मांग की गई है।
प्रमुख बिंदु:
जीएम फसलें:
- एक जीएम या ट्रांसजेनिक फसल ऐसी फसल है जिसमें आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से प्राप्त आनुवंशिक सामग्री का एक नया संयोजन होता है।
- उदाहरण के लिये किसी जीएम फसल में एक ऐसा जीन हो सकता है जिसे परागण के माध्यम से प्राप्त करने के बजाय पौधे में कृत्रिम रूप से डाला गया हो।
- पारंपरिक पौधों के प्रजनन में एक ही जीनस की प्रजातियों का संकरण करना शामिल है ताकि संतान को माता-पिता दोनों के वांछित लक्षण प्रदान किये जा सकें।
- जीनस वस्तुओं का एक वर्ग है जैसे जानवरों या पौधों का एक समूह जिसमें समान लक्षण, गुण या विशेषताएँ होती हैं।
- वांछित परिणाम प्राप्त करने में क्रॉस ब्रीडिंग में लंबा समय लग सकता है और प्रायः किसी भी संबंधित प्रजाति में रुचि की विशेषताएँ मौजूद नहीं होती हैं।
- बीटी कपास (Bt Cotton) एकमात्र जीएम फसल है जिसकी भारत में अनुमति है। इसमें जीवाणु बैसिलस थुरिंजिनेसिस (Bt) के विदेशी जीन होते हैं जो फसल को सामान्य कीट पिंक बॉलवर्म (Pink Bollworm) के लिये एक प्रोटीन विषाक्त विकसित करने की अनुमति देता है।
- दूसरी ओर हर्बिसाइड टॉलरेंट बीटी (Herbicide Tolerant- Ht Bt) कपास, एक अन्य मृदा के जीवाणु से एक अतिरिक्त जीन के सम्मिलन से प्राप्त होता है, जो पौधे को सामान्य हर्बिसाइड ग्लाइफोसेट का विरोध करने की अनुमति देता है।
- बीटी बैंगन ( Bt Brinjal) में एक जीन पौधे को फल और प्ररोह बेधक के हमलों का विरोध करने की अनुमति देता है।
- डीएमएच-11 सरसों (DMH-11 Mustard) में आनुवंशिक संशोधन एक ऐसी फसल में पर-परागण की अनुमति देता है जो प्रकृति में स्व-परागण करती है।
भारत में GM सोयाबीन की स्थिति:
- भारत GM सोयाबीन और कैनोला तेल के आयात की अनुमति देता है।
- भारत में GM सोयाबीन बीजों के आयात को मंज़ूरी नहीं दी गई है।
- मुख्य डर यह है कि GM सोयाबीन का आयात गैर-GM किस्मों को दूषित करके भारतीय सोयाबीन उद्योग को प्रभावित करेगा।
मांग काकारण:
- कोविड-19 के प्रकोप ने बड़े पैमाने पर संकट पैदा कर दिया है जिसके कारण चिकन उत्पादों में वायरस और पोल्ट्री उत्पादों के बीच संबंध के बारे में झूठी खबरों के कारण मांग में कमी आई है।
- इसने एक अनुचित वित्तीय संकट पैदा कर दिया और कार्यशील पूंजी (दिन-प्रतिदिन के कार्यों के प्रयुक्त) का क्षरण हुआ।
- पिछले कई महीनों से नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (National Commodity and Derivatives Exchange Limited- NCDEX) पर सोया अनुबंधों में उच्च सट्टा गतिविधियाँ इस क्षेत्र को चिंतित कर रही हैं।
- NCDEX एक ऑनलाइन कमोडिटी एक्सचेंज है जो मुख्य रूप से कृषि संबंधी उत्पादों में व्यवहार करता है।
- सोयाबीन की प्रक्रिया में वृद्धि के कारण खुदरा बाज़ार में अंडे और चिकन उत्पादों की कीमतों में उछाल आया था।
- विशेष समयसीमा के लिये आयात, कच्चे माल के बाज़ार को स्थिर करेगा।
भारत में जीएम फसलों के लिये अनुमोदन प्रक्रिया:
- भारत में जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) शीर्ष निकाय है जो जीएम फसलों के वाणिज्यिक उत्पादन के लिये अनुमति प्रदान करता है।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत अस्वीकृत जीएम संस्करण का उपयोग करने पर उसे अधिकतम पाँच साल की सज़ा या 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है।
- भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) भारत में आयातित फसलों को विनियमित करने के लिये अधिकृत निकाय है।
प्रमुख संबंधित पहल:
- पोल्ट्री वेंचर कैपिटल फंड (PVCF):
- पशुपालन और डेयरी विभाग राष्ट्रीय पशुधन मिशन के "उद्यमिता विकास और रोज़गार सृजन" (EDEG) के तहत इसे लागू कर रहा है।
- यह एक बैंक-आधारित कार्यक्रम है तथा केंद्र सरकार PVCF हेतु ऋण लेने वाले लाभार्थियों के लिये राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के माध्यम से सब्सिडी प्रदान कर रही है।
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन:
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत विभिन्न कार्यक्रम जिसके अंतर्गत रुरल बैकयार्ड पोल्ट्री डेवलपमेंट (RBPD) और इनोवेशन पोल्ट्री प्रोडक्शन प्रोजेक्ट (IPPP) के कार्यान्वयन के लिये राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- पशु रोग नियंत्रण (ASCAD) योजना के लिये राज्यों को सहायता:
- ASCAD "पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण" (LH&DC) के तहत जो आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण कुक्कुट रोगों जैसे रानीखेत रोग, संक्रामक बर्सल रोग, फाउल पॉक्स आदि के टीकाकरण को कवर करता है, जिसमें एवियन इन्फ्लूएंजा (Avian Influenza) जैसी आकस्मिक और विदेशी बीमारियों का नियंत्रण और रोकथाम करना शामिल है।
स्रोत : द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
डेयरी क्षेत्र और जलवायु परिवर्तन
प्रिलिम्स के लियेश्वेत क्रांति, पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स, हरित धारा, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण मेन्स के लियेडेयरी उद्योग का महत्त्व, जलवायु परिवर्तन पर डेयरी क्षेत्र का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
डेयरी उद्योग हाल के वर्षों में व्यापक रूप से वाद-प्रतिवाद का विषय रहा है, जो दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन संकट की चिंताओं के साथ-साथ अधिक स्थायी प्रतिस्थापन का दावा करने वाले विभिन्न संयंत्र-आधारित विकल्पों की उन्नति से प्रेरित है।
प्रमुख बिंदु
परिचय:
- श्वेत क्रांति की मदद से भारत दूध की कमी वाले देश से विश्व स्तर पर दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया है।
- आनंद मॉडल (अमूल), जिसे पूरे देश में अपनाया गया है, ने दूध उत्पादन को बढ़ावा दिया है।
- डेयरी और पशु-आधारित उत्पादों के लिये पशुओं की हार्वेस्टिंग- खाद्य सुरक्षा, गरीबी उन्मूलन और अन्य सामाजिक ज़रूरतों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- हालाँकि जलवायु पर पशुओं की हार्वेस्टिंग के हानिकारक परिणाम देखे जाते हैं।
- इसके अतिरिक्त जानवरों के खिलाफ क्रूरता करने के लिये पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) जैसे गैर-लाभकारी संगठनों द्वारा पशुपालन की काफी आलोचना की गई है।
डेयरी क्षेत्र का महत्त्व:
- आर्थिक निर्भरता: भारत में डेयरी और पशु-आधारित उत्पादों के लिये पशुओं की हार्वेस्टिंग 150 मिलियन डेयरी किसानों के लिये आजीविका का एक प्रमुख स्रोत है।
- राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में डेयरी क्षेत्र का योगदान 4.2 प्रतिशत है।
- डेयरी क्षेत्र भारत में कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोज़गार का क्षेत्र है।
- सामाजिक महत्त्व: डेयरी उत्पाद आवश्यक पोषक तत्त्वों का एक समृद्ध स्रोत है जो एक स्वस्थ और पौष्टिक आहार में योगदान करते हैं।
- विश्व स्तर पर उच्च गुणवत्ता वाले पशु स्रोत प्रोटीन की मांग बढ़ने के साथ, डेयरी क्षेत्र में डेयरी उत्पादों की आपूर्ति के माध्यम से वैश्विक खाद्य सुरक्षा तथा गरीबी को कम करने में योगदान दे रहा है।
जलवायु परिवर्तन पर डेयरी क्षेत्र का प्रभाव:
- GHG उत्सर्जन: भारत के ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में कृषि का योगदान लगभग 16% है जो कि डेयरी फार्मिंग के दौरान मवेशियों द्वारा उत्सर्जित किया जाता है।
- पशु अपशिष्ट से मीथेन का उत्सर्जन, डेयरी क्षेत्र के कुल GHG उत्सर्जन का लगभग 75% योगदान देता है।
- हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने एक एंटी-मिथेनोजेनिक फीड सप्लीमेंट 'हरित धारा' (HD) विकसित की है, जो मवेशी मीथेन उत्सर्जन को 17-20% तक कम कर सकता है तथा इसके परिणामस्वरूप दूध का उत्पादन भी बढ़ सकता है।
- कृषि-खाद्य प्रणालियों से उत्सर्जित तीन प्रमुख GHG, अर्थात् मीथेन (CH₄), नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) हैं।
- पशु अपशिष्ट से मीथेन का उत्सर्जन, डेयरी क्षेत्र के कुल GHG उत्सर्जन का लगभग 75% योगदान देता है।
- प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ता दबाव: डेयरी की इस बढ़ती मांग के साथ, मीठे पानी और मिट्टी सहित अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है।
- नेस्ले और डैनोन जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर पंजाब व पड़ोसी राज्यों में जल-गहन डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया है, जिससे भूजल स्तर तेज़ी से घट रहा है।
- अस्थायी डेयरी फार्मिंग और चारे के उत्पादन से पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे- आर्द्रभूमि एवं जंगलों का नुकसान हो सकता है।
- जैव विविधता की अत्यधिक क्षति हेतु मवेशियों को खिलाने के लिये उगाई जानी वाली अत्यधिक जल गहन तथा ऊर्जा गहन फसलों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है ।
- बढ़ती मांग: चीन और भारत जैसे देशों में जनसंख्या वृद्धि, बढ़ती आय, शहरीकरण तथा आहार के पश्चिमीकरण के कारण बड़े पैमाने पर डेयरी उत्पादों की वैश्विक मांग में वृद्धि जारी है।
डेयरी क्षेत्र के विरुद्ध अन्य तर्क:
- पशुओं के प्रति क्रूरता: मवेशियों के उचित संचालन के लिये दिशा-निर्देशों के बावजूद उत्पादन क्षमता को बढ़ावा देने हेतु क्रूर प्रथाएँ बेरोकटोक जारी हैं क्योंकि डेयरी और मांस की मांग लगातार बढ़ रही है। इसमें शामिल हैं:
- कृत्रिम गर्भाधान,
- दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये वृद्धि हार्मोन (ऑक्सीटोसिन) का व्यापक उपयोग,
- नर बछड़ों का वध,
- उन मवेशियों को छोड़ना जो बाँझ हैं,
- पशुओं को उस स्थिति में बूचड़खानों और टेनरियों को बेचना जब वे दूध का उत्पादन नहीं कर सकते आदि।
