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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 29 May, 2024
  • 20 min read
प्रारंभिक परीक्षा

ओलिव रिडले कछुए

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पारंपरिक चीनी स्काई लेंटर्न महोत्सव (Chinese Sky Lantern Festival) ने पर्यावरणविदों और वन्यजीव संरक्षणवादियों के मध्य आक्रोश उत्पन्न कर दिया है, क्योंकि यह लुप्तप्राय ओलिव रिडले कछुओं के घोंसले के स्थान के पास आयोजित किया गया था।

  • पर्यावरणविदों के अनुसार, इन लालटेनों में प्रयोग किये गए बाँस या धातु के तार के फ्रेम को विघटित होने में महीनों लगते हैं और ये वन्यजीवों, मछलियों, डॉल्फिनों, पक्षियों व कछुओं के लिये जाल का कार्य करता है।

‘ओलिव रिडले’ कछुए क्या हैं?

  • परिचय:
    • ये कछुए माँसाहारी होते हैं और इनका ये नाम इनके जैतून के रंग के कवच (पृष्ठवर्म) के कारण पड़ा है।
    • वे अपने अद्वितीय सामूहिक नीडन के लिये प्रसिद्ध हैं, जिसे ‘अरिबदा’ कहा जाता है, जहाँ हज़ारों मादाएँ अंडे देने के लिये एक ही समुद्र तट पर एकत्र होती हैं।
  • पर्यावास:
    • यह प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागर के उष्ण जल में पाए जाते हैं।
    • ओडिशा का गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य समुद्री कछुओं के विश्व के सबसे बड़े रॉकरी (प्रजनन करने वाले पशुओं का एक समूह) के रूप में जाना जाता है।

  • संरक्षण की स्थिति:
  • ओलिव रिडले कछुओं के संरक्षण हेतु नई पहल:
    • ऑपरेशन ओलिविया: प्रत्येक वर्ष, 1980 के दशक की शुरुआत में शुरू किया गया भारतीय तटरक्षक बल काऑपरेशन ओलिवियाओलिव रिडले कछुओं को संरक्षित करने में सहायता  करता है, क्योंकि वे नवंबर से दिसंबर तक प्रजनन और घोंसले बनाने के लिये ओडिशा तट पर एकत्र होते हैं।
      • यह अवैध मत्स्यन की गतिविधियों को भी नियंत्रित करता है।
    • टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइसेज़ (Turtle Excluder Devices-TED) का अनिवार्य उपयोग: 
      • भारत में इनकी आकस्मिक मृत्यु की घटनाओं को कम करने के लिये ओडिशा सरकार ने ट्रॉल के लिये टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइसेज़ (Turtle Excluder Devices- TED) का उपयोग अनिवार्य कर दिया है, जालों को विशेष रूप से एक निकास के साथ बनाया गया है, जिसके उपयोग से समुद्री कछुओं को सुरक्षित निकास मिल जाता है।
    • टैगिंग:
      • ओलिव रिडले कछुओं पर गैर-संक्षारक धातु टैग का उपयोग किया जाता है, ताकि वैज्ञानिकों को उनकी गतिविधियों का पता लगाने तथा यह जानने में सहायता मिल सके कि वे किन क्षेत्रों में जाते हैं, जिससे उनकी प्रजातियों और उनके आवासों की रक्षा की जा सके।

स्काई लैंटर्न फेस्टिवल ग्लोफेस्ट:

  • यह स्काई लैंटर्न फेस्टिवल चीन और अन्य एशियाई देशों में मनाया जाता है, जो चंद्र कैलेंडर के प्रथम माह के 15वें दिन मृत पूर्वजों का सम्मान करते हैं।
  • इस त्योहार का उद्देश्य सुलह, शांति और क्षमा को बढ़ावा देना है।
  • इस अवसर को यादगार बनाने के लिये मोमबत्तियों से प्रकाशित कागज़ के लालटेन आकाश में छोड़े जाते हैं।

ओलिव रिडले कछुओं के समक्ष क्या खतरे हैं?

  • समुद्री दीवारों (Seawalls), रिसॉर्टों और बंदरगाहों का निर्माण तटीय विकास परियोजनाओं के उदाहरण हैं, जो ओलिव रिडले के घोंसले वाले तटों को नुकसान पहुँचाते हैं एवं उनके आहार स्थलों (foraging grounds) को नष्ट कर देते हैं।
  • वे गलती से मछली पकड़ने के उपकरण, जैसे गिलनेट, ट्रैवल और लॉन्ग लाइन में फँस जाते हैं। इससे कछुओं को नुकसान पहुँच सकता है अथवा उनकी मृत्यु हो सकती है।
  • रैकून, केकड़े, पक्षी और लोमड़ी, ओलिव रिडले कछुओं के घोंसलों पर आक्रमण कर सकते हैं तथा उनके अंडों को खा सकते हैं, जिससे उनकी संख्या प्रभावित हो सकती है।
  • समुद्री कछुओं में अंडों का लिंग तापमान पर निर्भर करता है। उच्च तापमान पर, अधिक मादा हैचलिंग्स पैदा होती हैं, जबकि कम तापमान पर, नर हैचलिंग्स की संख्या अधिक होती है। 
  • वे अक्सर जेलीफिश जैसे खाद्य पदार्थों की तलाश में प्लास्टिक की थैलियों का सेवन कर सकते हैं जिससे उन्हें अवरोध और भुखमरी की समस्या हो सकती है। 
  • आस-पास के शहरों एवं उद्योगों से आने वाला कृत्रिम प्रकाश हैचलिंग्स को भ्रमित कर सकता है, जिसके कारण वे समुद्र से दूर, निकटवर्ती क्षेत्रों में चले जाते हैं।

few turtle species

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, भारत का राष्ट्रीय जलीय प्राणी है? (2015)

(a) खारे पानी का मगर
(b) ऑलिव रिड्ले टर्टल (कूर्म)
(c) गंगा की डॉलफिन
(d) घड़ियाल

उत्तर: C


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए : (2019)

  1. समुद्री कच्छपों की कुछ जातियाँ शाकभक्षी होती है।
  2. मछली की कुछ जातियाँ शाकभक्षी होती हैं।
  3. समुद्री स्तनपायियों की कुछ जातियाँ शाकभक्षी होती हैं।
  4. साँपों की कुछ जातियाँ सजीवप्रजक होती हैं।

उपर्युक्त में से कौन-से कथन सही हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)


प्रारंभिक परीक्षा

फ्लेमिंगो, हिमालयन आइबेक्स और ब्लू शीप

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

हाल ही में मुंबई हवाई अड्डे पर एक विमान की लैंडिंग के समय फ्लेमिंगों/राजहंस पक्षियों के झुंड से टकराने के कारण लगभग 39 फ्लेमिंगो पक्षी मारे गए।

  • चूँकि फ्लेमिंगो, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) के तहत एक संरक्षित प्रजाति है, इसलिये बचाव दल ने फ्लेमिंगो के शवों को परीक्षण हेतु वन विभाग को सौंप दिया।

फ्लेमिंगो से संबंधित मुख्य तथ्य कौन-से हैं?

