भारतीय अर्थव्यवस्था
डी-डॉलराइज़ेशन और भारत
- 20 Mar 2025
- 15 min read
प्रिलिम्स के लिये:BRICS+, डी-डॉलराइज़ेशन, केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राएँ (CBDC), बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS), 16वाँ कज़ान BRICS शिखर सम्मेलन 2024, क्रिप्टोकरेंसी, विनिमय दर, मुद्रा अवमूल्यन, ब्लॉकचेन भुगतान, UPI, RuPay, IMF, SDR, सॉवरेन वेल्थ फंड, G20 मेन्स के लिये:डी-डॉलराइज़ेशन और भारतीय तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव |
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
चर्चा में क्यों?
हाल की वित्तीय और मुद्रा पहलों, विशेष रूप से BRICS+ ढाँचे के भीतर, के अंतर्गत अमेरिकी डॉलर-प्रधान प्रणाली पर निर्भरता को कम करने (डी-डॉलराइज़ेशन) और वैश्विक व्यापार तथा वित्त के लिये वैकल्पिक तंत्र स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है।
डी-डॉलराइज़ेशन
- यह वैश्विक व्यापार, वित्त और विदेशी मुद्रा अरक्षित निधियों में अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को कम करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
- इसमें अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन, कमोडिटी ट्रेडिंग (जैसे तेल) और विदेशी मुद्रा धारिताओं के लिये अमेरिकी डॉलर को अन्य मुद्राओं या परिसंपत्तियों (जैसे सोना, क्रिप्टोकरेंसी या क्षेत्रीय मुद्राएँ) के साथ प्रतिस्थापित करना शामिल है।
डी-डॉलराइज़ेशन संबंधी हाल की वित्तीय और मुद्रा पहलें कौन-सी हैं?
- mBridge परियोजना: यह सेंट्रल बैंक डिजिटल मुद्राओं (CBDC) के उपयोग पर आधारित एक डिजिटल क्रॉस-बॉर्डर भुगतान प्रणाली है। इसे शुरुआत में बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS) के समर्थन से चीन, थाईलैंड जैसे कई देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा बढ़ावा दिया गया था।
- अनुमानों के अनुसार डॉलर के प्रभुत्व को बनाए रखने के लिये अमेरिकी दबाव के कारण BIS mBridge से अलग हुआ।
- BRICS+ पहल: BRICS ब्रिज और BRICS क्लियर, BRICS+ देशों में भुगतान और समाशोधन प्रणाली स्थापित करने के लिये प्रस्तावित वित्तीय प्रणालियाँ हैं।
- BRICS+ समूह में मूल BRICS राष्ट्र अर्थात ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका सहित नए सदस्य अर्थात मिस्र, इथियोपिया, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और इंडोनेशिया शामिल हैं।
- पेट्रो-युआन बाज़ार: वैश्विक तेल व्यापार का 10.5% और वैश्विक तेल फ्यूचर्स (मानकीकृत संविदा) का 14.4% शंघाई इंटरनेशनल एनर्जी एक्सचेंज (2018) द्वारा संपन्न होता है।
- सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के गैर-डॉलर तेल व्यापार से मांग में वृद्धि के कारण पेट्रो-युआन को बढ़ावा मिलता है और अमेरिकी डॉलर के एक स्थिर विकल्प के रूप में इसकी विश्वसनीयता बढ़ती है।
- BRICS मुद्रा: 16वें कज़ान BRICS शिखर सम्मेलन 2024 में, "यूनिट" नामक एक नई निपटान मुद्रा का उपयोग करने के लिये सिद्धांत रूप में एक समझौता हुआ, जो 40% सोने और सदस्य देशों की 60% स्थानीय मुद्राओं द्वारा समर्थित है।
डी-डॉलराइज़ेशन के वैश्विक लाभ क्या हैं?
- भू-राजनीतिक जोखिम में कमी: देश अमेरिका के उन प्रतिबंधों और विदेश नीति निर्णयों से स्वयं को को सुरक्षित रख सकते हैं जिनसे डॉलर के प्रभुत्व को बढ़ावा मिलता है (जैसे, परिसंपत्तियों को फ्रीज़ करना अथवा वैश्विक वित्तीय प्रणाली के अभिगम को प्रतिबंधित करना)।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद, पश्चिमी देशों ने रूस की 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की संपत्ति का कीलन कर लिया।
- विविधीकरण: डी-डॉलराइज़ेशन से बहु-मुद्रा उपयोग को बढ़ावा मिलता है, एक मुद्रा पर निर्भरता कम होती है और वैश्विक वित्त में संतुलन स्थापित होता है।
- उदाहरण के लिये, वैकल्पिक भुगतान प्रणाली स्थापित किये जाने हेतु पेट्रो-युआन और भारतीय रुपए का उदय।
- क्षेत्रीय मुद्राओं का सुदृढ़ीकरण: देश आर्थिक संप्रभुता का सुदृढ़ीकरण करने और विनिमय दर जोखिम को कम करने के उद्देश्य से व्यापार में अपनी मुद्राओं को बढ़ावा दे सकते हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत संयुक्त अरब अमीरात के साथ रुपए में तेल का व्यापार करता है।
- सभेद्यता में सुधार: डी-डॉलराइज़ेशन होने से देशों पर अमेरिकी मौद्रिक नीति (जैसे, ब्याज दर में परिवर्तन) से पड़ने वाला प्रभाव कम होगा, जिससे पूंजी पलायन और मुद्रा अवमूल्यन जैसे प्रभावों से संरक्षा मिलेगी।
- सोने के उपयोग में वृद्धि: डी-डॉलराइज़ेशन के कारण आरक्षित परिसंपत्ति के रूप में सोने का उपयोग पुनः प्रचलित हो गया है, जिससे यह वैध/कागज़ी मुद्राओं के लिये एक स्थिर विकल्प बन गया है।
- डिजिटल मुद्राओं को बढ़ावा: डी-डॉलराइज़ेशन से डिजिटल मुद्रा और ब्लॉकचेन भुगतान का विकास तेज़ी से होगा, जिससे वित्तीय नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
- उदाहरण के लिये, चीन का डिजिटल युआन (e-CNY) और भारत का डिजिटल रुपया (e₹)।
वैश्विक डी-डॉलराइज़ेशन संबंधी चिंताएँ क्या हैं?
- अल्पकालिक अस्थिरता: मुद्रा आरक्षित निधियों अथवा व्यापार समझौतों में सहसा परिवर्तन होने से वैश्विक बाज़ारों में अस्थिरता बढ़ सकती है, क्योंकि वर्तमान में डॉलर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्त का आधार है।
- विकल्पों की सीमित स्वीकृति: कई वैकल्पिक मुद्राओं (जैसे, युआन, रुपया या रूबल) में तरलता, स्थिरता और वैश्विक विश्वास का अभाव होता है जो अमेरिकी डॉलर में है।
- विखंडन का जोखिम: डी-डॉलराइज़ेशन से प्रतिस्पर्द्धी मुद्रा ब्लॉकों का निर्माण हो सकता है, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था विखंडित हो सकती है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश जटिल हो सकता है।
- भू-राजनीतिक तनाव: अमेरिका डी-डॉलराइज़ेशन प्रयासों पर आक्रामक प्रतिक्रिया दे सकता है, जिससे व्यापार युद्ध, प्रतिबंध या अन्य प्रकार की आर्थिक जवाबी कार्यवाही बढ़ सकती है।
- उदाहरण के लिये, डॉलर पर निर्भरता कम करने के प्रयास में BRICS देशों के लिये अमेरिकी टैरिफ का खतरा।
- वैश्विक परिणाम: डॉलर की आरक्षित स्थिति में गिरावट से अमेरिकी ऋण की मांग कम हो सकती है, और अमेरिका में आर्थिक अस्थिरता हो सकती है, जिसके वैश्विक प्रभाव हो सकते हैं, क्योंकि अमेरिका सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
- विनिमय दर निर्धारण की समस्या: वैश्विक बेंचमार्क के रूप में अमेरिकी डॉलर के बिना, देशों को बहु-मुद्रा बास्केट जैसे विकल्पों का उपयोग करना होगा, जिससे विनिमय दरें जटिल हो जाएंगी।
- उदाहरण के लिये, भारत और रूस लगातार अपनी स्थानीय मुद्राओं के आधार पर मुद्रा विनिमय दर पर बातचीत कर रहे हैं।
डी-डॉलराइज़ेशन पर भारत का दृष्टिकोण क्या है और इसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
