शासन व्यवस्था
उत्तरकाशी सुरंग हादसा
- 22 Nov 2023
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:
सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग, चारधाम परियोजना, राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड, ड्रिल एवं ब्लास्ट विधि, अटल सुरंग, पीर पंजाल रेलवे सुरंग, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रोड सुरंग
मेन्स के लिये:
भारत में सुरंग निर्माण से संबंधित मुद्दे, भारतीय हिमालयी क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे एक निर्माणाधीन सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग ढह गई, जिससे बड़ी संख्या में श्रमिक सुरंग के अंदर फँस गए।
- यह घटना सुरंग निर्माण के विषय में चिंताएँ बढ़ाती है, साथ ही संभावित कारणों और निवारक उपायों की बारीकी से जाँच करने के लिये प्रेरित करती है।
सुरंग ढहने का संभावित कारण क्या हो सकता है?
- परिचय:
- सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग केंद्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी चारधाम ऑल वेदर रोड परियोजना का हिस्सा है।
- सुरंग के निर्माण का टेंडर भारत सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी, राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (NHIDCL) द्वारा हैदराबाद की नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी को दिया गया था।
- सुरंग ढहने के संभावित कारण: सुरंग ढहने का सटीक कारण अभी तक पता नहीं चल पाया है, लेकिन एक संभावित कारण यह हो सकता है:
- सुरंग के मुहाने से लगभग 200-300 मीटर की दूरी पर स्थित ढहे हुए भाग में अज्ञात खंडित या कमज़ोर चट्टान का हिस्सा हो सकता है, जिसका निर्माण के दौरान पता नहीं चल पाया।
- इस क्षतिग्रस्त चट्टान से जल का रिसाव, जो समय के साथ ढीले चट्टानी कणों को नष्ट कर देता है, ने सुरंग संरचना के ऊपर एक अदृश्य रिक्त स्थान बना दिया।
सुरंग निर्माण के महत्त्वपूर्ण पहलू क्या हैं?
- सुरंग खुदाई तकनीक:
- ड्रिल और ब्लास्ट विधि (DBM): इसमें चट्टान में छेद करना और उसे तोड़ने के लिये विस्फोटकों का उपयोग करना शामिल है।
- चुनौतीपूर्ण क्षेत्र के कारण हिमालय (जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड) जैसे क्षेत्रों में प्रायः DBM का उपयोग किया जाता है।
- टनल-बोरिंग मशीनें (TBM): यह पूर्वनिर्मित कंक्रीट खंडों के साथ सुरंग को पीछे से सहारा देते हुए चट्टान में छेद करती है। यह अधिक महँगा लेकिन सुरक्षित तरीका है।
- TBM का उपयोग तब आदर्श माना जाता है जब चट्टान का आवरण 400 मीटर तक ऊँचा हो। दिल्ली मेट्रो के लिये भूमिगत सुरंगें TBM का उपयोग करके कम गहराई पर खोदी गईं।
- ड्रिल और ब्लास्ट विधि (DBM): इसमें चट्टान में छेद करना और उसे तोड़ने के लिये विस्फोटकों का उपयोग करना शामिल है।
- सुरंग निर्माण के पहलू:
- चट्टान की जाँच: इसकी भार वहन क्षमता और स्थिरता का आकलन करने के लिये भूकंपीय तरंगों एवं पेट्रोग्राफिक विश्लेषण के माध्यम से चट्टान की क्षमता व संरचना की पूरी तरह से जाँच करना।
- निगरानी और समर्थन: शॉटक्रीट, रॉक बोल्ट, स्टील रिब्स और विशेष सुरंग पाइप छतरियों जैसे विभिन्न समर्थन तंत्रों के साथ-साथ तनाव एवं विरूपण मीटर के उपयोग से निरंतर निगरानी करना।
- भूविज्ञानी आकलन: भूवैज्ञानिक सुरंग की जाँच करने, संभावित विफलताओं की भविष्यवाणी करने और चट्टान की स्थिरता अवधि निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत में अन्य प्रमुख सुरंगें कौन-सी हैं?
- अटल सुरंग: अटल सुरंग (रोहतांग सुरंग के रूप में भी जाना जाता है) भारत के हिमाचल प्रदेश में लेह-मनाली राजमार्ग पर हिमालय की पूर्वी पीर पंजाल शृंखला में रोहतांग दर्रे के नीचे बनी एक राजमार्ग सुरंग है।
- 9.02 किमी. की लंबाई के साथ यह विश्व में 10,000 फीट (3,048 मीटर) से ऊपर की सबसे लंबी सुरंग है।
- पीर पंजाल रेल सुरंग: 11.2 किमी. लंबी यह सुरंग भारत की सबसे लंबी रेल परिवहन सुरंग है।
- यह काज़ीगुंड तथा बारामूला के बीच पीर पंजाल पर्वत शृंखला से होकर गुज़रती है।
- जवाहर सुरंग: इसे बनिहाल सुरंग भी कहा जाता है। इस सुरंग की लंबाई 2.85 किमी. है।
- यह सुरंग श्रीनगर तथा जम्मू के बीच पूरे वर्ष सड़क संपर्क की सुविधा प्रदान करती है।
- डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी सड़क सुरंग: इसे पहले चेनानी-नशरी सुरंग के नाम से जाना जाता था तथा यह भारत की सबसे लंबी सड़क सुरंग है। इस सड़क सुरंग की लंबाई 9.3 किमी. है।
आगे की राह
- नियमित रखरखाव: संबंधित मुद्दों की तुरंत पहचान करने तथा उनके निपटान के लिये संरचनात्मक अखंडता, जल निकासी प्रणालियों एवं वेंटिलेशन के निरीक्षण सहित एक सुदृढ़ रखरखाव कार्यक्रम लागू करने की आवश्यकता है।
- संरचनात्मक स्थिति का निरंतर आकलन करने, किसी भी संभावित कमज़ोरी अथवा विसंगतियों का शीघ्र पता लगाने के लिये सेंसर एवं निगरानी प्रौद्योगिकियों को नियोजित किया जाना चाहिये।
- जोखिम मूल्यांकन तथा तत्परता: आवर्ती बाहरी जोखिम मूल्यांकन करते समय उपयोग कारकों, पर्यावरण तथा भूवैज्ञानिक पहलुओं की समीक्षा करना।
- किसी भी संरचनात्मक चिंता के मामले में आकस्मिक योजनाओं का विकास तथा आपातकालीन प्रोटोकॉल लागू करना चाहिये।
- प्रशिक्षण तथा जागरूकता: सुरंग प्रबंधन तथा आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रक्रियाओं के संबंध में कर्मियों को प्रशिक्षण देना। जन जागरूकता अभियान के माध्यम से उपयोगकर्त्ताओं एवं समीप के निवासियों को सुरक्षा उपायों एवं रिपोर्टिंग तंत्र के बारे में शिक्षित किया जा सकता है।
- प्रौद्योगिकी एकीकरण: अधिक कुशल निरीक्षण, रखरखाव तथा संभावित मुद्दों का शीघ्र पता लगाने के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन अथवा रोबोटिक्स जैसी नवीन तकनीकों का अन्वेषण किया जाना चाहिये।