सामाजिक न्याय
स्वास्थ्य क्षेत्र में नेतृत्वकर्त्ता के रूप में भारत
- 24 Jan 2025
- 32 min read
यह संपादकीय 23/01/2025 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “The health leadership opportunity for India ” पर आधारित है। यह लेख डब्ल्यूएचओ से अमेरिका के हटने के बाद नए वैश्विक स्वास्थ्य नेतृत्व की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करता है। स्वास्थ्य नवाचार में भारत का बढ़ता हुआ योगदान उसे समतामूलक और धारणीय वैश्विक स्वास्थ्य पद्धतियों को बढ़ावा देने में नेतृत्व करने के लिये उपयुक्त बनाता है।
प्रिलिम्स के लिये:WHO से अमेरिका का बाहर होना, डिजिटल स्वास्थ्य, मिशन इंद्रधनुष, राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन, आर्थिक सर्वेक्षण, राजस्थान का स्वास्थ्य का अधिकार अधिनियम, स्वास्थ्य और शिक्षा उपकर, मातृ मृत्यु दर, वैश्विक नवाचार सूचकांक 2023, वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक, वैक्सीन मैत्री पहल, गवी, वैक्सीन एलायंस, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम। मेन्स के लिये:स्वास्थ्य सेवा और स्वास्थ्य सेवा प्रशासन में भारत की प्रमुख उपलब्धियाँ, वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन में भारत के नेतृत्व को प्रभावित करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ। |
WHO से अमेरिका का बाहर होना वैश्विक स्वास्थ्य नेतृत्व की आवश्यकता को रेखांकित करता है, क्योंकि इसके बाहर निकलने से WHO के कार्य संचालन के लिये महत्त्वपूर्ण फंडिंग और विशेषज्ञता बाधित होती है। जबकि WHO को नौकरशाही, राजनीतिक प्रभावों और घटती दक्षता के लिये आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने में इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण बनी हुई है। भारत का अपेक्षाकृत छोटा लेकिन प्रभावशाली योगदान, विशेष रूप से पारंपरिक चिकित्सा और डिजिटल स्वास्थ्य में, वैश्विक स्वास्थ्य शासन में इसकी बढ़ती क्षमता को उजागर करता है। वैश्विक स्वास्थ्य संस्थानों में सुधारों के साथ, भारत एक अभिकर्ता के रूप में उभरने के लिये अपनी विशेषज्ञता और अभिनव स्वास्थ्य समाधानों का लाभ उठा सकता है। यह क्षण भारत को न्यायसंगत और टिकाऊ वैश्विक स्वास्थ्य पद्धतियों को आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।
स्वास्थ्य सेवा और स्वास्थ्य सेवा प्रशासन में भारत की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं?
- स्वास्थ्य सेवा का लोकतंत्रीकरण: वर्ष 2018 में शुरू की गई आयुष्मान भारत योजना ने 36 करोड़ से अधिक लाभार्थियों (2024 तक) को कवर करके स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में क्रांतिकारी बदलाव किया है, जिससे गरीब परिवारों के लिये अस्पताल में मुफ्त इलाज कराना संभव हो पाया।
- यह माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवा में शहरी-ग्रामीण अंतर को पाटता है।
- आयुष्मान भारत कार्यक्रम के कारण स्वास्थ्य देखभाल पर होने वाले खर्च में 21% की उल्लेखनीय कमी आई है और स्वास्थ्य संबंधी खर्चों के लिये आपातकालीन ऋण लेने में 8% की कमी आई है।
- टीकाकरण कवरेज और रोग उन्मूलन: भारत के टीकाकरण प्रयासों ने पोलियो और नवजात टेटनस को समाप्त कर दिया है, जबकि खसरा और हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों से निपटने में सफलता मिली है।
- भारत ने अपने कोविड-19 टीकाकरण अभियान में प्रभावी रूप से विशेषज्ञता प्राप्त कर ली है। जनवरी 2023 तक लगभग 97% लाभार्थियों को कोविड-19 वैक्सीन की कम-से-कम एक खुराक मिल चुकी है और लगभग 90% को दोनों खुराक मिल चुकी हैं।
