अंतर्राष्ट्रीय संबंध
RCEP पर भारत के दृष्टिकोण का पुनर्मूल्यांकन
- 08 Nov 2024
- 17 min read
प्रिलिम्स के लिये:विश्व बैंक, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP), वैश्विक मूल्य शृंखलाएँ (GVCs), राष्ट्रीय रसद नीति 2022, FDI, मुक्त व्यापार समझौते (FTAs), उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI), आसियान, व्यापक एवं प्रगतिशील ट्राँस-पैसिफिक भागीदारी समझौता, नीति आयोग। मेन्स के लिये:क्षेत्रीय समूहीकरण और भारत पर इसका प्रभाव, RCEP को लेकर भारत की चिंताएँ |
स्रोत: FE
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नीति आयोग के सीईओ ने चीन के नेतृत्व वाली क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) एवं व्यापक एवं प्रगतिशील ट्राँस-पैसिफिक भागीदारी समझौता (CPTPP) में भारत को शामिल करने हेतु समर्थन व्यक्त किया।
- उनकी टिप्पणी RCEP पर भारत के वर्तमान रुख में बदलाव को दर्शाती है जो आर्थिक सर्वेक्षण 2024 की सिफारिशों के अनुरूप है, जिसमें क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखला नेटवर्क में भारत के एकीकरण की वकालत की गई है।
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी:
- परिचय:
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP), आसियान सदस्यों और मुक्त व्यापार समझौते (FTA) भागीदारों के बीच एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक समझौता है।
- RCEP विश्व का सबसे बड़ा व्यापारिक ब्लॉक है। इसे सदस्य देशों के बीच आर्थिक एकीकरण, व्यापार उदारीकरण और सहयोग को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- RCEP वार्ता वर्ष 2012 में शुरू हुई थी। इस पर आधिकारिक तौर पर नवंबर 2020 में हस्ताक्षर किये गए थे, जो क्षेत्रीय व्यापार के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय है। इसे 1 जनवरी, 2022 को लागू किया गया।
- सदस्य देश:
- 15 सदस्य देश, जैसे चीन, जापान, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और आसियान राष्ट्र (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम)।
- कवरेज़ क्षेत्र:
- RCEP वार्ता में शामिल हैं: वस्तुओं में व्यापार, सेवाओं में व्यापार, निवेश, आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग, बौद्धिक संपदा, प्रतिस्पर्धा, विवाद निपटान, ई-कॉमर्स, छोटे और मध्यम उद्यम (SME) एवं अन्य मुद्दे।
- RCEP के उद्देश्य:
- सदस्य देशों के बीच व्यापार और निवेश को सुगम बनाना।
- व्यापार में टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करना या समाप्त करना।
- आर्थिक सहयोग और क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ाना।
- व्यापार की मात्रा:
- RCEP के सदस्य राष्ट्र वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 30% से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- व्यापारिक गुट विश्व की लगभग एक-तिहाई आबादी को कवर करता है।
- इसमें वैश्विक व्यापार पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने की क्षमता है।
- भारत और RCEP:
- भारत RCEP का संस्थापक सदस्य राष्ट्र था। वर्ष 2019 में भारत ने RCEP वार्ता से हटने का निर्णय लिया।
भारत RCEP से अलग क्यों हुआ?
- "चाइना की प्लस वन" रणनीति:
- भारत का निर्णय "चाइना प्लस वन" रणनीति की वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य आपूर्ति शृंखलाओं और व्यापार संबंधों में विविधता लाकर चीन पर निर्भरता को न्यूनतम करना है।
- बढ़ता व्यापार घाटा:
- RCEP के कार्यान्वयन के बाद से कई सदस्य देशों के व्यापार घाटे में अत्यधिक रूप से वृद्धि हुई है।
- RCEP से भारत का व्यापार घाटा और बढ़ जाता, जैसा कि अन्य देशों में देखा गया है। उदाहरण के लिये, चीन के साथ आसियान का व्यापार घाटा वर्ष 2020 में 81.7 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2023 में 135.6 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया।
- चीनी वस्तुओं की डंपिंग:
- भारत सस्ते चीनी उत्पादों के आयात से चिंतित है, जिससे घरेलू उद्योगों को हानिन हो सकती है। चीन के साथ देश का व्यापार घाटा वर्ष 2023-24 में पहले ही बढ़कर 85 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो चुका है।
- घरेलू उद्योग का संरक्षण और उत्पत्ति के नियम मानदंड:
- भारत का RCEP से अलग होना आंशिक रूप से घरेलू उद्योगों, विशेष रूप से डेयरी एवं इस्पात जैसे क्षेत्रों के संरक्षण को लेकर चिंताओं के कारण था, जहाँ टैरिफ में 35% से शून्य तक की कटौती से उन्हें ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ेगा।
- इसके अतिरिक्त, भारत उत्पत्ति के नियमों के प्रावधानों को लेकर चिंतित था, क्योंकि उसे भय था कि उत्पाद अन्य देशों से होकर भारतीय टैरिफ को दरकिनार कर सकते हैं, जिससे घरेलू उद्योगों के लिये सुरक्षा उपाय कमज़ोर हो जाएंगे।
CPTPP क्या है?
