रैपिड फायर
स्वदेशी धान की किस्म: क्योंझर कालाचंपा
स्रोत: द हिंदू
ओडिशा के एक किसान ने अपनी स्वदेशी धान किस्म, क्योंझर कालाचंपा को आधिकारिक रूप से पंजीकृत कराया है, तथा बीज के व्यावसायीकरण के लिये पौध किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (PPV&FRA) से मुआवज़े की मांग की है।
क्योंझर कालाचंपा:
- भारत सरकार ने वर्ष 2015 में इस किस्म को अधिसूचित किया था। ओडिशा राज्य बीज निगम (OSSC) और निजी कंपनियों ने इस किस्म के उत्पादन और वितरण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
- विशेषताएँ:
- इस किस्म ने प्रमुख बीमारियों, कीटों और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति लचीलापन दिखाया है।
- यह झुकने या गिरने के प्रति प्रतिरोधी (नॉन लॉजिंग) है, उर्वरकों के प्रति अनुक्रियाशील है, समय पर की जाने वाली और साथ ही विलंब से होने वाली बुवाई के लिये उपयुक्त है, और उच्च उपज वाली किस्म है।
- जीवीय दबाव के प्रति इसके प्रतिरोध के कारण, इसे किसानों द्वारा अत्यधिक उपयोग किया जाता है और यह भारत की पहली परंपरागत किस्मों में से एक थी जिसे औपचारिक बीज आपूर्ति शृंखला में एकीकृत किया गया था।
जीन बैंक पहल:
- ओडिशा ने किसानों से प्राप्त धान की परंपरागत किस्मों को संरक्षित करने के लिये एक अनूठा जीन बैंक विकसित किया है, जिसके बीजों को 50 वर्षों तक तापमान और आर्द्रता नियंत्रित वातावरण में संग्रहित किया जा सकता है।
- भारत ने लद्दाख के चांग ला में अपनी बीज भंडारण सुविधा स्थापित की है।
पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (PPVFRA):
- इसकी स्थापना PPVFRA अधिनियम, 2001 के तहत की गई थी।
- यह प्राधिकरण पौधों की किस्मों, किसानों और प्रजनकों के अधिकारों की रक्षा करता है, तथा नई किस्मों के विकास को बढ़ावा देता है, और साथ ही उन किसानों के अधिकारों की रक्षा करता है, जिन्होंने पीढ़ियों से पौधों की किस्मों का संरक्षण किया है।
- महापंजीयक इस प्राधिकरण का पदेन सदस्य सचिव होता है।
अधिक पढ़ें: पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (PPVFRA)
प्रारंभिक परीक्षा
विश्व मलेरिया दिवस 2025
स्रोत: द हिंदू
विश्व मलेरिया दिवस, जो प्रतिवर्ष 25 अप्रैल को मनाया जाता है, की स्थापना विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा मलेरिया के बारे में लोगों को अधिक जागरूक करने और इसके उन्मूलन हेतु कार्रवाई करने के लिये वर्ष 2007 में की गई थी।
- विश्व मलेरिया दिवस 2025 का विषय है "मलेरिया एंड्स विथ अस: रीइन्वेस्ट, रीइमेजिन, रीइग्नाइट"।
मलेरिया के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?
