भारतीय इतिहास
1855 का संथाल हुल
- 05 Jul 2024
- 15 min read
प्रिलिम्स के लिये:1855 का संथाल हुल, संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम, 1876, दिकू, आदिवासी विद्रोह, मुंडा विद्रोह मेन्स के लिये:औपनिवेशिक भारत में जनजातीय विद्रोह, जनजातीय भूमि अधिकार और औपनिवेशिक नीतियाँ, आधुनिक भारतीय इतिहास |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 30 जून 2024 को 1855 के संथाल हुल की 169वीं वर्षगाँठ मनाई गई, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक उत्पीड़न के खिलाफ एक महत्त्वपूर्ण किसान विद्रोह का प्रतीक है।
- इस विद्रोह के परिणामस्वरूप संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम, 1876 और छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 पारित हुआ, जो भारत में जनजातीय भूमि अधिकारों तथा सांस्कृतिक स्वायत्तता के संरक्षण के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण था।
1855 का संथाल हुल क्या है?
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 1855 का संथाल हुल भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ सबसे शुरुआती किसान विद्रोहों में से एक था। चार भाइयों - सिद्धो, कान्हो, चाँद और भैरव मुर्मू के साथ-साथ बहनों फूलो और झानो के नेतृत्व में, विद्रोह 30 जून 1855 को शुरू हुआ।
- विद्रोह का लक्ष्य न केवल अंग्रेज़ थे, बल्कि उच्च जातियाँ, ज़मींदार, दरोगा और साहूकार भी थे, जिन्हें सामूहिक रूप से 'दिकू' कहा जाता था।
- इसका उद्देश्य संथाल समुदाय के आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक अधिकारों की रक्षा करना था।
- विद्रोह की उत्पत्ति:
- वर्ष 1832 में कुछ क्षेत्रों को ‘संथाल परगना’ या ‘दामिन-ए-कोह’ नाम दिया गया, जिसमें वर्तमान झारखंड में साहिबगंज, गोड्डा, दुमका, देवघर, पाकुड़ और जामताड़ा के कुछ हिस्से शामिल हैं।
- यह क्षेत्र संथालों को दिया गया था जो बंगाल प्रेसीडेंसी के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों से विस्थापित हुए थे।
- संथालों को दामिन-ए-कोह में बसने और कृषि करने का वादा किया गया था, लेकिन इसके बदले उन्हें दमनकारी भूमि हड़पने तथा बेगारी (बँधुआ मज़दूरी) का सामना करना पड़ा।
- संथाल क्षेत्र में बँधुआ मज़दूरी की दो प्रणालियाँ उभरीं, जिन्हें कामियोती और हरवाही के नाम से जाना जाता है।
- कामियोती के तहत, ऋण चुकाए जाने तक ऋणदाता के लिये काम करना पड़ता था, जबकि हरवाही के तहत, ऋणदाता को व्यक्तिगत सेवाएँ प्रदान करनी पड़ती थीं और आवश्यकतानुसार ऋणदाता के खेत की जुताई करनी पड़ती थी। बॉन्ड की शर्तें इतनी सख्त थीं कि संथाल के लिये अपने जीवनकाल में ऋण चुकाना लगभग असंभव था।
- संथाल क्षेत्र में बँधुआ मज़दूरी की दो प्रणालियाँ उभरीं, जिन्हें कामियोती और हरवाही के नाम से जाना जाता है।
- वर्ष 1832 में कुछ क्षेत्रों को ‘संथाल परगना’ या ‘दामिन-ए-कोह’ नाम दिया गया, जिसमें वर्तमान झारखंड में साहिबगंज, गोड्डा, दुमका, देवघर, पाकुड़ और जामताड़ा के कुछ हिस्से शामिल हैं।
- गुरिल्ला युद्ध एवं दमन:
- मुर्मू बँधुओं ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध में लगभग 60,000 संथालों का नेतृत्व किया। छह महीने तक चले भयंकर प्रतिरोध के बावजूद, जनवरी 1856 में भारी जनहानि और तबाही के साथ विद्रोह का दमन दिया गया।
- 15,000 से ज़्यादा संथालों ने अपनी जान गँवाई और 10,000 से ज़्यादा गाँव नष्ट हो गए।
- हुल ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ़ शुरुआती प्रतिरोध को उजागर किया और यह आदिवासी लचीलेपन का प्रतीक बना हुआ है।
