प्रारंभिक परीक्षा
प्रिलिम्स फैक्ट्स: 08 अक्तूबर, 2020
- 08 Oct 2020
- 21 min read
रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार
Nobel Prize in Chemistry
7 अक्तूबर, 2020 को फ्राँस की इमैनुएल चार्पेंटियर (Emmanuelle Charpentier) और अमेरिका की जेनिफर ए डौडना (Jennifer A Doudna) को रसायन विज्ञान में वर्ष 2020 का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- इमैनुएल चार्पेंटियर एवं जेनिफर ए डौडना द्वारा विकसित ‘क्रिस्पर-कैस9 जेनेटिक सीज़र्स’ (CRISPR-Cas9 Genetic Scissors) का उपयोग जानवरों, पौधों एवं सूक्ष्मजीवों के डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (Deoxyribonucleic Acid- DNA) को अत्यधिक उच्च सटीकता के साथ बदलने के लिये किया जा सकता है।
- चार्पेंटियर ने ‘स्ट्रेप्टोकाॅकस प्योजेन्स’ (Streptococcus Pyogenes) नामक एक जीवाणु जो कि मनुष्य को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाता है, का अध्ययन करते समय पहले से अज्ञात एक अणु ट्रांस-एक्टिवेटिंग क्रिस्पर आरएनए (TracrRNA) की खोज की।
स्ट्रेप्टोकाॅकस प्योजेन्स (Streptococcus Pyogenes):
- स्ट्रेप्टोकाॅकस प्योजेन्स या ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकस (Group A streptococcus- GAS), एक आकस्मिक ग्राम पॉज़िटिव काॅकस (Gram-positive Coccus) है जो जंजीर के रूप में बढ़ता है और मनुष्यों में कई संक्रमणों का कारण बनता है जिसमें ग्रसनीशोथ (Pharyngitis), टॉन्सिलिटिस (Tonsillitis), स्कार्लेट फीवर (Scarlet Fever), सेल्युलाइटिस (Cellulitis), एरिसिपेलास (Erysipelas), पोस्ट-स्ट्रेप्टोकाॅकल ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस (Post-streptococcal Glomerulonephritis), नेक्रोटाइज़िंग फाससाइटिस (Necrotizing Fasciitis), म्योनेक्रोसिस (Myonecrosis) और लिम्फैंगाइटिस (Lymphangitis) आदि शामिल हैं।
ट्रांस-एक्टिवेटिंग क्रिस्पर आरएनए (TracrRNA):
- आणविक जीव विज्ञान में ट्रांस-एक्टिवेटिंग क्रिस्पर आरएनए (Trans-activating crispr RNA- TracrRNA) एक छोटा ट्रांस-इनकोडेड आरएनए (Trans-encoded RNA) है।
- इसे पहली बार मानव रोगजनक स्ट्रेप्टोकाॅकस प्योजेन्स में खोजा गया था।
- उनके कार्य से पता चला है कि ‘TracrRNA’ बैक्टीरिया की प्राचीन प्रतिरक्षा प्रणाली क्रिस्पर-कैस9 (CRISPR-Cas9) का हिस्सा थी जो अपने डीएनए को विघटित करके वायरस को निष्क्रिय कर देता था।
- चार्पेंटियर ने वर्ष 2011 में अपनी इस खोज को प्रकाशित किया था।
- वर्ष 2011 से ही उन्होंने जेनिफर ए डौडना के साथ संयुक्त रूप से इस तकनीक पर कार्य किया जो एक अनुभवी जैव रसायन विशेषज्ञ हैं।
- वर्ष 2012 के बाद से क्रिस्पर-कैस-9 जेनेटिक सीज़र्स (CRISPR-Cas9 Genetic Scissors) का उपयोग तेज़ी से बढ़ा। इसने बुनियादी अनुसंधान में कई महत्त्वपूर्ण खोजों में योगदान दिया है।
- पौधों के शोधकर्त्ता ऐसी फसलें विकसित करने में सक्षम हुए हैं जो फफूंदी, कीट एवं सूखे का सामना कर सकें।
