जैव विविधता और पर्यावरण
मेगाफौना बायस हैम्पर्स कार्निवोर संरक्षण प्रयास
- 07 Apr 2023
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प्रिलिम्स के लिये:मांसाहारी, प्रोजेक्ट टाइगर, टाइगर रिज़र्व, केन-बेतवा रिवर इंटर-लिंकिंग प्रोजेक्ट, भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972), भारतीय तेंदुआ, भारतीय जैविक विविधता अधिनियम (2002)। मेन्स के लिये:भारत में वन्यजीव संरक्षण में चुनौतियाँ, भारत में माँसाहारियों का संरक्षण और प्रबंधन, भारत में जैव विविधता संरक्षण, संरक्षण प्रयासों में पारिस्थितिक डेटा की भूमिका, मानव- पशु संघर्ष। |
चर्चा में क्यों?
भारत का मांसाहारी अनुसंधान बड़ी और अधिक लोकप्रिय प्रजातियों पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिससे छोटे और कम प्रसिद्ध माँसाहारियों की जानकारी में कमी आ रही है। जानकारी का यह अंतर देश में संरक्षण के प्रयासों में बाधा बन रहा है।
संरक्षण के लिये मांसाहारी जीव क्यों महत्वपूर्ण हैं?
- पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए मांसाहारी खाद्य शृंखला पर हावी हैं। उनके महत्त्व के बावजूद, मांसाहारी विश्व में सबसे अधिक संकट वाले स्तनधारियों में से हैं।
- इसलिये विश्व स्तर पर मांसाहारी आबादी के अध्ययन, सुरक्षा और प्रबंधन में पर्याप्त अनुसंधान और संरक्षण संसाधनों का निवेश किया जाता है।
भारत में मांसाहारी जीवों की संरक्षण स्थिति
- भारत दुनिया की 23% मांसाहारी आबादी का आवास है, जो 60 प्रजातियों से संबंधित हैं।
- हालाँकि वर्ष 1947 से प्रकाशित अध्ययनों की समीक्षा से पता चलता है कि देश में उनकी संरक्षण स्थिति और नीतियों पर करिश्माई/चमत्कारी प्रजातियों पर 70 वर्षों के शोध का प्रभाव संतोषजनक नहीं रहा है।
- जंगली बिल्ली वर्ग, विशेष रूप से बाघ, देश में मांसाहारी समूह पर हावी है। अन्य शीर्ष मांसाहारी, जिन पर पर्याप्त शोध ध्यान केंद्रित किया गया है उनमें भारतीय तेंदुआ, सुनहरा सियार, ढोल और जंगली बिल्ली शामिल हैं।
- हालाँकि छोटे और कम करिश्माई/चमत्कारी मांसाहारियों पर अध्ययन की गुणवत्ता आमतौर पर खराब रही है।
भारत में मांसाहारी जीवों पर अनुसंधान का प्रभाव:
- बाघों पर वैज्ञानिक अनुसंधान के कारण वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत हुई। जिससे देश भर में 50 स्थानों पर बाघ अभयारण्यों की स्थापना में मदद मिली।
- अनुसंधान होने से बाघों के आवास क्षेत्र में राजमार्गों के निर्माण या विस्तार के संबंध में साक्ष्य प्रदान हुए हैं, जैसे कि बांदीपुर टाइगर रिज़र्व, कान्हा-पेंच बाघ गलियारा और भगवान महावीर वन्यजीव अभयारण्य में हुए विकास।
- अनुसंधान डेटा के आधार पर महत्वाकांक्षी केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना का विरोध किया गया है जिससे मध्य प्रदेश में पन्ना टाइगर रिज़र्व के मुख्य क्षेत्र के एक बड़े हिस्से के जलमग्न होने की संभावना है।
- भारतीय तेंदुए पर अनुसंधान के परिणामस्वरूप मानव-तेंदुआ संघर्ष को रोकने हेतु राष्ट्रीय दिशा-निर्देश तैयार किये गए हैं।
- देश में बाघ को मांसाहारी जीव के रूप में प्रमुख माना जाता है। भारतीय तेंदुआ, ढोल और जंगली बिल्ली अन्य प्रमुख ऐसे मांसाहारी जीव हैं, जिन पर पर्याप्त शोध किया गया है।
- लेकिन छोटे स्तर के माँसाहारियों पर सीमित अध्ययन हुआ है।
छोटे स्तर के मांसाहारी जीवों पर शोध क्यों महत्त्वपूर्ण है?
- इससे माँसाहारियों और उनके पारिस्थितिकी के अन्य समुदायों और पारिस्थितिकी तंत्र के बीच महत्त्वपूर्ण संबंध को समझने में मदद मिलेगी।
- जंगली बिल्ली को मांसाहारी कृंतक आबादी को नियंत्रित करने, बीजों को प्रसारित करने और वन पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने जैसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी कार्यों हेतु जाना जाता है।
- सिवेट को भी बीजों को प्रसारित करने और वन पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिये जाना जाता है।
नोट:
- करिस्मैटिक मेगाफौना (Charismatic Megafauna) शब्द का उपयोग जीवों की प्रमुख प्रजातियों का वर्णन करने के लिये किया जाता है, जैसे कि हाथी, बाघ, शेर और पांडा। इन जानवरों का प्रायः इनके सांस्कृतिक और सौंदर्य संबंधी महत्त्व के कारण इनके संरक्षण पर अधिक महत्त्व दिया जाता है।
भारत में मांसाहारी अनुसंधान एवं संरक्षण में चुनौतियाँ:
- आर्द्रभूमि संरक्षण को कम प्राथमिकता दी जाती है एवं चरागाह पारिस्थितिक तंत्र, जो स्याहगोश/कैरॅकेल जैसी गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों को शरण देते हैं, को भी अनुसंधान एवं संरक्षण में दरकिनार कर दिया जाता है।
- प्राकृतिक इतिहास के अध्ययन में गिरावट तथा इस तरह के अध्ययनों को प्रकाशित करने वाली पत्रिकाओं में समानांतर कमी से प्रजातियों की पारिस्थितिकी को समझने हेतु बुनियादी कदम है।
- नीतियाँ अक्सर राजनीतिक प्रभावों और गलत प्राथमिकताओं से संचालित होती हैं तथा वैज्ञानिक सिफारिशों की अवहेलना की जाती है।
- मांसाहारी सीमित अंतःविषय अध्ययन एवं सामाजिक-पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील नीतियों के विकास में बाधा डालते हैं।
- गैर-सरकारी एजेंसियों और स्वतंत्र शोधकर्त्ताओं को लाभ पहुँचाने हेतु नौकरशाही की बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता है।
भारत में मांसाहारी संरक्षण में सुधार हेतु क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
- छोटे और कम प्रभावकारी माँसाहारियों पर शोध के लिये धन में वृद्धि, ताकि उनकी संख्या को बढ़ाया जा सके और भारत की संरक्षण नीतियों में उनके कमज़ोर और खतरे वाले आवासों पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।
- सामाजिक-पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील समुदायों को शामिल करके नीतियों को प्रोत्साहित करने हेतु एक सहयोगी और रचनात्मक दृष्टिकोण के साथ अंतःविषय अनुसंधान।
- भारतीय जैवविविधता अधिनियम (2002) के तहत जैव विविधता विरासत स्थलों या भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) के तहत सामुदायिक कोष जैसे ढाँचे व स्थानीय नेतृत्त्व को बढ़ावा तथा अंततः मांसाहारी अनुसंधान का लोकतंत्रीकरण करके सामाजिक-पारिस्थितिक प्रणालियों के रखरखाव की सुविधा प्रदान करना।