जनजातियों में आजीविका संवर्द्धन | 11 Nov 2024
प्रिलिम्स के लिये:बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (NFSA), राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) 2019-21, स्टंटिंग, वेस्टिंग, कम वज़न, निर्वाह कृषि, अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष, ओडिशा जनजातीय विकास परियोजना (OTDP), UNICEF, विश्व खाद्य कार्यक्रम, सामुदायिक वन अधिकार (CFR), भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ (TRIFED), PDS, माइक्रोफाइनेंस, स्थानीय शासन निकाय। मेन्स के लिये:जनजातियों की आजीविका से संबंधित चुनौतियाँ। जनजातियों की आजीविका संवर्द्धन हेतु आवश्यक उपाय। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ओडिशा के कंधमाल में आम की गुठली खाने से हुई मौतें जनजातीय समुदायों के बीच गंभीर आजीविका संकट को प्रभावित करती हैं।
- आम की गुठली (रस निकालने के बाद बची हुई गुठली) में एमिग्डालिन जैसे साइनोजेनिक ग्लाइकोसाइड होते हैं, जिन्हें खाने पर विषाक्त हाइड्रोजन साइनाइड गैस निकलती है।
आजीविका हेतु जनजातीय समुदाय असुरक्षित उपभोग पर क्यों निर्भर हैं?
- गरीबी: जनजातीय समुदाय, गरीबी के कारण जंगली एवं चरागाह खाद्य पदार्थों पर निर्भर रहते हैं।
- वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के अनुसार, 129 मिलियन जनजातियों में से 65 मिलियन बहुआयामी गरीबी में शामिल हैं।
- खाद्य असुरक्षा: भौगोलिक अलगाव, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और रसद संबंधी चुनौतियों से जनजातीय समुदाय राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (NFSA) के तहत नियमित, पौष्टिक खाद्य आपूर्ति से लाभ नहीं ले पाते हैं।
- कुपोषण: कई जनजातीय परिवारों की अनाज, दालें, तेल या पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर खाद्य सामग्री तक पर्याप्त पहुँच नहीं है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) 2019-21 की रिपोर्ट के अनुसार, जनजातीय बच्चों में स्टंटिंग, वेस्टिंग और कम वज़न की व्यापकता क्रमशः 40.9%, 23.2% और 39.5% है।
- वन अधिकारों का अभाव: ऐतिहासिक रूप से जनजातीय अपनी आजीविका के लिये जंगली खाद्य पदार्थों को इकट्ठा करने के साथ वनों पर निर्भर रहे हैं।
- हालाँकि विस्थापन, वनों की कटाई, वन अधिकारों के हनन और भूमि तक सीमित पहुँच से ये गरीबी की स्थिति में बने हुए हैं।
- आर्थिक शोषण: कुछ जनजातियों को अल्पकालिक ऋण राहत के बदले में अपने कल्याण संबंधी सुविधाओं (जैसे- राशन कार्ड) को स्थानीय साहूकारों के पास गिरवी रखने के लिये विवश होना पड़ता है।
- इन शोषणकारी प्रथाओं से अक्सर सरकारी लाभों के वास्तविक प्राप्तकर्त्ता वंचित हो जाते हैं, जिससे इनके ऊपर और अधिक कर्ज़ बढ़ जाता है।
- चरम स्थितियों में जीवनयापन: चरम गरीबी, खाद्यान्न की कमी और मौसमी सूखे के दौरान, जनजातीय परिवारों की बिगड़ती सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के कारण इन्हें जीवित रहने के क्रम में असुरक्षित खाद्य स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है।
- अपर्याप्त संस्थागत समर्थन: अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष द्वारा समर्थित ओडिशा जनजातीय विकास परियोजना (OTDP) के साथ कम सक्षम ब्लॉकों में UNICEF की घरेलू खाद्य सुरक्षा परियोजना तथा दूर-दराज़ के जनजातीय क्षेत्रों में विश्व खाद्य कार्यक्रम की समुदाय-आधारित एंटी-हंगर परियोजनाओं का प्रभाव सीमित रहा है।
जनजातीय समुदायों के लिये सरकार की क्या पहल हैं?
जनजातीय समुदायों की आजीविका कैसे बेहतर की जा सकती है?
