झारखंड Switch to English
भारत के पवित्र उपवनों का संरक्षण
चर्चा में क्यों?
पवित्र उपवन सक्रिय रूप से जैवविविधता को बढ़ावा देते हैं तथा कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, लेकिन बढ़ते खतरे उनके अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हैं।
- झारखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़ उन राज्यों में से हैं जो पवित्र उपवनों से समृद्ध हैं।
प्रमुख बिंदु
- पवित्र उपवन के बारे में:
- स्वदेशी समुदायों द्वारा अपने पूर्वजों की आत्माओं या देवताओं को समर्पित पवित्र उपवन प्राकृतिक वनस्पति वाले क्षेत्र होते हैं।
- झारखंड में इन्हें सरना, छत्तीसगढ़ में देवगुड़ी और राजस्थान में ओरण के नाम से जाना जाता है।
- इन उद्यानों का आकार भिन्न-भिन्न है, जो छोटे वृक्ष समूहों से लेकर कई एकड़ तक फैले विशाल क्षेत्र तक विस्तृत हैं। कुछ में एक ही पवित्र वृक्ष होता है, जैसे झारखंड में साल का वृक्ष।
- वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 के तहत पवित्र उपवनों को 'सामुदायिक रिज़र्व' के अंतर्गत कानूनी रूप से संरक्षित किया गया है।
- सामुदायिक रिज़र्व वे क्षेत्र हैं जिन्हें संरक्षण के लिये नामित किया गया है, जिनमें प्राकृतिक संसाधनों और वन्य जीवन के संरक्षण में स्थानीय समुदायों की प्रत्यक्ष भागीदारी होती है।
- विस्तार और वितरण:
- पवित्र उपवन अनुमानतः 33,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हुए हैं, जो भारत के कुल भूमि क्षेत्र का मात्र 0.01% है।
- भारत में 13,000 से ज़्यादा पवित्र उपवन हैं, जिनके बारे में प्रमाणिक तौर पर बताया गया है। उपवनों की प्रचुरता वाले राज्य केरल, पश्चिम बंगाल, झारखंड, महाराष्ट्र, मेघालय, राजस्थान और तमिलनाडु हैं।
- महाराष्ट्र लगभग 3,000 पवित्र उपवनों के साथ अग्रणी है।
- जैवविविधता और सांस्कृतिक महत्त्व:
- पवित्र उपवन जैवविविधता वाले क्षेत्र हैं जो अत्यधिक पारिस्थितिक मूल्य रखते हैं।
- जनजातीय समुदाय इन वृक्षों की पूजा करते रहे हैं तथा इनके साथ गहरा संबंध बनाए रखा है।
- ऐतिहासिक रूप से वे पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक थे, जो प्रथागत नियमों और शासन प्रणालियों में संहिताबद्ध आध्यात्मिक संहिताओं द्वारा निर्देशित थे।
- जलवायु लक्ष्यों में भूमिका:
- पवित्र वन प्राकृतिक कार्बन सिंक के रूप में कार्य करके जलवायु परिवर्तन शमन में योगदान देते हैं।
- भारत के वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सरकारी स्वामित्व वाले वनों के साथ-साथ इनका संरक्षण भी महत्वपूर्ण है।
- उपवनों के प्रभावी प्रबंधन से मानव-प्रकृति के बीच संबंध को बनाए रखा जा सकता है तथा स्थानांतरण के कारण होने वाले सामुदायिक अलगाव को रोका जा सकता है।
- जैवविविधता संरक्षण में पवित्र उपवनों की भूमिका:
- महाराष्ट्र के रायगढ़ ज़िले में वाघोबा हैबिटेट फाउंडेशन द्वारा संरक्षित एक पवित्र उपवन में हाल ही में एक तेंदुए की वापसी देखी गई, जो पारिस्थितिकी सुधार का संकेत है।
- संरक्षण दृष्टिकोण:
- OECM:
- पवित्र उपवन, जैवविविधता अभिसमय के अंतर्गत "अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपायों" (OECM) दृष्टिकोण के अनुरूप हैं।
- उपवनों का प्रबंधन समुदायों द्वारा किया जाता है, तथा सांस्कृतिक मूल्यों को जैवविविधता संरक्षण में एकीकृत किया जाता है।
- OECM दीर्घकालिक संरक्षण परिणाम सुनिश्चित करता है, जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र कार्यों को संरक्षित करता है।