- इस तकनीक का जैविक विज्ञान पर क्रांतिकारी प्रभाव पड़ा है। चिकित्सा क्षेत्र में इस खोज पर आधारित नए कैंसर उपचारों के नैदानिक परीक्षण चल रहे हैं और इससे आनुवंशिक रोगों को भी ठीक किया जा सकेगा।
विश्व कपास दिवस-2020
World Cotton Day-2020
7 अक्तूबर, 2020 को केंद्रीय कपड़ा मंत्री ने द्वितीय विश्व कपास दिवस (World Cotton Day) के अवसर पर पहली बार भारतीय कपास के लिये ब्रांड एवं लोगो लॉन्च किया।
प्रमुख बिंदु:
- अब भारत के प्रीमियम कपास को विश्व कपास व्यापार में 'कस्तूरी कपास' (Kasturi Cotton) के रूप में जाना जाएगा।
- कस्तूरी कपास ब्रांड सफेदी, चमकीलेपन, कोमलता, शुद्धता, विशिष्टता एवं भारतीयता का प्रतिनिधित्व करेगा।
भारत में कपास से संबंधित कुछ आँकड़े:
- कपास भारत की प्रमुख व्यावसायिक फसलों में से एक है और लगभग 6 मिलियन कपास किसानों को आजीविका प्रदान करता है।
- भारत विश्व में कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है।
- भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 6 मिलियन टन कपास का उत्पादन होता है जो विश्व कपास का लगभग 23% है।
- भारत दुनिया के कुल जैविक कपास उत्पादन का लगभग 51% उत्पादित करता है जो संधारणीयता के प्रति भारत के प्रयास को प्रदर्शित करता है।
जैविक उत्पादों हेतु अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर एक प्रमाणन प्रणाली:
- जैविक उत्पादों की स्थिरता, अखंडता और एंड-टू-एंड ट्रैसेबिलिटी को सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य संस्थागत प्रणाली के माध्यम से सत्यापित तुलनीय अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर एक प्रमाणन प्रणाली की आवश्यकता होती है।
- तद्नुसार, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural & Processed Food Products Export Development Authority-APEDA) के माध्यम से कपड़ा मंत्रालय ने जैविक कपास के लिये एक प्रमाणन प्रणाली निर्धारित की है जिसे संपूर्ण कपड़ा मूल्य शृंखला में विभिन्न चरणों में पेश किया जाएगा।
- इसी तरह अजैविक कपास के लिये एपीडा (APEDA) के साथ एक प्रमाणन प्रणाली को सुनिश्चित किया गया है ताकि कपास उपयोग उपयुक्त रूप से बढ़ाया जा सके।
भारत में कपास की प्रमुख किस्में:
- सुविन (SUVIN): यह भारत में उत्पादित दुनिया का सबसे लंबा और बेहतरीन कपास फाइबर है और विशेष रूप से तमिलनाडु में उगाया जाता है।
- प्राकृतिक रंगीन कपास: गहरे भूरे, मध्यम भूरे, हरे आदि रंगों वाला प्राकृतिक रंगीन कपास कर्नाटक राज्य के धारवाड़ क्षेत्र में उगाया जाता है।
- प्राकृतिक रूप से रंगीन होने के कारण इसमें सिंथेटिक रंजक का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होती, फलतः इससे बने कपड़ों की विषाक्तता कम हो जाती है।
भारतीय कपास निगम
(Cotton Corporation of India- CCI):
- CCI ने सभी कपास उत्पादक राज्यों में 430 कपास खरीद केंद्र खोले हैं जो 72 घंटों के भीतर किसानों के खाते में डिजिटल रूप से भुगतान करके कपास की खरीद करते हैं।
