सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में सिंगापुर के साथ सहभागिता | 20 Jan 2025
प्रिलिम्स के लिये:सेमीकंडक्टर विनिर्माण, एकीकृत सर्किट (IC), वेफर फैब्रिकेशन पार्क, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, STEM, सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला और नवाचार भागीदारी, यूरोपीय आयोग, भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM), उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, इलेक्ट्रॉनिक घटकों और अर्द्धचालकों के विनिर्माण संवर्द्धन की योजना (SPECS), क्वांटम कंप्यूटिंग, 5G, विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था में अर्द्धचालक यंत्रों का महत्त्व, चुनौतियाँ और आगे की राह |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
अपनी हालिया भारत यात्रा के दौरान, सिंगापुर के राष्ट्रपति ने उन्नत पीढ़ी के तकनीकी समाधानों के निर्माण में सहभागिता किये जाने के अतिरिक्त भारत में सेमीकंडक्टर विनिर्माण और सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम के विकास जैसी पहलों की संभावनाओं के अन्वेषण संबंधी योजनाओं की घोषणा की।
सिंगापुर का सेमीकंडक्टर परिदृश्य कैसा है?
- आर्थिक योगदान: सिंगापुर का सेमीकंडक्टर क्षेत्र का इसके सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 8% का योगदान है।
- इसका विश्व के अर्द्धचालक उत्पादन में लगभग 10%, वैश्विक वेफर निर्माण में 5% और अर्द्धचालक उपकरण उत्पादन में 20% का योगदान है।
- वैश्विक कंपनियों की उपस्थिति: सेमीकंडक्टर क्षेत्र की प्रमुख वैश्विक कंपनियों ने सिंगापुर में महत्त्वपूर्ण परिचालन स्थापित किया है, जिसमें एकीकृत सर्किट (IC) के डिज़ाइन से लेकर असेंबली, पैकेजिंग, परीक्षण और वेफर फैब्रिकेशन तक संपूर्ण सेमीकंडक्टर मूल्य शृंखला शामिल है।
- सिंगापुर के चार प्रमुख वेफर फैब्रिकेशन पार्क 374 हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तृत हैं और अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित हैं।
- चुनौतियाँ: सिंगापुर का सेमीकंडक्टर उद्योग ऑटोमोटिव और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स के लिये पूर्ण विकसित-नोड चिप्स (28 एनएम और उससे अधिक) में विशेषज्ञता रखता है लेकिन कृत्रिम बुद्धिमत्ता और उन्नत कंप्यूटिंग (7 एनएम और उससे कम) के लिए उच्च-स्तरीय लॉजिक चिप्स अभी भी सिंगापुर के सेमीकंडक्टर क्षेत्र के दायरे से बाहर हैं।
भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- बाजार मूल्य: वर्ष 2022 में, भारत के सेमीकंडक्टर बाज़ार का मूल्य 26.3 बिलियन अमरीकी डॉलर था, जिसके 2032 तक 271.9 बिलियन अमरीकी डॉलर होने का अनुमान है।
- आयात निर्भरता: सेमीकंडक्टर उपकरणों के लिये भारत की आयात पर अत्यधिक निर्भरता है। वर्ष 2022 में भारत का आयात 5.36 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा, जबकि निर्यात केवल 0.52 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
- सकारात्मक कारक:
- कुशल कार्यबल: भारत में बड़ी संख्या में STEM स्नातक है, जिससे अर्द्धचालक विनिर्माण, डिज़ाइन और अनुसंधान एवं विकास के लिये तैयार कार्यबल प्राप्त होता है।
- लागत सुलाभ: भारत कम श्रम और परिचालन लागत के कारण सेमीकंडक्टर विनिर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण लागत लाभ प्रदान करता है।
- वैश्विक आपूर्ति शृंखला विविधीकरण: भू-राजनीतिक तनावों से प्रभावित होकर कंपनियों द्वारा चीन से बाहर जाने से भारत के लिये सेमीकंडक्टर विनिर्माण का एक उपयुक्त गंतव्य बनने की संभावना है।
- विदेशी भागीदारी: भारत अपने सेमीकंडक्टर स्खेत्र में निरंतर विकास के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में सक्रिय रूप से शामिल है। उदाहरणार्थ,
- अमेरिका के साथ सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला और नवाचार भागीदारी पर समझौता ज्ञापन।
- जापान के साथ जापान-भारत सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला साझेदारी पर सहयोग ज्ञापन (MoC)।
- भारत और यूरोपीय आयोग के बीच समझौता ज्ञापन।
- गुजरात के धोलेरा में सेमीकंडक्टर केंद्र के निर्माण हेतु पावरचिप सेमीकंडक्टर (ताइवान) और टाटा समूह की सहभागिता।
- सरकारी पहल:
सिंगापुर भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग के विकास में किस मदद कर सकता है?
- विनिर्माण क्षमताओं का विस्तार: भारतीय कंपनियाँ असेंबली और परीक्षण को आउटसोर्स करने के लिये सिंगापुर की फर्मों के साथ साझेदारी कर सकती हैं, जिससे सिंगापुर के लिये लागत कम होगी और भारत उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकियों को अपनाने में सक्षम होगा।
- प्रतिभा विकास: सिंगापुर के विश्वविद्यालय माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर इंजीनियरिंग में प्रशिक्षण प्रदान करते हैं और भारतीय संस्थान भारत के सेमीकंडक्टर लक्ष्यों के लिये कुशल कार्यबल का निर्माण करने हेतु अनुसंधान, छात्र आदान-प्रदान और पीएच.डी के लिये सहयोग कर सकते हैं।
- औद्योगिक पार्क विकास: सिंगापुर के वेफर फैब पार्क (विशेष रूप से सेमीकंडक्टर विनिर्माण हेतु डिजाइन किये गए औद्योगिक क्षेत्र) के अनुरूप, भारत वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करने के लिये इसी प्रकार के औद्योगिक पार्क स्थापित कर सकता है ।
- सिंगापुर की फर्मों के साथ साझेदारी से भारतीय कंपनियों को उन्नत अर्द्धचालक प्रौद्योगिकियों और चिप उत्पादन के लिये आवश्यक सामग्रियों तक पहुँच प्राप्त हो सकती है।
भारत-सिंगापुर संबंध
- पृष्ठभूमि: भारत 1965 में सिंगापुर की स्वतंत्रता को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था।
- दोनों देशों में सहभागिता का आधार स्टैमफोर्ड रैफल्स द्वारा 1819 में सिंगापुर में स्थापित एक व्यापारिक केंद्र था, जो 1867 तक कोलकाता से शासित एक ब्रिटिश उपनिवेश बन गया।
- व्यापार और आर्थिक सहयोग: भारत और सिंगापुर के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (CECA) पर वर्ष 2005 में हस्ताक्षर किये गए थे।
- सिंगापुर भारत का छठा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है (वित्त वर्ष 2024), जिसका भारत के कुल व्यापार में 3.2% का योगदान है।
- भारत सिंगापुर का 12वाँ सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है और सिंगापुर के कुल व्यापार में इसकी हिस्सेदारी 2.3% है।
- सिंगापुर ASEAN क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है।
- सुरक्षा सहयोग: भारत और सिंगापुर के बीच आयोजित सैन्य अभ्यासों में सिम्बेक्स (नौसेना), सिनडेक्स (वायु सेना) और बोल्ड कुरुक्षेत्र (थल सेना) शामिल हैं।
- संस्कृति: सिंगापुर की चार आधिकारिक भाषाएँ मलय, मंदारिन, तमिल और अंग्रेज़ी हैं। सिंगापुर की 3.9 मिलियन की निवासी आबादी में लगभग 9.1% या 3.5 लाख जनसंख्या भारतीय मूल की है।
भारत के लिये सेमीकंडक्टर का क्या महत्त्व है?
- औद्योगिक विकास: वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग एक दशकीय विकास की ओर अग्रसर है और अनुमान है कि वर्ष 2030 तक इसका मूल्य एक ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा तथा भारत का लक्ष्य इसमें महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी हासिल करना है।
- भारत के सेमीकंडक्टर बाज़ार का वर्ष 2020 में मूल्य 15 बिलियन अमरीकी डॉलर था और वर्ष 2026 तक इसके 63 बिलियन अमरीकी डॉलर होने का अनुमान है।
- तकनीकी संप्रभुता: घरेलू अर्द्धचालक क्षमताओं को विकसित कर, भारत महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रणालियों और सुरक्षित संचार नेटवर्क के लिये स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है।
- वैश्विक आपूर्ति शृंखला: सेमीकंडक्टर क्षेत्र में भारत की भागीदारी से वैश्विक आपूर्ति शृंखला में इसकी स्थिति सुदृढ़ हो सकती है, निवेश प्राप्त हो सकता है और इसकी रणनीतिक भू-राजनीतिक भूमिका भी बढ़ सकती है।
- डिजिटल परिवर्तन: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग और 5G की दृष्टि से सेमीकंडक्टर की महत्ता अत्यधिक है, जिससे भारत की डिजिटल और तकनीकी प्रगति हेतु घरेलू विकास महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- यह राष्ट्रीय विकास को गति प्रदान करते हुए डेटा सेंटरों, संचार नेटवर्कों और स्मार्ट शहरों को सहायता प्रदान करेगा।
- कौशल विकास: सेमीकंडक्टर उद्योग में विशेष कौशल की मांग से भारतीय संस्थानों में STEM शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा मिलेगा।
सेमीकंडक्टर विनिर्माण से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- पूंजी और निवेश: सेमीकंडक्टर विनिर्माण अत्यंत पूंजी-प्रधान है, जिसमें अनुसंधान एवं विकास तथा बुनियादी ढाँचे दोनों में महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है।
- वर्ष 2021 में आयात अर्द्धचालक विनिर्माण मूल्य सूचकांक में 4.9% की वृद्धि हुई और वर्ष 2022 में इसमें अतिरिक्त 2.4% की वृद्धि हुई।
- प्रतिभा का अभाव: वर्ष 2025 तक 1 मिलियन से अधिक कुशल पेशेवरों की आवश्यकता होगी जिसकी दृष्टि से वर्तमान में इस क्षेत्र में प्रतिभा का व्यापक अभाव है।
- भारत में विनिर्माण संयंत्रों को संचालित करने में सक्षम कुशल श्रमिकों की कमी है।
- उन्नत प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच: सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम में ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के प्रभुत्व से, जिनके पास महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों का अभिगम है, भारत की अपनी क्षमताओं का वर्द्धन करने की क्षमता सीमित होती है।
- पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: सेमीकंडक्टर उद्योग ऊर्जा-गहन है और वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में इसका योगदान 31% है।
- अन्य उभरते बाज़ारों से प्रतिस्पर्द्धा: भारत को वियतनाम, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे उभरते बाज़ारों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है , जिसमें मलेशिया ने सेमीकंडक्टर निवेश के प्रथम चरण में इंफिनिऑन जैसी कंपनियों को सफलतापूर्वक आकर्षित किया है।
आगे की राह
- शिक्षा और प्रशिक्षण: उद्योग-संबंधित पाठ्यक्रम और व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिये वैश्विक कंपनियों के साथ साझेदारी करते हुए विश्वविद्यालयों में सेमीकंडक्टर कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना चाहिये। उदाहरण: IISc बंगलुरु ने TSMC ( ताइवान की सेमीकंडक्टर कंपनी) के साथ सहयोग किया है।
- स्वदेशी चिप डिज़ाइन: बंगलुरु और हैदराबाद जैसे प्रौद्योगिकी केंद्रों में चिप डिज़ाइन केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये। उदाहरण के लिये, IIT मद्रास का शक्ति प्रोसेसर।
- आपूर्ति शृंखला: कच्चे माल से लेकर उन्नत पैकेजिंग तक में निवेश आकर्षित करते हुए भारत के भीतर एक व्यापक आपूर्ति शृंखला का निर्माण करना करने की आवश्यकता है।
- सेमीकंडक्टर विकास के लिये विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) की स्थापना करना ।
- सॉवरेन सेमीकंडक्टर फंड: 3nm और 2nm फैब्रिकेशन जैसी प्रौद्योगिकियों को प्राथमिकता देते हुए सेमीकंडक्टर निवेश के लिये एक सॉवरेन फंड निर्मित किये जाने की आवश्यकता है।
- चिप कूटनीति: जापान जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी के माध्यम से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सुरक्षित करने के लिये भारत की भू-राजनीतिक स्थिति का पूर्णतम रूप से उपयोग किया जाना चाहिये।
- ग्रीन सेमीकंडक्टर पहल: जल उपयोग, ऊर्जा खपत और रासायनिक अपशिष्ट को कम करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत को संधारणीय सेमीकंडक्टर विनिर्माण में अग्रणी देश के रूप में अपनी भूमिका निभानी चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के विकास में अर्द्धचालक के महत्त्व की विवेचना कीजिये? आगामी दशकों में भारत इस अवसर का पूर्णतम उपयोग किस प्रकार कर सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के संदर्भ में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित में से किस लेज़र प्रकार का उपयोग लेज़र प्रिंटर में किया जाता है? (2008) (a) डाई लेज़र उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. विज्ञान हमारे जीवन में गहराई तक कैसे गुथा हुआ है? विज्ञान-आधारित प्रौद्योगिकियों द्वारा कृषि में उत्पन्न हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तन क्या हैं? (2020) प्रश्न. नैनोटेक्नोलॉजी से आप क्या समझते हैं और यह स्वास्थ्य क्षेत्र में कैसे मदद कर रही है? (2020) |