पश्चिमी नैतिक विचारकों एवं दार्शनिकों का योगदान | 04 Jun 2024
प्रिलिम्स के लिये:नागरिक, शिक्षा, न्यायालय, संसाधनों का वितरण, कार्यकारी अधिकारी, ईस्ट इंडिया कंपनी, स्वतंत्रता, स्वच्छता। मेन्स के लिये:आधुनिक समय में पश्चिमी नैतिक विचारकों और दार्शनिकों की प्रासंगिकता |
सुकरात कौन थे?
- परिचय:
- सुकरात (469-399 ई.पू.) को सामान्यतः पाश्चात्य दर्शन का जनक माना जाता है।
- उन्होंने दूरस्थ एवं अप्रभावित बौद्धिक चिंतन, नैतिक साहस, शिक्षाविद् की भावना आदि के दार्शनिक दृष्टिकोण का प्रदर्शन किया।
- सुकरात का दर्शन:
- जीवन पर सुकरात का दृष्टिकोण:
- सुकरात के लिये यह सिर्फ सत्ता हासिल करने के बारे में जानना नहीं था, बल्कि यह समझना था कि अपने जीवन को सही तरीके से कैसे जिया जाए।
- यह जानने से अधिक महत्त्वपूर्ण है कि जीवन क्या है, यह जानना कि 'अच्छा' या 'पुण्यपूर्ण जीवन' क्या है।
- जीवन का उद्देश्य ‘अच्छा जीवन’ जीना है और अच्छा जीवन जीने के लिये हमें ‘अच्छे जीवन’ का ‘ज्ञान’ होना चाहिये।
- सुकरात के शब्दों में "एक अपरीक्षित जीवन जीने लायक नहीं है।"
- ज्ञान पर सुकरात का दृष्टिकोण:
- उनके लिये अपने अज्ञान के प्रति ज्ञान प्राप्त करने का पहला चरण जागरूकता थी।
- सुकरातीय अर्थ में ऐसा व्यक्ति पहले से ही 'बुद्धिमान' था।
- सुकरात के अनुसार सद्गुण (उत्कृष्टता या ज्ञान) को न तो सिखाया जा सकता है और न ही सीखा जा सकता है, इसे केवल बाहर निकाला जा सकता है क्योंकि ऐसा ज्ञान हमारे भीतर पहले से ही मौजूद है। इस प्रकार व्याख्यान देने से कोई लाभ नहीं होता।
- जीवन पर सुकरात का दृष्टिकोण:
प्लेटो कौन थे?
- परिचय:
- प्लेटो सुप्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक और सुकरात के शिष्य थे।
- वह सुकरात के शिष्य और अरस्तू के गुरु थे।
- प्लेटो ने गणित, परम वास्तविकता, नैतिकता और राजनीति सहित विविध विषयों पर लिखा।
- प्लेटो को 'राजनीतिक दर्शन का जनक' कहा जाता है क्योंकि वे (पश्चिमी दुनिया में) राज्य और राजनीति का विस्तृत सिद्धांत प्रदान करने वाले पहले व्यक्ति थे।
- प्लेटो का दर्शन:
- दार्शनिक राजा का सिद्धांत:
- प्लेटो का सबसे बड़ा योगदान 'दार्शनिक राजा का सिद्धांत' है।
- उनके अनुसार वह राज्य आदर्श है, जहाँ दार्शनिक शासक हों।
- प्लेटो के शब्दों में "जब तक राजनीतिक शक्ति और दर्शन एक साथ नहीं मिलते, तब तक राज्यों के लिये, न ही समस्त मानव जाति के लिये दुविधाओं से कोई राहत नहीं मिल सकती।"
- ज्ञान पर दृष्टिकोण:
- द रिपब्लिक में प्लेटो ने "गुफा के रूपक" (Allegory of the Cave) की कहानी का उपयोग समझ के तीन विभिन्न स्तरों को समझाने के लिये किया है तथा भ्रम (अज्ञान) और वास्तविक ज्ञान के बीच अंतर को समझाने में हमारी सहायता की है।
- लोग अज्ञानता की गुफा में रहना पसंद करते हैं और अपनी सुविधा क्षेत्र विकसित करते हैं। हालाँकि शिक्षक का यह कर्त्तव्य है कि वह उन्हें बलपूर्वक गुफा से बाहर निकाले तथा उन्हें वास्तविकता दिखाए।
- न्याय पर दृष्टिकोण:
- उनका सुझाव है कि न्याय सबसे बड़ी भलाई है जिसे लोग व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से प्राप्त कर सकते हैं तथा उनके सभी सिद्धांत इसी दिशा में संकेत करते हैं।
- राज्य पर दृष्टिकोण:
- प्लेटो का उद्देश्य पूर्ण न्याय का एक आदर्श राज्य बनाना है।
- प्लेटो के अनुसार, न्याय एक सद्गुण या उत्कृष्टता की स्थिति को दर्शाता है, जिसमें आत्मा में तर्क, साहस और इच्छा पर हावी होता है।
- उनका सुझाव है कि न्यायपूर्ण राज्य वह है जहाँ दार्शनिक शासन करते हैं और अन्य वर्ग अपनी आत्मा की प्रकृति (Nature of their Soul) के अनुसार कार्य करते हैं।
- प्लेटो के अनुसार, "न्याय वह सबसे बड़ी भलाई है जिसे लोग व्यक्तिगत रूप से और राजनीतिक समुदाय के सदस्य के रूप में प्राप्त कर सकते हैं।"
- शिक्षा पर दृष्टिकोण:
- शिक्षा प्रदान करना राज्य के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक है।
- शिक्षा समाजीकरण का प्राथमिक साधन है।
- आज्ञाकारी नागरिक बनाने में शिक्षा प्रणाली महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- वह राज्य-प्रायोजित शिक्षा (सार्वभौमिक शिक्षा) प्रणाली के पक्षधर थे।
- उन्होंने गणित और तर्क के अध्ययन पर ज़ोर दिया जो मन की तर्कसंगत क्षमताओं को विकसित करता है।
- द रिपब्लिक में प्लेटो कहते हैं कि आत्मा के तीन भाग हैं, जो तर्क (या बुद्धि), साहस, क्षुधा से संबंधित हैं।
- दार्शनिक राजा का सिद्धांत:
अरस्तू कौन थे?
- परिचय:
- उन्हें राजनीति विज्ञान के जनक के रूप में जाना जाता है।
- अरस्तू की पुस्तक पॉलिटिक्स ने राजनीतिक दर्शन के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
- उन्हें पश्चिमी इतिहास में विधि का शासन, विचारशील लोकतंत्र आदि जैसे कई महत्त्वपूर्ण विचारों का प्रवर्तक भी माना जाता है।
- राज्य के सिद्धांत पर उनका एक प्रमुख कथन है, “मनुष्य स्वभाव से ही एक राजनीतिक प्राणी है।” इसका अर्थ है कि प्रकृति ने मनुष्य को इस तरह नहीं बनाया है कि वह राज्य के बिना रह सके।
- अरस्तू का दर्शन:
- क्रान्ति एवं न्याय का सिद्धांत:
- उनका न्याय सिद्धांत व्यावहारिक विचारों पर आधारित है, जो प्लेटो के न्याय के अत्यंत अमूर्त सिद्धांत से भिन्न है।
- उन्होंने कहा, "समान के साथ असमान व्यवहार करना अन्यायपूर्ण है और असमान के साथ समान व्यवहार करना भी उतना ही अन्यायपूर्ण है।"
- उन्होंने न्याय पर दो आयामों में चर्चा की:
- सुधारात्मक न्याय: यह न्यायालयों द्वारा प्रशासित शिकायत निवारण की प्रणाली से संबंधित है। वह अनुपात का सिद्धांत देता है, यानी दंड नुकसान के अनुपात में होना चाहिये।
- वितरणात्मक न्याय: यह संसाधनों के वितरण, सम्मान, पुरस्कार आदि से संबंधित है। राज्य को समाज में योगदान के अनुपात में व्यक्ति को पुरस्कृत करना चाहिये। जिस व्यक्ति का कार्य समाज के लिये अधिक महत्त्वपूर्ण है, उसे अधिक पुरस्कार मिलने चाहिये।
- विधि का शासन:
- विधि का शासन कार्यपालिका की शक्तियों पर सीमाओं का प्रतिनिधित्व करता है।
- कार्यपालिका को कानून के अनुसार कार्य करना होगा, वे मनमाने तरीके से कार्य नहीं कर सकती।
- क्रान्ति एवं न्याय का सिद्धांत:
जेरमी बेंथम कौन थे?
