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शासन व्यवस्था

वन और क्षेत्राधिकार

  • 29 Aug 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वन और क्षेत्राधिकार, टी.एन. गोडावरमन थिरुमुल्कपाद बनाम भारत संघ निर्णय, 42वाँ संशोधन अधिनियम, 1976, मौलिक कर्तव्य, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत।

मेन्स के लिये:

वन और संबंधित कानून।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ को उसके वन विभाग से राजस्व विभाग को उचित प्रक्रिया का पालन किये बिना भूमि के हस्तांतरण पर आपत्ति जताई है।

पृष्ठिभूमि

  • मार्च, 2022 में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने अपने बजट भाषण में घोषणा की कि राज्य सरकार ने बस्तर क्षेत्र में रायपुर से बड़ा 300 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र वन विभाग से राजस्व विभाग को हस्तांतरित कर दिया है ताकि उद्योगों की स्थापना और बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये भूमि की आसान उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके।
  • अगस्त, 2022 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालय ने राज्य को भूमि के हस्तांतरण को रोकने का प्रयास यह कहते हुए किया कि यह वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और सर्वोच्च न्यायालय के कई आदेशों का उल्लंघन है, अतः पहले से हस्तांतरित भूमि को वापस कर दें।
  • यह कदम अब बाधा बन गया है, जबकि राज्य के अन्य हिस्सों में अधिक भूमि स्थानांतरित करने के लिये कागजी कार्रवाई भी चल रही है।

वन :

  • परिचय:
    • वर्तमान में ‘वन’ की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है जिसे राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया गया हो।
    • राज्यों को वनों की अपनी परिभाषा निर्धारित करने के लिये अधिकार दिया गया है।
    • वर्ष 1996 से भूमि को वन के रूप में परिभाषित करने का विशेषाधिकार राज्य का रहा है और इसकी उत्पत्ति सर्वोच्च न्यायालय के टी.एन. गोडावरमन थिरुमुल्कपाद बनाम भारतीय संघ (T.N. Godavarman Thirumulkpad vs the Union of India) निर्णय के बाद हुई है।
      • इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ‘वन’ शब्द को इसके ‘शब्दकोश के अर्थ’ के अनुसार समझा जाना चाहिये।
      • इसमें सभी वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त वन शामिल हैं, चाहे उन्हें आरक्षित, संरक्षित या अवर्गीकृत श्रेणी के रूप में रखा गया हो।
  • संवैधानिक प्रावधान एवं क्षेत्राधिकार:
    • जंगल' या 'वन' (Forests) भारतीय संविधान की सातवीं अनूसूची में वर्णित 'समवर्ती सूची’ में सूचीबद्ध हैं।
    • 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से वन और वन्यजीवों तथा पक्षियों के संरक्षण को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया।
    • भारतीय वन (IF) अधिनियम, 1927 के तहत अधिसूचित दो प्रकार के वनों पर राज्य के वन विभागों का अधिकार क्षेत्र है: आरक्षित वन (RF), जहाँ निर्दिष्ट किये जाने तक किसी भी अधिकार की अनुमति नहीं है; और संरक्षित वन (PF), जहाँ निर्दिष्ट किये जाने तक कोई अधिकार वर्जित नहीं है। कुछ वन, जैसे गाँव या नगरपालिका वन, राज्य के राजस्व विभागों द्वारा प्रबंधित किये जाते हैं।
    • संविधान के अनुच्छेद 51A(g) में कहा गया है कि वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा।
    • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 48A में कहा गया है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के वनों एवं वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।

वन मंज़ूरी:

  • वन संरक्षण अधिनियम, 1980 सभी प्रकार के वनों पर लागू होता है, चाहे वह वन या राजस्व विभाग के नियंत्रण में हो और किसी भी गैर-वन उद्देश्य जैसे उद्योग, खनन या निर्माण के लिये वनों का उपयोग करने से पहले इसके लिये वैधानिक मंज़ूरी की आवश्यकता होती है।
    • एक अन्य प्रकार की मंज़ूरी, पर्यावरण मंज़ूरी एक लंबी प्रक्रिया है तथा एक निश्चित आकार से परे परियोजनाओं के लिये अनिवार्य है और इसमें अक्सर एक संभावित परियोजना का पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन और कभी-कभी सार्वजनिक सुनवाई शामिल होती है जिसमें स्थानीय लोग शामिल होते हैं जो परियोजना से प्रभावित हो सकते हैं।

 अनिर्धारित संरक्षित वन:

  • अनिर्धारित संरक्षित वनों को नारंगी क्षेत्र (Orange Area) भी कहा जाता है, जो एक प्रशासनिक गतिरोध का परिणाम है और वर्ष 1951 में जमींदारी व्यवस्था के उन्मूलन के बाद से राजस्व और वन विभागों के मध्य विवाद का विषय बना हुआ है।
  • वन संरक्षण (FC) अधिनियम, वर्ष 1980 के तहत अनिर्धारित संरक्षित वनों का उपयोग गैर-वन उद्देश्यों के लिये बिना मंज़ूरी के नहीं किया जा सकता है।

भारत के वनों को नियंत्रित करने वाली नीतियाँ:

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. भारतीय वन अधिनियम, 1927 में हाल में हुए संशोधन के अनुसार, वन निवासियों को वनक्षेत्रों में उगने वाले बाँस को काटने का अधिकार है।
  2. अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के अनुसार, बाँस एक गौण वनोपज है।
  3. अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, वन निवासियों को गौण वनोपज के स्वामित्त्व की अनुमति देता है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3        
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • भारतीय वन (संशोधन) विधेयक 2017 गैर-वन क्षेत्रों में उगाए गए बाँस की कटाई और पारगमन की अनुमति देता है। हालाँकि, वन भूमि पर उगाए गए बाँस को पेड़ के रूप में वर्गीकृत किया जाना जारी रहेगा और मौजूदा कानूनी प्रतिबंधों द्वारा निर्देशित किया जाएगा। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, बाँस को लघु वन उपज के रूप में मान्यता देता है और अनुसूचित जनजातियों और पारंपरिक वन निवासियों के साथ "स्वामित्व, लघु वन उपज के संग्रहण, उपयोग तथा निपटान के अधिकार" को निहित करता है। अत: कथन 2 और 3 सही हैं।

मेन्स:

प्रश्न. अवैध खनन के परिणाम क्या हैं? कोयला खनन क्षेत्र के लिए पर्यावरण और वन मंत्रालय की “गो” और “नो गो” ज़ोन की अवधारणा पर चर्चा कीजिये। (2013)

प्रश्न. भारत के वन संसाधनों की स्थिति और जलवायु परिवर्तन पर इसके परिणामी प्रभावों की जाँच कीजिये। (2020)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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