जैव विविधता और पर्यावरण
ठाणे क्रीक फ्लेमिंगो अभयारण्य के आस-पास पर्यावरण संवेदी क्षेत्र
- 08 May 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने ठाणे क्रीक फ्लेमिंगो अभयारण्य (TCFS) महाराष्ट्र के आस-पास एक पर्यावरण संवेदी क्षेत्र (Eco Sensitive Zone- ESZ) अधिसूचित किया है।
- ESZ का अर्थ संरक्षित क्षेत्रों के लिये एक बफर के रूप में कार्य करना और एक वन्यजीव अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान के आस-पास विकास के दबाव को कम करना है।
प्रमुख बिंदु:
ठाणे क्रीक फ्लेमिंगो अभयारण्य के संबंध में:
- यह मालवन अभयारण्य (Malvan Sanctuary) के बाद महाराष्ट्र का दूसरा समुद्री अभयारण्य है और ठाणे क्रीक के पश्चिमी तट पर स्थित है।
- इसे बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी द्वारा एक "महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र" के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- ठाणे क्रीक फ्लेमिंगो अभयारण्य में मैन्ग्रोव की 39 प्रजातियाँ पाई जाती हैं इसके अलावा यह फ्लेमिंगो जैसे पक्षियों की 167 प्रजातियों, मछली की 45 प्रजातियों, तितलियों की 59 प्रजातियों, कीट की 67 प्रजातियों और सबमें सियार जैसे स्तनधारी जानवरों का निवास स्थान है।
ठाणे क्रीक:
- यह अरब सागर की तटरेखा पर स्थित एक प्रवेश द्वार (Inlet) है जो मुंबई शहर को भारतीय मुख्य भूमि से अलग करता है।
- क्रीक को दो भागों में विभाजित किया गया है: घोड़बंदर-ठाणे स्ट्रेच और ठाणे-ट्रॉम्बे (उरण) स्ट्रेच।
महाराष्ट्र के अन्य संरक्षित क्षेत्र:
- संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान
- ताडोबा-अंधारी टाइगर रिज़र्व
- कोयना वन्यजीव अभयारण्य
- बोर वन्यजीव अभयारण्य
- उमरेड पौनी करहंडला वन्यजीव अभयारण्य
- सह्याद्री टाइगर रिज़र्व
- मेलघाट टाइगर रिज़र्व
- नवेगांव राष्ट्रीय उद्यान
पर्यावरण संवेदी क्षेत्र (ESZ):
- इसके संदर्भ में:
- इको-सेंसिटिव जोन (ESZ) या पर्यावरण संवेदी क्षेत्र, संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास 10 किलोमीटर के भीतर के क्षेत्र हैं।
- संवेदनशील गलियारे, संपर्क और पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण खंडों और प्राकृतिक संयोजन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होने की स्थिति में 10 किमी. से अधिक क्षेत्र को भी इको-सेंसिटिव ज़ोन में शामिल किया जा सकता है।
- इको-सेंसिटिव जोन (ESZ) या पर्यावरण संवेदी क्षेत्र, संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास 10 किलोमीटर के भीतर के क्षेत्र हैं।
- संबंधित मंत्रालय:
- ESZ को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा अधिसूचित किया जाता है।
- उद्देश्य:
- इनका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास कुछ गतिविधियों को नियंत्रित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों की निकटवर्ती संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।
- ESZ में गतिविधियों का विनियमन:
- प्रतिबंधित गतिविधियाँ: वाणिज्यिक खनन, मिलों, उद्योगों के कारण होने वाले प्रदूषण (वायु, जल, मिट्टी, शोर आदि), प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं की स्थापना (HEP), लकड़ी का व्यावसायिक उपयोग, राष्ट्रीय उद्यान के ऊपर गर्म हवा के गुब्बारे जैसी पर्यटन गतिविधियाँ, निर्वहन अपशिष्ट या किसी भी ठोस अपशिष्ट या खतरनाक पदार्थों का उत्पादन जैसी गतिविधियाँ।
- विनियमित गतिविधियाँ: वृक्षों की कटाई, होटल और रिसॉर्ट्स की स्थापना, प्राकृतिक जल संसाधनों का वाणिज्यिक उपयोग, बिजली के तारों का निर्माण, कृषि प्रणाली का व्यापक परिवर्तन आदि।
- अनुमत गतिविधियाँ: कृषि या बागवानी प्रथाओं, वर्षा जल संचयन, जैविक खेती, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग, सभी गतिविधियों के लिये हरित प्रौद्योगिकी को अपनाने आदि की अनुमति होती है।
- लाभ:
- इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) घोषित करने का उद्देश्य संरक्षित क्षेत्र और उसके आसपास के क्षेत्रों की गतिविधियों को विनियमित और प्रबंधित करके संभावित जोखिम को कम करना है।
- ये उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्रों से कम सुरक्षा वाले क्षेत्रों में संक्रमण क्षेत्र के रूप में भी कार्य करते हैं।
- ESZs इन-सीटू (स्व-स्थाने) संरक्षण में मदद करते हैं, जो अपने प्राकृतिक आवास में एक लुप्तप्राय प्रजाति के संरक्षण से संबंधित है, उदाहरण के लिये काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, असम के एक-सींग वाले गैंडे का संरक्षण।
- इसके अलावा ESZs, वन क्षय और मानव-पशु संघर्ष को कम करते हैं।
- चुनौतियाँ:
- जलवायु परिवर्तन: वैश्विक तापमान में वृद्धि ने ESZs पर भूमि, जल और पारिस्थितिक तनाव उत्पन्न किया है।
- स्थानीय समुदाय: कृषि में उपयोग की जाने वाली स्लैश और बर्न तकनीक, बढ़ती आबादी का दबाव तथा जलावन की लकड़ी एवं वन उपज की बढ़ती मांग आदि इन संरक्षित क्षेत्रों पर दबाव डालती है।