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डेली न्यूज़

  • 01 Jul, 2021
  • 72 min read
शासन व्यवस्था

ग्रीन हाइड्रोजन

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रीन हाइड्रोजन, अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी, वर्ल्ड एनर्जी ट्रांज़ीशन आउटलुक' रिपोर्ट

मेन्स के लिये:

हाइड्रोजन की वर्तमान स्थिति, इससे संबंधित चुनौतियाँ और संभावनाएँ

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (IRENA) के अनुसार, वर्ष 2050 तक कुल ऊर्जा मिश्रण में हाइड्रोजन की हिस्सेदारी 12% तक हो जाएगी।

  • एजेंसी ने यह भी सुझाव दिया कि उपयोग किये जाने वाले इस हाइड्रोजन का लगभग 66% हिस्सा प्राकृतिक गैस के बजाय जल से प्राप्त किया जाना चाहिये।
  • हाल ही में IRENA ने 'वर्ल्ड एनर्जी ट्रांज़ीशन आउटलुक' रिपोर्ट जारी की है।

हाइड्रोजन 

  • स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन विकल्प के लिये हाइड्रोजन पृथ्वी पर सबसे प्रचुर तत्त्वों में से एक है।
  • हाइड्रोजन का प्रकार उसके बनने की प्रक्रिया पर निर्भर करता है:
    • ग्रीन हाइड्रोजन अक्षय ऊर्जा (जैसे सौर, पवन) का उपयोग करके जल के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा निर्मित होता है और इसमें कार्बन फुटप्रिंट कम होता है।
      • इसके तहत विद्युत द्वारा जल (H2O) को हाइड्रोजन (H) और ऑक्सीजन (O2) में विभाजित किया जाता है।
      • उपोत्पाद: जल, जलवाष्प।
    • ब्राउन हाइड्रोजन का उत्पादन कोयले का उपयोग करके किया जाता है जहाँ उत्सर्जन को वायुमंडल में निष्कासित किया जाता है।
    • ग्रे हाइड्रोजन (Grey Hydrogen) प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है जहाँ संबंधित उत्सर्जन को वायुमंडल में निष्कासित किया जाता है।
    • ब्लू हाइड्रोजन (Blue Hydrogen) प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होती है, जहाँ कार्बन कैप्चर और स्टोरेज का उपयोग करके उत्सर्जन को कैप्चर किया जाता है।

उपयोग:

  • हाइड्रोजन एक ऊर्जा वाहक है, न कि स्रोत और यह ऊर्जा की अधिक मात्रा को वितरित या संग्रहीत कर सकता है।
  • इसका उपयोग फ्यूल सेल में विद्युत या ऊर्जा और ऊष्मा उत्पन्न करने के लिये किया जा सकता है।
    • वर्तमान में पेट्रोलियम शोधन और उर्वरक उत्पादन में हाइड्रोजन का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है, जबकि परिवहन एवं अन्य उपयोगिताएँ इसके लिये उभरते बाज़ार हैं।
  • हाइड्रोजन और ईंधन सेल वितरित या संयुक्त ताप तथा शक्ति सहित विविध अनुप्रयोगों में उपयोग के लिये ऊर्जा प्रदान कर सकते हैं; अतिरिक्त उर्जा; अक्षय ऊर्जा के भंडारण और इसे सक्षम करने के लिये सिस्टम; पोर्टेबल बिजली आदि।
  • इनकी उच्च दक्षता और शून्य या लगभग शून्य-उत्सर्जन संचालन के कारण हाइड्रोजन एवं फ्यूल सेलों जैसे कई अनुप्रयोगों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की क्षमता है।

प्रमुख बिंदु

दुनिया भर में वर्तमान स्थिति:

  • कुल उत्पादित हाइड्रोजन का 1% से भी कम हिस्सा ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ होता है।
  • इलेक्ट्रोलाइज़र के निर्माण और तैनाती को 0.3 गीगावाट की वर्तमान क्षमता से वर्ष 2050 तक अभूतपूर्व दर से लगभग 5,000 गीगावाट तक बढ़ाना आवश्यक है।

भारतीय परिदृश्य

  • हाइड्रोजन की खपत: भारत उर्वरक और रिफाइनरियों सहित औद्योगिक क्षेत्रों में अमोनिया और मेथनॉल के उत्पादन हेतु प्रतिवर्ष लगभग छह मिलियन टन हाइड्रोजन की खपत करता है।
    • उद्योग की बढ़ती मांग और परिवहन एवं बिजली क्षेत्रों के विस्तार के कारण यह वर्ष 2050 तक बढ़कर 28 मिलियन टन हो सकता है।
  • ग्रीन हाइड्रोजन की लागत: वर्ष 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन की लागत हाइड्रोकार्बन ईंधन (जैसे कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस आदि) के समान ही हो जाएगी।
    • उत्पादन और बिक्री बढ़ने पर कीमत में और कमी आएगी। यह भी अनुमान लगाया गया है कि भारत की हाइड्रोजन की मांग वर्ष 2050 तक पाँच गुना बढ़ जाएगी, जिसमें से 80% ग्रीन हाइड्रोजन होगी।
  • ग्रीन हाइड्रोजन का निर्यातक: भारत अपने सस्ते नवीकरणीय ऊर्जा शुल्कों के कारण वर्ष 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन का शुद्ध निर्यातक बन जाएगा।

भारत के लिये ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग का महत्त्व:

  • ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ भारत को स्वच्छ ऊर्जा की ओर ले जा सकता है, साथ ही यह देश में जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने में भी मददगार हो सकता है।
    • पेरिस जलवायु समझौते के तहत भारत ने वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था की उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% तक कम करने की प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है।
  • इससे भारत जीवाश्म ईंधन पर अपनी आयात निर्भरता को कम करेगा।
  • इलेक्ट्रोलाइज़र उत्पादन का स्थानीयकरण और ग्रीन हाइड्रोजन परियोजनाओं के विकास से भारत में 18-20 बिलियन डॉलर का एक नया ग्रीन प्रौद्योगिकी बाज़ार विकसित हो सकता है तथा हज़ारों की संख्या में नौकरियों का सृजन हो सकता है।

संभावनाएँ:

  • भारत में ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन हेतु एक अनुकूल भौगोलिक स्थिति, धूप और वायु की प्रचुर मात्रा विद्यमान है।
  • ग्रीन हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों को उन क्षेत्रों में बढ़ावा दिया जा रहा है जहांँ प्रत्यक्ष विद्युतीकरण संभव नहीं है।
    • अत्यधिक शुल्क, लंबी दूरी का परिवहन, कुछ औद्योगिक क्षेत्र और  दीर्घकालिक विद्युत भंडारण उन क्षेत्रों में शामिल हैं जहाँ ग्रीन हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy- MNRE) ने देश में हाइड्रोजन पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने हेतु एक मसौदा नीति जारी  की है।
  • इस उद्योग का प्रारंभिक चरण क्षेत्रीय हब के निर्माण पर आधारित है जो उच्च मूल्य वाले ग्रीन उत्पादों और इंजीनियरिंग, खरीद एवं निर्माण सेवाओं के  निर्यात पर केंद्रित है।

चुनौतियांँ:

