सामाजिक न्याय
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की कवरेज
- 07 Nov 2020
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प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 मेन्स के लियेराष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की कवरेज और संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के लिये नए कवरेज अनुपात का पता लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
प्रमुख बिंदु
- नीति आयोग ने सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) को देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के लिये नए कवरेज अनुपात का पता लगाने की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है।
- आवश्यकता
- वर्तमान आँकड़ों के अनुसार, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत ग्रामीण क्षेत्र की 75 प्रतिशत आबादी और शहरी क्षेत्र की 50 प्रतिशत आबादी कवर की जाती है।
- इसी तरह पूर्ववर्ती योजना आयोग (वर्तमान में नीति आयोग) ने वर्ष 2011-12 के घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के आँकड़ों का उपयोग कर ग्रामीण और शहरी आबादी के राज्यवार आँकड़ों की गणना की थी।
- तब से राज्यवार कवर अनुपात में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है, जबकि परिस्थितियाँ और लोगों का जीवन स्तर लगातार बदल रहा है।
वर्तमान राज्यवार आँकड़े
- वर्तमान में मणिपुर का देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अधिक कवरेज (88.56 प्रतिशत) है, जबकि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सबसे कम (24.94 प्रतिशत) कवरेज है।
- मणिपुर के बाद दूसरे स्थान पर झारखंड (86.48 प्रतिशत) तथा तीसरे एवं चौथे स्थान पर क्रमशः बिहार (85.12 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ (84.25 प्रतिशत) हैं।
- वहीं दूसरी ओर शहरी क्षेत्रों में भी स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों के ही समान है। शहरी क्षेत्रों के मामले में भी मणिपुर का अधिक कवरेज अनुपात (85.75 प्रतिशत) है, जबकि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सबसे कम (1.70 प्रतिशत) कवरेज अनुपात है। शहरी क्षेत्रों के मामले में मणिपुर के बाद बिहार (74.53 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (64.43 प्रतिशत) और मध्य प्रदेश (62.61 प्रतिशत) का स्थान है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम
- उद्देश्य: 10 सितंबर, 2013 को भारत सरकार द्वारा अधिसूचित इस अधिनियम का उद्देश्य एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिये देश के आम लोगों को वहनीय मूल्यों पर गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्न की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध कराते हुए उन्हें खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रदान करना है।
- कवरेज: अधिनियम के तहत गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिये देश के ग्रामीण क्षेत्र की 75 प्रतिशत आबादी और शहरी क्षेत्र की 50 प्रतिशत आबादी को कवर करने की बात की गई है।
- लाभार्थी: इसके तहत पात्र व्यक्तियों को चावल, गेंहूँ और मोटे अनाज क्रमश: 3, 2 और 1 रुपए प्रति किलोग्राम के मूल्य पर उपलब्ध कराए जाते हैं।
- इस मूल्य पर प्रत्येक लाभार्थी प्रतिमाह 5 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त कर सकता है।
- साथ ही वर्तमान में अंत्योदय अन्न योजना में शामिल परिवार प्रतिमाह 35 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त कर सकते हैं।
- इस अधिनियम के तहत गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को गर्भावस्था के दौरान तथा बच्चे के जन्म के 6 माह बाद भोजन के अलावा कम-से-कम 6000 रुपए का मातृत्त्व लाभ प्रदान करने का प्रावधान है।
- महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस अधिनियम के तहत प्रावधान किया गया है कि 18 वर्ष से अधिक उम्र की महिला को ही घर का मुखिया माना जाएगा और राशन कार्ड भी उसी महिला के नाम पर जारी किया जाएगा।
अंत्योदय अन्न योजना
- ‘अंत्योदय अन्न योजना’ की शुरुआत दिसंबर 2000 में की गई थी।
- इस योजना का उद्देश्य ‘गरीबी रेखा’ से नीचे रह रही आबादी की खाद्यान्न की कमी को पूरा करना था।
- शुरुआत में इस योजना के तहत लाभार्थी परिवार को प्रतिमाह 25 किग्रा. खाद्यान्न दिये जाने का प्रावधान था जिसे अप्रैल 2002 में बढ़ाकर 35 किग्रा. कर दिया गया।
चुनौतियाँ
- पात्र लाभार्थियों तक खाद्यान्न का न पहुँचना इस व्यवस्था के समक्ष एक बड़ी चुनौती रही है, अक्सर यह देखा जाता है कि स्थानीय स्तर पर राशन वितरित करने वाले व्यापारी कालाबाज़ारी करते हैं और उन लोगों को राशन बेच देते हैं जो इस अधिनियम के तहत पात्र नहीं हैं, जिसके कारण पात्र लाभार्थियों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है।
- वर्ष 2016 में भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) ने अपनी जाँच में पाया था कि देश भर के कई राज्यों ने लाभार्थियों की पहचान करने की प्रक्रिया पूरी नहीं की और तकरीबन 49 प्रतिशत लाभार्थियों की पहचान अब तक नहीं की जा सकी थी।
- इसके अलावा प्रायः ‘आँगनवाड़ी’ में प्रदान किये जाने वाले भोजन की गुणवत्ता को लेकर भी प्रश्न पूछे जाते रहे हैं।