पृथ्वी का प्राचीन चुंबकीय क्षेत्र
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के भूवैज्ञानिकों द्वारा जर्नल ऑफ जियोफिज़िकल रिसर्च में प्रकाशित रिपोर्ट में पृथ्वी के प्राचीन चुंबकीय क्षेत्र की अंतर्दृष्टि का खुलासा किया गया है, जैसा कि प्राचीन चट्टानों से पता चला है, जो इसके प्रारंभिक भूवैज्ञानिक विकास पर प्रकाश डालता है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति:
- भूवैज्ञानिकों ने दक्षिण-पश्चिमी ग्रीनलैंड में इसुआ सुप्राक्रस्टल बेल्ट में लगभग 3.7 अरब वर्ष पुरानी प्राचीन चट्टानों की खोज की है, जिनमें पृथ्वी के प्रारंभिक चुंबकीय क्षेत्र के सबसे पुराने अवशेष मौजूद हैं।
- चट्टानें कम से कम 15 माइक्रोटेस्ला की शक्ति वाले चुंबकीय क्षेत्र के के रूप में बरकरार हैं, जो आज पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र (लगभग 30 माइक्रोटेस्ला) के परिमाण के समान है।
- भूवैज्ञानिकों ने दक्षिण-पश्चिमी ग्रीनलैंड में इसुआ सुप्राक्रस्टल बेल्ट में लगभग 3.7 अरब वर्ष पुरानी प्राचीन चट्टानों की खोज की है, जिनमें पृथ्वी के प्रारंभिक चुंबकीय क्षेत्र के सबसे पुराने अवशेष मौजूद हैं।
- चुंबकीय क्षेत्र का जीवनकाल
- पिछले अध्ययनों से पता चला था कि पृथ्वी पर चुंबकीय क्षेत्र कम से कम 3.5 अरब वर्ष पुराना है, लेकिन यह अध्ययन इसके जीवनकाल को 200 मिलियन वर्ष और बढ़ा देता है।
- लेड अनुपात विश्लेषण के लिये यूरेनियम का उपयोग करते हुए, शोधकर्त्ताओं ने अनुमान लगाया कि चट्टानों में कुछ चुंबकीय खनिज लगभग 3.7 अरब वर्ष पुराने थे।
- पृथ्वी की आवास क्षमता में संभावित भूमिका:
- प्राचीन चुंबकीय क्षेत्र ने ग्रह को रहने योग्य बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई होगी।
- इसने संभवतः जीवन-निर्वाह वातावरण को बनाए रखने में सहयता की और ग्रह को हानिकारक सौर विकिरण से बचाया।
- प्राचीन चुंबकीय क्षेत्र ने ग्रह को रहने योग्य बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई होगी।
यूरेनियम-से-लेड अनुपात विश्लेषण:
- यूरेनियम-लेड डेटिंग या U-Pb डेटिंग, एक रेडियोमेट्रिक डेटिंग तकनीक है जो पृथ्वी सामग्री की आयु निर्धारित करने के लिये यूरेनियम आइसोटोप और लेड आइसोटोप के अनुपात का उपयोग करती है।
- यूरेनियम और सीसे के अनुपात का उपयोग उस दर को निर्धारित करने के लिये किया जाता है जिस पर यूरेनियम लेड में विघटित होता है, जिसका उपयोग चट्टान की आयु निर्धारित करने के लिये किया जाता है
पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र क्या है?
- परिचय:
- पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र, जिसे भू-चुंबकीय क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है, ग्रह के आंतरिक भाग में उत्पन्न होता है और अंतरिक्ष में फैलता है, मैग्नेटोस्फीयर नामक एक क्षेत्र बनाता है तथा सौर हवा के साथ संपर्क करता है।
- चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के क्रोड में पिघले हुए लोहे और निकल की संवहन धाराओं द्वारा उत्पन्न होता है, जो आवेशित कणों को ले जाते हैं तथा चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करते हैं
- न केवल पृथ्वी, बल्कि अन्य ग्रह जैसे बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून में भी प्रबल चुंबकीय क्षेत्र हैं, जिन्हें अभी तक पूरी तरह से समझा नहीं गया है
- मंगल ग्रह में चुंबकीय क्षेत्र के लिये आवश्यक आंतरिक गर्मी और तरल पदार्थ का अभाव है, जबकि शुक्र के पास एक तरल क्रोड है लेकिन वह तरल उत्पन्न करने के लिये बहुत धीमी गति से घूमता है।
- जियोडायनेमो प्रक्रिया:
- पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र बाह्य कोर में जियोडायनेमो प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न होता है।
- बाह्य कोर में धीमी गति से संचलन करने वाले पिघले हुए लोहे से संवहन ऊर्जा विद्युत और चुंबकीय ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है, जिससे एक सकारात्मक प्रतिक्रिया लूप का निर्माण होता है।
- पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र बाह्य कोर में जियोडायनेमो प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न होता है।
- चुंबकीय ध्रुव:
- पृथ्वी के ध्रुवों के दो समूह हैं: भौगोलिक ध्रुव और चुंबकीय ध्रुव।
- भौगोलिक उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव वे स्थान हैं, जहाँ देशांतर रेखाएँ मिलती हैं, भौगोलिक उत्तरी ध्रुव आर्कटिक महासागर के मध्य में स्थित है तथा भौगोलिक दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका में स्थित है।
- इसके विपरीत, चुंबकीय ध्रुव वे स्थान हैं, जहाँ चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ पृथ्वी की सतह में प्रवेश करती हैं और बाहर गमन करती हैं।
- चुंबकीय उत्तरी ध्रुव, जिसे उत्तरी डिप ध्रुव के नाम से भी जाना जाता है, वर्तमान में उत्तरी कनाडा के एलेस्मेरे द्वीप पर पाया जाता है।
- जब एक कंपास उत्तर की ओर इंगित करता है, तो यह स्वयं को पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के साथ संरेखित कर रहा है और चुंबकीय उत्तरी ध्रुव की ओर इंगित कर रहा है, न कि वास्तविक भौगोलिक उत्तरी ध्रुव की ओर।
- पृथ्वी के ध्रुवों के दो समूह हैं: भौगोलिक ध्रुव और चुंबकीय ध्रुव।
- अंतरिक्ष मौसम से सुरक्षा:
- पृथ्वी का मैग्नेटोस्फीयर ग्रह को हानिकारक अंतरिक्ष मौसम, जैसे सौर पवनें, कोरोनल मास इजेक्शन (CMEs), और कॉस्मिक किरणों से बचाता है।
- मैग्नेटोस्फीयर हानिकारक ऊर्जा को पृथ्वी से दूर धकेलता है और इसे वैन एलन विकिरण बेल्ट नामक क्षेत्रों में ट्रैप कर देता है।
- भू-चुंबकीय तूफान और ऑरोरा:
- प्रबल अंतरिक्ष मौसम की घटनाओं के दौरान, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में गड़बड़ी हो सकती है, जिससे भू-चुंबकीय तूफान आ सकते हैं जो बिजली गुल होने (ब्लैकआउट) और संचार व्यवधान का कारण बन सकते हैं।
- पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में गड़बड़ी भी आयनों को ध्रुवीय क्षेत्रों की ओर भेजती है, जिससे ऑरोरा (उत्तरी लाइट और दक्षिणी लाइट) का निर्माण होता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. यदि एक विशाल सौर तूफान (सौर प्रज्वाल) पृथ्वी तक पहुँचता है, तो पृथ्वी पर निम्नलिखित में से कौन-से संभावित प्रभाव होंगे?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 4 और 5 उत्तर: (c) |
दूरदर्शन का लोगो
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हल ही में राष्ट्रीय प्रसारक दूरदर्शन (डी.डी.) ने अपने ऐतिहासिक फ्लैगशिप लोगो का रंग लाल से बदलकर केसरिया कर दिया है।
- राजनीतिक दलों ने सार्वजनिक प्रसारक पर सत्तारूढ़ राजनीतिक दल से निकटता से जुड़े रंग को अपनाने का आरोप लगाया, खासकर इसलिये क्योंकि यह बदलाव चुनाव प्रक्रिया के बीच में किया गया था। डी.डी. ने कहा कि परिवर्तन केवल दृश्य सौंदर्यशास्त्र (Visual aesthetics) में से एक था।
दूरदर्शन का इतिहास क्या है?
