शासन व्यवस्था
एकीकृत ESG फ्रेमवर्क की ओर भारत का रूख
- 18 Dec 2024
- 38 min read
यह एडिटोरियल 16/12/2024 को बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित “Lack of regulatory clarity could drive away private ESG finance for India” पर आधारित है। इस लेख में ESG निवेश में वैश्विक बदलाव का उल्लेख किया गया है, जिसमें अमेरिका में राजनीतिक प्रतिरोध के कारण वर्ष 2024 में ग्रीन फंड से 24 बिलियन डॉलर के बहिर्वाह और नियामक विलंब के कारण भारत के चूके हुए अवसरों पर प्रकाश डाला गया है। यह भारत द्वारा स्थायी निवेश आकर्षित करने के लिये स्पष्ट और सामंजस्यपूर्ण ESG फ्रेमवर्क को अपनाने की तत्काल आवश्यकता पर जोर देता है।
प्रिलिम्स के लिये:पर्यावरण, सामाजिक और शासन, व्यावसायिक उत्तरदायित्व और संवहनीयता रिपोर्टिंग, ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स- 2019, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, FAME II योजना, लघु और मध्यम उद्यम, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन मेन्स के लिये:भारत में ESG विनियमन का विकास, भारत में प्रभावी ESG कार्यान्वयन में बाधा डालने वाली चुनौतियाँ |
पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) रिपोर्टिंग का वैश्विक परिदृश्य एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन से गुज़र रहा है, जिसमें वर्ष 2024 में हरित-वित्तपोषण केंद्रित फंड से लगभग 24 बिलियन डॉलर का बहिर्वाह हो रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, राजनीतिक ध्रुवीकरण एवं रूढ़िवादी राज्यों के प्रतिरोध ने ESG उत्साह को स्थिर करने में योगदान दिया है। भारत एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जो नौकरशाही विलंब और स्पष्ट नियामक फ्रेमवर्क की कमी के कारण संवहनीय निवेश में संभावित अरबों डॉलर से चूक गया है। जैसे-जैसे वैश्विक निवेश का माहौल अधिक चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है, भारत को संवहनीय निवेश बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिये व्यापक, अंतर-संचालन योग्य ESG विनियमन विकसित करने के लिये तेज़ी से कार्य करना चाहिये।
ESG रिपोर्टिंग क्या है?
- पर्यावरण, सामाजिक और शासन के संदर्भ में: पर्यावरण, सामाजिक और शासन तीन प्रमुख क्षेत्रों में किसी कंपनी की संवहनीयता एवं नैतिक प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण फ्रेमवर्क है:
- पर्यावरणीय प्रभाव
- सामाजिक ज़िम्मेदारी
- निगम से संबंधित शासन प्रणाली
- बढ़ती वैश्विक पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियों के बीच, निवेशक एवं हितधारक तीव्रता से मांग कर रहे हैं कि व्यवसाय ज़िम्मेदार व्यवहार अपनाएँ।
- दीर्घकालिक व्यावसायिक सफलता, जोखिम न्यूनीकरण और निवेशकों के विश्वास में वृद्धि के लिये प्रभावी ESG प्रदर्शन आवश्यक हो गया है।
भारत में ESG विनियम किस प्रकार विकसित हुए?
- वर्ष 2009: नैगम कार्य मंत्रालय (MCA) ने ‘नैगमिक सामाजिक उत्तरदायित्व पर स्वैच्छिक दिशा-निर्देश’ जारी किये।
- वर्ष 2011: MCA ने “व्यवसाय की सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक दायित्वों पर राष्ट्रीय स्वैच्छिक दिशा-निर्देश (NVG)” प्रस्तुत किया, जो रिपोर्टिंग के लिये एक संरचित फ्रेमवर्क प्रदान करता है।
- वर्ष 2012: भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने शीर्ष 100 सूचीबद्ध कंपनियों (बाज़ार पूंजीकरण के आधार पर) को व्यावसायिक उत्तरदायित्व रिपोर्ट (BRR) दाखिल करने का आदेश दिया।
- BRR आवश्यकता का विस्तार कर वर्ष 2016 में शीर्ष 500 सूचीबद्ध कंपनियों को इसमें शामिल किया गया है।
- वर्ष 2019: MCA ने NVG को अद्यतन किया और उनका नाम बदलकर ‘ज़िम्मेदार व्यावसायिक आचरण के लिये राष्ट्रीय दिशा-निर्देश (NGRBC)" रखा।
- वर्ष 2021: SEBI ने व्यावसायिक उत्तरदायित्व और संवहनीयता रिपोर्टिंग (BRSR) फ्रेमवर्क पेश किया:
- शीर्ष 1000 कंपनियों के लिये स्वैच्छिक अंगीकरण।
- वित्त वर्ष 2023 से यह अनिवार्य हो गया है।
- वर्ष 2023: SEBI ने BRSR कोर लॉन्च किया, जो वित्त वर्ष 2024 से शीर्ष 150 सूचीबद्ध कंपनियों (बाज़ार पूंजीकरण के आधार पर) पर लागू होगा।
भारत के लिये मज़बूत पर्यावरणीय, सामाजिक और प्रशासनिक फ्रेमवर्क क्यों महत्त्वपूर्ण है?
