अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत और चीन: प्रतिद्वंद्विता से तालमेल तक
- 20 Jan 2025
- 31 min read
यह एडिटोरियल 19/01/2025 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “The balancing China question before India” पर आधारित है। इस लेख में अक्तूबर 2024 के दौरान भारत-चीन डिसइंगेजमेंट (सैन्य वापसी) समझौते को सामने लाया गया है तथा इसे चीन के बढ़ते प्रभाव और क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाओं के कारण चल रही चुनौतियों के बीच एक अस्थायी विराम के रूप में उजागर किया गया है। भारत को चीन का प्रतिकार करने और अपनी क्षेत्रीय भूमिका की रक्षा करने के लिये घरेलू सुधारों, वैश्विक भागीदारी और आपूर्ति शृंखला विविधीकरण पर ध्यान देना चाहिये।
प्रिलिम्स के लिये: भारत-चीन, एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक, न्यू डेवलपमेंट बैंक, अक्षय ऊर्जा, सौर ऊर्जा, BASIC समूह (ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, भारत, चीन), एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, चीन का तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन, वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, सेमीकंडक्टर के लिये PLI योजना, मालाबार अभ्यास, दक्षिण चीन सागर
मेन्स के लिये: भारत और चीन के बीच तालमेल के प्रमुख क्षेत्र, भारत और चीन के बीच संघर्ष के प्रमुख क्षेत्र।
अक्तूबर 2024 में भारत-चीन के बीच होने वाले डिसइंगेजमेंट (सैन्य वापसी) समझौते ने अस्थायी राहत प्रदान तो किया है, लेकिन यह उनके संबंधों के गंभीर मुद्दों का स्थायी समाधान नहीं है। चीन का बढ़ता प्रभाव और क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाएँ भारत की रणनीतिक स्थिति को चुनौती देती रही हैं। इस मोड़ पर, भारत को यह तय करना होगा कि आंतरिक सुधारों और वैश्विक भागीदारी के माध्यम से चीन का प्रतिकार करना है या अपनी क्षेत्रीय भूमिका को कम करने का जोखिम उठाना है। आगे की राह चीन के साथ सावधानीपूर्वक जुड़ाव की मांग करता है, जिसमें अनावश्यक संघर्ष से बचना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, भारत को चीन पर निर्भरता कम करने और अपने आर्थिक समुत्थानशीलन को सुदृढ़ करने के लिये अपनी आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लानी चाहिये।
भारत और चीन के बीच तालमेल के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं?
व्यापार और आर्थिक संबंध: भारत और चीन महत्त्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार बन गए हैं, तथा आपसी आर्थिक हित द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं।
मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायनों के लिये चीनी आयात पर भारत की निर्भरता, भारतीय कच्चे माल एवं सॉफ्टवेयर सेवाओं के लिये चीन के आयात की पूरक है।
वित्त वर्ष 2024 में द्विपक्षीय व्यापार 118.40 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जिसमें भारत ने 16.65 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का माल निर्यात किया और 101.74 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के माल का आयात किया।
अवसंरचना वित्तपोषण और कनेक्टिविटी: दोनों देश अवसंरचना परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB) और न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) जैसे बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग करते हैं।
ये मंच क्षेत्रीय बुनियादी अवसंरचना और कनेक्टिविटी में सुधार के साझा लक्ष्य के अनुरूप हैं, जो एशिया में आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
जुलाई 2024 में चीन कलकत्ता सेवा (CCS) के उद्घाटन जैसे हालिया विकास का उद्देश्य व्यापार संपर्क में सुधार करना और पारगमन समय को कम करना है।
जलवायु परिवर्तन और नवीकरणीय ऊर्जा: भारत और चीन दोनों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने और सतत् विकास लक्ष्य प्राप्त करने के लिये वैश्विक प्रयासों के प्रति प्रतिबद्धता जताई है।
बड़ी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के रूप में, ये पेरिस समझौते जैसे कार्यढाँचे के तहत अक्षय ऊर्जा संवर्द्धन, कार्बन न्यूट्रलिटी और क्लाइमेट फाइनेंस जैसे मुद्दों पर एकजुट होते हैं।
चीन सौर ऊर्जा के शीर्ष उत्पादक के रूप में विश्व में अग्रणी है, जो वर्ष 2022 में 105 गीगावाट से अधिक फोटोवोल्टिक (PV) क्षमता स्थापित करेगा, जबकि भारत ने अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीव्रता से 203.18 गीगावाट (वर्ष 2024 तक) तक बढ़ाया है, तथा वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट का लक्ष्य रखा है।
दोनों देशों ने स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन के लिये वित्तीय और तकनीकी सहायता की मांग करने के लिये BASIC समूह (ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, भारत, चीन) जैसे मंचों पर काम किया है।
स्वास्थ्य और फार्मास्युटिकल सहयोग: कोविड-19 विश्वमारी ने भारत के फार्मास्युटिकल उद्योग और चीन की कच्चे माल की आपूर्ति शृंखला के बीच सहयोग की आवश्यकता को उजागर किया है।
चीन भारतीय दवा कंपनियों की 70% आवश्यक API की आपूर्ति करता है।
दोनों देश क्षेत्रीय और वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट (API) और टीकों की आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करने के लिये काम कर रहे हैं।
‘फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड’ अर्थात् विश्व की फार्मेसी के रूप में भारत की भूमिका, विशेष रूप से विकासशील देशों में वैक्सीन वितरण जैसी संयुक्त पहल के दौरान, चीन की उत्पादन क्षमताओं की पूरक है।
पर्यटन और लोगों के बीच समन्वय: पर्यटन और सांस्कृतिक समन्वय में तीव्रता आई है, जिससे आपसी समझ बढ़ी है।
साझी बौद्ध विरासत और शैक्षिक सहयोग में रुचि ने लोगों के बीच संबंधों को मज़बूत किया है।
दिसंबर 2024 में, भारत और चीन कैलाश मानसरोवर यात्रा को प्रारंभ करने, सीमा पार नदी सहयोग और नाथुला सीमा व्यापार सहित ‘छह आम सहमति (Six Consensus)’ पर सहमत हुए।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग: दोनों देशों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), अंतरिक्ष अनुसंधान और 5G दूरसंचार सहित प्रौद्योगिकी में सहयोग की आवश्यकता है।
- यद्यपि प्रतिस्पर्द्धा जारी है, BRICS विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (STI) फ्रेमवर्क जैसे मंच संयुक्त अनुसंधान एवं विकास के अवसर प्रदान करते हैं।
- चीन AI और 5G में वैश्विक अग्रणी है, जबकि भारत ने IT सेवाओं में मज़बूत क्षमताओं का निर्माण किया है, जिसका प्रमाण यह है कि पिछले 5 वर्षों में सेवा व्यापार अधिशेष 13.91% की CAGR से बढ़ा है।
- क्षेत्रीय स्थिरता और आतंकवाद विरोध: दोनों राष्ट्र आर्थिक वृद्धि और विकास सुनिश्चित करने के लिये क्षेत्रीय स्थिरता का लक्ष्य रखते हैं।
- वे भू-राजनीतिक तनावों के बावजूद आतंकवाद-रोधी प्रयासों और म्याँमार एवं अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में सीमावर्ती उग्रवाद के समाधान पर एकजुट होते हैं।
- SCO सदस्य के रूप में, भारत और चीन ने SCO शांति मिशन अभ्यास जैसे संयुक्त आतंकवाद विरोधी अभ्यासों में भाग लिया है।
- अंतरिक्ष अन्वेषण और प्रौद्योगिकी साझाकरण: भारत और चीन के लिये शांतिपूर्ण उद्देश्यों, जैसे: मौसम निगरानी, आपदा प्रबंधन और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये अंतरिक्ष अन्वेषण में अपार संभावनाएँ हैं।
- अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में सहयोग पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने और संसाधन प्रबंधन के लिये क्षेत्रीय क्षमता को प्रबल कर सकता है।
- चीन का तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन और भारत का वर्ष 2035 तक ‘भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन’ निर्माण का लक्ष्य, अंतरिक्ष अन्वेषण में उनकी उन्नत क्षमताओं को उजागर करता है।
- भारत और चीन के बीच संघर्ष के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं?
- सीमा विवाद और सैन्य गतिरोध: वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर अनसुलझे सीमा मुद्दे द्विपक्षीय संबंधों में सबसे विवादास्पद मुद्दे रहे हैं।
- समय-समय पर होते रहे सैन्य गतिरोधों, जैसे कि गलवान घाटी संघर्ष (जून 2020) ने दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ा दिया है और विश्वास को कम किया है।
- कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक वार्ता के बावजूद, दोनों देश पूर्वी लद्दाख और अन्य विवादित क्षेत्रों में सैनिकों की वापसी को लेकर गतिरोध में उलझे हुए हैं।
- व्यापार असंतुलन और आर्थिक चिंताएँ: बढ़ता व्यापार असंतुलन संघर्ष का एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है, भारत चीनी आयात पर बहुत अधिक निर्भर है, जबकि उसके सामानों के लिये बाज़ार में अभिगम सीमित है।
- भारत की चिंताओं में कम लागत वाले चीनी उत्पादों की डंपिंग और चीनी मशीनरी पर निर्भरता शामिल है, जिससे घरेलू उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
- वित्त वर्ष 2024 में, चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 85 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जिसमें आयात 101.74 बिलियन अमेरिकी डॉलर और निर्यात केवल 16.65 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- भारत द्वारा वर्ष 2020 के बाद चीनी निवेश पर प्रतिबंध लगाए जाने से, विशेष रूप से दूरसंचार और फिनटेक जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में, आर्थिक तनाव बढ़ गया है।
- सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी अवसंरचना का विकास: वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन का आक्रामक बुनियादी अवसंरचना विकास जैसे: सड़कें, गाँवों और हवाई पट्टियों का निर्माण, भारत के लिये चिंता का विषय रहा है।
- इन परियोजनाओं का उद्देश्य चीन की सैन्य रसद को बढ़ाना है, जिससे अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में सामरिक संतुलन में बदलाव आएगा।
- चीन पिछले पाँच वर्षों से तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के साथ भारत की सीमा पर 600 से अधिक शियाओकांग सीमा गाँव (समृद्ध गाँवों) का निर्माण कर रहा है, जबकि भारत इसका मुकाबला करने के लिये अपने वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा है।
- पाकिस्तान के प्रति चीन का समर्थन: कश्मीर जैसे विवादास्पद मुद्दों पर समर्थन सहित पाकिस्तान के साथ चीन की घनिष्ठ साझेदारी ने भारत-चीन संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है।
- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के तहत बीजिंग का निवेश पाकिस्तान के अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है, जो भारत की संप्रभुता का उल्लंघन है।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन ने मसूद अज़हर जैसे पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों को वर्ष 2019 तक वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के भारत के प्रयासों को अवरुद्ध कर दिया।
- भारत की वैश्विक आकांक्षाओं का विरोध: चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सीट और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) में सदस्यता के लिये भारत के प्रयास का लगातार विरोध किया है।
- बीजिंग प्रक्रियागत और अप्रसार संबंधी चिंताओं का हवाला देता है, जिससे भारत की अपनी स्थिति के अनुरूप वैश्विक मान्यता प्राप्त करने की क्षमता सीमित हो जाती है।
- अमेरिका जैसे देशों के समर्थन के बावजूद, चीन के कारण भारत की NSG सदस्यता का प्रयास वर्ष 2016 से अवरुद्ध है।
- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI): चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को भारत द्वारा अस्वीकार करने का कारण CPEC पर उसकी संप्रभुता संबंधी चिंताएँ तथा इस पहल की ऋण-जाल कूटनीति के बारे में आशंकाएँ हैं।
- दक्षिण एशिया में BRI के विस्तार को चीन द्वारा भारत के पारंपरिक प्रभाव क्षेत्र पर अतिक्रमण के रूप में देखा जा रहा है।
- श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह सौदा, जो 99 वर्षों के लिये चीन को पट्टे पर दिया गया है, हिंद महासागर में चीन की रणनीतिक उपस्थिति पर भारत की चिंताओं का उदाहरण है।
- सीमा पार की नदियों पर जल विवाद: चीन द्वारा बाँधों के निर्माण और ब्रह्मपुत्र (यारलुंग त्सांगपो) जैसी नदियों की दिशा मोड़ने से भारत में जल प्रवाह तथा पारिस्थितिकी पर संभावित प्रभावों को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- ऊपरी तटवर्ती राज्य होने के नाते, चीन की गतिविधियाँ भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को प्रभावित करती हैं, जिससे जल सुरक्षा को लेकर तनाव उत्पन्न होता है।
- चीन ने वर्ष 2015 में ब्रह्मपुत्र पर ज़ांगमु बाँध का निर्माण कार्य आरंभ कर दिया था तथा उसी नदी के निचले हिस्से में एक बड़े बाँध के निर्माण की योजना की घोषणा की थी।
- चीन पर बहुत ही अहम अवधि के दौरान जल-विज्ञान संबंधी आँकड़े छिपाये रखने का आरोप लगाया गया है, जैसा कि असम में वर्ष 2017 की बाढ़ के दौरान देखा गया था।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: भारत और चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा में लगे हुए हैं, भारत दक्षिण चीन सागर में चीन के सैन्यीकरण का विरोध करता है तथा बीजिंग क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) में भारत की भागीदारी को एक रोकथाम रणनीति के हिस्से के रूप में देखता है।
- भारत क्वाड साझेदारों के साथ मालाबार अभ्यास कर रहा है, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में चीन की आक्रामक कार्रवाइयों का मुकाबला करना है।
- चीन द्वारा अपनी नाइन-डैश लाइन के माध्यम से दक्षिण चीन सागर के 80% से अधिक हिस्से पर किये गए दावे को परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (वर्ष 2016) द्वारा अवैध घोषित किया जा चुका है, जिसका भारत द्वारा भी समर्थन किया गया है।
- साइबर सुरक्षा खतरे और डिजिटल निर्भरता: भारत ने महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना पर चीनी साइबर हमलों और चीनी प्रौद्योगिकी पर बढ़ती निर्भरता पर चिंता जताई है।
- चीनी ऐप्स और निवेशों पर भारत के प्रतिबंध दूरसंचार और फिनटेक जैसे क्षेत्रों में सुरक्षा कमज़ोरियों के संदर्भ में उसकी आशंका को दर्शाते हैं।
- वर्ष 2020 में, भारत ने गलवान संघर्ष के बाद सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए TikTok और WeChat सहित 59 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- वर्ष 2022 में, हैकिंग समूह TAG-38 ने शैडोपैड मैलवेयर का इस्तेमाल किया, जो पहले चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) और राज्य सुरक्षा मंत्रालय से जुड़ा एक टूल था, जिसने चीनी राज्य समर्थित साइबर गतिविधियों के साथ इसके संभावित संबंधों को उजागर किया।
आत्मनिर्भरता और आपूर्ति शृंखला विविधीकरण को सुदृढ़ करते हुए भारत-चीन संबंधों को किस प्रकार संतुलित किया जा सकता है?
- विनिर्माण को मज़बूत करना, क्रमिक वियोजन: भारत गैर-प्रतिस्थापनीय आयातों के लिये चुनिंदा व्यापार संबंधों को बनाए रखते हुए महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दे सकता है।
- उदाहरण के लिये, सेमीकंडक्टर के लिये PLI योजना माइक्रोन टेक्नोलॉजी जैसी वैश्विक कंपनियों को आकर्षित कर रही है, जबकि भारत घरेलू क्षमता बढ़ने तक चीन से उन्नत सिलिकॉन वेफर्स का आयात जारी रख रहा है।
- इसी प्रकार, टैरिफ वृद्धि और स्थानीय विनिर्माण से समर्थित भारत के खिलौना उद्योग ने चीन से आयात कम कर दिया।
- हरित ऊर्जा में सहयोग, विविध साझेदार: भारत साझा चिंताओं को दूर करने के लिये BRICS जैसे बहुपक्षीय जलवायु मंचों पर चीन के साथ जुड़ सकता है, जबकि विविध देशों से नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्त कर सकता है।
- भारत ने इंडो-जर्मन ग्रीन हाइड्रोजन टास्क फोर्स के माध्यम से ग्रीन हाइड्रोजन डेवलपमेंट में जर्मनी के साथ साझेदारी की, जबकि जापान के साथ सौर बैटरी प्रौद्योगिकी अंतरण पर भी वार्ता की।
- इस बीच, भारत घरेलू नवीकरणीय उद्योगों में क्षमता निर्माण के लिये पवन टर्बाइनों में चीन की विशेषज्ञता का लाभ उठा सकता है।
- भारत ने इंडो-जर्मन ग्रीन हाइड्रोजन टास्क फोर्स के माध्यम से ग्रीन हाइड्रोजन डेवलपमेंट में जर्मनी के साथ साझेदारी की, जबकि जापान के साथ सौर बैटरी प्रौद्योगिकी अंतरण पर भी वार्ता की।
- गैर-संवेदनशील क्षेत्रों में संयुक्त उद्यम: महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के लिये स्वदेशी विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए EV विनिर्माण जैसे गैर-संवेदनशील क्षेत्रों में चीनी फर्मों के साथ साझेदारी को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये, चीन की इलेक्ट्रिक वाहन प्रमुख कंपनी BYD द्वारा भारत में विनिर्माण (जैसे ही 'सभी कारक' इसके लिये 'स्वीकृति' प्रदान करेंगे, क्योंकि योजना का निरंतर मूल्यांकन किया जा रहा है) कार्य शुरू किया जाएगा।
- रणनीतिक वार्ता के साथ सीमा विकास: भारत कूटनीतिक संपर्क जारी रखते हुए चीन की आक्रामक उपस्थिति का मुकाबला करने के लिये सीमा पर बुनियादी अवसंरचना का विकास कर सकता है।
- उदाहरण के लिये, भारत के BRO (सीमा सड़क संगठन) ने लद्दाख तक अभिगम में सुधार के लिये अटल सुरंग का निर्माण पूरा किया, जबकि दिसंबर 2024 में भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधियों की 23वीं बैठक के माध्यम से राजनयिक प्रयासों से कुछ क्षेत्रों में तनाव कम हुआ।
- बहुपक्षीय सहयोग, द्विपक्षीय सावधानी: भारत साझा विकास लक्ष्यों के लिये AIIB और SCO जैसे मंचों का लाभ उठा सकता है, जबकि क्वाड जैसी साझेदारी के माध्यम से चीन के प्रभाव को संतुलित कर सकता है।
- उदाहरण के लिये, SCO के क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी कार्यढाँचे में भारत की सक्रिय भागीदारी आतंकवाद-रोधी सहयोग सुनिश्चित करती है, जबकि इसके साथ ही वह सेमीकंडक्टर और दुर्लभ मृदा तत्त्वों की आपूर्ति में विविधता लाने के लिये क्वाड की सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव (SCRI) का उपयोग करता है।
- प्रौद्योगिकी सहयोग, स्वदेशी नवाचार: भारत कृषि के लिये AI जैसे कम संवेदनशील क्षेत्रों में चीन के साथ सहयोग कर सकता है, जबकि महत्त्वपूर्ण तकनीकी क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।
- उदाहरण के लिये, भारत, परिशुद्ध कृषि (AI) में चीन की विशेषज्ञता का लाभ उठा सकता है, जबकि भारतनेट और चंद्रयान मिशन जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से 5G और उपग्रह तकनीक में घरेलू प्रयासों को आगे बढ़ा सकता है।
- व्यापार में विविधता लाना, कूटनीतिक भागीदारी: भारत, चीन के साथ आर्थिक भागीदारी बनाए रखते हुए, ASEAN, दक्षिण कोरिया और अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार साझेदारी को प्रबल करके चीनी आयात पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है।
- उदाहरण के लिये, भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी ने वियतनाम के साथ विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायनों के क्षेत्र में मज़बूत व्यापार संबंधों को बढ़ावा दिया, जिससे चीनी आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता कम हुई।
- समुद्री सुरक्षा, क्षेत्रीय सहभागिता: भारत क्वाड नौसैनिक अभ्यास के माध्यम से नौसैनिक गठबंधनों को मज़बूत कर सकता है, साथ ही हिंद महासागर में तनाव को रोकने के लिये चीन के साथ कूटनीतिक रूप से वार्ता कर सकता है।
- उदाहरण के लिये, भारत ने अंतर-संचालन क्षमता बढ़ाने के लिये अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मालाबार अभ्यास- 2023 आयोजित किया।
- हालाँकि, भारत की सागरमाला परियोजना हंबनटोटा जैसे समुद्र में चीनी प्रभाव को संतुलित करने के लिये रणनीतिक भारतीय बंदरगाहों के विकास को सुनिश्चित करती है।
- दक्षिण एशिया और अफ्रीका में क्षेत्रीय विनिर्माण केंद्र: भारत, चीन के आपूर्ति शृंखला प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिये बांग्लादेश, नेपाल और अफ्रीकी देशों जैसे पड़ोसी देशों में क्षेत्रीय विनिर्माण केंद्र विकसित करने में रणनीतिक रूप से निवेश कर सकता है।
- औद्योगिक पार्कों का निर्माण करके तथा भारतीय कंपनियों को इन क्षेत्रों में परिचालन विस्तार के लिये प्रोत्साहित करके भारत वैकल्पिक आपूर्ति शृंखलाएँ स्थापित सकता है।
