अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत के तालिबान के साथ संबंध
- 10 Jan 2025
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प्रिलिम्स के लिये:चाबहार बंदरगाह, हिज़्बुल्लाह, हमास, बेल्ट एंड रोड फर्स्ट, इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (MSKP), बौद्ध धर्म, सूफीवाद, सार्क, मॉस्को वार्ता, अंतर-अफगान शांति वार्ता। मेन्स के लिये:भारत-अफगानिस्तान संबंध: महत्त्व और आगे की राह |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
वैश्विक भू-राजनीतिक मंच के बीच भारत के विदेश सचिव ने दुबई में अफगानिस्तान के विदेश मंत्री के साथ वार्ता की।
- यह भारत के राष्ट्रीय और सुरक्षा हितों को सुरक्षित करने के लिये अफगानिस्तान के तालिबान शासकों के साथ भारत की सर्वोच्च वैचारिक वार्ता है।
वार्ता के मुख्य परिणाम क्या हैं?
- मानवीय सहायता का विस्तार: भारत ने मानवीय सहायता के साथ-साथ विकास परामर्श में भी अपनी भागीदारी बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की।
- अब तक भारत ने 50,000 मीट्रिक टन गेहूँ, 300 टन दवाइयाँ, भूकंप सहायता, कीटनाशक, पोलियो और कोविड-19 वैक्सीन की खुराक, स्वच्छता किट, सर्दियों के कपड़े और स्टेशनरी भेजी है।
- खेल सहयोग: दोनों पक्षों ने खेल सहयोग, विशेषकर क्रिकेट में सहयोग को मज़बूत करने पर चर्चा की, जो अफगानिस्तान के युवाओं के लिये महत्त्व रखता है।
- चाबहार बंदरगाह: दोनों पक्षों ने व्यापार, वाणिज्यिक गतिविधियों तथा अफगानिस्तान को मानवीय सहायता पहुँचाने के लिये चाबहार बंदरगाह को एक प्रमुख प्रवेशद्वार के रूप में उपयोग को बढ़ावा देने पर सहमति व्यक्त की।
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: अफगान सरकार ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को स्वीकार किया तथा विभिन्न स्तरों पर संपर्क बनाए रखने पर सहमति व्यक्त की।
हाल ही में हुई भारत-अफगानिस्तान वार्ता के लिये ज़िम्मेदार कारक
- परिवर्तित वैश्विक गतिशीलता:
- तालिबान-पाकिस्तान में बदलाव: पाकिस्तान, जो कभी तालिबान का सहयोगी था, अब तालिबान के लिये तनाव का स्रोत बन गया है।
- भारत को अफगानिस्तान में अपने समर्थकों को एकजुट करने के लिये तालिबान के साथ जुड़ने के लिये प्रेरित किया।
- ईरान की भागीदारी: ईरान को झटका तब लगा, जब इज़रायल ने हिज़्बुल्लाह और हमास पर अपना प्रभुत्व जमा लिया और ईरान पर आतंकवादी हमले शुरू कर दिये। ईरान का ध्यान अफगानिस्तान में तालिबान से निपटने की बजाय इज़रायल को रोकने पर अधिक है।
- हमास और हिज़्बुल्लाह ईरान के प्रतिनिधि हैं, जो इज़रायल के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं।
- रूस का नामकरण परिवर्तन: रूस, यूक्रेन में अपने युद्ध में उलझा हुआ है और तालिबान के साथ संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहा है।
- रूस अफगानिस्तान के इस्लामिक कम्युनिस्ट जैसे रूस एवं अफगानिस्तान के इस्लामिक कम्युनिस्टों को एक बड़ा सुरक्षा संकट उत्पन्न हो गया है और दिसंबर 2024 में सीरियाई शासन के पतन के पश्चात् संघर्ष में रूस और अफगानिस्तान के बीच तालिबान को अपना सहयोगी दर्ज़ा दिया गया है।
- चीन का प्रभाव: चीन अफगानिस्तान के सेंट्रल बैंक की परिसंपत्तियों पर लगी रोक हटाने की मांग कर रहा है, और काबुल की शहरी विकास परियोजनाओं में शामिल हो रहा है। चीन अपनी बेल्ट एंड रोड पहल के लिये अफगानिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों पर नज़र रखता है।