  • आर्थिक स्थिरता: ग्रीन हाइड्रोजन के प्रयोग से उत्पन्न होने वाली आर्थिक स्थिरता व्यावसायिक रूप से हाइड्रोजन का उपयोग करने पर उद्योग द्वारा सामना की जाने वाली सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
    • परिवहन ईंधन सेल्स (Transportation Fuel Cells) के लिये हाइड्रोजन को प्रति मील के आधार पर पारंपरिक ईंधन और प्रौद्योगिकियों के साथ लागत-प्रतिस्पर्द्धी  होना चाहिये।
  • उच्च लागत और सहायक बुनियादी ढांँचे की कमी:
    • ईंधन सेल (Fuel cells) तकनीकी जिसका उपयोग कारों में प्रयोग होने वाले हाइड्रोजन ईंधन को ऊर्जा में परिवर्तित करने हेतु किया जाता है, अभी भी महंँगे हैं।
    • कारों में हाइड्रोजन ईंधन भरने हेतु आवश्यक हाइड्रोजन स्टेशन का बुनियादी ढांँचा अभी भी व्यापक रूप से विकसित नहीं है।

उठाए गए कदम:

आगे की राह

  • ग्रीन हाइड्रोजन और इलेक्ट्रोलाइज़र क्षमता के लिये एक राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित करना: भारत में एक जीवंत हाइड्रोजन उत्पाद निर्यात उद्योग जैसे कि ग्रीन स्टील (वाणिज्यिक हाइड्रोजन स्टील प्लांट) के निर्माण हेतु एक चरणबद्ध निर्माण कार्यक्रम का उपयोग किया जाना चाहिये।
  • पूरक समाधान लागू कर सुदृढ़ चक्र (Virtuous Cycles) बनाना: उदाहरण के लिये हवाई अड्डों पर ईंधन भरने, ऊर्जा प्रदान करने और विद्युत उत्पन्न करने के लिये हाइड्रोजन बुनियादी ढाँचा स्थापित किया जा सकता है।
  • विकेंद्रीकृत उत्पादन: विकेंद्रीकृत हाइड्रोजन उत्पादन को एक इलेक्ट्रोलाइज़र (जो बिजली का उपयोग करके H2 और O2 बनाने हेतु पानी को विभाजित करता है) के लिये अक्षय ऊर्जा की खुली पहुँच के माध्यम से बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • वित्त प्रदान करना: नीति निर्माताओं को भारत में उपयोग हेतु प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने के लिये प्रारंभिक चरण के पायलट स्तर और अनुसंधान एवं विकास में निवेश की सुविधा प्रदान करनी चाहिये।

स्रोत : डाउन टू अर्थ


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

G20 विदेश मंत्रियों की बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

G-20, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष,वैक्सीन मैत्री' 

मेन्स के लिये: 

वैक्सीन कूटनीति और वैक्सीन इक्विटी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इटली ने कोविड-19 का मुकाबला करने, वैश्विक अर्थव्यवस्था में रिकवरी को तीव्र करने और अफ्रीका में सतत् विकास को बढ़ावा देने जैसे विषयों के लिये G-20 विदेश मंत्रियों की बैठक की मेज़बानी की।

  • वर्तमान में इटली के पास G-20 की अध्यक्षता है। G-20 शिखर सम्मेलन अक्तूबर, 2021 में इटली में आयोजित होने वाला है।
  • भारत द्वारा वर्ष 2023 में G-20 की अध्यक्षता करने की उम्मीद है।

G-20

  • G-20 समूह विश्व बैंक एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का प्रतिनिधि, यूरोपियन संघ एवं 19 देशों का एक अनौपचारिक समूह है।
  • G-20 समूह विश्व की प्रमुख उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों को एक साथ लाता है। यह वैश्विक व्यापार का 75%, वैश्विक निवेश का 85%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85% तथा विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है
  • G-20 के सदस्य देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
  • इसका कोई स्थायी सचिवालय या मुख्यालय नहीं है।

प्रमुख बिंदु:

मीटिंग के संदर्भ में:

  • Covid-19 पर:
    • मीटिंग में वैक्सीन कूटनीति में शामिल होने के लिये चीन और रूस की आलोचना की गई।
      • वैक्सीन कूटनीति वैश्विक स्वास्थ्य कूटनीति की वह शाखा है जिसमें एक राष्ट्र अन्य देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिये टीकों के विकास या वितरण का उपयोग करता है।
    • विज्ञान आधारित समग्र वन हेल्थ अप्रोच को बढ़ावा देना।
      • 'वन हेल्थ' कार्यक्रमों, नीतियों, कानून एवं अनुसंधान को डिज़ाइन और कार्यान्वित करने का एक दृष्टिकोण है जिसमें कई क्षेत्र बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणामों को प्राप्त करने के लिये संवाद करते हैं तथा मिलकर कार्य करते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन पर:
    • बढ़ती जलवायु परिवर्तनशीलता और चरम मौसम की घटनाएँ कृषि उत्पादन को प्रभावित करती हैं तथा वैश्विक भूख में वृद्धि के कारकों में से एक है।
  • अफ्रीका पर:
    • कोविड-19 महामारी, संघर्ष, सूखा, आर्थिक संकट और चरम मौसमी घटनाएँ विकास की गति में बाधक बन रहे हैं।
    • संपूर्ण अफ्रीका में लगभग 250  मिलियन लोग भूख का शिकार हैं, जो कि जनसंख्या का  (वर्ष 2019 तक) लगभग 20% है

भारत का रुख:

  • भारत ने मीटिंग के दौरान "वैक्सीन इक्विटी" के मुद्दे को उठाया।
  • अर्थव्यवस्था को विनिर्माण, खाद्य और स्वास्थ्य सहित विकेंद्रीकृत वैश्वीकरण की आवश्यकता है। इसके समानांतर लचीली आपूर्ति शृंखला विकसित होनी चाहिये।
    • आज दुनिया बहुत अधिक परस्पर जुड़ी हुई और अन्योन्याश्रित है लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिये कि वैश्वीकरण केवल संसाधनों और बाज़ारों पर लागू हो, जबकि उत्पादन केंद्र कुछ लोगों के हाथों में केंद्रित रहे।
    • भारत सहित कई देशों को महामारी के दौरान चिकित्सा उपकरण प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और कंप्यूटर चिप की कमी तथा ऑटोमोबाइल उत्पादन को रोकने जैसे कई क्षेत्रों में व्यवधान का सामना करना पड़ा।

वैक्सीन इक्विटी:

  • इसमें भौगोलिक और भू-राजनीति की परवाह किये बिना वैश्विक आबादी हेतु टीकों की वहनीयता और पहुंँच दोनों के अवसर  शामिल हैं।
  • आवश्यकता:
    •  वैक्सीन के असमान वितरण से न केवल लाखों लोग वायरस की चपेट में आ रहे हैं बल्कि वैश्विक स्तर पर वायरस घातक रूप में उभरकर सामने आ रहां है।
    • उन्नत टीकाकरण कार्यक्रमों वाले देशों द्वारा सख्त सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को लागू करने तथा यात्राओं पर प्रतिबंध लागू करने के बावजूद वायरस के विभिन्न वेरिएंट लगातार फैल रहे हैं। 
  • वैक्सीन इक्विटी सुनिश्चित करने हेतु पहल:
    • COVAX: यह एक वैश्विक पहल है जिसका उद्देश्य यूनिसेफ (UNICEF), गावी (वैक्सीन एलायंस), विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization), महामारी की तैयारी हेतु गठबंधन और अन्य के नेतृत्व में कोविड -19 टीकों की समान पहुंँच सुनिशित करना है।
    • भारत ने विभिन्न देशों को कोविड वैक्सीन की आपूर्ति हेतु अपनी 'वैक्सीन मैत्री' (Vaccine Maitri) पहल की शुरुआत की है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत के अनौपचारिक मज़दूर वर्ग को विश्व बैंक का समर्थन

प्रिलिम्स के लिये:

कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी, विश्व बैंक, गिग वर्कर, गिग इकॉनमी, इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन, इंटरनेशनल बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट

मेन्स के लिये:

भारत की अर्थव्यवस्था को कोविड-19 के प्रभाव से उबारने में विश्व बैंक की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व बैंक (World Bank) ने वर्तमान महामारी संकट से उबरने के लिये भारत के अनौपचारिक श्रमिक वर्ग का समर्थन करने हेतु 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण कार्यक्रम को मंज़ूरी दी है।

  • यह ऋण राज्यों को वर्तमान महामारी, भविष्य की जलवायु और आपदा के झटकों से निपटने हेतु अधिक नम्यता प्रदान करेगा।

प्रमुख बिंदु

विश्व बैंक द्वारा वित्तीय सहायता:

  • विश्व बैंक की वित्तीय सहायता के विषय में:
    • 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता में से 112.50 मिलियन अमेरिकी डॉलर को इसकी रियायती ऋण देने वाली शाखा इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन (International Development Association- IDA) द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा और शेष राशि इंटरनेशनल बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (International Bank for Reconstruction and Development- IBRD) से वित्तपोषित होगी।
    • ऋण की परिपक्वता अवधि 18.5 वर्ष है जिसमें पाँच वर्ष की छूट अवधि शामिल है।
  • महामारी की शुरुआत के बाद से फंडिंग:
    • वर्ष 2020 में पहले से मौजूद राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के माध्यम से चिह्नित लगभग 320 मिलियन व्यक्तिगत बैंक खातों में तत्काल आपातकालीन राहत नकद हस्तांतरण प्रदान किया गया।
    • साथ ही लगभग 80 करोड़ लोगों के लिये अतिरिक्त राशन की व्यवस्था की गई है।

महत्त्व:

  • उपयुक्त सामाजिक सुरक्षा प्रतिक्रियाओं को डिज़ाइन और कार्यान्वित करने के लिये राज्य अब आपदा प्रतिक्रिया निधि से लचीला वित्तपोषण (Flexible Funding) प्राप्त कर सकते हैं।
  • शहरी अनौपचारिक श्रमिकों, गिग वर्कर्स (Gig Worker) और प्रवासियों के लिये सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में धन का उपयोग किया जाएगा।
    • गिग वर्कर, गिग इकॉनमी से संबंधित होता है जो एक मुक्त बाज़ार प्रणाली है जिसमें सामान्यतः अस्थायी पद होते हैं और संगठन अल्पकालिक समय के लिये स्वतंत्र श्रमिकों के साथ अनुबंध करते हैं।
  • इसका उद्देश्य समुदायों की अर्थव्यवस्थाओं और आजीविका के लचीलेपन का निर्माण करना है।
  • नगरपालिका स्तर पर निवेश राष्ट्रीय डिजिटल शहरी मिशन (National Digital Urban Mission) को बढ़ावा देगा जो शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये एक साझा डिजिटल बुनियादी ढाँचा तैयार करेगा और अनौपचारिक श्रमिकों हेतु शहरी सुरक्षा जाल तथा सामाजिक बीमा को बढ़ाएगा।
    • इसमें महिला श्रमिकों और महिला प्रधान परिवारों पर लिंग-विभाजित जानकारी भी शामिल होगी।
    • यह नीति निर्माताओं को लिंग-आधारित सेवा वितरण अंतराल को दूर करने और विशेष रूप से विधवाओं, किशोर लड़कियों तथा आदिवासी महिलाओं तक प्रभावी ढंग से पहुँचने की अनुमति देगा।
  • स्ट्रीट वेंडर (Street Vendor) भारत की शहरी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग हैं। यह कार्यक्रम स्ट्रीट वेंडरों को 10,000 रुपए तक के किफायती कार्यशील पूंजी ऋण तक पहुँच प्रदान करेगा।
    • नए क्रेडिट कार्यक्रम से करीब 50 लाख शहरी स्ट्रीट वेंडर लाभान्वित हो सकते हैं।

अनौपचारिक क्षेत्र के कार्यबल:

  • अनौपचारिक क्षेत्र किसी भी अर्थव्यवस्था का वह हिस्सा है जिस पर न तो सरकार द्वारा किसी प्रकार का कर लगाया जाता है और न ही उसकी निगरानी की जाती है।
    • अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक या अनौपचारिक श्रमिक हैं।
  • अनौपचारिक क्षेत्र गरीबों के लिये महत्त्वपूर्ण आर्थिक अवसर प्रदान करता है।
  • यह काफी हद तक औपचारिक शिक्षा, आसान प्रवेश, स्थिर नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों की कमी और संचालन के एक छोटे पैमाने के बाहर प्राप्त कौशल की विशेषता है।
  • औपचारिक अर्थव्यवस्था के विपरीत अनौपचारिक क्षेत्र के घटकों को सकल घरेलू उत्पाद की गणना में शामिल नहीं किया जाता है।

अनौपचारिक कार्यबल की रक्षा करने की आवश्यकता:

  • भारत के अनुमानित 450 मिलियन अनौपचारिक श्रमिकों में इसके कुल कार्यबल का 90% शामिल है, जिसमें 5-10 मिलियन कर्मचारी वार्षिक रूप से जोड़े जाते हैं।
  • इसके अतिरिक्त ऑक्सफैम (Oxfam’s) की नवीनतम वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में अपनी नौकरी गँवाने वाले कुल 122 मिलियन में से 75% अनौपचारिक क्षेत्र में चले गए थे।
  • कोविड -19 महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन के कारण नौकरी छूटने तथा अनौपचारीकरण में और वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप गरीबों में सामाजिक सुरक्षा का अभाव है।
  • इसके अतिरिक्त वित्त वर्ष 2020-21 में अर्थव्यवस्था में 7.7% की गिरावट आई है। इसलिये रोज़गार सृजन के माध्यम से अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि अनौपचारिक क्षेत्र अधिक श्रम प्रधान है।

सरकार द्वारा शुरू की गई कुछ पहलें

विश्व बैंक समूह

  • विश्व बैंक समूह एक विशिष्ट वैश्विक साझेदारी है, जिसमें पाँच विकास संस्थान शामिल हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD) ऋण, क्रेडिट और अनुदान प्रदान करता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA) कम आय वाले देशों को कम या बिना ब्याज वाले ऋण प्रदान करता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) कंपनियों और सरकारों को निवेश, सलाह तथा परिसंपत्तियों के प्रबंधन संबंधी सहायता प्रदान करता है।
    • बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (MIGA) ऋणदाताओं और निवेशकों को युद्ध जैसे राजनीतिक जोखिम के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने का काम करती है।
    • निवेश विवादों के निपटारे के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (ICSID) निवेशकों और देशों के मध्य उत्पन्न निवेश-विवादों के सुलह और मध्यस्थता के लिये सुविधाएँ प्रदान करता है। 
      • भारत ‘निवेश विवादों के निपटारे के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र’ का सदस्य नहीं है। 
  • वर्तमान में  189 देश IBRD के सदस्य हैं, जबकि IDA में 173 सदस्य देश हैं।

आगे की राह

  • MSME को सुदृढ़ बनाना: अनौपचारिक कार्यबल का लगभग 40% हिस्सा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) में कार्यरत है। इसलिये स्वाभाविक है कि MSMEs के मज़बूत होने से आर्थिक सुधार, रोज़गार सृजन और अर्थव्यवस्था का औपचारीकरण होगा।
  • CSR व्यय के तहत कौशल विकास: बड़े कॉरपोरेट घरानों को कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) व्यय के तहत असंगठित क्षेत्रों में लोगों को कुशल बनाने की ज़िम्मेदारी भी लेनी चाहिये।
  • अदृश्य श्रम को पहचानना: घरेलू कामगारों के अधिकारों को पहचानने और बेहतर काम करने की स्थिति को बढ़ावा देने के लिये जल्द-से-जल्द एक राष्ट्रीय नीति लाने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