- मिशन इंद्रधनुष ने पूर्ण टीकाकरण को एनएफएचएस-4 (2015-16) के 62% से बढ़ाकर एनएफएचएस-5 (2019-21) में 76.4% कर दिया है।
- ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना: भारत ने 31 मार्च 2024 तक आयुष्मान भारत के तहत 1.72 लाख आयुष्मान आरोग्य मंदिरों का संचालन किया है, जो प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ, मातृ स्वास्थ्य और गैर-संचारी रोग जाँच प्रदान करते हैं।
- ये केंद्र प्रतिवर्ष करोड़ों लोगों को सेवाएँ प्रदान करते हैं तथा वंचित ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य परिणामों में सुधार लाते हैं।
- राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (एनडीएचएम) के माध्यम से स्वास्थ्य डिजिटलीकरण: 2020 में शुरू किया गया एनडीएचएम, स्वास्थ्य प्रशासन में एक बड़ा परिवर्तनकारी कदम है, जो इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड और टेलीमेडिसिन सेवाओं को सक्षम बनाता है।
- इसके तहत क्यूआर-कोड आधारित ओपीडी पंजीकरण सेवा मरीजों को जनसांख्यिकीय विवरण डिजिटल रूप से साझा करने की अनुमति देती है, जिससे प्रतीक्षा समय 30-40 मिनट से घटकर केवल 5-10 मिनट रह जाता है।
- नवंबर 2024 तक 35 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 17,481 सुविधाओं ने 6.64 करोड़ टोकन उत्पन्न किये थे, जिससे 3.3 करोड़ व्यक्ति-घंटे की बचत हुई और स्वास्थ्य सेवा वितरण में पहुँच और दक्षता में वृद्धि हुई।
- इसके तहत क्यूआर-कोड आधारित ओपीडी पंजीकरण सेवा मरीजों को जनसांख्यिकीय विवरण डिजिटल रूप से साझा करने की अनुमति देती है, जिससे प्रतीक्षा समय 30-40 मिनट से घटकर केवल 5-10 मिनट रह जाता है।
- आयुष एकीकरण के माध्यम से पारंपरिक चिकित्सा पर ध्यान केंद्रित करना: गुजरात में डब्ल्यूएचओ ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन (2022) जैसी पहलों के साथ भारत पारंपरिक चिकित्सा में विश्व स्तर पर अग्रणी है।
- आयुष क्षेत्र में सालाना 17% की वृद्धि हुई, जिसने अर्थव्यवस्था में 18 बिलियन डॉलर का योगदान दिया (2021), जबकि योग और आयुर्वेद को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों ने नागरिकों के बीच निवारक देखभाल तथा कल्याण जागरूकता में सुधार किया।
- इक्विटी के लिये अभिनव स्वास्थ्य वित्तपोषण: भारत ने स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि करके स्वास्थ्य प्रशासन में सुधार किया है। आर्थिक सर्वेक्षण, 2022-23 के अनुसार, स्वास्थ्य सेवा पर भारत का सार्वजनिक व्यय वित्त वर्ष 23 में सकल घरेलू उत्पाद का 2.1% और वित्त वर्ष 22 में 2.2% तक पहुँच गया, जबकि वित्त वर्ष 21 में यह 1.6% था।
- स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपकर कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिये स्थायी वित्तपोषण सुनिश्चित करता है।
- विकेंद्रीकृत प्रयासों के माध्यम से स्वास्थ्य शासन: केरल के सहभागी स्वास्थ्य कार्यक्रम और राजस्थान के स्वास्थ्य का अधिकार अधिनियम (2022) जैसे स्थानीय शासन मॉडल जवाबदेही और नागरिक-केंद्रित स्वास्थ्य देखभाल पर ज़ोर देते हैं।
- इन रूपरेखाओं ने राज्यों को नवाचार करने तथा मातृ मृत्यु दर जैसे स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार करने का अधिकार दिया है, जहाँ भारत ने 2020 तक प्रति लाख जीवित जन्म पर 97 मातृ मृत्यु दर प्राप्त कर ली है, जो 2014-16 के स्तर से 25% की कमी को दर्शाता है।
वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन में भारत के नेतृत्व को प्रभावित करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- अपर्याप्त स्वास्थ्य व्यय: भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय, यद्यपि बेहतर हुआ है, किंतु विश्व स्वास्थ्य संगठन की 5% की सिफारिश से पीछे है।
