अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अमेरिका और भारत की सॉफ्ट पावर
- 03 Apr 2025
- 17 min read
प्रिलिम्स के लिये:हार्ड पावर, सॉफ्ट पावर, गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM), ऑपरेशन ब्रह्मा, संयुक्त राष्ट्र, WHO, BRICS, G20, ICCR मेन्स के लिये:भारत की सॉफ्ट पावर, सॉफ्ट पावर के प्रमुख तत्त्व, भारत की सॉफ्ट पावर कूटनीति के समक्ष चुनौतियाँ, ICCR पर वीना सीकरी समिति, अनुशंसाएँ और आगे की राह |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रपति ट्रंप प्रशासन के तहत "अमेरिका फर्स्ट" एजेंडे से प्रेरित हाल के नीतिगत परिवर्तनों के कारण अमेरिका की सॉफ्ट पावर में कमी आई है, जिससे विश्व में उसका प्रभाव और रणनीतिक प्रभुत्व कम हो गया है।
सॉफ्ट पावर क्या है?
- राजनीति विज्ञानी जोसेफ नाई के अनुसार हार्ड पावर का प्रयोग करने के स्थान पर आकर्षण और अनुनय के माध्यम से दूसरों की प्राथमिकताओं को आकार देने की क्षमता सॉफ्ट पावर है।
- इसके अंतर्गत वैश्विक मामलों को प्रभावित करने के लिये संस्कृति, मूल्यों और कूटनीति का प्रयोग शामिल है।
- हार्ड पावर से तात्पर्य किसी राष्ट्र की सैन्य बल, आर्थिक प्रतिबंध और दबाव के अन्य रूपों सहित बल प्रयोग के माध्यम से दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता से है।
- एक सफल राज्य हार्ड और सॉफ्ट पावर, तात्कालिक लक्ष्यों के लिये बल प्रयोग और अपने दीर्घकालिक दृष्टिकोण और प्राथमिकताओं को आकार देने के लिये प्रभाव के बीच संतुलन बनाए रखता है।
- उदाहरण के लिये: अमेरिका सैन्य हस्तक्षेप में हार्ड पावर और कूटनीति और सांस्कृतिक पहुँच के माध्यम से सॉफ्ट पावर का इस्तेमाल करता है। चीन दोनों का मिश्रण करता है जिसमें सैन्य मुखरता और प्रभाव का विस्तार करने के लिये BRI जैसी पहल का उपयोग करता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका की सॉफ्ट पावर में हुई कमी के क्या कारण हैं?
- कमज़ोर होते गठबंधन: वैश्विक संघर्षों (जैसे रूस-यूक्रेन) में एकपक्षीय कार्रवाई, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) और AUKUS की आलोचना, और जापान तथा कनाडा जैसे सहयोगियों पर बदलती नीतियों से अमेरिका की साख प्रभावित हुई है।
- गाजा संघर्ष में इज़रायल को अमेरिका के पुरज़ोर समर्थन से ग्लोबल साउथ और नॉर्थ एशिया के साथ उसके संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं।
- उदाहरण के लिये, दक्षिण अफ्रीका ने कथित नरसंहार को लेकर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में इज़रायल पर मुकदमा दायर किया है।
- गाजा संघर्ष में इज़रायल को अमेरिका के पुरज़ोर समर्थन से ग्लोबल साउथ और नॉर्थ एशिया के साथ उसके संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं।
- मानवीय सहभागिता में कमी: USAID के वित्तपोषण में भारी कटौती (कार्यक्रमों के 17% तक) और US इंस्टीट्यूट ऑफ पीस और वॉयस ऑफ अमेरिका जैसे संस्थानों के समापन होने से कूटनीति और विकास में अमेरिकी प्रभाव कम हो गया है।