- परिचय:
- जेरमी बेंथम (1748-1832) उपयोगितावाद के जनक थे।
- उपयोगितावाद एक नैतिक सिद्धांत है जो तर्क देता है कि कार्यों को इस आधार पर सही या गलत आँका जाना चाहिये कि वे मानव कल्याण या 'उपयोगिता' को बढ़ाते या घटाते हैं।
- जेरेमी बेंथम का दर्शन:
- उपयोगिता:
- उन्होंने कहा कि यदि किसी कार्य के परिणाम अच्छे हैं तो वह कार्य नैतिक है और यदि परिणाम बुरे हैं तो वह कार्य अनैतिक है।
- एक स्वघोषित नास्तिक के रूप में वह नैतिकता को दृढ़, धर्मनिरपेक्ष नींव पर रखना चाहते थे।
- यह हमें अपनी इच्छानुसार कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं देता है। महत्त्वपूर्ण रूप से बेंथम का मानना था कि खुशी और आनंद ही एकमात्र चीज़ें नहीं हैं जो मायने रखती हैं।
- उन्होंने कहा, "नैतिकता को व्यापक रूप से इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि यह मनुष्य के कार्यों को अधिकतम संभव मात्रा में खुशी उत्पन्न करने की दिशा में निर्देशित करने की कला है।"
- नैतिक अभिकर्त्ता वह कार्य करेगा जो इसमें शामिल सभी लोगों के लिये खुशी या आनंद को अधिकतम करता है।
- उपयोगिता:
जॉन स्टुअर्ट मिल कौन थे?
- परिचय:
- जॉन स्टुअर्ट मिल (1806-1873) एक प्रभावशाली दार्शनिक, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और ईस्ट इंडिया कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी थे।
- जॉन स्टुअर्ट मिल का दर्शन:
- उपयोगिता:
- दार्शनिक जेरेमी बेंथम के मूल सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए, जॉन स्टुअर्ट मिल के उपयोगितावाद के तीन मूल सिद्धांत हैं:
- आनंद या खुशी ही एकमात्र ऐसी चीज़ है जिसका सच्चा, आंतरिक मूल्य है।
- कोई कार्य तभी तक सही हैं जब तक वह खुशी प्रदान करता हैं तथा कोई कार्य तभी तक गलत हैं जब वह दुःख उत्पन्न करता हैं।
- प्रत्येक की खुशी समान रूप से मायने रखती है।
- 'सुख' का अर्थ है आनंद और दुख का अभाव तथा 'दुख' का अर्थ है दुख एवं सुख का अभाव।
- दार्शनिक जेरेमी बेंथम के मूल सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए, जॉन स्टुअर्ट मिल के उपयोगितावाद के तीन मूल सिद्धांत हैं:
- स्वतंत्रता पर विचार:
- उन्होंने स्वतंत्र अभिव्यक्ति और असहमति के मूल्य, साथ ही राज्य के पूर्ण नियंत्रण से व्यक्तियों की स्वतंत्रता जैसे शास्त्रीय उदार आदर्शों का बचाव किया।
- वर्ष 1859 में प्रकाशित जॉन स्टुअर्ट मिल की पुस्तक ऑन लिबर्टी (On Liberty), अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में लिखी गई। यह अब तक की सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक है।
- उपयोगिता:
जीन-जैक्स रूसो कौन थे?