- जलवायु संकट और भारत की भेद्यता: भारत जलवायु परिवर्तन के प्रति 7वाँ सबसे सुभेद्य देश है (ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स- 2019), जहाँ भीषण बाढ़, सूखा और हीट वेव्स जनजीवन तथा GDP वृद्धि को बाधित कर रही हैं।
- भारत को वर्ष 2021 में अत्यधिक गर्मी के कारण सेवा, विनिर्माण, कृषि और निर्माण क्षेत्रों में 159 बिलियन डॉलर, जो उसके सकल घरेलू उत्पाद का 5.4% है, की आय का नुकसान हुआ।
- ESG सिद्धांतों को एकीकृत करने से प्रबल अनुकूलन और शमन रणनीतियों को सुनिश्चित किया जा सकेगा।
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और व्यापार मानक: भारत के निर्यात उद्योगों पर ESG आवश्यकताओं के अनुरूप ढलने का दबाव बढ़ रहा है, क्योंकि यूरोपीय संघ कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) जैसे वैश्विक बाज़ार संवहनीय प्रथाओं की मांग कर रहे हैं।
- CBAM 1 जनवरी, 2026 से 7 कार्बन-गहन क्षेत्रों के लिये लागू होगा, जिनमें इस्पात, सीमेंट, उर्वरक, एल्यूमीनियम और हाइड्रोकार्बन उत्पाद शामिल हैं।
- भारत के लौह अयस्क छर्रों, लोहा, इस्पात और एल्युमीनियम उत्पादों के निर्यात का 26.6% हिस्सा यूरोपीय संघ को जाता है। ये उत्पाद CBAM से प्रभावित होंगे। ESG की उपेक्षा भारत के लिये गंभीर चिंता का विषय होगी।
- आर्थिक विकास और सतत् विकास: 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की भारत की आर्थिक महत्त्वाकांक्षा सतत् विकास पर निर्भर है।
- विनिर्माण, ऊर्जा और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में ESG के अंगीकरण से संसाधन दक्षता तथा दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित होता है।
- अडानी ग्रीन जैसी ESG फ्रेमवर्क में निवेश करने वाली कंपनियों ने वित्त वर्ष 2024 में स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन में 30% की वृद्धि देखी, जिससे संवहनीयता लक्ष्यों के साथ लाभ का संरेखण हुआ।
- ऊर्जा सुरक्षा और हरित परिवर्तन: भारत की जीवाश्म ईंधन आयात पर भारी निर्भरता (तेल का 85% और प्राकृतिक गैस का 50%) अर्थव्यवस्था पर दबाव डालती है जो कार्बन उत्सर्जन को बढ़ाती है।
- वर्ष 2023 में भारत जापान को पीछे छोड़ते हुए विश्व का तीसरा सबसे बड़ा सौर ऊर्जा उत्पादक बन जाएगा। सौर ऊर्जा का वैश्विक स्तर पर 5.5% योगदान है, भारत का उत्पादन काफी बढ़ रहा है।
- ESG नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण को गति प्रदान करता है, जिससे ऊर्जा सुरक्षा और रोज़गार सृजन में वृद्धि होती है।
- रोज़गार सृजन और हरित रोज़गार: ESG-संचालित क्षेत्रों में परिवर्तन से स्वच्छ ऊर्जा, अपशिष्ट प्रबंधन और संवहनीय उद्योगों में लाखों रोज़गार का सृजन होता हैं।
- भारत का हरित अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का आर्थिक प्रभाव डाल सकता है, साथ ही 50 मिलियन से अधिक नौकरियाँ भी उत्पन्न कर सकता है।
- उदाहरण के लिये, केवल राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन से 6 लाख नौकरियाँ सृजित होंगी, जबकि FAME II योजना के तहत इलेक्ट्रिक वाहन विनिर्माण से वर्ष 2030 तक 10 मिलियन प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष नौकरियों का सृजन होगा।