- CCI की स्थापना 31 जुलाई, 1970 को केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत कंपनी अधिनियम-1956 (Companies Act-1956) के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के रूप में की गई थी।
विश्व कपास दिवस (World Cotton Day):
- 7 अक्तूबर, 2020 को विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने विश्व कपास दिवस (World Cotton Day) की पहली वर्षगाँठ मनाई।
- गौरतलब है कि विश्व कपास दिवस की शुरुआत 7 अक्तूबर, 2019 को जिनेवा में विश्व व्यापार संगठन (WTO) द्वारा की गई थी।
- इस कार्यक्रम की मेज़बानी चार प्रमुख कपास उत्पादक देशों बेनिन, बुर्किना फासो, चाड एवं माली के अनुरोध पर WTO द्वारा की गई थी। इन देशों को कॉटन-4 देशों का समूह (Group of Cotton-4) के नाम से भी जाना जाता है।
- गौरतलब है कि विश्व कपास दिवस की शुरुआत 7 अक्तूबर, 2019 को जिनेवा में विश्व व्यापार संगठन (WTO) द्वारा की गई थी।
- विश्व कपास दिवस का वार्षिक उत्सव 75 से अधिक देशों में उगाए जाने वाले कपास के महत्त्व को पहचानने और कई अल्प विकसित देशों में रोज़गार सृजन में अपनी केंद्रीय भूमिका निभाने एवं आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के कारण मनाया जाता है।
‘पगड़ी संभाल जट्टा’ आंदोलन
‘Pagri Sambhal Jatta’ Movement
हालिया कृषि कानूनों को लेकर पंजाब में हो रहे विरोध प्रदर्शनों में ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ आंदोलन (‘Pagri Sambhal Jatta’ Movement) में प्रमुख रहे सरदार अजीत सिंह संधू (Sardar Ajit Singh Sandhu) को याद किया गया।
प्रमुख बिंदु:
- पंजाब में एक सदी पहले शुरू हुए 'पगड़ी संभाल जट्टा' आंदोलन के मुख्य नेतृत्त्वकर्त्ता भगत सिंह के चाचा ‘सरदार अजीत सिंह संधू’ थे।
- वर्ष 1879 में अंग्रेज़ों ने लायलपुर (अब पाकिस्तान में फैसलाबाद) के निर्जन क्षेत्रों में बस्तियाँ बसाने हेतु चिनाब नदी से पानी खींच कर लायलपुर तक ले जाने के लिये अपर बारी दोआब नहर (Upper Bari Doab Canal) का निर्माण किया।
- कई सुविधाओं के साथ मुफ्त भूमि आवंटित करने का वादा करते हुए ब्रिटिश सरकार ने जालंधर, अमृतसर और होशियारपुर के किसानों एवं पूर्व सैनिकों को वहाँ बसने के लिये राजी किया।
- इन ज़िलों के किसान भूमि और संपत्ति को छोड़कर नए क्षेत्रों में बस गए और उन्होंने इस बंजर भूमि को खेती के लायक बना दिया।
- 1,03,000 एकड़ के आवंटित क्षेत्र के साथ लाहौर ज़िले के दक्षिणी भाग में चुनियन कॉलोनी (Chunian Colony) ब्रिटिश सरकार की अगली परियोजना थी।
- 50 एकड़ तक की छोटी जोत के रूप में 80% ज़मीन आवंटित की गई, जिसे कृषक अनुदान (Peasant Grants) के रूप में जाना जाता है।
- इसी के साथ चेनाब कॉलोनी (अब पाकिस्तान में) की शुरुआत हुई जिसे कृषि उपनिवेशवाद का महत्त्वपूर्ण उदाहरण माना जाता है।
- यह नहर कॉलोनियों में सबसे बड़ी थी जिसमें दो मिलियन एकड़ से अधिक का आवंटित क्षेत्र था।