- परिचय:
- जीन-जैक्स रूसो (1712-1778 ईस्वी) 18 वीं शताब्दी के एक दार्शनिक थे जो ज़्यादातर फ्राँस में रहते थे और सक्रिय थे।
- उनके राजनीतिक दर्शन ने पश्चिमी यूरोप को प्रभावित किया, जिसमें फ्राँसीसी क्रांति और आधुनिक राजनीतिक विचार का विकास शामिल था।
- रूसो का असमानता पर विमर्श और सामाजिक अनुबंध समकालीन राजनीतिक चिंतन में आधारशिला हैं।
- जीन-जैक्स रूसो का दर्शन:
- प्रकृति की स्थिति पर एक नज़र:
- उन्होंने सुझाव दिया कि प्रकृति में व्यक्ति आत्मनिर्भर, शांतिपूर्ण, एकांतवासी तथा दूसरों के प्रति सहानुभूति रखने वाले होते हैं, जिससे यह ज्ञात होता है कि प्रकृति की स्थिति कठोर नहीं है।
- चूँकि नैतिकता का अभी तक आविष्कार नहीं हुआ है, इसलिये वे निर्दोष हैं और दुर्भावनापूर्ण होने में असमर्थ हैं।
- महत्त्वपूर्ण बात यह है कि प्राकृतिक अवस्था में लोग स्वतंत्र हैं, वे हर समय अपनी इच्छा के अनुसार कार्य कर सकते हैं तथा असमानता के विभिन्न स्रोतों का अभी तक आविष्कार नहीं हुआ है।
- उनका तर्क है कि मानव स्वभाव विकृत है और अनेक बुराइयाँ तथा पाप (Vices and Evils) जिन्हें हम भलीभाँति जानते हैं, समाज में प्रवेश करने के बाद पनप सकती हैं।
- निजी संपत्ति पर नज़र:
- रूसो निजी संपत्ति के विचार से नाराज़ थे, जिसे समाज द्वारा संभव बनाया गया था और जो अहंकार एवं लोभ को बढ़ावा देता था।
- सामाजिक अनुबंध:
- उनका विकल्प एक सामाजिक अनुबंध बनाना है जो समाज के सभी सदस्यों को उतना ही स्वतंत्र रहने की अनुमति देगा जितना वे प्राकृतिक अवस्था में थे।
- इससे यह सुनिश्चित होगा कि उनके द्वारा बनाए गए कानून के समक्ष सभी लोग समान हैं।
- रूसो के सामाजिक अनुबंध सिद्धांत की कुंजी और उसका सबसे बड़ा विचार, "सामान्य इच्छा" पर आधारित है।
- सामान्य इच्छा संपूर्ण राजनीतिक निकाय की इच्छा है, जो इसके किसी एक सदस्य या लोगों के समूह की इच्छा में स्वतंत्र रूप से मौजूद होती है।
- राज्य द्वारा अपनाए जाने वाले सभी कानून और कार्य इसके अनुरूप होने चाहिये।
- प्रकृति की स्थिति पर एक नज़र:
थॉमस हॉब्स कौन थे?