जेंडर सेल्फ आइडेंटिफिकेशन

प्रिलिम्स के लिये: 

जेंडर सेल्फ आइडेंटिफिकेशन, ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम, 2019

मेन्स के लिये:  

जेंडर सेल्फ आइडेंटिफिकेशन के पक्ष तथा विपक्ष में तर्क, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकार के संरक्षण हेतु भारत सरकार की पहल 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्पेनिश सरकार ने एक ऐसे मसौदा विधेयक को मंज़ूरी दी है जो 14 वर्ष से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति को चिकित्सा निदान या हार्मोन थेरेपी के बिना कानूनी रूप से लिंग बदलने की अनुमति देगा।

  • वर्तमान में किसी भी व्यक्ति को आधिकारिक रिकॉर्ड में अपना लिंग परिवर्तित करने  से पहले  कानूनी रूप से दो साल की हार्मोन थेरेपी और एक मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन की आवश्यकता होती है।
  • ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति व्याप्त पूर्वाग्रह के चलते ‘सेल्फ आइडेंटिफिकेशन’ यानी 'स्व-पहचान' भारत सहित दुनिया भर में ट्रांस-राइट समूहों की लंबे समय से मांग रही है।

प्रमुख बिंदु:

जेंडर सेल्फ आइडेंटिफिकेशन (अवधारणा):

  • एक व्यक्ति को केवल घोषणा के माध्यम से और बिना किसी चिकित्सीय परीक्षण के अपनी पसंद के लिंग के साथ पहचाने जाने हेतु कानूनी रूप से अनुमति दी जानी चाहिये।
  • पक्ष में तर्क: 
    • वांछित लिंग के साथ पहचान घोषित करने की वर्तमान प्रक्रिया लंबी, महँगी और अपमानजनक है।
    • ट्रांसजेंडर लोगों को दैनिक रूप से भेदभाव का सामना करना पड़ता है, ऐसे में यह महत्त्वपूर्ण है कि इस भेदभाव से निपटने के लिये कदम उठाए जाएँ और लोगों को आवश्यक सेवाएँ तथा सहायता प्रदान की जाए।
    • लैंगिक पहचान को उस व्यक्ति का एक अंतर्निहित हिस्सा माना जाता है जिसे शल्य चिकित्सा या हार्मोनल उपचार या चिकित्सा की आवश्यकता हो भी सकती है या नहीं भी हो सकती है। इसके अलावा सभी व्यक्तियों को अपनी शारीरिक अखंडता और शारीरिक स्वायत्तता को प्रभावित करने वाले निर्णय लेने के लिये सशक्त होना चाहिये।
  • विपक्ष में तर्क
    • जेंडर सेल्फ आइडेंटिफिकेशन लोगों के इस अधिकार के सम्मान से कहीं आगे है कि वे क्या चाहते हैं; अपनी इच्छानुसार पोशाक धारण करना या अपनी पहचान व्यक्त करना।
    • यह एक राजनीतिक और सामाजिक मांग है जो सभी, विशेष रूप से महिलाओं, समलैंगिक लोगों और ट्रांससेक्सुअल लोगों को प्रभावित करती है।
    • जेंडर आइडेंटिफिकेशन के चिकित्साकरण ने ट्रांस समुदाय के कुछ सदस्यों के लिये महत्त्वपूर्ण कानूनी मान्यता और संक्रमण से संबंधित स्वास्थ्य देखभाल की अनुमति दी है।

ऐसे देश जहांँ सेल्फ आइडेंटिफिकेशन को कानूनी मान्यता प्राप्त है:

  • डेनमार्क, पुर्तगाल, नॉर्वे, माल्टा, अर्जेंटीना, आयरलैंड, लक्ज़मबर्ग, ग्रीस, कोस्टा रिका, मैक्सिको (केवल मैक्सिको सिटी में), ब्राज़ील, कोलंबिया, इक्वाडोर और उरुग्वे सहित विश्व के 15 देश सेल्फ आइडेंटिफिकेशन को मान्यता प्रदान करते हैं।
  • हंगरी में एक नया कानून लाया गया है जिसके अनुसार, 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिये स्कूली पाठ्यक्रम और टेलीविज़न शो के माध्यम से समलैंगिकता तथा लिंग परिवर्तन के बारे में सभी ज्ञानकारियों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना आवश्यक है।

 भारत में नियम:

  • भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकार ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2019 और ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020 द्वारा शासित होते हैं।
    • नियम के तहत लिंग घोषित करने हेतु ज़िलाधिकारी को आवेदन करना होता है। माता-पिता भी अपने बच्चे की ओर से आवेदन कर सकते हैं।
    • नियम के तहत पहचान प्रमाण पत्र जारी करने/लिंग परिवर्तन करने की प्रक्रियाओं हेतु कोई चिकित्सा या शारीरिक परीक्षा की अनिवार्यता नहीं होगी।
  • राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) बनाम भारत संघ, 2014 मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर लोगों को 'थर्ड जेंडर' घोषित किया।
    • न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आत्म-अभिव्यक्ति (Self-Expression) में विविधता को शामिल करने के लिये 'गरिमा' की व्याख्या की, जो किसी व्यक्ति को एक सम्मानजनक जीवन जीने की अनुमति देता है। इसने लैंगिक पहचान को अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के मौलिक अधिकार के ढाँचे के भीतर रखा।
    • इसके अतिरिक्त यह उल्लेख किया गया कि समानता के अधिकार (संविधान का अनुच्छेद 14) और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 (1) (a) को लिंग-तटस्थ (Gender-Neutral) शब्दों ("सभी व्यक्ति") के साथ निर्मित किया गया था अर्थात् इन अधिकारों में किसी विशिष्ट लिंग के बजाय सभी व्यक्तियों की बात की गई है।
  • 2018 में SC ने समलैंगिक संबंधों को भी अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया (भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के प्रावधानों के साथ पढ़ें)।

ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम, 2019 की विशेषताएँ

  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति की परिभाषा: यह अधिनियम किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, जिसका लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाता। इसमें ट्रांस-मेन और ट्रांस-वूमेन, इंटरसेक्स भिन्नताओं और जेंडर क्वीर (Queer) शामिल हैं। इसमें सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति जैसे किन्नर भी शामिल हैं।
  • पहचान का प्रमाणपत्र: अधिनियम में कहा गया है कि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को स्व-कथित लिंग पहचान का अधिकार होगा।
    • पहचान का प्रमाणपत्र ज़िलाधिकारी के कार्यालय से प्राप्त किया जा सकता है और लिंग परिवर्तन होने पर संशोधित प्रमाणपत्र प्राप्त करना होता है।
  • यह अधिनियम शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य सेवा आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति के खिलाफ भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
  • इसमें ‘राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद’ की स्थापना का प्रावधान है।
  • दंड: इस अधिनियम में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ अपराध के मामले में जुर्माने के अलावा छह महीने से दो वर्ष तक की कैद की सज़ा का प्रावधान किया गया है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय विरासत और संस्कृति

कालबेलिया नृत्य

प्रिलिम्स के लिये:

कालबेलिया नृत्य, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन, अमूर्त सांस्कृतिक विरासत,अनुसूचित जनजाति

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण नहीं

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कोविड-19 महामारी के कारण कालबेलिया नृत्य (Kalbeliya Dance) करने वाले छात्रों के बीच चेंडाविया (Chendavia) नामक एक एप लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है।

Kalbeliya-Dance

प्रमुख बिंदु:

परिचय:

  • कालबेलिया नृत्य कालबेलिया समुदाय के पारंपरिक जीवनशैली की एक अभिव्यक्ति है।
    • यह इसी नाम की एक राजस्थानी जनजाति से संबंधित है।
  • इसे वर्ष  2010 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठनों (UNESCO) की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (ICH) की सूची में शामिल किया गया था।
    • UNESCO की प्रतिष्ठित सूची उन अमूर्त विरासतों से मिलकर बनी है जो सांस्कृतिक विरासत की विविधता को प्रदर्शित करने और इसके महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद करते हैं।
    • यह सूची 2008 में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा पर कन्वेंशन के समय स्थापित की गई थी।
  • इस नृत्य रूप में घूमना और रमणीय संचरण शामिल है जो इस नृत्य को देखने लायक बनाता है।
    • कालबेलिया से जुड़े मूवमेंट भी इसे भारत में लोक नृत्य के सबसे भावमय रूपों में से एक बनाते हैं।
  • यह प्रायः किसी भी खुशी के उत्सव पर किया जाता है और इसे कालबेलिया संस्कृति का एक अभिन्न अंग माना जाता है।
  • कालबेलिया नृत्य का एक और अनूठा पहलू यह है कि इसे केवल महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, जबकि पुरुष वाद्य यंत्र बजाते हैं और संगीत प्रदान करते हैं।

वाद्य-यंत्र और पोशाक:

  • घेरदार काले घाघरे में (काली स्कर्ट) में महिलाएंँ गोल गोल घूमते हुए सर्प की नकल करते हुए नृत्य करती हैं, जबकि पुरुष उनके साथ ‘खंजारी’ (khanjari) और ‘पुंगी’ (Poongi) वाद्य यंत्र बजाते हैं, जो पारंपरिक रूप से सांँपों को पकड़ने हेतु बजाया जाता है।
  • नर्तक शरीर पर पारंपरिक टैटू निर्मित करवाते हैं तथा आभूषण, छोटे दर्पण और चांदी के धागे से निर्मित कढ़ाई वाले वस्त्र पहनते हैं।

कालबेलिया संगीत/गीत: 

  • कालबेलिया गीतों में कथाओं एवं कहानियों के माध्यम से पौराणिक ज्ञान का प्रसार किया जाता है।
  • इन गीतों में कालबेलिया के काव्य कौशल का प्रदर्शन होता है जिसका प्रयोग नृत्य प्रदर्शन हेतु गीतों को सहज रूप से लिखने और गीतों को बेहतर बनाने हेतु किया जाता है।
  • पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रेषित गीत और नृत्य एक मौखिक परंपरा का हिस्सा हैं, जिसके लिये  कोई पाठ या प्रशिक्षण नियमावली मौजूद नहीं है।

कालबेलिया जनजाति:

  • कालबेलिया जनजाति के लोग कभी पेशेवर रूप से सर्प को पकड़ने  (Professional Snake Handlers) का कार्य करते थे, आज वे संगीत और नृत्य में अपने पूर्व व्यवसाय को बनाए हुए हैं जो नए व रचनात्मक तरीकों के माध्यम से सामने आ रहा  है।
  • वे खानाबदोश जीवन व्यतीत करते हैं और अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) में शामिल हैं।
  • कालबेलिया की सबसे अधिक आबादी पाली ज़िले में पाई जाती है, उसके बाद  अजमेर, चित्तौड़गढ़ और उदयपुर ज़िले (राजस्थान) में हैं।

राजस्थान के अन्य पारंपरिक लोक नृत्य: गैर, कच्छी घोड़ी, घूमर, भवई आदि शामिल हैं।

यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त 13 अमूर्त सांस्कृतिक विरासतें

1.

वैदिक जप की परंपरा, 2008

8.

लद्दाख का बौद्ध जप: हिमालय के लद्दाख क्षेत्र, जम्मू और कश्मीर, भारत में पवित्र बौद्ध ग्रंथों का पाठ, 2012

2.

रामलीला, रामायण का पारंपरिक प्रदर्शन, 2008

9.

मणिपुर का संकीर्तन, अनुष्‍ठान, गायन, ढोलक बजाना और नृत्य करना, 2013

3.

कुटियाट्टम, संस्कृत थिएटर, 2008

10.

जंडियाला गुरु, पंजाब, भारत के ठठेरों के बीच पारंपरिक तौर पर पीतल और तांबे के बर्तन बनाने का शिल्प, 2014

4.

रम्माण, गढ़वाल हिमालय (भारत) के धार्मिक उत्‍सव और परंपरा का मंचन, 2009

11.

योग, 2016

5.

मुदियेट्टू, अनुष्ठान थियेटर और केरल का नृत्य नाटक, 2010

12.

नवरोज़, 2016

6.

कालबेलिया राजस्थान का लोकगीत और नृत्य, 2010

13.

कुंभ मेला, 2017

7.

छऊ नृत्य, 2010

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

भारतनेट प्रोजेक्ट

प्रिलिम्स के लिये:

भारतनेट प्रोजेक्ट, व्यवहार्यता अंतराल अनुदान, सार्वजनिक-निजी भागीदारी, 'राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन

मेन्स के लिये:

भारतनेट में PPP का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के माध्यम से भारतनेट परियोजना के कार्यान्वयन के लिये 19,041 करोड़ रुपए (कुल 29,430 करोड़ रुपए के खर्च में से) तक की व्यवहार्यता अंतराल अनुदान सहायता को मंज़ूरी दी।

  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership- PPP) प्रक्रिया में एक सरकारी एजेंसी और एक निजी क्षेत्र की कंपनी के बीच सहयोग शामिल है जिसका उपयोग परियोजनाओं के वित्तपोषण, निर्माण और संचालन के लिये किया जा सकता है। दूरसंचार के इस महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे में PPP मॉडल एक नई पहल है।
  • व्यवहार्यता अंतराल अनुदान (Viability Gap Funding- VGF) का अर्थ एक ऐसा अनुदान होता है जो सरकार द्वारा ऐसे आधारभूत ढाँचा परियोजना को प्रदान किया जाता है जो आर्थिक रूप से उचित हो लेकिन उनकी वित्तीय व्यवहार्यता कम हो (Economically Justified but not Financially Viable), ऐसा अनुदान दीर्घकालीन परिपक्वता अवधि वाली परियोजना को प्रदान किया जाता है।  

प्रमुख बिंदु:

परिचय:

  • यह ऑप्टिकल फाइबर का उपयोग कर विश्व का सबसे बड़ा ग्रामीण ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी कार्यक्रम है और भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड (BBNL) द्वारा कार्यान्वित एक प्रमुख मिशन भी।
    • BBNL, भारत सरकार द्वारा कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत 1000 करोड़ रुपए की अधिकृत पूंजी के साथ स्थापित एक विशेष प्रयोजन वाहन (SPV) है।
  • यह राज्यों और निजी क्षेत्र की साझेदारी में डिजिटल इंडिया के विज़न को साकार करने हेतु एक उच्च मापनीय नेटवर्क अवसंरचना है जिसे गैर-भेदभावपूर्ण आधार पर सभी घरों के लिये 2Mbps से 20Mbps तथा सभी संस्थानों को उनकी मांग क्षमता के अनुसार सस्ती ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिये एक्सेस किया जा सकता है।
  • इसे संचार मंत्रालय के तहत दूरसंचार विभाग द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • अक्तूबर 2011 में नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (National Optical Fibre Network- NOFN) को लॉन्च किया गया था, वर्ष 2015 में इसका नाम बदलकर भारत नेट प्रोजेक्ट (Bharat Net Project) कर दिया गया।
    • NOFN को ग्राम पंचायतों (Gram Panchayats) तक ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी पहुंँचाने हेतु एक मज़बूत बुनियादी ढांँचे के निर्माण के माध्यम से एक सूचना सुपरहाइवे के रूप में परिकल्पित किया गया था।
  • वर्ष 2019 में संचार मंत्रालय ने संपूर्ण देश भर में ब्रॉडबैंड सेवाओं की सार्वभौमिक और समान पहुँच की सुविधा हेतु 'राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन' (National Broadband Mission) भी शुरू किया था।

