बिहार Switch to English
बिहार के पहले ट्रांसजेंडर सब-इंस्पेक्टर
चर्चा में क्यों?
हाल ही में तीन ट्रांसजेंडरों ने पुलिस सब-इंस्पेक्टर बनने के लिये बिहार पुलिस अधीनस्थ सेवा आयोग (BPSSC) की परीक्षा उत्तीर्ण की।
मुख्य बिंदु:
- वर्ष 2021 में पटना उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद, राज्य सरकार ने BPSSC को पुलिस सेवाओं में थर्ड जेंडर (Third Gender) की नियुक्ति करने को कहा था।
- बिहार में किये गए वर्ष 2022 जाति सर्वेक्षण के अनुसार, ट्रांसजेंडर जनसंख्या 825 (0.0006%) बताई गई है।
- यह आँकड़ा वर्ष 2011 की जनगणना से बिल्कुल विपरीत है, जिसमें राज्य में 40,827 ट्रांसजेंडर दर्ज किये गए थे।
ट्रांसजेंडर
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2019 के अनुसार, ट्रांसजेंडर का अर्थ है वह व्यक्ति जिसकी पहचान जन्मजात लिंग से न होकर दूसरे लिंग के रूप में हो या जिसने लिंग-परिवर्तन किया हो ।
- इसमें अंतर-लिंगीय भिन्नता वाले ट्रांस-व्यक्ति, लिंग-विषमलैंगिक और किन्नर, हिजड़ा, अरावनी तथा जोगता जैसी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले लोग शामिल हैं।
- भारत की वर्ष 2011 की जनगणना देश की ‘ट्रांस’ जनसंख्या की संख्या को शामिल करने वाली पहली जनगणना थी। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 4.8 मिलियन भारतीय ट्रांसजेंडर के रूप में पहचाने जाते हैं।
जनगणना
- जनगणना की शुरुआत:
- भारत में जनगणना की शुरुआत वर्ष 1881 की औपनिवेशिक प्रक्रिया से हुई।
- जनगणना की शुरुआत हुई और इसका उपयोग सरकार, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों तथा अन्य लोगों द्वारा भारतीय जनसंख्या का पता लगाने, संसाधनों तक पहुँचने, सामाजिक परिवर्तन का मानचित्रण करने, परिसीमन कार्य आदि के लिये किया जाता है।
- SECC (सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना) के रूप में पहली जाति जनगणना:
- SECC पहली बार वर्ष 1931 में आयोजित किया गया था।
- SECC का उद्देश्य ग्रामीण और शहरी भारत के प्रत्येक परिवार से संपर्क करना तथा उनसे निम्नलिखित के बारे में पूछना है:
- आर्थिक स्थिति, ताकि केंद्रीय और राज्य प्राधिकारियों को वंचना के विभिन्न संकेतकों, क्रमपरिवर्तनों तथा संयोजनों के साथ आने की अनुमति मिल सके, जिनका उपयोग प्रत्येक प्राधिकारी द्वारा गरीब या वंचित व्यक्ति को परिभाषित करने के लिये किया जा सके।
- इसका उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति से उसकी विशिष्ट जाति का नाम पूछना भी है, ताकि सरकार यह पुनर्मूल्यांकन कर सके कि कौन-से जाति समूह आर्थिक रूप से बदतर स्थिति में हैं और कौन-से बेहतर स्थिति में हैं।
उत्तर प्रदेश Switch to English
आम की प्रूनिंग का परमिट रद्द
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के किसानों को आम के वृक्षों की छँटाई/प्रूनिंग के लिये किसी भी सरकारी विभाग से अनुमति लेने की आवश्यकता से छूट देने का निर्णय लिया।
- आम उत्पादक अपनी उत्पादकता बढ़ाने के लिये पेड़ों की छँटाई कर सकते हैं और उनकी ऊँचाई कम कर सकते हैं।
मुख्य बिंदु:
- इस निर्णय से पुराने आम के बागों के लिये कैनोपी प्रबंधन आसान हो गया है। इससे पुराने आम के बागों का कायाकल्प हो जाएगा और वे नए बागों की तरह उत्पादक बन जाएंगे।