- परिचय:
- थॉमस हॉब्स एक अंग्रेज़ी राजनीतिक दार्शनिक हैं जो सामाजिक अनुबंध सिद्धांत में अपने योगदान के लिये जाने जाते हैं।
- थॉमस हॉब्स का दर्शन:
- व्यक्तिवादी सिद्धांत:
- हॉब्स के अनुसार, मनुष्य स्वभाव से ही व्यक्तिवादी होता है और केवल आवश्यकता के कारण ही सामाजिक होता है। हॉब्स अधिकारवादी व्यक्तिवाद के विद्वान हैं।
- व्यक्तिवाद का अर्थ है कि मनुष्य राज्य से पहले है, इसका अर्थ है कि स्वार्थ सर्वोपरि है।
- उनके अनुसार जीवन का अधिकार इतना पवित्र है कि मनुष्य अपने जीवन की रक्षा के लिये दूसरे व्यक्ति की हत्या भी कर सकता है। यानी जीवन के अधिकार में आत्मरक्षा का अधिकार भी शामिल है।
- राज्य पर एक नज़र:
- सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य, जिसके लिये राज्य अस्तित्त्व में है, जीवन का संरक्षण है। जो राज्य जीवन की रक्षा नहीं कर सकता, वह एक असफल राज्य है।
- राज्य एक संस्था है जिसका किसी क्षेत्र पर बल प्रयोग करने का एकाधिकार है। किसी अन्य संगठन द्वारा बल प्रयोग करना स्वीकार्य नहीं है।
- सामाजिक अनुबंध पर नज़र:
- प्रकृति की स्थिति में जीवन की सुरक्षा नहीं थी, युद्ध की स्थिति थी, जीवन संघर्षमय, दरिद्र, पाशविक और छोटा था। इसलिये जीवन की सुरक्षा के लिये मनुष्य अनुबंध करता है और राज्य बनाता है।
- राज्य का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य जीवन की सुरक्षा करना है। जीवन का अधिकार सर्वोच्च अधिकार है। राज्य मनमाने तरीके से किसी व्यक्ति का जीवन नहीं छीन सकता।
- स्वतंत्रता पर एक नज़र:
- हॉब्स स्वतंत्रता को वरीयता नहीं देते। उनके अनुसार, अत्यधिक स्वतंत्रता अराजकता का कारण बनती है। अराजकता की स्थिति में जीवन के अधिकार की भी कोई गारंटी नहीं होती।
- जब राज्य का अधिकार निरपेक्ष हो तो मनुष्य को अपनी इच्छानुसार कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं होती।
- मनुष्य का कानून के अनुसार कार्य करना मजबूरी है। यदि वह कानून के अनुसार कार्य नहीं करता है तो उसे दण्डित किया जाएगा।
- व्यक्तिवादी सिद्धांत:
जॉन रॉल्स कौन थे?
- परिचय:
- जॉन रॉल्स उदारवादी परंपरा के एक अमेरिकी नैतिक और राजनीतिक दार्शनिक थे।
- उन्होंने उपयोगितावाद की निंदा की क्योंकि उनका मानना था कि यह सरकारों के लिये इस तरह से काम करने का मार्ग प्रशस्त करता है जिससे बहुसंख्यकों को खुशी मिलती है लेकिन इससे अल्पसंख्यकों की इच्छाओं एवं अधिकारों की अनदेखी होती है।
- जॉन रॉल्स का दर्शन:
- न्याय पर विचार:
- वह अपने राजनीतिक-दार्शनिक प्रकाशन ए थ्योरी ऑफ जस्टिस (1971) के लिये सर्वाधिक जाने जाते हैं।
- रॉल्स द्वारा न्याय के सिद्धांत को प्रस्तुत करने का मुख्य उद्देश्य एक सुव्यवस्थित समाज बनाने का तरीका खोजना था जिसमें निम्नलिखित दो तत्त्व शामिल हों:
- अपने सदस्यों की भलाई को आगे बढ़ाना और न्याय की सार्वजनिक अवधारणा द्वारा प्रभावी रूप से विनियमित करना।
