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वैश्वीकरण और आर्थिक आत्मनिर्भरता में संतुलन

  • 16 Dec 2024
  • 35 min read

यह एडिटोरियल 10/12/2024 को द फाइनेंशियल एक्सप्रेस में प्रकाशित “Globalisation and India” पर आधारित है। यह लेख संकटों के बीच वैश्वीकरण की समुत्थानशीलता में भारत की यात्रा पर केंद्रित है, जिसने वर्ष 1947 में 2% से वर्ष 2023 में 7.93% तक अपनी वैश्विक आर्थिक हिस्सेदारी बढ़ाई। हालाँकि भारत का भविष्य गहन आर्थिक एकीकरण के साथ आत्मनिर्भरता के संतुलन पर निर्भर है।

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्वीकरण, हिंद महासागर व्यापार नेटवर्क, भुगतान संतुलन संकट, एकीकृत भुगतान इंटरफेस, चंद्रयान- 3 मिशन, ISRO, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस, वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन, सक्रिय औषधि घटक, स्टार्ट-अप इंडिया, रैनसमवेयर अटैक, भारत सेमीकंडक्टर मिशन, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023 

मेन्स के लिये:

भारत पर वैश्वीकरण के प्रमुख सकारात्मक प्रभाव, आत्मनिर्भरता के साथ वैश्वीकरण का संतुलन। 

वैश्वीकरण का विकास जारी है, जो वित्तीय संकटों, महामारी और भू-राजनीतिक तनावों के बावजूद उल्लेखनीय समुत्थानशीलता प्रदर्शित करता है। भारत एक ऐसे महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जहाँ इसकी आर्थिक क्षमता आंशिक रूप से साकार हुई है, फिर भी कम श्रम भागीदारी, आयात प्रतिबंध और सामाजिक-राजनीतिक जटिलताओं जैसी चुनौतियों से बाधित है। स्वतंत्रता काल के दौरान 2% से वर्ष 2023 में 7.93% तक अपनी वैश्विक आर्थिक हिस्सेदारी बढ़ाने के बावजूद, वैश्विक अर्थव्यवस्था में देश का भविष्य अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एकीकरण के साथ आत्मनिर्भरता के संतुलन पर टिका हुआ है।

भारत में वैश्वीकरण के प्रमुख चरण क्या हैं? 

  • पूर्व-औपनिवेशिक काल (प्राचीन और मध्यकालीन भारत):
    • समृद्ध व्यापार: भारत एक प्रमुख वैश्विक व्यापार केंद्र था, जो सिल्क रोड और हिंद महासागर व्यापार नेटवर्क के माध्यम से मसालों, वस्त्रों तथा रत्नों का निर्यात करता था (रोमन बाज़ारों में उत्तम भारतीय मलमल की बहुत मांग थी)।
    • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: व्यापार और यात्रा के माध्यम से बौद्ध धर्म का भारत से चीन, जापान एवं दक्षिण पूर्व एशिया तक विस्तार हुआ।
    • वैज्ञानिक योगदान: भारतीय ज्ञान, जैसे दशमलव प्रणाली का प्रसार अरब व्यापारियों के माध्यम से विश्व स्तर पर हुआ।
  • औपनिवेशिक युग (18वीं - 20वीं शताब्दी):
    • आर्थिक पुनर्गठन: भारत ब्रिटिश उद्योगों के लिये कच्चे माल (जैसे- कपास) के आपूर्तिकर्त्ता के रूप में परिवर्तित हो गया।
      • उदाहरण: तैयार उत्पाद का आयात करते हुए ब्रिटेन को कपास और नील का निर्यात।
    • बुनियादी अवसंरचना का विकास: रेलवे और बंदरगाहों का विकास किया गया, लेकिन इससे औपनिवेशिक हितों को लाभ मिला।
      • उदाहरण: मुंबई बंदरगाह ब्रिटिश साम्राज्य के लिये एक प्रमुख व्यापार केंद्र बन गया।
  • स्वतंत्रता के बाद संरक्षणवाद (वर्ष 1947-1991):
    • आर्थिक अलगाव: आयात प्रतिस्थापन और पंचवर्षीय योजनाओं जैसी नीतियों के तहत आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित किया गया।
      • उदाहरण: आर्थिक संप्रभुता के लिये BHEL और LIC जैसे सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना की गई।
    • सीमित विदेशी संपर्क: व्यापार और FDI प्रतिबंधित थे; भारत वैश्विक बाज़ारों से बहुत हद तक अलग-थलग था।
    • चुनौतियाँ: अकुशल उद्योग, कम वृद्धि (जिसे "हिंदू विकास दर" कहा जाता है) और कम निर्यात होते थे।
  • आर्थिक सुधार और उदारीकरण (वर्ष 1991 से आगे):
  • प्रमुख नीतियाँ:
    • टैरिफ और व्यापार बाधाओं में कमी।
    • कुछ क्षेत्रों में 100% FDI की अनुमति।
    • निजीकरण और बाज़ार-संचालित नीतियों की ओर बदलाव।
  • 21वीं सदी में वैश्वीकरण (वर्ष 2000 के बाद):
    • डिजिटल एकीकरण: भारत एक वैश्विक IT आउटसोर्सिंग केंद्र के रूप में उभरा है, जो फॉर्च्यून 500 कंपनियों को सेवाएँ प्रदान कर रहा है।
    • आर्थिक साझेदारियाँ: विश्व व्यापार संगठन, BRICS और G20 जैसे बहुपक्षीय मंचों में भूमिका में वृद्धि।
    • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: बॉलीवुड फिल्मों और भारतीय व्यंजनों को वैश्विक मान्यता मिली। (स्लमडॉग मिलियनेयर जैसी फिल्मों ने भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाया)।
    • स्टार्ट-अप क्रांति: ओला, फ्लिपकार्ट और BYJU जैसे भारतीय स्टार्ट-अप का वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र में एकीकरण।
  • पोस्ट-कोविड-19 और आत्मनिर्भर भारत:
    • आर्थिक राष्ट्रवाद: महामारी ने आपूर्ति शृंखला की कमज़ोरियों को उजागर किया, जिससे आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिला। ( PLI योजनाओं के तहत स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा)
    • डिजिटल वैश्वीकरण: यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म ने वैश्विक फिनटेक प्रणालियों में क्रांति ला दी है। (सिंगापुर और UAE जैसे देशों के साथ UPI साझेदारी)। 

भारत पर वैश्वीकरण के प्रमुख सकारात्मक प्रभाव क्या हैं? 

  • आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन: वैश्वीकरण ने भारत को वैश्विक बाज़ारों में एकीकृत करके, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) तक पहुँच को सक्षम करके और IT तथा फार्मास्यूटिकल्स जैसे निर्यात-संचालित उद्योगों का विस्तार करके भारत की GDP वृद्धि को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ावा दिया है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत का IT निर्यात वित्त वर्ष 2023 में 194 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जिससे यह विश्व का सबसे बड़ा IT आउटसोर्सिंग हब बन गया, जबकि वित्त वर्ष 2022 में FDI प्रवाह रिकॉर्ड 83.57 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया। 
    • इससे लाखों नौकरियों का सृजन हुआ है, विशेषकर बंगलूरू और हैदराबाद जैसे शहरी केंद्रों में।
  • तकनीकी उन्नति और नवाचार: वैश्वीकरण ने अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के आगमन को सुगम बनाया है, जिससे अंतरिक्ष, स्वास्थ्य सेवा और वित्तीय प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा मिला है। 
    • ISRO की विशेषज्ञता और लागत प्रभावी प्रक्षेपण तकनीकों ने कई विदेशी देशों को आकर्षित किया है। अपने वाणिज्यिक प्रभागों के माध्यम से, ISRO ने विभिन्न देशों के लिये लगभग 430 विदेशी उपग्रहों को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है।
      • वर्ष 2023 में अपने चंद्रयान- 3 मिशन के साथ इसने वैश्विक ख्याति प्राप्त की और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के समीप उतरने वाला पहला देश बन गया। 
    • इसी प्रकार, UPI के नेतृत्व में डिजिटल भुगतान प्रणालियों के अंगीकरण से सितंबर 2023 में 10.58 बिलियन लेन-देन दर्ज किये गए, जिससे भारत वित्तीय प्रौद्योगिकी में अग्रणी के रूप में सामने आया।
  • उन्नत जीवन स्तर: वैश्वीकरण के उदय ने लाखों भारतीयों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाया है, विशेष रूप से वैश्विक ब्रांडों तक पहुँच, बेहतर स्वास्थ्य सेवा और उच्च आय के माध्यम से। 
    • IMF के अनुमान के अनुसार, प्रति व्यक्ति आय 2,730 डॉलर तक पहुँचने में 75 वर्ष लग गए, जबकि इसमें 2,000 डॉलर और जोड़ने में केवल पाँच वर्ष लगेंगे।
    • मध्यम वर्ग की संख्या सत्र 2020-21 में 432 मिलियन से बढ़कर सत्र 2030-31 में 715 मिलियन (47%) हो जाने की उम्मीद है।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सॉफ्ट पावर संवर्द्धन: वैश्वीकरण ने वैश्विक स्तर पर भारत के सांस्कृतिक प्रभाव को बढ़ाया है, जिससे इसकी कला, भोजन और परंपराओं को बढ़ावा मिला है, जबकि घरेलू स्तर पर वैश्विक विविधता को अपनाया गया है। 
    • ए.आर. रहमान के संगीत के साथ विदेशी निर्देशक द्वारा निर्देशित स्लमडॉग मिलियनेयर और वर्ष 2023 में ऑस्कर जीतने वाली RRR जैसी फिल्मों ने विश्व मंच पर भारत की सिनेमाई प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। 
      • इसी प्रकार, स्पाइडर-मैन और जुरासिक वर्ल्ड में अभिनय करने वाले इरफान खान जैसे अभिनेताओं की अंतर्राष्ट्रीय सफलता ने भारत की सांस्कृतिक पहुँच को और सुदृढ़ किया है। 
    • इसके अतिरिक्त, भारतीय व्यंजनों की अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति से पर्यटन को भी बढ़ावा मिला है। 
  • उद्यमशीलता और स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र में वृद्धि: वैश्विक एकीकरण ने भारत के स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र को पोषित किया है तथा नवाचार, वित्तपोषण और वैश्विक बाज़ार तक पहुँच को बढ़ावा दिया है।
  • मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक कूटनीति: वैश्वीकरण ने भारत को एक व्यापार महाशक्ति में बदल दिया है, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में उसका एकीकरण संभव हो गया है। 
    • G20 और FTA (जैसे, वर्ष 2022 में UAE CEPA) में भारत की सक्रिय भागीदारी ने इसके वैश्विक आर्थिक प्रभाव एवं व्यापार प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाया है।
  • उन्नत बुनियादी अवसंरचना और शहरीकरण: वैश्वीकरण ने भारत के बुनियादी अवसंरचना में निवेश को बढ़ावा दिया है, शहरों का आधुनिकीकरण किया है और स्मार्ट शहरी केंद्रों का निर्माण किया है। 
    • भारत 100 स्मार्ट शहरों का विकास कर रहा है। विदेशी प्रौद्योगिकी द्वारा समर्थित दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में मेट्रो रेल परियोजनाओं ने शहरी गतिशीलता को बढ़ाया है।
  • सुदृढ़ रक्षा और सामरिक क्षमताएँ: वैश्वीकरण ने भारत को अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से अपने रक्षा क्षेत्र को आधुनिक बनाने और अपनी सामरिक स्थिति को बढ़ाने में सक्षम बनाया है। 
  • पर्यावरण सहयोग और नवीकरणीय ऊर्जा विकास: वैश्वीकरण ने जलवायु परिवर्तन से निपटने और नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने में भारत के सहयोग को बढ़ावा दिया है। 
    • 121 देशों के साथ साझेदारी में शुरू की गई अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसी पहल, भारत को सतत् विकास में अग्रणी बनाती है।
    • भारत ने 8 देशों (अर्जेंटीना, बांग्लादेश, ब्राज़ील, इटली, मॉरीशस, सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका) के साथ मिलकर, भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान अद्वितीय बहु-हितधारक वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (GBA) का शुभारंभ किया।

वैश्वीकरण से भारत के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • आर्थिक असमानता में वृद्धि: वैश्वीकरण ने धन के संकेंद्रण को तीव्र कर दिया है, जिससे शहरी अभिजात वर्ग को लाभ हुआ है, जबकि ग्रामीण और सीमांत आबादी पीछे रह गई है।
    • विदेशी निवेश के आगमन और बाज़ार उदारीकरण ने अकुशल श्रमिकों को दरकिनार करते हुए कुशल श्रमिकों एवं निगमों को अनुपातहीन रूप से समृद्ध किया है। 
    • एक अध्ययन से भारत की संपत्ति असमानता का पता चलता है, जिसमें सबसे धनी 1% लोगों के पास कुल संपत्ति का 40% हिस्सा है। 10,000 सबसे धनी व्यक्तियों के पास राष्ट्रीय औसत से 16,763 गुना अधिक संपत्ति है, जबकि शीर्ष 1% लोगों के पास औसतन 54 मिलियन रुपए की संपत्ति है।
    • असमानता का मापक गिनी गुणांक सत्र 2022-23 में 0.402 तक बढ़ गया, जो बढ़ती असमानताओं को दर्शाता है।
  • बेरोज़गारी वृद्धि और स्वचालन: सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि के बावजूद, वैश्वीकरण ने स्वचालन और आउटसोर्सिंग को बढ़ावा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप श्रम-प्रधान क्षेत्रों में रोज़गार सृजन में ठहराव आ गया है। 
    • विनिर्माण और वस्त्र जैसे उद्योग तीव्र गति से मशीनीकरण पर निर्भर हो रहे हैं, जिससे अकुशल श्रमिक विस्थापित हो रहे हैं। 
    • नवीनतम वार्षिक PLFS रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारत में 15-29 आयु वर्ग के युवाओं के लिये बेरोज़गारी दर सत्र 2023-24 के लिये 10.2% होगी।
  • पारंपरिक उद्योगों का पतन: वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा ने भारत के पारंपरिक और लघु उद्योगों को हाशिये पर धकेल दिया है, जिनके पास वैश्विक दिग्गजों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये पूंजी एवं प्रौद्योगिकी का अभाव है। 
    • हस्तशिल्प, हथकरघा और लघु उद्योग प्रासंगिकता खो रहे हैं, क्योंकि बड़े पैमाने पर आयातित उत्पाद बाज़ार पर हावी हो रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये, कोविड-19 महामारी के तुरंत बाद भारत के हथकरघा क्षेत्र से निर्यात में 30% की गिरावट आई, जबकि लाखों कारीगरों को चीन से आने वाले सस्ते मशीन-निर्मित विकल्पों के कारण कम आय का सामना करना पड़ा।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर अत्यधिक निर्भरता: वैश्वीकरण ने भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर अत्यधिक निर्भर बना दिया है, जिससे यह व्यवधानों के प्रति संवेदनशील हो गया है। 
    • कोविड-19 महामारी और भू-राजनीतिक तनावों ने इस निर्भरता को उजागर किया है, विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल्स तथा इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में। 
    • उदाहरण के लिये, भारत 70% सक्रिय औषधि घटक (API) के लिये चीन पर निर्भर है, जबकि भारत में सेमीकंडक्टर आयात सत्र 2023-24 में 18.5% बढ़कर 1.71 लाख करोड़ रुपए हो गया।
  • सांस्कृतिक समरूपीकरण: मीडिया और उपभोक्ता वस्तुओं द्वारा संचालित वैश्विक सांस्कृतिक प्रभुत्व ने भारत की स्वदेशी सांस्कृतिक पहचान एव्न्न मूल्यों को कमज़ोर कर दिया है। 
    • विशेष रूप से शहरी युवाओं के बीच पश्चिमी खान-पान की आदतें, फैशन और मीडिया तेज़ी से पारंपरिक प्रथाओं का स्थान ले रहे हैं। 
      • उदाहरण के लिये, वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वयस्कों में मोटापा तीन गुना से भी अधिक बढ़ गया है, जबकि बच्चों में मोटापे की वृद्धि विश्व स्तर पर सबसे अधिक है तथा यह केवल वियतनाम एवं नामीबिया से ही पीछे है।
    • इसके अलावा, क्षेत्रीय भाषाओं का प्रचलन कम हो रहा है। AICTE के आँकड़ों से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल, केरल और कर्नाटक में 3 से 4 कॉलेजों ने क्षेत्रीय भाषाओं में इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम बंद कर दिये हैं।
  • विदेशी पूंजी पर निर्भरता: वैश्विक वित्तीय प्रणालियों में भारत के एकीकरण ने अस्थिर विदेशी निवेशों पर इसकी निर्भरता बढ़ा दी है, जिससे इसकी अर्थव्यवस्था वैश्विक झटकों के प्रति संवेदनशील हो गई है। 
    • वैश्विक मंदी के दौरान पूंजी का बहिर्गमन बाज़ारों को अस्थिर कर देता है तथा रुपए का अवमूल्यन कर देता है। 
    • भारत ने अक्तूबर 2024 में इक्विटी बाज़ार से सबसे अधिक FPI बहिर्वाह दर्ज किया, जो कुल 10,428 मिलियन डॉलर था।
  • बढ़ते साइबर सुरक्षा खतरे: वैश्वीकरण ने डिजिटल अंगीकरण में तेज़ी ला दी है, जिससे कमज़ोर विनियमनों के कारण भारत साइबर हमलों एवं डेटा उल्लंघनों के प्रति संवेदनशील हो गया है। 
    • ऑनलाइन लेनदेन और डेटा निर्भरता में वृद्धि के साथ, साइबर अपराध भी बढ़ रहे हैं। 
    • वर्ष 2023 में, भारत पर साइबर हमलों में 138% की वृद्धि हुई, जिसमें बैंकिंग और स्वास्थ्य सेवा (AIIMS दिल्ली रैनसमवेयर अटैक) जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को निशाना बनाया गया। 
    • वर्ष 2023 में CoWIN डेटा लीक ने लाखों लोगों के व्यक्तिगत विवरण को उजागर कर दिया, जिससे सख्त डेटा गोपनीयता कानूनों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
  • कृषि स्वायत्तता की हानि: वैश्विक व्यापार समझौतों और कॉर्पोरेट-संचालित वैश्वीकरण ने आयातित कृषि इनपुट एवं अस्थिर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों पर निर्भरता बढ़ा दी है। 
    • कृषि रसायनों और बीजों में बहुराष्ट्रीय निगमों के प्रभुत्व ने पारंपरिक खेती के तरीकों को खत्म कर दिया है। उदाहरण के लिये, भारत ने सत्र 2023-24 में चीन से 18.65 लाख टन यूरिया और 22.58 लाख टन P&K उर्वरक आयात किया।
  • इसके अलावा, मोनसेंटो जैसी वैश्विक दिग्गज कंपनियों द्वारा आनुवंशिकतः रूपांतरित बीजों पर निर्भरता ने स्वदेशी बीज किस्मों को हाशिये पर डाल दिया है, जिससे जैव विविधता और किसानों की स्वायत्तता कम हो गई है।

भारत आत्मनिर्भरता के लिये प्रयास के साथ वैश्वीकरण को किस प्रकार संतुलित कर सकता है? 

  • मेक इन इंडिया और मेक फॉर द वर्ल्ड: उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना का विस्तार सेमीकंडक्टर, हरित ऊर्जा और उन्नत सामग्री जैसे उभरते क्षेत्रों तक किया जाना चाहिये।
    • स्थानीय MSME के साथ सुदृढ़ संबंध बनाते हुए बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • इससे वैश्विक प्रौद्योगिकी अंगीकरण के साथ-साथ घरेलू उत्पादन और रोज़गार को बढ़ावा भी मिलता है। 
    • PLI के तहत स्मार्टफोन निर्माण में हाल की सफलता इसकी मापनीयता को उजागर करती है।
  • अनुसंधान एवं विकास (R&D) पारिस्थितिकी तंत्र का सुदृढ़ीकरण: नवाचार को बढ़ावा देने के लिये अनुसंधान एवं विकास में सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 2% निवेश किया जाना चाहिये, विशेष रूप से अग्रणी प्रौद्योगिकियों जैसे कि AI, जैव प्रौद्योगिकी और क्वांटम कंप्यूटिंग में। 
    • बड़े पैमाने पर नवाचारों का व्यावसायीकरण करने के लिये वैश्विक सहयोग से अधिक सार्वजनिक-निजी अनुसंधान पार्क स्थापित किये जाने चाहिये।
    • भारत सेमीकंडक्टर मिशन जैसी पहलों को ताइवान जैसे तकनीकी अभिकर्त्ताओं की साझेदारी के साथ और अधिक गति की आवश्यकता है।
    •  इससे निर्भरता के बिना वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित होती है। अनुसंधान को औद्योगिक अनुप्रयोगों से जोड़ने से भारत को मूल्य शृंखला में ऊपर जाने में मदद मिल सकती है।
  • क्षेत्रीय साझेदारों के साथ समुत्थानशील आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण: वियतनाम, इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ गहरे आर्थिक संबंध बनाकर आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाई जानी चाहिये।
    • चीन-केंद्रित आपूर्ति शृंखलाओं के विकल्प बनाए जाने चाहिये, विशेष रूप से दुर्लभ मृदा तत्त्वों और फार्मास्यूटिकल्स जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में। 
    • क्वाड और G20 की वैश्विक मूल्य शृंखला पहलों में भागीदारी निर्भरता को संतुलित करने के अवसर प्रदान करती है। घरेलू स्तर पर, निर्बाध व्यापार एकीकरण सुनिश्चित करने के लिये बंदरगाह और रसद बुनियादी अवसंरचना में निवेश किया जाना चाहिये।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के लिये कौशल पर ध्यान केंद्रन: नवीकरणीय ऊर्जा, रोबोटिक्स और लॉजिस्टिक्स जैसे उभरते उद्योगों में कार्यबल को प्रशिक्षित करने के लिये विशेष कौशल केंद्र विकसित किया जाना चाहिये।
    • कौशल भारत मिशन को विकसित देशों के साथ समझौता ज्ञापनों के माध्यम से वैश्विक प्रशिक्षुता कार्यक्रमों के साथ एकीकृत किया जा सकता है। 
    • जैसे-जैसे दूरस्थ कार्य बढ़ता है, वैश्विक सेवाएँ प्रदान करने के लिये भारत के विशाल IT भंडार का लाभ उठाया जाना चाहिये। 
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 के तहत भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के आगमन को सुविधाजनक बनाया जाना चाहिये।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण को बढ़ावा देने से वैश्विक मूल्य शृंखला में समावेशिता सुनिश्चित होती है, साथ ही घरेलू रोज़गार चुनौतियों का समाधान भी होता है।
  • कृषि उत्पादकता और निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता में वृद्धि: कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाने के लिये सटीक खेती, ड्रोन और ब्लॉकचेन जैसे कृषि-तकनीक समाधानों में निवेश किया जाना चाहिये।
    • निर्यातोन्मुख जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, क्योंकि भारत के उत्पादों को प्रायः स्वच्छता संबंधी चिंताओं के कारण अस्वीकार कर दिया जाता है, जिससे अंततः देश की छवि को नुकसान पहुँचता है।
    • भारत की (खेत से लेकर खाने तक की) आपूर्ति शृंखला को सुदृढ़ बनाया जाना चाहिये तथा उन्हें वैश्विक निर्यात मानकों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
    • संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया के साथ हाल के व्यापार समझौतों का लाभ उठाकर कृषि निर्यात को बढ़ाया जा सकता है। 
  • हरित विकास अर्थव्यवस्था का विकास करना: हरित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के लिये भारत की G20 अध्यक्षता प्रतिबद्धताओं का लाभ उठाने के साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा निर्यात पर बल दिया जाना चाहिये।
    • स्वच्छ ऊर्जा में तकनीकी अंतरण के लिये जर्मनी और जापान जैसे देशों के साथ सहयोग किया जाना चाहिये। वैश्विक पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) मानकों को पूरा करने के लिये घरेलू हरित उद्योगों को सशक्त कर, निर्यात को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। 
    • यह रणनीति भारत को एक वैश्विक अग्रणी और आत्मनिर्भर हरित अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करती है।
  • वैश्विक और स्थानीय तालमेल के लिये डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना: वैश्वीकरण के लिये UPI और ONDC जैसे प्लेटफॉर्मों का विस्तार किया जाना चाहिये, साथ ही घरेलू डिजिटल समावेशन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • डिजिटल भुगतान अवसंरचना के लिये अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ सहयोग से भारत की सॉफ्ट पावर एवं आर्थिक एकीकरण को बल मिलेगा। 
    • घरेलू स्तर पर, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 जैसे फ्रेमवर्क के माध्यम से सुदृढ़ डेटा संरक्षण कानून सुनिश्चित करने से संप्रभुता की रक्षा हो सकती है, साथ ही निर्बाध वैश्विक तकनीकी साझेदारी को सक्षम किया जा सकता है।
  • सामरिक स्वायत्तता के लिये व्यापार नीतियों में सुधार: व्यापार नीतियों को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये ताकि उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जा सके जहाँ भारत को तुलनात्मक लाभ हो, जैसे कि वस्त्र उद्योग, फार्मा और IT सेवाएँ। 
    • प्रतिस्पर्द्धा को बाधित किये बिना नवोदित उद्योगों की रक्षा के लिये चुनिंदा रूप से टैरिफ बाधाओं को लागू किया जाना चाहिये। विनियामक बाधाओं को कम करके और वैश्विक मानकों के साथ तालमेल बिठाकर निर्यात को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। 
    • पारस्परिक लाभ सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के लिये सुरक्षात्मक उपायों के साथ क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) पर पुनर्विचार किया जा सकता है।
  • घरेलू नियंत्रण के साथ वित्तीय एकीकरण: रूस और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के साथ रुपया व्यापार समझौतों के माध्यम से वैश्विक वित्तीय भागीदारी को बेहतर किया जाना चाहिये।
    • विकास परियोजनाओं हेतु वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करने के लिये सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड का विस्तार किया जाना चाहिये। साथ ही, गुजरात में GIFT-IFSC जैसे और शहरों का विकास किया जाना चाहिये।
    • इसके साथ ही, MSME की वित्तपोषण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये SIDBI और NABARD जैसी घरेलू वित्तीय संस्थाओं को सहायता प्रदान की जाएगी।
    • यह हाइब्रिड मॉडल रणनीतिक मौद्रिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए मज़बूत वित्तीय एकीकरण सुनिश्चित करता है।
  • संतुलित शहरी-ग्रामीण विकास पर ध्यान केंद्रन: टियर-2 और टियर-3 शहरों को विनिर्माण एवं नवाचार केंद्रों के रूप में सुदृढ़ करके आर्थिक विकेंद्रीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। स्मार्ट सिटी मिशन और AMRUT जैसी पहलों के माध्यम से इन्हें वैश्विक बाज़ारों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
    • वैश्विक ई-कॉमर्स प्लेटफार्म के लिये ग्रामीण उद्यमिता का दोहन करने हेतु भारतनेट जैसी योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण बुनियादी अवसंरचना को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • इससे क्षेत्रीय असमानताएँ कम होती हैं और साथ ही वैश्वीकरण एवं आत्मनिर्भरता में संतुलन बना रहता है।