परिचय: मलेरिया प्राणघातक रोग है जो प्लास्मोडियम परजीवी के कारण होता है, जिसका मानव में संचरण संक्रमित मादा एनोफिलीज़ मच्छरों से होता है।
- यह विश्व के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों जैसे उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और दक्षिण अमेरिका में सामान्यतः पाया जाता है।
- प्लास्मोडियम की 5 प्रजातियाँ हैं जिनके कारण मनुष्यों में मलेरिया होता है जिनमें पी. फाल्सीपेरम सर्वाधिक घातक और पी. विवैक्स सर्वाधिक व्यापक है।
- इसकी अन्य प्रजातियाँ पी. मलेरी , पी. ओवेल और पी. नोलेसी हैं।
- किसी संक्रमित व्यक्ति को काटने के बाद मच्छर संक्रमित हो जाता है। इसके बाद मच्छर जिस अगले व्यक्ति को काटता है, मलेरिया परजीवी उस व्यक्ति के रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाते हैं।
- परजीवी यकृत तक पहुँचकर परिपक्व होते हैं तथा फिर लाल रुधिर कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं।
लक्षण:
- इसमें बुखार, ठंड लगना, सिरदर्द और थकान शामिल है, तथा गंभीर मामलों में अंग पात अथवा मृत्यु भी संभव है।
- उल्लेखनीय तथ्य यह है कि मलेरिया रोग निवार्य और साथ ही चिकित्स्य है।
व्यापकता:
- विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत में वर्ष 2015 से वर्ष 2023 की अवधि में मलेरिया के मामले 11.69 लाख से घटकर 2.27 लाख हो गए और मृत्यु दर 384 से घटकर 83 हो गई, जो दोनों संकेतकों में 80% की गिरावट को दर्शाता है।
- वर्ष 2024 में भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन की हाई बर्डन टू हाई इम्पैक्ट (HBHI) सूची से बाहर हो गया, जो मलेरिया उन्मूलन में एक प्रमुख प्रगति है तथा वर्ष 2030 तक मलेरिया मुक्त भारत के लक्ष्य के अनुरूप है।
- वैश्विक स्तर पर मलेरिया अभी भी स्वास्थ्य संबंधी गंभीर चुनौती है, जिससे प्रतिवर्ष 263 मिलियन लोग प्रभावित होते हैं तथा 600,000 से अधिक लोगों की इसके कारण मृत्यु हो जाती है।
उपचार और निवारण:
- उपचार: कीटनाशक-उपचारित जाल (ITN) जैसे साधनों और इनडोर छिड़काव के साथ क्लोरोक्वीन और आर्टीमिसिनिन जैसी प्रभावी औषधियों के साथ अधिक प्रभावकारी।
- वर्ष 2015 में, यूयू तु को आर्टीमिसिनिन की खोज के लिये फिजियोलॉजी अथवा मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जो मीठे नागदौना पौध, आर्टेमिसिया एन्नुआ से प्राप्त होता है।
- टीके: RTS,S/AS01 (मॉस्क्वीरिक्स), जिसे वर्ष 2021 में WHO द्वारा अनुमोदित किया गया है, बालकों (5 महीने+) के लिये पहला मलेरिया टीका है।
- वर्ष 2023 में, R21/मैट्रिक्स-M को दूसरे सुरक्षित और प्रभावी टीके के रूप में स्वीकृति दी गई।
- कीटनाशक उपचारित जाल (ITN): ये जाल कीटनाशक से अभिक्रियित होते हैं, जो मच्छरों के लिये भौतिक और रासायनिक दोनों प्रकार की बाधा के रूप में कार्य करते हैं।