- सभी लोग यह स्वीकार करते हैं और जानते हैं कि अन्य सभी लोग न्याय के समान सिद्धांतों को स्वीकार करते हैं तथा बुनियादी सामाजिक संस्थाएँ उन सिद्धांतों को संतुष्ट करती हैं।
- रॉल्स ने न्याय की दो प्रकार की परिस्थितियों का वर्णन किया है- वस्तुनिष्ठ और व्यक्तिपरक परिस्थितियाँ।
- वस्तुनिष्ठ परिस्थितियाँ:
- यह उन परिस्थितियों को संदर्भित करता है जो एक ऐसी स्थिति को जन्म देती हैं जिसमें समाज के सदस्य कुछ पहचान योग्य क्षेत्रों में सह-अस्तित्त्व में रहते हैं और उनकी ताकत एवं कमज़ोरियाँ तुलनीय होती हैं, जिससे किसी को दूसरे पर बढ़त नहीं मिलती है।
- न्याय की सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तुगत परिस्थिति वह है जिसमें समाज के लिये उपलब्ध संसाधन मध्यम रूप से दुर्लभ हों। यदि संसाधन बहुत अधिक या बहुत कम हैं, तो सामाजिक सहयोग हेतु पर्याप्त गुंजाइश नहीं होगी।
- व्यक्तिपरक परिस्थितियाँ:
- यह उन परिस्थितियों को संदर्भित करता है जो ऐसी स्थिति को जन्म देती हैं जिसमें समाज के कुछ सदस्यों के पास उपलब्ध संसाधनों में परस्पर विरोधी हित होते हैं।
- जब ऐसे हित पारस्परिक रूप से लाभप्रद सामाजिक सहयोग का खंडन करते हैं, तो न्याय की आवश्यकता उत्पन्न होती है।
- न्याय पर विचार:
- न्याय के दो सिद्धांत:
- किसी समाज के सदस्य तर्क और स्वार्थ से प्रेरित होकर न्याय के निम्नलिखित दो सिद्धांतों पर सहमत होंगे:
- समान स्वतंत्रता का सिद्धांत: समान स्वतंत्रता के सिद्धांत के अनुसार, समाज के सभी लोगों को कुछ ऐसी स्वतंत्रताएंँ दी जानी चाहिये जो मानव अस्तित्त्व के लिये बुनियादी हैं। ऐसी स्वतंत्रताओं का किसी भी कीमत पर उल्लंघन नहीं किया जा सकता, भले ही वे लोगों के बड़े समूह को अधिक लाभ पहुँचाएँ। रॉल्स द्वारा बताई गई कुछ मूल स्वतंत्रताएंँ थीं- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, महासभा, विवेक और विचार, कानून के शासन को सुरक्षित रखने के लिये आवश्यक स्वतंत्रताएंँ, स्वच्छता, धन तथा स्वास्थ्य।
- अंतर का सिद्धांत और अवसर की निष्पक्ष समानता: रॉल्स के न्याय के दूसरे सिद्धांत में कहा गया है कि सामाजिक तथा आर्थिक असमानताओं को इस तरह से व्यवस्थित किया जाना चाहिये कि वे दोनों:
- सबसे कम सुविधा प्राप्त व्यक्ति को सबसे अधिक लाभ पहुँचाना। इसे अंतर सिद्धांत भी कहा जाता है। यह बताता है कि धन और आय के असमान वितरण के मामले में असमानता ऐसी होनी चाहिये कि जो लोग सबसे खराब स्थिति में हैं, वे किसी भी अन्य वितरण के तहत बेहतर स्थिति में हों।
- अवसर की निष्पक्ष समानता की शर्तों के तहत सभी के लिये खुले कार्यालयों और पदों से संबंधित है। इसे अवसर की निष्पक्ष समानता का सिद्धांत भी कहा जाता है। हर किसी को अपनी इच्छानुसार सार्वजनिक या निजी कार्यालयों या पदोंहेत प्रतिस्पर्द्धा करने का समान अवसर मिलना चाहिये। इसमें शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना शामिल है।
- किसी समाज के सदस्य तर्क और स्वार्थ से प्रेरित होकर न्याय के निम्नलिखित दो सिद्धांतों पर सहमत होंगे:
इमैनुएल कांट कौन थे?