- PDS नवाचार: आवश्यक पौष्टिक खाद्य पदार्थों (जैसे- दालें, तेल) को शामिल करने के लिये प्रणाली का विस्तार करने से हाशिये पर पड़े जनजातीय समुदायों में पोषण की कमी को कम करने में सहायता मिल सकती है।
- PDS राशन की डोर-टू-डोर डिलीवरी सुनिश्चित करती है कि दूर-दराज़ के समुदायों को महत्त्वपूर्ण खाद्य आपूर्ति तक निरंतर पहुँच मिलती रहे।
- CFR तक बढ़ी हुई पहुँच: सामुदायिक वन अधिकारों (CFR) तक बेहतर पहुँच जनजातियों को वन संसाधनों पर नियंत्रण करने की अनुमति देती है, जिससे लघु वनोत्पाद (MFP) के सतत् संग्रहण को बढ़ावा मिलता है।
- उचित बाज़ार मूल्य: यह सुनिश्चित करना कि जनजातीय समुदायों को शहद, इमली, जंगली मशरूम और आम की गुठली जैसे लघु वनोत्पादो के लिये उचित मूल्य मिले, जो आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- सरकारी पहल, विशेष रूप से भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ (TRIFED) जैसे संगठनों द्वारा समर्थित पहल, जनजातीय उत्पादकों को बड़े बाज़ारों से जोड़कर बाजार तक पहुँच को सुगम बना सकती है, जिससे उचित मुआवजा सुनिश्चित हो सके।
- वित्तीय संरक्षण: माइक्रोफाइनेंस प्रथाओं को विनियमित करके प्रेडटॉरी लेंडिंग देने को रोका जा सकता है, जिससे जनजातीय समुदायों को शोषणकारी ऋण और ऋण चक्रों से बचाया जा सकता है।
- अतीत के सबक का लाभ उठाना: अतीत की पहलों (जैसे, OTDP, PDS नवाचार) की सफलताओं और कमियों पर विचार करना, भविष्य के दृष्टिकोण को परिष्कृत करने और प्रभावी रणनीति बनाने के लिये आवश्यक है।
- रणनीतिक साझेदारियाँ: ज़िला प्रशासन, स्थानीय शासन निकायों, गैर-लाभकारी संगठनों और नागरिक समाज संगठनों के बीच सहयोगात्मक प्रयास सामुदायिक अनुकूलन बनाने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- मूल्य संवर्धन: लघु वनोत्पादो के प्रसंस्करण को बढ़ावा देना, जैसे कि आम की गुठली को कन्फेक्शनरी, सौंदर्य प्रसाधन और फार्मास्यूटिकल्स के लिये मूल्यवान उत्पादों में परिवर्तित करना, जनजातीय समुदायों को विविध आय स्रोत प्रदान कर सकता है।
निष्कर्ष
ओडिशा में आम की गुठली खाने से हाल ही में हुई मौतें जनजातीय समुदायों के बीच गंभीर आजीविका संकट को रेखांकित करती हैं, जो गरीबी, खाद्य असुरक्षा और आर्थिक शोषण से प्रेरित है। वन अधिकारों को मज़बूत करना, बाज़ार तक पहुँच बढ़ाना, लघु वन उपज के लिये उचित मूल्य निर्धारण, लक्षित सरकारी पहल तथा रणनीतिक साझेदारी सामूहिक रूप से जनजातीय आबादी को स्थायी रूप से ऊपर उठा सकती है और सशक्त बना सकती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत के जनजातीय समुदायों के बीच खाद्य असुरक्षा संकट में योगदान देने वाले कारकों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न: राष्ट्रीय स्तर पर, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा मंत्रालय केंद्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) है? (2021) (a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय उत्तर: (d) प्रश्न: भारत में विशिष्टत: असुरक्षित जनजातीय समूहों ख्पर्टिकुलरली वल्नरेबल ट्राइबल ग्रुप्स (PVTGs)] के बारे में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019) 1. PVTGs देश के 18 राज्यों तथा एक संघ राज्यक्षेत्र में निवास करते हैं। उपर्युक्त में से कौन-से कथन सही हैं? (a) 1, 2 और 3 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न: स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये, राज्य द्वारा की गई दो मुख्य विधिक पहलें क्या हैं ? (2017) प्रश्न: क्या कारण है कि भारत में जनजातियों को 'अनुसूचित जनजातियाँ' कहा जाता है? भारत के संविधान में प्रतिष्ठापित उनके उत्थान के लिये प्रमुख प्रावधानों को सूचित कीजिये। (2016) |