छत्तीसगढ़ Switch to English
छत्तीसगढ़ की औद्योगिक नीति 2024-29
चर्चा में क्यों?
छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य के स्थापना दिवस पर नई औद्योगिक नीति शुरू की। इसमें आत्मसमर्पित नक्सलियों, महिलाओं और थर्ड जेंडर समुदाय के लिये विशेष प्रावधान पेश किये गए हैं, जो विकास में समावेशिता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- नई औद्योगिक नीति 2024-29 “अमृतकाल: छत्तीसगढ़ विजन@2047” के अनुरूप है, जिसका लक्ष्य राज्य को एक आत्मनिर्भर औद्योगिक केंद्र में बदलना है।
प्रमुख बिंदु
- नीति के उद्देश्य:
- नीति का उद्देश्य आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है तथा हाशिये पर पड़े समूहों को सशक्त बनाना है, तथा यह सुनिश्चित करना है कि सभी नागरिकों को विकास में भाग लेने और लाभ उठाने का अवसर मिले।
- महत्त्वपूर्ण पहल:
- विशेष प्रावधान:
- एक समर्पित प्रोत्साहन पैकेज में उद्यमिता प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता शामिल है, जो आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को एक नई शुरुआत और सार्थक सामुदायिक भागीदारी के अवसर प्रदान करता है ।
- विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम और सरकार समर्थित वित्तीय सहायता, थर्ड जेंडर समुदाय के सदस्यों को अपना उद्यम स्थापित करने के लिये सशक्त बनाती है, जिससे लंबे समय से चली आ रही सामाजिक और आर्थिक बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं।
- लक्षित पहलों में निवेश रियायतें, कर छूट और वित्तीय सहायता के साथ-साथ महिलाओं के बीच स्वरोज़गार और व्यवसाय प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये कौशल-आधारित प्रशिक्षण शामिल हैं।
- आर्थिक विकास उपाय:
- नीति अनुदान सब्सिडी को 18%-20% से बढ़ाकर 30%-35% कर देती है, जिससे नए उद्यमों और छोटे व्यवसायों को सहायता मिलती है।
- नवीन विचारों को सतत् व्यवसायों में परिवर्तित करने में स्टार्ट-अप्स की सहायता के लिये 50 करोड़ रुपए का कोष निर्धारित किया गया है।
- "सिंगल विंडो सिस्टम 2.0" विभागों में अनुमोदन को डिजिटल बनाता है, अनुमति, लाइसेंस एवं पंजीकरण को सरल बनाता है, जिससे निवेश प्रक्रियाएँ अधिक कुशल और आकर्षक बनती हैं।
- प्रोत्साहनों से लघु, मध्यम और बड़े उद्योगों को सहायता मिलेगी, जिसका ध्यान लॉजिस्टिक्स, नए औद्योगिक क्षेत्रों और क्लस्टर विकास पर होगा, जिससे राज्य भर में एक मज़बूत व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होगा।
- नीति में प्रदूषण मुक्त उद्योगों को प्राथमिकता दी गई है, विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहन विनिर्माण और सतत् उत्पाद विकास को, तथा विकास को पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी के साथ संरेखित किया गया है।
- विशेष प्रावधान:
सिंगल विंडो सिस्टम (SWS) 2.0
- यह अपने पोर्टल पर 16 विभागों की 100 से अधिक सुविधाएँ प्रदान करता है।
- आवेदक को केवल एक बार लॉग इन करना होगा और उसे दोबारा आवेदन करने की आवश्यकता नहीं होगी। यदि प्रक्रिया के दौरान किसी विभाग को जानकारी की आवश्यकता होती है, तो आवेदक लॉग इन करके पता कर सकता है।