निष्कर्ष: 

वर्ष 1947 में 2% से वर्ष 2023 में 7.93% वैश्विक हिस्सेदारी तक भारत की आर्थिक यात्रा, वैश्वीकरण के साथ आत्मनिर्भरता को संतुलित करने पर निर्भर करती है। यद्यपि वैश्वीकरण अवसर प्रदान करता है, फिर भी असमानता, रोज़गार-असुरक्षा और सांस्कृतिक क्षरण जैसी चुनौतियाँ बनी रहती हैं। भारत को घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना चाहिये, समुत्थानशील आपूर्ति शृंखलाओं की स्थापना की जानी चाहिये, अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना चाहिये और वैश्विक एकीकरण का लाभ उठाने के लिये कौशल पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। वैश्वीकृत विश्व में भारत की पूरी क्षमता को उजागर करने के लिये रणनीतिक स्वायत्तता और घरेलू विकास को प्राथमिकता देने वाला एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न: भारत की अर्थव्यवस्था, समाज और सांस्कृतिक पहचान पर वैश्वीकरण के प्रभाव का परीक्षण कीजिये। भारत को इसके लाभों का दोहन करने और इसके प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिये क्या उपाय अपनाने चाहिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत में 1991 में आर्थिक नीतियों के उदारीकरण के बाद घटित हुआ/हुए है/हैं ?    (2017)

  1. GDP में कृषि का अंश बृहत् रूप से बढ़ गया।
  2. विश्व व्यापार में भारत के निर्यात का अंश बढ़ गया।
  3. FDI का अंतर्वाह (इनफ्लो) बढ़ गया।
  4. भारत का विदेशी विनिमय भण्डार बृहत् रूप से बढ़ गया।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 4
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद की भारतीय अर्थव्यवस्था के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. शहरी क्षेत्रों में श्रमिक की उत्पादकता (2004-05 की कीमतों पर प्रति श्रमिक ₹) में वृद्धि हुई जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में इसमें कमी हुई।
  2. कार्यबल में ग्रामीण क्षेत्रों की प्रतिशत हिस्सेदारी में सतत् वृद्धि हुई।
  3. ग्रामीण क्षेत्रों में, गैर-कृषि अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुई।
  4. ग्रामीण रोज़गार की वृद्धि दर में कमी आई।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 3
(d) केवल 1, 2 और 4

उत्तर: (b)

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