- इस अल्प-वित्तपोषण के कारण वैश्विक स्तर पर नेतृत्व करने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे, मानवशक्ति और अनुसंधान क्षमताओं पर असर पड़ता है।
- इसके अलावा, आयुष्मान भारत के माध्यम से सुधार के बावजूद, हाल ही में CAG की एक रिपोर्ट से पता चला है कि 6 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में, अपात्र परिवारों को PMJAY लाभार्थियों के रूप में पंजीकृत किया गया था और उन्हें योजना के तहत लाभ प्राप्त हुआ था।
- इससे एक ज़िम्मेदार स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के रूप में भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि धूमिल होती है।
- स्वास्थ्य देखभाल नवाचारों में कमज़ोरअनुसंधान एवं विकास: वैक्सीन उत्पादन में प्रगति के बावजूद, भारत का स्वास्थ्य देखभाल अनुसंधान एवं विकास तंत्र अविकसित है, जिससे अत्याधुनिक चिकित्सा अनुसंधान में वैश्विक नेतृत्व की इसकी क्षमता सीमित हो रही है।
- उदाहरण के लिये, वैश्विक नवाचार सूचकांक 2023 में भारत 40वें स्थान पर है, जो चिकित्सा प्रौद्योगिकियों में सीमित निवेश को दर्शाता है।
- भारत का अनुसंधान एवं विकास वित्तपोषण सकल घरेलू उत्पाद का 0.64% है, तथा राज्यों का बजट सकल घरेलू उत्पाद में केवल 0.1% का योगदान देता है, जिससे उभरते रोगों पर काबू पाने में बाधा होती है।
- व्यापक विनियामक ढाँचे का अभाव: भारत का स्वास्थ्य विनियामक ढाँचा खंडित है, जिसके कारण दवा अनुमोदन में अकुशलता और सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
- वर्ष 2023 में घटिया निर्यात से जुड़े कफ सिरप विवाद जैसे मुद्दों ने दवा की गुणवत्ता आश्वासन में अंतराल को उजागर किया।
- उदाहरण के लिये, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में निर्मित कफ सिरप को पश्चिमी अफ्रीकी देश गाम्बिया में 66 बच्चों की तीव्र किडनी फेलियर और मृत्यु से जोड़ा है।
- इसके अलावा, भारत रोगाणुरोधी प्रतिरोध का केंद्र बनता जा रहा है, यह "वॉच" समूह के एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग करने वाले देशों में से एक है, जहाँ कई एंटीबायोटिक-जीवाणु संयोजनों के कारण होने वाले 75% से अधिक संक्रमण प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण होते हैं।
- वर्ष 2023 में घटिया निर्यात से जुड़े कफ सिरप विवाद जैसे मुद्दों ने दवा की गुणवत्ता आश्वासन में अंतराल को उजागर किया।
- स्वास्थ्य अवसंरचना में असमानताएँ: स्वास्थ्य सुविधाओं में क्षेत्रीय असंतुलन, स्वास्थ्य संकटों का समान रूप से समाधान करने की भारत की क्षमता को कमज़ोर करता है।
- जबकि केरल जैसे दक्षिणी राज्यों में स्वास्थ्य संकेतक उन्नत हैं, वहीं उत्तर प्रदेश जैसे उत्तरी राज्य अभी भी उच्च शिशु मृत्यु दर से जूझ रहे हैं।
- भारत में स्वास्थ्य परिणामों के मामले में महत्त्वपूर्ण भौगोलिक असमानताएँ हैं, मध्य प्रदेश में जीवन प्रत्याशा 56 वर्ष से लेकर केरल में 74 वर्ष तक है।
- इसके अलावा, प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य व्यय में विभिन्नता असमानता को बढ़ाती है तथा स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत की विश्वसनीयता को कम करती है।
- महामारी की तैयारी में चुनौतियाँ: यद्यपि भारत ने कोविड-19 को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया, फिर भी खंडित निगरानी प्रणालियों और खराब समन्वय के कारण महामारी की तैयारियों में अंतराल बना हुआ है।
- उदाहरण के लिये, वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक (2021) में भारत 66वें स्थान पर है, जो जैव सुरक्षा और जूनोटिक रोग निगरानी में कमज़ोरियों को दर्शाता है।
- राज्यों के बीच अपर्याप्त वास्तविक समय डेटा एकीकरण 2023 में H3N2 जैसे वैश्विक प्रकोपों का जवाब देने की भारत की क्षमता को सीमित करता है।
- संचारी और गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) का दोहरा बोझ: भारत को संचारी और गैर-संचारी रोगों के दोहरे बोझ का सामना करना पड़ रहा है।
- भारत में गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के कारण होने वाली मौतों का अनुपात 1990 में 37.9% से बढ़कर 2016 में 61.8% हो गया है।
- खराब जीवनशैली और सीमित निवारक देखभाल इन चुनौतियों से निपटने में भारत के वैश्विक स्वास्थ्य नेतृत्व में बाधा डालती है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में बताया गया है कि शहरी भारत में मोटापा ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में काफी अधिक है, जहाँ 29.8% पुरुष और 33.2% महिलाएँ इससे प्रभावित हैं, जबकि ग्रामीण भारत में यह दर 19.3% और 19.7% है (NFHS-5)।
- जेनेरिक दवा विनिर्माण पर निर्भरता: यद्यपि भारत "विश्व की फार्मेसी" है, लेकिन जेनेरिक दवा विनिर्माण पर इसका ध्यान नवीन दवाओं में नवाचार को सीमित करता है।
- वर्तमान में भारतीय निर्यात का एक प्रमुख घटक कम मूल्य वाली जेनेरिक दवाएँ हैं, जबकि पेटेंट दवाओं की मांग का एक बड़ा हिस्सा आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है।
- ऐसा इसलिये है क्योंकि भारतीय फार्मास्युटिकल क्षेत्र को अभी भी उच्च मूल्य उत्पादन तथा वैश्विक फार्मा अनुसंधान एवं विकास में काफी प्रगति करनी है।
- वैश्विक स्वास्थ्य कूटनीति में अंतराल: भारत की वैश्विक स्वास्थ्य पहुँच में निरंतरता का अभाव है, जो अक्सर चीन के स्वास्थ्य सिल्क रोड (एचएसआर) के सामने फीका पड़ जाता है।
- यद्यपि, वैक्सीन मैत्री पहल के तहत भारत ने दुनिया के 98 देशों को कोविड-19 टीकों की 235 मिलियन से अधिक आपूर्ति की है, लेकिन गावी, द वैक्सीन अलायंस जैसे वैश्विक स्वास्थ्य गठबंधनों में इसकी सीमित भागीदारी इसकी नेतृत्वकारी भूमिका को कम करती है।
- यह स्थिति यूरोपीय संघ और चीन से भिन्न है, जो वैश्विक स्वास्थ्य पहलों में अधिक मज़बूती से योगदान देते हैं।
- यद्यपि, वैक्सीन मैत्री पहल के तहत भारत ने दुनिया के 98 देशों को कोविड-19 टीकों की 235 मिलियन से अधिक आपूर्ति की है, लेकिन गावी, द वैक्सीन अलायंस जैसे वैश्विक स्वास्थ्य गठबंधनों में इसकी सीमित भागीदारी इसकी नेतृत्वकारी भूमिका को कम करती है।
- पर्यावरणीय और जलवायु स्वास्थ्य चुनौतियाँ: भारत की बिगड़ती वायु और जल गुणवत्ता, स्वास्थ्य के पर्यावरणीय निर्धारकों से निपटने में इसकी वैश्विक विश्वसनीयता को कमज़ोर करती है।
- दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 शहर भारत में हैं। भारत में वायु प्रदूषण के कारण 2019 में 1.67 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई - जो दुनिया के किसी भी देश में प्रदूषण से होने वाली मौतों का सबसे बड़ा आँकड़ा है
- भारत द्वारा राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) का अप्रभावी कार्यान्वयन वैश्विक पर्यावरणीय स्वास्थ्य लक्ष्यों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता पर चिंता उत्पन्न करता है।
- स्वास्थ्य पेशेवरों का प्रतिभा पलायन: कुशल डॉक्टरों और नर्सों का विकसित देशों की ओर पलायन भारत की वैश्विक स्वास्थ्य नेतृत्व स्थापित करने की क्षमता को सीमित करता है।
- भारत विकसित देशों, विशेषकर खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) देशों, यूरोप और अन्य अंग्रेज़ी भाषी देशों को स्वास्थ्य कर्मियों का प्रमुख निर्यातक रहा है।
भारत वैश्विक स्वास्थ्य अभिकर्ता के रूप में कैसे उभर सकता है?
