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प्रश्न :
जैव नैतिकता से आप क्या समझते हैं? भारत में जैव नैतिकता से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
19 Aug, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- जैव नैतिकता से आप क्या समझते हैं, इसके बारे में लिखिये।
- भारत में जैव नैतिकता से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय
जैव नैतिकता
बायो-एथिक्स (जैव-नीतिशास्त्र) जीव विज्ञान और चिकित्सा में प्रगति से उत्पन्न नैतिक मुद्दों का अध्ययन है, जीवन के जैविक पहलुओं से संबंधित नैतिक मुद्दे और उनसे संबंधित अन्य शाखाओं तथा प्रश्नों को बायो-एथिक्स में शामिल किया गया है। यह नीतिशास्त्र की वह शाखा है जिसमें गर्भपात, पशु अधिकार या इच्छामृत्यु जैसे विशिष्ट एवं विवादास्पद नैतिक मुद्दों का विश्लेषण शामिल है। यह नैतिक सिद्धांतों के ज्ञान का उपयोग करके दुविधाओं को दूर करने में मदद करता है।
जैव नैतिकता के चार सामान्य सिद्धांत हैं:
- अशुभता: किसी को नुकसान पहुँचाने से बचना चाहिये। स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर को रोगी को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिये। सभी उपचारों में कुछ नुकसान शामिल होते हैं, भले ही न्यूनतम हो, लेकिन नुकसान उपचार के लाभों के अनुपात में नहीं होना चाहिये।
- न्याय: लाभ और जोखिम निष्पक्ष रूप से वितरित किये जाने चाहिये। समान स्थिति वाले रोगियों के साथ समान तरीके से व्यवहार किया जाना चाहिये।
- लाभ: दूसरों की मदद के लिये सकारात्मक कदम उठाने चाहिये। स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को इस तरह से कार्य करना चाहिये जिससे रोगी को लाभ हो।
- स्वायत्तता: स्वायत्त व्यक्तियों की निर्णय लेने की क्षमता का सम्मान करके व्यक्तियों के अपने निर्णय लेने के अधिकार का सम्मान करना चाहिये; व्यक्तियों को तर्कसंगत सूचित विकल्प चुनने की स्वतंत्रता देनी चाहिये।
प्रारूप
भारत में जैव नैतिकता से संबंधित मुद्दे
- इच्छामृत्यु: ‘इच्छामृत्यु’ का मुद्दा समसामयिक रहा है। भारत में गंभीर रूप से बीमार रोगियों की इच्छामृत्यु/दया-हत्या एक विवादास्पद जैव-चिकित्सा से जुड़ा मुद्दा रहा है। चिकित्सक-सहायता प्राप्त आत्महत्या (Physician-Assisted Suicide) के समर्थकों को लगता है कि किसी व्यक्ति की स्वायत्तता का अधिकार उसे एक दर्दरहित मौत का चयन करने के लिये स्वत: ही अधिकार दे देता है। वहीं विरोधियों को लगता है कि एक व्यक्ति की मौत में एक चिकित्सक की भूमिका चिकित्सा पेश के केंद्रीय सिद्धांत का उल्लंघन करती है। उल्लेखनीय है कि हमारे यहाँ ‘निष्क्रिय इच्छामृत्यु’ की अनुमति है लेकिन सक्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति नहीं है।
- स्टेम सेल अनुसंधान: वैज्ञानिक अनुसंधानों में ‘स्टेम सेल अनुसंधान’ एक क्रांतिकारी प्रयास सिद्ध हुआ है। मधुमेह, हृदय रोग, रीढ़ की हड्डी में चोट, पार्किंसंस, अल्ज़ाइमर जैसे लाइलाज और अपरिवर्तनीय बीमारियों के उपचार में स्टेम कोशिकाओं से जुड़े अनुसंधानों ने पर्याप्त सकारात्मक परिणाम दिखाए हैं। स्टेम कोशिकाओं की चिकित्सा से जुड़ी बहस में सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और नैतिक मुद्दे शामिल हैं। डिज़ाइनर शिशुओं से संबंधित चिंताओं ने गंभीर जैव-नैतिक मुद्दों को उठाया है।
- क्लिनिकल परीक्षण के लिये नियमों में ढील: सरकार ने वर्ष 2013 में क्लिनिकल परीक्षण के संबंध में कड़े नियम बनाए थे। वर्ष 2014 से, इन नियमों में धीरे-धीरे ढील दी जा रही है। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने नैदानिक परीक्षणों के कुछ चरणों को समाप्त करने का फैसला किया है। ये चरण उन मुद्दों से संबंधित हैं जहाँ जैव-नैतिक मुद्दों के कारण विशेष रूप से आवश्यक दवाओं को अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा या यूरोप में मंज़ूरी दी गई है।
- गर्भपात: गर्भपात का सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, कानूनी और राजनीतिक संदर्भ जटिल है। यह चिकित्सा प्रौद्योगिकी में प्रगति से और जटिल हुआ है। जन्मपूर्व नैदानिक तकनीकों की एक शृंखला और लिंग आधारित पूर्व-धारणा एवं आनुवंशिकी-आधारित तकनीकों के उद्भव ने हाल ही में लिंग या अन्य ‘‘असामान्यताओं’’ के संदर्भ में भ्रूण की स्थिति जानना संभव बना दिया है, इसने महिलाओं और उनके परिवारों को चयनात्मक गर्भपात के उपाय करने के लिये प्रोत्साहित किया है। सरोगेसी और कृत्रिम गर्भाधान से जुड़े मुद्दे भी नैतिकता संबंधित सवालों से अछूते नहीं रहे हैं।
निष्कर्ष
जैव-नैतिकता से जुड़े मुद्दों में वैज्ञानिक, तकनीकी, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक कारण शामिल होते हैं और प्रत्येक स्थिति काफी अनोखी और जटिल है। आधुनिक युग में जैव-नीतिशास्त्रियों को इन सभी कारकों के प्रति संवेदनशील होना चाहिये जो आधुनिक समाज में नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इस संबंध में भारतीय समाज और सरकार की सतर्कता वांछनीय है।
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