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भारत-विश्व

द बिग पिक्चर : वैश्विक मंदी

  • 13 Apr 2019
  • 9 min read

संदर्भ

पिछले सप्ताह के नए आँकड़ों के अनुसार, चीन के औद्योगिक मुनाफे में साल के पहले दो महीनों में तेज़ी से गिरावट आई है जिससे वैश्विक मंदी को लेकर चिंता बढ़ गई है। अमेरिका और चीन बीजिंग में उच्च स्तरीय व्यापार वार्ता फिर से शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं। वैश्विक मंदी की आशंका के बावजूद भारतीय बाज़ारों ने सभी नुकसानों की भरपाई कर लिये जाने के प्रति विश्वास जताया है।

  • घरेलू बाज़ारों को उम्मीद है कि अमेरिकी मंदी और ब्रेक्ज़िट की आशंकाओं के बारे में सभी अनिश्चितताओं के बीच भारत जैसे उभरते बाज़ार सुरक्षित निवेश का विकल्प बन सकते हैं।

वैश्विक अर्थव्यवस्था के आँकड़े

  • यूरोप गिरावट की स्थिति में है।
  • इसमें ब्रेक्ज़िट भी एक प्रमुख कारण है।
  • यूरोप में लगभग हर बड़ी और मध्यम आकार की अर्थव्यवस्था में मंदी की स्पष्ट स्थिति।
  • क्षेत्र में खराब आर्थिक स्थिति।
  • चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच व्यापार किये गए माल पर लगाए गए टैरिफ का विवाद जारी है।
  • ऐसी संभावना व्यक्त की गई है कि यदि यू.एस.-चीन ट्रेड वॉर आगे भी जारी रहता है तो इससे दोनों अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान होगा।
  • चीन की मंदी : चीन एक 'परिपक्व' अर्थव्यवस्था परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है जिसने दो दशकों तक दोहरे अंकों में वृद्धि देखी है, वह मंदी का सामना करने के लिये बाध्य है।

चीन में वर्तमान मंदी के कारण

  • किसी भी विकसित अर्थव्यवस्था का वृद्धि दर लंबे समय तक दोहरे अंकों में जारी नहीं रह सकती।
  • चीन का जननांकिकी लाभांश उसके सिंगल चाइल्ड पॉलिसी के चलते कम होता जा रहा है जिसके कारण वर्क फ़ोर्स का संकट उत्पन्न हो गया है।
  • वर्ष 2012 तक चीन में वर्क फ़ोर्स की स्थिति काफी अच्छी थी। उसके बाद अधिक उम्र के लोगों की संख्या बढ़ने के कारण कुल जनसंख्या की तुलना में उत्पादक श्रम बल धीरे-धीरे कम होता गया जिसके कारण श्रम करने वाले लोगों का प्रतिशत काफी कम हो गया।
  • संसाधनों के विनियोजन की अक्षमता भी एक प्रमुख कारण है। चीन में तीन दशकों तक एक्सपोर्ट की वृद्धि दर लगभग 17 प्रतिशत रही है जिसका चीन की आर्थिक वृद्धि में बड़ा योगदान रहा है जो अब लगातार घटता जा रहा है।
  • चीन ने इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में काफी निवेश किया है साथ ही एक्सपोर्ट को बढ़ावा दिया है जिसके कारण अर्थव्यवस्था में काफी तेज़ी आई लेकिन अब इसकी गति धीमी हो गई है।
  • वर्तमान में चीन क़र्ज़ में डूबा हुआ है। यह क़र्ज़ चीन की कुल GDP का 300 प्रतिशत के बराबर है जो मंदी के प्रमुख कारणों में से एक है, साथ ही बैड लोन का जोखिम भी चीन की चिंता का प्रमुख कारण है।
  • चीन विकासशील से विकसित अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हो रहा है और प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ आगे बढ़ रहा है जो किसी विकसित अर्थव्यवस्था के लिये पर्याप्त नहीं है।
  • चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी चक्रीय कारकों की वजह से नहीं बल्कि ढाँचागत बदलाव की वजह से है। जब तक नए कारक सामने नहीं आते, जीडीपी वृद्घि अन्य विकसित देशों की तुलना में कम होते रहने की आशंका है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

