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समरक्तता

  • 17 Oct 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

समरक्तता, जेनेटिक रोग, इनब्रीडिंग, सिस्टिक फाइब्रोसिस

मेन्स के लिये:

समरक्तता से संबंधित लाभ और चुनौतियाँ, स्वास्थ्य

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में किये गए एक अध्ययन में आनुवंशिकी और स्वास्थ्य पर समरक्तता के प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है। इस अध्ययन में विश्व भर के समुदायों में रोग की संवेदनशीलता तथा मानवीय लक्षणों के विकास पर समरक्तता के प्रभावों को स्पष्ट किया गया है।

समरक्तता (Consanguinity):

  • समरक्तता के अंतर्गत सामाजिक और आनुवंशिक दोनों आयाम मौजूद होते हैं। सामाजिक रूप से इसका अर्थ है चचेरे भाई अथवा बहन जैसे रक्त संबंधियों से विवाह करना, जबकि आनुवंशिक रूप से यह निकट संबंधी व्यक्तियों के बीच विवाह को संदर्भित करता है, इसे अक्सर अंतःप्रजनन कहा जाता है।
    • यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसका परिवार और जनसंख्या आनुवंशिकी दोनों पर प्रभाव पड़ता है।

अध्ययन के मुख्य बिंदु:

  • विश्व की लगभग 15-20% आबादी में समरक्तता की विशेषता पाई जाती है, इसका प्रचलन एशिया और पश्चिम अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में अधिक है।
    • माना जाता है कि मिस्र और इंकास सहित कुछ प्राचीन मानव सभ्यताओं में समरक्तता का अभ्यास किया जाता था।
    •  आनुवंशिक साक्ष्यों से पता चलता है कि मिस्र के राजा तूतनखामुन का जन्म ऐसे माता-पिता से हुआ था जो आपस में समरक्त संबंध रखते थे।
  • भारत रक्तसंबंध अध्ययन के लिये एक समृद्ध स्थान है क्योंकि यहाँ 4,000 से अधिक अंतर्विवाही समूहों या एक ही जाति, जनजाति या कबीले के सदस्य रहते हैं।
  • आमतौर पर  यह पाया गया कि जिन समुदायों में इस प्रकार के विवाह का प्रचलन है वहाँ सजातीयता के कारण आबादी में मृत्यु दर और पुनरावर्ती आनुवंशिक रोगों की व्यापकता में वृद्धि हुई है।

रक्त-संबंध से संबंधित लाभ और चुनौतियाँ:

  • लाभ: 
    • सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं का संरक्षण: कुछ समाजों में परिवार के भीतर विवाह करना एक लंबे समय से चली आ रही परंपरा है जो सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंडों को संरक्षित करने में सहायता करती है।
    • सामाजिक सुरक्षा जाल: सजातीय संबंध एक अंतर्निहित सामाजिक सुरक्षा जाल प्रदान कर सकते हैं।
      • वित्तीय, भावनात्मक या चिकित्सा संकट के समय रिश्तेदारों द्वारा एक-दूसरे की सहायता करने की संभावनाएँ अधिक होती हैं, जिससे बाह्य सामाजिक सेवाओं पर बोझ कम हो जाता है।
    • असंगति के न्यूनतम जोखिम: कुछ मामलों में किसी निकट संबंधी से विवाह करने से सांस्कृतिक, धार्मिक या सामाजिक पृष्ठभूमि के संदर्भ में असंगति का जोखिम कम हो सकता है। इससे विवाह अधिक स्थायी हो सकते हैं।
    • पशु और पौधों के प्रजनन कार्यक्रमों में आनुवंशिक सुधार: नियंत्रित प्रजनन सेटिंग्स में पौधों और जीव-जंतुओं में हानिकारक आनुवंशिक लक्षणों को रणनीतिक रूप से समाप्त करने तथा वांछनीय गुणों को बढ़ाने के लिये निकट संबंधित एकल जीव का संसर्ग एक व्यापक रूप से प्रयुक्त की जाने वाली तकनीक है।
      • चयनात्मक प्रजनन के माध्यम से वैज्ञानिक उन्नत और अधिक उत्पादक नस्लें विकसित कर सकते हैं, जिससे कृषि उपज बेहतर होगी तथा पशुधन की गुणवत्ता में सुधार होगा।
  • समरक्तता संबंधी चुनौतियाँ:
    • आनुवंशिक विकारों का बढ़ता जोखिम: रक्तसंबंध की सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौती सामान्य अप्रभावी जीनों के साझा होने के कारण संतानों में आनुवंशिक विकार विकसित होने का बढ़ता जोखिम है।
    • सीमित आनुवंशिक विविधता: निकट संबंधियों से विवाह करने से जनसंख्या में आनुवंशिक विविधता सीमित हो सकती है, जिससे संभावित रूप से बीमारियों और पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति समुत्थानशीलता न्यून हो सकती है।
    • जटिल पारिवारिक गतिशीलता: जब अनेक भूमिकाएँ और संबंध सामने आते हैं तो समरक्तता परिवारों में जटिल पारिवारिक गतिशीलता उत्पन्न कर सकती है।
      • समरक्तता से निर्णय लेने और पारिवारिक पदानुक्रम से संबंधित संघर्ष एवं तनाव उत्पन्न हो सकता है।
    • व्यक्तिगत स्वायत्तता का संभावित क्षरण: घनिष्ठ रूप से जुड़े समरक्तता समुदायों में, व्यक्तिगत स्वायत्तता का क्षरण हो सकता है, जहाँ विवाह, परिवार नियोजन और अन्य जीवन से संबंधित निर्णयों पर परिवार अथवा समुदाय का अधिक प्रभाव हो सकता है, यह संभावित रूप से व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीमित करती है।
    • घरेलू हिंसा के मामलों में महिलाओं की चुप्पी: समरक्तता संबंधों में पारिवारिक सम्मान बनाए रखने के पारिवारिक और सांस्कृतिक दबाव बनाकर महिलाओं को घरेलू हिंसा की रिपोर्ट करने से हतोत्साहित किया जा सकता है।
      • यह चुप्पी दुर्व्यवहार के चक्र को बनाए रख सकती है, जिससे घरेलू हिंसा के मामलों में सहायता लेना या हस्तक्षेप करना मुश्किल हो जाता है।

आगे की राह 

समरक्तता, संस्कृति, आनुवंशिकी और सामाजिक मानदंडों से जुड़ी एक प्रथा है, जिसके लिये एक नाज़ुक संतुलन की आवश्यकता होती है। इसकी चुनौतियों से निपटने के लिये शिक्षा, कानूनी सुरक्षा उपायों और व्यक्तिगत चिकित्सा तथा आनुवंशिक परामर्श जैसी सहायता सेवाओं के माध्यम से सामाजिक व स्वास्थ्य मुद्दों को संबोधित करते हुए सांस्कृतिक मूल्यों का सम्मान करने की आवश्यकता है। सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए व्यक्तियों को सूचित विकल्प चुनने के लिये सशक्त बनाना भी महत्त्वपूर्ण है।

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