- वायु और जल गुणवत्ता में सुधार: भारत के नगर गंभीर वायु प्रदूषण का सामना कर रहे हैं, जिससे स्वास्थ्य, उत्पादकता और जीवन प्रत्याशा प्रभावित हो रही है।
- उदाहरण के लिये, दिल्ली का AQI वर्ष 2024 में प्रायः 400+ के स्तर को पार कर लेता है। भारत की आधी से अधिक नदियाँ अत्यधिक प्रदूषित हैं और कई अन्य नदियाँ आधुनिक मानकों के अनुसार असुरक्षित माने जाने वाले स्तर पर हैं।
- ESG के अंगीकरण से स्वच्छ ऊर्जा, कुशल उद्योग और बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे अंततः प्रदूषण में कमी आएगी।
- निगमित प्रशासन और जोखिम शमन: ESG के तहत सुदृढ़ प्रशासन पारदर्शिता, नैतिक व्यावसायिक प्रथाओं और हितधारक विश्वास सुनिश्चित करता है।
- अच्छे प्रशासन वाली कंपनियों का स्टॉक प्रदर्शन बेहतर होता है और जोखिम कम होता है।
- उदाहरण के लिये, शीर्ष 1,000 कंपनियों के लिये SEBI की व्यावसायिक उत्तरदायित्व और संवहनीयता रिपोर्टिंग (BRSR) ने निगमित ESG प्रकटीकरण में सुधार किया, जिससे इंफोसिस जैसी कंपनियों को लाभ हुआ।
- अपशिष्ट प्रबंधन और चक्रीय अर्थव्यवस्था: ऊर्जा और संसाधन संस्थान (TERI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष 62 मिलियन टन (MT) से अधिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है।
- कुल उत्पन्न अपशिष्ट में से केवल 43 मीट्रिक टन ही एकत्रित किया जाता है, जिसमें से 12 मीट्रिक टन अपशिष्ट को निपटान से पहले संसाधित किया जाता है, तथा शेष 31 मीट्रिक टन को अपशिष्ट-गृहों में ही फेंक दिया जाता है।
- ESG अपशिष्ट को न्यूनतम करने और पुनर्चक्रण को अधिकतम करने के लिये चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों पर केंद्रित है।
- हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसी कंपनियाँ अब प्लास्टिक-शून्य हो गई हैं, वे अपने उत्पादन से अधिक प्लास्टिक का पुनर्चक्रण करती हैं, जो विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) मानदंडों के अनुरूप है।
- स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक विकास: ESG सामाजिक घटक पर ज़ोर देता है, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और सामुदायिक विकास में निवेश को बढ़ावा देता है, जो भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- उदाहरण के लिये, वित्त वर्ष 2023 में भारत का स्वास्थ्य व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 2.1% हो गया, जिसमें भारत की लगभग 68% आबादी अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, फिर भी इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा बुनियादी अवसंरचना की स्थिति दयनीय है, जिसके लिये आगे ESG हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
- निवेशक भावनाएँ और सतत् वित्त: वैश्विक निवेशक तीव्रता से ESG-अनुरूप बाज़ारों का पक्ष ले रहे हैं, और भारत को बुनियादी अवसंरचना एवं विकास के लिये सतत् वित्त की आवश्यकता है।
- अब तक, भारत एशिया प्रशांत क्षेत्र में GSS+ (हरित, सामाजिक, संवहनीयता और संवहनीयता-लिंक्ड) बॉण्ड का छठा सबसे बड़ा जारीकर्त्ता है, भारत में जारी किये गए समग्र GSS+ बॉण्ड में हरित बॉण्ड का हिस्सा 62% से अधिक है, जो सतत् विकास में दृढ निवेशक विश्वास को प्रदर्शित करता है।
भारत में प्रभावी ESG कार्यान्वयन में बाधा डालने वाली चुनौतियाँ क्या हैं?