वित्तपोषण:

  • संपूर्ण परियोजना को यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (Universal Service Obligation Fund- USOF) द्वारा वित्तपोषित किया जा रहा है, जिसे देश के ग्रामीण और दूरदराज़ क्षेत्रों में दूरसंचार सेवाओं में सुधार के उद्देश्य से स्थापित किया गया था।

उद्देश्य:

  • इसका उद्देश्य ग्रामीण भारत में ई-गवर्नेंस (e-governance), ई-स्वास्थ्य, ई-शिक्षा, ई-बैंकिंग, इंटरनेट और अन्य सेवाओं के वितरण को सुगम बनाना है।

परियोजना के चरण:

  • प्रथम चरण:
    • दिसंबर 2017 तक भूमिगत ऑप्टिक फाइबर केबल (Optic Fibre Cable- OFC) लाइन बिछाकर एक लाख ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करना।
  • द्वितीय चरण:
    • मार्च 2019 तक भूमिगत फाइबर, बिजली लाइनों पर फाइबर, रेडियो और सैटेलाइट मीडिया के इष्टतम उपयोग से देश की सभी ग्राम पंचायतों को कनेक्टिविटी प्रदान करना।
  • तृतीय चरण:
    • वर्ष 2019 से 2023 तक एक अत्याधुनिक, फ्यूचर-प्रूफ नेटवर्क (Future-Proof Network) के तहत ज़िलों और ब्लॉकों के मध्य फाइबर को विस्तारित करने हेतु रिंग टोपोलॉजी (Ring Topology) का उपयोग किया जाएगा।

भारतनेट का वर्तमान विस्तार:

  • इस परियोजना को 16 राज्यों में ग्राम पंचायतों से परे बसे हुए सभी गाँवों में विस्तारित किया जाएगा जो इस प्रकार हैं:
    • केरल, कर्नाटक, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश।
  • संशोधित रणनीति में निजी क्षेत्र के भागीदारों द्वारा भारतनेट का निर्माण, उन्नयन, संचालन, रखरखाव और उपयोग शामिल होगा जिसे प्रतिस्पर्द्धी अंतर्राष्ट्रीय बोली प्रक्रिया द्वारा चुना जाएगा।
  • चयनित निजी क्षेत्र के भागीदार से पूर्वनिर्धारित सेवा स्तर समझौते (Services Level Agreement- SLA) के अनुसार विश्वसनीय, उच्च गति ब्रॉडबैंड सेवाएँ प्रदान करने की उम्मीद है।

भारतनेट में PPP का महत्त्व:

  • तीव्र कार्यान्वयन:
    • PPP मॉडल संचालन, रखरखाव, उपयोग तथा राजस्व सृजन के लिये निजी क्षेत्र की दक्षता का लाभ उठाएगा और इसके परिणामस्वरूप भारतनेट का तेज़ी से रोल आउट होने की उम्मीद है।
  • बढ़ा हुआ निवेश:
    • निजी क्षेत्र के भागीदार से एक इक्विटी निवेश लाने और पूंजीगत व्यय के लिये और नेटवर्क के संचालन एवं रखरखाव हेतु संसाधन जुटाने की उम्मीद है।
  • बेहतर पहुँच:
    • बसे हुए सभी गाँवों में भारतनेट का विस्तार विभिन्न सरकारों द्वारा दी जाने वाली ई-सेवाओं तक बेहतर पहुँच को सक्षम करेगा, साथ ही यह ऑनलाइन शिक्षा, टेलीमेडिसिन, कौशल विकास, ई-कॉमर्स और ब्रॉडबैंड के अन्य अनुप्रयोगों को भी सक्षम करेगा।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

'संघ' या 'केंद्र' सरकार

प्रिलिम्स के लिये

संविधान सभा, अनुच्छेद-1, 'संघ’ और ‘केंद्र’ का अर्थ

मेन्स के लिये 

संघ और केंद्र सरकार के मध्य अंतर, केंद्र सरकार शब्द के साथ जुड़े मुद्दे

 चर्चा में क्यों?

हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने अपने आधिकारिक पत्राचार या संचार में 'केंद्र सरकार' (Central Government) शब्द के उपयोग को बंद करने एवं इसके स्थान पर 'संघ सरकार' (Union Government) शब्द का उपयोग करने का फैसला किया है।

  •  सामान्य तौर पर भारत में "संघ सरकार" और "केंद्र सरकार" शब्दों का उपयोग किया जाता है। हालाँकि संविधान सभा के मूल संविधान के 22 भागों में 395 अनुच्छेदों और आठ अनुसूचियों को पढ़ने के बाद यह कहा जा सकता है कि 'केंद्र' या 'केंद्र सरकार' शब्द का उपयोग कहीं भी नहीं किया गया है।

प्रमुख बिंदु 

संविधान सभा का पक्ष :

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1(1) में कहा गया है, "भारत, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा।"
  • 13 दिसंबर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने इस संकल्प के माध्यम से संविधान सभा के लक्ष्यों और उद्देश्यों को पेश किया था कि भारत, "स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य" में शामिल होने के इच्छुक क्षेत्रों का एक संघ होगा।
    • एक मज़बूत संयुक्त देश बनाने के लिये विभिन्न प्रांतों और क्षेत्रों के एकीकरण और संधि पर जोर दिया गया था।
  • 1948 में संविधान का मसौदा प्रस्तुत करते समय मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. बी आर अंबेडकर ने कहा था कि समिति ने 'संघ' शब्द का इस्तेमाल किया था क्योंकि:
    (a) भारतीय संघ इकाइयों द्वारा एक समझौते का परिणाम नहीं था और 
    (b)  घटक इकाइयों को संघ से अलग होने की कोई स्वतंत्रता नहीं थी।
  • संविधान सभा के सदस्य संविधान में 'केंद्र' या 'केंद्र सरकार' शब्द का प्रयोग न करने के लिये बहुत सतर्क थे क्योंकि उनका उद्देश्य एक इकाई में शक्तियों के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति को दूर रखना था।

‘संघ’ और ‘केंद्र’ का अर्थ:

  • संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अनुसार, शाब्दिक दृष्टि से 'केंद्र' एक वृत्त के मध्य में एक बिंदु को इंगित करता है, जबकि 'संघ' संपूर्ण वृत्त है।
    • भारत में संविधान के अनुसार, 'केंद्र' और राज्यों के बीच का संबंध वास्तव में संपूर्ण और उसके हिस्सों के बीच का संबंध है।
  • संघ और राज्य दोनों संविधान द्वारा बनाई गई इकाइयाँ हैं और दोनों को संविधान के माध्यम से अपने-अपने अधिकार प्राप्त हैं।
    • एक इकाई अपने स्वतंत्र क्षेत्र में दूसरी इकाई के अधीन नहीं है और एक का अधिकार दूसरे के साथ समन्वित है।
  • इसी प्रकार भारतीय संविधान में न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय, जो कि देश की सबसे ऊँची अदालत है, का उच्च न्यायालय पर कोई अधीक्षण नहीं है।
    • यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार न केवल उच्च न्यायालयों पर बल्कि अन्य न्यायालयों और न्यायाधिकरणों पर भी है, किंतु उन्हें इसके अधीनस्थ घोषित नहीं किया जा सकता है।
    • वास्तव में उच्च न्यायालयों के पास ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों पर अधीक्षण की शक्ति होने के बावजूद विशेषाधिकार रिट जारी करने की व्यापक शक्तियाँ हैं।
  • सामान्य शब्दों में ‘संघ’, संघीय भावना को इंगित करता है, जबकि ‘केंद्र’ एकात्मक सरकार की भावना को इंगित करता है।
    • किंतु व्यावहारिक रूप से दोनों शब्द भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में समान हैं।