  • विश्व भर में फ्लेमिंगो की 6 प्रजातियाँ पाई जाती हैं- अमेरिकन फ्लेमिंगो, एंडियन फ्लेमिंगो, चिली फ्लेमिंगो, ग्रेटर फ्लेमिंगो, जेम्स फ्लेमिंगो और लेसर फ्लेमिंगो।
  • ग्रेटर फ्लेमिंगो:
    • परिचय:
      • यह फ्लेमिंगों की सबसे बड़ी (आकार के संदर्भ में) तथा व्यापक स्तर पर पाई जाने वाली प्रजाति है।
      • यह गुजरात का राज्य-पक्षी है।
      • संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN रेड लिस्ट में इन्हें "कम चिंतनीय (least concern-LC)" की श्रेणी में रखा गया है।
      • ये अफ्रीका के विभिन्न क्षेत्रों, एशिया के दक्षिण-पूर्वी भागों तथा दक्षिणी यूरोप में पाए जाते हैं।
        • एशिया में ये पक्षी भारत और पाकिस्तान के तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
      • उत्तरी क्षेत्रों में पाई जाने वाली इनकी आबादी प्रायः भोजन की कमी, जल-स्तर में परिवर्तन और एक ही समूह/कॉलोनी के भीतर प्रतिस्पर्द्धा जैसे विभिन्न कारणों के चलते शीतकाल के दौरान गर्म क्षेत्रों की ओर पलायन करती है।
    • विशेषताएँ:
      • ये प्रजातियाँ एकसंगमनी (Monogamous) युग्म बनाती हैं, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक युग्म जीवन भर एक साथ रहता है।
      • इन्हें विशिष्ट गुलाबी रंग तटीय आर्द्रभूमि में उपलब्ध लवणीय झींगा और शैवाल के आहार से प्राप्त होता है। फ्लेमिंगो स्वस्थ तटीय पर्यावरण के संकेतक हैं।
      • ये सर्वाहारी (Omnivorous) प्रजातियाँ सीपीय जीवों (molluscs), सख्त आवरण वाले जीवों (crustaceans), कीटों, केकड़े, कृमियों तथा छोटी मछलियों का भक्षण करते हैं। इनके आहार में शैवाल, घास, विघटित पत्तियाँ और टहनियों जैसी विभिन्न वानस्पतिक घटक भी शामिल होते हैं।
      • ये पक्षी तटीय क्षेत्रों में खारे पानी के लैगून को अपेक्षाकृत अधिक पसंद करते हैं। ये बड़ी क्षारीय और खारी झीलों में भी रहते हैं।
  • भारत में फ्लेमिंगो का प्रवासन प्रतिरूप:
    • विशेषज्ञों का मानना है कि हर साल नवंबर में लगभग 1,00,000 से 1,50,000 फ्लेमिंगो भोजन की तलाश में गुजरात (कच्छ और भावनगर सहित) तथा आस-पास के अन्य स्थलों से मुंबई की ओर पलायन करते हैं।
    • मुंबई में ये ठाणे क्रीक क्षेत्र (फ्लेमिंगो के प्रजनन क्षेत्र) में प्रवास करते हैं।

हिमालयन आइबेक्स और ब्लू शीप का सर्वेक्षण

  • हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति ज़िले में वन्यजीव अधिकारी हिम तेंदुओं के मुख्य शिकार ब्लू शीप/नीली भेड़ हिमालयन आइबेक्स की आबादी का अनुमान लगाने हेतु सर्वेक्षण कर रहे हैं।
  • नीली भेड़ और हिमालयी आइबेक्स की बढ़ती आबादी के कारण IUCN रेड लिस्ट के तहत ‘सुभेद्य’ (Vulnerable) के रूप में वर्गीकृत हिम तेंदुओं की उपस्थिति अधिक देखी जा रही है।

विशेषताएँ

हिमालयन आइबेक्स

Himalayan_Ibex

ब्लू शीप (भड़ल)

Blue_Sheep

अभिलक्षण

  • इसकी पहचान इसकी सुडौल सींगों और दाढ़ी से होती है।
  • नर हिमालयन आइबेक्स मादाओं की तुलना में आकार में बड़े और अधिक मांसल भी होते हैं।
  • ये अकेले या 20 से कम जानवरों के छोटे समूहों में विचरण करते हैं, जिनमें लगभग पूरी तरह से समान  लिंग के ही जानवर होते हैं।