- विनियामक स्पष्टता और प्रवर्तन का अभाव: भारत के ESG फ्रेमवर्क में एकीकृत, वैधानिक रूप से बाध्यकारी संरचना का अभाव है, और प्रवर्तन तंत्र कमज़ोर हैं, विशेष रूप से लघु और मध्यम उद्यमों (SME) के लिये।
- कंपनियाँ प्रायः ESG को रणनीतिक परिवर्तन के बजाय अनुपालन के रूप में देखती हैं, जिसके कारण इसे केवल सतही तौर पर ही अपनाया जाता है।
- उदाहरण के लिये, शीर्ष 1,000 फर्मों के लिये SEBI के BRSR अधिदेश के बावजूद, कई सूचीबद्ध लघु और मध्यम उद्यम ESG रिपोर्टिंग के साथ संघर्ष करते हैं।
- ESG अंगीकरण की उच्च लागत और सीमित पूंजी: संवहनीय प्रथाओं को अपनाने के लिये बहुत बड़े वित्तीय निवेश की आवश्यकता होती है, जिससे नकदी की कमी वाले उद्योगों, विशेष रूप से MSME जैसे ऊर्जा-गहन क्षेत्रों के लिये यह अव्यवहारिक हो जाता है।
- किफायती ग्रीन फाइनेंस की सुलभता में कमी इस मुद्दे को और बढ़ा देती है। उदाहरण के लिये, सीमेंट और स्टील जैसे उद्योगों के लिये ESG-संबंधित लागत 25-75% (ग्रीन सीमेंट व ग्रीन स्टील के लिये) तक बढ़ सकती है।
- अपर्याप्त जागरूकता और ESG कौशल अंतराल: उद्योगों और निवेशकों के बीच जागरूकता एवं विशेषज्ञता की कमी है, विशेष रूप से टियर-2 तथा टियर-3 क्षेत्रों में, जहाँ ESG फ्रेमवर्क के बारे में ज्ञान न्यूनतम है।
- भारत के कार्यबल में ESG रणनीतियों को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने के लिये तकनीकी कौशल का भी अभाव है।
- वर्तमान में, शीर्ष 1,000 सूचीबद्ध कंपनियों को अकेले 5,000 मध्यम से वरिष्ठ ESG विशेषज्ञों एवं जूनियर टीम, लेखा परीक्षकों तो वहीं भागीदारों के लिये संभावित रूप से 100,000 अतिरिक्त पेशेवरों की आवश्यकता है।
- वर्ष 2022 तक लगभग 7,000 सूचीबद्ध संस्थाओं और वर्ष 2032 तक अनुमानित 10,000 के साथ, भारत को 1 मिलियन से अधिक ESG पेशेवरों की आवश्यकता होगी।
- नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण के लिये कमज़ोर बुनियादी अवसंरचना: भारत के महत्त्वाकांक्षी ऊर्जा परिवर्तन लक्ष्य विशेष रूप से ग्रामीण एवं औद्योगिक क्षेत्रों में निम्न स्तरीय बुनियादी अवसंरचना, ग्रिड सीमाओं और असंगत नीतियों के कारण बाधित हो रहे हैं।
- उद्योगों को स्थिर विद्युत आपूर्ति के लिये नवीकरणीय ऊर्जा पर निर्भर रहना चुनौतीपूर्ण लगता है।
- भारत की नवीकरणीय क्षमता 203 गीगावाट (अक्तूबर, 2024) तक पहुँचने के बावजूद, ट्रांसमिशन घाटा 15-17% पर बना हुआ है, और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ, सस्ती ऊर्जा की सुलभता नहीं है।
- ESG लक्ष्यों के साथ आर्थिक विकास का संतुलन: भारत की विकासात्मक प्राथमिकताएँ, जैसे औद्योगीकरण और रोज़गार सृजन, कभी-कभी ESG उद्देश्यों के साथ असंगत होती हैं।
- उद्योग प्रायः संवहनीयता की तुलना में लाभ और अल्पकालिक विकास को प्राथमिकता देते हैं, जिससे ESG अंगीकरण की गति धीमी हो जाती है।
- उदाहरण के लिये, कोयला भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं में 50% का योगदान देता है, तथा जलवायु संबंधी चिंताओं के बावजूद ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिये नए ताप विद्युत संयंत्रों (जैसे अमरकंटक थर्मल पावर स्टेशन) को मंज़ूरी दी जा रही है।
- पारंपरिक उद्योगों से प्रतिरोध: इस्पात, सीमेंट, वस्त्र एवं खनन जैसे उद्योग, जो भारत की आर्थिक रीढ़ हैं, पुरानी प्रक्रियाओं और लाभ-संचालित मॉडलों के कारण ESG अंगीकरण में भारी प्रतिरोध का सामना कर रहे हैं।