- परिचय:
- व्यापक एवं प्रगतिशील ट्रांस-पैसिफिक भागीदारी समझौते,(CPTPP) 11 देशों के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है: ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई दारुस्सलाम, कनाडा, चिली, जापान, मलेशिया, मैक्सिको, पेरू, न्यूज़ीलैंड, सिंगापुर और वियतनाम।
- CPTPP पर आधिकारिक रूप से 8 मार्च 2018 को सैंटियागो, चिली में हस्ताक्षर किये गए, जो क्षेत्रीय व्यापार सहयोग में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
- महत्त्व:
- CPTPP वस्तुओं और सेवाओं पर 99% टैरिफ को समाप्त करता है, जिससे आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिलता है। इसमें वन्यजीवों की तस्करी को रोकने, सुभेद्य प्रजातियों की रक्षा करने और गैर-संवहनीय कटाई एवं मछली पकड़ने को विनियमित करने के लिये कठोर पर्यावरणीय प्रावधान शामिल हैं, जिनका पालन न करने पर दंड का प्रावधान भी किया गया है।
- सभी सदस्य APEC का हिस्सा हैं, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
- भारत का रुख:
- भारत कठोर श्रम एवं पर्यावरण मानकों, संकीर्ण रूप से परिभाषित निवेश संरक्षण प्रावधानों तथा विस्तृत पारदर्शिता आवश्यकताओं के कारण CPTPP में शामिल नहीं हुआ, जो भारत की नियामक स्वायत्तता को सीमित कर सकते थे।
RCEP और CPTPP में शामिल होने से भारत को प्रमुख लाभ क्या होंगे?
- विस्तृत बाज़ारों तक पहुँच:
- RCEP और CPTPP में शामिल होने से भारत को बड़े बाज़ारों तक पहुँच प्राप्त होगी, विशेष रूप से एशिया-प्रशांत क्षेत्र में, जिससे निर्यात विशेष रूप से MSME क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा, जो भारत के निर्यात में 40% का योगदान करते हैं।
- कम टैरिफ और व्यापार बाधाओं से MSME की प्रतिस्स्पर्द्धात्मकता में वृद्धि होगी, जबकि प्रौद्योगिकी एवं संसाधनों तक आसान पहुँच से "मेक इन इंडिया" जैसी पहल के तहत उत्पादन बढ़ाने में सहायता प्राप्त होगी।
- इससे भारत की आपूर्ति शृंखला एकीकरण को भी बढ़ावा मिलेगा, रसद लागत कम होगी साथ ही विनिर्माण दक्षता में सुधार होगा।
- “चाइना प्लस वन” रणनीति का उपयोग:
- भारत अपने कुशल कार्यबल और बढ़ते औद्योगिक आधार के साथ "चाइना प्लस वन" रणनीति के तहत विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये बेहतर स्थिति में है। वियतनाम, इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों को इस परिवर्तन से व्यापक लाभ प्राप्त हुआ है।
- RCEP में शामिल होकर भारत चीनी विनिर्माण के विकल्प तलाशने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रुझान का लाभ प्राप्त कर सकता है तथा क्षेत्र में स्वयं को एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित कर सकता है।
- बेहतर व्यापार प्रतिस्पर्धात्मकता और FDI:
- RCEP में शामिल होने से टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करके भारत की वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि होगी, जिससे इसके उत्पाद अधिक मूल्य-प्रतिस्पर्धी बनेंगे, विशेषकर जापान, दक्षिण कोरिया तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे बाज़ारों में।
- यह बेहतर बाज़ार पहुँच और स्पष्ट व्यापार शर्तों के माध्यम से FDI को भी आकर्षित करेगा, जिससे बुनियादी अवसरंचना, विनिर्माण एवं प्रौद्योगिकी में निवेश को बढ़ावा देगा जिससे आर्थिक विकास तथा रोज़गार सृजन को बढ़ावा मिलेगा।
- व्यापार वार्त्ता शक्ति को मज़बूत करना:
- इससे भारत की व्यापार वार्त्ता शक्ति में वृद्धि होगी, जिससे वह व्यापार नियमों को प्रभावित करने तथा कृषि, प्रौद्योगिकी एवं सेवाओं जैसे क्षेत्रों में अनुकूल शर्तों पर वार्त्ता करने में सक्षम होगा, साथ ही घरेलू हितों की रक्षा करेगा और निर्यात को बढ़ावा देगा।
- नवाचार और ज्ञान का आदान-प्रदान:
- RCEP बौद्धिक संपदा अधिकारों और प्रौद्योगिकी आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है, जिससे भारत को उन्नत प्रौद्योगिकियों तक पहुँच मिलती है। इससे जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ सहयोग को बढ़ावा मिलता है, जिससे नवाचार बढ़ेगा, प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी तथा भारत की तकनीकी क्षमताएँ मज़बूत होंगी।
भारत की वर्तमान टैरिफ संरचना का उसके वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्धात्मकता पर प्रभाव
- औसत लागू टैरिफ:
- भारत का औसत लागू टैरिफ लगभग 13.8% है, जो चीन के 9.8% और संयुक्त राज्य अमेरिका के 3.4% से काफी अधिक है।
- हालाँकि व्यापार-भारित औसत पर विचार करने पर यह कुछ अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कम है, लेकिन भारत के टैरिफ उसके व्यापार संबंधों पर एक बाधा बने हुए हैं।
- उच्च सीमा शुल्क:
- विशेष रूप से कृषि उत्पादों पर भारत की सीमा शुल्क दरें विश्व स्तर पर सबसे अधिक हैं, जो 100% से 300% तक हैं।
- ये उच्च शुल्क दरें विदेशी निर्यातकों के लिये पर्याप्त बाधाएँ उत्पन्न करती हैं, जिससे भारतीय बाज़ार कम आकर्षक बनते हैं और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में भारत का एकीकरण सीमित होता है।
आगे की राह
- द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते (FTA): भारत को बाज़ार पहुँच का विस्तार करने के लिये यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख साझेदारों के साथ व्यापक FTA को अंतिम रूप देने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- क्षेत्रीय समूहों को मज़बूत करना: भारत को सार्क के भीतर क्षेत्रीय एकीकरण का समर्थन जारी रखना चाहिये तथा दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया को जोड़ने वाले बिम्सटेक के साथ संबंधों को बढ़ाना चाहिये।
- खाड़ी देशों और अफ्रीका के साथ व्यापार समझौते: खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों और अफ्रीकी देशों के साथ सक्रिय बातचीत को ऊर्जा, बुनियादी अवसरंचना तथा डिजिटल सहयोग जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
- इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF): IPEF में सक्रिय रूप से भाग लेकर भारत अपनी "एक्ट ईस्ट पॉलिसी" को आगे बढ़ा सकता है, जिससे व्यापार, आपूर्ति शृंखला लचीलापन, स्वच्छ ऊर्जा और निष्पक्ष आर्थिक प्रथाओं में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
- आत्मनिर्भर भारत: निर्यात और विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये सरकार को मेक इन इंडिया 2.0 और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं जैसी पहलों के माध्यम से घरेलू क्षमताओं को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. व्यापार घाटे और चीन के साथ प्रतिस्पर्धा के संदर्भ में RCEP में शामिल होने से भारत के लिये संभावित लाभ एवं चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युत्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन.) के ‘मुत्त व्यापार भागीदारों’ में से हैं? (a) 1, 2, 4 और 5 उत्तर: (c) प्रश्न. 'रीजनल कॉम्प्रिहेन्सिव इकॉनॉमिक पार्टनरशिप (Regional Comprehensive Economic Partnership)' पद प्रायः समाचारों में देशों के एक समूह के मामलों के संदर्भ में आता है। देशों के उस समूह को क्या कहा जाता है? (2016) (a) G20 उत्तर: (b) प्रश्न. 'ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप' (Trans-Pacific Partnership)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये : (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |