भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत के लिये संप्रभु संपदा निधि की आवश्यकता
- 31 Jan 2025
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प्रिलिम्स के लिये:संप्रभु संपदा निधि, पेंशन फंड, नॉर्वे की सरकारी पेंशन निधि ग्लोबल, वैश्विक वित्तीय संकट 2008, योजना आयोग, NIIF, विनिवेश, विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि, गैर-ऋण वित्तीय संसाधन, चालू खाता घाटा, राजकोषीय घाटा, ESG (पर्यावरणीय, सामाजिक, शासन), हाइड्रोजन ऊर्जा, अर्द्धचालक, जैवप्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता मेन्स के लिये:भारत के लिये संप्रभु संपदा निधि की आवश्यकता, संबंधित चिंताएँ और आगे की राह |
स्रोत: फाइनेंशियल एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत अपनी अर्थव्यवस्था के निष्क्रिय राष्ट्रीय धन/संपत्ति का उपयोग करने के लिये भारत संप्रभु संपदा निधि (Sovereign Wealth Fund- BSWF) अथवा भारत निधि (TBF) का निर्माण करने पर विचार कर रहा है।
संप्रभु संपदा निधि (SWF) क्या है?
- परिचय: SWF सरकारी स्वामित्व वाली निधियाँ हैं जिनका स्रोत राज्य के अधिशेष हैं, जो प्रायः प्राकृतिक संसाधनों, व्यापार अधिशेष या बजट आधिक्य जैसे विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती हैं।
- SWF सरकारों को रणनीतिक निवेश के माध्यम से धन सृजन में मदद करते हैं, जिससे वित्तीय स्थिरता और आर्थिक विकास सुनिश्चित होता है।
- विशेषताएँ: सैंटियागो सिद्धांत 2008 के अनुसार SWF को 3 प्रमुख अभिलक्षण के साथ परिभाषित किया गया है:
- इस पर सार्व सरकार का स्वामित्व होता है, जिसमें केंद्रीय सरकार और उप-राष्ट्रीय सरकारें दोनों शामिल हैं।
- इसमें विदेशी वित्तीय परिसंपत्तियों में निवेश भी शामिल है।
- वित्तीय उद्देश्यों के लिये इनका निवेश किया जाता है।
- इन प्रमुख कारकों में पॉलिसीधारकों के स्वामित्व वाली लोक पेंशन निधियाँ, तथा केंद्रीय बैंक की आरक्षित परिसंपत्तियाँ शामिल नहीं हैं, जिनमें निवेश नहीं किया जाता है।
- प्रकार:
- स्थिरीकरण निधि: राजकोषीय स्थिरता सुनिश्चित करते हुए अस्थिर राजस्व से होने वाली समस्याओं का समाधान करना।
- भावी पीढ़ी निधि: भावी पीढ़ियों के लाभ हेतु राज्य के अधिशेष को दीर्घकालिक धन के लिये निवेश करना।
- सार्वजनिक लाभ पेंशन रिज़र्व निधि: दीर्घकालिक दायित्वों को पूरा करने के लिये पेंशन प्रणालियों को वित्तपोषित करना।
- आरक्षित निवेश निधि: मुद्रा को स्थिर करने के उद्देश्य से विदेशी मुद्रा आरक्षित निधिका प्रबंधन और इसमें वृद्धि करना
- रणनीतिक विकास SWF: राष्ट्रीय विकास के लिये प्रमुख क्षेत्रों में निवेश करना।
- विदेशी मुद्रा आरक्षित परिसंपत्तियाँ: मुद्रा स्थिरता बनाए रखना और वैश्विक व्यापार शक्ति का प्रबंधन करना।
- उदाहरण: नॉर्वे गवर्नमेंट पेंशन फंड ग्लोबल (1.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर, विश्व का सबसे बड़ा SWF), चाइना इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन (1.35 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर), अबू धाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी (993 बिलियन अमेरिकी डॉलर) आदि।