- स्वास्थ्य नवाचार में अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) को मज़बूत करना: भारत को अत्याधुनिक चिकित्सा प्रौद्योगिकियों, स्वदेशी टीकों और सस्ती दवाओं के विकास के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना चाहिये।
- फार्मास्यूटिकल्स के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना जैसी पहलों के साथ, भारत जटिल जेनरिक और बायोसिमिलर के विनिर्माण को बढ़ावा दे सकता है।
- निजी क्षेत्र, आईसीएमआर और शिक्षा जगत के बीच सहयोग बढ़ाकर देश स्वयं को नवाचार के केंद्र के रूप में स्थापित कर सकता है।
- क्षेत्रीय जैव प्रौद्योगिकी क्लस्टरों (जैसे, बेंगलूरू, हैदराबाद) को स्वास्थ्य अनुसंधान एवं विकास के लिये वैश्विक केंद्रों के रूप में विकसित करना, जिन्हें इन्क्यूबेशन केंद्रों द्वारा समर्थन दिया जाएगा।
- इसके अलावा, सटीक चिकित्सा, जैव प्रौद्योगिकी और टीका विकास में अनुसंधान के वित्तपोषण के लिये एक समर्पित कोष की स्थापना की जाएगी।
- पहुँच में सुधार के लिये डिजिटल स्वास्थ्य का लाभ उठाना: वैश्विक दक्षिण में पड़ोसी देशों को सेवाएँ प्रदान करने और टेलीमेडिसिन सेवाओं को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (एनडीएचएम) के दायरे का विस्तार करना।
- भारत को ड़ाटा-साझाकरण और एआई-आधारित निदान में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये स्वास्थ्य-तकनीक स्टार्ट-अप और प्लेटफार्मों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना चाहिये।
- पहनने योग्य स्वास्थ्य उपकरणों और स्वास्थ्य प्रबंधन ऐप्स पर काम करने वाले स्टार्ट-अप्स के लिये प्रारंभिक वित्तपोषण प्रदान करना।
- ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में बीमारियों का शीघ्र पता लगाने के लिये एआई-संचालित नैदानिक उपकरणों का उपयोग करना।
- भारत को ड़ाटा-साझाकरण और एआई-आधारित निदान में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये स्वास्थ्य-तकनीक स्टार्ट-अप और प्लेटफार्मों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना चाहिये।
- आयुष को आधुनिक चिकित्सा के साथ एकीकृत करना: भारत साक्ष्य-आधारित पद्धतियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए आयुष को एलोपैथिक स्वास्थ्य देखभाल के साथ एकीकृत करके विश्व स्तर पर अपनी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को बढ़ावा दे सकता है।
- वैश्विक संगठनों के साथ साझेदारी में डब्ल्यूएचओ ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन (गुजरात, 2022) जैसे अधिक अनुसंधान केंद्र स्थापित करने से विश्वसनीयता बढ़ेगी।
- आयुष पद्धतियों को वैज्ञानिक रूप से मान्य बनाने के लिये नैदानिक परीक्षणों और अनुसंधान के लिये वित्त पोषण में वृद्धि की जाएगी।
- दुनिया भर में दूतावासों और भारतीय सांस्कृतिक केंद्रों के माध्यम से योग और आयुर्वेद को बढ़ावा देना।
- सस्ती वैक्सीन और दवाओं की पहुँच का विस्तार करना: भारत को "वैक्सीन मैत्री" कार्यक्रम जैसी अपनी वैक्सीन कूटनीति पहलों का लाभ उठाकर वैक्सीन निर्माण में अपने नेतृत्व का और विस्तार करना चाहिये।
- गावी एलायंस के तहत पहलों को बढ़ाने से वहनीय टीकों की वैश्विक उपलब्धता सुनिश्चित हो सकती है।
- "वैक्सीन मैत्री 2.0" के अंतर्गत वैक्सीन उत्पादन क्षमता निर्माण के लिये अफ्रीकी देशों के साथ सहयोग करना।
- द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में भारतीय जेनेरिक दवाओं के लिये विनियामक अनुमोदन को आसान बनाना।