- उदाहरण के लिये, भारत वस्त्र निर्माण के लिये इथियोपिया के साथ साझेदारी कर सकता है, जिससे निर्भरता में विविधता आएगी और भू-राजनीतिक सद्भावना उत्पन्न होगी।
- सामरिक क्षेत्रों में दोहरे उपयोग वाली अवसंरचना: भारत पूर्वोत्तर और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में नागरिक तथा सैन्य दोनों आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अवसंरचना विकसित कर सकता है, साथ ही क्षेत्रीय स्थिरता के प्रबंधन के लिये चीन के साथ कूटनीतिक चर्चा भी जारी रख सकता है।
- उदाहरण के लिये, पोर्ट ब्लेयर की रसद क्षमता का विस्तार, संघर्ष को बढ़ाए बिना भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को दर्शाता है।
- इससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आपूर्ति शृंखला संपर्क सुनिश्चित होगा और साथ ही चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति का मुकाबला भी होगा।
- रणनीतिक भण्डारण और भंडार: भारत चीन पर अत्यधिक निर्भरता के कारण होने वाले अल्पकालिक व्यवधानों से बचने के लिये दुर्लभ मृदा तत्त्वों, API और अर्द्धचालक जैसे महत्त्वपूर्ण आयातों के रणनीतिक भंडार बना सकता है।
- उदाहरण के लिये, भारत लिथियम के लिये ऑस्ट्रेलिया और चिली के साथ साझेदारी स्थापित कर सकता है, तथा इलेक्ट्रिक वाहन विनिर्माण जैसे उद्योगों को समर्थन देने के लिये भंडार का निर्माण कर सकता है।
- इससे आपूर्ति शृंखला की समुत्थानशक्ति सुनिश्चित होती है तथा भू-राजनीतिक तनाव के दौरान संत्रास से प्रेरित निर्भरता कम होती है।
- वस्त्र और हस्तशिल्प में भारत की पारंपरिक शक्तियों को पुनर्जीवित करना: वस्त्र और खिलौने जैसे क्षेत्रों में सस्ते चीनी आयात का मुकाबला करने के लिये, भारत ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडिंग के साथ एकीकृत करके पारंपरिक उद्योगों को पुनर्जीवित कर सकता है।
- उदाहरण के लिये, ‘एक ज़िला, एक उत्पाद (ODOP)’ जैसी योजनाओं के तहत उत्पादों का निर्यात करते हुए अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसे प्लेटफॉर्मों के साथ साझेदारी करके पोशमपल्ली सिल्क, बनारसी साड़ियों और भारतीय काष्ठ खिलौनों की पहुँच वैश्विक स्तर पर बढ़ाई जा सकती है।
- इससे निम्न-तकनीकी क्षेत्रों में चीनी आयात पर निर्भरता कम होगी, तथा भारत के MSME इको-सिस्टम तंत्र को बढ़ावा मिलेगा।
निष्कर्ष:
भारत और चीन के बीच संबंधों में तालमेल और संघर्ष दोनों है, जिसके लिये सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता है। यद्यपि व्यापार, जलवायु कार्रवाई और बहुपक्षीय सहयोग जैसे क्षेत्र अवसर प्रदान करते हैं, फिर भी सीमा विवाद, व्यापार असंतुलन और भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता जैसी चुनौतियाँ बनी रहती हैं। भारत को आत्मनिर्भरता और आपूर्ति शृंखला विविधीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए रणनीतिक सावधानी के साथ जुड़ाव को संतुलित करना चाहिये। गठबंधनों को सुदृढ़ करना, घरेलू नवाचार को बढ़ावा देना और आर्थिक समुत्थानशक्ति को बढ़ावा देना आवश्यक है। एक व्यावहारिक और बहुआयामी रणनीति अपनाकर, भारत क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देते हुए अपने हितों की रक्षा कर सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. वैश्विक शक्ति के रूप में भारत का उदय चीन के बढ़ते प्रभाव के प्रति उसकी प्रतिक्रिया से आयाम ले रहा है। इसके आलोक में, चीन के भू-राजनीतिक और आर्थिक विस्तार को संतुलित करने के लिये भारत की रणनीतियों का परीक्षण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. कभी-कभी समाचारों में आने वाला 'बेल्ट ऐन्ड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative)' किसके मामलों के संदर्भ में आता है? (2016) (a) अफ्रीकी संघ उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न 2. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को चीन की अपेक्षाकृत अधिक विशाल 'एक पट्टी एक सड़क' पहल के एक मूलभूत भाग के रूप में देखा जा रहा है। CPEC का एक संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत कीजिये और भारत द्वारा उससे किनारा करने के कारण गिनाइये। (2018) |