- पुराने बागों में नई पत्तियों और शाखाओं की वृद्धि में कमी आ गई है, जो फूल तथा फल के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- इसके बजाय, मोटी और उलझी हुई शाखाएँ अधिक हैं, जो पर्याप्त प्रकाश को अंदर तक पहुँचने से रोकती हैं।
- इन परिस्थितियों के परिणामस्वरूप कीटों और बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है तथा कीटनाशकों का प्रभावी प्रयोग जटिल हो जाता है।
- परिणामस्वरूप, छिड़काव किये गए कीटनाशक अक्सर पेड़ों के अंदरूनी हिस्सों तक पहुँचने में विफल हो जाते हैं, जिससे कीटनाशकों का उपयोग बढ़ जाता है और पर्यावरण प्रदूषण बढ़ जाता है।
- इन समस्याओं से निपटने के लिये केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (Central Institute of Subtropical Horticulture- CISH) ने आम के वृक्षों को पुनर्जीवित करने हेतु एक प्रभावी छँटाई तकनीक विकसित की है।
- इस विधि को तृतीयक शाखाओं की छँटाई या टेबल-टॉप प्रूनिंग कहा जाता है, जिससे वृक्ष की कैनोपी खुल जाती है, उसकी ऊँचाई कम हो जाती है तथा स्वस्थ वातावरण को बढ़ावा मिलता है।
- इस छँटाई तकनीक (Pruning Technique) से वृक्षों से 2-3 वर्षों में ही 100 किलोग्राम तक उपज प्राप्त की जा सकती है, साथ ही अत्यधिक कीटनाशकों के उपयोग की आवश्यकता भी कम हो जाती है।
केंद्रीय उपोष्णकटिबंधीय बागवानी संस्थान (CISH)
- इसे 4 सितंबर, 1972 को भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलूरु के तत्त्वावधान में केंद्रीय आम अनुसंधान केंद्र के रूप में शुरू किया गया था।
- संस्थान, जिसका नाम बाद में 14 जून, 1995 को केंद्रीय उपोष्णकटिबंधीय बागवानी संस्थान (Central Institute for Subtropical Horticulture- CISH) रखा गया, उपोष्णकटिबंधीय फलों पर अनुसंधान के सभी पहलुओं पर राष्ट्र की सेवा कर रहा है।
- CISH का मुख्यालय लखनऊ, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
उत्तर प्रदेश Switch to English
सारस क्रेन की संख्या में वृद्धि
चर्चा में क्यों?
राज्य वन विभाग द्वारा की गई गणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सारस क्रेन की संख्या बढ़ रही है।
मुख्य बिंदु:
- सर्वेक्षण से पता चला कि इटावा वन प्रभाग में सारस क्रेन की संख्या सबसे अधिक 3,289 दर्ज की गई, जो कि 500 अधिक है।
- जबकि मऊ वन प्रभाग ने एक दशक में पहली बार छह सारस क्रेन देखे।
- उत्तर प्रदेश में सारस क्रेन की संख्या पिछले कुछ वर्षों में निरंतर बढ़ी है और वर्ष 2021 में 17,329 से बढ़कर वर्ष 2022 में 19,188, वर्ष 2023 में 19,522 तथा वर्ष 2024 में 19,918 हो गई है।
सारस क्रेन
- सारस क्रेन का वैज्ञानिक नाम ग्रस एंटीगोन (Grus Antigone) है।
- यह विश्व का सबसे बड़ा उड़ने वाला पक्षी है, जिसकी लंबाई 152-156 सेंटीमीटर और पंखों का फैलाव 240 सेंटीमीटर है।
- सारस क्रेन मुख्य रूप से लाल सिर और इसकी ऊपरी गर्दन भूरे रंग की होती है, साथ ही हल्के लाल पैर होते हैं।
- यह आजीवन जोड़े में रहते हैं और इसना प्रजनन काल मानसून में भारी बारिश के दौरान होता है।
- ये मनुष्यों के साथ और अच्छी तरह से जल वाले मैदानों, दलदली भूमि, तालाबों तथा आर्द्रभूमि (जैसे उत्तर प्रदेश में धनौरी आर्द्रभूमि) में रहने के लिये जाने जाते हैं जो उनके निर्वहन तथा घोंसले के लिये उपयुक्त हैं।
- संरक्षण की स्थिति:
- IUCN रेड लिस्ट: सुभेद्य