- ज़ूनोटिक रोग: पशुपालन के माध्यम से पशुओं का शोषण, प्राकृतिक आवासों का विनाश, पशुधन से जुड़े वनों की कटाई, शिकार और वन्यजीवों का व्यापार, जानवरों व मनुष्यों के बीच फैलने वाले कीटाणुओं की वजह से होने वाले ज़ूनोटिक रोगों का प्रमुख कारण है।
- नोवल कोरोनावायरस रोग (कोविड-19) महामारी जैसी बीमारियों की लंबी सूची में नवीनतम है।
- खाद्य अपमिश्रण: भारत में दूध और दुग्ध उत्पाद मिलावट से मुक्त नहीं हैं।
- भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) की एक हालिया रिपोर्ट में अनियमित फीड और चारे के माध्यम से अनुमेय सीमा से परे एफ्लाटॉक्सिन एम 1 और हार्मोन अवशेषों की उपस्थिति का पता चला है।
- इससे इंसानों में जीवनशैली से जुड़ी कई तरह की बीमारियाँ होने लगी हैं।
प्रस्तावित वैकल्पिक मार्ग:
- शाकाहार: शाकाहार जीवन जीने का एक तरीका है जो सभी प्रकार के जानवरों को शोषण से मुक्त करने और इसे पौधे आधारित उत्पादों के साथ बदलने का प्रयास करता है।
- विकसित देशों में दूध सहित पौधे आधारित भोजन के पारिस्थितिक और स्वास्थ्य लाभों के कारण शाकाहारी आंदोलन गति प्राप्त कर रहा है।
- पेटा पशु-आधारित खाद्य पदार्थों को बदलने के लिये शाकाहारी विकल्पों को बढ़ावा दे रहा है।
- शाकाहार की आलोचना: अमूल और उसके समर्थकों का तर्क है कि पेटा के इस कदम से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एक गलत सूचना अभियान के माध्यम से सिंथेटिक दूध एवं आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों को बढ़ावा मिल सकता है।
- उन्होंने मानव उपभोग के लिये रसायनयुक्त, प्रयोगशाला-निर्मित पौधे-आधारित दूध की उपयुक्तता पर सवाल उठाया है।
- इसके अलावा FSSAI ने अधिसूचित किया कि 'दूध' शब्द का इस्तेमाल वृक्ष आधारित डेयरी विकल्पों के लिये नहीं किया जा सकता है।
आगे की राह:
- वैकल्पिक रोज़गार और सामाजिक वानिकी: 15 करोड़ लोगों की आजीविका दाँव पर लगी है, नीति निर्माताओं को विस्थापित लोगों हेतु वैकल्पिक रोज़गार के अवसरों की पहचान करने की आवश्यकता होगी।
- सामाजिक वानिकी बड़े पैमाने पर पृथ्वी पर सकारात्मक परिणामों के साथ इस गिरावट को दूर करने का एक कारगर समाधान हो सकती है।
- सतत् डेयरी प्रथाएंँ: स्थायी डेयरी प्रथाओं को सक्रिय रूप से बढ़ाने की आवश्यकता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:
- दूध की बर्बादी को तीव्रता को कम करने हेतु इस क्षेत्र में तकनीकी और कृषि की सर्वोत्तम प्रथाओं तथा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी के लिये मौजूदा संभावनाओं की तलाश हेतु तत्काल कार्य करने की आवश्यकता है।
- प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के क्षरण, कृषि विस्तार और वनों की कटाई से जुड़े कारकों को लक्षित करके कार्बन सिंक (घास के मैदान और जंगल) की रक्षा करने वाली उत्पादन प्रथाओं में बदलाव को बढ़ावा देना।
- सर्कुलर बायो-इकाॅनमी (Circular Bio-Economy) में पशुधन को बेहतर ढंग से एकीकृत कर संसाधनों की मांग को कम करना।
- इस लक्ष्य को पोषक तत्त्वों के पुनर्चक्रण एवं पुनर्प्राप्ति तथा पशु अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पादन के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
- कम मूल्य और कम उत्सर्जन वाले बायोमास का उपयोग करने के लिये विभिन्न मानकों पर फसलों एवं कृषि-उद्योगों के साथ पशुधन का एकीकरण करना।