शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति
- 13 Dec 2022
- 10 min read
प्रिलिम्स के लिये:दुर्लभ रोगों की राष्ट्रीय नीति, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, दुर्लभ रोग, लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (एलएसडी), पोम्पे रोग, सिस्टिक फाइब्रोसिस, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, हीमोफिलिया मेन्स के लिये:भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज से संबंधित पहल। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, एक राज्यसभा सांसद (सांसद) ने राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति (NPRD) पर चिंता जताई क्योंकि इसकी शुरुआत के कई महीनों बाद भी दुर्लभ रोगों वाले किसी भी रोगी को इस नीति से संबद्ध सुविधा का लाभ नहीं मिला।
राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति (NPRD):
- परिचय:
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने दुर्लभ रोग के रोगियों के इलाज हेतु वर्ष 2021 में NPRD की शुरुआत की।
- लक्ष्य:
- दवाओं के स्वदेशी अनुसंधान और स्थानीय उत्पादन पर ध्यान बढ़ाना।
- दुर्लभ रोगों के उपचार की लागत को कम करना।
- शुरुआती चरणों में दुर्लभ रोगों की स्क्रीनिंग और पता लगाना।
- नीति के प्रमुख प्रावधान:
- वर्गीकरण:
- इस नीति ने दुर्लभ रोगों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया है:
समूह 1: एक बार उपचार की आवश्यकता वाले विकार।
समूह 2: दीर्घकालिक या आजीवन उपचार की आवश्यकता वाले विकार।
समूह 3: ऐसे रोग जिनके लिये निश्चित उपचार उपलब्ध है, लेकिन इनके उपचार की लागत बहुत अधिक है।
- इस नीति ने दुर्लभ रोगों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया है:
- वित्तीय सहायता:
- जो लोग समूह 1 के तहत सूचीबद्ध दुर्लभ रोगों से पीड़ित हैं, उन्हें राष्ट्रीय आरोग्य निधि (Rashtriya Arogya Nidhi) योजना के अंतर्गत 20 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता दी जाएगी।
- राष्ट्रीय आरोग्य निधि: इसका उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे (BPL) जीवनयापन करने वाले ऐसे रोगियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है जो गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं, ताकि वे सरकारी अस्पतालों में उपचार की सुविधा प्राप्त कर सकें। इसके अंतर्गत गंभीर रोगों से ग्रस्त लोगों को सुपर स्पेशिलिटी अस्पतालों/संस्थानों और सरकारी अस्पतालों में उपचार की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।
- ऐसी वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिये लाभार्थी बीपीएल परिवारों तक ही सीमित नहीं होंगे, बल्कि इसे लगभग 40% ऐसी आबादी तक बढ़ाया जाएगा जो केवल सरकारी तृतीयक अस्पतालों में इलाज के लिये प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana) के मानदंडों के अनुसार पात्र हैं।
- जो लोग समूह 1 के तहत सूचीबद्ध दुर्लभ रोगों से पीड़ित हैं, उन्हें राष्ट्रीय आरोग्य निधि (Rashtriya Arogya Nidhi) योजना के अंतर्गत 20 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता दी जाएगी।
- वैकल्पिक वित्तपोषण:
- इसके अंतर्गत स्वैच्छिक व्यक्तिगत योगदान के लिये एक डिजिटल प्लेटफॉर्म स्थापित कर स्वैच्छिक क्राउडफंडिंग उपचार और दुर्लभ रोग के रोगियों के उपचार लागत में स्वेच्छा से योगदान करने वाले कॉर्पोरेट दाता शामिल हैं।
- उत्कृष्टता केंद्र:
- इस नीति का उद्देश्य आठ स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों को 'उत्कृष्टता केंद्र' के रूप में नामित करके दुर्लभ बीमारियों की रोकथाम और उपचार के लिये तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं को सुदृढ़ करना है और इनके डायग्नोस्टिक सुविधाओं के उन्नयन के लिये 5 करोड़ रुपए तक की एकमुश्त वित्तीय सहायता भी प्रदान की जाएगी।
- राष्ट्रीय रजिस्ट्री:
- अनुसंधान और विकास में रुचि रखने वालों के लिये पर्याप्त डेटा और ऐसी बीमारियों की व्यापक जानकारी उपलब्ध कराने के लिये दुर्लभ बीमारियों की एक राष्ट्रीय अस्पताल-आधारित रजिस्ट्री बनाई जाएगी।
- वर्गीकरण:
दुर्लभ रोग:
- दुर्लभ रोग एक ऐसी स्वास्थ्य स्थिति होती है जिसका प्रचलन लोगों में प्रायः कम पाया जाता है या सामान्य बीमारियों की तुलना में बहुत कम लोग इन बीमारियों से प्रभावित होते हैं।
- वर्गीकृत दुर्लभ बीमारियों की संख्या लगभग 6,000-8,000 है, लेकिन सिर्फ 5% से भी कम का उपचार उपलब्ध है।
- उदाहरण: लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (Lysosomal Storage Disorder), पोम्पे डिज़ीज़, सिस्टिक फाइब्रोसिस (सिस्टिक फाइब्रोसिस एक विकार है जो फेफड़ों, पाचन तंत्र और शरीर के अन्य अंगों को गंभीर नुकसान पहुँचाता है।) हीमोफिलिया आदि।
- लगभग 95% दुर्लभ बीमारियों का कोई प्रमाणित उपचार उपलब्ध नहीं है और इनसे प्रभावित सिर्फ 10 में से 1 रोगी का ही रोग-विशिष्ट उपचार हो पाता है।
- 80 प्रतिशत दुर्लभ बीमारियाँ मूल रूप से आनुवंशिक होती हैं।
- इन बीमारियों को विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है और ये प्रति 10,000 आबादी में 1 से 6 लोगों में पाई जाती हैं।
- हालाँकि सामान्य बीमारियों की तुलना में इनसे बहुत कम लोग प्रभावित होते हैं। फिर भी इनके कई मामले गंभीर, पुराने और जानलेवा हो सकते हैं।
- भारत में दुर्लभ बीमारियों से प्रभावित करीब 50-100 मिलियन लोग हैं। इस नीति रिपोर्ट में कहा गया है कि इन रोगियों में से लगभग 80% बच्चे हैं, जिनमें से अधिकांश उच्च रुग्णता और मृत्यु दर के कारण वयस्कता तक नहीं पहुँच पाते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) 1 और 2 केवल उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प D सही है। प्रश्न: भारत में 'सभी के लिये स्वास्थ्य' प्राप्त करने के लिये समुचित स्थानीय समुदाय-स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेप एक पूर्वपेक्षा है। व्याख्या कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018) |