अमेरिका में मंदी (Recession) के संकेत

  • अमेरिका में रोज़गार दर में कमी।
  • लोगों की क्रय शक्ति या खपत दर में गिरावट।
  • यू.एस. हमेशा से ही विश्व अर्थव्यवस्था के लिये विकास का प्रमुख चालक रहा है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था में ठहराव आ गया है जिसके कारण विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन और सेवाओं को बढ़ने से वैश्विक अर्थव्यवस्था को हो रहे नुकसान की भरपाई करने में वह सक्षम नहीं होगा।
  • इसका उन अन्य अर्थव्यवस्थाओं पर अनपेक्षित लाभ प्रभाव (spin-off-effect) पड़ेगा जो तीसरे देश के निर्यात के लिये अमेरिका को माल और सेवाओं की आपूर्ति करते हैं।
  • कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, दुनिया की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ भी मंदी के कारण प्रभावित हो रही हैं।

अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • चीनी आयात में मंदी के परिणामस्वरूप कुछ देशों (विशेष रूप से दक्षिण एशियाई देशों) को नुकसान हो रहा है जो विभिन्न घटकों (Components) सहित अन्य तैयार माल तथा ‘सप्लाई वैल्यू चेन’ के लिये चीन पर निर्भर हैं।
  • विशेष रूप से अफ्रीका और दक्षिण अमेरिकी क्षेत्र के उन देशों के लिये यह एक झटका होगा जो चीन को कच्चे माल का निर्यात करते हैं।
  • ऐसा अनुमान लगाया गया है कि इस ट्रेड वॉर में पहले से ही जीडीपी का कम-से-कम 0.1% का नुकसान हुआ है। संयुक्त राज्य अमेरिका में उपभोक्ता चीनी वस्तुओं पर बढ़े हुए टैरिफ का खामियाजा भुगत रहे हैं, जिससे देश में मुद्रास्फीति की स्थिति बढ़ रही है।

भारत के लिये मंदी के लाभ

  • भारत पहले ही यूरोप और यू.एस. में मंदी के कारण अपने शेयर बाज़ार निवेश बढ़ा रहा है। यह प्रवृत्ति आगे भी जारी रहने की संभावना है।
  • निवेश में वृद्धि से भारत को अपनी बुनियादी सुविधाओं को पूरा करने में मदद मिलेगी और इस तरह यह एक शुद्ध-निर्यातक देश बनने में मदद कर सकता है।
  • भारत को अपनी बड़ी परियोजनाओं के लिये वाणिज्यिक उधारदाताओं के साथ बेहतर शर्तों पर बातचीत करने का अवसर भी प्राप्त होगा।
  • ऊर्जा की कीमतें स्थिर रहने की संभावना है जो भारत को आयात पर अपनी लागत कम करने और ऊर्जा क्षेत्र में सुधार करने में भी मदद करेगा।

भारत के लिये चुनौतियाँ

  • ऐसी संभावना है कि मंदी के कारण भारत के निर्यात में और रुकावट आएगी।
  • बढ़ते निवेश के मद्देनज़र भारत के लिये सबसे बड़ी चुनौती अपने खर्च को प्रबंधित करना है।
  • निवेशकों को आकर्षित करना जारी रखने के लिये यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि निवेश को सही तरीके से वर्गीकृत किया जाए यानी भौतिक या सामाजिक बुनियादी ढाँचे में, ताकि निवेशक अपनी कमाई के बारे में निश्चिंत रहें।

निष्कर्ष

दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ मंदी की आशंका के चलते संघर्ष कर रही हैं। भारत अपने व्यय का प्रबंधन करके इस मंदी से लाभ उठा सकता है।

प्रश्न : वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में दृष्टिगोचर वित्तीय संकट के संकेत अगले दो वर्षों में आर्थिक मंदी ला सकते हैं। इस संभावित आर्थिक मंदी में क्या अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर ने भी भूमिका निभाई है? इसे देखते हुए भारत द्वारा अग्रिम रूप से अपनाए जाने वाले उपायों पर प्रकाश डालें।

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