- परिचय
- दूरदर्शन भारत सरकार द्वारा स्थापित एक स्वायत्त सार्वजनिक सेवा प्रसारक (Broadcaster) है, जो प्रसार भारती के दो प्रभागों में से एक है।
- प्रसार भारती एक वैधानिक स्वायत्त निकाय है (प्रसार भारती अधिनियम, 1997 के तहत) यह देश का सार्वजनिक सेवा प्रसारक है।
- इसका मुख्य उद्देश्य जनता को शिक्षित करने और मनोरंजन करने के लिये दूरदर्शन तथा आकाशवाणी को स्वायत्तता प्रदान करना है।
- इसे पहली बार सार्वजनिक सेवा प्रसारण सेवा के रूप में 15 सितंबर, 1959 को शुरू किया गया था।
- यह 1965 में सुबह और शाम के शो के दैनिक प्रसारण के साथ एक प्रसारक बन गया, जिसका प्रसारण दिल्ली में हुआ।
- 1 अप्रैल, 1976 को यह सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन आ गया और 1982 में ‘दूरदर्शन’ के नाम से राष्ट्रीय प्रसारक बन गया।
- वर्तमान में दूरदर्शन 6 राष्ट्रीय और 17 क्षेत्रीय चैनल संचालित करता है।
- दूरदर्शन की मशहूर धुन सितार वादक पंडित रविशंकर तथा शहनाई वादक उस्ताद अली अहमद हुसैन खान द्वारा रचित थी और इसे पहली बार 1 अप्रैल, 1976 को प्रसारित किया गया था।
- लोगो का इतिहास:
- मूल 'आई' लोगो को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन (National Institute of Design) के देवाशीष भट्टाचार्य द्वारा डिज़ाइन किया गया था।
- इसके लोगो को 1970 के दशक की शुरुआत में कुछ डिज़ाइन विकल्पों में से एक के रूप में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा चुना गया था।
- दो वक्र विरोधाभासी और अविभाज्य विरोधाभासों के प्राचीन चीनी दर्शन, यिन व यांग के क्लासिक चित्रण की भिन्नता का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- सत्यम शिवम सुंदरम (सच्चाई, अच्छाई, सौंदर्य), लोगो के शुरुआती संस्करणों में टैगलाइन, बाद के रूपांतरणों में हटा दी गई थी।
- मूल 'आई' लोगो को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन (National Institute of Design) के देवाशीष भट्टाचार्य द्वारा डिज़ाइन किया गया था।
कुचिपुड़ी
स्रोत: द हिंदू
भारत के सबसे पुराने नृत्य रूपों में से एक कुचिपुड़ी, अब युवा पीढ़ी के बीच अप्रचलित होता जा रहा है। कुचिपुड़ी आंध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले का एक गाँव है।
- कुचिपुड़ी एक नृत्य-नाटिका प्रदर्शन है, जो प्राचीन कल में पुरुषों तक ही सीमित हुआ करता था। यह हिंदू पौराणिक कथाओं की कहानियाँ दर्शाता है और लोगों के बीच अपना संदेश पहुँचाता है। कुचिपुड़ी भारत के 8 शास्त्रीय नृत्य रूपों में से एक है।
- पीढ़ियों से, लोगों ने गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम द्वारा इस शास्त्रीय नृत्य को सीखा है।
- वर्तमान में, यह कला सरकार से संरक्षण की कमी के कारण संकट की स्थिति में है, साथ ही इस कला ने महामारी के वर्षों में इसके पारंगत छह गुरुओं को खो दिया और भविष्य में युवाओं के लिये इसमें अवसरों की कमी है। वर्ष 2014-18 के बीच संगीत नाटक अकादमी ने आंध्र प्रदेश राज्य सरकार के सहयोग से कुचिपुड़ी यक्षगानम के ऑडियो, वीडियो और फोटो को संग्रहीत किया है।
- गुरु पसुमर्थी रत्तैया सरमा, यक्षगणों के एक प्रमुख, कुचिपुड़ी गाँव में रहने वाले सबसे पुराने गुरु हैं।
और पढ़ें: कुचिपुड़ी नृत्य शैली
