बिहार Switch to English
जीवित्पुत्रिका त्योहार
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बिहार में जीवित्पुत्रिका त्योहार के दौरान नदियों और तालाबों में डूबने से 37 बच्चों सहित कम से कम 46 लोगों की मृत्यु हो गई।
मुख्य बिंदु
- जीवित्पुत्रिका:
- जीवित्पुत्रिका, जिसे जितिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है, एक हिंदू त्योहार है जो मुख्य रूप से उत्तरी और पूर्वी भारत में, विशेषकर बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में मनाया जाता है।
- यह त्योहार माताएँ अपने बच्चों के कल्याण, लंबी आयु और समृद्धि के लिये व्रत रखती हैं।
- यह त्योहार तीन दिनों तक चलता है।
- नहाय-खाय: यह त्योहार माताओं के शुद्धिकरण स्नान और पौष्टिक भोजन का आनंद लेने के साथ शुरू होता है।
- व्रत दिवस: दूसरे दिन कठोर व्रत अनुष्ठान किया जाता है।
- पारण: यह त्योहार तीसरे दिन समाप्त होता है, जहाँ भोजन के साथ व्रत को तोड़ा जाता है।
- यह त्योहार हिंदू पौराणिक कथाओं पर आधारित है, विशेष रूप से राजा जीमूतवाहन की कहानी को याद करते हुए, जिन्हें दूसरों के कल्याण के लिये उनके बलिदान के लिये सम्मानित किया जाता है।
बिहार के त्योहार
- छठ पूजा: यह एक प्राचीन हिंदू त्योहार है जो सूर्य देव और उनकी पत्नी उषा का सम्मान करता है। यह बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में दीपावली के छह दिन बाद मनाया जाता है।
- सोनपुर पशु मेला: एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला, जो दीपावली के बाद पूर्णिमा के दिन गंगा और गंडक नदियों के संगम पर आयोजित होता है।
- मकर संक्रांति: बिहार का फसल त्योहार, जो जनवरी में पुष्प चढ़ाने, गंगा में पवित्र स्नान और पूजा के साथ मनाया जाता है।
- राजगीर महोत्सव: राजगीर में अक्तूबर के अंतिम सप्ताह में नृत्य और संगीत का एक रंगारंग उत्सव आयोजित किया जाता है।
- बुद्ध जयंती: मई माह में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है
- झिझिया लोक नृत्य: यह एक प्रसिद्ध लोक नृत्य है जो केवल महिलाओं द्वारा नवरात्रि त्योहार के दौरान किया जाता है।
हरियाणा Switch to English
हरियाणा चुनावों से पहले डेरा प्रमुख ने पैरोल की मांग की
चर्चा में क्यों?
हाल ही में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख ने हरियाणा विधानसभा चुनाव से पूर्व 20 दिन की पैरोल की मांग की है, जिससे चुनावी संदर्भ में कई प्रश्न उठने लगे हैं।
मुख्य बिंदु
- पैरोल अनुरोध :
- दो महिला शिष्यों के बलात्कार के लिये 20 वर्ष की सज़ा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख ने 5 अक्तूबर, 2024 को होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले 20 दिन की पैरोल का अनुरोध किया है।
- डेरा प्रमुख को 13 अगस्त, 2024 को उत्तर प्रदेश के बागपत स्थित अपने डेरा में रहने के लिये 21 दिन का अवकाश (Furlough) दिया गया था।
- चूँकि चुनाव के लिये आदर्श आचार संहिता लागू है, इसलिये राज्य सरकार ने उनके अनुरोध को परामर्श के लिये मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) के पास भेज दिया है।
- CEO ने हरियाणा सरकार से चुनाव अवधि के दौरान पैरोल अनुरोध को उचित ठहराने वाली आकस्मिक और बाध्यकारी परिस्थितियाँ बताने को कहा है।
- निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों में पैरोल के लिये अनुमोदन अनिवार्य नहीं है, लेकिन चुनाव अवधि के दौरान असाधारण मामलों में CEO से परामर्श की आवश्यकता होती है।
- उच्च न्यायालय में पिछली चुनौतियाँ:
- डेरा प्रमुख को बार-बार पैरोल और अवकाश/ फर्लो (Furloughs) दिये जाने को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।
- अगस्त 2024 में, फर्लो पर उनकी रिहाई को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने चुनौती दी थी, लेकिन न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया और निर्णय हरियाणा जेल विभाग पर छोड़ दिया।
- उच्च न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि ऐसे मामलों में निर्णय "मनमानेपन या पक्षपात" के बिना लिये जाने चाहिये।