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची IV
हरियाणा Switch to English
शंभू बॉर्डर पर बैरिकेड्स हटाने की प्रक्रिया
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार को अंबाला के पास शंभू बॉर्डर पर लगाए गए बैरिकेड्स हटाने का निर्देश दिया, जहाँ किसान अपनी मांगों के समर्थन में 13 फरवरी, 2024 से डेरा डाले हुए हैं।
मुख्य बिंदु:
- हरियाणा सरकार ने फरवरी में अंबाला-नई दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर बैरिकेड्स लगा दिये थे।
- यह संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मज़दूर मोर्चा द्वारा फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी सहित विभिन्न मांगों का समर्थन करते हुए दिल्ली तक मार्च करने की योजना की घोषणा के बाद हुआ।
- सुरक्षा बलों द्वारा उनके मार्च को रोक दिये जाने के बाद फरवरी से ही किसान पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू तथा खनौरी सीमा पर डटे हुए हैं।
- हालाँकि समय के साथ इस स्थल पर किसानों की संख्या में लगातार कमी आई है।
मध्य प्रदेश Switch to English
नेशनल ई-विधान एप्लीकेशन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल ने राज्य विधानसभा में केंद्र प्रायोजित योजना 'राष्ट्रीय ई-विधान एप्लीकेशन' (NEVA) के क्रियान्वयन की स्वीकृति दी।
मुख्य बिंदु:
- डिजिटल इंडिया पहल के तहत, भारत सरकार ने देश की सभी विधानसभाओं को कागज़ रहित प्रारूप में परिवर्तित करने और उन्हें एक मंच पर एकीकृत करने के लिये केंद्र प्रायोजित 'नेशनल ई-विधान एप्लीकेशन' योजना शुरू की है।
- योजना कार्यान्वयन लागत का 60% हिस्सा भारत सरकार और 40% हिस्सा राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
- विमुक्त, घुमक्कड़ एवं अर्द्धघुमक्कड़ जनजाति कल्याण विभाग के अंतर्गत संचालित छात्रावासों, आश्रमों एवं सामुदायिक कल्याण केंद्रों में निवासरत विद्यार्थियों को अनुसूचित जाति कल्याण/जनजातीय कार्य विभाग द्वारा निर्धारित छात्रवृत्ति दरों के अनुसार युक्तिकरण।
- लड़कों के लिये वर्तमान मासिक छात्रवृत्ति 1230 रुपए से बढ़ाकर 1550 रुपए तथा लड़कियों के लिये 1270 रुपए से बढ़ाकर 1590 रुपए प्रति माह की जाएगी।
- मंत्रिपरिषद ने नर्मदा घाटी विकास विभाग की 9,271.96 करोड़ रुपए की लागत की सात परियोजनाओं के लिये निविदाएँ आमंत्रित करने की स्वीकृति दी।
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम
- भारत सरकार ने वर्ष 2015 में भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज व ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तित करने के उद्देश्य से डिजिटल इंडिया कार्यक्रम शुरू किया था।
- इसके प्रमुख उद्देश्यों में डिजिटल बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना, डिजिटल सेवाएँ प्रदान करना और डिजिटल वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना शामिल है।
विमुक्त, घुमक्कड़ एवं अर्द्धघुमक्कड़ जनजाति (De-Notified, Nomadic And Semi-Nomadic Tribes)
- ये वे समुदाय हैं जो सबसे ज़्यादा कमज़ोर और वंचित हैं।
- DNT वे समुदाय हैं जिन्हें ब्रिटिश शासन के दौरान आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 से शुरू होने वाले कई कानूनों के तहत 'जन्मजात अपराधी' के रूप में 'अधिसूचित' किया गया था।