- अमेरिका द्वारा विविधता, समानता और समावेश (DEI) नीतियों को अस्वीकार करने से लोकतंत्र, समान प्रतिनिधित्व और धार्मिक स्वतंत्रता के लिये उसके वैश्विक समर्थन को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है।
- अस्थिर व्यापार और आव्रजन नीतियाँ: "पारस्परिक टैरिफ" सहित संरक्षणवाद की ओर अमेरिका के झुकाव से आर्थिक विश्वसनीयता और कनाडा, मैक्सिको, ऑस्ट्रेलिया तथा भारत के साथ व्यापार संबंधों के लिये जोखिम उत्पन्न होते हैं।
- इसी प्रकार की एक नीति, वर्ष 1930 के स्मूट-हॉले टैरिफ, से महामंदी के दौरान अमेरिकी अर्थव्यवस्था की स्थिति और अधिक प्रभावित हुई थी।
- व्यापक स्तर पर निर्वासन, वैध प्रवास पर प्रतिबंध, H-1B और ग्रीन कार्ड धारकों पर कड़ी जाँच, तथा जन्मसिद्ध नागरिकता पर प्रतिबंध से अवसरों और विविधता के देश के रूप में अमेरिका की छवि धूमिल होती है।
- उच्च शिक्षा में छात्रों का अरुचिकर होना: छात्र विरोधों पर दमन, विदेशी छात्रों का निर्वासन, तथा विश्वविद्यालयों के लिये वित्त पोषण में कटौती के कारण अंतर्राष्ट्रीय नामांकन कम हो रहे हैं, जिससे अमेरिकी सॉफ्ट पावर का एक प्रमुख स्तंभ प्रभावित हो रहा है।
विदेशी संबंधों में पारस्परिकता के प्रति भारत का दृष्टिकोण
- गुजराल सिद्धांत में भारत की प्रबलता को इसकी क्षेत्रीय स्थिरता से जोड़ते हुए भारत के विदेशी संबंधों को निर्देशित करने वाले पाँच सिद्धांतों को रेखांकित किया गया है।
- इसका एक प्रमुख सिद्धांत, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका जैसे लघु पड़ोसी देशों को पारस्परिकता की अपेक्षा किये बिना एकपक्षीय रियायतें प्रदान कर मैत्रीपूर्ण संबंधों को प्राथमिकता देना, तथा संबद्ध क्षेत्र में सद्भावना और विश्वास को बढ़ावा देना है।
भारत की सॉफ्ट पावर के प्रमुख तत्त्व क्या हैं?
- सांस्कृतिक प्रभाव: योग, आयुर्वेद, बॉलीवुड, भारतीय व्यंजन और हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म जैसी आध्यात्मिक परंपराएँ भारत के वैश्विक आकर्षण को बढ़ाती हैं।
- ऐतिहासिक एवं प्रवासी संबंध: भारत विशेष रूप से एशिया और अफ्रीका के साथ सुदृढ़ सांस्कृतिक संबंध साझा करता है जहाँ 35 मिलियन की संख्या वाला वैश्विक भारतीय प्रवासी वर्ग व्यापार, राजनीति और सांस्कृतिक प्रभाव का सुदृढ़ीकरण करता है।
- लोकतंत्र और वैश्विक नेतृत्व: भारत का लोकतांत्रिक मॉडल विकासशील देशों को प्रेरित करता है। अहिंसा के गांधीवादी आदर्शों ने नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे वैश्विक नेताओं को प्रभावित किया।
- भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का नेतृत्व किया है और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ग्लोबल साउथ का समर्थन किया।
- आर्थिक और तकनीकी विकास: सूचना प्रौद्योगिकी, डिजिटल भुगतान (जैसे UPI और आधार) और फार्मास्यूटिकल्स में अग्रणी देश के रूप में, भारत ने वैक्सीन कूटनीति के माध्यम से टीके और औषधि प्रदान कर कोविड-19 महामारी के दौरान महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- शिक्षा और ज्ञान का आदान-प्रदान: भारत विश्व भर से छात्रों को IIT और IIM जैसे शीर्ष संस्थानों की ओर आकर्षित करता है।