चगास रोग
स्रोत: विश्व स्वास्थ्य संगठन
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) ने उस अल्पज्ञात रोग के विषय में जागरूकता बढ़ाने के लिये 14 अप्रैल, 2024 को विश्व चगास रोग दिवस मनाया, जो विशेषतः लैटिन अमेरिका में लाखों लोगों को प्रभावित करता है, वर्ष 2024 का विषय "चागास रोग से निपटना: जल्दी पता लगाएँ और जीवन की देखभाल करें" है।
- WHO के अनुसार, चगास रोग को "मूक या मौन रोग" के रूप में भी जाना जाता है, यह एक संक्रामक परजीवी रोग है जो 6-7 मिलियन लोगों को संक्रमित करता है और प्रत्येक वर्ष विश्व भर में लगभग 12,000 लोगों की मृत्यु का कारण बनता है।
- यह ट्रिपैनोसोमा क्रूज़ी नामक प्रोटोजोआ परजीवी के कारण होता है।
- यह जन्मजात संचरण, रक्त आधान, अंग प्रत्यारोपण, संक्रमित कीड़ों के मल से दूषित कच्चे भोजन के सेवन या आकस्मिक प्रयोगशाला जोखिम के माध्यम से भी हो सकता है।
- यह संक्रमित मनुष्यों या जानवरों के साथ आकस्मिक संपर्क से नहीं फैल सकता है।
- यह रोग बुखार, सिरदर्द, चकत्ते, सूजन संबंधी गाँठें, मतली या डायरिया और मांसपेशियों या पेट में दर्द के रूप में प्रकट होता है।
- चगास रोग के लिये वर्तमान में कोई टीका उपलब्ध नहीं है, परंतु एंटीपैरासिटिक दवाएँ बेंज़निडाज़ोल और निफर्टिमॉक्स इस रोग का उपचार कर सकती हैं।
और पढ़ें: विश्व चगास रोग दिवस
पूर्वी लहर अभ्यास
स्रोत: पी.आई.बी.
हाल ही में भारतीय नौसेना ने भारत के पूर्वी तट पर "पूर्वी लहर" नामक एक सैन्य अभ्यास आयोजित किया।
- इस अभ्यास का उद्देश्य क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये भारतीय नौसेना की तैयारियों का आकलन करना था।
- भारतीय वायु सेना (Indian Air Force), अंडमान और निकोबार कमान तथा तटरक्षक बल के जहाज़ों, पनडुब्बियों, विमानों एवं विशेष बलों ने अभ्यास में भाग लिया, जो सेवाओं के मध्य उच्च स्तरीय अंतरसंचालनीयता का संकेत देता है।
- यह अभ्यास कई चरणों में आयोजित किया गया:
- सामरिक चरण: यथार्थवादी परिदृश्य में युद्ध प्रशिक्षण,
- आयुध चरण विभिन्न फायरिंग रेंज को सफलतापूर्वक संचालित करके।
- विभिन्न स्थानों से विमानों का संचालन करके परिचालन क्षेत्र में निरंतर समुद्री डोमेन जागरूकता बनाए रखी गई थी।
- इसने भारतीय नौसेना की लक्ष्य पर आयुध पहुँचाने की क्षमता की पुनः पुष्टि की।
और पढ़ें: भारतीय नौसेना दिवस 2023
जलकुंभी
स्रोत: डाउन टू अर्थ
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (National Green Tribunal- NGT) ने कहा है कि जलकुंभी को नष्ट करने के लिये रासायनिक बायोएंज़ाइम "ड्रैनजाइम" का उपयोग करने के लिये केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा वैज्ञानिक अनुमोदन आवश्यक है।
- ड्रैनज़ाइम को उपयोग के लिये तभी अनुमति दी जाएगी जब यह पुष्टि हो जायेगी कि जल निकाय के पारिस्थितिक संतुलन पर इससे कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ रहा है।
- शहरी स्थानीय निकायों ने मच्छरों के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिये नदियों और झीलों पर जैव-एंज़ाइम या प्राकृतिक रसायनों का छिड़काव करने का निर्णय लिया।
- जलकुंभी को वैज्ञानिक भाषा में आइचोर्निया क्रैसिप्स के नाम से जाना जाता है।