- इन अधिनियमों को स्वतंत्र भारतीय सरकार ने वर्ष 1952 में निरस्त कर दिया था और इन समुदायों को "विमुक्त" कर दिया गया था।
- इनमें से कुछ समुदाय जिन्हें विमुक्त के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, वे घुमक्कड़ भी थे।
- घुमक्कड़ एवं अर्द्धघुमक्कड़ समुदायों को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो हर समय एक ही स्थान पर रहने के बजाय एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं।
- ऐतिहासिक रूप से घुमक्कड़ जनजातियों और विमुक्त जनजातियों के पास कभी भी निजी भूमि या घर के स्वामित्व तक पहुँच नहीं थी।
- जबकि अधिकांश DNT अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों में फैले हुए हैं, कुछ DNT किसी भी SC, ST या OBC श्रेणी में शामिल नहीं हैं।
छत्तीसगढ़ Switch to English
छत्तीसगढ़ विकास योजनाओं की समीक्षा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय विद्युत तथा आवासन और शहरी कार्य मंत्री श्री मनोहर लाल ने रायपुर में छत्तीसगढ़ के लिये विद्युत तथा शहरी विकास क्षेत्र में चल रही वर्तमान योजनाओं एवं प्रस्तावों की समीक्षा की।
मुख्य बिंदु:
- बैठक में केंद्रीय मंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि राज्य और केंद्र सरकार के बीच बेहतर समन्वय से छत्तीसगढ़ के विकास में तेज़ी आएगी।
- बैठक में जिन योजनाओं की समीक्षा की गई उनमें प्रधानमंत्री आवास योजना, पीएम स्वनिधि, अमृत मिशन, स्वच्छ भारत मिशन, पीएम ई-बस सेवा, स्मार्ट सिटी मिशन और आवासन एवं शहरी मामलों के अंतर्गत राष्ट्रीय शहरी विकास मिशन शामिल हैं।
पीएम स्वनिधि (PM-SVANidhi)
- इसे 1 जून, 2020 को लॉन्च किया गया था।
- यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है अर्थात् यह आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा पूरी तरह से वित्तपोषित योजना है, इसके निम्नलिखित उद्देश्य हैं:
- कार्यशील पूंजी ऋण की सुविधा उपलब्ध कराना
- नियमित पुनर्भुगतान को प्रोत्साहित करना
- डिजिटल लेन-देन हेतु पुरस्कृत करना
- क्रमशः 10,000 रुपए और 20,000 रुपए के पहले एवं दूसरे ऋण के अलावा 50,000 रुपए तक के तीसरे सावधि ऋण की शुरुआत की गई है।
- यह ऋण संपार्श्विक या कोलेट्रल के बिना प्रदान किया जाएगा।
अमृत योजना (AMRUT Scheme)
- कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation- AMRUT) 25 जून, 2015 को देश भर के 500 चयनित शहरों में शुरू किया गया था, जिसमें लगभग 60% शहरी आबादी को कवर किया गया।
- मिशन का लक्ष्य बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना और चयनित शहरों क्षेत्र में सुधारों को लागू करना है, जिसमें जलापूर्ति, सीवरेज, जल निकासी, हरित स्थान, गैर-मोटर चालित परिवहन तथा क्षमता निर्माण शामिल हैं।
स्मार्ट सिटीज़ मिशन (SCM)
- यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसे जून 2015 में "स्मार्ट सॉल्यूशंस" के अनुप्रयोग के माध्यम से नागरिकों को जीवन की गुणवत्ता और स्वच्छ तथा संवहनीय वातावरण प्रदान करने के लिये, 100 शहरों के आवश्यक बुनियादी ढाँचे को बदलने के लिये प्रारंभ किया गया था।
- इसका उद्देश्य सतत् और समावेशी विकास के माध्यम से नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
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