- भारत में SWF:
- वर्ष 2007-08: भारत में SWF का विचार वर्ष 2007-08 में पूंजी प्रवाह में वृद्धि (एक वर्ष में 108 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक) के कारण लोकप्रिय हुआ लेकिन वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद इसकी गति कम हो गई।
- वर्ष 2010-11: योजना आयोग ने वर्ष 2010-11 में SWF संबंधी प्रस्ताव को पुनर्जीवित किया जिसमें विदेशी मुद्रा भंडार, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों या बजट आवंटन द्वारा वित्तपोषित 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर के कोष का सुझाव दिया गया।
- वर्ष 2015: NIIF की स्थापना की गई जो भारत का प्रमुख संरचित निवेश कोष बना हुआ है।
नोट: सैंटियागो सिद्धांत 24 स्वैच्छिक दिशानिर्देशों के एक समूह को संदर्भित करता है जो सॉवरेन वेल्थ फंड्स (SWF) के लिये पारदर्शिता, सुशासन, जवाबदेही और विवेकपूर्ण निवेश प्रथाओं को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
- इन सिद्धांतों की स्थापना वर्ष 2008 में सॉवरेन वेल्थ फंड्स के अंतर्राष्ट्रीय फोरम (IFSWF) द्वारा की गई थी, जो वैश्विक SWF का एक स्वैच्छिक संगठन है।
भारत को SWF की आवश्यकता क्यों है?
- सार्वजनिक क्षेत्र की सम्पत्ति को अनलॉक करना: SWF से राज्य-स्वामित्व वाली संस्थाओं में निवेश करके और उनसे रिटर्न बढ़ाकर, 80 सूचीबद्ध उद्यमों में अनुमानित 40 लाख करोड़ रुपए (450-500 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का प्रबंध हो सकता है।
- राजकोषीय घाटे में कमी: सरकारी इक्विटी से 2% विनिवेश से प्रतिवर्ष 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की प्राप्ति हो सकती है जिससे भारत का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 4.9% से घटकर 4.6% हो जाएगा।
- निवेश में विविधता लाना: वर्ष 2007-09 के संकट से अमेरिकी ट्रेजरी जैसी 'सुरक्षित' प्रतिभूतियों पर निर्भर रहने के जोखिमों पर प्रकाश पड़ा।
- भारत के SWF से निवेश में विविधता आने के साथ उच्च रिटर्न प्राप्त हो सकता है।
- अतिरिक्त भंडार का लाभ उठाना: भारत के अतिरिक्त विदेशी मुद्रा भंडार (जो नौ माह के आयात के बराबर है) का राष्ट्रीय संपदा को बढ़ाने के क्रम में बेहतर उपयोग किया जा सकता है।
- रणनीतिक क्षेत्रों के लिये समर्थन: इसके तहत इलेक्ट्रिक वाहन, हाइड्रोजन ऊर्जा, अर्द्धचालक, जैव प्रौद्योगिकी और AI जैसे क्षेत्रों में निवेश के माध्यम से दीर्घकालिक विकास और नवाचार को बढ़ावा मिलने से भारत एक वैश्विक नेतृत्वकर्त्ता के रूप में स्थापित हो सकेगा।
- सामाजिक कल्याण: सामाजिक कल्याण कोष के तहत सामाजिक क्षेत्र की प्रतिबद्धताओं के लिये गैर-ऋण वित्तीय संसाधन उपलब्ध हो सकते हैं जिससे कल्याण कार्यक्रमों एवं राष्ट्रीय विकास निवेशों के लिये राजकोषीय अनुकूलन बढ़ सकता है।
- प्रोजेक्टिंग सॉफ्ट पावर: SWF से उद्यमों को विकसित करने एवं आपदा राहत प्रदान करने के साथ नॉर्वे जैसे अन्य देशों के SWF में निवेश किया जा सकता है जिससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा तथा सॉफ्ट पावर को बढ़ावा मिलेगा।
SWF से जुड़ी चिंताएँ क्या हैं?
