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उत्तराखंड स्टेट पी.सी.एस.

  • 12 Jul 2022
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बदरीनाथ में मिली काई की दुर्लभ प्रजाति: बायोडीज़ल का बन सकती है विकल्प

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एचएनबी गढ़वाल (केंद्रीय) विश्वविद्यालय के वनस्पति एवं सूक्ष्म जैविकी (बॉटनी एंड माइक्रोबायोलॉजी) विभाग ने बदरीनाथ के नारद कुंड में दुर्लभ प्रजाति के सूक्ष्म शैवाल (काई) की खोज की है।

प्रमुख बिंदु

  • यह शैवाल अभी तक भारत के गुजरात राज्य सहित दो देशों में ही पाया गया है। यह प्रजाति इससे पूर्व वर्ष 1980 में गुजरात में देखी गई थी। साथ ही, वर्ष 1966 में अमेरिका और वर्ष 1987 में बांग्लादेश में भी इसे देखा गया था।
  • सूडोबोहलिनिया नामक यह सूक्ष्म शैवाल बायोडीज़ल (जैव ईंधन) का सर्वोत्तम विकल्प बन सकता है।
  • गढ़वाल विवि के बॉटनी एंड माइक्रोबायोलॉजी विभाग के सहायक प्रो. डॉ. धनंजय कुमार के निर्देशन में शोध कर रहीं प्रीति सिंह ने इस दुर्लभ प्रजाति के सूक्ष्म शैवाल को खोजने के साथ ही इसकी उत्पादकता का विश्लेषण किया है।
  • प्रीति सिंह ने बदरीनाथ में तप्तकुंड के नीचे स्थित नारद कुंड की दीवार से शैवाल के नमूने लिये थे। इस कुंड में तप्त कुंड का गर्म पानी गिरता है। पानी का तापमान 30 से 40 डिग्री सेल्सियस रहता है।
  • दीवार से नमूने लेने के बाद उन्होंने विभाग की प्रयोगशाला में इसका उत्पादन किया। एक साल तक चले अध्ययन में उन्हें सामान्य शैवाल के साथ ही चार सूक्ष्म शैवाल की प्रजातियाँ मिलीं। इनमें तीन तो अन्य जगहों पर देखी गईं थीं, लेकिन एक प्रजाति बिल्कुल अलग मिली।
  • प्रीति सिंह ने बताया कि इस शैवाल के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं मिली। लगभग 5 माइक्रोमीटर के इस शैवाल की बाहरी सतह पर काँटों के समान आकृति देखी गई। यह शैवाल तेज़ी से फैलता है और इसमें लिपिड (वसा) की भी अच्छी-खासी मात्रा होती है।
  • दुर्लभ प्रजाति के सूक्ष्म शैवाल मिलने के बाद बायोडीज़ल बनाने में इसकी उपयोगिता पर शोध किया गया। भारत में कुछ स्थानों पर शैवाल से बायोडीज़ल बनाने का काम चल रहा है। विश्वविद्यालय की एल्गल लैब में शोधकर्त्ताओं ने लगभग 109 प्रजाति के शैवालों में लिपिड का तुलनात्मक अध्ययन किया। सामान्यतया शैवाल में 25 से 30 फीसदी लिपिड मिलता है। वहीं, सूडोबोहलिनिया में सामान्य परिस्थिति में सबसे अधिक 33 फीसदी लिपिड मिला। अनुकूल वातावरण मिलने पर लिपिड की मात्रा काफी बढ़ गई, जो बायोडीज़ल बनाने के लिये काफी बेहतर है। लिपिड ही बायोडीज़ल का प्रमुख स्रोत है।
  • गौरतलब है कि पेट्रोलियम ईंधन की सीमित मात्रा को देखते हुए विकल्प के तौर पर बायोडीज़ल पर ज़ोर दिया जा रहा है। केंद्र सरकार की बायोफ्यूल नीति के तहत पेट्रोलियम ईंधन में 20 प्रतिशत तक बायोडीज़ल मिलाने का लक्ष्य है, लेकिन यह लक्ष्य पूरा नहीं हो पा रहा है। यदि सरकार सूक्ष्म शैवाल के उत्पादन पर ज़ोर देती है, तो सूडोबोहलिनिया जैसी प्रजातियाँ बेहतर विकल्प बन सकती हैं।

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चंपावत का प्रसिद्ध देवीधुरा ‘माँ वाराही बग्वाल मेला’ राजकीय मेला घोषित'

चर्चा में क्यों?

11 जुलाई, 2022 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत के प्रसिद्ध देवीधुरा ‘माँ वाराही बग्वाल मेले’ को राजकीय मेला घोषित किया। उन्होंने मुख्य सचिव को तत्काल इसका जीओ जारी करने के आदेश दिये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि कुछ समय पहले चंपावत में मुख्यमंत्री ने मेले को राजकीय मेला का दर्जा देने की घोषणा की थी। राज्य मेला घोषित करने के बाद से इस साल पहली बार राज्य सरकार के तत्त्वावधान में मेला आयोजित होगा। वर्तमान में ज़िला पंचायत के स्तर पर मेले का आयोजन होता है।
  • चंपावत ज़िले के प्रसिद्ध देवीधुरा में ‘माँ वाराही मंदिर’ में रक्षाबंधन के दिन होने वाले प्रसिद्ध बग्वाल मेले को ‘पत्थर मार’ मेला भी कहा जाता है। इस मेले को देखने देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु देवीधुरा पहुँचते हैं।
  • ऐसा माना जाता है कि देवीधुरा में बग्वाल का यह खेल पौराणिक काल से चला आ रहा है। कुछ लोग इसे कत्यूर शासन से चला आ रहा पारंपरिक त्योहार मानते हैं, जबकि कुछ अन्य इसे काली कुमाऊँ से जोड़कर देखते हैं।
  • प्रचलित मान्यताओं के अनुसार पौराणिक काल में चार खामों के लोगों द्वारा अपनी आराध्या वाराही देवी को मनाने के लिये नर बलि देने की प्रथा थी। माँ वाराही को प्रसन्न करने के लिये चारों खामों के लोगों में से हर साल एक नर बलि दी जाती थी। बताया जाता है कि एक साल चमियाल खाम की एक वृद्धा परिवार की नर बलि की बारी थी। परिवार में वृद्धा और उसका पौत्र ही जीवित थे। महिला ने अपने पौत्र की रक्षा के लिये माँ वाराही की स्तुति की। माँ वाराही ने वृद्धा को दर्शन दिये और मंदिर परिसर में चार खामों के बीच बग्वाल खेलने के निर्देश दिये, तब से बग्वाल की प्रथा शुरू हुई।
  • चंपावत जनपद के पाटी ब्लॉक के देवीधुरा में माँ वाराही धाम मंदिर के खोलीखांड दुबाचौड़ में हर साल अषाढ़ी कौथिक (रक्षाबंधन) के दिन बग्वाल मेला होता है। पत्थर से शुरू यह बग्वाल मेला बीते कुछ वर्षों से फल-फूलों से खेली जाती रही है। लाखों लोगों की मौज़ूदगी में होने वाली बग्वाल मेले में चार खामों (चम्याल, गहरवाल, लमगड़िया और वालिग) के अलावा सात थोकों के योद्धा फर्रों के साथ हिस्सा लेते हैं।
  • बग्वाल वाराही मंदिर के प्रांगण खोलीखांड में खेली जाती है। इसे चारों खामों के युवक और बुजुर्ग मिलकर खेलते हैं। लमगड़िया व वालिग खामों के रणबाँकुरे एक तरफ, जबकि दूसरी ओर गहड़वाल और चम्याल खाम के रणबाँकुरे डटे रहते हैं।

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