- ITEC जैसे छात्रवृत्ति और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से भारत कई विकासशील देशों को कौशल और ज्ञान निर्माण में मदद करता है।
- भारत की मानवीय सहायता: भारत वैश्विक आपदा राहत और वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिसमें ऑपरेशन ब्रह्मा (2025 म्याँमार-थाईलैंड भूकंप) और श्रीलंका को वित्तीय सहायता शामिल है।
- यह CDRI को समर्थन प्रदान करता है तथा विकासशील देशों में बुनियादी ढाँचे और क्षमता निर्माण में सहायता करता है।
- बहुपक्षीय कूटनीति: भारत संयुक्त राष्ट्र, WHO, BRICS और G-20 में सक्रिय भूमिका निभाता है, भारत वैश्विक मामलों में एकपक्षीय कार्यवाही की बजाय बहुपक्षीय समाधान को बढ़ावा देता है।
भारत की सॉफ्ट पावर कूटनीति के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- संस्थागत अंतराल: विदेश मामलों की समिति की रिपोर्ट (वर्ष 2022-23) के अनुसार, ICCR, आयुष और पर्यटन जैसी संस्थाओं के बीच अपर्याप्त समन्वय के कारण भारत के सॉफ्ट पावर प्रयास खंडित बने हुए हैं। ICCR के पास स्पष्ट अधिदेश और रणनीतिक दिशा का अभाव है, जबकि विदेश मंत्रालय ने अभी तक भारत की सॉफ्ट पावर परिसंपत्तियों का व्यापक मूल्यांकन नहीं किया है।
- सीमित बहुपक्षीय कूटनीति: भारत को अपनी सॉफ्ट पावर कूटनीति को आगे बढ़ाने के लिये यूनेस्को, BRICS, SAARC और G-20 जैसे बहुपक्षीय मंचों का अभी तक पूरी तरह से लाभ नहीं मिला है।
- इसके अलावा, ट्रैक 2 (गैर-सरकारी) और ट्रैक 3 (लोगों से लोगों के बीच) कूटनीति में सीमित भागीदारी ने इसके वैश्विक प्रभाव को सीमित कर दिया है।
- सीमित वित्तीय संसाधन: चीन और अमेरिका जैसे देशों के विपरीत, भारत सॉफ्ट पावर पहलों के लिये न्यूनतम धन आवंटित करता है।
- यह वित्तीय बाधा भारत की वैश्विक स्तर पर अपनी सांस्कृतिक और कूटनीतिक पहुँच बढ़ाने की क्षमता को सीमित करती है।
- औपचारिक अध्ययन का अभाव: सॉफ्ट पावर के प्रति भारत का दृष्टिकोण अनियमित बना हुआ है, क्योंकि इसमें वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं पर औपचारिक अध्ययन का अभाव है।
- जबकि चीन (कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट्स), UK (ब्रिटिश काउंसिल), और फ्राँस (एलायंस फ्राँसेज़) जैसे देशों ने व्यवस्थित रूप से अपनी संस्कृति और भाषाओं को बढ़ावा दिया है, भारत ने अभी तक सांस्कृतिक कूटनीति के लिये एक संरचित मॉडल नहीं अपनाया है।
- अप्रयुक्त प्रवासी: विश्व के सबसे बड़े प्रवासी समुदायों में से एक होने के बावजूद, भारत में अंतर्राष्ट्रीय धारणाओं को आकार देने में प्रवासी भारतीयों को प्रभावी रूप से शामिल करने के लिये एक संरचित तंत्र का अभाव है।
- यद्यपि प्रवासी भारतीय दिवस और डायस्पोरा पुरस्कार मौजूद हैं, फिर भी उन्हें विदेश नीति में एकीकृत करने के लिये और अधिक कार्य किये जाने की आवश्यकता है।
- सार्वजनिक कूटनीति के प्रति निष्क्रिय दृष्टिकोण: यद्यपि भारत को अपनी संस्कृति के माध्यम से स्वाभाविक रूप से सॉफ्ट पावर का आकर्षण प्राप्त है, लेकिन इसने इन लाभों को सक्रिय रूप से रणनीतिक प्रभाव में परिवर्तित नहीं किया है।