- स्वच्छ ऊर्जा प्रयासों के अंगीकरण से प्रतिस्पर्द्धात्मकता और लाभप्रदता को खतरा है। उदाहरण के लिये, सीमेंट क्षेत्र वैश्विक CO₂ उत्सर्जन में 8% का योगदान देता है, लेकिन वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर स्विच करने से उत्पादन लागत बढ़ जाती है।
- सामाजिक असमानता और खराब कार्यबल की स्थिति: भारत गहन सामाजिक-आर्थिक असमानता से जूझ रहा है, जहाँ श्रम प्रथाओं में ESG कार्यान्वयन को प्रायः अनदेखा किया जाता है। अनौपचारिक क्षेत्रों में लाखों श्रमिकों को उचित वेतन, स्वास्थ्य सेवा और सुरक्षा मानदंडों की सुलभता की कमी है।
- उदाहरण के लिये, भारत का 90% कार्यबल असंगठित क्षेत्र में है, और निर्माण जैसे क्षेत्रों में अभी भी कार्यस्थल सुरक्षा उल्लंघन की बड़ी घटनाएँ सामने आती हैं।
- पर्यावरण नीति में अंतराल और विलंबित कार्यान्वयन: प्रगतिशील नीतियों के बावजूद, भारत को नौकरशाही बाधाओं और लापरवाह निगरानी के कारण पर्यावरण नियमों के कार्यान्वयन में विलंब एवं विसंगतियों का सामना करना पड़ता है।
- परियोजनाएँ प्रायः पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) को नज़रअंदाज़ कर देती हैं, जैसे कि आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में वर्ष 2020 विज़ाग गैस रिसाव, जो सख्त प्रवर्तन, ससमय अनुमोदन और सख्त उत्तरदायित्व तंत्र की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- निवेशक अरूचि और ESG का गलत संरेखण: भारतीय निवेशक प्रायः अल्पकालिक वित्तीय रिटर्न को प्राथमिकता देते हैं, तथा ESG को मुनाफे के मुकाबले गौण मानते हैं।
- अध्ययन से पता चला है कि 80% भारतीय निवेशकों ने संवहनीय नीतियों को अपनाया है, जिनमें से केवल 14% ने उन्हें 5 वर्षों से अधिक समय तक और 58% ने 2 वर्षों से अधिक समय तक लागू किया है।
- वित्तीय परिणामों के मुकाबले ESG प्रदर्शन के आकलन में भी संरेखण का अभाव है।
ESG के संबंध में भारत अन्य देशों से क्या सीख सकता है?
- कड़े ESG विनियमों के अंगीकरण- यूरोपीय संघ की ग्रीन डील: यूरोपीय संघ की ग्रीन डील और कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) सख्त उत्तरदायित्व सुनिश्चित करते हैं, तथा कंपनियों को संवहनीयता और नवाचार को प्राथमिकता देने के लिये प्रोत्साहित करते हैं।
- भारत ग्रीनवाशिंग को रोकने के लिये बाध्यकारी विनियमनों और गैर-अनुपालन के लिये दंड को लागू करने जैसे प्रयासों को सीख सकता है।
- हरित वित्त को बढ़ावा देना- जर्मनी के स्थायित्व बॉण्ड: जर्मनी हरित "ट्विन बॉण्ड" जैसे बॉण्ड के साथ हरित वित्त में अग्रणी है, जो नवीकरणीय ऊर्जा और बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के लिये बड़े पैमाने पर निवेश आकर्षित करता है।
- पारदर्शी ESG रिपोर्टिंग - जापान के प्रकटीकरण मानक: जापान ने अपने कॉर्पोरेट प्रशासन संहिता के तहत स्पष्ट, मानकीकृत ESG प्रकटीकरण को अनिवार्य किया है, जिससे निवेशकों का विश्वास और कॉर्पोरेट जवाबदेही में सुधार होता है।
- ESG संक्रमण के लिये कौशल विकास - डेनमार्क का कार्यबल मॉडल: डेनमार्क हरित कार्यबल के लिये कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करता है, तथा श्रमिकों को पवन ऊर्जा जैसे स्थायी उद्योगों में स्थानांतरित करने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करता है।
- विकेंद्रीकृत नवीकरणीय परियोजनाएँ - अफ्रीका के सामुदायिक सौर ग्रिड: अफ्रीका के देश विकेंद्रीकृत सौर ग्रिड को क्रियान्वित कर रहे हैं, जिससे ग्रामीण समुदायों के लिये ऊर्जा तक पहुँच सुनिश्चित हो रही है और ऊर्जा की कमी कम हो रही है।
- भारत अपने सुदूर क्षेत्रों को स्थायी रूप से बिजली उपलब्ध कराने के लिये विकेंद्रीकृत नवीकरणीय मॉडल का अनुकरण कर सकता है।
ESG फ्रेमवर्क को बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- एक सुदृढ़ और एकीकृत ESG फ्रेमवर्क तैयार करना: भारत को सुसंगत ESG कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये MSME सहित सभी क्षेत्रों में लागू एक व्यापक, एकीकृत नियामक फ्रेमवर्क तैयार करना चाहिये।
- इस फ्रेमवर्क में क्षेत्र-विशिष्ट ESG लक्ष्य, स्पष्ट रिपोर्टिंग दिशानिर्देश, अनिवार्य प्रकटीकरण और गैर-अनुपालन के लिये दंड को परिभाषित किया जाना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, ESG विनियामक प्राधिकरण जैसा एकल निरीक्षण निकाय प्रवर्तन को सुव्यवस्थित कर सकता है और अस्पष्टता को रोकने के लिये उद्योग-विशिष्ट मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।
- हरित वित्तपोषण पहल को बढ़ावा देना: ESG को सुचारू रूप से अपनाने के लिये, भारत को सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड, ESG-संबद्ध ऋण और समर्पित ग्रीन फाइनेंस संस्थानों जैसे तंत्रों के माध्यम से हरित वित्तपोषण को बढ़ावा देने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- कर प्रोत्साहन, कम ब्याज दर वाले ऋण, और ESG-अनुपालन व्यवसायों के लिये सब्सिडी निवेशकों एवं उद्योगों को स्थायी रूप से बदलाव के लिये आकर्षित करेगी।
- ग्रीन ट्रांज़िशन फंड बनाने के लिये निजी वित्तीय संस्थानों के साथ सहयोग से MSME और बड़े उद्योगों के लिये पूंजी आसानी से सुलभ हो सकती है।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल को अपनाने को बढ़ावा देना: भारत को संवहनीय उत्पादन, संसाधन दक्षता और अपशिष्ट न्यूनीकरण को बढ़ावा देकर चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना चाहिये।
- प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल जैसे उद्योगों के लिये विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) जैसी पहलों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिये।
- इसके अलावा, अपशिष्ट-से-ऊर्जा परियोजनाओं, पुनर्चक्रण पारिस्थितिकी तंत्र और पुनः विनिर्माण उद्योगों को प्रोत्साहित करने से लैंडफिल दबाव को कम करने तथा संसाधन संवहनीयता में सुधार करने में मदद मिल सकती है।
- ESG से जुड़ी सार्वजनिक-निजी भागीदारी को सुदृढ़ करना: भारत को नवीकरणीय ऊर्जा, शहरी बुनियादी अवसंरचना और पर्यावरण संरक्षण जैसे क्षेत्रों में ESG से संबंधित परियोजनाओं में तीव्रता लाने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ाना चाहिये।
- उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) जैसी सरकारी योजनाओं में स्वच्छ उत्पादन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को आकर्षित करने के लिये ESG घटकों को शामिल किया जा सकता है।
- ये साझेदारियाँ बड़े पैमाने पर सौर और पवन फार्मों, हरित शहरी परिवहन एवं कार्बन-शून्य औद्योगिक केंद्रों में निवेश को प्राथमिकता दे सकती हैं।
- कार्बन मूल्य निर्धारण और कराधान नीतियों को लागू करना: भारत को कार्बन कर या उत्सर्जन व्यापार प्रणाली सहित कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र के अंगीकरण चाहिये, ताकि उद्योगों को उनके कार्बन फूटप्रिंट के लिये जवाबदेह बनाया जा सके और साथ ही हरित विकल्पों को प्रोत्साहित किया जा सके।
- कार्बन करों से प्राप्त राजस्व को स्वच्छ ऊर्जा अवसंरचना और प्रौद्योगिकी में पुनर्निवेशित किया जा सकता है।
- कार्बन मूल्य निर्धारण को प्रदर्शन, उपलब्धि, व्यापार (PAT) योजना जैसे मौजूदा कार्यक्रमों के साथ जोड़ने से क्षेत्र-व्यापी जवाबदेही सुनिश्चित हो सकती है।
- ESG जागरूकता और उद्योग क्षमता का निर्माण: भारत को उद्योगों, विशेष रूप से MSME और ग्रामीण क्षेत्रों को सशक्त बनाने के लिये व्यापक ESG जागरूकता कार्यक्रम एवं कौशल निर्माण पहल शुरू करने की आवश्यकता है।
- स्किल इंडिया 2.0 जैसे मौजूदा कार्यक्रमों के अंतर्गत ESG-विशिष्ट प्रशिक्षण मॉड्यूल को शामिल करने से हरित नौकरियों के लिये आवश्यक कौशल से लैस कार्यबल तैयार होगा।
- क्षमता निर्माण कार्यक्रमों को उद्योग जगत के नेताओं को ESG अंगीकरण के आर्थिक और सामाजिक लाभों के संदर्भ में शिक्षित करने पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन के लिये ऊर्जा अवसंरचना का आधुनिकीकरण: भारत को बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा के एकीकरण को सुनिश्चित करने के लिये अपनी ऊर्जा अवसंरचना को उन्नत करने में निवेश करना चाहिये।
- इसमें ट्रांसमिशन ग्रिड का आधुनिकीकरण, बैटरी जैसे ऊर्जा भंडारण समाधानों का विस्तार, और ग्रामीण क्षेत्रों के लिये माइक्रो-ग्रिड प्रणालियों का निर्माण शामिल है।
- स्वच्छ ईंधन की ओर संक्रमण को गति देने के लिये राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन जैसी पहलों को सहायक बुनियादी अवसंरचना के साथ बढ़ाया जाना चाहिये।
- टाटा स्टील का लक्ष्य वित्त वर्ष 2030 तक सभी इस्पात निर्माण स्थलों पर 100% सामग्री दक्षता प्राप्त करना है और यह एक मॉडल के रूप में काम कर सकता है।
- अनिवार्य ESG रिपोर्टिंग और तृतीय-पक्ष ऑडिट सुनिश्चित करना: भारत को सभी सूचीबद्ध कंपनियों और बड़े उद्योगों के लिये ESG प्रकटीकरण अनिवार्य करना चाहिये, साथ ही विश्वसनीयता सुनिश्चित करने एवं ग्रीनवाशिंग को रोकने के लिये तृतीय पक्ष के ऑडिट भी कराने चाहिये।
- व्यवसाय उत्तरदायित्व और संवहनीयता रिपोर्टिंग (BRSR) जैसे साधनों के माध्यम से रिपोर्टिंग को मानकीकृत करना SME के लिये अधिक सुलभ बनाया जा सकता है।
- राष्ट्रीय ESG रेटिंग प्रणाली शुरू करने से व्यवसायों को अपना प्रदर्शन सुधारने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।
- नवीकरणीय ऊर्जा और स्वच्छतर प्रौद्योगिकियों को अपनाने को प्रोत्साहन: सरकार को नवीकरणीय ऊर्जा और स्वच्छतर औद्योगिक प्रौद्योगिकियों को अपनाने में तीव्रता लाने के लिये कर छूट, सब्सिडी एवं प्रौद्योगिकी-साझाकरण पहल जैसे लक्षित प्रोत्साहन प्रदान करने चाहिये।
- हरित हाइड्रोजन, ऊर्जा-कुशल मशीनरी और EV बुनियादी अवसंरचना को बढ़ावा देने वाली नीतियों को प्रभावी किया जाना चाहिये।
- हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों के शीघ्र अंगीकरण एवं विनिर्माण (FAME) जैसी योजनाओं का विस्तार करने से संवहनीय परिवर्तनों को और भी बढ़ावा मिलेगा।
- श्रम कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से सामाजिक समानता को बढ़ावा देना: भारत को श्रम कानूनों को सख्त करके, कार्यस्थल सुरक्षा सुनिश्चित करके और समावेशिता को बढ़ावा देकर ESG के सामाजिक आयाम को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- वेतन अंतर को कम करने (श्रम संहिताओं के प्रभावी कार्यान्वयन के माध्यम से), स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने और विविधता सुनिश्चित करने (विशेष रूप से महिलाओं एवं सीमांत समूहों के लिये) के कार्यक्रम महत्त्वपूर्ण हैं।