- डी-डॉलराइज़ेशन पर भारत का दृष्टिकोण: भारत BRICS+ मुद्रा वार्ताओं में शामिल है, तथा सतर्कता बरतते हुए कहा है कि उसका अमेरिकी डॉलर को कमज़ोर करने का कोई इरादा नहीं है, क्योंकि वह इसे वैश्विक स्थिरता के लिये आवश्यक मानता है।
लाभ
- भारतीय रुपए को बढ़ावा देना: यह द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार समझौतों में भारतीय रुपए के उपयोग को प्रोत्साहित करता है। उदाहरण के लिये, तेल आयात के लिये भारत का रूस के साथ रुपए में व्यापार।
- अधिक मौद्रिक नीति स्वायत्तता: डॉलर पर निर्भरता कम करने से भारत को अमेरिकी नीतिगत बदलावों से प्रभावित हुए बिना, मुद्रास्फीति और ब्याज दरों को प्रबंधित करने के लिये मौद्रिक नीति पर अधिक नियंत्रण मिलता है।
- रिज़र्व का विविधीकरण: डी-डॉलराइज़ेशन से भारत को अपने रिज़र्व को अन्य मुद्राओं (जैसे, यूरो, येन, युआन) या स्वर्ण में विविधता लाने में मदद मिलती है, जिससे डॉलर के अवमूल्यन का जोखिम कम हो जाता है।
- अमेरिकी प्रतिबंधों के प्रति जोखिम में कमी: इससे अमेरिकी प्रतिबंधों के प्रति भारत की संवेदनशीलता कम हो जाती है तथा उसे अधिक भू-राजनीतिक लचीलापन प्राप्त होता है।
- यह अमेरिका-केंद्रित स्विफ्ट प्रणाली पर निर्भरता को कम करता है, तथा भारत की वित्तीय प्रणाली को जोखिमों और प्रतिबंधों से बचाता है।
चिंताएँ
- विदेशी निवेश पर प्रभाव: डॉलर से दूर जाने से विदेशी निवेशक हतोत्साहित हो सकते हैं जो डॉलर-मूल्य वाली संपत्तियों की स्थिरता और पूर्वानुमेयता को पसंद करते हैं।
- रिज़र्व में विविधता लाने में चुनौतियाँ: वैकल्पिक मुद्राएँ या स्वर्ण जैसी परिसंपत्तियाँ भारत को नए जोखिमों के प्रति सुभेद्द बना सकती हैं, जैसे मुद्रा मूल्यह्रास या वस्तुओं की कीमत में उतार-चढ़ाव।
- भारत के लिये चीनी युआन पर अत्यधिक निर्भरता का जोखिम है, जिससे भू-राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियाँ सामने आ रही हैं।
- धन प्रेषण पर प्रभाव: डी-डॉलराइज़ेशन से भारत में डॉलर में भेजी जाने वाली धनराशि बाधित हो सकती है, जिससे लाखों परिवार प्रभावित होंगे।
भारत के लिये आगे क्या है?
- रुपए को मज़बूत बनाना: भारत-UAE तेल व्यापार की तरह रुपए में द्विपक्षीय व्यापार का विस्तार करना, साथ ही करेंसी स्वैप और ब्रिक्स+ पहल जैसे क्षेत्रीय ढाँचे को बढ़ावा देना।
- रिज़र्व में विविधता लाना: यूरो, येन, युआन, स्वर्ण और IMF SDR में रिज़र्व का विविधीकरण करके अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना, साथ ही स्थिरता के लिये संप्रभु संपदा निधि (SWF) और कमोडिटी भंडार का विकास करना।
- जोखिम प्रबंधन: बहु-मुद्रा व्यापार प्रणाली को बनाए रखना, विविधतापूर्ण व्यापार के लिये आसियान, यूरोपीय संघ और अफ्रीका के साथ संबंधों को मज़बूत करना तथा रुपए में निवेशकों का विश्वास सुनिश्चित करना।
- भारत की वित्तीय स्थिति को सुदृढ़ करना: मुंबई को वैश्विक वित्तीय केंद्र के रूप में स्थापित करना, बॉण्ड बाज़ार में तरलता को बढ़ावा देना, तथा IMF, G-20 और अन्य निकायों के माध्यम से बहु-मुद्रा प्रणाली की वकालत करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: डी-डॉलराइज़ेशन की अवधारणा और भारत की अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. हाल ही में IMF के SDR बास्केट में निम्नलिखित में से किस मुद्रा को जोड़ने का प्रस्ताव दिया गया है? (a) रूबल उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न: विश्व व्यापार में संरक्षणवाद और मुद्रा चालबाजियों की हाल की परिघटनाएँ भारत की समष्टि आर्थिक स्थिरता को किस प्रकार से प्रभावित करेंगी? (वर्ष 2018) प्रश्न: सोने के लिये भारतीयों के उन्माद ने हाल के वर्षों में सोने के आयात में प्रोत्कर्ष (उछाल) उत्पन्न कर दिया है और भुगतान-संतुलन और रुपए के बाह्य मूल्य पर दबाव डाला है। इसको देखते हुए, स्वर्ण मुद्रीकरण योजना के गुणों का परीक्षण कीजिये। (वर्ष 2015) |