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साइबर अपराध वालंटियर्स

  • 05 Mar 2021
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

एक डिजिटल स्वतंत्रता संगठन ‘इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन’ (IFF) ने केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) को लिखा है कि साइबर अपराध वालंटियर्स की अवधारणा "समाज में निगरानी और सामाजिक अविश्वास पैदा कर निरंतर संदेह की संस्कृति" को जन्म देगी।

प्रमुख बिंदु:

  • साइबर अपराध वालंटियर्स की अवधारणा:
    • भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) ने राष्ट्र की सेवा करने और देश में साइबर अपराध के खिलाफ लड़ाई में योगदान हेतु नागरिकों को एक ही मंच पर लाने के लिये साइबर अपराध वालंटियर्स कार्यक्रम की परिकल्पना की है।
      • अवैध/गैर-कानूनी ऑनलाइन सामग्री की पहचान, रिपोर्टिंग और उसे हटाने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की सुविधा हेतु साइबर अपराध वालंटियर्स के रूप में पंजीकृत होने के लिये अच्छे नागरिकों का स्वागत किया जाता है।
    • वालंटियर्स को भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 का अध्ययन करने की सलाह दी गई है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है।
    • इसके अलावा वालंटियर्स स्वयं को सौंपे गए/किये गए कार्यों की सख्त गोपनीयता बनाए रखेगा। राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों के राज्य नोडल अधिकारी कार्यक्रम के नियमों और शर्तों के उल्लंघन के मामले में वालंटियर्स के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार भी रखते हैं।
  • अवैध/गैर-कानूनी सामग्री: सामान्य तौर पर ऐसी सामग्री जो भारत में किसी कानून का उल्लंघन करती है। इस प्रकार की सामग्री निम्नलिखित व्यापक श्रेणियों के अंतर्गत आ सकती है:
    • भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ।
    • भारत की रक्षा के खिलाफ।
    • राज्य की सुरक्षा के खिलाफ।
    • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के खिलाफ।
    • लोक व्यवस्था को बिगाड़ने के उद्देश्य से सामग्री।
    • सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ना।
    • बाल यौन शोषण सामग्री।
  • उत्पन्न चिंताएँ:
    • दुरुपयोग की संभावना: इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है कि मंत्रालय यह कैसे सुनिश्चित करेगा कि व्यक्तिगत या राजनीतिक प्रतिशोध के लिये कुछ तत्त्वों द्वारा कार्यक्रम का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है।
      • एक बार शिकायत करने के बाद उसे वापस लेने हेतु कोई प्रक्रिया नहीं है।
    • साइबर-सतर्कता: यह कार्यक्रम अनिवार्य रूप से ऐसी स्थिति को जन्म देगा जो 1950 के दशक में पूर्वी जर्मनी में था।
      • कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं: मंत्रालय गैर-कानूनी सामग्री और "राष्ट्र-विरोधी" गतिविधियों से संबंधित सामग्री को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने में विफल रहा है।
      • यह वालंटियर्स को आवश्यकता से अधिक शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति दे सकता है, वे ऐसे नागरिकों के संबंध में भी रिपोर्ट कर सकते हैं जो कि अपने अधिकारों के भीतर ऐसी सामग्री पोस्ट करते हैं जो राज्य के लिये संवेदनशील हो।
      • ऐसा कार्यक्रम श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2013) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का सीधा उल्लंघन है, जो यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है कि लोकतंत्र में विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक ऐसा आधारभूत मूल्य है जो हमारी संवैधानिक योजना के तहत सर्वोपरि है।

भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C):

  • इसकी स्थापना साइबर अपराध के खिलाफ लड़ाई में राष्ट्रीय स्तर पर एक नोडल केंद्र के रूप में कार्य करने के लिये गृह मंत्रालय के तहत की गई है।
    • I4C की स्थापना योजना को सभी प्रकार के साइबर अपराधों से व्यापक और समन्वित तरीके से निपटने के लिये अक्तूबर 2018 में मंज़ूरी दी गई थी।
    • यह अत्याधुनिक केंद्र नई दिल्ली में स्थित है।
    • विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने क्षेत्रीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र स्थापित करने के लिये अपनी सहमति दी है।
  • योजना के सात घटक:
    • नेशनल साइबर क्राइम थ्रेट एनालिटिक्स यूनिट,
    • राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल,
    • राष्ट्रीय साइबर अपराध प्रशिक्षण केंद्र,
    • साइबर अपराध पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन इकाई,
    • राष्ट्रीय साइबर अपराध अनुसंधान और नवाचार केंद्र,
    • राष्ट्रीय साइबर अपराध फोरेंसिक प्रयोगशाला पारिस्थितिकी तंत्र और
    • संयुक्त साइबर अपराध जाँच दल प्लेटफॉर्म।
  • विशेषताएँ:
    • समन्वित और व्यापक तरीके से साइबर अपराधों से निपटने हेतु एक मंच प्रदान करना।
      • केंद्रीय गृह मंत्रालय में संबंधित नोडल प्राधिकरण के परामर्श से अन्य देशों के साथ साइबर अपराध से संबंधित पारस्परिक कानूनी सहायता संधियों (MLAT) के कार्यान्वयन से जुड़ीं सभी गतिविधियों के समन्वय के लिये इसका निर्माण किया गया है।
    • एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना जो साइबर अपराध की रोकथाम, पता लगाने, जाँच और अभियोजन में शिक्षा, उद्योग, जनता तथा सरकार को एक साथ लाता है।
      • अनुसंधान में आने वाली समस्याओं की पहचान करने और भारत तथा विदेश में अकादमिक/अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से नई प्रौद्योगिकियों व फोरेंसिक उपकरणों को विकसित करने में अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों को बढ़ावा देना।
    • चरमपंथी और आतंकवादी समूहों द्वारा साइबर-स्पेस के दुरुपयोग को रोकना।
    • तेज़ी से बदलती प्रौद्योगिकियों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ तालमेल बनाए रखने के लिये साइबर कानूनों में संशोधन का सुझाव देना (यदि आवश्यक हो)।

स्रोत-द हिंदू

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