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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में डेयरी क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियाॅं

  • 31 May 2021
  • 8 min read

यह एडिटोरियल दिनांक '28/05/2021' को 'द इंडियन एक्सप्रेस' में प्रकाशित लेख “Not milk & honey" पर आधारित है। इसमें भारत के डेयरी क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा की गई है।

संदर्भ

कोविड -19 महामारी की दूसरी लहर ने दुग्ध उत्पादकों की स्थिति को बदतर कर दिया है। महामारी के दौरान शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में परिवारों द्वारा दूध की घर-घर बिक्री स्वतः बंद हो गई है, जिससे किसानों को डेयरी उत्पादन नजदीक के डेयरी सहकारी समितियों को बहुत कम कीमत पर बेचने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है।

इसके अलावा, दुकानों के बंद होने से दूध और दूध उत्पादों की मांग में कमी आई है, जबकि पशुओं के चारे की भारी कमी ने लागत को बढ़ा दिया है। साथ ही, कोविड-19 के कारण निजी पशु चिकित्सा सेवाएॅं लगभग बंद हो गई हैं, जिससे दुधारू पशुओं की मौत हो रही है।

भारत में दूध के उत्पादन और बिक्री की प्रकृति को देखते हुए दुग्ध उत्पादकों को मामूली झटके भी लग सकते हैं क्योंकि दूध और दुग्ध उत्पादों की मांग उपभोक्ताओं के रोज़गार और आय में बदलाव के प्रति संवेदनशील है। इसलिये भारतीय अर्थव्यवस्था के इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र को बचाने के लिये बहुत कुछ करने की जरूरत है।

डेयरी क्षेत्र को संभालने की ज़रूरत

  • खेत पर निर्भर आबादी में वैसे किसान और खेतिहर मज़दूर भी शामिल हैं जो डेयरी और पशुधन पर निर्भर हैं। इनकी संख्या लगभग 70 मिलियन है।
  • इसके अलावा मवेशी और भैंस पालन में कुल कार्यबल 7.7 मिलियन में 69 प्रतिशत महिला श्रमिक हैं।
  • कृषि से सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) में पशुधन क्षेत्र का योगदान 2019-20 में 28 प्रतिशत था। दुग्ध उत्पादन में प्रति वर्ष 6 प्रतिशत की वृद्धि दर से किसानों को सूखे और बाढ़ के दौरान एक बड़ा आर्थिक सहारा प्राप्त होता है।
  • प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसल खराब होने पर दूध का उत्पादन बढ़ जाता है क्योंकि किसान तब पशुपालन पर अधिक निर्भर होते हैं।

इस क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियाॅं

  • अदृश्य श्रम: किसान के लिये पाॅंच में से दो दुधारू पशु आजीविका के लिये रखते हैं। ऐसे में परिवार के उपयोग हेतु दुग्ध उत्पादन के लिये आवश्यक श्रम परिवार की अवैतनिक या औपचारिक रूप से बेरोज़गार महिलाओं के हिस्से आता।
    • उनमें से भूमिहीन और सीमांत किसानों के पास दूध के लिये खरीदारों की कमी होने पर आजीविका का कोई विकल्प नहीं है।
  • डेयरी क्षेत्र की असंगठित प्रकृति: गन्ना, गेहूं और चावल उत्पादक किसानों के विपरीत पशुपालक असंगठित हैं और उनके पास अपने अधिकारों की वकालत करने के लिये राजनीतिक ताकत नहीं है।
  • अलाभकारी मूल्य निर्धारण: हालाॅंकि उत्पादित दूध का मूल्य भारत में गेहूं और चावल के उत्पादन के संयुक्त मूल्य से अधिक है लेकिन उत्पादन की लागत और दूध के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई आधिकारिक प्रावधान नहीं है।
  • अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव: भले ही डेयरी सहकारी समितियाॅं देश में दूध के कुल विपणन योग्य अधिशेष में लगभग 40 प्रतिशत का योगदान करती हैं, लेकिन वे भूमिहीन या छोटे किसानों का पसंदीदा विकल्प नहीं हैं। ऐसा इसलिये है क्योंकि डेयरी सहकारी समितियों द्वारा खरीदा गया 75 प्रतिशत से अधिक दूध अपने न्यूनतम मूल्य पर है।
  • अपर्याप्त सरकारी प्रयास: अगस्त 2020 में विभाग ने भारत में 2.02 लाख कृत्रिम गर्भाधान (Artificial nsemination- AI) तकनीशियनों की आवश्यकता की सूचना दी, जबकि उपलब्धता केवल 1.16 लाख है।
    • किसान क्रेडिट कार्ड कार्यक्रम में डेयरी किसानों को शामिल किया गया है। भारत में 230 दुग्ध संघों के कुल 1.5 करोड़ किसानों में से अक्टूबर 2020 तक डेयरी किसानों के ऋण आवेदनों का एक-चौथाई भी बैंकों को नहीं भेजा गया था।
    • किसानों को कोविड-19 के कारण आय के नुकसान की भरपाई के लिये डेयरी को मनरेगा के तहत लाया गया था। हालाॅंकि 2021-22 के लिये बजटीय आवंटन में 34.5 प्रतिशत की कटौती की गई थी।

आगे की राह

  • उत्पादकता में वृद्धि: पशुओं की उत्पादकता बढ़ाने, बेहतर स्वास्थ्य देखभाल और प्रजनन सुविधाओं और डेयरी पशुओं के प्रबंधन की आवश्यकता है। इससे दूध उत्पादन की लागत कम हो सकती है।
    • साथ ही पशु चिकित्सा सेवाओं, कृत्रिम गर्भाधान (Artificial nsemination- AI), चारा और किसान शिक्षा की उपलब्धता सुनिश्चित करके दूध उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है। सरकार और डेयरी उद्योग इस दिशा में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
  • उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन बुनियादी ढाॅंचे में वृद्धि: यदि भारत को डेयरी निर्यातक देश के रूप में उभरना है, तो उचित उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन बुनियादी ढाॅंचे को विकसित करना अनिवार्य है, जो अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम है।
    • इस प्रकार गुणवत्ता और सुरक्षित डेयरी उत्पादों के उत्पादन के लिये एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है। इसके लिये उपयुक्त कानूनी ढाॅंचा भी बनाना चाहिये।
    • इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढाॅंचे की कमी को दूर करने और बिजली की कमी को दूर करने के लिये, सौर ऊर्जा संचालित डेयरी प्रसंस्करण इकाइयों में निवेश करने की आवश्यकता है।
    • साथ ही डेयरी सहकारिता को मजबूत करने की जरूरत है। इस प्रयास में, सरकार को किसान उत्पादक संगठनों को बढ़ावा देना चाहिये।

निष्कर्ष

पिछले कुछ दशकों में डेयरी क्षेत्र भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा के रूप में उभरा है। हालाॅंकि दूध और दुग्ध उत्पादों की उच्च कीमत में अस्थिरता को देखते हुए डेयरी क्षेत्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सबसे कमजोर क्षेत्रों में से एक बन गया है।

इसलिये किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिये डेयरी क्षेत्रों के महत्त्व को देखते हुए इस संकट को दूर करने और क्षेत्र के समग्र विकास हेतु एक समग्र ढाॅंचा स्थापित करने के लिये विभिन्न स्तरों पर कार्य करने की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: पिछले कुछ दशकों में डेयरी क्षेत्र भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की जीवन-रेखा के रूप में उभरा है। हालाँकि, यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सबसे कमजोर क्षेत्रों में से एक बन गया है। चर्चा कीजिये।

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