- चीन के विपरीत, जो वैश्विक मीडिया और शिक्षा में सक्रिय रूप से निवेश करता है, भारत को अभी भी अपनी सांस्कृतिक और कूटनीतिक ताकत का पूरी तरह से लाभ उठाना शेष है।
आगे की राह
- सॉफ्ट पावर पर व्यापक नीति: भारत को सांस्कृतिक कूटनीति के लिये एक संरचित राष्ट्रीय रणनीति विकसित करनी चाहिये और वैश्विक पहुंच बढ़ाने के लिये ट्रैक 2 और ट्रैक 3 कूटनीति को अपनी विदेश नीति में औपचारिक रूप से एकीकृत करना चाहिये।
- संस्थाओं का पुनर्गठन: भारत को ICCR (वीना सीकरी समिति) का पुनर्गठन करना चाहिये, PPP के माध्यम से सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ाना चाहिये, वैश्विक मीडिया उपस्थिति (जैसे, दूरदर्शन इंटरनेशनल) का विस्तार करना चाहिये, और ICCR, दूतावासों और विदेश मंत्रालय के बीच समन्वय में सुधार करना चाहिये।
- विश्व स्तर पर योग, आयुर्वेद, हिंदी, शास्त्रीय नृत्य और व्यंजनों को बढ़ावा देने के लिये एक समर्पित सांस्कृतिक कूटनीति टास्क फोर्स बनाई जानी चाहिये।
- बहुपक्षीय मंचों का लाभ उठाना: भारत को यूनेस्को परियोजनाओं में भागीदारी बढ़ानी चाहिये, विदेशों में सांस्कृतिक केंद्रों का विस्तार करना चाहिये, सांस्कृतिक कूटनीति के लिये वैश्विक शिखर सम्मेलनों का उपयोग करना चाहिये, तथा अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को मज़बूत करने के लिये द्विपक्षीय सांस्कृतिक समझौतों को मज़बूत करना चाहिये।
- अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं का अध्ययन: भारत को वैश्विक सॉफ्ट पावर रणनीतियों का औपचारिक अध्ययन करना चाहिये और सांस्कृतिक कूटनीति को मज़बूत करने के लिये चीन, ब्रिटेन, फ्राँस और जापान के कार्यक्रमों के समान सफल मॉडल अपनाना चाहिये।
- प्रवासी एवं शैक्षिक कूटनीति: वैश्विक छात्रों को आकर्षित करने के लिये ITEC और भारत में अध्ययन कार्यक्रमों के तहत छात्रवृत्ति का विस्तार करते हुए वकालत, व्यापार और नीति निर्माण में भारतीय प्रवासियों को शामिल करने के लिये एक संरचित ढाँचा स्थापित करना।
निष्कर्ष
अमेरिकी सॉफ्ट पावर में गिरावट सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक प्रभाव के बीच संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित करती है। भारत बहुध्रुवीय विश्व में सांस्कृतिक कूटनीति और रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करके अपनी वैश्विक स्थिति को बढ़ाने के लिये सॉफ्ट और हार्ड पावर के रणनीतिक मिश्रण 'स्मार्ट पावर' का लाभ उठा सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. "सॉफ्ट पावर किसी राष्ट्र के वैश्विक प्रभाव का एक अनिवार्य घटक है, जो उसकी हार्ड पावर क्षमताओं का पूरक है।" भारत की विदेश नीति में सॉफ्ट पावर के महत्त्व पर चर्चा कीजिये और इसकी वैश्विक पहुँच बढ़ाने के उपाय सुझाइए। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट प्राप्त करने में भारत के सामने आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (2015) |