- परिचय:
- इमैनुएल कांट (1724-1804) एक जर्मन प्रबुद्ध विचारक थे, जिन्हें आधुनिक विश्व के सबसे महत्त्वपूर्ण दार्शनिकों में से एक माना जाता है।
- इमैनुएल कांट का दर्शन:
- स्वतंत्रता पर विचार:
- नैतिक स्वतंत्रता और नैतिक सिद्धांतों के बारे में कांट की समझ नैतिकता संबंधी चर्चाओं का केंद्र रही है।
- कांट के अनुसार, स्वतंत्रता का अर्थ अपनी प्रवृत्तियों का अनुसरण करने की “स्वतंत्रता” नहीं है। इसके बजाय स्वतंत्रता का अर्थ नैतिकता है और नैतिकता का अर्थ स्वतंत्रता है।
- नैतिक रूप से कार्य करना “स्वायत्त रूप से” कार्य करना है, जिसका अर्थ है कि व्यक्ति द्वारा स्वयं को दिये गए कानून के अनुसार कार्य करना।
- निरपेक्ष आदेश की अवधारणा:
- नैतिकता के तत्त्वमीमांसा के आधारभूत कार्य में कांट ने अपने मौलिक नैतिक सिद्धांत को रेखांकित किया है, जिसे वे "निरपेक्ष आदेश" कहते हैं।
- नैतिक सिद्धांत "आदेशात्मक" है क्योंकि यह आदेश देता है और यह "निरपेक्ष" है क्योंकि यह ऐसा बिना किसी शर्त के करता है अर्थात् कर्त्ता की विशेष प्रवृत्तियों एवं परिस्थितियों की परवाह किये बिना।
- यह नैतिक सिद्धांत तर्क द्वारा दिया गया है और बताता है कि हम केवल इस तरह से कार्य कर सकते हैं कि हमारे कार्य का सिद्धांत, यानी हमारे कार्य को नियंत्रित करने वाला सिद्धांत, सार्वभौमिक कानून के रूप में माना जा सके। उदाहरण के लिये किसी को इस सिद्धांत पर कार्य करने से मना किया जाता है कि "जब भी झूठ बोलने से लाभ हो, तो झूठ बोलो" क्योंकि ऐसी कहावत मनुष्यों के बीच विश्वास को नष्ट कर देगी और इसके साथ ही झूठ बोलने से कोई लाभ मिलने की संभावना भी समाप्त हो जाएगी।
- जो लोग गैर-सार्वभौमिक सिद्धांतों पर कार्य करते हैं, वे एक प्रकार के व्यावहारिक विरोधाभास में फँस जाते हैं।
- लोगों को सदैव अपने अंदर तथा दूसरों में मानवता का सम्मान करना चाहिये तथा मनुष्यों को सदैव अपने लिये साध्य मानकर चलना चाहिये, कभी भी उन्हें केवल साधन नहीं समझना चाहिये।
- राजनीति पर विचार:
- कांट का राजनीतिक दर्शन उनके नैतिक दर्शन से जुड़ा हुआ है। राजनीतिक गतिविधि अंततः मानवीय स्वायत्तता पर आधारित नैतिक सिद्धांतों द्वारा संचालित होती है।
- मानव स्वतंत्रता और गरिमा का सम्मान किया जाना चाहिये तथा यह केवल कानून द्वारा शासित संवैधानिक राज्य में ही संभव है, जो व्यक्तियों के नागरिक अधिकारों की रक्षा करता है।
- जब कार्यकारी और विधायी शक्तियाँ एक ही निकाय में निहित हो जाती हैं, तो सरकार निरंकुश हो जाती है, क्योंकि कानून अब सार्वभौमिक नहीं है, बल्कि एक विशेष इच्छा द्वारा निर्धारित होता है।
- इस प्रकार प्रत्यक्ष लोकतंत्र अनिवार्यतः निरंकुशता है, क्योंकि बहुसंख्यक सार्वभौमिक कानून के अनुसार कार्य करने के बजाय अल्पसंख्यक पर अत्याचार करते हैं।
- कांट इस विचार को अस्वीकार करते हैं कि प्रजा को अधिक परिपूर्ण सरकार बनाने के लिये मौजूदा सरकारों के खिलाफ विद्रोह करना चाहिये।
- वह किसी भी "क्रांति के अधिकार" को असंगत मानते हैं, क्योंकि राज्य ही अधिकार का एकमात्र मौजूदा अवतार हैं।
