अपशिष्ट प्रबंधन एवं नवीन विधिक प्रावधान

संदर्भ
भारत में अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित वैधानिक प्रावधान, वर्तमान में अपनी विकासोन्मुख अवस्था में हैं। वस्तुतः भारत में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों व निष्कर्षों के आधार पर एक ऐसे धारणीय तंत्र के निर्माण की कवायद चल रही है जहाँ आम व्यक्ति, उद्योग एवं सरकार तीनों के हितों को ध्यान में रखते हुए सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा की जा सके।  

अतः मूल लक्ष्य एक धारणीय व अनुक्रियाशील प्रबंधन तंत्र को विकसित करना है जो अपशिष्ट निर्माण, संग्रहण एवं निस्तारण में सभी पक्षकारों की भूमिका तय करते हुए उनके कर्त्तव्यों व ज़िम्मेदारियों को परिभाषित कर एक सक्षम व अनुक्रियाशील तंत्र का निर्माण करे। भारत में अपशिष्ट प्रबंधन तंत्र के कार्यकरण में मुख्यतः तीन सिद्धांतों यथा- सतत् विकास, सावधानी सिद्धांत (Precautionary principle) और प्रदूषण फैलाने वाले के द्वारा भुगतान का सिद्धांत  (Polluters pays principle) इत्यादि का अनुसरण किया जाता है।   

अपशिष्ट प्रबंधन किसे कहते हैं?

  • अपशिष्ट प्रबंधन से तात्पर्य उस सम्पूर्ण श्रृंखला से है जिसके अंतर्गत अपशिष्ट के निर्माण से लेकर उसके संग्रहण (Collection) व परिवहन (Transport) के साथ प्रसंस्करण (Processing) एवं निस्तारण (Disposal) तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया को शामिल किया जाता है।  
  • उक्त प्रबंधन तंत्र के अंतर्गत विभिन्न चरणों यथा संग्रहण (Collection), परिवहन (Transport), उपचार (Treatment) और निगरानी (Monitoring) के साथ निस्तारण को भी शामिल किया जाता है। 
  • अपशिष्ट पदानुक्रम तीन- आर (3-r’s) का अनुसरण करता है- जो  न्यूनीकरण (reduce), पुन: उपयोग (Reuse) और पुनर्चक्रण (Recycle)  के रूप में  संदर्भित किये जाते हैं। ये तीनों R अपशिष्ट प्रबंधन रणनीति को अपशिष्ट न्यूनीकरण के संदर्भ में उनकी वांछनीयता के अनुसार वर्गीकृत करते हैं। 

ठोस अपशिष्ट  के प्रकार

  • किसी संरचना अथवा इमारत के बनने व् उसके ढहने के फलस्वरूप उत्पन्न हुए अपशिष्ट (Construction and Demolition Waste)
  • प्लास्टिक अपशिष्ट, जो प्लास्टिक उत्पादों के प्रयोगों से निर्मित होते हैं।  
  • जैव चिकित्सकीय अपशिष्ट– चिकित्सकीय कार्यों जैसे  निदान, उपचार और प्रतिरक्षा (Diagnosis, Treatment and Immunization)  से उत्पन्न अपशिष्ट के साथ उपचार उपकरण जैसे सुई, सिरिंज और दवाओं में शामिल अपशिष्ट। 
  • खतरनाक अपशिष्ट (Hazardous waste)– ऐसे अपशिष्ट पदार्थ जिनके प्रभाव से व्यक्ति या वातावरण के लिये तत्काल खतरा उत्पन्न होता है। 
  • ई-कचरा (e-waste)-  इसमें अनुपयोगी कंप्यूटर मॉनिटर, मदरबोर्ड, कैथोड रे ट्यूब (सी.आर.टी.), मुद्रित सर्किट बोर्ड (पी.सी.बी.), मोबाइल फोन, चार्जर्स, कॉम्पैक्ट डिस्क, हेडफोन इत्यादि को शामिल किया जाता है। 

अपशिष्ट न्यूनीकरण एवं निस्तारण से संबंधित नवीन वैधानिक प्रावधान 
इन्हीं संदर्भों में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हाल ही में अधिसूचना जारी कर अपशिष्ट प्रबंधन नियमों के क्रियान्वयन में आ रही व्यावहारिक दिक्कतों को दूर करने का प्रयास करते हुए पहले से चल रहे विभिन्न  नियमों में कुछ बदलाव किये हैं।  

मंत्रालय द्वारा निम्नलिखित अपशिष्ट प्रबंधन नियमों में कुछ बदलाव किये गए हैं- 

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम -2016

  • इस नियम का प्रभाव सभी स्थानीय निकायों एवं नगरीय संकुलों (Urban Agglomoration) पर होगा। 
  • प्रदूषणकर्त्ता के कर्त्तव्यों का निर्धारण करते हुए सर्वप्रथम यह कहा गया है कि प्रदूषणकर्त्ता सम्पूर्ण अपशिष्ट को तीन प्रकारों यथा जैव निम्नीकरणीय, गैर-जैव निम्नीकरणीय एवं घरेलू खतरनाक अपशिष्टों के रूप में वर्गीकृत करके इन्हें अलग-अलग डब्बों में रखकर स्थानीय निकाय द्वारा निर्धारित अपशिष्ट संग्रहकर्त्ता को ही देंगे । 
  • इसके साथ ही स्थानीय निकायों द्वारा निर्धारित यूज़र्स शुल्क का भुगतान प्रदूषणकर्त्ता द्वारा किया जाएगा।  ये  शुल्क स्थानीय निकायों  द्वारा निर्मित विनियमों से निर्धारित किये जाएंगे। 
  • इसके अतिरिक्त, इस नियम के अंतर्गत विभिन्न पक्षकारों यथा–  भारत सरकार के विभिन मंत्रालयों जैसे पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय, जिला मजिस्ट्रेट, ग्राम पंचायत, स्थानीय निकाय, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड  आदि के कर्तव्यों का उल्लेख भी किया गया है। 
  • स्थानीय निकायों के भी कुछ उत्तरदायित्त्व निर्धारित किये गए हैं, जैसे- घर-घर से अपशिष्ट संग्रहण, विनियमन निर्माण, यूज़र्स शुल्क निर्धारण तथा बायोमिथनेशन, माइक्रोबियल कम्पोस्टिंग, वर्मी कम्पोस्टिंग जैसी तकनीकों को अपनाना। 

कंस्ट्रक्शन एवं डेमोलिशन अपशिष्ट प्रबंधन नियम

  • ये नियम भवन निर्माण व उससे संबंधित सभी गतिविधियों पर लागू होते हैं, जहाँ से अपशिष्ट निर्माण होता है। 
  • इस नियम के अंतर्गत ये प्रावधान हैं कि जो अपशिष्ट उत्पादनकर्त्ता 20 टन प्रतिदिन व 300 टन प्रति महीने समान या उससे अधिक अपशिष्ट का निर्माण करेगा, उसे प्रत्येक निर्माण व तोड़-फोड़ के लिये स्थानीय निकाय से उपयुक्त स्वीकृति प्राप्त करनी होगी तथा उसे अपने सम्पूर्ण अपशिष्ट को कंक्रीट, मिट्टी, लकड़ी, प्लास्टिक, ईंट आदि में वर्गीकृत कर संग्रहकर्त्ता  को देना होगा । 
  • इस नियम के अंतर्गत स्थानीय निकायों के उत्तरदायित्त्व भी निर्धारित किये गए  हैं, वे निम्नलिखित हैं-

→ उनके द्वारा प्रदूषणकर्ता के अपशिष्ट उत्पादन की प्रबंधन योजनाओं का परीक्षण व मूल्यांकन किया जाएगा । 
→  संग्रह किये गए अपशिष्ट को सही तरीके से प्राप्त कर उपयुक्त स्थलों तक पहुँचाने का कार्य भी किया जाएगा। 
→  इस कार्य के लिये स्थानीय निकाय निजी क्षेत्र का भी सहयोग ले सकते हैं। 

खतरनाक एवं अन्य अपशिष्ट नियम, 2016

  • ये नियम उक्त नियम में उल्लिखित अनुसूची-1 से 6 में वर्णित खतरनाक पदार्थों पर लागू होते हैं। 
  • इन नियमों के अंतर्गत मूलतः खतरनाक पदार्थों के धारकों के लिये कुछ कर्त्त्वयों का निर्धारण किय गया है। 
  • इस नियम का मुख्य उद्देश्य है यह है कि खतरनाक पदार्थ का धारक निम्नलिखित पदानुक्रम का अनुसरण करेगा-

→ निवारण (Prevention)
→ न्यूनीकरण (Minimization )
→ पुनः प्रयोग (Reuse)
→ पुनर्चक्रण (Recycle)
→ रिकवरी, उपयोग एवं प्रसंस्करण (Recovery, Utilization including Co-processing)
→ सुरक्षित निस्तारण (Safe disposal)

ई-कचरा प्रबंधन नियम

  • ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016 अक्तूबर 2016 से प्रभाव में आए। 
  • ये नियम प्रत्येक निर्माता, उत्पादनकर्त्ता, उपभोक्ता, विक्रेता, अपशिष्ट संग्रहकर्त्ता, उपचारकर्त्ता व उपयोग- कर्त्ताओं आदि सभी पर लागू होंगे। 
  • अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक रूप दिया जाएगा और श्रमिकों को ई-कचरे को संभालने के लिये प्रशिक्षित किया जाएगा, न कि उसमें से  कीमती धातुओं को निकालने के बाद। 
  • इस नियम से पहले ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 कार्यरत था। 

निष्कर्ष
स्पष्ट है कि भारत जैसे विकासशील देश के लिये एक सक्षम अपशिष्ट प्रबंधन तंत्र तथा उसका विनियमन अति आवश्यक है, परन्तु नियम निर्माण के अलावा देश में लोगों को अपशिष्ट निस्तारण के प्रति जागरूक व शिक्षित करने के प्रयास भी करने होंगे।