- किंतु जैसे ही कड़ी मेहनत करने वाले किसानों ने भूमि को उपजाऊ बनाया ब्रिटिश सरकार ने खुद को इस भूमि का मालिक घोषित करने के लिये नए कानून बनाए और किसानों को स्वामित्व के अधिकार से वंचित कर दिया।
- इन कानूनों ने किसानों के लाभांश में कमी कर दी, वे न तो इन ज़मीनों पर लगे पेड़ काट सकते थे, न ही मकान बना सकते थे, न ही झोपड़ियाँ बना सकते थे और न ही ऐसी ज़मीन बेच सकते थे या खरीद सकते थे।
- अगर कोई भी किसान सरकारी नियम का उल्लंघन करता तो उसे ज़मीन से बेदखल करने की सजा का प्रावधान किया गया था।
- नए कानूनों के अनुसार केवल एक बटाईदार के बड़े बेटे को अपने पिता द्वारा दी गई भूमि तक पहुँच की अनुमति थी।
- यदि वयस्क होने से पहले सबसे बड़े बेटे की मृत्यु हो जाती है तो भूमि छोटे बेटे के अधिकार में नहीं रहेगी, बल्कि यह सरकार की संपत्ति बन जाएगी।
- इन कानूनों को लेकर किसानों के बीच असंतोष पैदा हुआ। वर्ष 1907 में लायलपुर में अजीत सिंह संधू ने इस असंतोष को व्यक्त करने वाले आंदोलन का नेतृत्त्व किया।
आंदोलन का नाम:
- एक आकर्षक नारा ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ जो इस आंदोलन का नाम था।
- यह नाम जंग स्याल (Jang Sayal) अखबार के संपादक बांके लाल (Banke Lal) के गीत से प्रेरित था।
- उत्तेजित प्रदर्शनकारियों ने सरकारी इमारतों, डाकघरों, बैंकों, टेलीफोन के खंभों को पलट दिया और टेलीफोन के तारों को तोड़ दिया।
अजीत सिंह संधू:
- वह भारत में ब्रिटिश शासन के समय एक क्रांतिकारी और राष्ट्रवादी थे।
- ब्रिटिश सरकार के दिशा-निर्देश पर प्रशासनिक आदेशों से पानी की दर में वृद्धि तथा किसान विरोधी कानून जिसे पंजाब उपनिवेश अधिनियम (संशोधन) 1906 [Punjab Colonization Act (Amendment) 1906] के रूप में जाना जाता है, के खिलाफ स्थानीय राष्ट्रवादियों एवं पंजाबी किसानों के साथ मिलकर उन्होंने आंदोलन का नेतृत्त्व किया।
- वह भारत के पंजाब क्षेत्र में एक शुरुआती संरक्षक थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी और औपनिवेशिक सरकार की खुले तौर पर आलोचना की।
भारत माता सोसाइटी (Bharat Mata Society):
- 1906 में अजीत सिंह ने काॅन्ग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भाग लिया जिसका उद्देश्य काॅन्ग्रेस के तरीकों से परे जाने की इच्छा रखने वाले देशभक्तों से संपर्क स्थापित करना था।
- पंजाब लौटने पर इन देशभक्तों ने ‘भारत माता सोसाइटी’ (Bharat Mata Society) की स्थापना की जिसे उर्दू भाषा में 'महबूबने वतन' (Mahboobane Watan) कहा गया।
- यह एक भूमिगत संगठन था। किशन सिंह, महाशय घसीटा राम, स्वर्ण सिंह और सूफी अम्बा प्रसाद इसके कुछ भरोसेमंद लेफ्टिनेंट एवं सक्रिय सदस्य थे।
- उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य वर्ष 1907 में वर्ष 1857 की क्रांति की 50वीं वर्षगाँठ पर इस क्रांति को फिर से शुरू करने की तैयारी करना था।