पैरोल और फर्लो
- पैरोल:
- यह सज़ा को निलंबित करके कैदी को रिहा करने की प्रणाली है।
- रिहाई सशर्त होती है, आमतौर पर व्यवहार के अधीन होती है और एक निश्चित अवधि के लिये अधिकारियों को समय-समय पर रिपोर्ट करने की आवश्यकता होती है
- पैरोल एक अधिकार नहीं है, और यह किसी कैदी को किसी विशिष्ट कारण से दिया जाता है, जैसे परिवार में मृत्यु या रक्त संबंधी की शादी
- किसी कैदी को पर्याप्त कारण बताने के बाद भी उसे रिहा करने से इनकार किया जा सकता है, यदि सक्षम प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट हो कि दोषी को रिहा करना समाज के हित में नहीं होगा।
- यह सज़ा को निलंबित करके कैदी को रिहा करने की प्रणाली है।
- अवकाश/ फर्लो (Furlough):
- यह पैरोल के समान है, लेकिन इसमें कुछ महत्त्वपूर्ण अंतर हैं। यह लंबी अवधि के कारावास के मामलों में दिया जाता है।
- किसी कैदी को दी गई छुट्टी की अवधि को उसकी सज़ा में छूट के रूप में माना जाता है।
- पैरोल के विपरीत, फर्लो को कैदी का अधिकार माना जाता है, जिसे किसी भी कारण से समय-समय पर प्रदान किया जाता है और यह केवल कैदी को पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को बनाए रखने में सक्षम बनाता है तथा जेल में लंबे समय तक रहने के दुष्प्रभावों का सामना करने में सहायता करता है।
उत्तराखंड Switch to English
धन्यवाद प्रकृति
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मन की बात के 114 वें एपिसोड में, प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत मिशन की सफलता पर प्रकाश डाला और पूरे भारत में व्यक्तिगत स्वच्छता प्रयासों की प्रशंसा की।
मुख्य बिंदु
- उत्तराखंड का झाला गाँव:
- उत्तरकाशी के झाला गाँव के युवाओं ने 'धन्यवाद प्रकृति ' नाम से एक अभियान शुरू किया है ।
- इस पहल के तहत, ग्रामीणजन प्रतिदिन दो घंटे अपने आस-पास की सफाई करते हैं तथा गाँव के बाहर अपशिष्ट का उचित तरीके से निपटान करते हैं।
- प्रधानमंत्री ने अन्य गाँवों और इलाकों से भी इस पहल को अपनाने का आग्रह किया।
- स्वच्छ भारत मिशन की 10वीं वर्षगाँठ:
- प्रधानमंत्री ने श्रोताओं को याद दिलाया कि 2 अक्तूबर, 2024 को स्वच्छ भारत मिशन के 10 वर्ष पूरे हो जाएंगे।
- उन्होंने कहा कि यह आंदोलन स्वच्छता के प्रति महात्मा गांधी की आजीवन प्रतिबद्धता के प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि है।
- प्रधानमंत्री ने 'वेस्ट टू वेल्थ' मंत्र के बढ़ते प्रभाव पर प्रकाश डाला, जहाँ अधिक लोग 'न्यूनीकरण (Reduce)', 'पुन: उपयोग (Reuse)' और 'पुनर्चक्रण (Recycle)' के सिद्धांतों को अपना रहे हैं।
स्वच्छ भारत मिशन (Swachh Bharat Mission- SBM)
- परिचय:
- यह एक विशाल जन आंदोलन है जिसका उद्देश्य स्वच्छ भारत बनाना है। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हमेशा स्वच्छता पर ज़ोर देते थे क्योंकि स्वच्छता से स्वस्थ और समृद्ध जीवन प्राप्त होता है।
- इसे ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने 2 अक्तूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन शुरू करने का निर्णय लिया है। यह मिशन सभी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों को कवर करेगा।
- मिशन के शहरी घटक का कार्यान्वयन आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा किया जाएगा, तथा ग्रामीण घटक का कार्यान्वयन जल शक्ति मंत्रालय द्वारा किया जाएगा।
हरियाणा Switch to English
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की कमी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय न्यायाधीशों की कमी और नियुक्तियों में देरी के कारण न्यायिक संकट का सामना कर रहा है।
मुख्य बिंदु
- न्यायाधीशों की कमी :
- पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय स्वीकृत 85 न्यायाधीशों के स्थान पर केवल 54 न्यायाधीशों के साथ कार्य कर रहा है, जिसके कारण 31 न्यायाधीशों की कमी हो गई है ।
- नवंबर 2022 के बाद से कोई नई नियुक्ति नहीं की गई है।
- वर्ष 2025 तक 5 और न्यायाधीश सेवानिवृत्त हो जाएंगे तथा वर्ष 2024 तक 2 की सेवानिवृत्त होने की आशा है।
- लंबित मामले :
- न्यायालय के समक्ष 4,33,253 मामले लंबित हैं, जिनमें 1,61,362 आपराधिक मामले जीवन और स्वतंत्रता से संबंधित हैं।
- सभी लंबित मामलों में से 26% (1,12,754) 10 वर्ष से अधिक पुराने हैं।
- पदोन्नतियाँ और नियुक्तियाँ :
- ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश की श्रेणी से 15 न्यायाधीश पदोन्नति के पात्र हैं, लेकिन नियुक्तियाँ लंबित हैं।
- यह देरी लगभग आठ महीने तक नियमित मुख्य न्यायाधीश की अनुपस्थिति के कारण हुई।
- केंद्र सरकार और कॉलेजियम प्रणाली से संबंधित मुद्दे :
- सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने एक वर्ष पहले पाँच वकीलों की पदोन्नति की सिफारिश की थी, लेकिन केंद्र ने केवल तीन नियुक्तियों को अधिसूचित किया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनी सिफारिश दोहराए जाने के बावजूद दो नियुक्तियाँ लंबित हैं।
- जटिल नियुक्ति प्रक्रिया :
- नए नामों की सिफारिश की जाने पर भी नियुक्ति प्रक्रिया अपनी जटिलताओं के कारण धीमी हो जाती है। इन सिफारिशों को राज्य सरकारों, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम और केंद्रीय कानून मंत्रालय से गुज़रना आवश्यक होता है, अंततः राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करनी होती है।
उच्च न्यायालय (HC) के न्यायाधीशों की नियुक्ति
- संविधान का अनुच्छेद 217: इसमें कहा गया है कि किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI), राज्य के राज्यपाल के परामर्श से की जाएगी ।
- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श किये बिना किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं की जाती है, सिवाय मुख्य न्यायाधीश के।
- परामर्श प्रक्रिया: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सिफारिश मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों वाले कॉलेजियम द्वारा की जाती है।
- हालाँकि, यह प्रस्ताव संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा अपने दो वरिष्ठतम सहयोगियों के परामर्श से प्रस्तुत किया जाता है।
- सिफारिश मुख्यमंत्री को भेजी जाती है, जो राज्यपाल को प्रस्ताव केन्द्रीय कानून मंत्री को भेजने की सलाह देते हैं।
- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति संबंधित राज्यों के बाहर से मुख्य न्यायाधीश रखने की नीति के अनुसार की जाती है।
- पदोन्नति पर निर्णय कॉलेजियम द्वारा लिया जाता है।
- तदर्थ न्यायाधीश: सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 224A के अंतर्गत किया गया है।
- इस अनुच्छेद के तहत, किसी भी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश किसी भी समय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, उस न्यायालय या किसी अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर रह चुके किसी व्यक्ति से उस राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने का अनुरोध कर सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों से निपटने के लिये सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति पर ज़ोर दिया।
- इसमें तदर्थ न्यायाधीश की नियुक्ति और कार्यप्रणाली के लिये भावी दिशा-निर्देशों को मौखिक रूप से रेखांकित किया गया।
- कॉलेजियम प्रणाली:
- यह न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रणाली सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है, न कि संसद के अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा।
- प्रणाली का विकास:
- प्रथम न्यायाधीश मामला (वर्ष 1981): इसने घोषणा की कि न्यायिक नियुक्तियों और स्थानांतरणों पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की सिफारिश की “प्राथमिकता” को “ठोस कारणों” से अस्वीकार किया जा सकता है।
- इस निर्णय से अगले 12 वर्षों तक न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका को न्यायपालिका पर प्राथमिकता मिल गयी।
