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एनआरसी : असम ही क्यों कोई और राज्य क्यों नहीं?

  • 01 Aug 2018
  • 7 min read

संदर्भ

हाल ही में असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के अंतिम मसौदे को जारी किया गया। जिसके अनुसार 40 लाख लोग ऐसे हैं जिन्हें भारत की नागरिकता नहीं मिली है। उल्लेखनीय है कि एनआरसी में शामिल होने के लिये 3.29 करोड़ लोगों ने आवेदन किया था जिनमें से 2.89 करोड़ लोगों के नाम ही एनआरसी द्वारा जारी अंतिम सूची में शामिल हैं। इस बात को लेकर सड़क से लेकर संसद तक चर्चाएँ जारी हैं।

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर
National Register of Citizens (NRC)

Citizens

  • एनआरसी वह रजिस्टर है जिसमें सभी भारतीय नागरिकों का विवरण शामिल है। इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। रजिस्टर में उस जनगणना के दौरान गणना किये गए सभी व्यक्तियों के विवरण शामिल थे।
  • इसमें केवल उन भारतीयों के नाम को शामिल किया जा रहा है जो कि 25 मार्च, 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं। उसके बाद राज्य में पहुँचने वालों को बांग्लादेश वापस भेज दिया जाएगा।
  • एनआरसी उन्हीं राज्यों में लागू होती है जहाँ से अन्य देश के नागरिक भारत में प्रवेश करते हैं। एनआरसी की रिपोर्ट ही बताती है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं।

(टीम दृष्टि इनपुट)

 एनआरसी की आवश्यकता क्यों पड़ी?

  • 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बँटवारा हुआ तो कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी ज़मीन असम में थी और लोगों का दोनों ओर से आना-जाना बँटवारे के बाद भी जारी रहा। जिसके चलते वर्ष 1951 में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तैयार किया गया था।
  • वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भी असम में भारी संख्या में शरणार्थियों का आना जारी रहा जिसके चलते राज्य की आबादी का स्वरूप बदलने लगा। 
  • 80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ (All Assam Students Union-AASU) ने अवैध तरीके से असम में रहने वाले लोगों की पहचान करने तथा उन्हें वापस भेजने के लिये एक आंदोलन शुरू किया। AASU के छह साल के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।

असम समझौता

  • 15 अगस्त, 1985 को AASU और दूसरे संगठनों तथा भारत सरकार के बीच एक समझौता हुआ जिसे असम समझौते के नाम से जाना जाता है।
  • इस समझौते के अनुसार, 25 मार्च, 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले हिंदू- मुसलमानों की पहचान की जानी थी तथा उन्हें राज्य से बाहर किया जाना था।
  • इस समझौते के तहत 1961 से 1971 के बीच असम आने वाले लोगों को नागरिकता तथा अन्य अधिकार दिये गए, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया गया। इसके अंतर्गत असम के आर्थिक विकास के लिये विशेष पैकेज भी दिया गया।
  • साथ ही यह फैसला भी किया गया कि असमिया भाषी लोगों के सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषायी पहचान की सुरक्षा के लिये विशेष कानून और प्रशासनिक उपाय किये जाएंगे। असम समझौते के आधार पर मतदाता सूची में संशोधन किया गया।

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को अपडेट करने का फैसला

  • वर्ष 2005 में सरकार ने 1951 के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को अपडेट करने का फैसला किया और तय किया कि असम समझौते के तहत 25 मार्च, 1971 से पहले असम में अवैध तरीके से प्रवेश करने वाले लोगों का नाम भी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीज़नशिप में जोड़ा जाएगा। 
  • लेकिन यह विवाद सुलझने की बजाय और अधिक बढ़ता गया तथा मामला कोर्ट पहुँच  गया। इसके बाद साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर असम में नागरिकों के सत्यापन का कार्य शुरू किया गया। इसके लिये पूरे राज्य में कई NRC केंद्र खोले गए। 
  • नागरिकों के सत्यापन के लिये यह अनिवार्य किया गया कि केवल उन्हें ही भारतीय नागरिक माना जाएगा जिनके पूर्वजों के नाम 1951 के एनआरसी में या 24 मार्च 1971 तक के किसी वोटर लिस्ट में मौजूद हों। 

नागरिकता की समाप्ति से उत्पन्न होने वाली समस्याएँ

  • एनआरसी की सूची जारी होने के बाद लोग स्टेटलेस हो गए हैं, अर्थात् वे किसी भी देश के नागरिक नहीं रहे। ऐसी स्थिति में राज्य में हिंसा का खतरा बना हुआ है। 
  • जो लोग दशकों से असम में रह रहे थे, भारतीय नागरिकता समाप्त होने के बाद वे न तो पहले की तरह वोट दे सकेंगे, न इन्हें किसी कल्याणकारी योजना का लाभ मिलेगा और अपनी ही संपत्ति पर भी इनका कोई अधिकार नहीं रहेगा।
  • जिन लोगों के पास स्वयं की संपत्ति है वे दूसरे लोगों का निशाना बनेंगे।

निष्कर्ष

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी स्टेटलेसनेस को ख़त्म करना चाहती है, लेकिन दुनिया में क़रीब एक करोड़ लोग ऐसे हैं जिनका कोई देश नहीं। ऐसे में भारत के लिये हालिया स्थिति असहज करने वाली होगी। नागरिकता के इस मामले ने असम ही नहीं बल्कि पूरे भारत में बहस छेड़ दी है। असम की राजनीति में यह मुद्दा कई वर्षों से चला आ रहा है। अब आवश्यकता है इस मामले को गंभीरता के साथ सुलझाने की। 

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