- मई 1907 में लाला लाजपत राय के साथ उन्हें बर्मा के मांडले (Mandalay) में निर्वासित कर दिया गया।
- किंतु पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन किसानों के साथ-साथ सेना में भी फैल गया था।
- जिसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना में सार्वजनिक दबाव एवं अशांति के कारण ब्रिटिश सरकार ने कानूनों को वापस ले लिया और बाद में किसानों को स्वामित्व वापस कर दिया और अजीत सिंह को रिहा कर दिया गया।
कोझीकोड-वायनाड सुरंग परियोजना
Kozhikode-Wayanad Tunnel Project
5 अक्तूबर, 2020 को केरल के मुख्यमंत्री ने एक सुरंग परियोजना की शुरुआत की जो कोझीकोड को वायनाड से जोड़ेगी।
प्रमुख बिंदु:
- 7 किलोमीटर लंबी यह सुरंग जिसे देश की तीसरी सबसे लंबी सुरंग बताया जा रहा है, पश्चिमी घाट के संवेदनशील वनों एवं पहाड़ियों को काटकर बनाई जाने वाली 8 किलोमीटर लंबी सड़क का भाग है।
- इस सुरंग के समापन बिंदु मारिपुझा, थिरुवमबदी (Thiruvambady) ग्राम पंचायत (कोझिकोड) और कल्लडी (Kalladi), मेपाडी पंचायत (वायनाड) में हैं।
- वर्तमान में वायनाड पठार चार सड़कों के माध्यम से केरल के बाकी हिस्सों से जुड़ा हुआ है, इनमें से एक कोझीकोड-मैसूर (NH 766) के साथ 13 किमी. लंबी थमारास्सेरी घाट रोड (Thamarassery Ghat Road) है।
- यह सुरंग एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करेगी क्योंकि थामरस्सेरी घाट सड़क अत्यधिक भीड़भाड़ वाली है और भारी मानसून के दौरान भूस्खलन से अवरुद्ध हो जाती है।
- केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के पास इस सड़क को चौड़ा करने का एक प्रस्ताव लंबित है।
पारिस्थितिकी पर प्रभाव:
- वन विभाग ने प्रस्तावित मार्ग की पहचान सदाबहार एवं अर्द्ध-सदाबहार वन, दलदली भूमि एवं शोला वनों से युक्त अति संवेदनशील क्षेत्र के रूप में की है।
- यह क्षेत्र वायनाड और तमिलनाडु में नीलगिरि पहाड़ियों के बीच फैले एक हाथी कॉरीडोर का हिस्सा है।
- दो प्रमुख नदियाँ चालियार (Chaliyar) एवं काबिनी (Kabini) जो कर्नाटक में बहती है, वायनाड की इन पहाड़ियों से निकलती हैं।
- एरुवाझांजीपुझा (Eruvazhanjipuzha), जो चालियार की एक सहायक नदी और मलप्पुरम एवं कोझीकोड क्षेत्र की जीवन रेखा है, का उद्गम पहाड़ियों के दूसरी तरफ से होता है।
- यह क्षेत्र मानसून के दौरान मूसलाधार बारिश के लिये जाना जाता है।
पर्यावरणीय मंज़ूरी से संबंधित मुद्दा:
- इस परियोजना के समर्थकों का कहना है कि इस सुरंग के निर्माण से वन नष्ट नहीं होंगे।
- MoEFCC के दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि वन अधिनियम न केवल सतह क्षेत्र बल्कि पेड़ों के नीचे पूरे भूमिगत क्षेत्र पर भी लागू होगा।
- सुरंग परियोजनाओं के लिये भूमिगत खनन से संबंधित शर्तें लागू होंगी।
- जैसा कि प्रस्तावित सुरंग 7 किमी. लंबी है, इसके लिये अन्य उपायों के बीच आपातकालीन निकास बिंदु एवं एयर वेंटिलेशन बिंदुओं की आवश्यकता होगी जो आगे चलकर वनों को प्रभावित करेगा।