- रसायन-रोगनिरोध (Chemoprophylaxis): इसमें संक्रमण से निवारण हेतु स्थानिक क्षेत्रों की यात्रा से पूर्व, इसके दौरान और इसके पश्चात् मलेरियारोधी औषधि का सेवन किया जाना शामिल है।
- निवारक कीमोथेरेपी: इसके अंतर्गत उच्च जोखिम अवधि के दौरान सुभेद्य समूहों (बालक, गर्भवती माता) को मलेरियारोधी औषधियाँ (उपचार) देना शामिल है।
- प्रमुख रणनीतियों में मौसमी मलेरिया रसायन निवारण (SMC), चिरस्थायी मलेरिया रसायन निवारण (PMC), गर्भावस्था में आंतरायिक निवारक उपचार (IPTp), मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (MDA) आदि शामिल हैं।
- गर्भावस्था के दौरान, संक्रमण के निवारण में मदद हेतु मध्यम से उच्च मलेरिया संचरण वाले क्षेत्रों में, दूसरी तिमाही से शुरू करके, प्रत्येक निर्धारित प्रसवपूर्वी देखभाल विज़िट में सल्फाडोक्सिन-पाइरीमेथामाइन (IPTp-SP) के साथ आंतरायिक निवारक उपचार का सुझाव दिया गया है।
- प्रमुख रणनीतियों में मौसमी मलेरिया रसायन निवारण (SMC), चिरस्थायी मलेरिया रसायन निवारण (PMC), गर्भावस्था में आंतरायिक निवारक उपचार (IPTp), मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (MDA) आदि शामिल हैं।
नोट:
- मादा एनोफिलीज़ मच्छर वास्तविक परजीवी नहीं हैं क्योंकि वे जीवित रहने के लिये पूर्ण रूप से पोषद पर निर्भर नहीं होती हैं। हाँलाकि अंड के विकास की दृष्टि से उन्हें रक्त की आवश्यकता होती है किंतु उनका प्राथमिक ऊर्जा स्रोत पौधों का मकरंद है। जबकि परजीवी अपनी उत्तरजीविता के लिये पूर्ण रूप से पोषद पर निर्भर होते हैं।
प्लास्मोडियम के जीवन चक्र में अवस्थाएँ
मलेरिया: ऐतिहासिक निहितार्थों वाला एक वैश्विक रोग
- मलेरिया शब्द इतालवी शब्द "माला आरिया" से लिया गया है, जिसका अर्थ है "खराब हवा", जिसे मूलतः इस रोग का स्रोत माना जाता था।
- वर्ष 1880 में, फ्रेंच चिकित्सक चार्ल्स लुइस अल्फोंस लेवरन ने मलेरिया के कारक के रूप में प्रोटोजोआ परजीवी प्लास्मोडियम की खोज की।
- बाद में, रोनाल्ड रॉस (1897) ने एनोफिलीज़़ मच्छरों के माध्यम से संचरण को सिद्ध किया।
- बर्लिन सम्मेलन (1884) के बाद, इस वैज्ञानिक खोज के परिणामस्वरूप अफ्रीका के लिये संघर्ष शुरू हुआ, जिससे यूरोपीय उपनिवेशवादियों को अफ्रीका में रहने में मदद मिली।
- वर्ष 1914 तक अफ्रीका का 90% भाग यूरोपीय नियंत्रण में था, जो कुनैन, मच्छरदानी और दलदली जल निकासी के कारण संभव हुआ, जिससे मलेरिया से होने वाली मौतों में कमी आई।
- मलेरिया ने ट्रांस-अटलांटिक दास व्यापार को भी प्रभावित किया, क्योंकि आनुवंशिक प्रतिरोध वाले अफ्रीकियों को कैरिबियन और अमेरिका जैसे मलेरिया-प्रभावित उपनिवेशों में श्रम के लिये नियुक्त किया गया था।
- इससे दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ और नस्लीय श्रम प्रणालियाँ और अधिक गंभीर हो गईं।
मलेरिया के नियंत्रण हेतु प्रमुख पहले क्या हैं?
वैश्विक प्रयास:
- WHO ग्लोबल मलेरिया प्रोग्राम: यह नीतिगत दिशा-निर्देश, वैश्विव समूह का समन्वय, अनुसंधान को बढ़ावा देने, विशिष्टता-आधारित दिशा-निर्देश निर्धारित करने और मलेरिया रुझानों की निगरानी द्वारा देशों को सहायता प्रदान की जाती है।
- मलेरिया के लिये WHO की वैश्विक तकनीकी रणनीति 2016-2030 का लक्ष्य वर्ष 2030 तक मलेरिया के मामलों और मृत्यु को कम-से-कम 90% तक कम करना, 2030 तक ≥35 देशों से मलेरिया को खत्म करना तथा मलेरिया मुक्त देशों में इसके पुनः प्रसार को रोकना है।
- ई-2025 इनिशिएटिव: इसके अंतर्गत विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 25 देशों की पहचान की है, जिनमें वर्ष 2025 तक मलेरिया उन्मूलन की क्षमता है।
- मलेरिया से लड़ने के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित मच्छर
राष्ट्रीय पहल:
- मलेरिया उन्मूलन के लिये राष्ट्रीय रूपरेखा 2016-2030
- राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम: रोकथाम और नियंत्रण उपायों के माध्यम से मलेरिया सहित विभिन्न वेक्टर जनित रोगों का समाधान करता है।
- मलेरिया उन्मूलन अनुसंधान गठबंधन-भारत (MERA-India): भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा स्थापित, मलेरिया नियंत्रण अनुसंधान पर भागीदारों के साथ सहयोग करता है।
- 'हाई बर्डन टू हाई इम्पैक्ट' (High Burden to High Impact-HBHI) पहल: वर्ष 2019 में चार राज्यों (पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश) में शुरू की गई। यह कीटनाशक युक्त मच्छरदानियों (LLIN) के माध्यम से मलेरिया में कमी लाने पर केंद्रित है।
- राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम (NMCP): मलेरिया के गंभीर प्रभाव को दूर करने के लिये वर्ष 1953 में शुरू किया गया।
- यह तीन मुख्य गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करता है: DDT के साथ कीटनाशक अवशिष्ट छिड़काव (IRS), मामले की निगरानी और निरीक्षण, तथा रोगी उपचार।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. क्लोरोक्वीन जैसी दवाओं के प्रति मलेरिया परजीवी के व्यापक प्रतिरोध ने मलेरिया से निपटने के लिये मलेरिया का टीका विकसित करने के प्रयासों को प्रेरित किया है। मलेरिया का प्रभावी टीका विकसित करना क्यों कठिन है? (2010) (a) प्लाज़्मोडियम की कई प्रजातियों के कारण मलेरिया होता है। उत्तर: (b) |
रैपिड फायर
स्पेगेटी बाउल घटना
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
क्षेत्रीय व्यापार नीतियों में अस्थिरता और मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) के प्रसार ने स्पेगेटी बाउल घटना पर फिर से चर्चा शुरू कर दी।
- विश्व बैंक के अनुसार, स्पैगेटी बाउल घटना, देशों के बीच कई FTA के भ्रामक और अतिव्यापी नेटवर्क को संदर्भित करती है, जो व्यापार को सुविधाजनक बनाने के स्थान पर उसे और जटिल बना देती है।
- चूँकि प्रत्येक FTA अपने स्वयं के रूल्स ऑफ ओरिजिन (ROO) के साथ आता है, जिससे उत्पादकों के लिये विभिन्न FTA में व्यापार करते समय विभिन्न मानदंडों को पूरा करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- "स्पेगेटी बाउल घटना" शब्द का आविष्कार वर्ष 1995 में जगदीश भगवती ने किया था, जिसमें उन्होंने FTA की आलोचना करते हुए कहा था कि ये अनुत्पादक हैं तथा खुलेपन को बढ़ावा देने के बजाय वैश्विक व्यापार को जटिल बना रहे हैं।