- चालू खाता घाटा: SWF आमतौर पर खनिज संपदा या व्यापार और बजट अधिशेष वाले देशों के लिये होते हैं, लेकिन भारत को लगातार चालू खाता घाटे और महत्त्वपूर्ण राजकोषीय घाटे का सामना करना पड़ रहा है।
- व्यापक आर्थिक जोखिम: वैश्विक विकास में मंदी, बढ़ता संप्रभु ऋण, तथा वित्तीय स्थितियों में कठोरता, निवेश प्रतिफल को कम करके, राजकोषीय स्वास्थ्य पर दबाव डालकर, तथा वित्तीय अस्थिरता को बढ़ाकर SWF को प्रभावित कर सकती है ।
- भू-राजनीतिक तनाव: भू-राजनीतिक तनाव और वैश्वीकरण से दूरी SWF निवेश रणनीतियों को बाधित कर सकती है, जिससे सीमा पार निवेश, आपूर्ति शृंखला और व्यापार नीतियाँ प्रभावित हो सकती हैं।
- पर्यावरणीय जोखिम: यदि पर्यावरण नीतियाँ विफल हो जाती हैं, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन के मामले में, तो SWF को जलवायु-प्रभावित उद्योगों और फंसी हुई परिसंपत्तियों से नुकसान का जोखिम उठाना पड़ सकता है।
- प्रौद्योगिकीय कमज़ोरियाँ: बबड़ी मात्रा में सार्वजनिक धन का प्रबंधन करने वाले SWF को धोखाधड़ी और डेटा चोरी के बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ता है।
- प्रौद्योगिकी में तीव्र प्रगति पारंपरिक निवेश मॉडल को बाधित कर सकती है।
आगे की राह
- स्पष्ट शासन ढाँचा: SWF शासन में सर्वोत्तम प्रथाओं के लिये पारदर्शिता, जवाबदेही और सैंटियागो सिद्धांतों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये एक स्पष्ट कानूनी और नियामक ढाँचा स्थापित करना।
- रणनीतिक परिसंपत्ति आवंटन: भारत की वैश्विक स्थिति को बढ़ाने के लिये AI, जैव प्रौद्योगिकी, EV और सेमीकंडक्टर जैसे उच्च विकास वाले क्षेत्रों में निवेश करना।
- विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिये वैश्विक फंडों के साथ सह-निवेश मॉडल पर विचार करना।
- राजकोषीय विवेक: संसाधनों के चरणबद्ध आवंटन को लागू करना, राजकोषीय घाटा प्रबंधन और निवेश लक्ष्यों के बीच संतुलन सुनिश्चित करना।
- जोखिम प्रबंधन: बाज़ार में अस्थिरता और वित्तीय संकटों सहित व्यापक आर्थिक जोखिमों को कम करने के लिये रणनीति विकसित करना।
- जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों में फंसी हुई परिसंपत्तियों से बचने के लिये ESG (पर्यावरण, सामाजिक, शासन) सिद्धांतों को अपनाना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: सॉवरेन वेल्थ फंड (SWF) क्या हैं? भारत में इसके संभावित लाभ और इससे जुड़ी चिंताओं पर चर्चा कीजिये? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न: 'राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढाँचा कोष' के संदर्भ में निम्नलिखितव् कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. “अधिक तीव्र और समावेशी आर्थिक विकास के लिये बुनियादी ढाँचे में निवेश आवश्यक है।” भारत के अनुभव के आलोक में चर्चा कीजिये। (2021) प्रश्न. एक अर्थव्यवस्था में पूँजी निर्माण के रूप में विनियोग के अर्थ की व्याख्या कीजिये। उन कारकों की विवेचना कीजिये, जिन पर एक सार्वजनिक एवं एक निजी निकाय के मध्य रिआयत अनुबंध (कॉन्सेशन एग्रिमेन्ट) तैयार करते समय विचार किया जाना चाहिये। (2020) |