- किसी भी कार्यालय से ऑफलाइन संपर्क करने की आवश्यकता नहीं है। ई-चालान के माध्यम से भुगतान किया जा सकता है। आवेदन पत्रों के निस्तारण के लिये विभागीय अधिकारियों को ID और पासवर्ड दिये गए हैं।
उत्तराखंड Switch to English
चार धाम यात्रा 2024 के दौरान तीर्थयात्रियों की मृत्यु
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2024 में उत्तराखंड में 192 दिनों की चार धाम यात्रा, जिसमें बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे ऊँचे स्थान वाले मंदिर शामिल हैं, में स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं के कारण 246 तीर्थयात्रियों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हो गई।
प्रमुख बिंदु
- उत्तराखंड सरकार के आँकड़ों के अनुसार, चार धाम यात्रा में 47,03,905 से अधिक तीर्थयात्रियों ने भाग लिया, जो 10 मई 2024 को शुरू हुई और 17 नवंबर 2024 को समाप्त होने वाली है।
- वर्ष 2023 में मृत्यु दर 230 से अधिक हो गई, जबकि वर्ष 2022 में यह संख्या 300 से अधिक थी।
- हेलीकॉप्टर यात्रा और स्वास्थ्य ज़ोखिम:
- केदारनाथ मंदिर तक पहुँचने के लिये हेलीकॉप्टर का उपयोग करने वाले तीर्थयात्रियों में मृत्यु दर बहुत अधिक देखी गई। अनुकूलन के बिना उच्च ऊँचाई (लगभग 3,000 मीटर) पर तेज़ी से चढ़ने से स्वास्थ्य ज़ोखिम बढ़ जाता है।
- सभी चार धाम तीर्थस्थलों पर ऑक्सीजन की कमी से ऊँचाई संबंधी बीमारी हो सकती है, जो कि यदि तुरंत प्रबंधित न की जाए तो घातक हो सकती है।
- अपर्याप्त आवास, मार्ग पर भीड़भाड़, चरम और परिवर्तनशील मौसम की स्थिति, तथा अपर्याप्त स्वास्थ्य जाँच जैसे मुद्दे।
- चार धाम यात्रा का आर्थिक प्रभाव:
- इस यात्रा से प्रतिवर्ष लगभग 7,500 करोड़ रुपए की आय होती है, जो उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
- यह यात्रा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 10 लाख से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान करती है, जिसमें होटल कर्मचारी, गाइड, टैक्सी चालक, पुजारी, खच्चर संचालक, कुली और पर्यटन और हस्तशिल्प क्षेत्र के अन्य लोग शामिल हैं।
- आलोचना और चिंताएँ:
- यद्यपि राज्य ने इस वर्ष तीर्थयात्रियों के लिये स्वास्थ्य जाँच अनिवार्य कर दी है, फिर भी उच्च मृत्यु दर ने चिंता उत्पन्न कर दी है।
- नीति आयोग जैसे थिंक टैंक ने बार-बार भारतीय हिमालयी क्षेत्र में सतत् पर्यटन प्रथाओं का आह्वान किया है तथा राज्य से इन मानकों के अनुरूप कार्य करने का आग्रह किया है।
चार धाम यात्रा
- यमुनोत्री धाम:
- अवस्थिति: उत्तरकाशी ज़िला।
- समर्पित: देवी यमुना को।
- यमुना नदी भारत में गंगा नदी के बाद दूसरी सबसे पवित्र नदी है।
- गंगोत्री धाम:
- अवस्थिति: उत्तरकाशी ज़िला।
- समर्पित: देवी गंगा को।
- सभी भारतीय नदियों में सबसे पवित्र मानी जाती है।
- केदारनाथ धाम:
- अवस्थिति: रुद्रप्रयाग ज़िला।
- समर्पित: भगवान शिव को।
- मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है।
- भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों (भगवान शिव के दिव्य प्रतिनिधित्व) में से एक।
- बद्रीनाथ धाम:
- अवस्थिति: चमोली ज़िला।
- पवित्र बद्रीनारायण मंदिर का स्थान।
- समर्पित: भगवान विष्णु को।
- वैष्णवों के लिये पवित्र तीर्थस्थलों में से एक।
झारखंड Switch to English
झारखंड की जनजातियों की अधिकारों के लिये लड़ाई
चर्चा में क्यों?