- वैश्विक सहयोग के माध्यम से स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे में सुधार: भारत को पीएम-आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचा मिशन (पीएम-एबीएचआईएम) जैसी योजनाओं के तहत स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे में निवेश करना चाहिये, साथ ही अस्पताल प्रबंधन, निदान और उपकरण निर्माण में अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी के लिये अवसर उत्पन्न करना चाहिये।
- उत्पादन और पहुँच को बढ़ावा देने के लिये टियर-2 शहरों में वैक्सीन विनिर्माण केंद्र स्थापित करें।
- "मेक इन इंडिया" के अंतर्गत तृतीयक अस्पतालों और चिकित्सा उपकरण विनिर्माण में विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना।
- वैश्विक नेतृत्व के माध्यम से रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) से निपटना: भारत, जो एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग के कारण रोगाणुरोधी प्रतिरोध का केंद्र है, को निगरानी तंत्र को मज़बूत करके और एएमआर पर राष्ट्रीय कार्य योजना को बढ़ावा देकर इस लड़ाई का नेतृत्व करना चाहिये।
- घरेलू नीतियों में ज़िम्मेदारीपूर्ण एंटीबायोटिक उपयोग को प्रोत्साहित करना तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन और जी-20 देशों के साथ सहयोग करके इस वैश्विक स्वास्थ्य संकट से निपटने में मदद मिल सकती है।
- भारत के नेतृत्व में विश्व स्वास्थ्य संगठन की एएमआर रोकथाम नीतियों के वैश्विक कार्यान्वयन पर ज़ोर।
- भारत में सामान्य जीवाणु संक्रमणों में लगभग 60% प्रतिरोधिता की रिपोर्ट की गई है (ICMR, 2023), जिससे वैश्विक स्वास्थ्य रणनीतियों में AMR को प्राथमिकता देना महत्त्वपूर्ण हो गया है।
- घरेलू नीतियों में ज़िम्मेदारीपूर्ण एंटीबायोटिक उपयोग को प्रोत्साहित करना तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन और जी-20 देशों के साथ सहयोग करके इस वैश्विक स्वास्थ्य संकट से निपटने में मदद मिल सकती है।
- वैश्विक स्वास्थ्य कूटनीति के लिये आयुष्मान भारत के दायरे का विस्तार: भारत निम्न और मध्यम आय वाले देशों में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूएचसी) प्राप्त करने के लिये आयुष्मान भारत को एक मॉडल के रूप में प्रदर्शित कर सकता है।
- इस कार्यक्रम को अपनाने में विकासशील देशों की सहायता करके भारत वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन में अपना नेतृत्व प्रदर्शित कर सकता है।
- जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य पर ध्यान देना: भारत को जलवायु कार्रवाई को सार्वजनिक स्वास्थ्य से जोड़ने वाली पहलों का नेतृत्व करना चाहिये, जैसे कि आपदा-प्रवण क्षेत्रों में लचीले स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना।
- जलवायु परिवर्तन के लिये राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (एनएएफसीसी) का लाभ उठाकर तथा स्वास्थ्य प्रभाव आकलन को जलवायु नीतियों में एकीकृत करके भारत वैश्विक कार्रवाई को आगे बढ़ा सकता है।
- भारत सौर ऊर्जा और टिकाऊ अपशिष्ट प्रबंधन के साथ ऊर्जा-कुशल अस्पतालों के निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित कर सकता है।
- वैश्विक प्रभाव के लिये महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना: भारत को पोषण अभियान और मिशन शक्ति जैसे मंचों के माध्यम से मातृ एवं बाल स्वास्थ्य को लक्षित करने वाले कार्यक्रमों को आगे बढ़ाना चाहिये।
