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संसद टीवी संवाद

सामाजिक न्याय

मानसिक स्वास्थ्य और स्व-उपचार

  • 06 Feb 2025
  • 21 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, तंबाकू, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद, ह्यूमन इम्यूनो डेफिसिएँसी वायरस, NIMHANS, मानसिक स्वास्थ्य, किरण हेल्पलाइन, मनोदर्पण, मानसिक स्वास्थ्य, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, WHO, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB), राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (NIMHANS), मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017

मेन्स के लिये:

भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे, भारत में मानसिक स्वास्थ्य विकारों की व्यापकता

चर्चा में क्यों?

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में पहली बार व्यक्तिगत और राष्ट्रीय विकास में मानसिक स्वास्थ्य के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। 

  • भारत के तेज़ी से विकसित होते परिवेश में, तनाव, चिंता और अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ अधिक व्यापक होती जा रही हैं।

मानसिक स्वास्थ्य क्या है? 

  • परिचय: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य खुशहाली की वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति दैनिक जीवन के तनावों का सामना कर सकता है, उत्पादक बना रह सकता है, तथा समुदाय में योगदान दे सकता है। 
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रथम महानिदेशक ने मानसिक स्वास्थ्य के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए कहा था, "मानसिक स्वास्थ्य के बिना, वास्तविक शारीरिक स्वास्थ्य संभव नहीं है।"
  • मानसिक विकार: मानसिक विकार ऐसी स्थितियाँ हैं जो भावनाओं, सोच, व्यवहार और अंतःक्रियाओं को बाधित करती हैं। 

प्रकार:

        विकार

                            विशेषताएँ

दुश्चिंता विकार (Anxiety Disorders)

अत्यधिक भय और चिंता, संबंधित व्यवहारिक अशांति

अवसाद

उदासी, निराशा, रुचि या आनंद की कमी की लगातार भावनाएँ

द्वि-ध्रुवीय भावदशा विकार

अवसाद और उन्माद की वैकल्पिक अवधि। उन्मत्त घटनाएँ:अत्यंत सक्रियता, मुखरता, विचारों की तीव्रता, आवेगपूर्ण व्यवहार।

अभिघातजन्य तनाव विकार (PTSD)

किसी आघातजनक घटना के संपर्क में आने के बाद लगातार आघात (फ्लैशबैक’ या दुःस्वप्न) का अनुभव होना, उत्तेजना का बढ़ जाना

सिज़ोफ्रेनिया/मनोविदलता

विकृत सोच, धारणाएँ और भावनाएँ; वास्तविकता से अलगाव

आहार ग्रहण विकार

असामान्य खान-पान, भोजन में अत्यधिक व्यस्तता, शरीर के वजन/आकार की चिंताएँ (जैसे, एनोरेक्सिया नर्वोसा (anorexia nervosa) और बुलीमिया नर्वोसा (bulimia nervosa))

विघटनकारी व्यवहार और असामाजिक विकार 

निरंतर व्यवहार संबंधी समस्याएँ, अवज्ञाकारी व्यवहार, दूसरों के अधिकारों/सामाजिक मानदंडों का उल्लंघन

तंत्रिका-विकास संबंधी विकार 

विकास के दौरान उत्पन्न होने वाले व्यवहारिक और संज्ञानात्मक विकार; विशिष्ट बौद्धिक, भाषाई या सामाजिक कार्यों में कठिनाइयाँ (जैसे, बौद्धिक विकास संबंधी विकार, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस-ऑर्डर, ADHD)

मानसिक स्वास्थ्य से निपटना क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • मानसिक स्वास्थ्य का महत्त्व:
    • कल्याण के लिये आवश्यक: मानसिक स्वास्थ्य एक संतुलित जीवन के लिये महत्त्वपूर्ण है, जो व्यक्तियों को अपनी क्षमता की पहचानने और दैनिक चुनौतियों से निपटने में मदद करता है।
    • आर्थिक प्रभाव: मानसिक स्वास्थ्य विकार उत्पादकता में कमी, अनुपस्थिति, स्वास्थ्य देखभाल लागत में वृद्धि और विकलांगता का कारण बनते हैं। खराब मानसिक स्वास्थ्य आर्थिक विकास और कार्यबल दक्षता को प्रभावित करता है।
    • गरीबी-मानसिक स्वास्थ्य संबंध: वित्तीय अस्थिरता, सामाजिक गतिशीलता की कमी और तनावपूर्ण जीवन स्थितियाँ मानसिक स्वास्थ्य विकारों के जोखिम को बढ़ाती हैं।
    • शहरीकरण और प्रवास: तीव्र शहरीकरण और प्रवास के कारण सामाजिक सामंजस्य और पारंपरिक सहायता प्रणालियों में व्यवधान के कारण मनोवैज्ञानिक तनाव बढ़ रहा है।
    • निवेश पर उच्च प्रतिफल: अवसाद और चिंता के लिये उपचार का विस्तार करने से वैश्विक स्तर पर लाभ-लागत अनुपात 5.7:1 तक और भारत में 6.5 गुना तक हो सकता है।
  • भारत का मानसिक स्वास्थ्य परिदृश्य:
    • वैश्विक स्तर पर बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य चिंताएँ: WHO (2021) का अनुमान है कि विश्व में 7 में से 1 किशोर (10-19 वर्ष) मानसिक विकार से पीड़ित है। UNICEF के एक अध्ययन (2021) में बताया गया है कि 21 देशों में 19% युवा (15-24 वर्ष) अवसाद या दैनिक गतिविधियों में रुचि की कमी का अनुभव करते हैं।
    • मानसिक विकारों का उच्च प्रसार: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NMHS) 2015-16 ने बताया कि 10.6% भारतीय वयस्क मानसिक विकारों से पीड़ित हैं।
      • कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर प्रमुख अवसादग्रस्तता विकारों में 27.6% और चिंता विकारों में 25.6% की वृद्धि हुई।
    • शहरी-ग्रामीण विभाजन: ग्रामीण क्षेत्रों (6.9%) और शहरी गैर-मेट्रो क्षेत्रों (4.3%) की तुलना में शहरी मेट्रो क्षेत्रों (13.5%) में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ अधिक प्रचलित हैं।
    • अवसादग्रस्तता विकार: विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है, जहाँ अनुमानतः 56 मिलियन लोग अवसाद से तथा 38 मिलियन लोग चिंता विकारों से पीड़ित हैं। 
      • भारत को विश्व में सबसे ज़्यादा आत्महत्या करने वाले देशों में गिना जाता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2022 में भारत में 1.71 लाख लोगों ने आत्महत्या की।
    • भारत में किशोर मानसिक स्वास्थ्य संकट: NCERT के सर्वेक्षण में पाया गया कि 11% छात्र चिंतित महसूस करते हैं, 14% चरम भावनाओं का अनुभव करते हैं, और 43% मूड स्विंग का सामना करते हैं। पढ़ाई और परीक्षा के दबाव को प्रमुख ट्रिगर्स के रूप में उद्धृत किया गया।

मानसिक स्वास्थ्य में स्व-उपचार की क्या भूमिका है?

  • परिचय: 
    • स्व-उपचार से तात्पर्य किसी व्यक्ति की अपने मन और भावनाओं को शारीरिक और मानसिक सुधार में सहायता करने की क्षमता से है। 
    • इसमें सकारात्मक सोच, भावनात्मक संतुलन, तथा लचीलापन बढ़ाने के लिये पुष्टिकरण, सचेतनता और संज्ञानात्मक पुनर्गठन जैसे संरचित अभ्यास शामिल हैं।
    • स्व-उपचार तकनीकें मानसिक शक्ति, भावनात्मक स्थिरता और समग्र कल्याण में मन-शरीर संबंध पर ज़ोर देती हैं।
    • आधुनिक अनुसंधान और एकीकृत चिकित्सा, स्व-उपचार को स्वास्थ्य देखभाल के एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में मान्यता देते हैं , विशेष रूप से कैंसर जैसी दीर्घकालिक बीमारियों के प्रबंधन में, जहाँ मानसिक संकट उपचार के परिणामों और पीड़ा की अनुभूति को प्रभावित कर सकता है। 
    • आध्यात्मिक जीव विज्ञान के सिद्धांतों और संज्ञानात्मक उपचार तकनीकों को अपनाकर, व्यक्ति आंतरिक शक्ति विकसित कर सकते हैं और अपने समग्र स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य में स्व-उपचार के प्रमुख पहलू:
    • मन-शरीर संबंध: विचार, भावनाएँ और विश्वास जैविक प्रक्रियाओं जैसे प्रतिरक्षा कार्य, हार्मोनल संतुलन और तंत्रिका तंत्र गतिविधि को प्रभावित करते हैं।
    • सकारात्मक सोच: आत्म-आलोचना और नकारात्मक आत्म-चर्चा से बचने से मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति को प्रभावित होने से रोका जा सकता है।
    • समग्र उपचार तकनीकें: योग, ध्यानपूर्ण श्वास, निर्देशित कल्पना और ग्रैटिट्यूट जर्नलिंग जैसे अभ्यास चिंता को कम करने और भावनात्मक लचीलापन बढ़ाने में मदद करते हैं।
    • संज्ञानात्मक और भावनात्मक स्थिरता: सकारात्मकता, सचेतनता और संज्ञानात्मक पुनर्गठन मानसिक स्पष्टता और तनाव प्रबंधन में सुधार करते हैं।
    • स्वास्थ्य देखभाल में एकीकरण: चिकित्सा देखभाल में आध्यात्मिक जीव विज्ञान और मनोवैज्ञानिक कल्याण को शामिल करने को प्रोत्साहित करना, विशेष रूप से दीर्घकालिक बीमारियों वाले रोगियों के लिये, ताकि उनके स्वास्थ्य में सुधार हो सके।
    • घातक बीमारियों के लिये भावनात्मक समर्थन: परामर्श और समग्र हस्तक्षेप के माध्यम से अस्तित्व संबंधी संकट, दुःख और चिंता का सामना कर रहे व्यक्तियों की सहायता करना।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य के लिये क्या पहल की गई हैं?

मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?

  • नीतिगत उपेक्षा और कम बजट आवंटन: भारत की मानसिक स्वास्थ्य नीति कम प्राथमिकता, अपर्याप्त वित्त पोषण (1,000 करोड़ रुपए बनाम 93,000 करोड़ रुपए की आवश्यकता) और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक पहुँच की तुलना में तृतीयक देखभाल पर ध्यान केंद्रित करने से ग्रस्त है।
  • अपर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य ढाँचा और मानव संसाधन की कमी: भारत में मानसिक स्वास्थ्य में गंभीर अंतर है, जहाँ प्रति 100,000 लोगों पर केवल 0.75 मनोचिकित्सक हैं (WHO 3 की सिफारिश करता है), अपर्याप्त सुविधाएँ हैं, और 83% मामलों का उपचार नहीं किया जाता (NMHS)।
  • उच्च उपचार लागत और आर्थिक बोझ: मानसिक स्वास्थ्य देखभाल वित्तीय रूप से कठिन बनी हुई है, जिससे उच्च लागत और बीमा कवरेज़ की कमी के कारण 20% भारतीय परिवार गरीबी में चले गए हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य नीतियों और कानूनों में कार्यान्वयन अंतराल: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति (2014) और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (2017) के बावजूद, निम्नस्तरीय संसाधन, अस्पष्ट समयसीमा, कमज़ोर निगरानी और केंद्रीय नियामक की कमी प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा डालती है।
  • शहरी-ग्रामीण विभाजन और सेवाओं तक सीमित पहुँच: मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ शहरों पर केंद्रित हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में इनकी पहुँच कम है; टेली-मानस जैसी पहल का उद्देश्य मदद करना है, लेकिन डिजिटल साक्षरता और बुनियादी ढाँचे की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

आगे की राह

  • मानसिक स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे के विस्तार के लिये वित्त पोषण में वृद्धि: भारत में मानसिक स्वास्थ्य के बढ़ते बोझ को देखते हुए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिये स्वास्थ्य बजट का अधिक आवंटन आवश्यक है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, आपातकालीन देखभाल इकाइयों, मोबाइल स्वास्थ्य क्लीनिकों और टेलीमेडिसिन सेवाओं का विस्तार करने से विशेष रूप से वंचित और ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँच में सुधार हो सकता है।
  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीतियों और अधिनियमों के कार्यान्वयन में सुधार: मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सामान्य स्वास्थ्य सेवा में एकीकृत करके राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है। सुदृढ़ डेटा संग्रह प्रणाली स्थापित करने से मानसिक स्वास्थ्य प्रवृत्तियों का आकलन करने, नीतिगत निर्णयों को सूचित करने और संसाधनों को अधिक प्रभावी ढंग से आवंटित करने में मदद मिल सकती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के लिये प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: भारत में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की काफी कमी है। शैक्षिक प्रोत्साहन और विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से मनोचिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों, सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और सामुदायिक स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या बढ़ाने से सेवा वितरण में सुधार होगा। प्राथमिक देखभाल चिकित्सकों और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं को प्रशिक्षित करने से ज़मीनी स्तर पर शीघ्र पहचान और हस्तक्षेप में सुविधा हो सकती है।
  • भारत की HIV-AIDS रणनीति से सीख: HIV-AIDS से निपटने में भारत की सफल रणनीतियाँ - जिनमें साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेप, सामुदायिक भागीदारी और बहु-हितधारक सहयोग शामिल हैं - मानसिक स्वास्थ्य सेवा के लिये मूल्यवान सीख प्रदान करती हैं। समान दृष्टिकोणों को लागू करने से पहुँच और प्रभाव में वृद्धि हो सकती है।
  • सहयोग और सार्वजनिक-निजी भागीदारी: गैर सरकारी संगठनों, निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और सामुदायिक संगठनों के साथ सहयोग को मज़बूत करने से मानसिक स्वास्थ्य पहुँच का विस्तार हो सकता है, विशेष रूप से हाशिये पर पड़े समुदायों के लिये। बनयान (तमिलनाडु), संगथ (गोवा) और सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ लॉ एंड पॉलिसी (पुणे) जैसे सफल मॉडल ऐसे व्यापक समाधान प्रदान करते हैं जिन्हें देश भर में लागू किया जा सकता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में स्व-चिकित्सा, योग और पारंपरिक कल्याण को एकीकृत करना: योग, ध्यान और श्वास व्यायाम तनाव, चिंता और अवसाद के प्रबंधन में प्रभावी हैं। 
  • सक्रिय योग, जैसे कि पावर योग, व्यक्तियों को आक्रामकता को नियंत्रित करने और तंत्रिका तंत्र को शांत करने में मदद कर सकता है, जबकि ग्रैटिट्यूट मेडिटेशन सकारात्मक विचार पैटर्न और भावनात्मक लचीलापन को बढ़ावा देता है। रेस्टोरेटिव योग और डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ तनाव हार्मोन के स्तर को कम करने और समग्र मनोदशा में सुधार करने में सहायता करते हैं। 
  • समूह योग सत्र सामाजिक समर्थन को बढ़ाते हैं और साझा उपचार अनुभवों को बढ़ावा देते हैं। कई मानसिक स्वास्थ्य स्टार्ट-अप और एकीकृत चिकित्सा केंद्र अब कैंसर देखभाल कार्यक्रमों में योग विशेषज्ञों को शामिल कर रहे हैं, जिससे कीमोथेरेपी या विकिरण चिकित्सा से गुज़रने वाले रोगियों के लिये सुरक्षित और संशोधित अभ्यास सुनिश्चित हो रहे हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

मेन्स

प्रश्न. सामाजिक विकास की संभावनाओं को बढ़ाने के क्रम में, विशेषकर जराचिकित्सा एवं मातृ स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में सुदृढ़ और पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल संबंधी नीतियों की आवश्यकता है। विवेचन कीजिये। (2020)

प्रश्न. भारत में 'सभी के लिये स्वास्थ्य' को प्राप्त करने के लिये समुचित स्थानीय समुदायिक स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल का मध्यक्षेप एक पूर्वापेक्षा है। स्पष्ट कीजिये। (2018)

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