आकाशगंगा में पृथ्वी जैसे अन्य ग्रह

प्रिलिम्स के लिये:

एक्सोप्लैनेट,  केप्लर मिशन, गोल्डीलॉक्स ज़ोन,  'ट्रांज़िटिंग एक्सोप्लेनेट सर्वे सैटेलाइट' (TESS), एटा-अर्थ, ड्रेक समीकरण

मेन्स के लिये:

केप्लर मिशन का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

'राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन' (NASA) के केपलर अंतरिक्षयान द्वारा भेजे गए डेटा के  विश्लेषण में पता चला है कि आकाशगंगा में मौज़ूद 'वासयोग्य ग्रह' अथवा ‘हैबीटेबल एक्सोप्लैनेट(Habitable Exoplanets) पूर्व में अनुमानित संख्या से अधिक हो सकते हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • केप्लर मिशन को विशेष रूप से मिल्की वे आकाशगंगा के हमारे क्षेत्र का सर्वेक्षण करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। यह हमारी आकाशगंगा में पृथ्वी के आकार के सैकड़ों अन्य तथा छोटे ग्रहों एवं उनके आसपास 'वासयोग्य क्षेत्र' के निर्धारण में मदद करता है।
  • वर्तमान अध्ययन वर्ष 2013 में केपलर मिशन द्वारा भेजे गए डेटा के आधार पर किये गए प्रथम विश्लेषण द्वारा आकाशगंगा में अनुमानित ‘वासयोग्य ग्रहों’ की तुलना में कम-से-कम दो गुना  अधिक ऐसे ग्रहों की उपस्थिति की संभावना जताई गई है।

हैबिटेबल एक्सोप्लैनेट (Habitable Exoplanet):

  • एक एक्सोप्लैनेट या एक्स्ट्रा सोलर ग्रह सौरमंडल के बाहर का ग्रह होता है, जबकि ‘हैबिटेबल एक्सोप्लैनेट’ सौरमंडल के बाहर स्थित संभावित ‘रहने योग्य ग्रह क्षेत्र’ को इंगित करता है
    • वासयोग्य क्षेत्र (Habitable Zone) जिसे ‘गोल्डीलॉक्स ज़ोन’ (Goldilocks Zone) भी कहा जाता है, एक तारे के चारों ओर का वह क्षेत्र है जहाँ पृथ्वी जैसे किसी ग्रह की सतह न तो बहुत ठंडी और न ही बहुत गर्म हो अर्थात् उस ग्रह पर जीवन की संभावना हो।

वर्तमान डेटा विश्लेषण के निष्कर्ष:

  • शोध टीम द्वारा किये गये विश्लेषण के अनुसार, कम-से-कम एक-तिहाई और शायद 90 प्रतिशत तारे द्रव्यमान और चमक में सूर्य के समान हैं तथा 'वासयोग्य क्षेत्रों' में स्थित ग्रहों की  चट्टानें पृथ्वी की तरह है।
  • आकाशगंगा मंदाकिनी (मिल्की वे) में कम-से-कम 100 बिलियन तारे हैं, जिनमें से लगभग 4 बिलियन सूर्य के समान हैं। इन तारों में से केवल 7 प्रतिशत 'वासयोग्य' ग्रह हैं। केवल ‘मिल्की वे’ 300 मिलियन संभावित ‘वासयोग्य’ अर्थ हो सकती है।
  • ऐसे  निकटतम ‘वासयोग्य ग्रह’ सूर्य से लगभग 20 प्रकाश-वर्ष दूर हो सकते हैं। अध्ययन के अनुसार, लगभग प्रत्येक पाँचवें सूर्य के समान तारे का अपना वासयोग्य ग्रह है।

चुनौतियाँ:

  • खोजे गए वासयोग्य ग्रहों के बारे में अभी तक केवल इतना ज्ञात है कि इनका आकार पृथ्वी की तुलना में आधे से ढेढ़ गुना तक है तथा ये चट्टानों के समान कठोर हैं, परंतु इस संबंध में कोई विस्तृत जानकारी नहीं मिल सकी है। 
  • केपलर मिशन के तहत केवल एटा-अर्थ अर्थात् सूर्य जैसे तारों से संबंधित है ग्रहों का विश्लेषण किया जाता है। मिशन के तहत आकाशगंगा में स्थित छोटे तथा मंद तारों जैसे ‘लाल बौने’ (Red Dwarfs) तारों को अध्ययन में शामिल नहीं किया गया है। 
    • 'ट्रांज़िटिंग एक्सोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट' (TESS) मिशन के अनुसार, लाल बौना ग्रह भी जीवन की खोज के लिये बहुत प्रासंगिक है।

आगे की राह: 

  • इन ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं के लिये आवश्यक परिस्थितियों के संबंध में अभी बहुत अधिक अध्ययन किये जाने की आवश्यकता है। अब तक हम केवल एक ग्रह को जानते हैं, जिस पर जीवन संभव है तथा वह और कोई दूसरा ग्रह नहीं अपितु हमारी पृथ्वी है।
  • एटा-अर्थ वासयोग्य ग्रहों के निर्धारण में प्रयुक्त एक महत्त्वपूर्ण गणितीय समीकरण है। वैज्ञानिकों को 'ड्रेक समीकरण' के माध्यम से इन ग्रहों पर तकनीकी विकास की संभावनाओं के अध्ययन पर बल देने की आवश्यकता है। यह अध्ययन इन ग्रहों पर जीवन की उपस्थिति तथा एलियन आदि के संबंध में हमारी समझ को अधिक व्यापक बनाएगा।
    • 'ड्रेक समीकरण' (Drake Equation) का उपयोग खगोलविदों द्वारा यह अनुमान लगाने के लिये किया जाता है कि आकाशगंगा में तकनीकी विकास की कितनी संभावनाएँ मौजूद हो सकती हैं और क्या इन ग्रहों पर हम रेडियो या अन्य माध्यमों से संपर्क करने में सक्षम हो सकते हैं। 

केप्लर मिशन (Kepler Mission):

  • 'केप्लर अंतरिक्षयान को मार्च 2009 में हमारी आकाशगंगा 'मिल्की वे' के 150,000 से अधिक तारों की निगरानी के लिये लॉन्च किया गया था।
  • इसके बाद मई 2013 में केपलर अंतरिक्ष मिशन- 2 (K2 मिशन)  लॉन्च किया गया था।
  • इस अंतरिक्षयान द्वारा वर्ष 2018 तक ऐसे 4,000 से अधिक तारों तथा ग्रहों का अध्ययन किया गया लेकिन अब तक किसी भी ग्रह पर  जीवन या निवास का कोई संकेत नहीं मिला है।
  • केपलर मिशन का सबसे प्रमुख लक्ष्य ईटा-अर्थ नामक एक संख्या को मापना था।
    • एटा-अर्थ (जिसे ηE के रूप में भी लिखा गया है) को मेज़बान तारे के संभावित 'वासयोग्य क्षेत्र' अथवा गोल्डीलॉक्स ज़ोन (Goldilocks Zone)(HZ) में स्थित पृथ्वी के आकार के चट्टानी ग्रहों की माध्य संख्या के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • वर्ष 2018 में केप्लर मिशन के उत्तरवर्ती के रूप में 'ट्रांज़िटिंग एक्सोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट' (TESS) मिशन को पृथ्वी के कुछ सौ प्रकाश वर्ष की दूरी में स्थित सभी 'एक्सोप्लैनेट' के अध्ययन के लिये लॉन्च किया गया था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस