प्रस्तावित काँवड़ यात्रा मार्ग के लिये काटे गए वृक्ष | उत्तर प्रदेश | 13 Nov 2024
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के अनुसार, प्राधिकारियों ने नया काँवड़ यात्रा मार्ग बनाने के लिये उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद, मेरठ और मुज़फ्फरनगर ज़िलों में लगभग 17,600 वृक्ष काट दिये हैं।
मुख्य बिंदु
- पृष्ठभूमि:
- इस वर्ष की शुरुआत में, NGT ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 1,12,722 वृक्षों को काटने की योजना से संबंधित एक समाचार रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लिया था।
- बड़े पैमाने पर वृक्षों की कटाई का उद्देश्य गाज़ियाबाद के मुरादनगर और मुज़फ्फरनगर के पुरकाजी के बीच प्रस्तावित काँवड़ यात्रा मार्ग को सुगम बनाना था।
- अंतरिम रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- अगस्त 2024 में, NGT ने इस परियोजना से जुड़ी पर्यावरणीय चिंताओं की जाँच के लिये एक संयुक्त पैनल का गठन किया।
- सिंचाई विभाग के आँकड़ों पर आधारित रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रारंभिक अनुमति 1,12,722 वृक्षों को काटने की थी, लेकिन बाद में लक्ष्य घटाकर 33,776 कर दिया गया।
- NGT ने उत्तर प्रदेश सरकार को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि क्या काटे जाने वाले वृक्षों की गणना उत्तर प्रदेश वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1976 के अनुरूप है।
- सरकार को यह भी स्पष्ट करना होगा कि क्या सड़क निर्माण के लिये हटाए जाने वाले पौधे और झाड़ियाँ जैसी अतिरिक्त वनस्पतियाँ अधिनियम की वृक्षों की परिभाषा के अंतर्गत आती हैं।
काँवड़ यात्रा
- यह भगवान शिव भक्तों द्वारा श्रावण माह में किया जाने वाला एक हिंदू तीर्थस्थल है।
- भक्तगण उत्तराखंड में हरिद्वार, गौमुख, गंगोत्री, बिहार में सुल्तानगंज, उत्तर प्रदेश में प्रयागराज, अयोध्या और वाराणसी जैसे तीर्थ स्थानों की यात्रा करते हैं एवं शिव का आशीर्वाद लेने के लिये काँवड़ में गंगा जल लेकर लौटते हैं।
- जल को शिव मंदिरों में चढ़ाया जाता है, जिसमें भारत भर के 12 ज्योतिर्लिंग और उत्तर प्रदेश में पुरा महादेव मंदिर और औघड़नाथ, प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर और झारखंड के देवघर में बाबा बैद्यनाथ मंदिर जैसे अन्य मंदिर शामिल हैं। इस अनुष्ठान को जल अभिषेक के नाम से जाना जाता है।
आगरा में फुल मोशन सिम्युलेटर सुविधा का उद्घाटन | उत्तर प्रदेश | 13 Nov 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर प्रदेश के आगरा वायु सेना स्टेशन में भारतीय वायु सेना (IAF) C-295 फुल मोशन सिम्युलेटर (FMS) का उद्घाटन किया गया। इससे सिम्युलेटर में पायलट प्रशिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा पूरा किया जा सकेगा, जिससे विमान पर उड़ान के कीमती घंटों की बचत होगी।
मुख्य बिंदु
- यह सिम्युलेटर पायलटों को अत्यधिक वास्तविकता के निकट प्रशिक्षण प्रदान करता है तथा सामरिक एयरलिफ्ट, पैरा-ड्रॉपिंग, पैरा-ट्रूपिंग, चिकित्सा निकासी तथा आपदा राहत जैसे अभियानों का अनुकरण करता है।
- यह महत्त्वपूर्ण परिदृश्यों का अनुकरण भी करता है, जिससे वास्तविक दुनिया के संचालनों के लिये पायलटों की तत्परता बढ़ती है और तीव्र, उच्च-दाँव वाले निर्णय लेने की उनकी क्षमता में सुधार होता है, जिससे सैन्य उड़ानों की समग्र सुरक्षा बढ़ जाती है।
- भारतीय वायुसेना में C-295 विमान के शामिल होने से देश के एयरोस्पेस उद्योग को मज़बूती मिलेगी, क्योंकि यह निजी क्षेत्र के परिवहन विमान उत्पादन में "आत्मनिर्भर भारत" की शुरुआत का प्रतीक है ।
- C-295 विमान:
- यह समकालीन प्रौद्योगिकी वाला 5-10 टन क्षमता वाला परिवहन विमान है।
- मज़बूत और विश्वसनीय, यह एक बहुमुखी और कुशल सामरिक परिवहन विमान है जो कई अलग-अलग मिशनों को पूरा कर सकता है।
- विशेषताएँ:
- 11 घंटे तक की उड़ान क्षमता वाला यह विमान सभी मौसम की परिस्थितियों में बहु-भूमिका संचालन कर सकता है।
- यह रेगिस्तान से लेकर समुद्री वातावरण तक दिन के साथ-साथ रात के लड़ाकू मिशनों को भी संचालित कर सकता है।
- इसमें सैनिकों और कार्गो की त्वरित प्रतिक्रिया और पैरा ड्रॉपिंग के लिये पीछे की ओर रैंप दरवाज़ा है। अर्द्ध-निर्मित सतहों से कम दूरी पर उड़ान भरना/उतरना इसकी एक और विशेषता है।
- प्रतिस्थापन:
- यह भारतीय वायु सेना के पुराने हो रहे Avro-748 विमानों के बेड़े की जगह लेगा।
- Avro-748 विमान ब्रिटिश मूल के दोहरे इंजन वाले टर्बोप्रॉप, सैन्य परिवहन और मालवाहक विमान हैं जिनकी माल ढुलाई क्षमता 6 टन है।
हरियाणा में सबसे कम लिंगानुपात दर्ज | हरियाणा | 13 Nov 2024
चर्चा में क्यों?
हरियाणा सरकार के अनुसार, कन्या भ्रूण हत्या के लिये बदनाम हरियाणा का जन्म के समय लिंगानुपात (SRB) आठ वर्षों में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया है।
मुख्य बिंदु
- हरियाणा में लिंगानुपात में गिरावट:
- हरियाणा में 2024 के पहले 10 महीनों के लिये लिंगानुपात 905 दर्ज किया गया, जो वर्ष 2022 से 11 अंकों की गिरावट है।
- यह 2016 के बाद से सबसे कम आँकड़ों में से एक है, जो राज्य के लिये लगातार चुनौती का संकेत देता है।
- सबसे कम लिंगानुपात वाले ज़िले:
- गुरुग्राम: 859
- रेवाड़ी: 868
- चरखी दादरी: 873
- रोहतक: 880
- पानीपत: 890
- महेंद्रगढ़: 896
- हरियाणा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित आदर्श लिंगानुपात 950 से नीचे बना हुआ है।
- गुरुग्राम के खराब प्रदर्शन के लिये आंशिक रूप से जून से अगस्त 2024 के दौरान राज्य पोर्टल पर तकनीकी समस्याओं को जिम्मेदार ठहराया गया, जिसके परिणामस्वरूप जन्म पंजीकरण कम हुए।
- बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान का प्रभाव :
- हालाँकि, वर्ष 2020 में फिर से गिरावट शुरू हुई और यह प्रवृत्ति आज भी जारी है।
- वर्ष 2015 में शुरू किये गए “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान ने वर्ष 2019 तक लिंगानुपात को बढ़ाकर 923 कर दिया ।
- सामाजिक एवं सांस्कृतिक चुनौतियाँ:
- हरियाणा में सामाजिक-आर्थिक कारकों और सांस्कृतिक मानदंडों के कारण बेटों को प्राथमिकता दी जाती है ।
- परिवारों को बेटियों के भाग जाने से संभावित अपमान का डर रहता है, दहेज का बोझ लगता है तथा लड़कियों से सीमित आर्थिक लाभ की आशंका रहती है।
- लिंग वरीयता का अंतर-राज्य प्रभाव:
- दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान जैसे पड़ोसी राज्य कथित तौर पर कम कड़े नियमों के कारण हरियाणा के निवासियों को अवैध लिंग आधारित गर्भपात के लिये आकर्षित करते हैं।
- इन राज्यों में अल्ट्रासाउंड ऑपरेटर कभी-कभी वित्तीय लाभ के लिये भ्रूण के लिंग की गलत जानकारी देते हैं।
- लिंग परीक्षण का प्रवर्तन और चुनौतियाँ:
- वर्ष 2005 से अब तक हरियाणा में अवैध लिंग निर्धारण पर अंकुश लगाने के लिये लगभग 1,200 छापे मारे गए हैं, लेकिन सफलता दर में गिरावट आ रही है, क्योंकि जाँचकर्त्ता अधिक सतर्क हो गए हैं।
- लिंग असंतुलन के सामाजिक परिणाम:
- विषम लिंगानुपात के कारण हरियाणा में कई पुरुषों को विवाह योग्य साथी ढूँढने में कठिनाई होती है तथा कुछ गाँवों में तो सैकड़ों अविवाहित पुरुष पाए गए हैं।
- कुछ परिवारों में उपेक्षा और कुपोषण लड़कियों को असमान रूप से प्रभावित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ या असमय मृत्यु हो जाती है।
कन्या भ्रूण हत्या एवं शिशु हत्या:
- भारत में कन्या भ्रूण हत्या की दर विश्व में सबसे अधिक है।
- कन्या भ्रूण हत्या का कारण पुत्र प्राप्ति की प्रबल चाह, दहेज प्रथा तथा उत्तराधिकारी की पितृवंशीय आवश्यकता है।
- 2011 की जनगणना में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में अब तक का सबसे कम लिंगानुपात 914 दर्ज किया गया है, जिसमें 30 लाख लड़कियाँ लापता हैं; वर्ष 2001 में यह 78.8 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2011 में 75.8 मिलियन हो गया।
गया में एकीकृत विनिर्माण क्लस्टर का विकास | बिहार | 13 Nov 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास निगम (NICDC) और बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण (BIADA) ने गया में एकीकृत विनिर्माण क्लस्टर (IMC) की स्थापना के लिये राज्य समर्थन समझौते (SSA) और शेयरधारक समझौते (SHA) पर हस्ताक्षर किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- परियोजना का विजन:
- औद्योगिक विकास और रोजगार सृजन:
- गया अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास स्थित IMC गया की 1,339 करोड़ रुपए की परियोजना से लगभग 1,09,185 नौकरियाँ उत्पन्न होने की उम्मीद है, जिससे स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- लक्षित उद्योगों में निर्माण सामग्री, कृषि-खाद्य प्रसंस्करण, चमड़े के सामान, वस्त्र, फर्नीचर, हथकरघा, हस्तशिल्प, इंजीनियरिंग, निर्माण और चिकित्सा उपकरण शामिल हैं।
- रणनीतिक संपर्क और पहुँच:
- IMC गया राष्ट्रीय राजमार्ग, गया जंक्शन और आगामी न्यू पहाड़पुर रेलवे स्टेशन के साथ रणनीतिक संपर्क प्रदान करता है ।
- प्रमुख हवाई अड्डों में गया अंतर्राष्ट्रीय, पटना अंतर्राष्ट्रीय और राँची हवाई अड्डे शामिल हैं।
- यह प्रमुख बंदरगाहों और अंतर्देशीय टर्मिनलों जैसे हल्दिया बंदरगाह, पटना में गायघाट और वाराणसी में रामनगर के निकट होने से रसद सुविधा में वृद्धि होती है।
- स्वर्णिम चतुर्भुज और बहु-ट्रैक रेलवे जैसे संपर्कों का लाभ उठाते हुए पहुँच में सुधार के लिये तीन ग्रीनफील्ड सड़क परियोजनाएँ भी प्रस्तावित हैं ।
- नियोजित बुनियादी ढाँचा और सुविधाएँ:
- सुविधाओं में कौशल विकास केंद्र, अग्निशमन केंद्र, प्रशासनिक कार्यालय, पार्किंग और उद्योगों को सहायता देने के लिये वाणिज्यिक स्थान शामिल हैं।
- बुनियादी ढाँचे में सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्र, सीवेज उपचार संयंत्र, जल उपचार संयंत्र, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, वर्षा जल निकासी और हरित भूनिर्माण शामिल हैं।
- IMC गया से आर्थिक विकास को गति मिलने, व्यापक रोज़गार सृजन होने तथा पूर्वी भारत में औद्योगिक केंद्र के रूप में बिहार की भूमिका मज़बूत होने तथा 'मेक इन इंडिया' दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने की उम्मीद है।
अमृतसर-कोलकाता औद्योगिक गलियारा (AKIC)
- इसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल शामिल हैं।
- यह परियोजना अमृतसर (पंजाब) से दानकुनी (पश्चिम बंगाल) तक 1839 किलोमीटर की लंबाई तक विस्तृत है।
- पूर्वी समर्पित माल गलियारा इस आर्थिक गलियारे की रीढ़ है।
इगास बग्वाल महोत्सव | उत्तराखंड | 13 Nov 2024
चर्चा में क्यों?
इगास बग्वाल, जिसे बूढ़ी दिवाली या हरबोधनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, दिवाली के 11 दिन बाद उत्तराखंड में मनाया जाने वाला एक पारंपरिक त्यौहार है। यह त्यौहार राज्य की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है, जो साझा परंपराओं और उत्सवों के माध्यम से समुदायों को एकजुट करता है।
प्रमुख बिंदु
- उत्पत्ति और महत्त्व:
- इगास बग्वाल कार्तिक शुक्ल एकादशी को मनाई जाती है और यह भगवान विष्णु के चार महीने के विश्राम काल के अंत का प्रतीक है, जो नई शुरुआत के लिये एक शुभ समय है।
- "इगास" शब्द उत्तराखंड में सांस्कृतिक गौरव और पौराणिक श्रद्धा से जुड़ा है।
- ऐसा माना जाता है कि जब भगवान राम के अयोध्या लौटने की सूचना दिवाली के 11 दिन बाद उत्तराखंड पहुँची, तो स्थानीय लोगों ने अपने तरीके से दिवाली मनाई।
- एक अन्य किंवदंती गढ़वाली योद्धा माधव सिंह भंडारी की दापाघाटी में तिब्बत पर विजय का जश्न मनाती है, जिसे समुदाय द्वारा एकता और वीरता के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
- भैलो- मशाल परंपरा:
- ग्रामीण लोग देवदार की लकड़ियों को बांधकर भैलो या अंधाया नामक बड़ी मशालें बनाते हैं, जिन्हें जलाकर ऊपर की ओर घुमाया जाता है, जो अंधकार के निष्कासन का प्रतीक है।
- ऐसा माना जाता है कि इस मशाल अनुष्ठान से देवी लक्ष्मी से समृद्धि का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
- त्यौहार अनुष्ठान और पशु सम्मान:
- उत्तराखंड की कृषि जीवन शैली के लिये आवश्यक मवेशियों को इगास बग्वाल के दौरान सम्मानित किया जाता है। ग्रामीण उन्हें नहलाते हैं और हल्दी और सरसों के तेल से सजाते हैं।
- पशुओं के लिये विशेष भोजन तैयार किया जाता है, तथा सांप्रदायिक सद्भाव का जश्न मनाने के लिये ग्रामीणों के बीच पारंपरिक व्यंजन बाँटे जाते हैं।
- इगास बग्वाल के संरक्षण के प्रयास:
- स्थानीय प्राधिकारी और सांस्कृतिक संगठन कार्यक्रमों और जागरूकता अभियानों के माध्यम से इगास बग्वाल को बढ़ावा देते हैं, जिसका उद्देश्य त्योहार की विरासत को संरक्षित करना है।
- युवा-केंद्रित पहल इगास बग्वाल के सांस्कृतिक महत्त्व पर ज़ोर देती है, तथा यह सुनिश्चित करती है कि इसकी विरासत भविष्य की पीढ़ियों तक बनी रहे।
सिरपुर झील | मध्य प्रदेश | 13 Nov 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेश पर, इंदौर नगर निगम की एक टीम ने सिरपुर झील के जलग्रहण क्षेत्र से अतिक्रमण और दुकानें हटायीं।
प्रमुख बिंदु
- सिरपुर आर्द्रभूमि के बारे में:
- यह एक मानव निर्मित आर्द्रभूमि है, जिसे प्रायः पक्षी विहार (पक्षी अभयारण्य) कहा जाता है। यह मध्य प्रदेश के इंदौर ज़िले में स्थित है।
- यह 130 वर्ष से अधिक पुराना है, जिसे महाराजा शिवाजी राव होलकर ने इंदौर शहर के लिये जलापूर्ति हेतु बनवाया था।
- यह एक उथली, क्षारीय, पोषक तत्त्वों से भरपूर झील है जिसमें मानसून के दौरान बाढ़ आ जाती है।
- जैवविविधता:
- यहाँ लगभग 175 स्थलीय पौधों की प्रजातियाँ और छह प्रकार के मैक्रोफाइट्स पाए जाते हैं।
- 30 मछली प्रजातियों (प्राकृतिक और संवर्धित), और सरीसृप एवं उभयचर की आठ प्रजातियों का समर्थन करता है।
- यहाँ 130 पक्षी प्रजातियाँ निवास करती हैं, जिनमें स्थानीय और प्रवासी पक्षी शामिल हैं, जैसे कॉमन पोचर्ड (अयथ्या फेरिना), मिस्त्र के गिद्ध (निओफ्रॉन पर्क्नोप्टेरस), इंडियन रिवर टर्न (स्टर्ना ऑरांशिया)।
- सर्दियों में यह जलीय पक्षियों के एक बड़े समूह को आकर्षित करता है, जिससे यह एक महत्त्वपूर्ण मौसमी आवास बन जाता है।
- स्थानीय समुदायों को लाभ:
- मत्स्य पालन और औषधीय पौधे उपलब्ध कराता है।
- बाढ़ अवरोधक के रूप में कार्य करता है और स्थानीय सूक्ष्म जलवायु को विनियमित करने में मदद करता है।
- आध्यात्मिक समृद्धि, मनोरंजन और शैक्षिक गतिविधियों के अवसर प्रदान करता है।
- संरक्षण की स्थिति:
- इस स्थल के पास वर्तमान में कोई औपचारिक प्रबंधन योजना नहीं है तथा इसे राष्ट्रीय कानूनी संरक्षण का दर्जा भी प्राप्त नहीं है।