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भारतीय अर्थव्यवस्था

क्रिटिकल मिनरल्स के लिये भारत का रोडमैप

  • 23 Jan 2025
  • 37 min read

यह एडिटोरियल 23/01/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “China’s moves must recast India’s critical minerals push” पर आधारित है। इस लेख में नीतिगत सुधारों के बावजूद भारत की सीमित प्रगति समेत दुर्लभ मृदा तत्त्वों पर चीन का रणनीतिक नियंत्रण तथा इसकी खनन क्षमता का दोहन करने के लिये महत्त्वपूर्ण राजकोषीय प्रोत्साहन एवं पूंजीगत सहायता की आवश्यकताओं को भी उजागर किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

क्रिटिकल मिनरल्स, खान और खनिज संशोधन अधिनियम, जम्मू और कश्मीर में लिथियम भंडार, दुर्लभ मृदा तत्त्व आयात, आत्मनिर्भर भारतचंद्रयान -3 मिशन, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24भारत की 10 बिलियन डॉलर की सेमीकंडक्टर पहल, चीन की बेल्ट एंड रोड पहल, खनिज सुरक्षा साझेदारी, राष्ट्रीय सौर मिशन  

मेन्स के लिये:

क्रिटिकल मिनरल्स का महत्त्व, क्रिटिकल मिनरल्स के संबंध में भारत के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ। 

उच्च तकनीकी उद्योगों के लिये आवश्यक क्रिटिकल मिनरल्स पर चीन का रणनीतिक नियंत्रण वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक तनाव को बढ़ा रहा है। खान और खनिज संशोधन अधिनियम जैसे नीतिगत सुधारों के बावजूद भारत ने सीमित विदेशी निवेश के साथ उपलब्ध ब्लॉक में से केवल 48% की नीलामी की है। लिथियम और दुर्लभ पृथ्वी तत्त्वों जैसे रणनीतिक खनिज तीव्रता से राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हुए हैं। हालाँकि, अन्वेषण और वर्गीकरण में प्रणालीगत बाधाएँ प्रगति में बाधा डालती हैं। अपनी खनिज क्षमता को अनलॉक करने के लिये, भारत को सेमीकंडक्टर निवेश मॉडल के समान आक्रामक राजकोषीय प्रोत्साहन एवं अग्रिम पूंजी समर्थन पर विचार करना चाहिये।

क्रिटिकल मिनरल्स क्या हैं?

  • क्रिटिकल मिनरल्स के संदर्भ में: क्रिटिकल मिनरल्स वे खनिज हैं जो किसी देश के आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये आवश्यक हैं। 
    • उनकी सीमित उपलब्धता या कुछ भौगोलिक स्थानों तक ही सीमित निष्कर्षण और प्रसंस्करण से आपूर्ति शृंखला में कमज़ोरियाँ उत्पन्न हो सकती हैं या महत्त्वपूर्ण उद्योगों में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
  • वैश्विक महत्त्व: लिथियम, ग्रेफाइट, कोबाल्ट, टाइटेनियम और दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व जैसे क्रिटिकल मिनरल्स भविष्य की वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं का आधार हैं और उच्च तकनीक वाले इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार, परिवहन रक्षा जैसे क्षेत्रों के लिये अपरिहार्य हैं। वे नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के माध्यम से वैश्विक नेट ज़ीरो प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने के लिये शून्य कार्बन अर्थव्यवस्था में संक्रमण के लिये भी महत्त्वपूर्ण हैं।
  • भारत में क्रिटिकल मिनरल्स की पहचान: क्रिटिकल मिनरल्स के महत्त्व को समझते हुए, भारत सरकार ने तीन-चरणीय मूल्यांकन प्रक्रिया के माध्यम से 30 क्रिटिकल मिनरल्स का अभिनिर्धारण किया है।
    • इस सूची में लिथियम, कोबाल्ट, निकल, दुर्लभ मृदा तत्त्व, टाइटेनियम, मॉलिब्डेनम और वैनेडियम आदि शामिल हैं। 
    • चयन के लिये प्रयुक्त मापदंडों में संसाधन की उपलब्धता, आयात पर निर्भरता तथा भविष्य की प्रौद्योगिकियों, स्वच्छ ऊर्जा और कृषि के लिये उनका महत्त्व शामिल हैं।
  • गंभीरता को प्रभावित करने वाले कारक:

Economic Importance of Critical Minerals

भारत के आर्थिक परिवर्तन में क्रिटिकल मिनरल्स की क्या भूमिका है?

  • भारत के हरित ऊर्जा परिवर्तन को उत्प्रेरित करना: लिथियम, कोबाल्ट और निकल जैसे क्रिटिकल मिनरल्स भारत के नवीकरणीय ऊर्जा और EV अंगीकरण की दिशा में बदलाव के लिये अपरिहार्य हैं।
    • वे लिथियम-आयन बैटरी, सौर पैनल और पवन टर्बाइन जैसी प्रौद्योगिकियों की रीढ़ हैं। 
    • खान एवं खनिज अधिनियम में वर्ष 2023 के संशोधन तथा जम्मू और कश्मीर में 5.9 मिलियन टन लिथियम भंडार का अन्वेषण, घरेलू क्षमता विकसित करने की भारत के उद्देश्य को रेखांकित करते हैं। 
    • विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये ग्रेफाइट, लिथियम और कोबाल्ट जैसे खनिजों का उत्पादन वर्ष 2050 तक 500% तक बढ़ सकता है, क्योंकि भारत ने वर्ष 2070 तक ग्रीनहाउस गैसों (GHG) का शुद्ध-शून्य उत्सर्जक बनने का लक्ष्य रखा है।
  • सामरिक स्वायत्तता बढ़ाना और आयात निर्भरता कम करना: क्रिटिकल मिनरल्स आयात पर भारत की अत्यधिक निर्भरता को कम करने में मदद करते हैं, विशेष रूप से चीन से, जो वैश्विक दुर्लभ पृथ्वी आपूर्ति शृंखला पर हावी है। 
    • हालाँकि, वर्तमान में भारत अपने दुर्लभ मृदा तत्त्व आयात का 60% चीन से प्राप्त करता है। घरेलू खनन का विस्तार करके भारत अर्द्धचालक, एयरोस्पेस और रक्षा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में अपनी विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ा सकता है।
  • भारत के इलेक्ट्रिक वाहन (EV) पारिस्थितिकी तंत्र में तीव्रता लाना: वर्ष 2030 तक 30% EV प्रवेश का भारत का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य बैटरी निर्माण के लिये दुर्लभ मृदा तत्त्वों तक पहुँच पर निर्भर करता है।
    • स्वदेशी उत्पादन से बैटरी की लागत कम हो सकती है, जिससे इलेक्ट्रिक वाहन अधिक किफायती और सुलभ हो जाएंगे। 
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 का अनुमान है कि भारत के इलेक्ट्रिक वाहन बाज़ार में वर्ष 2022 और 2030 के दौरान 49% चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि (CAGR) देखी जाएगी।
    • क्रिटिकल मिनरल्स निवेश साझेदारी (वर्ष 2022) के तहत ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत का सहयोग और विदेशों में लिथियम एवं कोबाल्ट को सुरक्षित करने के लिये KABIL के हालिया प्रयास, आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करने में वैश्विक साझेदारी के महत्त्व को उजागर करते हैं।  
  • सेमीकंडक्टर और उच्च तकनीक विनिर्माण को समर्थन: सेमीकंडक्टर, जो भारत की डिजिटल और औद्योगिक क्रांति के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, गैलियम और जर्मेनियम जैसे क्रिटिकल मिनरल्स पर निर्भर हैं।
  • आर्थिक विकास और रोज़गार को बढ़ावा देना: क्रिटिकल मिनरल्स के घरेलू अन्वेषण और खनन से एक नया औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने, रोज़गार सृजन करने एवं सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ावा देने की क्षमता है। 
    • सरकार द्वारा 30 क्रिटिकल मिनरल्स का अभिनिर्धारण तथा निजी भागीदारों के लिये अन्वेषण लाइसेंस जैसे सुधारों से निवेश का जोखिम कम होने तथा विदेशी भागीदारों के आकर्षित होने की उम्मीद है। 
  • भारत की वैश्विक व्यापार स्थिति को सुदृढ़ करना: दुर्लभ मृदा तत्त्व भारत के निर्यात को बढ़ा सकते हैं, व्यापार घाटे को कम कर सकते हैं और नए आर्थिक अवसर उत्पन्न कर सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिये, प्रसंस्कृत क्रिटिकल मिनरल्स का निर्यात फार्मास्यूटिकल्स और IT सेवाओं में भारत की सफलता को प्रतिबिंबित कर सकता है। 
    • चूँकि वैश्विक दुर्लभ मृदा तत्त्व प्रसंस्करण में चीन का योगदान 90% है, इसलिये भारत आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने और वैश्विक बाज़ारों पर कब्जा करने के लिये अपने स्वयं के भंडार एवं KABIL साझेदारी का लाभ उठा सकता है।
  • तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देना: क्रिटिकल मिनरल्स AI, रोबोटिक्स और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में प्रगति को रेखांकित करते हैं, जो सीधे तौर पर आत्मनिर्भर भारत के तहत तकनीकी आत्मनिर्भरता के लिये भारत के दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं।
    • भारत का चंद्रयान -3 मिशन (वर्ष 2023) और गगनयान मिशन (आगामी) एयरोस्पेस एवं रक्षा में बेरिलियम, टंगस्टन व दुर्लभ मृदा तत्त्व के सामरिक महत्त्व को उजागर करते हैं।
    • वर्तमान में भारत बेरिलियम के लिये आयात पर निर्भर है, लेकिन घरेलू उत्पादन से लागत कम करने और आपूर्ति सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।
  • भारत की ऊर्जा भंडारण आवश्यकताओं को सुरक्षित करना: ऊर्जा भंडारण समाधान ग्रिड स्थिरता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, विशेष रूप से इसलिये क्योंकि भारत वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा प्रतिष्ठानों का विस्तार कर रहा है। 
    • वैनेडियम और ग्रेफाइट जैसे खनिज, प्रवाह बैटरी एवं सुपरकैपेसिटर जैसी ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों के अभिन्न अंग हैं। 

क्रिटिकल मिनरल्स के संबंध में भारत के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • आयात पर अत्यधिक निर्भरता: भारत क्रिटिकल मिनरल्स के लिये आयात पर बहुत अधिक निर्भर है, जिससे इसके रणनीतिक उद्योग वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधानों और भू-राजनीतिक तनावों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं। 
    • लिथियम, कोबाल्ट, गैलियम और दुर्लभ मृदा तत्त्व जैसे खनिज हरित ऊर्जा, अर्द्धचालक व रक्षा क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, फिर भी चीन उनकी वैश्विक आपूर्ति एवं प्रसंस्करण के 80-90% पर हावी है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत अपनी जर्मेनियम आवश्यकताओं का 100% आयात करता है, जिससे उसे इन खनिजों पर चीन की वर्ष 2023 की सख्त निर्यात नीतियों का सामना करना पड़ेगा (हालाँकि यह मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका को लक्षित है, लेकिन इसके वैश्विक निहितार्थ हैं)।
  • सीमित घरेलू अन्वेषण और खनन: क्रिटिकल मिनरल्स के लिये भारत का घरेलू अन्वेषण अपर्याप्त बना हुआ है, जिससे निर्भरता कम करने और स्वदेशी भंडारों से लाभ उठाने की इसकी क्षमता बाधित हो रही है। 
    • विस्तृत भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षणों का अभाव और पुरानी अन्वेषण तकनीकें निजी निवेश को हतोत्साहित करती हैं। 
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2020 और 2023 के दौरान नीलाम किये गए खनिज ब्लॉक में से केवल 48% ही बेचे गए तथा कई नीलाम किये गए ब्लॉक में G1 या G2-स्तर के अन्वेषण डेटा का अभाव है, जिससे वे व्यावसायिक रूप से अनाकर्षक हो जाते हैं।
  • प्रसंस्करण और शोधन क्षमता का अविकसित होना: यद्यपि भारत में कुछ क्रिटिकल मिनरल्स के भंडार हैं, लेकिन मूल्य-संवर्द्धित प्रसंस्करण के लिये बुनियादी अवसंरचना का अभाव है, जिसके कारण उसे डाउनस्ट्रीम उद्योगों के लिये बाह्य भागीदारों पर निर्भर रहना पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत ने जम्मू और कश्मीर में लिथियम का अन्वेषण किया है, लेकिन घरेलू स्तर पर इसे संसाधित करने के लिये शोधन क्षमता का अभाव है। 
    • इसके विपरीत, चीन वैश्विक दुर्लभ मृदा तत्त्वों के 90% से अधिक का प्रसंस्करण करता है, जिससे वह उन्नत प्रौद्योगिकियों की वैश्विक आपूर्ति शृंखला पर हावी हो जाता है।
      • इसके अलावा, भारत में क्रिटिकल मिनरल्स के खनन और प्रसंस्करण के लिये कुशल कार्यबल उन्नत प्रौद्योगिकी का अभाव है, जिससे इसके उद्योग की दक्षता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम हो रही है। 
  • नीतिगत और विनियामक अंतराल: क्रिटिकल मिनरल्स के लिये भारत की नीतिगत रूपरेखा में सुधार तो हो रहा है, लेकिन इसमें विसंगतियाँ हैं और निवेशकों का विश्वास कम है।
    • यद्यपि वर्ष 2023 के खान एवं खनिज अधिनियम में अन्वेषण लाइसेंसों की शुरुआत की गई, लेकिन इसका क्रियान्वयन धीमा रहा है, केवल कुछ ही लाइसेंस स्वीकृत किये गए हैं और अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को दिये गए हैं। 
    • इसके अलावा, निजी भागीदारों के लिये राजकोषीय प्रोत्साहनों के अभाव के कारण उनकी रुचि कम हुई है, तथा भारत अन्वेषण एवं खनन गतिविधियों में सीमित विदेशी भागीदारी आकर्षित कर रहा है।
  • भू-राजनीतिक जोखिम और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा: हरित ऊर्जा परिवर्तन के कारण क्रिटिकल मिनरल्स के लिये वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा तीव्र हो गई है, जिससे भारत की विदेशी खनिज भंडारों तक पहुँच सीमित हो गई है।
    • अमेरिका, चीन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश खनिज आपूर्ति के लिये अन्य देशों के साथ विशेष समझौते कर रहे हैं, जिससे भारत पीछे रह गया है। 
    • उदाहरण के लिये, चीन की बेल्ट एंड रोड पहल अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से खनिज संसाधनों को सुरक्षित करती है, जबकि भारत की खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) ने अर्जेंटीना और ऑस्ट्रेलिया से लिथियम व कोबाल्ट प्राप्त करने में केवल मामूली प्रगति की है।
  • पर्यावरणीय और सामाजिक चिंताएँ: क्रिटिकल मिनरल्स खनन प्रायः पर्यावरणीय क्षरण और सामाजिक विस्थापन से जुड़ा होता है, जिसके कारण स्थानीय समुदायों का विरोध होता है। 
    • उदाहरण के लिये, जम्मू और कश्मीर में भारत के लिथियम भंडार पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में स्थित हैं, जिससे जल प्रदूषण एवं जैवविविधता के ह्रास की चिंता बढ़ रही है। 
    • इसके अतिरिक्त, भारत के निम्नस्तरीय प्रबंधन वाले खनन क्षेत्र ने भी काफी नुकसान पहुँचाया है, जैसा कि बेल्लारी खनन घोटाले में देखा गया है, जो खनिज निष्कर्षण में व्यापक प्रशासनिक चुनौतियों को दर्शाता है।
  • उच्च प्रारंभिक लागत और विलंबित प्रतिफल: क्रिटिकल मिनरल्स के खनन के लिये पर्याप्त प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता होती है, तथा प्रतिफल प्राप्त होने में प्रायः लंबी अवधि लग जाती है। 
    • उदाहरण के लिये, अन्वेषण से उत्पादन तक संक्रमण में 10-15 वर्ष लग सकते हैं, जिससे निजी भागीदारों के लिये यह वित्तीय रूप से जोखिम भरा हो सकता है। 
    • भारत द्वारा अन्वेषण लागत की प्रतिपूर्ति उत्पादन शुरू होने के बाद ही करने के निर्णय ने, बल्कि अग्रिम भुगतान के कारण, निवेशकों को हतोत्साहित किया है, जैसा कि वर्ष 2023 के सुधारों के तहत शुरू किये गए अन्वेषण लाइसेंस की सीमित सफलता से देखा जा सकता है।
  • पुनर्चक्रण और कमजोर चक्रीय अर्थव्यवस्था कार्यढाँचा: क्रिटिकल मिनरल्स के लिये भारत का पुनर्चक्रण उद्योग अविकसित है, जिसके परिणामस्वरूप ई-अपशिष्ट और औद्योगिक स्क्रैप से संसाधन निकालने के अवसर नष्ट हो रहे हैं।
    • भारत में इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट (ई-अपशिष्ट) उत्पादन में पिछले पाँच वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो सत्र 2019-20 में 1.01 मिलियन मीट्रिक टन (MT) से बढ़कर सत्र 2023-24 में 1.751 मिलियन मीट्रिक टन हो गया है।
      • इस ई-अपशिष्ट में कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा तत्त्व जैसे क्रिटिकल मिनरल्स शामिल हैं, लेकिन पुनर्चक्रण क्षमता अनौपचारिक क्षेत्रों तक ही सीमित है। 
    • इसके विपरीत, जापान जैसे देशों ने उन्नत पुनर्चक्रण के माध्यम से दुर्लभ मृदा तत्त्वों पर निर्भरता की समस्या का समाधान किया, जिससे आयात पर उनकी निर्भरता काफी कम हो गई।
  • निर्यात प्रतिबंध और व्यापार बाधाएँ: संसाधन संपन्न देशों की संरक्षणवादी नीतियों के कारण भारत को क्रिटिकल मिनरल्स तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो उनकी घरेलू जरूरतों को प्राथमिकता देते हैं। 
    • उदाहरण के लिये, EV बैटरियों के लिये एक प्रमुख पदार्थ, निकेल पर इंडोनेशिया के निर्यात प्रतिबंध ने वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर दिया है, जिससे भारत की EV और बैटरी उत्पादन महत्त्वाकांक्षाएँ प्रभावित हुई हैं।
    • इसी प्रकार, अर्जेंटीना और चिली जैसे देशों में ‘संसाधन राष्ट्रवाद’ की बढ़ती प्रवृत्ति, विदेशी साझेदारी के माध्यम से स्थिर खनिज आपूर्ति सुनिश्चित करने के भारत के प्रयासों को जटिल बना रही है।

Major import sources for Critical Minerals of India

भारत अपनी क्रिटिकल मिनरल्स आपूर्ति शृंखला को सुरक्षित करने एवं प्रसंस्करण क्षमताओं को बढ़ाने के लिये क्या उपाय अपना सकता है?

  • क्रिटिकल मिनरल्स के लिये केंद्रीकृत राष्ट्रीय प्राधिकरण: भारत को क्रिटिकल मिनरल्स के अन्वेषण, अधिग्रहण, प्रसंस्करण और पुनर्चक्रण की देखरेख के लिये एक एकीकृत निकाय की आवश्यकता है। 
    • इस निकाय को मंत्रालयों के प्रयासों में समन्वय करना चाहिये, निर्णय लेने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना चाहिये तथा प्रयासों की पुनरावृत्ति से बचने के लिये घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय नीतियों को संरेखित करना चाहिये। 
    • खान मंत्रालय द्वारा गठित सात सदस्यीय समिति द्वारा की गई अनुशंसा के अनुसार क्रिटिकल मिनरल्स के लिये उत्कृष्टता केंद्र (CECM) की स्थापना करना सही दिशा में उठाया गया कदम है। 
  • क्रिटिकल मिनरल्स के रणनीतिक भंडार का विकास: भारत को आपूर्ति झटकों, मूल्य अस्थिरता और भू-राजनीतिक व्यवधानों से सुरक्षा के लिये क्रिटिकल मिनरल्स का रणनीतिक भंडार स्थापित करना चाहिये।
    • इसे चीन की दुर्लभ मृदा तत्त्वों के भंडारण की रणनीति के आधार पर देखा जा सकता है, जिसमें लिथियम, कोबाल्ट और गैलियम जैसे उच्च प्राथमिकता वाले खनिजों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत उन खनिजों को प्राथमिकता दे सकता है जिनकी आयात पर निर्भरता सबसे अधिक है (जैसे: जर्मेनियम और गैलियम का 100% आयात) तथा इलेक्ट्रिक वाहन विनिर्माण एवं अर्द्धचालक जैसे उद्योगों के लिये भंडार बनाए रखने हेतु बजटीय सहायता आवंटित कर सकता है।
  • अन्वेषण और प्रसंस्करण के लिये अग्रिम वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना: अन्वेषण में निजी निवेश की कमी को दूर करने के लिये, सरकार को प्रारंभिक चरण के अन्वेषण और प्रसंस्करण उपक्रमों को जोखिम मुक्त करने की दिशा में सब्सिडी, कर छूट या सॉफ्ट लोन जैसे अग्रिम वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, उत्पादन के बाद ही अन्वेषण लागत की प्रतिपूर्ति करने के बजाय (वर्ष 2023 खान और खनिज अधिनियम के अनुसार), सरकार अन्वेषण चरण के दौरान प्रत्यक्ष पूंजी सहायता प्रदान कर सकती है। 
    • यह दृष्टिकोण भारत की सेमीकंडक्टर PLI योजना में सफल रहा है, जहाँ अग्रिम प्रोत्साहनों ने माइक्रोन टेक्नोलॉजी जैसी प्रमुख कंपनियों को आकर्षित किया।
  • अन्वेषण और शोधन में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देना: निजी भागीदारों के साथ सहयोग करने से खनन और प्रसंस्करण क्षेत्रों में उन्नत प्रौद्योगिकियाँ, निवेश एवं विशेषज्ञता आ सकती है। 
    • सरकार अन्वेषण लाइसेंस के लिये एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी कार्यढाँचा विकसित कर सकती है, जिसमें भारतीय और विदेशी दोनों कंपनियों को आकर्षित करने के लिये इक्विटी भागीदारी और जोखिम-साझाकरण मॉडल की पेशकश की जा सकती है। 
    • उदाहरण के लिये, ऑस्ट्रेलिया की लिनास रेयर अर्थ्स या टेस्ला (बैटरी सामग्री) जैसी वैश्विक अग्रणी कंपनियों के साथ साझेदारी से भारत को अपनी घरेलू प्रसंस्करण क्षमताओं को बढ़ाने तथा आयात निर्भरता को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • खनिज कूटनीति का लाभ उठाना: भारत को खनिज सुरक्षा साझेदारी (MSP) और क्वाड के महत्त्वपूर्ण एवं उभरते प्रौद्योगिकी फोरम जैसे वैश्विक गठबंधनों में अपनी भागीदारी का विस्तार करना चाहिये। 
    • ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और चिली जैसे संसाधन संपन्न देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते से लिथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा तत्त्व जैसे खनिजों की विविध एवं स्थायी आपूर्ति सुनिश्चित हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिये, ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत की वर्ष 2022 की क्रिटिकल मिनरल्स निवेश साझेदारी का विस्तार किया जाना चाहिये, ताकि इसमें शोधन और प्रसंस्करण में संयुक्त उद्यमों को शामिल किया जा सके, जिससे भारत के भीतर मूल्य संवर्द्धन सुनिश्चित हो सके।
  • डाउनस्ट्रीम उद्योगों के घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करना: भारत को आयात पर निर्भरता कम करने के लिये लिथियम-आयन बैटरी, सौर पैनल और EV घटकों जैसे क्रिटिकल मिनरल्स-आधारित उत्पादों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना चाहिये।
    • सरकार क्रिटिकल मिनरल्स से एंड-यूज़-प्रोडक्ट्स बनाने वाले उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिये PLI योजनाओं का विस्तार कर सकती है।
    • उदाहरण के लिये, एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल के समान इसके लिये एक समर्पित PLI योजना, पैनासोनिक या CATL जैसी वैश्विक कंपनियों को घरेलू खनिज आपूर्ति द्वारा समर्थित भारत में उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करने के लिये आकर्षित कर सकती है।
  • पुनर्चक्रण और वृत्तीय अर्थव्यवस्था पहल में तीव्रता लाना: क्रिटिकल मिनरल्स की मांग को कम करने के लिये, भारत को उन्नत पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों में निवेश करना चाहिये तथा ई-अपशिष्ट एवं औद्योगिक स्क्रैप के लिये औपचारिक पुनर्चक्रण पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करना चाहिये। 
    • प्रयुक्त इलेक्ट्रॉनिक्स और बैटरियों के लिये अनिवार्य टेक-बैक स्कीम जैसी नीतियों से कोबाल्ट, निकल और दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसे खनिजों की प्राप्ति को बढ़ावा मिल सकता है।
    • उदाहरण के लिये, बेंगलुरू और हैदराबाद (प्रमुख ई-अपशिष्ट उत्पादक) जैसे शहरों में औपचारिक रीसाइक्लिंग केंद्र स्थापित करने से आयात पर निर्भरता कम हो सकती है, साथ ही स्थायित्व को बढ़ावा मिल सकता है।
  • उन्नत खनन और प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश: भारत को खनन और प्रसंस्करण कार्यों की दक्षता में सुधार के लिये AI-आधारित अन्वेषण, स्व-स्थाने निक्षालन और विलायक निष्कर्षण जैसी नवीन प्रौद्योगिकियों के लिये अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
    • CSIR और IIT जैसे संस्थानों के तहत क्रिटिकल मिनरल्स के लिये समर्पित अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थापित करने से प्रौद्योगिकी अपनाने में तीव्रता आ सकती है। 