- कॉर्पोरेट प्रोत्साहनों को सामाजिक प्रभाव मापदंडों, जैसे लिंग विविधता और उचित वेतन से जोड़ने से अधिक समतापूर्ण कार्यबल का निर्माण हो सकता है।
- ESG निगरानी और कार्यान्वयन के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: भारत ESG अनुपालन की रियल टाइम मॉनिटरिंग, कार्बन उत्सर्जन पर नज़र रखने और संवहनीयता प्रदर्शन के आकलन के लिये AI, IoT तथा ब्लॉकचेन जैसी उन्नत तकनीकों को अपना सकता है।
- एक केंद्रीकृत ESG डेटा रिपॉज़िटरी बनाने से उद्योगों, निवेशकों और नियामकों को निर्णय लेने के लिये विश्वसनीय डेटा तक पहुँच बनाने में मदद मिलेगी।
- प्रौद्योगिकी-संचालित निगरानी उपकरण भी ESG मानकों का प्रभावी प्रवर्तन सुनिश्चित कर सकते हैं।
- सरकारी खरीद नीतियों में ESG को एकीकृत करना: सरकार को खरीद प्रक्रियाओं में ESG मानदंड अपनाना चाहिये, यह सुनिश्चित करना चाहिये कि अनुबंध मज़बूत ESG अनुपालन वाले व्यवसायों को दिये जाएँ।
- सरकारी वित्तपोषण को ESG प्रदर्शन से जोड़ने से उद्योग संवहनीयता की ओर अग्रसर होंगे।
- उदाहरण के लिये, हरित खरीद दिशानिर्देश लागू करने से सार्वजनिक अवसंरचना परियोजनाओं के लिये ESG अनुपालन अनिवार्य हो सकता है।
- स्मार्ट शहरों के माध्यम से शहरी संवहनीयता पर ध्यान केंद्रित करना: भारत को स्मार्ट सिटीज़ मिशन जैसे कार्यक्रमों के तहत शहरी विकास परियोजनाओं में ESG सिद्धांतों को एकीकृत करना चाहिये।
- हरित भवन, संवहनीय शहरी परिवहन और जल-कुशल तंत्रों पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
- कार्बन-शुन्य शहरी क्षेत्रों का विकास भविष्य के शहरों के लिये एक मॉडल हो सकता है, जो भारत के शुद्ध-शून्य लक्ष्यों के अनुरूप हो।
निष्कर्ष
भारत को अपने ESG विनियामक फ्रेमवर्क को सुदृढ़ करने के लिये एक दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाना चाहिये, ताकि स्थायी निवेश को आकर्षित करने के लिये नीतियों में स्पष्टता और संवहनीयता सुनिश्चित हो सके। इसमें विनियमनों को सुव्यवस्थित करना, ESG अंगीकरण की लागत को कम करना और आवश्यक बुनियादी अवसंरचना में निवेश करना शामिल है। वैश्विक अभिकर्त्ताओं के साथ नवाचार और साझेदारी पर ज़ोर देने से भारत ESG क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त हासिल कर सकेगा। इन चुनौतियों का सक्रिय रूप से समाधान करके, भारत वैश्विक स्थायी निवेश परिदृश्य में स्वयं को एक प्रमुख भागीदार के रूप में स्थापित कर सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. "यद्यपि पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) फ्रेमवर्क भारत के सतत् विकास के लिये आवश्यक है, फिर इसके प्रभावी कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं।" भारत के लिये ESG के महत्त्व पर चर्चा कीजिये और मौजूदा बाधाओं को दूर करने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा उन विदेशी निवेशकों को, जो स्वयं को सीधे पंजीकृत कराए बिना भारतीय स्टॉक बाज़ार का हिस्सा बनना चाहते हैं, निम्नलिखित में से क्या जारी किया जाता है? (2019) (a) जमा प्रमाण-पत्र उत्तर: (d) मुख्यप्रश्न. "हाल के दिनों का आर्थिक विकास श्रम उत्पादकता में वृद्धि के कारण संभव हुआ है।" इस कथन को समझाइये। ऐसे संवृद्धि प्रतिरूप को प्रस्तावित कीजिये जो श्रम उत्पादकता से समझौता किये बिना अधिक रोज़गार उत्पत्ति में सहायक हो। (2022) |