- मुर्मू बँधुओं ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध में लगभग 60,000 संथालों का नेतृत्व किया। छह महीने तक चले भयंकर प्रतिरोध के बावजूद, जनवरी 1856 में भारी जनहानि और तबाही के साथ विद्रोह का दमन दिया गया।
- प्रभाव: इस विद्रोह के परिणामस्वरूप ही संथाल परगना काश्तकारी (Santhal Pargana Tenancy- SPT) अधिनियम, 1876 पारित किया गया जो आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने को प्रतिबंधित करता है, केवल समुदाय के भीतर ही भूमि उत्तराधिकार की स्वीकृति देता है तथा संथालों को अपनी भूमि पर स्वयं शासन करने का अधिकार सुरक्षित रखता है।
संथाल जनजाति
- गोंड और भील के बाद यह भारत में तीसरी सबसे बड़ी अनुसूचित जनजाति है, जो अपने शांतिपूर्ण स्वभाव के लिये जानी जाती है। वे मूल रूप से खानाबदोश थे और बिहार तथा ओडिशा के संथाल परगना में बसने से पहले छोटा नागपुर पठार में निवास करते थे।
- ये झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में निवास करते हैं तथा कृषि, औद्योगिक श्रम, खनन एवं उत्खनन जैसे कार्यों में शामिल हैं।
- वे एक स्वायत्त आदिवासी धर्म में आस्था रखते हैं और पवित्र उपवनों के रूप में प्रकृति की उपासना करते हैं। उनकी भाषा को संथाली कहा जाता है जिसकी अपनी लिपि है जिसे 'OL चिकी' कहा जाता है जो आठवीं अनुसूची में अनुसूचित भाषाओं की सूची में शामिल है।
- उनके कलारूप, जैसे- फूटा कच्चा पैटर्न की साड़ी और पोशाक आदि लोकप्रिय हैं। वे कृषि और उपासना से संबंधित विभिन्न त्योहारों तथा अनुष्ठानों को मनाते हैं। संथाल घर, जिन्हें 'Olah' के नाम से जाना जाता है, बाहरी दीवारों पर बहुरंगी चित्रों से सुसज्जित अपने बड़े आकार, सफाई और आकर्षक रूप के कारण आसानी से पहचाने जा सकते हैं।
छोटा नागपुर क्षेत्र में हुए अन्य जनजातीय विद्रोह कौन-से हैं?
- मुंडा विद्रोह: मुंडा उलगुलान (विद्रोह) भारतीय स्वतंत्रता के दौरान एक महत्त्वपूर्ण जनजातीय विद्रोह था, जिसने जनजातीय लोगों द्वारा शोषण का विरोध करने उनकी क्षमता को उजागर किया।
- यह अधिनियम आदिवासी और दलित समुदाय की भूमि की बिक्री को भी प्रतिबंधित करता है किंतु समान पुलिस के क्षेत्र में किसी अन्य आदिवासी व्यक्ति तथा एक ही ज़िले के दलित व्यक्ति के बीच भूमि हस्तांतरण की अनुमति देता है।
- झारखंड के छोटा नागपुर में मुंडा जनजाति को, जो मुख्य रूप से कृषि करती थी, ब्रिटिश उपनिवेशवादियों, ज़मींदारों और मिशनरियों के उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उनकी भूमि ज़ब्त कर ली गई और मज़दूरों के रूप में काम करने के लिये विवश किया गया।
- बिरसा मुंडा ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और जनजाति की छीनी गई भूमि तथा उनके अधिकारों को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया।
- बिरसा आंदोलन के परिणामस्वरूप वर्ष 1908 में अंग्रेज़ों द्वारा अधिनियमित किया गया छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (CNT अधिनियम), ज़िला कलेक्टर की स्वीकृति से एक ही जाति और कुछ भौगोलिक क्षेत्रों के भीतर ही भूमि के हस्तांतरण की अनुमति देता है।
- ताना भगत आंदोलन: यह आंदोलन अप्रैल 1914 में जतरा भगत के नेतृत्व में शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य छोटानागपुर के उराँव समुदाय में कुप्रथाओं को रोकना और ज़मींदारों द्वारा किये जा रहे शोषण का विरोध करना था।
- इस आंदोलन ने महात्मा गांधी से प्रभावित होकर अहिंसा को बढ़ावा दिया। आंदोलन के परिणामस्वरूप, पशु बलि बंद कर दी गई और शराब का सेवन प्रतिबंधित कर दिया गया।
- चुआर विद्रोह: चुआर विद्रोह छोटा नागपुर और बंगाल के मैदानों के मध्य क्षेत्र में शुरू हुआ जो वर्ष 1767 से 1802 तक जारी रहा। इसका नेतृत्व दुर्जन सिंह ने किया। अंग्रेज़ों द्वारा उनकी भूमि अधिग्रहण का जनजातियों ने विद्रोह किया और गुरिल्ला युद्धनीति का इस्तेमाल किया।