वितरण

  • ये समग्र चीन में, इनर मंगोलिया से लेकर हिमालय तक विस्तृत क्षेत्रों में ऊँचे ढलानों पर निवास करते हैं।
  • भारत, भूटान, चीन (गनसू/गांसू, निंग्ज़िया, सिचुआन, तिब्बत, इनर मंगोलिया), म्याँमार, नेपाल, पाकिस्तान

संरक्षण स्थिति

IUCN रेड लिस्ट: कम चिंतनीय (Least concerned- LC)

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972: अनुसूची 1

IUCN रेड लिस्ट: कम चिंतनीय

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम  1972: अनुसूची 1

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित प्राणिजात पर विचार कीजिये: (2023)

  1. सिंह-पुच्छी मकाॅक
  2.  मालाबार सिवेट
  3.  सांभर हिरण

उपर्युक्त में से कितने आमतौर पर रात्रिचर हैं या सूर्यास्त के बाद अधिक सक्रिय होते हैं?

(a) केवल एक                       
(b) केवल दो
(c) सभी तीन                        
(d) कोई भी नहीं

उत्तर:(a)


रैपिड फायर

कैटरपिलर में इलेक्ट्रोरिसेप्शन

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में किये गए एक शोध से यह ज्ञात हुआ है कि कैटरपिलर अपने शरीर पर उपस्थित बाल जैसी संरचना शूक (setae) के माध्यम से विद्युत क्षेत्र का पता लगा सकते हैं, इस अनुकूलन को विद्युतभान या इलेक्ट्रोरिसेप्शन के रूप में जाना जाता है।

  • यह संवेदी क्षमता मुख्य रूप से जलीय और उभयचर प्रजातियों में पाई जाती है, लेकिन अब इसे स्थलीय कीटों में भी देखा गया है।
  • विद्युतभान (Electroreception) कैटरपिलर को ततैयों (Wasps) जैसे कीटों के फड़फड़ाते पंखों से उत्पन्न दोलनी विद्युत क्षेत्र के बारे में अवगत कराता है तथा यह विशेषता उन्हें निकटवर्ती शिकारियों की पहचान करने में सक्षम बनाती है।
  • यह संवेदी क्षमता संभवतः तीव्र शिकार के प्रति उद्विकासी प्रतिक्रिया के रूप में विकसित हुई है, जो कैटरपिलर द्वारा प्रयुक्त अन्य संवेदी सुरक्षाओं की पूरक है।
  • "संवेदी प्रदूषण" (sensory pollution) के संभावित हस्तक्षेप, जैसे कि विद्युत तारों की विद्युत चुंबकीय आवृत्तियाँ, इस नाजुक संवेदनशील प्रक्रिया को बाधित कर सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनके अस्तित्व के लिये एक नई चुनौती उत्पन्न हो सकती है।

रैपिड फायर

ग्रहों की गोलाकार आकृति

स्रोत: द हिंदू

ग्रहों की गोलाकार आकृति मुख्यतः गुरुत्वाकर्षण और ज्यामिति के परस्पर प्रभाव के कारण है।

  • गुरुत्वाकर्षण वह प्राथमिक बल है जो ग्रहों को आकार देता है तथा उनके विशाल आकार के कारण उन्हें गोलाकार आकृति में परिवर्तित कर देता है।
  • एक गोला सबसे सघन त्रि-आयामी आकार प्रदान करता है, जो किसी दिये गए आयतन के लिये सतही क्षेत्र को कम करता है।
  • यद्यपि इन्हें सामान्यतः गोलाकार कहा जाता है, परंतु वास्तव में ये ग्रह और तारे चपटे गोलाकार आकृति वाले होते हैं, जो घूर्णन से उत्पन्न अपकेंद्रीय बल के कारण ध्रुवों पर चपटे होते हैं।
  • ध्रुवों की तुलना में भूमध्य रेखा पर गुरुत्वाकर्षण बल क्षीण होता है, क्योंकि घूर्णन से उत्पन्न केंद्रापसारी बल के कारण वहाँ उभार होता है।
  • गुरुत्वाकर्षण के कारण आकाशीय पिंड गोलाकार आकृति में आ जाते हैं, जबकि धूमकेतु और क्षुद्रग्रह जैसे छोटे पिंड अधिक शक्तिशाली विद्युत चुंबकीय बलों के कारण अनियमित आकार को बनाए रखते हैं।

और पढ़ें: धूमकेतु सी/2020 एफ3 नियोवाइज़


रैपिड फायर

प्रगति-2024

स्रोत: पी.आई.बी.

केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (Central Council for Research in Ayurvedic Sciences- CCRAS) ने आयुर्वेद के क्षेत्र में सहयोगात्मक अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिये "प्रगति-2024" (आयुर्ज्ञान में फार्मा अनुसंधान एवं तकनीकी नवाचार) नामक एक अभूतपूर्व पहल शुरू की है।

  • PRAGATI-2024 का उद्देश्य अनुसंधान के अवसरों का पता लगाना तथा CCRAS और आयुर्वेदिक दवा उद्योग के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है।
  • CCRAS आयुष मंत्रालय (आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी) से संबंधित एक स्वायत्त निकाय है। 
    • यह आयुर्वेद और सोवा रिग्पा चिकित्सा प्रणालियों में वैज्ञानिक आधार पर अनुसंधान के निर्माण, समन्वय, विकास एवं संवर्द्धन के लिये भारत में एक शीर्ष निकाय है।

AYUSH_System_of_Medicine

और पढ़ें: आयुर्वेद हेतु स्मार्ट (SMART) कार्यक्रम


रैपिड फायर

माइक्रोसेफेली

स्रोत: द हिंदू

माइक्रोसेफेली (Microcephaly), एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, जिसमें सिर असामान्य रूप से छोटा होता है और मस्तिष्क का विकास बाधित होता है। इस पर व्यापक शोध किया जा रहा है तथा हाल ही में यह पाया गया है कि SASS6 जीन इस जटिल आनुवंशिक विकार में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।

  • माइक्रोसेफेली से पीड़ित बच्चों में प्रायः छोटा मस्तिष्क, कमज़ोर संचालन प्रणाली, वाणी विकार, चेहरे की असामान्य बनावट तथा बौद्धिक विकलांगता की स्थिति देखी जाती है।
  • माइक्रोसेफेली की उत्पत्ति भ्रूण में मस्तिष्क विकास के शीर्ष चरण में निहित होती हैं, जब न्यूरॉन्स बनने वाली कोशिकाएँ सामान्य रूप से विभाजित होने में विफल हो जाती हैं
  • वर्ष 2014 से, SASS6 नामक जीन और उसके वेरिएंट को इस विकासात्मक प्रक्रिया में शामिल माना गया है।
  • शोधकर्त्ताओं ने पाया है कि SASS6 जीन में उत्परिवर्तन असामान्य तारक केंद्र (centriole) के गठन का कारण बन सकता है, जो कोशिका विभाजन और तंत्रिका विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • SASS6 जीन में Ile62Thr उत्परिवर्तन को माइक्रोसेफेली से संबद्ध किया गया है, जिसमें उत्परिवर्तित जीन की सहायता से बना प्रोटीन जीवित रहने के लिये पर्याप्त रूप से कार्यात्मक तो होता है लेकिन यह सिर के छोटे आकार तथा मस्तिष्क की न्यूनता का कारण बनता है।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, सगोत्रीय विवाह (चचेरे भाई-बहनों में विवाह) से SASS6 जीन सहित किसी जीन की उत्परिवर्तित प्रतिकृति प्राप्त होने का जोखिम बढ़ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप माइक्रोसेफेली की घटनाएँ बढ़ जाती हैं।

Microcephaly

और पढ़ें: NBRC शोधकर्ताओं ने माइक्रोसेफेली के कारण का पता लगाया


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