- "स्पेगेटी" रूपक (Metaphor) व्यापार नियमों की जटिलता की तुलना बाउल ऑफ स्पेगेटी (Bowl Of Spaghetti) से करता है।
- प्रभाव: अधिक FTA के बावजूद, क्षेत्रों (जैसे दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया) के बीच व्यापार की मात्रा प्रायः इस जटिलता के कारण स्थिर रहती है।
और पढ़ें: मुक्त व्यापार समझौतों की समीक्षा
रैपिड फायर
स्वदेशी धान की किस्म: क्योंझर कालाचंपा
स्रोत: द हिंदू
ओडिशा के एक किसान ने अपनी स्वदेशी धान किस्म, क्योंझर कालाचंपा को आधिकारिक रूप से पंजीकृत कराया है, तथा बीज के व्यावसायीकरण के लिये पौध किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (PPV&FRA) से मुआवज़े की मांग की है।
क्योंझर कालाचंपा:
- भारत सरकार ने वर्ष 2015 में इस किस्म को अधिसूचित किया था। ओडिशा राज्य बीज निगम (OSSC) और निजी कंपनियों ने इस किस्म के उत्पादन और वितरण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
- विशेषताएँ:
- इस किस्म ने प्रमुख बीमारियों, कीटों और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति लचीलापन दिखाया है।
- यह झुकने या गिरने के प्रति प्रतिरोधी (नॉन लॉजिंग) है, उर्वरकों के प्रति अनुक्रियाशील है, समय पर की जाने वाली और साथ ही विलंब से होने वाली बुवाई के लिये उपयुक्त है, और उच्च उपज वाली किस्म है।
- जीवीय दबाव के प्रति इसके प्रतिरोध के कारण, इसे किसानों द्वारा अत्यधिक उपयोग किया जाता है और यह भारत की पहली परंपरागत किस्मों में से एक थी जिसे औपचारिक बीज आपूर्ति शृंखला में एकीकृत किया गया था।
जीन बैंक पहल:
- ओडिशा ने किसानों से प्राप्त धान की परंपरागत किस्मों को संरक्षित करने के लिये एक अनूठा जीन बैंक विकसित किया है, जिसके बीजों को 50 वर्षों तक तापमान और आर्द्रता नियंत्रित वातावरण में संग्रहित किया जा सकता है।
- भारत ने लद्दाख के चांग ला में अपनी बीज भंडारण सुविधा स्थापित की है।
पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (PPVFRA):
- इसकी स्थापना PPVFRA अधिनियम, 2001 के तहत की गई थी।
- यह प्राधिकरण पौधों की किस्मों, किसानों और प्रजनकों के अधिकारों की रक्षा करता है, तथा नई किस्मों के विकास को बढ़ावा देता है, और साथ ही उन किसानों के अधिकारों की रक्षा करता है, जिन्होंने पीढ़ियों से पौधों की किस्मों का संरक्षण किया है।
- महापंजीयक इस प्राधिकरण का पदेन सदस्य सचिव होता है।
और पढ़ें: पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (PPVFRA)
रैपिड फायर
GPS स्पूफिंग
स्रोत: द हिंदू
ऑपरेशन ब्रह्मा के दौरान, भारतीय वायु सेना ने दावा किया कि भूकंप प्रभावित म्याँमार में राहत पहुँचाने वाले उसके परिवहन विमान को ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) स्पूफिंग का सामना करना पड़ा।
- 'ऑपरेशन ब्रह्मा' के तहत भारत ने भूकंप प्रभावित म्याँमार में मानवीय सहायता, क्षेत्रीय अस्पताल और बचाव दल पहुँचाने के लिये छह सैन्य परिवहन विमान तैनात किये।