झारखंड में आगामी विधानसभा चुनावों के लिये, राजनीतिक दलों ने समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की योजना की घोषणा की, लेकिन आश्वासन दिया कि आदिवासी समुदायों को इसके प्रावधानों से बाहर रखा जाएगा और उनके अधिकारों और सुरक्षा की रक्षा पर ज़ोर दिया।
- झारखंड के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में आदिवासियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है और उनके संघर्षों ने कई ऐतिहासिक आंदोलनों को जन्म दिया है।
मुख्य बिंदु
- झारखंड में ब्रिटिश नियंत्रण और आदिवासी प्रतिरोध:
- भौगोलिक संदर्भ: झारखंड, जो मुख्य रूप से पूर्वी भारत में छोटा नागपुर पठार पर स्थित है, 1765 में ब्रिटिश नियंत्रण में आया जब मुगलों ने अंग्रेज़ों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर दीवानी अधिकार प्रदान किये, जिससे उन्हें राजस्व एकत्र करने की अनुमति मिल गई।
- जनजातीय निवासी: झारखंड के पठारी क्षेत्र में लंबे समय से मुंडा, संथाल, उरांव, हो (HO)और बिरहोर जैसी जनजातियाँ निवास करती रही हैं, जिनमें से आधे से अधिक जनजातीय श्रमिकों की प्राथमिक आजीविका कृषि रही है, जो राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति औसत 44.7% से अधिक है।
- औपनिवेशिक नीतियाँ और जनजातीय विद्रोह:
- अंग्रेज़ों ने वाणिज्यिक कृषि और खनन की शुरुआत की, जिससे कई जनजातियों को उनकी भूमि से बेदखल होना पड़ा। इस शोषण के कारण आदिवासी नेताओं ने अपने अधिकारों की रक्षा और ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिये आंदोलन आयोजित किये।
- विद्वान राम दयाल मुंडा और बिशेश्वर प्रसाद केशरी ने 1769-93 को प्रतिरोध का प्रारंभिक चरण बताया, जिसके बाद के दशक में खुले विद्रोह का दौर आया।
प्रमुख जनजातीय विद्रोह:
- ढाल विद्रोह (1767-1777):
- नेता: धालभूम (अब पश्चिम बंगाल में) के पूर्व राजा जगन्नाथ धाल ने ब्रिटिश घुसपैठ के विरुद्ध पहले महत्त्वपूर्ण विद्रोह का नेतृत्व किया।
- ब्रिटिश प्रतिक्रिया: विद्रोह 10 वर्षों तक चला, जिसके कारण अंग्रेज़ों को 1777 में ढाल को पुनः शासक के रूप में बहाल करना पड़ा। इस विद्रोह ने निरंतर जनजातीय प्रतिरोध की शुरुआत को चिह्नित किया।
- मुंडा विद्रोह (1899-1900):
- नेता: बिरसा मुंडा के नेतृत्व में विद्रोह का उद्देश्य ब्रिटिश नियंत्रण को उखाड़ फेंकना, बाहरी लोगों को बाहर निकालना और एक स्वतंत्र मुंडा राज्य की स्थापना करना था।
- उद्देश्य और रणनीति: मुंडाओं ने गुरिल्ला रणनीति अपनाई और औपनिवेशिक अधिकारियों, साहूकारों और मिशनरियों को निशाना बनाया।
- परिणाम: बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में 1900 में जेल में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन विद्रोह ने एक स्थायी प्रभाव छोड़ा और बिरसा को मुंडाओं के बीच एक नायक के रूप में मनाया गया।
- ताना भगत आंदोलन (1914):
- संस्थापक: उरांव जनजाति के जतरा भगत ने पारंपरिक प्रथाओं की ओर लौटने का आह्वान किया और औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध लगान-मुक्ति अभियान चलाया।
- गठबंधन: ताना भगत क्रांतिकारी कॉन्ग्रेस कार्यकर्त्ताओं के साथ शामिल हो गए और सत्याग्रह, असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों में भाग लिया।
- विरासत: इस आंदोलन ने अहिंसा और सामूहिक कार्रवाई के विचारों को प्रस्तुत किया, जिसने बड़े पैमाने पर स्वतंत्रता आंदोलन को प्रभावित किया।
- झारखंड आंदोलन और राज्य का दर्जा:
- 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध में झारखंड की पहचान का पुनरुत्थान हुआ, जिसमें अखिल झारखंड छात्र संघ (1986) और झारखंड समन्वय समिति (1987) का गठन हुआ, जिसके परिणामस्वरूप झारखंड आंदोलन और अंततः 2000 में राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ।
- झारखंड आंदोलन ने 200 वर्षों में झारखंड की संस्कृति के क्रमिक विघटन को उजागर किया, खासकर ब्रिटिश शासन के दौरान। आज, आदिवासी समुदाय भूमि विवाद, कम साक्षरता दर, गरीबी और औद्योगिक विकास के बीच शोषण जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
राजस्थान Switch to English
राजस्थान में कायाकल्प योजना
चर्चा में क्यों?
राजस्थान कॉलेज शिक्षा आयुक्तालय ने कायाकल्प योजना के अंतर्गत 20 सरकारी कॉलेजों को उनके भवनों और प्रवेश द्वारों के अग्रभाग को नारंगी रंग में रंगने का आदेश दिया है। इस पहल का मुख्य उद्देश्य शैक्षणिक संस्थानों में "सकारात्मक वातावरण" का निर्माण करना है।
मुख्य बिंदु
- कायाकल्प योजना:
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा शुरू की गई कायाकल्प योजना का उद्देश्य भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में सफाई, स्वच्छता और संक्रमण नियंत्रण को बढ़ाना है।
- सरकारी कॉलेजों के लिये नए निर्देश:
- प्रथम चरण: प्रथम चरण में प्रत्येक संभाग स्तर से दो कॉलेजो को शामिल किया गया है, इस प्रकार कुल 20 कॉलेज होंगे।
- कायाकल्प का उद्देश्य: आदेश में छात्रों के लिये "सकारात्मक, स्वच्छ, स्वस्थ और शैक्षिक वातावरण" बनाने पर ज़ोर दिया गया है, जहाँ वे कॉलेज परिसर में प्रवेश करने पर प्रोत्साहित महसूस करें।
राजस्थान Switch to English
सतलुज नदी में प्रदूषण
चर्चा में क्यों?
राजस्थान के श्रीगंगानगर ज़िले के निवासी सतलुज नदी में कथित प्रदूषण के विरुद्ध तीव्र आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं, जिसका श्रेय वे पड़ोसी राज्य पंजाब की फैक्ट्रियों को देते हैं।
मुख्य बिंदु
- श्रीगंगानगर ज़िले में बाज़ार बंद रहे, क्योंकि निवासियों ने सतलुज नदी में कथित प्रदूषण के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन किया।
- पंजाब सरकार द्वारा STP (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) सुविधाओं के साथ जल को उपचारित करने के प्रयासों के बावजूद, जल की गुणवत्ता हानिकारक बनी हुई है, जिससे कथित तौर पर स्थानीय समुदायों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण की कार्रवाइयाँ:
- 2018 में, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने सतलुज और ब्यास नदियों में “अनियंत्रित औद्योगिक निर्वहन” के लिये पंजाब सरकार पर 50 करोड़ रुपए का ज़ुर्माना लगाया था ।
- 2021 में, NGT ने पंजाब को एक बार फिर चेतावनी दी और पंजाब तथा राजस्थान दोनों को केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय को त्रैमासिक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया, जिसमें नदियों में औद्योगिक अपशिष्ट के निर्वहन को रोकने के लिये उठाए गए कदमों का विवरण शामिल होना चाहिये।
सतलुज नदी
- सतलुज नदी का प्राचीन नाम ज़रद्रोस (प्राचीन यूनानी) शुतुद्रि या शतद्रु (संस्कृत) है।
- यह सिंधु नदी की पाँच सहायक नदियों में से सबसे लंबी है, जो पंजाब (जिसका अर्थ है "पांच नदियाँ") को अपना नाम देती हैं।
- झेलम, चिनाब, रावी, व्यास और सतलुज सिंधु की मुख्य सहायक नदियाँ हैं।
- यह दक्षिण-पश्चिमी तिब्बत में लांगा झील (Lake La’nga) में हिमालय की उत्तरी ढलान पर स्थित है।
- हिमालय की घाटियों से होकर उत्तर-पश्चिम की ओर तथा उसके बाद पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती हुई यह नदी हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करती है तथा उसे पार करती हुई नंगल के निकट पंजाब के मैदान से होकर बहती है।
- दक्षिण-पश्चिम की ओर एक विस्तृत चैनल में आगे बढ़ते हुए, यह ब्यास नदी से मिलती है (और पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले भारत-पाकिस्तान सीमा के 65 मील (105 किमी.) का निर्माण करती है तथा बहावलपुर के पश्चिम में चेनाब नदी में मिलने के लिये 220 मील (350 किमी.) बहती है।
- सतलुज नदी पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले फिरोज़पुर ज़िले के हरिके में ब्यास नदी से मिलती है।
- संयुक्त नदियाँ पंजनद का निर्माण करती हैं, जो पाँच नदियों और सिंधु के बीच का संबंध स्थापित करती हैं।
- लुहरी चरण-I जल विद्युत परियोजना हिमाचल प्रदेश के शिमला और कुल्लू ज़िलों में सतलुज नदी पर स्थित है।
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