    • उदाहरण के लिये, उन्नत प्रसंस्करण तकनीक भारत को ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों में निम्न-श्रेणी के अयस्कों का उपयोग करने में मदद कर सकती है, जो अकुशल पुनर्प्राप्ति विधियों के कारण अल्प-दोहन किये गए हैं।
  • संसाधन समृद्ध क्षेत्रों में बुनियादी अवसंरचना का निर्माण: दूरदराज़ के क्षेत्रों में क्रिटिकल मिनरल्स भंडार की क्षमता को अनलॉक करने के लिये, भारत को सड़क, रेलवे, बिजली आपूर्ति और प्रसंस्करण सुविधाओं सहित बुनियादी अवसंरचना में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, अपर्याप्त कनेक्टिविटी के कारण अरुणाचल प्रदेश के समृद्ध खनिज भंडार का दोहन नहीं हो पाया है; इन क्षेत्रों को भारतमाला और सागरमाला परियोजनाओं के साथ एकीकृत करने से लागत प्रभावी परिवहन संभव हो सकता है। 
    • इसके अलावा, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक जैसे खनिज समृद्ध क्षेत्रों में एकीकृत खनन और प्रसंस्करण क्लस्टर स्थापित करने से रसद संबंधी अकुशलताएँ कम हो सकती हैं।
  • भारत की ऊर्जा सुरक्षा नीति में क्रिटिकल मिनरल्स को एकीकृत करना: भारत के ऊर्जा सुरक्षा लक्ष्यों (वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता) को सौर पैनलों, पवन टर्बाइनों और बैटरी भंडारण के लिये निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु इसकी क्रिटिकल मिनरल्स रणनीति के साथ संरेखित किया जाना चाहिये। 
    • उदाहरण के लिये, राष्ट्रीय सौर मिशन और राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना में सिलिकॉन, वैनेडियम व लिथियम जैसे खनिजों को सुरक्षित करने के लिये समर्पित बजट होना चाहिये। 
    • राष्ट्रीय ऊर्जा और खनिज सुरक्षा योजना बनाने से भारत की ऊर्जा परिवर्तन की आपूर्ति शृंखला आवश्यकताओं को समग्र रूप से पूरा किया जा सकता है।
  • हरित खनन नीति स्थापित करना: पर्यावरणीय और सामाजिक चिंताओं को दूर करने के लिये, भारत को जल प्रबंधन, जैवविविधता संरक्षण और विस्थापित समुदायों के पुनर्वास सहित संधारणीय प्रथाओं के लिये दिशानिर्देशों के साथ एक हरित खनन नीति लागू करनी चाहिये। 
    • खनन कार्यों में नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग तथा कार्बन कैप्चर जैसी स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण से पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत विकास और संवहनीयता के बीच संतुलन बनाने हेतु जम्मू और कश्मीर के लिथियम भंडार जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में परियोजनाओं के लिये हरित प्रमाणन को अनिवार्य बना सकता है।
  • क्रिटिकल मिनरल्स क्षेत्रों में कौशल विकास को बढ़ावा देना: भारत को तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में क्रिटिकल मिनरल्स को एकीकृत करके अन्वेषण, खनन एवं प्रसंस्करण के लिये कुशल पेशेवरों को जोड़ना चाहिये।
    • खनन प्रौद्योगिकियों में विशेषज्ञता रखने वाले वैश्विक विश्वविद्यालयों (जैसे: वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय) के साथ सहयोग में उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने से भारत के कार्यबल को अत्याधुनिक उपकरणों को संचालित करने के लिये आवश्यक विशेषज्ञता मिल सकती है। 
    • उदाहरण के लिये, दुर्लभ मृदा तत्त्वों के प्रसंस्करण पर केंद्रित प्रशिक्षण कार्यक्रम विदेशी विशेषज्ञों पर भारत की निर्भरता को कम कर सकते हैं।

निष्कर्ष: 

भारत के ऊर्जा संक्रमण, आर्थिक विकास और रणनीतिक स्वायत्तता के लिये क्रिटिकल मिनरल्स महत्त्वपूर्ण हैं। वैश्विक भागीदारी का लाभ उठाते हुए अन्वेषण, प्रसंस्करण और पुनर्चक्रण में अंतराल को समाप्त करने से आयात निर्भरता कम हो सकती है। संधारणीय अभ्यास, बुनियादी अवसंरचना विकास और अनुसंधान एवं विकास निवेश आपूर्ति शृंखलाओं को सुदृढ़ कर सकते हैं। उच्च तकनीक और हरित उद्योगों में भारत के भविष्य को सुरक्षित करने के लिये एक एकीकृत दृष्टिकोण आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. “भारत की हरित अर्थव्यवस्था और तकनीकी उन्नति के लिये क्रिटिकल मिनरल्स आवश्यक हैं”। क्रिटिकल मिनरल्स आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करने से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और उनकी संधारणीय एवं रणनीतिक उपलब्धता सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइये। (250 शब्द)

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. भारत में गौण खनिज के प्रबंधन के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:   (2019)

  1. इस देश में विद्यमान विधि के अनुसार रेत एक 'गौण खनिज' है।
  2. गौण खनिजों के खनन पट्टे प्रदान करने की शक्ति राज्य सरकारों के पास है, किंतु गौण खनिजों को प्रदान करने से संबंधित नियमों को बनाने के बारे में शक्तियाँ केंद्र सरकार के पास हैं।
  3. गौण खनिजों के अवैध खनन को रोकने के लिये नियम बनाने की शक्ति राज्य सरकारों के पास है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न 2. भारत में 'ज़िला खनिज प्रतिष्ठान (डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन्स)' का/के उद्देश्य क्या है/हैं?   (2016) 

  1. खनिज-सम्पन्न ज़िलों में खनिज-खोज संबंधी क्रियाकलापों को प्रोत्साहित करना
  2. खनिज-कार्य से प्रभावित लोगों के हितों की रक्षा करना
  3. राज्य सरकारों को खनिज-खोज के लिये लाइसेंस निर्गत करने के लिये अधिकृत करना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न 1. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देते हैं। विवेचना कीजिये।  (2021)

प्रश्न 2. “प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद, कोयला खनन विकास के लिये अभी भी अपरिहार्य है।” विवेचना कीजिये।  (2017)

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