- GPS स्पूफिंग (GPS सिमुलेशन): यह साइबर हमले का एक रूप है, जिसमें विमान के नेविगेशन सिस्टम को गुमराह करने के लिये गलत GPS सिग्नल उत्पन्न किये जाते हैं, जिससे उड़ान सुरक्षा और मिशन की सफलता को गंभीर खतरा पैदा हो जाता है।
- GPS स्पूफिंग उपग्रहों द्वारा भेजे गए कमज़ोर सिग्नलों का लाभ उठाता है, जिन पर नियंत्रण पाना आसान होता है।
- हमलावर अधिक शक्तिशाली, नकली सिग्नल (Counterfeit Signals) प्रेषित करते हैं जो वास्तविक उपग्रह डेटा की नकल करते हैं।
- GPS रिसीवर इन नकली सिग्नलों (Counterfeit Signals) को असली समझकर लॉक कर देता है।
- इसके कारण डिवाइस गलत स्थान डेटा प्रदर्शित करता है, जिससे नेविगेशन सिस्टम को गुमराह करने की संभावना होती है।
- जोखिम: यह विमानों का अपहरण कर सकता है, उन्हें अनपेक्षित स्थानों पर भेज सकता है, जिससे सुरक्षा जोखिम उत्पन्न हो सकता है।
- इससे सैन्य अभियानों में बाधा उत्पन्न हो सकती है, जिससे सेनाएँ दिशाहीन हो सकती हैं और फ्रेंडली फायर (Friendly Fire) हो सकती है।
- शमन: GPS स्पूफिंग जोखिमों को कम करने के लिये, मल्टी-कॉस्टेलेशन सिस्टम, एडवांस्ड सिग्नल प्रोसेसिंग और एंटी-स्पूफिंग डिवाइस सुरक्षा बढ़ा सकते हैं।
और पढ़ें: NavIC, म्याँमार भूकंप
रैपिड फायर
अफगानिस्तान में प्राचीन बौद्ध स्थल
स्रोत: द हिंदू
तालिबान, जो वर्ष 2001 में बामियान बुद्ध जैसी ऐतिहासिक शिल्पकृतियों को नष्ट करने के लिये कुख्यात था, वर्तमान में अफगानिस्तान के प्राचीन विरासत स्थलों के संरक्षण का समर्थन करने का दावा करता है।
प्रमुख बौद्ध स्थल
- मेस अयनाक: मेस अयनाक (लोगर प्रांत) वर्ष 1963 में खोजा गया एक प्रमुख बौद्ध पुरातात्त्विक स्थल है। पहली शताब्दी ईसा पूर्व से 10वीं शताब्दी ईस्वी तक वासित इस स्थल से मठ, स्तूप, एक पारसी अग्नि मंदिर, एक टकसाल, ताँबा प्रगलन की कार्यशालाएँ और 1,000 से अधिक बौद्ध मूर्तियाँ, भित्तिचित्र तथा सिक्के प्राप्त हुए।
- इसकी कला में हेलेनिस्टिक, भारतीय, फारसी और चीनी संस्कृति का प्रभाव है। सिल्क रोड पर स्थित इस नगर की भारत से चीन तक बौद्ध धर्म के प्रसार में अहम भूमिका रही।
- शेवाकी स्तूप: काबुल के शेवाकी स्तूप की चौड़ाई 20 मीटर से अधिक है और यह पहली से तीसरी शताब्दी ईस्वी का एक प्रमुख बौद्ध युगीन स्मारक है।
- इसमें कुषाण और हेलेनिस्टिक स्थापत्य शैली (यूनानी संस्कृति से प्रभावित) दोनों का सम्मिश्रण है और इसका निर्माण फील्ड स्टोन, मृदा और प्लास्टर से किया गया है।
- यह स्तूप, जो एक पूर्व में एक समय एक प्रमुख धार्मिक और कारवाँ स्थल था, का पहली बार उत्खनन पुरातत्त्वविदों द्वारा वर्ष 1820 में किया गया था।
- बामियान बुद्ध: 6वीं शताब्दी की बामियान बुद्ध दो विशाल प्रतिमाएँ थीं, जो मध्य अफगानिस्तान में बलुआ पत्थर की चट्टानों को उत्कीर्ण करके निर्मित की गईं थीं।
- ये प्रतिमाएँ गांधार बौद्ध कला से संबंधित हैं और पहली से 13वीं शताब्दी तक बौद्ध धर्म के सांस्कृतिक प्रभाव को प्रतिबिंबित करते हैं।
- कुषाण युगीन अभिलेख: लघमन प्रांत में पुरातत्त्वविदों ने 2,000 वर्ष प्राचीन कुषाण कालीन शैल-आले (Rock Niches), ब्राह्मी अभिलेख और मदिरा बनाने के उपकरणों की खोज की है, जो गोबी मरुस्थल से गंगा घाटी तक साम्राज्य के बृहद विस्तार पर प्रकाश डालते हैं।
और पढ़ें: बामियान बुद्ध, भारत के तालिबान के साथ संबंध