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प्रश्न :
सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत, गांधी जी के प्रसिद्ध दांडी मार्च के साथ हुई थी। सविनय अवज्ञा आंदोलन के क्या कारण थे? इसके महत्त्व का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
26 Dec, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
दृष्टिकोण:
- दांडी मार्च के साथ शुरू हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन के बारे में संक्षेप में वर्णन करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारणों की विवेचना कीजिये।
- इसके महत्त्व का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
- सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत दांडी मार्च से हुई थी, जिसे नमक सत्याग्रह के रूप में भी जाना जाता है । दांडी मार्च, मोहनदास करमचंद गांधी के नेतृत्व में शुरु हुआ अहिंसक आंदोलन था।
- यह नमक पर ब्रिटिशो के एकाधिकार के खिलाफ शुरु हुआ,अहिंसक विरोध प्रदर्शन आंदोलन था। इसमें गांधी और उनके समर्थकों ने समुद्री जल से नमक बनाकर ब्रिटिश कानून को तोड़ा था।
- इस दौरान दांडी में हजारों लोगों ने उनका अनुसरण किया और बंबई एवं कराची के तटीय शहरों में, भारतीय राष्ट्रवादियों ने नमक बनाने में नागरिकों का नेतृत्व किया था। नमक कानून तोड़ने के इस कृत्य से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई थी।
मुख्य भाग:
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण:
- सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत दांडी नमक सत्याग्रह के कारण हुई थी, जिसे नमक के उत्पादन और बिक्री पर सरकार के नियंत्रण के कारण शुरू किया गया था।
- इस दौरान कानून इतने सख्त थे कि अगर कोई रेत पर पड़ा एक मुट्ठी समुद्री नमक भी उठा लेता था तो उस पर जुर्माना लगाया जा सकता था।
- इसके अलावा वर्ष 1928 के साइमन कमीशन में किसी भी भारतीय को शामिल न करने और क्रांतिकारियों की गैरकानूनी गिरफ्तारी के कारण भी जनता के बीच राष्ट्रवादी भावना पनपने लगी थी।
- इस तनावपूर्ण स्थिति के आलोक में सविनय अवज्ञा आंदोलन का मार्ग प्रशस्त हुआ था।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्त्व:
- ब्रिटेन से होने वाले आयात में गिरावट आई: उदाहरण के लिये इस दौरान ब्रिटेन से होने वाले वस्त्रों का आयात आधा हो गया था।
- अखिल भारतीय भागीदारी: भारत के पश्चिमी तट से शुरू हुआ यह आंदोलन आगे चलकर लगभग पूरे देश में विस्तारित हुआ था। अप्रैल और मई में क्रमशः नेहरू और गांधी की गिरफ्तारी के विरोध में मद्रास, कलकत्ता, कराची, बॉम्बे, दिल्ली और शोलापुर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे।
- समाज के विभिन्न वर्गों की भागीदारी: यह आंदोलन पूर्व में हुए आंदोलनों की तुलना में अधिक व्यापक था। इसमें महिलाओं, किसानों, श्रमिकों, छात्रों और व्यापारियों ने भाग लिया था जिससे कांग्रेस को अखिल भारतीय पहचान प्राप्त हुई थी।
- शहरी और ग्रामीण इलाकों में गरीबों और निरक्षरों द्वारा इस आंदोलन को जो समर्थन दिया गया था वह उल्लेखनीय था।
- वैश्विक मान्यता: इस आंदोलन की शुरुआत में किसी को भी नमक कानून तोड़ने के महत्त्व का एहसास नहीं हुआ था। यहाँ तक कि वायसराय लॉर्ड इरविन का भी यह मानना था कि आम जनता पर इसका बहुत कम प्रभाव पड़ेगा। दांडी यात्रा के दौरान गांधी ने हजारों लोगों से बात की और लोगों को इसमें शामिल होने के लिये प्रेरित किया था।
- इस प्रतिष्ठित मार्च से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। यहाँ तक कि अमेरिकी साप्ताहिक पत्रिका ‘टाइम’ के पहले पृष्ठ पर गांधी की तस्वीर के साथ ब्रिटिश सरकार की क्रूरता और अहिंसा को प्रदर्शित किया गया था।
- महिलाओं की भागीदारी: इस आंदोलन का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू महिलाओं की भागीदारी थी। अफीम, शराब और विदेशी कपड़ों की दुकानों पर महिलाओं के विरोध का पर्याप्त प्रभाव पड़ा था। इस दौरान नागा नेतृत्वकर्ता रानी गाइदिन्ल्यू ने ब्रिटिशों के खिलाफ विद्रोह किया था।
- मूल्यांकन:
- इससे कपड़ों और सिगरेट के आयात में गिरावट आने के साथ सरकारी राजस्व में कमी तो आई थी लेकिन फिर भी भारतीय घरेलू उद्योग में बहुत कम वृद्धि हुई और आगे चलकर भारतीय निर्यात में भी पर्याप्त वृद्धि नहीं हुई थी।
- अंत में इस आंदोलन के विराम की घोषणा की गई, जिसे गांधी-इरविन समझौते में औपचारिक रूप दिया गया था। इससे लंदन में दूसरे गोलमेज सम्मेलन (सितंबर-दिसंबर 1931) में भाग लेने के लिये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि के रुप में गांधी का मार्ग प्रशस्त हुआ।
निष्कर्ष:
जहाँ एक ओर पूर्व के आंदोलन शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित थे वहीं सविनय अवज्ञा आंदोलन राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित होने वाला पहला आंदोलन था। ग्रामीण लोग भी इस आंदोलन में शामिल हुए थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को पूर्ण स्वतंत्रता की ओर अग्रसर करने के क्रम में यह आंदोलन निर्णायक था।
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