- OECM:
- सरकारी पहल:
- झारखंड में घेराबंदी की शुरुआत वर्ष 2019 में पवित्र उपवनों की रक्षा के लिये चारदीवारी बनाकर की गई थी।
- छत्तीसगढ़ में वृक्षों के जीर्णोद्धार के लिये पुनरोद्धार परियोजनाएँ पिछली सरकार के दौरान शुरू की गई थीं।
- संरक्षण योजनाओं में सामुदायिक भागीदारी की कमी और आरक्षित वनों को प्राथमिकता देने के कारण प्रायः पवित्र वनों की उपेक्षा की जाती है।
कार्बन सिंक
- ये पादपों, मृदाओं, भूगर्भिक संरचनाओं और महासागर में कार्बन का दीर्घकालिक भंडारण हैं।
- यह प्राकृतिक रूप से तथा मानवजनित गतिविधियों के परिणामस्वरूप घटित होता है तथा आमतौर पर कार्बन के भंडारण को संदर्भित करता है।
- प्राकृतिक कार्बन सिंक:
- इसके तहत प्रकृति ने हमारे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन हासिल किया है जो जीवन को बनाए रखने के लिये आवश्यक है। जंतु कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं, जैसे पौधे रात के समय करते हैं।
- इस ग्रह पर सभी जैविक जीवन कार्बन आधारित है और जब पौधों और जंतुओं की मृत्यु हो जाती हैं, तो अधिकांश कार्बन वापस जमीन में चला जाता है, जहाँ ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देने में इसका बहुत कम प्रभाव पड़ता है।
बिहार Switch to English
मखाना महोत्सव
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बिहार सरकार ने कर्नाटक में बिहार की महत्त्वपूर्ण फसल मखाना और अन्य खाद्य उत्पादों के बाज़ार का विस्तार करने के लिये बंगलूरू में दो दिवसीय 'मखाना महोत्सव' का आयोजन किया है।
प्रमुख बिंदु
- महोत्सव के बारे में:
- महोत्सव और इससे संबंधित पहलों का उद्देश्य बिहार को मखाना उत्पादन में अग्रणी बनाना है तथा पूरे भारत में इसके आर्थिक और सांस्कृतिक महत्त्व को बढ़ावा देना है।
- इसका उद्देश्य बिहार की प्रमुख फसल मखाना को दक्षिण भारतीय बाज़ारों में प्रस्तुत करना है, जिससे इसके विकास के लिये नए अवसर उत्पन्न होंगे।
- मखाना उत्पादन और बाज़ार विस्तार:
- देश के मखाना उत्पादन में बिहार का योगदान 50% है और उत्तरी राज्यों में इसकी अत्यधिक मांग है।
- तमिलनाडु और केरल सहित दक्षिण भारतीय राज्यों में बाज़ार का विस्तार करने के लिये बंगलूरू को रणनीतिक रूप से प्रवेश द्वार के रूप में चुना गया है।
- अनुसंधान के माध्यम से उत्पादन बढ़ाना:
- मखाना उत्पादन बढ़ाने और गुणवत्ता में सुधार सुनिश्चित करने के लिये एक समर्पित अनुसंधान केंद्र स्थापित किया गया है।
- मई 2023 में, केंद्र सरकार ने मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा को "राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा" में अपग्रेड किया और अन्य जलीय फसलों को शामिल करने के लिये इसके अधिदेश का विस्तार किया।
- मखाना को GI (भौगोलिक संकेत) टैग मिलने से अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इसकी मान्यता बढ़ गई है।
- केंद्र सरकार की मेक इन इंडिया पहल के तहत मखाना उत्पादों का उत्पादन और विपणन किया जा रहा है।
- मखाना उत्पादन का आर्थिक प्रभाव:
- राज्य के कृषि एवं स्वास्थ्य मंत्री के अनुसार, मखाना उत्पादन से बिहार में रोज़गार और उद्योग को काफी बढ़ावा मिला है।
- मखाना उत्पादों का बाज़ार पिछले वर्ष 150 करोड़ रुपए तक पहुँच गया, जो वर्ष 2022-2023 की तुलना में वर्ष 2023-2024 में 30% की वृद्धि दर्शाता है।
मिथिला मखाना
- मिथिला मखाना या माखन (वानस्पतिक नाम: यूरीले फेरोक्स सालिस्ब) बिहार और नेपाल के मिथिला क्षेत्र में उगाई जाने वाली जलीय मखाना की एक विशेष किस्म है।