संघीय बनाम एकात्मक सरकार

संघीय सरकार

एकात्मक सरकार

द्वैध शासन व्यवस्था (केंद्र और प्रांत)

एकात्मक सरकार- केवल केंद्र सरकार (प्रांतीय सरकार केंद्र सरकार द्वारा गठित की जाती है)

लिखित संविधान

लिखित (फ्रांँस) और अलिखित (ब्रिटेन) संविधान

केंद्र और राज्य सरकार के बीच शक्तियों का विभाजन

शक्तियों का विभाजन नहीं

संविधान की सर्वोच्चता

संविधान की सर्वोच्चता की गारंटी नहीं

कठोर संविधान 

लचीला (ब्रिटेन) और कठोर (फ्रांँस) संविधान

स्वतंत्र न्यायपालिका

न्यायपालिका स्वतंत्र हो सकती है अथवा नहीं

द्विसदनीय विधायिका

द्विसदनीय और एक सदनीय विधायिका

 केंद्र सरकार पद से संबद्ध मुद्दे

  • संविधान सभा द्वारा खारिज: संविधान में 'केंद्र' शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है; संविधान निर्माताओं ने इसे विशेष रूप से खारिज कर दिया और इसके बजाय 'संघ' शब्द का इस्तेमाल किया।
  • औपनिवेशिक विरासत: 'केंद्र' औपनिवेशिक काल का अवशेष है और नौकरशाही केंद्रीय कानून, केंद्रीय विधायिका आदि शब्द का उपयोग करने की आदी हो गई है, इसलिये मीडिया सहित अन्य सभी ने इस शब्द का उपयोग करना शुरू कर दिया।
  • संघवाद के विचार के साथ संघर्ष: भारत एक संघीय सरकार है। शासन करने की शक्ति पूरे देश के लिये एक सरकार के बीच विभाजित है, जो सामान्य राष्ट्रीय हित के विषयों और राज्यों हेतु ज़िम्मेदार है, जो राज्य के विस्तृत दिन-प्रतिदिन के शासन की देखभाल करती है।
    • सुभाष कश्यप के अनुसार, 'केंद्र' या 'केंद्र सरकार' शब्द का उपयोग करने का मतलब होगा कि राज्य सरकारें इसके अधीन हैं।

आगे की राह 

  • संविधान की संघीय प्रकृति इसकी मूल विशेषता है और इसे बदला नहीं जा सकता है, इस प्रकार सत्ता में रहने वाले हितधारक हमारे संविधान की संघीय विशेषता की रक्षा करना चाहते हैं।
  • भारत जैसे विविध और बड़े देश को संघवाद के स्तंभों, यानी राज्यों की स्वायत्तता, राष्ट्रीय एकीकरण, केंद्रीकरण, विकेंद्रीकरण, राष्ट्रीयकरण और क्षेत्रीयकरण के बीच एक उचित संतुलन की आवश्यकता है।
    • अत्यधिक राजनीतिक केंद्रीकरण या अराजक राजनीतिक विकेंद्रीकरण दोनों ही भारतीय संघवाद को कमज़ोर कर सकते हैं।
  • विकट समस्या का संतोषजनक और स्थायी समाधान विधान-पुस्तक में नहीं बल्कि सत्ता में बैठे लोगों की अंतरात्मा में खोजना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक: ITU

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक, डिजिटल इंडिया 

मेन्स के लिये:

भारत में साइबर सुरक्षा की चुनौतियाँ और सरकार द्वारा इस संबंध में किये गए प्रयास 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunication Union- ITU) के वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक (Global Cybersecurity Index- GCI) 2020 में 37 स्थानों की बढ़त के साथ 10वें स्थान पर पहुँच गया है।

  • 1 जुलाई को डिजिटल इंडिया ( Digital India) की छठी वर्षगांँठ से ठीक पहले इसकी पुष्टि की गई है।

शीर्ष रैंकिंग:

  • अमेरिका शीर्ष पर रहा, उसके बाद यूके (यूनाइटेड किंगडम) और सऊदी अरब एक साथ दूसरे स्थान पर रहे।
  • एस्टोनिया सूचकांक में तीसरे स्थान पर रहा।

भारत की स्थिति:

  • भारत ने GCI 2020 में  दसवें स्थान पर पहुंँचने के लिये अधिकतम 100 अंकों में से कुल 97.5 अंक प्राप्त किये।
  • एशिया प्रशांत क्षेत्र में भारत चौथे स्थान पर रहा।
  • भारत एक वैश्विक आईटी महाशक्ति के रूप में उभर रहा है, जो डेटा गोपनीयता और नागरिकों के ऑनलाइन अधिकारों की रक्षा हेतु दृढ़ उपायों के साथ अपनी डिजिटल संप्रभुता का दावा प्रस्तुत कर रहा है।
  • साइबर सुरक्षा डोमेन के सभी मापदंडों के तहत प्राप्त परिणाम पर्याप्त समग्र सुधार और भारत की मज़बूत स्थिति को दर्शाते हैं।

आकलन का आधार:

  • साइबर सुरक्षा के प्रदर्शन का आधार पाँच मापदंडों पर निहित है जो इस प्रकार हैं:
    • कानूनी उपाय, तकनीकी उपाय, संगठनात्मक उपाय, क्षमता विकास और सहयोग।
  • इनके आधार पर प्रदर्शन का एक समग्र स्कोर प्राप्त किया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ:

  • अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunication Union- ITU) सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के लिये संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
  • इसे संचार नेटवर्क में अंतर्राष्ट्रीय कनेक्टिविटी की सुविधा के लिये वर्ष 1865 में स्थापित किया गया। इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
  • यह वैश्विक रेडियो स्पेक्ट्रम और उपग्रह की कक्षाओं को आवंटित करता है, तकनीकी मानकों को विकसित करता है ताकि नेटवर्क और प्रौद्योगिकियों को निर्बाध रूप से आपस में जोड़ा जा सके और दुनिया भर में कम सेवा वाले समुदायों के लिये ICT तक पहुँच में सुधार करने का प्रयास किया जाए।
  • भारत को अगले 4 वर्षों की अवधि (2019-2022) के लिये पुनः अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) परिषद का सदस्य चुना गया है। भारत वर्ष 1952 से इसका एक नियमित सदस्य बना हुआ है।

भारत में साइबर सुरक्षा की चुनौतियाँ

  • विभिन्न साइबर सुरक्षा उपकरणों को तैनात करना एक खंडित और जटिल सुरक्षा वातावरण को मज़बूती प्रदान करता है, हालाँकि यह मानवीय त्रुटि से उत्पन्न जोखिमों के प्रति सुभेद्य होता है।
  • भारतीय कंपनियाँ भी साइबर सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहीं हैं, क्योंकि कोविड-19 के कारण कंपनियों के अधिकांश कर्मचारियों को ‘वर्क फ्रॉम होम’ मोड में स्थानांतरित कर दिया गया है।
  • भारत में हार्डवेयर के साथ-साथ सॉफ्टवेयर साइबर सुरक्षा उपकरणों में स्वदेशीकरण का अभाव है। यह भारत के साइबरस्पेस को राज्य और गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं द्वारा प्रेरित साइबर हमलों के प्रति संवेदनशील बनाता है।
    • भारत के पास यूरोपीय संघ के जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR) या अमेरिका के ‘क्लेरिफाइंग लॉफुल ओवरसीज़ यूज़ ऑफ डेटा’ (CLOUD) एक्ट जैसी कोई  'सक्रिय साइबर डिफेंस' नीति नहीं है।