- यह एक जलीय खरपतवार है जो भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया के जलीय निकायों में आम है।
- ड्रैनज़ाइम एक एंज़ाइम-आधारित उत्पाद है जिसका उपयोग जलकुंभी के निदान के लिये किया जाता है।
और पढ़ें: जलकुंभी
मुरिया जनजाति
- आंध्र प्रदेश व छत्तीसगढ़ के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों में निवास करने वाली मुरिया/मुड़िया जनजाति के पास दोनों राज्यों से प्राप्त मतदाता कार्ड हैं, एक उनके मताधिकार का प्रयोग करने के लिये है एवं दूसरा उनके जन्म के संदर्भ और प्रमाण के लिये।
- यह बस्ती नक्सलवाद से प्रभावित आंध्र प्रदेश-छत्तीसगढ़ सीमा पर 'भारत के रेड कॉरिडोर’ के भीतर स्थित है जो आरक्षित वन के भीतर स्थित एक मरूद्यान (Oasis) है तथा यह बस्ती और निर्वनीकरण पर प्रतिबंध लगाने वाले सख्त कानूनों द्वारा संरक्षित है।
- मुरिया निवास स्थान को आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों (IDPs) के घर के रूप में जाना जाता है, जिनकी आबादी आंध्र प्रदेश में लगभग 6,600 है और यहाँ के मुरियाओं को मूल जनजातियों द्वारा 'गुट्टी कोया' कहा जाता है।
- यह जनजाति माओवादियों और सलवा जुडूम के बीच संघर्ष के दौरान विस्थापित हुई थी।
- सलवा जुडूम गैरकानूनी सशस्त्र नक्सलियों के खिलाफ प्रतिरोध के लिये संगठित जनजातीय व्यक्तियों का एक समूह है।
- कथित तौर पर इस समूह को छत्तीसगढ़ में सरकारी मशीनरी का समर्थन प्राप्त था।
- मुरिया भारत के छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले का एक मूल आदिवासी, अनुसूचित जनजाति द्रविड़ समुदाय है। वे गोंडी समुदाय का हिस्सा हैं।
- वे कोया (एक द्रविड़) भाषा बोलते हैं।
- उनका विवाह और समग्र जीवन के प्रति प्रगतिशील दृष्टिकोण है।
और पढ़ें: मुरिया जनजाति
नौसेना स्टाफ के रूप में डी.के. त्रिपाठी
स्रोत: पी.आई.बी
सरकार ने वाइस एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी को नौसेना स्टाफ का अगला प्रमुख नियुक्त किया है। इससे पहले उन्होंने नौसेना स्टाफ के उप प्रमुख के रूप में कार्य किया था।
- 30 अप्रैल, 2024 को एडमिरल आर. हरि कुमार की सेवा से सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने पदभार ग्रहण किया।
- वाइस एडमिरल त्रिपाठी ने लगभग 39 वर्षों तक भारतीय नौसेना में सेवा की है। उन्हें 1 जुलाई, 1985 को भारतीय नौसेना की कार्यकारी शाखा में नियुक्त किया गया था।
- उन्होंने पश्चिमी नौसेना कमान के फ्लैग ऑफिसर, कमांडिंग-इन-चीफ के रूप में कार्य किया था।
- वह संचार और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध विशेषज्ञ हैं।
- उन्होंने भारतीय नौसेना के जहाज़ों विनाश, किर्च और त्रिशूल की कमान संभाली है।
- उन्होंने विभिन्न महत्त्वपूर्ण अभियानों और अन्य पदों को भी सुशोभित किया, जिसमें पश्चिमी कमांड के फ्लीट ऑपरेशन ऑफिसर, नौसेना संचालन के निदेशक एवं नई दिल्ली में नौसेना योजनाओं के प्रधान निदेशक शामिल हैं।
- उन्हें केरल के एझिमाला में प्रतिष्ठित भारतीय नौसेना अकादमी के कमांडेंट के रूप में नियुक्त किया गया था।
- वह सैनिक स्कूल रीवा और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खडकवासला के पूर्व छात्र हैं।
और पढ़ें: नौसेना के स्वदेशीकरण के प्रयास