- तमाड़ विद्रोह: यह वर्ष 1789 और 1832 के बीच छोटानागपुर क्षेत्र में तमाड़ के उराँव जनजातियों द्वारा किया गया विद्रोह था, जिसका नेतृत्व भोला नाथ सहाय ने किया था।
- जनजातियों ने ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू की गई दोषपूर्ण संरेखण प्रणाली के खिलाफ विद्रोह किया, जो कि काश्तकारों के भूमि अधिकारों को सुरक्षित करने में विफल रही थी, जिसके कारण वर्ष 1789 में तामार जनजातियों में अशांति फैल गई।
औपनिवेशिक भारत में जनजातीय विद्रोह
- औपनिवेशिक भारत में जनजातीय विद्रोह विविध और बहुआयामी थे, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों तथा जनजातीय समुदायों पर उनके प्रभाव के विरुद्ध गहरी शिकायतों को दर्शाते थे।
- मुख्य भूमि और सीमांत जनजातीय विद्रोहों में वर्गीकृत ये आंदोलन 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से लेकर भारतीय स्वतंत्रता की पूर्व संध्या तक फैले रहे, जिन्होंने क्षेत्रीय गतिशीलता को प्रभावित किया तथा ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी।
स्थिति |
मुख्यभूमि जनजातीय विद्रोह |
सीमांत जनजातीय विद्रोह |
भौगोलिक फोकस |
मध्य एवं पश्चिम-मध्य भारत। |
भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र |
विशेषताएँ |
कृषि एवं वन आधारित; भूमि एवं वन नीतियों पर केंद्रित। |
राजनीतिक स्वायत्तता और सांस्कृतिक संरक्षण; भूमि निपटान नीतियों से कम प्रभावित। |
कारण |
भू-राजस्व बंदोबस्त, वन नीतियाँ, बाहरी लोगों का आगमन और ईसाई मिशनरियाँ |
राजनीतिक स्वायत्तता, भूमि और जंगलों पर नियंत्रण तथा गैर-संस्कृतिकरण आंदोलन |
लक्ष्य |
स्थानीय स्वायत्तता, सांस्कृतिक संरक्षण |
राजनीतिक स्वायत्तता, स्वतंत्रता |
सांस्कृतिक प्रतिरोध |
जनजातीय पहचान और रीति-रिवाज़ों को संरक्षित करने का लक्ष्य |
सांस्कृतिक प्रभावों का विरोध किया, विशेषकर संस्कृतीकरण का |
प्रभाव |
क्षेत्रीय पहचान और स्वायत्तता आंदोलनों में योगदान दिया |
स्वदेशी प्रथाओं और राजनीतिक स्वायत्तता के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित |
आंदोलनों के उदाहरण |
पहाड़िया विद्रोह (1778, राजमहल हिल्स), चुआर विद्रोह (1776, मिदनापुर और बांकुरा), खोंड विद्रोह (1837-56 और 1914), कोया विद्रोह (1879-80, आंध्र प्रदेश का पूर्वी गोदावरी क्षेत्र) और रम्पा विद्रोह (1922-1924, आंध्र प्रदेश) |
अहोम विद्रोह (1828, असम), सिंगफोस विद्रोह (1830 के प्रारंभ में, असम), कुकी विद्रोह (1817-19, मणिपुर), नागा आंदोलन (1905-31; मणिपुर) और ज़ेलियांगसोंग आंदोलन (1920 का दशक; मणिपुर) |
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: औपनिवेशिक भारत में जनजातीय विद्रोह ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों के खिलाफ गहरी शिकायतों को दर्शाते हैं। मुख्य भूमि और सीमावर्ती क्षेत्रों के उदाहरणों के संदर्भ में इस कथन पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के इतिहास के संदर्भ में 'उलगुलान' या 'महा उथल-पुथल' का नेतृत्व किसके द्वारा किया गया था? (2020) (a) बक्शी जगबंधु उत्तर: (d) प्रश्न 2. संथाल विद्रोह के शांत हो जाने के बाद, औपनिवेशिक शासन द्वारा कौन-सा/से उपाय किया/किये गए? (2018)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. निम्नलिखित में से किसने 19वीं शताब्दी में भारत में जनजातीय विद्रोह के लिये एक सामान्य कारक प्रदान किया? (2011) (a) भूमि राजस्व और आदिवासी उत्पादों पर कर लगाने की नई प्रणाली की शुरुआत उत्तर: (d) |