भारत में साइबर सुरक्षा में सुधार के प्रयास:

  • राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति 2020: इस रणनीति को और अधिक कठिन ऑडिट प्रकिया के माध्यम से साइबर जागरूकता एवं साइबर सुरक्षा में सुधार के लिये तैयार किया गया है।
  • नागरिकों के डेटा को सुरक्षित करने के लिये व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक मसौदा, 2018 (न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण समिति की सिफारिश के आधार पर)। 
  • सभी प्रकार के साइबर अपराधों से व्यापक और समन्वित तरीके से निपटने के लिये अक्तूबर 2018 में I4C (भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र) स्थापित करने की योजना को मंज़ूरी दी गई थी।
  • भारतीय कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (CERT-In) सभी साइबर सुरक्षा प्रयासों, आपातकालीन प्रतिक्रियाओं और संकट प्रबंधन के समन्वय के लिये नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करती है।
  • राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र (National Critical Information Infrastructure Protection Centre- NCIIPC) की स्थापना के साथ महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचनाओं को संरक्षण प्रदान किया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय तंत्र: 

  • साइबर अपराध पर बुडापेस्ट अभिसमय: यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो राष्ट्रीय कानूनों के सामंजस्य, जाँच तकनीकों में सुधार और राष्ट्रों के बीच सहयोग बढ़ाकर इंटरनेट तथा कंप्यूटर से जुड़े अपराधों से निपटने का प्रयास करती है। यह संधि 1 जुलाई, 2004 को लागू हुई। भारत इस अभिसमय/कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है।
  • इंटरनेट गवर्नेंस फोरम (IGF): यह इंटरनेट गवर्नेंस संबंधी चर्चाओं/डिबेट पर सभी हितधारकों यानी सरकार, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज को एक साथ लाने का कार्य करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

पुर्नोत्थान वितरण क्षेत्र योजना को मंज़ूरी

प्रिलिम्स के लिये:

पुर्नोत्थान वितरण क्षेत्र योजना

मेन्स के लिये:

विद्युत क्षेत्र में भारत की स्थिति और पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 3.03 ट्रिलियन रुपए की एक सुधार-आधारित और परिणाम से जुड़ी पुर्नोत्थान वितरण क्षेत्र योजना (Revamped Distribution Sector Scheme) को मंज़ूरी दी है, जिसमें केंद्र की हिस्सेदारी 97,631 करोड़ रुपए होगी।

  • इसका उद्देश्य डिस्कॉम (निजी क्षेत्र के डिस्कॉम को छोड़कर) की परिचालन क्षमता और वित्तीय स्थिरता में सुधार करना है।

प्रमुख बिंदु:

  • संदर्भ:
    • यह डिस्कॉम (बिजली वितरण कंपनियों) की आपूर्ति के आधारभूत ढाँचे को मज़बूत करने के लिये सशर्त वित्तीय सहायता प्रदान करेगा।
      • वित्तीय सहायता पूर्व-अर्हता मानदंडों को पूरा करने और बुनियादी न्यूनतम बेंचमार्क की उपलब्धि पर आधारित होगी।
    • एकीकृत विद्युत विकास योजना, दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना और प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना जैसी सभी मौज़ूदा विद्युत् क्षेत्र सुधार योजनाओं को इस अम्ब्रेला कार्यक्रम में शामिल कर दिया जाएगा।
    • यह योजना वर्ष 2025-26 तक उपलब्ध रहेगी।
  • कार्यान्वयन:
    • यह प्रत्येक राज्य के लिये बनाई गई कार्य योजना पर आधारित होगा, न कि 'वन-साईज-फिट्स-ऑल' दृष्टिकोण पर।
  • नोडल एजेंसियाँ:
    • ग्रामीण विद्युतीकरण निगम और विद्युत वित्त निगम
  • घटक:
    • उपभोक्ता मीटर और सिस्टम मीटर:
      • इस योजना में वितरण क्षेत्र- बिजली फीडर से लेकर उपभोक्ता स्तर तक, जिसमें लगभग 250 मिलियन परिवार शामिल हैं, में एक अनिवार्य स्मार्ट मीटरिंग इकोसिस्टम शामिल है।
      • प्रथम चरण में वर्ष 2023 तक लगभग 10 करोड़ प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाए जाने का प्रस्ताव है।
    • फीडर का वर्गीकरण:
      • यह योजना असंबद्ध फीडरों के लिए फीडर वर्गीकरण हेतु वित्तपोषण पर भी ध्यान केंद्रित करती है, जो पीएम-कुसुम योजना के तहत सौरकरण को सक्षम बनाएगा।
      • फीडरों के सौरकरण से सिंचाई के लिये दिन में सस्ती/निःशुल्क बिजली मिलेगी और किसानों को अतिरिक्त आय होगी।
    • शहरी क्षेत्रों में वितरण प्रणाली का आधुनिकीकरण:
      • सभी शहरी क्षेत्रों में पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण (Supervisory Control and Data Acquisition-SCADA)।
    • ग्रामीण और शहरी क्षेत्र प्रणाली का सुदृढ़ीकरण।
  • विशेष श्रेणी के राज्य:
    • पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम और जम्मू एवं कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों सहित सभी विशेष श्रेणी के राज्यों को विशेष श्रेणी के राज्यों के रूप में माना जाएगा।
  • उद्देश्य:
    • वर्ष 2024-25 तक अखिल भारतीय स्तर पर AT&C हानियों (अक्षम बिजली व्यवस्था के कारण परिचालन नुकसान) को 12-15% तक कम करना।
    • वर्ष 2024-25 तक लागत-राजस्व अंतराल को घटाकर शून्य करना।
    • आधुनिक डिस्कॉम्स के लिये संस्थागत क्षमताओं का विकास करना।

संबंधित योजनाएँ:

  • प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य): देश के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में सभी इच्छुक घरों का विद्युतीकरण सुनिश्चित करना।
  • एकीकृत विद्युत विकास योजना (IPDS): योजना के तहत किये गए प्रावधानों में शामिल हैं:
    • शहरी क्षेत्रों में उप-पारेषण और वितरण नेटवर्क को मज़बूत करना;
    • शहरी क्षेत्रों में वितरण ट्रांसफार्मर/फीडर/उपभोक्ताओं की मीटरिंग; तथा
    • वितरण क्षेत्र की आईटी सक्षमता और वितरण नेटवर्क को मज़बूत करना।
  • दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY): इस ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के के तहत किये गए प्रावधानों में शामिल हैं:
    • कृषि और गैर-कृषि फीडरों को अलग करना;
    • वितरण ट्रांसफार्मर, फीडर और उपभोक्ताओं के स्तर पर मीटरिंग सहित ग्रामीण क्षेत्रों में उप-पारेषण तथा वितरण बुनियादी ढाँचे को मज़बूती प्रदान करने के साथ ही इनमें वृद्धि करना।
  • गर्व (ग्रामीण विद्युतीकरण) एप: विद्युतीकरण योजनाओं के कार्यान्वयन में पारदर्शिता की निगरानी के लिये सरकार द्वारा ग्रामीण विद्युत अभियंताओं (GVAs) को GARV एप के माध्यम से प्रगति की रिपोर्ट करने के लिये नियुक्त किया गया है।
  • उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (UDAY): डिस्कॉम के परिचालन और वित्तीय बदलाव के लये।
  • संशोधित टैरिफ नीति में '4 E': 4ई में सभी के लिये विद्युत्, किफायती टैरिफ सुनिश्चित करने की क्षमता, एक स्थायी भविष्य के लिये पर्यावरण, निवेश को आकर्षित करने और वित्तीय व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिये व्यापार करने में आसानी शामिल है।

स्रोत: पी.आई.बी.


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