- इन कार्यक्रमों को विश्व स्तर पर, विशेषकर दक्षिण एशिया और अफ्रीका में विस्तारित करने से दुनिया भर में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी आ सकती है।
- एमएमआर को प्रति लाख जीवित जन्मों पर 97 तक कम करने तथा संस्थागत प्रसव दर में वृद्धि करने में भारत की सफलता ने इसे लैंगिक स्वास्थ्य असमानताओं को दूर करने के लिये एक आदर्श के रूप में स्थापित किया है।
- स्वच्छ भारत और स्वास्थ्य पहलों का संयोजन: स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) को स्वास्थ्य कार्यक्रमों के साथ जोड़ने से स्वच्छता संबंधी स्वास्थ्य परिणामों में सुधार हो सकता है, जैसे कि विश्व स्तर पर दस्त संबंधी बीमारियों को कम करना।
- भारत में अब तक लगभग 95% गाँवों ने स्वयं को “खुले में शौच मुक्त प्लस” घोषित कर दिया है, भारत स्वच्छता की कमी वाले क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने के लिये इस पहल को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ा सकता है।
- स्वास्थ्य उत्पादों के लिये वैश्विक आपूर्ति शृंखला अनुकूलन में सुधार: भारत को फार्मास्यूटिकल और एपीआई (सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री) क्षेत्रों को मज़बूत करके वैश्विक स्वास्थ्य आपूर्ति शृंखला अनुकूलन बढ़ाना चाहिये।
- API और थोक दवाओं के लिये PLI जैसी योजनाओं में निवेश, अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका में व्यापार साझेदारी के साथ मिलकर भारत को एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्त्ता के रूप में स्थापित कर सकता है।
- भारत विश्व भर में वहनीय जेनरिक और चिकित्सा उपकरणों के निर्यात को बढ़ाने के लिये व्यापार समझौतों का भी लाभ उठा सकता है।
निष्कर्ष:
भारत के वैश्विक स्वास्थ्य अभिकर्त्ता के रूप में उभरने की संभावना वैक्सीन कूटनीति, डिजिटल स्वास्थ्य और पारंपरिक चिकित्सा में अपनी उपलब्धियों का लाभ उठाने में निहित है, साथ ही स्वास्थ्य व्यय, बुनियादी ढाँचे एवं अनुसंधान तथा विकास में महत्त्वपूर्ण अंतराल को संबोधित करना है। रोगाणुरोधी प्रतिरोध और जलवायु से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों जैसी चुनौतियों से निपटकर, भारत सतत् एवं समावेशी वैश्विक स्वास्थ्य शासन के लिये एक उदाहरण स्थापित कर सकता है। रणनीतिक सुधारों और निवेशों के साथ, भारत वैश्विक स्वास्थ्य प्रणालियों को बदल सकता है और दुनिया भर में समानता को बढ़ावा दे सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत के स्वास्थ्य सेवा प्रशासन में वैश्विक नेतृत्व के उभरने में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों पर चर्चा कीजिये। साथ ही, विश्व मंच पर इसकी भूमिका को सुदृढ़ करने में सामने आने वाली चुनौतियों और अवसरों का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1: निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: A मेन्स:प्रश्न1: “कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता होने के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना सतत् विकास के लिये एक आवश्यक पूर्व शर्त है।" परीक्षण कीजिये। (2021) प्रश्न2. भारत में 'सभी के लिये स्वास्थ्य' प्राप्त करने के लिये उपयुक्त स्थानीय समुदाय-स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेप एक पूर्वापेक्षा है। विश्लेषण कीजिये। (2018) |