भूगोल
ताजे जल के भंडार में वैश्विक गिरावट
- 22 Nov 2024
- 18 min read
प्रिलिम्स परीक्षा के लिये:राष्ट्रीय वैमानिकी और अंतरिक्ष प्रशासन, विश्व मौसम विज्ञान संगठन, अल नीनो, आर्द्रभूमि, जलजनित रोग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, विश्व जल दिवस, अटल भू-जल योजना, जल शक्ति अभियान, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, अलवणीकरण मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन और जल की कमी, भारत का जल संकट, ताजे जल के पारिस्थितिकी तंत्र और जैवविविधता, वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर जल तनाव का प्रभाव। |
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय वैमानिकी और अंतरिक्ष प्रशासन (NASA) - जर्मन GRACE (ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरीमेंट) उपग्रहों के हालिया आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2014 के बाद से पृथ्वी के कुल ताजे जल के स्तर में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
नोट: GRACE नासा और जर्मनी का एक संयुक्त मिशन है, इसका लक्ष्य पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को मापना है, इसके लिये दो समान उपग्रहों का उपयोग किया जाता है जो पृथ्वी की लगभग 220 किमी की दूरी पर परिक्रमा करते हैं। ये उपग्रह विभिन्न भूभौतिकीय प्रक्रियाओं जैसे महासागरीय धाराओं, भू-जल भंडारण, बर्फ के आवरण में परिवर्तन और भूकंप जैसी ठोस पृथ्वी की गतिविधियों के कारण होने वाले गुरुत्वाकर्षण परिवर्तनों को ट्रैक करते हैं।
ताजे जल के भंडारों में गिरावट की स्थिति क्या है?
- वैश्विक: वर्ष 2015 और वर्ष 2023 के बीच, झीलों, नदियों और भू-जल सहित भूमि पर संग्रहीत ताजे जल में 1,200 घन किलोमीटर की कमी आई है।
- विश्व के आधे देशों में ताजे जल की गुणवत्ता में गिरावट आई है, 400 से अधिक नदी बेसिनों में जल प्रवाह में गिरावट देखी जा रही है, जिनमें कांगो बेसिन जैसे प्रतिष्ठित जलग्रहण क्षेत्र भी शामिल हैं।
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 वैश्विक स्तर पर नदियों के लिये तीन दशकों में सबसे सूखा वर्ष होगा, जिससे ताजे जल का संकट और भी बढ़ जाएगा।
- भारत: विश्व की 18% आबादी का निवास स्थान, भारत में विश्व के ताजे जल के संसाधनों का सिर्फ़ 4% हिस्सा है और पृथ्वी की सतह का सिर्फ़ 2.4% हिस्सा है। इसकी लगभग आधी नदियाँ प्रदूषित हैं, और 150 से ज़्यादा प्राथमिक जलाशय अपनी भंडारण क्षमता के केवल 38% पर हैं, जिससे देश का गंभीर जल संकट और भी बढ़ गया है।
- नीति आयोग द्वारा वर्ष 2018 समग्र जल प्रबंधन सूचकांक इंगित करता है कि भारत की आबादी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा उच्च से लेकर चरम जल तनाव का सामना कर रहा है, लगभग 600 मिलियन भारतीय जल की कमी का सामना कर रहे हैं।
- भू-जल की कमी एक बड़ी चिंता का विषय है, विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्यों में, जहाँ सिंचाई और घरेलू उपयोग के लिये अत्यधिक दोहन के कारण जल स्तर में काफी गिरावट आई है।
- राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात सहित मध्य और पश्चिमी भारत के क्षेत्र प्रायः सूखे की चपेट में आते हैं, जिससे पहले से ही कम हो रहे जल भंडार और भी अधिक घट जाते हैं।
ताजे जल के स्तर में गिरावट के क्या कारण हैं?
- अल नीनो घटनाओं की भूमिका: वर्ष 2014-2016 की अल नीनो घटना, जो वर्ष 1950 के बाद से सबसे महत्त्वपूर्ण घटनाओं में से एक है, ने वैश्विक स्तर पर वर्षा के पैटर्न को बाधित कर दिया।
- प्रशांत महासागर के बढ़ते तापमान के कारण वायुमंडलीय जेट धाराएँ बदल गईं, जिससे विश्व भर में सूखे की स्थिति और भी गंभीर हो गई।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित और असमान वर्षा प्रारूप उत्पन्न हो गया है, जिसके परिणामस्वरूप लंबे समय तक सूखा, अनावृष्टि एवं अनियमित मानसून जैसी घटनाएँ देखने को मिलती हैं।
- तीव्र वर्षा की घटनाओं के कारण भू-जल पुनःपूर्ति के बजाय भू-अपवाह होता है, तथा लंबे समय तक सूखा रहने से मिट्टी कठोर हो जाती है, जिससे उसकी जल अवशोषण क्षमता कम हो जाती है।
- जलवायु परिवर्तन वाष्पीकरण को बढ़ाता है तथा वायुमंडलीय जल धारण क्षमता को बढ़ाता है, जिससे सूखे की स्थिति और खराब हो जाती है।
- सूखे से ब्राज़ील, आस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका जैसे क्षेत्र काफी प्रभावित हुए हैं।
- भू-जल का अत्यधिक दोहन: सिंचाई के लिये भू-जल पर अत्यधिक निर्भरता, विशेष रूप से अपर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों में, इसके क्षय का कारण बनी है, क्योंकि दोहन अक्सर प्राकृतिक पुनःपूर्ति से अधिक हो जाता है।
- इसके अतिरिक्त, भू-जल पर निर्भर उद्योग और शहरी केंद्र भी जल क्षरण को और बढ़ा देते हैं।
- पारिस्थितिकी तंत्र की क्षति: प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्रों, जैसे आर्द्रभूमि और वनों का विनाश, भूमि की जल धारण करने की क्षमता को कम कर देता है।
- वन क्षेत्र के नष्ट होने से मृदा का अपरदन होता है, जिससे भूमि की वर्षा जल को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है, तथा जल निकायों की पुनःपूर्ति में भी कमी आती है।
- कृषि पद्धतियाँ और प्रदूषण: विश्व के उपलब्ध ताजे जल का 70% भाग कृषि में खपत हो जाता है, लेकिन अकुशल सिंचाई पद्धतियों और अधिक जल की आवश्यकता वाली फसलों की खेती के कारण जल की काफी बर्बादी होती है।
- औद्योगिक अपशिष्ट और अनुपचारित अपशिष्ट जल भी जल निकायों के प्रदूषण में योगदान करते हैं, जिसका जल की गुणवत्ता एवं उपलब्धता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है।
ताज़े जल में गिरावट के निहितार्थ क्या हैं?
- जैव विविधता पर प्रभाव: विश्व वन्यजीव कोष (WWF) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1970 के बाद से ताज़े जल की प्रजातियों में 84% की गिरावट आई है, जिसका कारण आवास की हानि, प्रदूषण और बाँधों जैसी प्रवास बाधाएँ हैं।
- ये कारक पारिस्थितिकी तंत्र को अस्थिर करते हैं, जैव विविधता और उनकी आवश्यक सेवाओं को खतरा पहुँचाते हैं।
- मानव समुदाय पर प्रभाव: जल तनाव पर वर्ष 2024 की संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि जल की उपलब्धता में कमी से किसानों और समुदायों पर दबाव पड़ता है, जिससे अकाल, संघर्ष, गरीबी और जल जनित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
- जल की कमी उद्योगों को भी बाधित करती है, जिससे आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन प्रभावित होता है। वर्ष 2025 तक 1.8 बिलियन लोगों को "पूर्ण जल संकट" का सामना करना पड़ सकता है, जो तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या, अकुशल जल उपयोग तथा खराब प्रबंधन के कारण और भी बदतर हो सकता है।
- शहरी क्षेत्र भी जल संकट से अछूते नहीं हैं। चेन्नई और बेंगलुरु सहित भारत के कई शहरों में हाल के वर्षों में जल की गंभीर कमी का सामना करना पड़ा है, जिससे दैनिक जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है और जल परिवहन और प्रबंधन की लागत बढ़ गई है।
- पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ: ताजे जल के पारिस्थितिकी तंत्र पोषक चक्रण का समर्थन करते हैं, जिससे कृषि उत्पादकता बढ़ती है। यह आर्द्रभूमि बाढ़ को कम करने एवं जलवायु अनुकूलन की वृद्धि में भी मदद करता है।
- इनके क्षरण से इन महत्त्वपूर्ण सेवाओं को खतरा है, तथा पर्यावरणीय एवं सामुदायिक स्थिरता दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- भू-राजनीतिक संघर्ष: वैश्विक ताजे जल का 60% से अधिक हिस्सा दो या उससे अधिक देशों के बीच साझा किया जाता है। इन संसाधनों में गिरावट, चाहे सूखे, अत्यधिक निकासी या प्रदूषण के कारण ही क्यों न हो, जल के अधिकार तथा उपयोग को लेकर विवादों को जन्म दे सकती है।
- जल की कमी से राजनीतिक तनाव बढ़ सकता है, जैसा कि मिस्र, सूडान और इथियोपिया के बीच नील नदी विवाद में देखा गया है।
- इथियोपिया द्वारा ग्रैंड इथियोपियन रेनेसां डैम के निर्माण से मिस्र में जल आपूर्ति को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं, जिससे संभवतः व्यापक संघर्ष उत्पन्न हो सकता है।
- इसी प्रकार भारत में नदी जल बँटवारे को लेकर विवाद (जैसे कि पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि (IWT) तथा कावेरी और कृष्णा नदियों पर अंतर्राज्यीय विवाद) से राज्यों के बीच निरंतर संघर्षों बढ़ावा मिलता है।
- जल की कमी से राजनीतिक तनाव बढ़ सकता है, जैसा कि मिस्र, सूडान और इथियोपिया के बीच नील नदी विवाद में देखा गया है।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी: ताजे जल के संसाधनों में कमी से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) प्रणालियाँ प्रभावित होती हैं, जो डेटा केंद्रों को ठंडा रखने के लिये जल पर निर्भर हैं।
- अनुमान है कि वर्ष 2027 तक AI क्षेत्र में प्रतिवर्ष 4.2 से 6.6 बिलियन क्यूबिक मीटर जल की खपत होगी, जिससे पहले से ही सीमित जल आपूर्ति पर दबाव और बढ़ जाएगा।
जल संरक्षण से संबंधित पहल क्या हैं?