- मखाना मिथिला की तीन प्रतिष्ठित सांस्कृतिक पहचानों में से एक है।
- पान, मखाना और मच्छ (मछली) मिथिला की तीन प्रतिष्ठित सांस्कृतिक पहचान हैं।
- यह नवविवाहित जोड़ों के लिये मनाए जाने वाले मैथिल ब्राह्मणों के कोजागरा उत्सव में भी बहुत प्रसिद्ध है।
- मखाने में प्रोटीन और फाइबर के साथ-साथ कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन और फास्फोरस जैसे सूक्ष्म पोषक तत्त्व भी होते हैं।
- इसे वर्ष 2022 में GI (भौगोलिक संकेत) टैग प्राप्त हुआ।
हरियाणा Switch to English
किसानों का 'दिल्ली चलो' मार्च
चर्चा में क्यों?
हाल ही में किसानों ने शंभू बॉर्डर स्थित अपने विरोध स्थल से दिल्ली के लिये पैदल मार्च शुरू किया, लेकिन हरियाणा पुलिस की बहुस्तरीय बैरिकेडिंग ने उन्हें रोक दिया।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 163 के तहत हरियाणा पुलिस ने किसानों को निषेधाज्ञा का हवाला दिया।
प्रमुख बिंदु
- किसानों की मांग:
- किसान केंद्र सरकार से फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी की मांग को लेकर मार्च कर रहे हैं।
- इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मज़दूर मोर्चा के बैनर तले किसान कर रहे हैं।
- विरोध कार्यवाहियाँ:
- पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू और खनौरी सीमा पर 13 फरवरी 2024 से डेरा डाले किसानों को दिल्ली के रास्ते में सुरक्षा बलों ने रोक दिया।
- कुछ प्रदर्शनकारियों ने घग्गर नदी पर बने पुल पर सुरक्षाकर्मियों द्वारा लगाए गए लोहे के जालीदार बैरिकेड को धक्का देकर गिरा दिया।
- हरियाणा में सरकार की प्रतिक्रिया:
- हरियाणा सरकार ने 6 से 9 दिसंबर 2024 तक अंबाला ज़िले के 11 गाँवों में मोबाइल इंटरनेट और बल्क SMS सेवाओं को निलंबित कर दिया है।
- सुरक्षा के कड़े उपाय:
- दिल्ली पुलिस ने चल रहे किसान आंदोलन के मद्देनजर शहर की सीमाओं पर सुरक्षा बढ़ा दी है।
राजस्थान Switch to English
राजस्थान के मुख्यमंत्री ने नौ नई नीतियाँ लॉन्च की
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राजस्थान के मुख्यमंत्री ने निवेश को बढ़ावा देने और राज्य के आर्थिक विकास को गति देने के उद्देश्य से नौ नई नीतियों को लॉन्च किया।
- ये नीतियाँ 9 से 11 दिसंबर 2024 तक जयपुर में आयोजित होने वाले राइजिंग राजस्थान ग्लोबल इन्वेस्टमेंट समिट-2024 से पहले लॉन्च की गईं।
प्रमुख बिंदु
- राज्य विकास पर लक्षित नीतियाँ:
- नव अनुमोदित नीतियों और योजनाओं का उद्देश्य राजस्थान में आर्थिक प्रगति, रोज़गार सृजन और सामाजिक समृद्धि सुनिश्चित करना है।
- राजस्थान के सर्वांगीण विकास को गति देने के लिये हाल ही में राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में इन नीतियों को मंजूरी दी गई।
- नीतियाँ क्षेत्र-विशिष्ट पहलों पर केंद्रित हैं:
- MSME नीति: इसका उद्देश्य स्थानीय उद्योगों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम बनाना है।
- निर्यात प्रोत्साहन नीति: राजस्थान के उत्पादों की वैश्विक पहुँच बढ़ाने पर केंद्रित।
- एक ज़िला-एक उत्पाद नीति: यह स्थानीय उत्पादकों के लिये बुनियादी ढाँचे का निर्माण करके ज़िला-विशिष्ट शिल्प को समर्थन प्रदान करती है।
- पर्यटन नीति: रोज़गार सृजन के लिये पारिस्थितिकी पर्यटन और विरासत पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा।
- स्वच्छ ऊर्जा नीति: सौर, पवन और हरित हाइड्रोजन परियोजनाओं के माध्यम से राजस्थान को नवीकरणीय ऊर्जा में अग्रणी के रूप में स्थापित करना।
- खनिज नीति: वर्ष 2046 तक 1 करोड़ नौकरियों और 1 लाख करोड़ रुपए वार्षिक राजस्व का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- क्लस्टर विकास योजना: कच्चे माल और प्रशिक्षण सुविधाओं तक पहुँच के साथ क्लस्टर आधारित लघु उद्योग विकास को प्रोत्साहित करती है।
उत्तर प्रदेश Switch to English
डॉ. अंबेडकर की पुण्यतिथि
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर प्रदेश के नेताओं ने दलित आइकन और भारत के पहले विधि मंत्री डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर, जिन्होंने भारतीय संविधान की प्रारूप समिति का नेतृत्व किया था, को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर एक प्रमुख भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, समाज सुधारक और राजनीतिज्ञ थे।
- उनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महू, मध्य प्रदेश में हुआ था।
- उनके पिता, सूबेदार रामजी मालोजी सकपाल, एक सुशिक्षित व्यक्ति और संत कबीर के अनुयायी थे।
- शिक्षा:
- अंबेडकर ने बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और आगे की पढ़ाई के लिये न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स चले गए।
- योगदान:
- वर्ष 1924 में उन्होंने दलित वर्गों के कल्याण के लिये एक एसोसिएशन की शुरुआत की और 1927 में दलित वर्गों के हितों को संबोधित करने के लिये उन्होंने बहिष्कृत भारत समाचार पत्र शुरू किया।
- उन्होंने मार्च 1927 में महाड सत्याग्रह का भी नेतृत्व किया।
- उन्होंने तीनों गोलमेज सम्मेलनों में भाग लिया।
- वर्ष 1932 में, डॉ. अंबेडकर ने महात्मा गांधी के साथ पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर किये, जिसने दलित वर्गों के लिये पृथक निर्वाचिक मंडल (कम्युनल अवार्ड) के विचार को त्याग दिया।
- वर्ष 1936 में उन्होंने दलित वर्गों के हितों की रक्षा के लिये इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी का गठन किया।
- वर्ष 1942 में डॉ. अंबेडकर को भारत के गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में श्रम सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया और वर्ष 1946 में बंगाल से संविधान सभा के लिये चुने गए।
- वह प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे और उन्हें भारतीय संविधान के जनक के रूप में याद किया जाता है।
- वर्ष 1947 में डॉ. अंबेडकर स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में विधि मंत्री बने।
- वर्ष 1951 में हिंदू कोड बिल पर मतभेद के कारण उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
- वर्ष 1924 में उन्होंने दलित वर्गों के कल्याण के लिये एक एसोसिएशन की शुरुआत की और 1927 में दलित वर्गों के हितों को संबोधित करने के लिये उन्होंने बहिष्कृत भारत समाचार पत्र शुरू किया।
- अतिरिक्त विवरण:
- बाद में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। 6 दिसंबर, 1956 को उनका निधन हो गया, जिसे महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- चैत्य भूमि मुंबई में स्थित बी.आर. अंबेडकर का स्मारक है।
- उन्हें वर्ष 1990 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।
- बाद में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। 6 दिसंबर, 1956 को उनका निधन हो गया, जिसे महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
Switch to English