- द्वितीय न्यायाधीश मामला (वर्ष 1993): सर्वोच्च न्यायालय ने कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत की, जिसमें कहा गया कि "परामर्श" का वास्तविक अर्थ "सहमति" है।
- इसमें कहा गया कि यह मुख्य न्यायाधीश की व्यक्तिगत राय नहीं है, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से बनाई गई संस्थागत राय है।
- प्रथम न्यायाधीश मामला (वर्ष 1981): इसने घोषणा की कि न्यायिक नियुक्तियों और स्थानांतरणों पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की सिफारिश की “प्राथमिकता” को “ठोस कारणों” से अस्वीकार किया जा सकता है।
- तृतीय न्यायाधीश मामला (वर्ष 1998): राष्ट्रपति के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने कॉलेजियम को पाँच सदस्यीय निकाय में विस्तारित कर दिया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और उनके चार वरिष्ठतम सहयोगी शामिल थे (उदाहरण के लिये उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्थानांतरण के लिये)।
छत्तीसगढ़ Switch to English
कम बेरोज़गारी के मामले में छत्तीसगढ़ पाँचवें स्थान पर
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार के एक सर्वेक्षण के अनुसार छत्तीसगढ़ को कम बेरोज़गारी दर हासिल करने के लिये मान्यता दी गई है, जो भारतीय राज्यों में पाँचवें स्थान पर है।
मुख्य बिंदु
- सर्वेक्षण विवरण:
- राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO) ने जुलाई 2023 से जून 2024 तक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के माध्यम से अपनी सातवीं वार्षिक रिपोर्ट तैयार की।
- बेरोज़गारी दर को श्रम बल में बेरोज़गार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- सरकार की भूमिका:
- छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने बेरोज़गारी की कम दर का श्रेय रोज़गार सृजन के लिये सरकार के प्रयासों को दिया।
- विशेष रूप से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में रोज़गार और स्वरोज़गार के अवसर सृजित करने के लिये पहल लागू की गई है।
- कौशल विकास में निवेश:
- राज्य सरकार युवाओं को रोज़गारोन्मुख कौशल प्रदान करने के उद्देश्य से 160 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (Industrial Training Institutes- ITI) स्थापित करने की योजना बना रही है।
- अगले तीन वर्षों में 484 करोड़ रुपए के निवेश से ITI का आधुनिकीकरण किया जाएगा ।
- नवीन शैक्षिक पहल:
- सरकार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institutes of Technology- IIT) की तर्ज पर पाँच संस्थान शुरू करने की योजना बना रही है।
- प्रौद्योगिकी और रोज़गार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये उद्योग में कौशल विकास पर ज़ोर दिया जाता है ।
- राज्य जनजातीय क्षेत्रों में युवाओं को रोबोटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता सिखा रहा है, जो आधुनिक शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO)
- राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) एक सरकारी एजेंसी है जो जनसांख्यिकी, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, कृषि और उद्योग सहित विविध विषयों पर सर्वेक्षण करती है।
- NSSO की स्थापना वर्ष 1950 में हुई थी और यह वर्ष 1999 से सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation- MoSPI) के अधीन है।
- NSSO का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है, तथा बंगलूरू में भी इसका एक क्षेत्रीय कार्यालय है।
- NSSO के कुछ कार्य इस प्रकार हैं:
- घरेलू सर्वेक्षण: NSSO घरेलू उपभोक्ता व्यय और अन्य विषयों पर सर्वेक्षण आयोजित करता है।
- रोज़गार और बेरोज़गारी: NSSO रोज़गार और बेरोज़गारी पर पंचवर्षीय सर्वेक्षण आयोजित करता है, जो श्रम बल पर डेटा का प्राथमिक स्रोत है।
- आवास की स्थिति: NSSO ने आवास की स्थिति के विभिन्न पहलुओं पर सर्वेक्षण किये हैं।
- अनौपचारिक उद्यम: NSSO ने अनौपचारिक गैर-कृषि उद्यमों और अन्य विषयों पर सर्वेक्षण आयोजित किये हैं।
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