- वैश्विक:
- विश्व जल दिवस
- वाटर क्रेडिट
- जल कार्रवाई एजेंडा: संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन, 2023 में शुरू किया गया। इसमें सतत् विकास लक्ष्य संख्या 6 (वर्ष 2030 तक जल और स्वच्छता तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना) की दिशा में प्रगति को तीव्र करने के लिये वैश्विक जल समुदाय की 830 से अधिक स्वैच्छिक प्रतिबद्धताएँ शामिल हैं।
- भारत:
- राष्ट्रीय जल नीति (2012)
- अटल भू-जल योजना
- जल शक्ति अभियान
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
- मिशन अमृत सरोवर
- राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण (NAQUIM)
- भू-नीर पोर्टल: इसका उद्देश्य पूरे भारत में भू-जल विनियमन में सुधार करना है। यह भू-जल कानूनों, विनियमों और धारणीय प्रथाओं संबंधी जानकारी तक पहुँचने के लिये एक केंद्रीकृत मंच है।
आगे की राह
- नीति पुनर्संरचना: देशों को जल को एक सामान्य वस्तु के रूप में मानना होगा तथा जल के मूल्य निर्धारण, सब्सिडी एवं खरीद के संदर्भ में सार्वजनिक नीतियों को पुनर्संरचित करना होगा ताकि जल संरक्षण को प्रोत्साहित किया जा सके।
- यह सुनिश्चित करना कि कमज़ोर समुदायों को स्वच्छ जल और स्वच्छता उपलब्ध हो, जल-संबंधी असमानताओं को दूर करना महत्त्वपूर्ण है।
- वर्षा जल संचयन: वर्षा जल संचयन प्रणालियाँ ताजे जल की आपूर्ति को पूरा करने के लिये एक व्यावहारिक समाधान (विशेष रूप से जल की कमी वाले क्षेत्रों में) प्रस्तुत करती हैं।
- विलवणीकरण को अनुकूलतम बनाना: यद्यपि विलवणीकरण ऊर्जा-गहन और महँगा है फिर भी यह तटीय क्षेत्रों में जल की कमी का समाधान प्रदान करता है।
- रिवर्स ऑस्मोसिस जैसी ऊर्जा-कुशल तकनीकों को लागत एवं पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के क्रम में अनुकूलित किया जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त कम ऊर्जा-गहन प्रक्रियाओं के साथ कुशल जल शोधन हेतु नैनो-प्रौद्योगिकी-आधारित उपकरण विकसित किये जा सकते हैं।
- बुनियादी ढाँचे का विकास: बाँध, बावड़ी, जलाशय और जलसेतु जैसे बुनियादी ढाँचे को अनुकूलित करने से जल भंडारण और वितरण में सुधार हो सकता है लेकिन पर्यावरणीय और सामाजिक मुद्दों के समाधान के लिये सावधानीपूर्वक योजना बनाने की आवश्यकता है।
- नई बाँध परियोजनाओं में पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन, तलछट प्रबंधन एवं न्यायसंगत जल वितरण को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- बोतलबंद जल के विकल्प: बोतलबंद जल की मांग को कम करने एवं पर्यावरण अनुकूल उपभोग को प्रोत्साहित करने के लिये जल फिल्टर तथा पुनः भरने योग्य कंटेनरों जैसे धारणीय विकल्पों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: परीक्षण कीजिये कि जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार ताजे जल की कमी को बढ़ावा मिलता है तथा बताइये कि समाज को जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने हेतु क्या उपाय अपनाने चाहिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की शृंखला का निर्माण किया गया था और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था? (2021) (a) धौलावीरा उत्तर: (a) प्रश्न. 'वॉटर क्रेडिट' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न 1. जल संरक्षण और जल सुरक्षा के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए जल शक्ति अभियान की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? (2020) प्रश्न. रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइए। (2020) |