भारतीय अर्थव्यवस्था
चुनौतियों के भँवर में गिग इकॉनमी
- 06 May 2020
- 15 min read
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में गिग इकॉनमी व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
मानव अपने उद्विकास के काल से ही स्वयं व अपने आश्रितों के जीवन निर्वाह हेतु प्रकृति के उत्पादक कार्यों में संलग्न रहा है, जिससे उसकी आय सुनिश्चित होती रही है। प्राचीन काल से वर्तमान काल तक कार्य की अवधारणा बदलती रही है। साथ ही, कार्य की प्रकृति को प्रभावित करने के कारणों में भी बदलाव होता रहा है। परिवर्तन के इसी क्रम में हाल के वर्षों में काम की ऐसी ही एक नई अवधारणा का जन्म हुआ है जिसे ‘गिग इकॉनमी’ नाम दिया गया है।
इससे पहले की गिग इकॉनमी वैश्विक रूप से अपना प्रसार कर पाती वह वैश्विक महामारी COVID-19 के चपेट में आ गई। दुनिया भर में ऐप-आधारित नौकरियों का विश्लेषण करने वाले ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ऐपजॉब्स (AppJobs) के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण गिग इकॉनमी में कार्यरत कर्मचारियों को आर्थिक रूप से सबसे ज़्यादा नुकसान उठाना पड़ा है। इस महामारी के दौरान मांग में कमी के कारण गिग इकॉनमी में कार्यरत कर्मचारियों को अपने रोज़गार से हाथ धोना पड़ा है।
इस आलेख में गिग इकॉनमी, उसके लाभ, इसके समक्ष उत्पन्न चुनौतियाँ, चुनौतियों को दूर करने में सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों के साथ ही भारत में इसकी प्रासंगिकता का भी विश्लेषण किया जाएगा।
गिग इकॉनमी से तात्पर्य
- गिग इकॉनमी एक ऐसी मुक्त बाज़ार व्यवस्था है जहाँ पारंपरिक पूर्णकालिक रोज़गार की बजाय अस्थायी रोज़गार का प्रचलन होता है।
- इसके तहत कंपनियाँ या संगठन अपनी अल्पकालिक या विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये स्वतंत्र (Freelance) श्रमिकों के साथ अनुबंध करते हैं।
- ऐसे श्रमिकों में फ्रीलांसर, स्वतंत्र ठेकेदार, प्रोजेक्ट आधारित श्रमिक और अस्थायी या अंशकालिक श्रमिक आते हैं।
- ऐसे श्रमिक एक बार कार्य या प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद अपनी रूचि के अनुसार दूसरे कार्य या प्रोजेक्ट की ओर आगे बढ़ने के लिये स्वतंत्र होते हैं।
- विश्वव्यापी मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म ‘मैकिन्से’ (Mckinsey) के अनुसार, पूरी दुनिया में गिग इकॉनमी का प्रसार तेज़ी से हो रहा है। दरअसल केंद्रीकृत संचार, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, डैशबोर्ड, वास्तविक समय कार्य निर्धारण (Real-time Scheduling) इत्यादि के तकनीकी विकास ने गिग इकॉनमी के लिये एक बाज़ार निर्मित किया, तो वहीं स्टार्ट-अप संस्कृति के उद्भव ने इसे लोकप्रिय बना दिया।
गिग इकॉनमी के लाभ
- बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के भी गिग इकॉनमी का आकार पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से बढ़ा है, जो इसके विशेष लाभों का परिणाम है।
- गिग इकॉनमी का सबसे बड़ा लाभ उच्च कौशलयुक्त मानव संसाधन की आवश्यकतानुरूप उपलब्धता है। एक शोध के मुताबिक सूचना प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, डिज़ाइनिंग, डिज़िटल मार्केटिंग तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इत्यादि से संबंधित 40 प्रतिशत कंपनियों को आवश्यक योग्यता युक्त प्रतिभा खोजने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। ऐसे में प्रतिभा संपन्न गिग कर्मचारियों की उपलब्धता उनकी समस्याओं का सरल समाधान प्रस्तुत करती है।
- इस संदर्भ में कंपनियों को दूसरा सबसे बड़ा कम श्रम लागत के रूप में मिलता है। कंपनियों की श्रम लागत में कमी के दो तरीके हैं; एक तो उन्हें गिग प्रणाली के परिणामस्वरूप प्रशिक्षण खर्च व ऑफिस व्यय में बचत होती है, दूसरे उन्हें कार्मिकों की सामाजिक सुरक्षा उपायों के अंतर्गत नियोक्ता द्वारा किये जाने वाले अंशदान संबंधी व्यय से भी मुक्ति मिल जाती है।
- गिग इकॉनमी में कंपनियों को तीसरा बड़ा लाभ यह होता है कि उनकी बाहरी मानव संसाधनों तक पहुँच आसान हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप उन्हें अपने पूर्णकालिक कर्मचारियों की तुलना में गिग कार्मिकों से अधिक बेहतर परिणाम हासिल होता है। इसके अतिरिक्त, कंपनियों को एक बड़ा लाभ इस रूप में भी प्राप्त होता है कि गिग कार्मिक उत्पादों व सेवाओं के विकास में नवाचार और तेज़ी लाते हैं।
- अब अगर गिग इकॉनमी के लाभों को गिग कार्मिको के परिप्रेक्ष्य में देखें तो कार्मिकों को सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि उन्हें एक से अधिक स्रोतों से आय अर्जित करने का अवसर मिलता है।
- कार्मिकों के संदर्भ में गिग इकॉनमी का अन्य सबसे बड़ा लाभ इससे महिलाओं को मिलने वाला लाभ है। भारतीय सामाजिक परिप्रेक्ष्य में सामान्य तौर पर देखा जाता है कि महिलाएँ विवाह की सामाजिक ज़िम्मेदारी के निर्वाह के उपरांत तथा प्रजनन व शिशुओं की देखभाल की प्रक्रिया से गुज़रते हुए पूर्णकालिक कार्मिक के तौर पर अपनी भूमिका को निरंतर नहीं बनाए रख पाती हैं। इस स्थिति में उनके बेरोज़गार होने या आगे बढ़ने की आपसी प्रतिस्पर्द्धा में पिछड़ जाने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में गिग इकॉनमी की अवधारणा उनके लिये एक बेहतर विकल्प प्रस्तुत करती है।
औद्योगीकरण 4.0 और गिग इकॉनमी में अंतर्संबंध
- अर्थशास्त्री रोनाल्ड कोस के अनुसार, कोई भी कंपनी तब तक फलती-फूलती रहेगी जब तक कि चारदीवारी में बैठा कर लोगों से काम कराना, बाज़ार में जाकर काम करा लेने से सस्ता होगा। यानी कोई भी कंपनी यदि बाज़ार में जाकर, प्रत्येक विशिष्ट काम अलग-अलग विशेषज्ञों से कराती है और यह लागत कंपनी के सामान्य लागत से कम है तो स्वाभाविक सी बात है कि वह एक निश्चित वेतन पर लम्बे समय के लिये लोगों को नौकरी पर रखने के बजाय वह बाज़ार में जाना पसंद करेगी।
- औद्योगिक क्रांति 3.0 में वैश्वीकरण, निजीकरण और उदारीकरण ने बाज़ार में निकल कर काम लेना आसान बना दिया, यही कारण था कि बड़ी कम्पनियाँ तेज़ी से बंद होने लगीं और छोटे-छोटे आउटसोर्सिंग फर्मों ने इन कंपनियों की जगह ले ली।
- दरअसल, औद्योगीकरण 4.0 मुख्य रूप से अनवरत इंटरनेट कनेक्टिविटी, रोबोटिक्स, आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, नैनो टेक्नोलॉजी और वर्चुअल रियलिटी पर आधारित है। अतः कंपनियों को अब वैसे ही लोगों की ज़रूरत पड़ेगी जो दक्ष हैं और जिनसे प्रोजेक्ट बेसिस पर काम लिया जा सके।
- गौरतलब है कि औद्योगीकरण 4.0 के कारण हमारे कार्य करने के तरीकों में व्यापक बदलाव आएगा। रोबोटिक्स, आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, नैनो टेक्नोलॉजी और वर्चुअल रियलिटी जैसी तमाम तकनीकें जब आपस में मिलेंगी तो उत्पादन और निर्माण के तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलेगा।
गिग इकॉनमी के समक्ष चुनौतियाँ
- कार्मिकों के परिप्रेक्ष्य से देखें तो उनके समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि गिग इकॉनमी में उन्हें सामाजिक सुरक्षा के उपायों और श्रमिक अधिकारों के लाभ से वंचित रहना पड़ता है। उदाहरण के लिये स्वास्थ्य सुरक्षा के लाभ,बीमार होने पर अवकाश तथा ओवरटाइम वेतन जैसे लाभ उन्हें हासिल नहीं होते हैं।
- कंपनियों द्वारा गिग कार्मिकों को कभी भी काम से हटाया जा सकता है, यानी उन्हें कार्यकाल की असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा प्रोविडेंट फंड, ग्रेच्युटी और बोनस जैसे लाभों से भी वंचित होते हैं।
- गिग कार्मिकों के परिप्रेक्ष्य में दूसरी बड़ी समस्या ढाँचागत क्षेत्र की समस्याओं से संबंधित है। भारत जैसे विकासशील देश में प्रौद्योगिकी का उन्नत ढाँचा शहरी क्षेत्रों तक सीमित है। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी बिजली और इंटरनेट कनेक्टिविटी की स्थिति उन्नत नहीं है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये गिग इकॉनमी का लाभ उठा पाना एक सपना है।
- कंपनियों के संदर्भ में गिग इकॉनमी की चुनौतियों में सबसे बड़ी चुनौती कंपनी की कार्य-संस्कृति को प्रभावित होने से बचाना है। गिग कार्मिकों के अस्थायी कर्मचारी होने से टीम भावना में कमी आती है जिससे कंपनियों की कार्य-संस्कृति नकारात्मक तौर पर प्रभावित हो सकती है।
- कंपनियों के समक्ष दूसरी बड़ी चुनौती अपने महत्त्वपूर्ण डेटा व भविष्य की योजना की रूपरेखा की गोपनीयता से संबंधित देखी जाती है।
- कंपनियों के समक्ष तीसरी बड़ी चुनौती भारत में गिग कार्मिकों के समुच्चय का अभाव है।
- इसके अतिरिक्त, कंपनियों के समक्ष एक बड़ी चुनौती गिग कार्मिकों के कार्य निष्पादन की गुणवत्ता व आउटपुट से संबंधित है।
भारत में प्रासंगिकता
- अमेरिका में जहाँ श्रम शक्ति का 31 प्रतिशत गिग इकॉनमी से संबंध रखता है वहीं भारत में यह आँकड़ा 75 प्रतिशत है। लेकिन दोनों ही देशों के आर्थिक परिदृश्यों में ज़मीन आसमान का अंतर है। अमेरिका में 31 प्रतिशत श्रम गिग इकॉनमी का भाग इसलिये है क्योंकि वह सक्षम है, जबकि भारत में बड़ी संख्या में लोग इस व्यवस्था के हिस्से इसलिये हैं क्योंकि उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है। विदित है कि दैनिक मज़दूरी करने वालों को भी गिग इकॉनमी का ही हिस्सा माना जाता है।
- भारत में 40 प्रतिशत लोग इतना ही कमा पाते हैं कि दो वक्त की रोटी खा सकें, बचत के नाम पर उनके पास कुछ भी नहीं है और वे लगातार गरीबी में जीवन व्यतीत करने को अभिशापित हैं।
- ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक अकेले अमेरिका में अगले दो दशकों में डेढ़ लाख रोज़गार खत्म हो जाएंगे। अमेरिका में तो मानव संसाधन इतना दक्ष है कि उसे गिग इकॉनमी का हिस्सा बनने में कोई समस्या नहीं आएगी लेकिन भारत में यह स्थिति नहीं है।
आगे की राह
- नि:संदेह इस वैश्विक महामारी ने गिग इकॉनमी के प्रसार में ब्रेक लगा दिया है परंतु इस बात की संभावना है कि लॉकडाउन के बाद इसका तीव्र गति से प्रसार होगा। ऐसे में सरकार द्वारा गिग कार्मिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की पहल करनी चाहिये।
- इसके साथ ही सर्वप्रथम सरकार द्वारा गिग कार्मिकों को परिभाषित करने की आवश्यकता है।
- गिग इकॉनमी की बेहतरी की दिशा में सरकार के स्तर पर एक बड़ा प्रयास कुशल मानव संसाधन विकसित करने संबंधी होना चाहिये।
- गिग कार्मिकों को आपस में जोड़ते हुए एक समुच्चय बनाने की आवश्यकता है। सरकार को ऐसा मैकेनिज्म भी तैयार करना चाहिये जिसमें गिग कार्मिकों की क्षमता व योग्यता की भी जांच हो सके।
- भारत के पास एक विशाल मानव संसाधन की उपलब्धता है। इस संसाधन को तकनीकी रूप से दक्ष बनाकर इसका उपयोग गिग इकॉनमी में लिया जा सकता है।
- लोगों को विशेषज्ञतापूर्ण कार्यों के लिये कौशल दिया जाए और इसके लिये अवसंरचना का भी विकास किया जाए। पूर्व की औद्योगिक क्रांतियों के अनुभवों से यह ज्ञात होता है कि इन परिवर्तनों से सर्वाधिक प्रभावित वे समूह होते हैं जो अपनी कौशल क्षमता में निश्चित समय के
- भीतर वांछनीय सुधार लाने में असमर्थ होते हैं अतः सरकार को चाहिये कि ऐसे लोगों को प्रशिक्षण के लिये पर्याप्त समय के साथ-साथ संसाधन भी उपलब्ध कराए।
प्रश्न- गिग इकॉनमी के लाभों को रेखांकित करते हुए इसके समक्ष विद्यमान चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।