- भारत अफगानिस्तान में चीन के प्रभुत्व को रोकने का प्रयास कर रहा है, जिससे भारत के हितों को नुकसान पहुँच सकता है।
- डोनाल्ड ट्रंप की वापसी: इस बात की चिंता है कि अमेरिका तालिबान के साथ पुनः संपर्क स्थापित कर सकता है और भारत इसे एक अवसर के रूप में देख रहा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भविष्य में अफगानिस्तान के किसी भी घटनाक्रम में उसके हित केंद्रीय बने रहें।
- तालिबान-पाकिस्तान में बदलाव: पाकिस्तान, जो कभी तालिबान का सहयोगी था, अब तालिबान के लिये तनाव का स्रोत बन गया है।
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: भारत ने तालिबान से अफगानिस्तान से सक्रिय लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (ISKP) जैसे भारत विरोधी तत्त्वों पर अंकुश लगाने का आग्रह किया है।
- विकास कार्य: तालिबान अधिकारियों ने कहा था कि भारत की परियोजनाएँ – जिनका पिछले 20 वर्षों में अनुमानित मूल्य 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर है – अत्यंत लाभदायक रही हैं और वे चाहते हैं कि भारत अफगानिस्तान में निवेश करता रहे।
नोट : नई दिल्ली ने अफगानिस्तान में तालिबान शासन को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है, लेकिन काबुल में एक तकनीकी मिशन बनाए रखा है।
- काबुल में भारत का तकनीकी मिशन, अफगानिस्तान में उसकी राजनयिक उपस्थिति का हिस्सा है, जो पूर्ण राजनयिक कार्यों के बजाय विकासात्मक और मानवीय प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करता है।
भारत-तालिबान संबंध
- तालिबान शासन (1996-2001): भारत ने तालिबान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किये।
- भारत ने तालिबान के विरोधी समूह नॉर्दर्न एलायंस का समर्थन किया।
- तालिबान ने वर्ष 1999 में इंडियन एयरलाइंस की उड़ान 814 के अपहरणकर्त्ताओं के साथ बातचीत में भारत की सहायता की थी, जिससे बंधकों की सुरक्षित वापसी में मदद मिली थी।
- अफगानिस्तान अधिग्रहण से पूर्व (15 अगस्त 2021 से पूर्व ):
- मॉस्को वार्ता (2017): मॉस्को वार्ता ने अफगानिस्तान में सुलह प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिये अफगानिस्तान, चीन, भारत और अन्य हितधारकों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाया।
- अंतर-अफगान शांति वार्ता (2020): भारत ने दोहा में अंतर-अफगान शांति वार्ता में भाग लिया, जो तालिबान के साथ उसके जुड़ाव में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
- अफ़गानिस्तान अधिग्रहण के बाद (15 अगस्त, 2021 के बाद ) :
- पहली वार्ता (अगस्त 2021): कतर में भारत के राजदूत ने तालिबान के प्रतिनिधियों से उनके दोहा कार्यालय में वार्ता की।
- निरंतर संपर्क (जून 2022): पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान के संयुक्त सचिव ने प्रमुख तालिबान नेताओं से मुलाकात की, जिससे काबुल में भारतीय दूतावास में एक तकनीकी टीम भेजने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- तकनीकी टीम भारतीय अधिकारियों को काबुल में तालिबान के मंत्रियों और प्रतिनिधियों से मिलने की अनुमति देती है।
- मुंबई में अफगान महावाणिज्यदूत: भारत ने तालिबान को मुंबई स्थित अफगान वाणिज्य दूतावास में एक नया महावाणिज्यदूत नियुक्त करने की अनुमति दे दी।
भारत के लिये अफगानिस्तान का क्या महत्त्व है?
- मध्य एशिया के लिये सेतु: मध्य एशिया में महत्त्वपूर्ण आर्थिक और ऊर्जा संसाधन हैं, और अफगानिस्तान भारत को पाकिस्तान और चीन पर निर्भरता से बचते हुए इन संसाधनों तक पहुँचने के लिये चाबहार बंदरगाह के माध्यम से एक मार्ग प्रदान करता है।
- अफगानिस्तान की सीमा पाकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और चीन से लगती है।
- पाकिस्तान के प्रभाव का मुकाबला करना: अफगानिस्तान में प्रभाव बनाए रखकर भारत इस क्षेत्र में अपनी भूमिका को मज़बूत कर सकता है तथा दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में अपनी रणनीतिक स्थिति को बढ़ा सकता है।
- आतंकवाद-विरोध: अफगानिस्तान में भारत की भागीदारी दक्षिण एशिया में आतंकवाद और उग्रवाद के खिलाफ लड़ाई में उसके नेतृत्व पर प्रकाश डालती है।
- पारस्परिक लाभ: भारत ने अफगानिस्तान में विभिन्न परियोजनाओं (जैसे सड़कें, बांध, स्कूल, अस्पताल, संसद भवन आदि) में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया है जिससे अफगान लोगों के लिये बेहतर जीवन मिलने के साथ भारतीयों तथा अफगानियों को पारस्परिक लाभ मिल सकता है।
भारत की तालिबान नीति के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- आतंकवाद: अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार के पतन से देश अस्थिर हो गया है तथा हक्कानी नेटवर्क, अल-कायदा एवं लश्कर-ए-तैयबा जैसे चरमपंथी नेटवर्क मज़बूत हुए हैं, जिनके द्वारा सीमापार आतंकवाद के माध्यम से भारत को निशाना बनाया है।
- उदाहरण के लिये, आतंकवादी समूहों की उपस्थिति भारत के हितों के विरुद्ध होने के साथ भारत की सुरक्षा के लिये खतरा पैदा कर सकती है।
- पाकिस्तान की रणनीतिक भूमिका: पाकिस्तान, अफगानिस्तान में भारत की उपस्थिति को अपनी स्ट्रेटजिक डेप्थ नीति के लिये प्रत्यक्ष खतरा मानता है, जिसका उद्देश्य अफगानिस्तान का भारत के खिलाफ एक बफर के रूप में उपयोग करना है।
- पाकिस्तान भारत पर बलूचिस्तान एवं अन्य क्षेत्रों में उग्रवाद को समर्थन देने का आरोप लगाता है।
- राजनयिक मान्यता: भारत ने तालिबान शासन को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है क्योंकि यह समावेशी सरकार बनाने, मानवाधिकारों का सम्मान करने तथा आतंकवाद पर अंकुश लगाने में निष्क्रिय रहा है।
- शरणार्थी संकट: काबुल के पतन के कारण भारत में बड़ी संख्या में अफगान शरणार्थी आ गए, जिससे संसाधनों पर दबाव पड़ा तथा सुरक्षा, एकीकरण एवं उनके बीच संभावित कट्टरपंथी तत्त्वों के बारे में चिंताएँ पैदा हुईं।
आगे की राह
- केंद्रित वित्तीय निवेश: भारत को अफगानिस्तान की आबादी के लिये दीर्घकालिक समर्थन बनाए रखने के क्रम में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा तथा मानवीय राहत जैसी मैत्रीपूर्ण परियोजनाओं पर केंद्रित प्रभावशाली परियोजनाओं का रणनीतिक मूल्यांकन तथा कार्यान्वयन करना चाहिये।
- लोकतांत्रिक नेतृत्व: भारत को महिलाओं एवं अल्पसंख्यकों के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिये अफगान नागरिक समाज के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिये।
- व्यापार पहुँच के लिये सार्क का उपयोग करना: भारत को स्थल मार्ग से व्यापार पहुँच के विकल्प तलाशने के लिये सार्क मंच का लाभ उठाना चाहिये, जिससे अफगानिस्तान एवं भारत दोनों को लाभ होगा।
- विमर्श को बढ़ावा देना: अफगानिस्तान के लोगों की चिंताओं को दूर करने के लिये प्रयास किए जाने चाहिए तथा छात्र शिक्षा वीज़ा को फिर से शुरू करने की आवश्यकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: अफगानिस्तान में तालिबान शासन के साथ भारत की भागीदारी का मूल्यांकन कीजिये। यह भारत के राष्ट्रीय तथा सुरक्षा हितों के लिये किस प्रकार उपयोगी है? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न: निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त देशों में से कौन अफगानिस्तान के साथ सीमा साझा करते हैं? (a) केवल 1, 2 और 5 उत्तर: (c) |