- इसके बजाय कांट का तर्क है कि प्रजा का सदैव यह कर्त्तव्य है कि वह अपनी सरकारों का पालन करे, यद्यपि वे उनकी आलोचना करने के लिये अपने सार्वजनिक तर्क का उपयोग कर सकते हैं।
- उन्होंने अपने निबंध "शाश्वत शांति" में लिखा है कि नागरिक सरकार की समस्या का समाधान दुर्जन (Devils) वर्ग के लिये भी किया जा सकता है, यदि वे बुद्धिमान हों।
- अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर विचार:
- कांट का तर्क है कि नैतिक रूप से शाश्वत शांति की स्थिति आवश्यक है।
- शाश्वत शांति के लिये सभी राज्यों के पास एक गणतांत्रिक नागरिक संविधान होना चाहिये, राज्यों के संघ में भाग लेना चाहिये, स्थायी सेनाओं को समाप्त करना चाहिये तथा युद्ध के लिये राष्ट्रीय ऋण लेने से इनकार करना चाहिये, इसके अलावा कई अन्य शर्तें भी होनी चाहिये।
- जैसे-जैसे व्यक्ति और राज्य बढ़ते वाणिज्य के माध्यम से अपने हितों को आगे बढ़ाते हैं, उन्हें लगता है कि युद्ध लाभ के साथ असंगत है। इसलिये राज्य धन को अधिक प्रभावी ढंग से प्राप्त करने हेतु युद्ध करने से बचेंगे।
- स्वतंत्रता पर विचार:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्स:प्रश्न. "नैतिकता की एक व्यवस्था जो कि सापेक्ष भावनात्मक मूल्यों पर आधारित है, केवल एक भ्रांति है, एक अत्यंत अशिष्ट अवधारणा जिसमें कुछ भी युक्तिसंगत नहीं है और न ही सत्य।" - सुकरात (2020) प्रश्न. निम्नलिखित में से प्रत्येक उद्धरण के लिये क्या मायने है? "एक अपरीक्षित जीवन जीने योग्य नहीं है"। - सुकरात (2019) प्रश्न. "नियुक्ति के लिये व्यक्तियों की खोज करते समय आप तीन गुणों को खोजते हैं: सत्यनिष्ठा, बुद्धिमत्ता और ऊर्जा। यदि उनमें पहला गुण नहीं है, तो अन्य दो गुण आपको समाप्त कर देंगे।" - वॉरेन बफेट। वर्तमान परिदृश्य में इस कथन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिये। (2018) प्रश्न. "महान महत्त्वकांक्षा महान चरित्र का भावावेश (जुनून) है। जो इससे संपन्न है वे या तो बहुत अच्छे अथवा बहुत बुरे कार्य कर सकते हैं। ये सब कुछ उन सिद्धांतों पर आधारित है जिनसे वे निर्देशित होते हैं।" - नेपोलियन बोनापार्ट। उदाहरण देते हुए उन शासकों का उल्लेख कीजिये जिन्होंने (i) समाज व देश का अहित किया है, (ii) समाज व देश के विकास के लिये कार्य किया है। (2017) प्रश्न. तीन महान नैतिक विचारकों/दार्शनिकों के अवतरण नीचे दिये गए हैं। आपके लिये प्रत्येक अवतरण का वर्तमान संदर्भ में क्या महत्त्व है? स्पष्ट कीजिये: “पृथ्वी पर हर एक की आवश्यकता-पूर्ति के लिये काफी है, पर किसी के लालच के लिये कुछ नहीं।” महात्मा गांधी। “लगभग सभी लोग विपत्ति का सामना कर सकते हैं, पर यदि किसी के चरित्र का परीक्षण करना हैं, तो उसे शक्ति/अधिकार दे दो।”—अब्राहम लिंकन। “शत्रुता पर विजय पाने वाले की अपेक्षा मैं अपनी इच्छाओं का दमन करने वाले को अधिक साहसी मानता हूँ।”—अरस्तू। प्रश्न. निम्नलिखित उद्धरण आपके लिये क्या मायने रखते हैं? “परस्पर निर्भरता के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं है। हमें एक-दूसरे की ज़रूरत है और जितनी हम जल्दी इसे सीख लें यह हम सबके लिये उतना ही अच्छा है।”- एरिक एरिकसन |